हम तुम…

September 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी हर बात को
तुम समझ लेना,
मेरी इकरार की भाषा
तुम जान लेना,
मन में उमड़ती लहरों को
तुम समेट लेना,
मेरे अधरों की प्यास
तुम बुझा देना,
मेरे गीतों को बस
तुम गुनगुनाते रहना,.
मेरे नैनों की भाषा
तुम पढ़ते जाना,
बस एक गुजारिश है तुमसे
जब भी मैं रूहूँ तुमसे
बस तुम मना लेना
हमतुम को एक कर देना,
मेरी हर बात को
तुम समझ लेना।।

क्यो मैं बुद्ध सी बनूँ….

August 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों ! मैं बुद्ध जैसी बनूँ…..
मैं बुद्ध नही हूँ..
जो चल दिये अपना सारा संसार छोड़कर;
मैं एक अदना सी नारी
कैसे कह दूं बेटा मेरा नहीं
बेटी मेरी नहीं
पति मेरा नहीं
मां-बाप मेरे नहीं.. !
क्षण में नकार दूँ सब कैसे,
यही जीवन भगवान ने दिया है
शरीर की हड्डी मांस सब कुछ
भगवान ने ही तो दिया
मोह ये माया सुख भी दिए दुख भी दिए
उम्मीद भी दी अपेक्षाएं भी दी.. !
वही तो कहता है कि
गृहस्थ जीवन ही त्याग का जीवन है
माँ बाप की सेवा ही तप है..!
तो फिर क्यों मैं बनूँ बुद्ध
क्यों सब को छोड़कर बुद्ध की तरह रहूँ . .
फिर मैं भी तो देखूं
गृहस्थ जीवन में रहकर
बुद्ध हो जाना कैसा होता है..!
क्या बुद्ध का मतलब यही है
कि सब कुछ छोड़कर चले जाओ;
एक पेड़ के नीचे बैठकर
खुद को आत्मसात करो..!
सबके साथ रहकर खुद को ढूंढो
तो हम बुद्ध बने
सबके साथ रह खुश रहो
दुख भी सहो
प्यार भी करो नफरत भी करो
उम्मीद भी रखो अपेक्षाएं भी रखो
खुशियां भी समेटो…!
पशु भी नही हूँ मैं कि
पैदा होते ही बच्चों को छोड़ दूँ…!
मैं इंसान हूँ —
तो फिर भगवान की दी हुई इस काया को
इस मन को एक छोटे से दिल को
क्यों ना मैं अपनों के बीच में रहकर
ही खुशियों में लिप्त रहूँ.. !
कैसे कह दूं कि मैं बुद्ध हो जाऊं
कैसे बन जाऊं मैं बुद्ध
कितने ही संत ओशो
संतों की जीवनी है
सब यही कहती हैं कि
ना मोह रखो ना माया रखो
भगवान ने जीवन दिया
कर्म करो फल की चिंता ना करो.. !
मैं कृष्ण नहीं हूं कृष्ण तो भगवान थे
मुझे तो उस भगवान ने
इंसान बना कर भेजा है
उसी ने तो कहा है सुख भी ले
और दुख का मज़ा चख
और फिर आजा मेरे पास..!
त्याग तो यशोधरा का था
उर्मिला का था……!
यह एक प्रश्न है जो हर एक के दिल में होता है इसका उत्तर किसी के पास नहीं है
सिर्फ सोच है और सोच ही चलती रहती है!!

अहसास

October 8, 2020 in गीत

तुम वो अहसास हो
जिसे छू जाये वो संदल सा महक जाये
तुम वो इश्क़ हो
जिसे हो जाये वो दीवाना हो जाये!!

मोहब्बत का सफर

September 25, 2020 in ग़ज़ल

यारा! तुझ संग जिंदगी गुजारनी है
मोहब्बत में तेरी हर शाम महकानी है,

तेरे ही नाम से लहराता है आँचल मेरा
तेरी दीवानी बन हर रात महकानी है,

बिन तेरे प्यासी हूँ मेरे हमसफ़र
प्रेम की गहराई में कश्ती डुबोनी है,

दर्द भी मेरे तेरे प्यार में सिमट गए
मेरी हर अदा में तेरी ही कहानी है,

जिंदगी और जग में सब जायज है”मीता ‘
जमाने से लड़कर मोहब्बत रंगीन बनानी है,

किस किस को दूँ तेरे मेरे रिश्ते की दुहाई
‘पूनम रात है चांद की पालकी आज सजानी है।

पल दो पल

September 16, 2020 in ग़ज़ल

दो पल बैठो पास हमारे
ये पल यूँ ही गुजर जाएंगे

दो पल का है साथ हमारा
ये पल लौट कर ना आएंगे

दो पल तुमसे बात तो कर लूँ
ये पल पलकों में ही सिमट जाएंगे

दो पल के लिए भी तुम ना आए तो
ये पल तन्हाई में लिपट जाएंगे

दो पल खुशी के धीरे धीरे रे मना साथी
ये पल फिर कभी ना मिल पाएंगे।।

जब बात नहीं होती तुमसे…

February 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब बात नहीं होती तुमसे
शब्द मेरे खो जाते हैं
कलम की कूँची टूट जाती
कागज उड़ उड़ जाते हैं
जो तुम संग लाई थी अपने
खुशियां वह खो जाती हैं
बिन तेरे भाव मेरे प्यासे
निराशा घिर घिर जाती है
रिमझिम बारिश सी बरसती
सावन की बूंदों सी टपकती
मन को चंचल करने वाली
ए कविता! तुम कहाँ चली जाती..
जब बात नहीं होती तुमसे…

(मेरी कविताएं मेरा प्यार)

ख्वाब

December 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाब मेरे बादल जैसे
ख्वाहिशें मेरी अंबर सी
लम्हा लम्हा यादें गरजे
अखियां बही बारिश सी
मुसलसल तेरी आस जगाए
सावन का यह महीना
तुम साथ नहीं हो क्यों मेरे
मोहब्बत वही मेरी हवा सी।

अंतहीन मृगतृष्णा

December 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सूरज के उग्र रूप
की तपिश में
मैं जल गई
नदी में उतरी
तो भंवर में
बह गई
भवर ने फेंका
रेत के ढेर में
खड़े होकर देखा
रेत ही रेत थी
चारों ओर
दिखाई दी
तो सिर्फ मृगतृष्णा
उस मरीचिका में
फंस गई
एक स्वर्ण हिरण
को पाने के
एहसास तले।

पूस की रात

December 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शायरों का हुआ गर्म हर लफ़्ज़
इस सर्द पूस की रात के महीने में
दिल भी बहका बहका सा लागे
इस सर्द पूस की रात के महीने में
गुड़ सा मीठा अदरक सा तीखा
पूस की रात का यह महीना
मैं भी रहूं खोया खोया इश्क में तेरे
इस पूस की रात के महीने में

पूस की रात

December 16, 2019 in ग़ज़ल

फकीर बन तेरे दर पर आया हूं
एक मुट्ठी इश्क बक्शीश में दे देना

आशिक समझ दर से खाली ना भेजना
अमीर हो तुम चंद सांसे उधार दे देना

किस्मत की लकीरें हैं जुड़ी तुझ संग
ख्वाहिशों से भरी है झोली चंद आरजू दे देना

दुआओं में तुमको ही है मांगा सनम
कुछ चंद लम्हों का एहसास भर दे देना

दिल- ए- मरीज हूं तेरी जुस्तजू का जानां
रहमों करम ना सही इश्क- ए- दर्द दे देना

पूस की रात में सर्द हवाओं के अलाव में
बस एक शाम तुम अपनी उधार दे देना।।

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