by Deepak

मेरी कल्पना

January 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जी करता है कागज में तस्वीर तेरी ऊतार दूं ,
दिल के किसी कोने का राज उसमें उकेर दूं |
ख़्वाब में था जो, हकीकत में उसे देख रहा हूं ,
खुद पे नहीं अंकुश, मन विचलित कर जाता हूं |

कल्पना थी कि कोई मुझसे भी प्रेम करे ,
इस टूटे हुए दिल का हाल मुझसे पूछ पड़े |
इंतजार में अखियां जन्मों से तरसी हुई हैं ,
चेहरा है सामने पर सवाल अब भी वही है |

जिस तरह राधा, कृष्ण की दीवानी थी कभी ,
तुम भी अपने इस कृष्ण में आज समा जाओ |
प्रेम अपने भीतर का लफ्जों तक ले आओ ,
संकोच भरा है हृदय का, इजहार से मिटा दो |

by Deepak

नि:स्वार्थ प्रेम

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम धरा हो, मैं वृक्ष हूं
तुम चैतन्य हो, मैं प्रेम हूं |

तुम नदिया हो, मैं किनारा हूं
तुम अग्नि हो, मैं हवनकुंड हूं |

तुम जीव हो, मैं श्वास हूं
तुम मर्यादा हो, मैं छैला हूं |

सच कहूं मैं प्रिय तुम्हें तो
मैं हंस, तुम मेरी हंसिनी हो |

by Deepak

मकर संक्रांति

January 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

काली रात बीत गई, नई सुबह आई है |
शुभ हुआ अशुभ पर भारी मंगल बेला आई है |
पौष माह की सर्द रातों का चंद्रमा, अब माघ माह में आया है |
सूर्य ने भी करवट बदली मकर संक्रांति की बेला पर, उत्तर दिशा की ओर निकला आज अपना तेज लेकर है |

by Deepak

संदेशा

December 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कड़कती बिजली की तरह चमचमाती हुई आती हो और सर्द हवा सी छू के निकल जाती हो |
इंतज़ार करते हुए तेरा मैं अक्सर ठिठुर जाता हूं संदेशा जो न आए तेरा तो व्याकुल हो जाता हूं |

नींद में होता हूं जब संदेशा आता है तेरा, चश्मा चढ़ा के तब हाथ रजाई से बाहर निकालता हूं |
कश्मकश सी बनी रहती है हर रोज सुबह – श्याम बस इसी बेक़रारी में, नींद पूरी न होने से मैं अक्सर थक जाता हूं |

अगली बार कब आए संदेशा तेरा बस बैचेन अभी से हो जाता हूं |
सांस लेने भर तक तुझे देख सकूं ? ये सोच के अधीर मन को पाता हूं |

खुद को खो चुका हूं मैं ख्यालों में तेरे, जी नहीं लगता अब किसी काम में मेरे |
पल भर के लिए ही सही पर तू पास हो, झूठा ही सही पर दिल में तेरे भी प्यार हो |

by Deepak

भौंरा

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी खुली जुल्फों से मैं एक सवाल करता हूँ
चाहत है तेरी कौन ये दरखास्त बारंबार करता हूँ |

लगाए थे तूने आज तक कई पहरे सोच पर मेरे
मनाया तुझे कई बार पर तू मानी न कहने पर मेरे |

जिन आंखों में शर्म थी, अब वो चेहरा भी बेपर्दा है
घुट – घुट कर जीने से अच्छा, तेरा ये नया मुखड़ा है |

आज तुझे देखकर जिंदगी जीने का मन है भौरे का
फूल खिला है सालों बाद, पुष्परस करा दे आशिक का |

चाहने लगा है तुझे इस कदर कि अब इजहार करता है
फिर से तुझे दिल से एक बार आज सलाम करता है |

by Deepak

मदिरा और बारिश

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ मदिरा, मैं नशे में तेरे चूर रहता हूं होश आ भी जाए तो खुद को भूल जाता हूँ |
आदत सी हो गई है तेरी इस कदर, न पाऊं तुझे पास तो बैचेन हो उठता हूँ |

नासमझ हैं वो लोग जो तुझे पीने वाले को शराबी कहकर बदनाम करते हैं |
तू तो वो अमृत है जिसे हलक से नीचे उतार कर इंसान बड़े से बड़ा गम भी भुला दे |

ऐ मदिरा, आज फिर से मौसम ने करवट ली है, एक बार फिर तेरी सौतन (बारिश) बाहर जमकर बरस रही है |
और मेरी हालत तो देख, गोपीयों से घिरे कृष्ण की तरह हुई है ठीक से उसे देख भी नहीं सकता |

उसे निहारता हूं तो तू गले को चुभने लगती है और तुझे हलक में उतारु तो वो जमकर बरसने लगती है |
तेरे पास होने पर उसकी ईर्ष्या साफ झलकती है, उसमें (बारिश) भीग जाऊं तो तू पैमाने को खन से तोड़कर कर बिखर जाती है |

ऐ मदिरा, मैं इस दोतरफा प्रेम में पिस चुका हूँ और उसका बेमौसम आना नामुमकिन सा लगता है |
मेरी वफा का कुछ तो लिहाज़ कर पगली मुझसे तेरी दूरी अब बर्दाश्त नहीं हो पाती |

वो माशूका छोड़कर चली जायेगी अपने किसी और प्रेमी की बाहों में इसमें कोई संदेह नहीं |
पर तू एक बार जिसके हलक से नीचे उतर जाए, तो मजाल क्या उसकी जो किसी और का हो जाए |

by Deepak

मदिरा

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नासमझ हैं वो लोग जो तुझे शराब और पीने वाले को शराबी कहकर बदनाम करते हैं |
तू तो वो अमृत है जिसे हलक से नीचे उतार कर इंसान बड़े से बड़ा गम भी भुला दे |

ऐ मदिरा ! आज फिर से मौसम ने करवट ली है, एक बार फिर तेरी सौतन बाहर जमकर बरस रही है |
और मेरी हालत तो देख, गोपीयों से घिरे कृष्ण की तरह हुई है ठीक से उसे देख भी नहीं सकता |

उसे निहारता हूं तो तू गले को चुभने लगती है और तुझे हलक में उतारु तो वो जमकर बरसने लगती है |
मेरी वफा का कुछ तो लिहाज़ कर पगली मुझसे तेरी दूरी अब बर्दाश्त नहीं हो पाती |

माशूका अपने प्रेमी को दगा देकर किसी और की बाहों में हो सकती है इसमें कोई संदेह नहीं |
पर तू एक बार जिसके हलक से नीचे उतर जाए तो मजाल क्या उसकी जो किसी और का हो जाए |

by Deepak

कोरोना

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाय रे कोरोना तूने क्या – क्या गजब ढाया है,
नया साल आने को है और तू अब तक सता रहा है |

क्या कुछ जतन न किया हमने तुझे मनाने को,
घर में ही कैद हो गए खुद की जान बचाने को |

विश्व की अर्थव्यवस्था तक गिर चुकी है तुझे भगाने में,
पर तूने हम मानव की सभ्यता पर किया बड़ा घाव है |

घर से स्कूल वो लंच बॉक्स का ले जाना, वो मां के हाथों से बालों का सँवरना |

सड़क पर स्कूल की गाड़ी का आना और स्कूल पहुंच कर वो दोस्तों का मिलना, अब मानो लगता है सब सपना सा |

वो परीक्षा कक्ष में शामिल होना,
स्वतंत्रता दिवस का हर्षोल्लास से मनाया जाना
वो गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होना और भाषण से उत्सव को मनाना, मानों सब भूल गए हैं |

अध्यापक – अध्यापिका भी जैसे अब दिखने दुस्वार हो गए हैं,
मीनाक्षी मैम भी अब ६ इंच की मोबाइल स्क्रीन पर सिमट चुकी हैं |

हे कोरोना, हम इंसान अपनी मस्ती में पर्यावरण को भूल चुके थे,
तूने हम सब के बीच आकर हमें हमारे कर्तव्य से परिचय कराया है |

निवेदन करते हैं हाथ जोड़कर अब कोरोना तुमसे हम, फिर से जीना चाहते हैं |

सबक मिल चुका है जीवन में, अब फिर से मुस्कराना चाहते हैं |

by Deepak

करोनो

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाय रे कोरोना तूने क्या – क्या गजब ढाया है,
नया साल आने को है और तू अब तक सता रहा है |

क्या कुछ जतन न किया हमने तुझे मनाने को,
घर में ही कैद हो गए खुद की जान बचाने को |

विश्व की अर्थव्यवस्था तक गिर चुकी है तुझे भगाने में,
पर तूने हम मानव की सभ्यता पर किया बड़ा घाव है |

घर से स्कूल वो लंच बॉक्स का ले जाना, वो मां के हाथों से बालों का सँवरना |

सड़क पर स्कूल की गाड़ी का आना और स्कूल पहुंच कर वो दोस्तों का मिलना, अब मानो लगता है सब सपना सा |

वो परीक्षा कक्ष में शामिल होना,
स्वतंत्रता दिवस का हर्षोल्लास से मनाया जाना
वो गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल होना और भाषण से उत्सव को मनाना, मानों सब भूल गए हैं |

अध्यापक – अध्यापिका भी जैसे अब दिखने दुस्वार हो गए हैं,
मीनाक्षी मैम भी अब ६ इंच की मोबाइल स्क्रीन पर सिमट चुकी हैं |

हे करोना, हम इंसान अपनी मस्ती में पर्यावरण को भूल चुके थे,
तूने हम सब के बीच आकर हमें हमारे कर्तव्य से परिचय कराया है |

निवेदन करते हैं हाथ जोड़कर अब करोना तुमसे हम, फिर से जीना चाहते हैं |

सबक मिल चुका है जीवन में, अब फिर से मुस्कराना चाहते हैं |

by Deepak

कब तक उसे याद करूं

November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल तक जो कहती थी, मैं नहीं साझा कर सकती अपने दिल का हाल, वो अब लबों से कुछ बोले जा रही है
सच कहूं तो दिल के राज धीरे से खोले जा रही है |

कल तक था जिसे शादी – ब्याह, फैशन से परहेज़, वो आज बाजार की रौनक बटोरे जा रही है
सच कहूं तो दिल के राज धीरे से खोले जा रही है |
कभी उसे भूल जाऊं ऐसा न हरगिज़ होगा, वो प्यार है मेरा और ताउम्र रहेगा !
उसे दिल में छुपाया है मैंने |
आज वो रिश्तों में बंधने का सपना संजो रही है
सच कहूं तो दिल के राज धीरे से खोले जा रही है |
बेवजह झूठ पर झूठ बोलना आदत थी जिसकी कभी
आज वो सच बोलने पर भी कसमें खाए जा रही है
सच कहूं तो दिल के राज धीरे से खोले जा रही है |

गुमसुम थी जो अब तक, खोई थी उसके ख्यालों में
आज वो अचानक अपने चाहने वालों का नाम गिना रही है
सच कहूं तो दिल के राज धीरे से खोले जा रही है |

by Deepak

नादान लड़की

November 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू क्यों नहीं समझती मेरे दिल के जज्बातों को…
क्या तेरे सीने में दिल नहीं…?
पत्थर है शायद !
दिल होता, तो धड़कता जरूर |

मैं वर्षों से एकटक लगाये तुझे देख रहा हूं,
और तुझे तेरी खूबसूरती का अंदाजा तक नहीं |
एक तू नादान, जो मुझे समझती नहीं ।
उस पर मेरी जवानी, जो थमती नहीं …
नादान लड़की… तेरे सीने में शायद दिल नहीं |

by Deepak

मेहनत और मेहनताना

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेहनत का कल मेहनताना,
फल पाने को मन ताना बाना |

मेहनत की सीढ़ी लगन, मंजिल मेहनताना,
मन आतुर पाने को मेहनताना |

देह करौंदे, मेहनत का कड़वा खाना,
मेहनत का स्वाद कुटकी जैसा |

अनपच होवे जो ऐसा – वैसा,
फल है उसका मयखाना |

मेहनत से ले मेहनताना,
मेहनत का फल मेहनताना |

by Deepak

वाणी

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मानव का गहना है वाणी,
वाणी का भोगी है प्राणी ।
मधुर वचन है मीठी खीर,
कटु वचन है चुभता तीर ।
सद वचन है सदा अनमोल,
मन कांटे से इसको तौल ।
हिय का रूप है वाणी,
ये बहु चंचल बहता पानी ।
मानव का गहना है वाणी,
वाणी का भोगी है प्राणी ।
डूबते का सहारा मधु वाणी,
हँसते का घातक कटु वाणी ।
सदाचार की पोषक सद वाणी,
दुराचार की पोषक दुर्वाणी ।
शत्रु नाशक है मधु वाणी,
शत्रु पोषक है कटु वाणी ।
मानव का गहना है वाणी,
वाणी का भोगी है प्राणी ।
जख्म को भर दे मधु वाणी,
जख्म नासूर कर दे कटु वाणी ।
मानव का गहना है वाणी,
वाणी का भोगी है प्राणी ।

by Deepak

विदाई

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विदाई का ग़म किसी से छुपाया नहीं जाता,
दिल की आह को दिखाया नहीं जाता |

लाख करे कोशिश कोई ग़म छुपाने की,
चेहरे को नहीं जरुरत इसे दिखाने की |

विदाई एक अलगाव होती है,
प्यार रिश्तों का विखराव होती है |

कोई कहने को कुछ और कह दे मुस्कुराकर,
पर दिल में एक टीस सी रोज होती है |

न चाहते हुए भी चेहरे को हँसाने की कोशिश होती है,
पर दिल खामोश सा, चेहरे पर हल्की मुस्कान होती है |

by Deepak

सुंदरता

October 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुंदर दिखना सबको भाता,
हे जीवन के भाग्य विधाता ।
तन की काया कुछ पल सुंदर ,
मन की माया हर पल सुंदर ।
तन सुंदर पर मन न हो कोमल,
वह कुटिल मानव जैसा पुष्प सेमल,
मन कोमल तन है काला,
रहे हरदम मधु पान मसाला ।
सुंदर चित की बात निराली,
तन कलुषित फिर भी साथी यह माली ।
सुंदर दिखना सबको भाता,
हे जीवन के भाग्य विधाता ।
तन के सुंदर, पर मन के जाली,
दुराचार और बने व्यभिचारी ।
तन के कलुषित मन के निराले,
दया करुणा के सागर मतवाले ।
सुंदर दिखना सबको भाता,
हे जीवन के भाग्य विधाता ।

by Deepak

एक दूजे का प्रेम

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम जिसका इंजन, गाड़ी जिसकी यारी |
इजहार चालक है, खुशियाँ हैं सवारी |

वह एक फरिश्ता है, खूबसूरत गुलदस्ता है |
लगता बहुत नाजुक, पर सच्चे दिल से रिश्ता है |

वह आस से जीता है, विश्वास से चलता है |
नफरत जिसका दुश्मन, जो प्यार से पलता है |

एक दूजे के दर्द को अपना समझ कर,
खुद बीमार होता है |
पर खुशगवार दिल में, इकरार होता है |

वो एक शीशा सा नाजुक है, बस इसे सहेजना होता है |
स्वार्थी राक्षस को बस भेदना होता है |

सच कहूँ इसमें असीम शक्ति होती है |
अपना पराया हो जाए, पर इसमें सच्ची भक्ति होती है |

अगर कोई इसकी मान का, व्याकरण सीख लेता है |
समझो वो आजीवन सच्चे भाव का आवरण ओढ़ लेता है |

by Deepak

बचपन और बुढ़ापा

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन तरु की नई कोंपल है बचपन, कोंपल से बनी शाखा युवापन |
शाखाओं से झुका वृक्ष बूढ़ापन, यही चक्र है बचपन, युवा और बूढ़ापन |
खेल खिलौनों में गुजरा प्यारा बचपन, यादें जीवन की सँजोए हुये है बूढ़ापन |
जीवन का यात्रावृतांत बूढ़ापन, सपनों का संसार है बचपन |

बचपन सुबह और बुढ़ापा शाम सा है, एक उमंग की रसवेरी, और दूजा चूसा आम सा है |
बचपन एक फूल की बगिया, बुढ़ापा एक नदी का दरिया |
बसंत की मधुर बहार बचपन, पौष की कंपाती ठंड बूढ़ापन |
तन दुर्बल, मन आहत्, निर्झर काया, यादों की गीता सी बूढ़ापन का साया |

बचपन करता बचकाना हरकत, बूढ़ापन लाता जीवन से नफरत |
जीवन रुपी चक्की में हंसता बचपन, इसके पाटों में पिसता बूढ़ापन |
खुशियों का सागर बचपन, यादों, पश्चातापों का भँवर बूढ़ापन |

by Deepak

वक्त

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सबसे तेज होती है, वक्त की रफ्तार |
वक्त में घुली है, सबकी जीत या हार |
वक्त के दो पहलू, नफरत और प्यार |
वक्त से ही जुड़े हैं, जीवन और मरण के तार |

जिसे समझते हैं हम, खुदा का फरिश्ता |
लेकिन वक्त बदलता है, अहिस्ता-अहिस्ता |
कहावत है चली, वक्त ही बलवान |
कोई दाने को मोहताज, तो कोई आलिशान |

अच्छा और बुरा, वक्त के दो रूप होते हैं |
वक्त राजा को रंक और रंक को राजा बना देता है |
शौकीन दुनिया में किया वक्त ने प्रहार |
वक्त वायरस से चढ़ा, फैशन का बुखार |

हंसाना और रूलाना, वक्त की नियति है |
अचानक पलट जाना, इसकी मासूमियत है |
वक्त के झोंको से डगमगाती, जीवन की नाव |
वक्त के तूफान से होता प्यार, मोहब्बत, बिखराव |

जिसे वक्त की परवाह, वक्त को भी परवाह अपने कद्रदानों की |
जिन्दगी रोशन हो, वक्त के दीवानो की |
जिन्दगी रोशन हो, वक्त के दीवानो की |

by Deepak

बेटियाँ

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गृह-वाटिका सी होती हैं बेटियाँ,
घर आँगन को सजा देती हैं बेटियाँ |
जैसे बिना चाँद के आसमान सूना सा लगता है,
वैसे बिना बिटिया के घर कोना सा लगता है |
कौन कहता है ! बेटियाँ परायी होती है,
अरे वह तो सबके दुःख में दवाई सी होती है |
जब कभी दिल कुछ उदास सा होता है,
आखिरी साँस में बिटिया ही पास होती है |
बेटा-बेटी का कभी ना भेद करना,
कोमल कली के दिल में कभी ना ये खेद करना |
समाज के दर्पण में पराया धन हैं बिटियाँ,
लेकिन सच्चे इन्साफ से मन का कंचन हैं बेटियाँ |

by Deepak

स्वप्नदोष

October 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल रात स्वप्न में वो मेरे आई, धीरे से रजाई उसने मेरी सरकाई |
रखा तब सर उसने सीने में मेरे, बैठी जब आकर पास सिरहाने मेरे |
मैं अब कुछ गुनगुनाने लगा था, उसकी खुली जुल्फों में बहकने लगा था |
होश में आकर मैं उसे देख पाता, उत्तेजना से तभी स्खलित हो जाता |
इस समस्या से अब तक ग्रसित हूँ, योग रामबाण है इस उम्मीद में जीवित हूं |
स्वप्नदोष एक स्वाभाविक दैहिक क्रिया हैै, इस बात से लांछित न होना कभी |
नींद एक प्राकृतिक क्रिया है, स्वप्नदोष मनोदैहिक क्रिया है |

by Deepak

स्वप्नदोष

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल रात स्वप्न में वो मेरे आई, धीरे से रजाई उसने मेरी सरकाई |
रखा तब सर उसने सीने में मेरे, बैठी जब आकर पास सिरहाने मेरे |
मैं अब कुछ गुनगुनाने लगा था, उसकी खुली जुल्फों में बहकने लगा था |
होश में आकर मैं उसे देख पाता, उत्तेजना से तभी स्खलित हो जाता |
स्वप्नदोष एक स्वाभाविक दैहिक क्रिया हैै, इस बात से लांछित न होना |
नींद एक प्राकृतिक क्रिया है यह बात याद रखना सभी |
स्वप्नदोष मनोदैहिक क्रिया है इस बात से न शरमाना कभी |

by Deepak

जिंदगी

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे बताऊ जिंदगी कितना प्यार है तुझसे,
उम्र ढल रही है ऐसे, मानो रेत हाथ से जैसे |

कैसे बताऊ जिंदगी कितना प्यार है तुझसे,

काश समय की इस रफ्तार को रोक पाता, समेट लेता पलों को आहिस्ता – आहिस्ता |
होश संभाला था जब, तब कुछ भी तो न था |
अब वास्ता है तुझसे तो वक्त की कमी सी लग रही है |

कैसे बताऊ जिंदगी कितना प्यार है तुझसे,

कुछ और खूबसूरत लम्हों को जीना बाकी है, कुछ और हसरतें अभी अधूरी हैं |
मुद्दे बहुत से हैं जिन्हें पूरा करना है, सफर के सिलसिले की रफ्तार अभी बाकी है |

कैसे बताऊ जिंदगी कितना प्यार है तुझसे,

कब से सपनों की चाह थी मन में, अभी – अभी तो फुर्सत के कुछ लम्हें मिले हैं,
जिम्मेदारियों के बोझ तले छटपटाहट थी कुछ ऐसी, उमर की बढ़ती गिनती में मानों जीना भूल से गए |

कैसे बताऊ जिंदगी कितना प्यार है तुझसे,

आज न जी सके गर वो लम्हा नापाक होगा, किसी के हौसलों का फिर से मखौल होगा |
आज पूछ रहा है वक्त दर्द – ए – दिल का हाल, अब तू ही बता जिंदगी कैसे उसे समझाऊं |

कैसे बताऊ जिंदगी कितना प्यार है तुझसे |

by Deepak

प्रेम की गाड़ी

October 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक से दूसरी, दूसरी से तीसरी पटरी पर पटरी बदलता हूं
क्या कहूं मैं प्रेम की गाड़ी में रोज सफर करता हूं
इन गाड़ियों के डिब्बों से, रोज दिल मेरा मचलता है
कभी नीला, कभी सफेद, कभी सतरंगी जेहन में आता है

प्लेटफार्म पर उतर कर, जब राह मैं अपनी बदलता हूं
सामने से हार्न – गाड़ी का सुन, फिर विचलित हो जाता हूं
कशमकश सी लगी है भीतर, दिल के किसी कोने में
साथ दूं किस – किसका, जीवन के इस क्षणभंगुर में

उम्र भी अब इजाज़त नहीं देती, रोज राह-ए-सफ़र का
आंखें भी अब थक चुकी हैं, गाड़ियों के होते बदलाव का
अब कि गाड़ियां नये स्टेशनों पर, सरपट दौड़ने वाली हैं
क्या करूं प्लेटफार्मों से, वो पुरानी आवाज न आती है |

by Deepak

एक तरफा प्यार

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूं मेरे प्यार पर बेवजह शक न जताया कर,
खामोश हूँ, बेवफ़ाई का इलज़ाम न लगाया कर |

जमाने में हँसी हो मुझे ऐसे नज़रअंदाज़ न कर,
चाहत हो तुम मेरी इस बात का इक्तिराफ कर |

अब तक जमाने की रूसवाई से बचाया है तुझको,
सरेआम तमाशा न हो, इस दिल में छुपाया है तुझको |

जमाने में चाहने वालों का, सिलसिला बदस्तूर जारी है,
आज भी उनकी आँखों में, वो प्यास तेरे लिए बाकी है |

खुद को संभाल पाऊं, अब मुझमें वो साहस नहीं,
शिकायतों का दौर था वो, अब उसकी भी इल्तिजा नहीं |

मिलकर भी तुझसे मैं कई बार बिछड़ा हूं,
कैसे कहूं तन्हाई में कितनी बार मैं रोया हूं |

फूलों भरा दिल जो था कभी, अब बिखर चुका है,
नदिया का पानी अब खारा हो गया है |

by Deepak

चालान

October 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

झूमे जा रहा था मस्ती में कि उनसे नजरें चार हुई
ब्रेक गाड़ी पर उसने लगवाया, और इनायत दिल की हुई
खुद को संभाल पाता कि शिकार नजरों का हो गया
कहना कुछ और था कि सरेआम तमासा हो गया
जाने क्या ये मुझसे अचानक हो गया…
अरे .. रे ..रे .. ये तो चालान हो गया….

अब उससे फरियाद लगाने की मेरी बारी थी
चालान की रकम कुछ कम कराने की तैयारी थी
तकरार हो गई उससे कुछ भारी ऐसी
वर्दी पर उतर आई जब मैडम एस.आई. हमारी
यूं तो पारा थोड़ा मेरा भी गरम था
पर उसकी आंखों का घाव थोडा गहरा था

बैठ गई अब तो वो जिद पर अपने
धारा कानून की सारी लगी गिनाने
कितना भी मैं सही हूं अब उसे परवाह नहीं
चालान कटने से कम पर अब वो तैयार नहीं
हार मान बैठा अब उसकी जिद के आगे
पांच सौ का नौट रखा जब उसके सामने

आंखों में थी सरारत उसकी अब जान गया
जाने से पहले उसको दो – दो सलाम किया
अब सफ़र पर ध्यान न भटके इशारा हुआ
नजरें सड़क पर रहेगी उससे वादा किया
जाने क्या ये मुझसे अचानक हो गया…
अरे .. रे ..रे .. ये तो चालान हो गया…
अरे .. रे ..रे .. ये तो चालान हो गया…

by Deepak

आईना

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुपके से रोज मैं उससे सवाल करता हूं,
स्टेटस पर तस्वीर देखकर, उसे प्यार करता हूं |

गोल सी आंखों में सपने उसने जो सजाए हैं,
लगता है मेेरी कल्पनाओं से बड़ा मेल खाए हैं |

अभी तक तो बातें इशारों में किया करता हूं,
उसके जेहन में क्या है ये विचार रखता हूं |

पलभर न देखूं उसे तो जी ये मचलता है,
आईना सामने से अब मुझसे सवाल करता है |

कश्मकश में अब हर रोज मैं जीये जा रहा हूं,
कैसे बयां करूं उससे मैं दर्द में मरे जा रहा हूं |

काश जो वो मेरी कल्पनाओं को मंजूर करती है,
सच कहूं जमाने भर से स्वीकार उसे करता हूं |

by Deepak

Sugar free love

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजकल वो अपना whatsapp status update नहीं करती,
जाने क्यों face पर अपने smile create नहीं करती |

इंतजार में उसके phone अपना alert रखता हूं,
hang होने के डर से बराबर इसे reset करता हूं |

जाने कब status पर मेरे notifications flash हो जाए,
phone की screen पर face उसका show हो जाए |

वैसे तो status में 24 hours का duration है,
miss न हो face उसका इसीलिए full night duty on है |

उसकी ओर से अब तक not confirmed हूं,
but 100 % के साथ मैं full and final हूं |

उसकी एक smile मेरे लिए sugar coated है
diabetes के डर से मेरा sugar free love है |

by Deepak

उतार – चढा़व

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दरिया के किनारों पर ख़्वाहिशे नहीं पनपती,
डूबी हुई कस्ती को कभी शाहिल नहीं मिलती |

उठना पड़ता है तल से सतह पर कुछ बयां करने को,
यूं पानी के नीचे मंजिलें आसमानों को नहीं छूती |

उतार – चढ़ाव आते हैं जीवन में, ये जीवन का हिस्सा हैं,
गर पाना हो पार इनसे तो बेफिक्र राह पर चलना है |

दुनियादारी के तानों से खुद को लज्जित न करना कभी,
घी टेढ़ी उंगली से निकलता है ये बात याद रखना सभी |

रेखा को बिना मिटाये, छोटी करना सीखा था जैसे कभी,
रुतबा अपना बढा़कर समाज में ईज्जत पाना सभी है |

by Deepak

सोना बाबू

October 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोना बाबू बड़े smart हो, लगते बड़े dashing हो |
smile पर वो सोना के मरती थी, heart beat है उसकी यह सबसे कहती थी |
Hello, hi, good morning, good night, miss you, love you रोज whatsapp पर होते थे |
Phone की Bell जब बजती है, charming सोना तब होता है |
Birthday party, new year’s party, picnic में रोज उसे मनाता है |
सोना बाबू सिर्फ उसका है confidence उसे दिलाता है |
सोना बाबू तुम cute हो, sexy हो कहकर वो ना थकती थी |
शादी मंदिर में मनाऊंगी खुल्लमखुल्ला कहती थी |

एक दिन देखा पास किसी के, Chaumin – momo order था,
बोल न सका कुछ सोना बाबू, दिल ही दिल में रोता था |
Number busy चल रहे अब, क्या सोना में कोई दोष था ?
यही सोच कर गया मनाने, दिखी सोना को जब चौराहे पे |
कहां कमी थी प्यार में मेरे, लगा उस पर अब चिल्लाने |
कुछ न कही वो सहमी थी वो सोना बाबू के सामने |
शादी मेरी तय हो गई, लगी अपने सोना को मनाने |

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