Meri Manzil

October 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जान भी तू है ज़िन्दगी तू है

June 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जान भी तू है ज़िन्दगी तू है
जाने जाँ जाने शायरी तू है
खुश्बू-ए-इश्क से धुली तू है
मेरी सांसो मॆं बस गई तू है
रूबरू ख़्वाब मॆं हक़ीक़त मॆं
मेरी रग रग मॆं दौड़ती तू है
किरने बिस्तर पे मेरे पड़ती हैं
जैसे खिड़की से झांकती तू है

शाम के वक़्त छत पे आ जाना
मुझको किस दर्ज़ः चाहती तू है
फूल जैसा हँसी बदन तेरा
उम्र गुज़री मगर वही तू है

तेरा आरिफ है मुतमईन जानाँ
दूर रह कर भी पास ही तू है

आरिफ जाफरी

तुझको पा कर

May 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुझको पा कर वो यूँ नहीँ खोती
गर महब्बत हक़ीक़तन होती

रिज़्क़ अपना वो साथ लाती है
बोझ लड़की कभी नहीँ होती

सीपियों से न वास्ता अपना
दर्दे दिल के हैं खुशनुमाँ मोती

लोग खुशियाँ खरीद लेते हैं
अपनी औकात ही नहीँ होती

भेस बदला तो बन गया लीडर
एक टोपी कमीज़ और धोती
होगा शिद्दत का ग़म तभी वरना
आँख वालिद की यूँ नहीँ रोती

फिक्र में तुझको देख कर आरिफ
रात भर माँ तेरी नहीँ सोती

आरिफ जाफरी

मिले वो ज़ख्म

May 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिले वो ज़ख्म के सारे अजीब लगते हैं
पराये अपने हमारे अजीब लगते हैं

जो तुम थि साथ अँधेरे से दिल बहेलता था
जो तुम नहीँ तो सितारे अजीब लगते हैं

कली कि शक्ल से मासूमियत झलकती है
गूलों नें हाँथ पसारे अजीब लगते हैं

अगर चे क़ाबिलियत और न अहलियत कोई
सिफारिशात के धारे अजीब लगते हैं

मिज़ाजे इश्को महब्ब्त बदल गया आरिफ
ये आज इश्क के मारे अजीब लगते हैं

आरिफ जाफरी

ये पानी नहर का गहरा कहाँ है

May 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये पानी नहर का गहरा कहाँ है
समंदर की तरह ठहरा कहाँ है

छिपा सकते नहीँ हरगिज़ खुदा से
हमारा दूसरा चेहरा कहाँ है

हमारी दोसती बे शक़ है उनसे
ताअल्लुक़ इस क़दर गहरा कहाँ है

चलो माना कि है इन्साफ अंधा
कोई मुंसिफ मगर बहरा कहाँ है

इसी वादी मॆं है ठण्डी हवायें
चमन जैसा है ये सेहरा कहाँ है

तुम्हारे हुस्न का चर्चा है लेकिन
हमारे इश्क का शोहरा कहाँ है

खुशी और ग़म हैं आरिफ धूप छावों
जहाँ भी वो रहे पहरा कहाँ है

आरिफ जाफरी

गिरते गिरते ही सम्भलते हैं सब

May 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गिरते गिरते ही सम्भलते हैं सब
फ़िर कहीँ आगे निकलते हैं सब

ऐसे क़ाबिल तो नहीँ बनता कोई
पहले जलते हैं पिघलते हैं सब

कौन बच पाया हमें बतलाओ
दिल जवानी मॆं फिसलते हैं सब

दिल को मिलता है महब्बत से सुकूँ
वरना बस आग उगलते हैं सब
अपनी खुशियों का तो इज़हार नहीँ
दर्द आँसूओं मॆं ढलते हैं सब

मैं हूँ मिट्टी का तराशा इंसा
हीरे कानों से निकलते हैं सब

आज़ भी देखो वही है आरिफ
वक़्त के साथ बदलते हैं सब
आरिफ जाफरी

माँ

May 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ…

कितनी प्यारी प्यारी है माँ
खुशबू है” फुलवारी है माँ
मेरी पहली पहली चाहत
मुझमें नज़र आई जो शबाहत
मैं था जब नन्हा सा बच्चा
कौन मेरी तक्लीफ समझता
मुझको समझा मुझको जाना
मेरी इशारों को पहचाना
क़दम क़दम चलना सिखलाई गिरने लगा तो दौड़ी आई
रोते रोते जब भी आया
आँसू पोछा गले लगाया
पीर” क़लन्दर “वली पयम्बर
माँ का साया सब के सर पर
फूल चमन के चाँद सितारे
लगते नहीँ तुझ जैसे प्यारे
जन्नत इस दुनियाँ मॆं कहाँ है
असली सूरत मेरी माँ है
इज्ज़त दौलत शोहरत ताक़त
पाई मैंने माँ की बदौलत
जिसने पाई माँ की दुवाऐँ
खुल जाती हैं उसकी राहें
दुनियाँ सब क़दमों मॆं बिछाऊँ
हक़ न अदा फ़िर भी कर पाऊँ
जान लुटादे “आरिफ” तुझ पर
प्यार न पाया तेरे बराबर
आरिफ जाफरी

Jagmagaaya hai jab khushi ka charaagh

May 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Photex691-1

जगमगाया  है जब खुशी का चराग़

गुल हुआ बज़्मे  बेबसी का चराग़

 

था कभी वजह रोशनी दिल की

वो अमानत है अब किसी का चराग़

 

कोशिश की हैं बारहा  लेकिन

बुझ गया मेरी आशिकी का चराग़

 

दिन निकलते हि छिप गया होगा

सिर्फ़ साथी थ तीरगी  का चराग़

 

राहते दिल सुकून का हासिल

सब से बढ़कर है  बन्दगी  का चराग़

 

ज़ख्म दिल के उभर गयें आरिफ

जल गया शेरो शायरी का चराग़

 

आरिफ जाफरी..

le jaao

April 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाहिये तो जनाब ले जाओ

मेरे ग़म बे हिसाब ले जाओ

 

सारी बातें तो आप ने कह दीं

अब मेरा भी जवाब ले जाओ

 

रात में काम  जुगनूओं का है

डूबता  आफ़ताब ले जाओ

जब हक़ीक़त को पा नहीँ सकते

क्या करेंगे ये ख्वाब ले जाओ

 

अपने  वो ख़त वफाये उल्फ़त के

अब  हैं  सूखे  गुलाब ले जाओ

तुमसे बिछड़े तो टूट कर बिखरे

दिल की  मुर्दा किताब ले जाओ

 

कितना चाहा है तुमको आरिफ  ने

हर घड़ी   का  हिसाब  ले  जाओ

 

आरिफ जाफरी

KHUD KO DEKHE’N WO AAINAA HI NAHI’N

April 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

KHUD KO DEKHE’N WO AAINAA HI NAHI’N

WO MILAA JAISE WO MILAA HI NAHI’N

KAISE JITE HAI’N.ZINDAGI AARIF

JINKE MAA BAAP KA PATAA HI NAHI

ARIF ZAFRI

 

Aise kaise wo bhool paayeGi

April 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Aise kaise wo bhool paayeGi

Yaad meri use sataayegi

Aor madhosh mujhko rahne do

Hosh aayega yaad aayegi

Arif Jafri

ख़्वाब है या के  ख़्वाबो  की ताबीर है

April 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख़्वाब है या के  ख़्वाबो  की ताबीर है..

ज़िन्दगी इक पहेली की तस्वीर है..

 

है बदौलत  फ़कत अपने आमाल की

अय नजूमी जो हाँथों में तहरीर है..

 

उम्र तिफ़्ली की  मौजे रवां जा चुकी

ज़िम्मेदारी कि अब तंग  ज़ंजीर है

हाँथ पर हाँथ रक्खे हुये लोग

कोसते  रहते हैं   कैसी  तक़दीर है..

 

ऊँचे ऊँचे पहाडों को देखा था जब

आज तबदील जर्रे मॆं तस्वीर है..

 

अपने बारे मॆं है सोच आरिफ की यॆ

जिस्म जानो जिगर रब कि  जागीर है..

 

आरिफ जाफरी..

शाम ढलती रही…

April 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शाम ढ़लती गयी शम्अ जलती रही..

और तबीयत हमारी  मचलती रही  ..

 

मेरी हालत की उनको ख़बर तक न थी

उम्र आहिस्त करवट बदलती रही

 

उनसे तर्के ताअल्लुक़ को अरसा  हुआ

गोश-ए- दिल मॆं इक   याद पलती  रही

 

दर्द  गहरे समंदर के सीने मॆं  थी

मौज अफ़सोस से हाँथ मलती रही

 

जैसे  कश्ती मचलती हो गर्दाब मॆं

जिंदगी  यूँ हि आरिफ कि चलती रही

 

आरिफ जाफरी..

 

गर्दाब-  भँवर

गोश-ए-दिल- दिल के जगह

 

Kami thi mahabbat me’n shayad hamaare

April 8, 2016 in Other

Kami thi mahabbat me'n shayad hamaare... Bichadna hamara to mumkin nahi'n tha
Kami thi mahabbat me’n shayad hamaare…
Bichadna hamara to mumkin nahi’n tha

मुस्कुराहट के सिवा

April 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुस्कुराहट के सिवा कुछ शक्ल दिखलाता नहीँ.
हाले दिल की कैफियत कोई समझ पाता नहीँ.
ग़म लिपटता है हमेशा जिस्म से कुछ इस तरह
पास रहती है खुशी पर मैं नज़र आता नही.
वक्त़ तू साथी उसी का है जो इब्न-अल- वक्त़ है
ऐसा लगता है शराफ़त से तेरा नाता नहीँ.
क्या सँभलता वो ग़रीबी के जो ख़ंदक मॆं गिरा
चाह कर भी अब ज़मी पर पाऊँ रख पाता नहीँ.
खुश्क पत्ते जैसी है “आरिफ”
तेरी ये ज़िन्दगी तेज़ आवारा हवाओं को तरस आता नहीँ.

आरिफ जाफरी

muskuraahat ke siwa

April 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुस्कुराहट के सिवा कुछ शक्ल दिखलाता नहीँ. हाले दिल की कैफियत  कोई  समझ  पाता नहीँ.      ग़म लिपटता है  हमेशा जिस्म से  कुछ इस तरह   पास  रहती  है  खुशी   पर  मैं नज़र   आता नही.  वक्त़ तू साथी उसी का है जो इब्न-अल- वक्त़ है      ऐसा   लगता   है   शराफ़त   से  तेरा   नाता नहीँ.       क्या सँभलता  वो ग़रीबी के जो ख़ंदक मॆं गिरा    चाह कर भी अब  ज़मी पर  पाऊँ रख पाता नहीँ.                                                   खुश्क   पत्ते   जैसी  है "आरिफ" तेरी ये ज़िन्दगी    तेज़  आवारा   हवाओं    को   तरस  आता  नहीँ.   आरिफ जाफरी

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