भोर का अभिवादन

January 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

भले वक्त में तो सभी ,नित अपनत्व लुटाए ,
बुरे बक्त , परछांई भी , दूर दूर न दिखाए।
जानकी प्रसाद विवश

आदरणीय
प्यारे मित्रो,
सवेरे की मधुर छटा में
आप सभी का हार्दिक अभिवादन सपरिवारसहर्ष स्वीकारें ।
आपका हर पल मंगलकामय
हो।

आपका अपना मित्र
जानकी प्यारा मित्र

शीत के सबेरे में

January 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

शीत के सबेरे में ,
मित्रता की गर्माहट,
प्यार मोहब्बत के सूरज की,
सुनकर आहट ,
भावों के पंछी चहक उठते ।

अंगुलिया ठिठुर जाएँ ,
भावना उनींदी सी ,
प्यार के गरमागरम संदेश मगर लिखती हैं ।

– जानकी प्रसाद विवश

सुखद है मित्रों का संसार

January 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुखद है मित्रों का संसार ,
बरसता निशदिन प्यार अपार।
नहीं भौतिक है, है अध्यात्म ,
मित्र की महिमा अपरंपार ।

– जानकी प्रसाद विवश

प्यारे मित्रो

January 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यारे मित्रो…..
नाचो -गाओ मन, नव-गीत गुनगुनाना ,
नये वर्ष खुशी खुशी ,सबके मन बहलाना ।

जन जन का मन से ,यह नम्र निवेदन है ,
मन की पीड़ा का , प्रस्तुत आवेदन है ।
मन का उल्लास कबसे, आहत होकर बैठा ,
कटु अनुभव का , भारी भरकम प्रतिवेदन है ।

उम्मीदों के शातिर-कातिल जैसे बनकर ,
जन गण के रोते मन, और मत रुलाना ।

गड़े हुए मुर्दे, उखड़ते भी देखे हैं ,
बडे़ बडे़ घोटाले वाले भी लेखे हैं ।
अर्थव्यवस्था की साँसें उखड़ी उखड़ी हैं ,
किया वक्त की आँखों ने नहीं अदेखा है।

कपटी आदर्शों को ,घोटालों की माला ,
जाने अनजाने ,अब कभी नहीं पहनाना ।

सबको रोजी -रोटी -छप्पर ही मिल जाए ,
निर्धन को इनकी चिंता न कभी भी खाए ।
जन्मा रूखी-रोटी में मर जाता है ,
सब्जी-भाजी के सपने तक भी ,कब आए ।

बढ़ते भावों पर कसना अब तो झट लगाम ,
महंगाई जीवन में ,दे नहीं सके ताना ।

**जानकी प्रसाद विवश**

(मौलिक रचना)

अभिवादन

December 30, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मित्र अपना यह अभिवादन ,
बहुत मन को सुहाता है ।
आँख जैसे ही खुलती है ,
तुम्हारा ध्यान आता है ।
मै ईश्वर से भी पहले ,बस
तुझे ही याद करता हूँ ,
तू जीवन के अँधेरों में ,
मुझे रस्ता दिखाता है ।
****जानकीप्रसाद विवश **

सवेरे

December 30, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सवेरे ही सवेरे हों ,मुसीबत के
अंधेरे में ,
मित्रता-सूर्य की किरणें ,बिखर जाएं,
अंधेरे में।
जानकी प्रसाद विवश

बदला बदला सब कुछ लगता

December 28, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बदला बदला सब कुछ लगता
हरपल अदल-बदलती आशा ।
करवट वक्त ले रहा जानेअब कैसी
बदली पल पल रिश्तों की परिभाषा ।

प्यारे मित्रो ,सवेरे की मधुर बेला में
सपरिवारसहर्ष , पुलकित मंगलकामनाएँ
स्वीकार करें ।

कभी कभी जीवन के पथ में

December 28, 2017 in शेर-ओ-शायरी

कभी कभी जीवन के पथ में,
ऐसा भी हो जाता है।
कभी कभी मनचाहा मिलता ,
मिलकर भी खो जाता है।

पहला नमन

December 25, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

*पहला नमन “*
*—***—**
हर सुवह का पहला नमन
आपको अर्पण करें।
मनमीत मेरे आप खुश हों
खुशियाँ पदार्पण करें ।
जानकी प्रसाद विवश
मेरे परम प्रिय मित्रो ,
क्रिसमस -प्रेम पर्व की मंगल घड़ियों में
जीवन का मंगलमय संदेश आपको सपरिवारसहर्ष ।
सुप्रभात सद्भावना का , कर्म-यज्ञ का ….

“एक कर वेद रामायण कुरान और बाइबल को तू अगर चाहता ,पैगाम तेरा सबसे ऊँचा हो ।

तू अगर चाहता है, नाम तेरा सबसे ऊँचा हो
है असंभव नहीं, यदि काम तेरा सबसे ऊँचा हो
****जानकी प्रसाद विवश”‘****
आपका अपना मित्र

पत्र आता

December 23, 2017 in गीत

तन वदन मन खिलखिलाता ,
जब किसी का पत्र आता ।

पत्र के उर में बसे हैं ,
प्रेमियों के भाव गहरे ।
दूर हों चाहे भले वे ,
पत्र से नजदीक ठहरे ।

पत्र ही ऐसा सुसेवक ,
दूरियाँ सबकी मिटाता ।

बहुत दिन तक जब किसी के ,
दर्शनों को मन तरसता ।
मीत की पाती मिले जब ,
प्यार अंतर में बरसता ।

प्यार का पानी पिलाकर ,
प्यास को पल पल बढा़ता।

जब कभी आकुल हुआ मन ,
लेखनी पर दृष्टि जाती ।
विरह-गाथा कागजों पर ,
चित्त के रूपक सजाती ।

क्या लिखूँ आगे कलम से ,
बीच में कोई रुलाता ।

पत्र के द्वारा गए हैं ,
गीत मन के मीत -द्वारे ।
गूँजते जिसके अधर पर ,
मिलन के संगीत न्यारे ।

पीक को अनुकूल क्षण में ,
स्वाँति के सीकर पिलाता ।

पत्र म सुखदुख भरा है ,
मेघ सा दृग पर सुहाता ।
सांत्वना देता स्वरों से ,
अंत में जो बरस जाता ।

आँसुओं से सिंधु बनता ,
नेह में मन डूब जाता ।

आ गया अब शीत का मौसम

December 23, 2017 in गीत

आ गया अब शीत का मौसम
कंपकंपी के गीत का मौसम ।
झील सरिता सर हैं खामोश
अब न लहर में तनिक भी जोश
वृक्ष की शाखें नहीं मचलें
लग रहा अब है न तनिक होश

धूप के संगीत का मौसम
गर्मियों के मीत का मौसम

उमंगों पर है कड़ा पहरा
जो जहां पर है वहीं ठहरा
किसलिये है भावना वेवश
शीत का यह राज है गहरा

शीत से है प्रीत का मौसम
धूप से विपरीत का मौसम।

अधर तक मन का धुँआ आता
दर्द का हर छंद दोहराता
चुभन की अनुभूति क्या प्यारी
आँसुओं का सिंधु लहराता

लगा मन की जीत का मौसम
आ गया मन मीत का मौसम।
निरंतर पढ़ते रहें रचना संसार…..

रहे ना रहे हम

December 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाहे कुछ भी ना हो दुनिया में,
यादें तो हमारी हैं ।
रंगीन प्रेम गाथा ,हमारी है ,
तुम्हारी हैं ।

आपकी छवि

December 16, 2017 in गीत

सर्दियों में धूप मनको
जिस तरह प्यारी लगे ।
आपकी छवि व्यथित मन को
परम सुखकारी लगे ।
मौन रह.अनकही बातें ,
शेष कहने को रहीं ।
जिस जगह से भी गुजरते ,
आप मिल जाते वहीं ।

मुसकराहट मन चुराती ,
कल्पना हो आपकी
क्या पता कब याद आएँ ,
याद बनजारी लगे ।

दर्द भी कैसा दिया है ,
अब दवा लगने लगा ।
आगमन की आस में ,
मन जागरण करने लगा ।
द्वार पलकों के न इक पल,
बंद हो पाते कभी ,
चिर प्रतीक्षा की घड़ी ,
अब ,और भी भारी लगे ।
आ गए वे ,पलक वंदरवार से ,
सजने लगे ।
विपिन से एकांत मन में ,
वाद्य से बजने लगे ।
अश्रु आँखोंके पुलकने -किलकने
अब लग.गए ,
अश्रु की धारा नहीं अब,
तनिक भी खारी लगे ।
ढल गए वे दिवस निर्दय –
नाग से डसने लगे ।
आँख ने आँसू छिपाए ,
पर अधर हँसते रहे ।
मिलनकी बेला , उमंगों की,
हृदय में उर्मियाँ ।
इन क्षणों में , चिर विरह की ,
आज लाचारी लगे ।

आपकी मुसकान

December 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी
मुसकान के
आधीन,
यह दिल हो चुका ।
अब नाजा
जीते जी
कभी भी
हो सके आजाद यह ।
अब
इवादत
प्यार की ,
करता रहेगा उम्र भर ।
इनायत
या शिकायत
की.,
करेगा फरियाद यह ।

दिल

December 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी का
दिल भी ,
आईने की तरह
टूट गया।
लाख
पुचकार कर
जोड़ें,
नहीं जुड़ पाएगा ।
रास्ता
जिंदगी का
बन गया
आड़ा-टेढ़ा ,
लाख चाहें ,
नहीं
सीधा कभी ,
मुड़ पाएगा ।

अपलक

December 15, 2017 in शेर-ओ-शायरी

अपलक टकटकी लगाकर, देखते ही देखते ।
जिंदगी कब गुजर जाए, कुछ नहीं इसका पता।

निगाहों के रस्ते रस्ते

December 15, 2017 in शेर-ओ-शायरी

निगाहों के रस्ते रस्ते ,
प्यार का पैगाम दिल तलक पहुंचे ,
प्यार की पहली नजर ही प्यार की
पहली सीढ़ी है ।

बिखरना फिर सिमट जाना

December 15, 2017 in शेर-ओ-शायरी

बिखरना फिर सिमट जाना,
इश्के अंजाम होता है ।
प्यास दिल की बुझाने को ,
नजर का जाम होता है।

आपका दर्द

December 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपका दर्द ,
दिल को
इस कदर,
मुझको तो प्यारा है ।
दर्द की
दवा देने में ,
अपना जीवन
गुजारा है ।
बढ़ीं बैचैनियाँ
जब जब.,
ना तुमको
नींद आई है ,
अपनी रातों को
आँखों ने,
रतजगा कर
गुजारा है ।

जानकी प्रसाद विवश

*”मंगलमय-सवेरा”*

December 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी का हँसी सवेरा है ,
दिल से इसका सभी सत्कार करो ।
बात करना ही है तो , कर डालो ,
खुल कर बस. प्यार की ही बात करो ।

जिंदगी को ना झंझटों में ,और उलझाओ ,
उलझनों की पहेली सुलझाओ।
गीत गाने का अगर सबका हो मन ,
नाचो -गाओ और सभी,गीत प्यार के गाओ।
जानकी प्रसाद विवश
प्यारे मित्रो ,
सरदी के मौसम का स्वागत
सुप्रभात …गरमागरम शुभकामनाएँ
सपरिवारसहर्ष स्वीकार करें ………….।
आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश

दिल ले लेना

November 24, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल ले लेना , दिल दे देना
यह बच्चों का ,खेल नहीं ।
लाख जमाना कुछ भी करले,
साथ न पल भर भी छूटे ।
जानकी प्रसाद विवश
प्यारे मित्रों,
मंगलमय प्रभात की
सर्व सुखकारी
मंगलकामनाएँ,
सपरिवारसहर्ष स्वीकार करें ।

आपका अपना मित्र ,
जानकी प्रसाद विवश

मित्रता

November 23, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मित्रता – तीर्थ ना जो जा पाया
व्यर्थ मानव का जन्म है पाया।
मित्र बिन जिंदगी मरुस्थल सी ,
मित्रता जल ने उसे हरियाया ।

मेरे प्यारे मित्रो ,
प्रातःकाल की
मधुर अनुभूति की सुहानी बेला में
सपरिवारसहर्ष मेरी ओर से प्रेषित
हर पल मंगलमय होने की
शुभकामनाएँ स्वीकार करें।

आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश

शीत के सवेरे में

November 22, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

शीत के सवेरे में ,
गरमागरम राम राम ,
भज ले मन राम राम ,
बन जायें बिगड़े काम।

पल भर निर्मल मन से
जोभी याद करता है ।
वह विपदाओं से ,कभी ,
तिल भर नहीं डरता है ।

करता है राम नाम हर ,
विपदाओं का काम तमाम ।

जानकी प्रसाद विवश

प्यारे मित्रो
सुमंगलकारी शुभप्रभाती शुभकामनाएँ
सपरिवारसहर्ष ,
स्वीकार करें ….।
आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश

दुआएं सुबह करें ,शाम करें

November 21, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुआएं सुबह करें ,शाम करें ,
प्यार कुछ मित्रता के नाम करें ।
अपने हर मित्र का भला चाहें ,
जिंदगी मित्रता का धाम करें।
जानकी प्रसाद विवश
प्यारे मित्रो….
सपरिवारसहर्ष ,
मित्रतामय सवेरे की ,
हार्दिक मंगलकामनाएँ स्वीकार करें।

आपका हर पल मंगलमय हो।

आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश

सुवह

November 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुवह सुवह
ये गुनगुनी सी ,
धूप रूप की ,

लगी है
सेंकने ये ,
शीत -थरथराए तन ।

उमग
जगाने लगी ,
मन में तपन प्यार की ,

कि रूप का अलाव
तापे , थरथराया ,
तन और मन ।

जानकी प्रसाद विवश
मेरे अपने मित्रो ,
मधुर महकते सवेरे की…हर पल
तन मन सरसाती ,हार्दिक मंगलकामनाएँ,
सपरिवारसहर्ष स्वीकार करें ……।
आपका ही ,
जानकी प्रसाद विवश

धुर सुवह का प्यार मित्रो

November 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मधुर सुवह का प्यार मित्रो ,
मधुर सुवह का प्यार ।
नहीं मित्रता से बढ़ कोई ,
है कोई उपहार ।

सदा मित्रता भाव हृदय में ,
प्रेम-सुधा बरसाते ।
रोम रोम हर्षाता , हर पल ,
दुर्लभ अपनत्व लुटाते ।
जानकी प्रसाद विवश

प्यारे मित्रो ,
सुमंगलकारी , मधुर सवेरे की
अपार प्रेम पगी ,शुभकामनाएँ ,
सपरिवारसहर्ष
स्वीकार करें ।
आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश

अपने मित्रों की पीर हरण

November 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने मित्रों की पीर हरण ,
जो करता है ।
मित्रता -कसौटी , जगजाहिर,
वो करता है ।
जब विपदाओं के ,चक्रव्यूह में,
मित्र फँसे ,
फिर अर्जुन जैसा बन कर मित्र ,
कर्तव्य उजागर करता है ।
जानकी प्रसाद विवश

प्यारे मित्रो ,
मनोहर सवेरे की , अनुपम घड़ियों में ,सपरिवारसहर्ष , हमारी मंगलकामनाएँ स्वीकार करें ।
आपका हर पल सत्य-शुभ , सुंदर हो ।

आपका अपना मित्र
जानकी प्रसाद विवश

आँखो से भी जलन

August 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब तो आँखो से भी
जलन होती हैं मुझे ऐ
??कान्हा ??
खुली हो तो तलाश तेरी
बंद हो तो ख्वाब तेरे

आप सभी कृष्ण प्रेमियों को
जय श्री राधे राधे ?
जय श्री कृष्ण ?
जय शिव शम्भू ?
?शुभप्रभात ?

आप का दिन
शुभ एवं मंगलमय हो

आपका….. जानकी प्रसाद विवश…..।

खुशियों की गंध मुबारक हो

August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम खिलखिलाते खिल उठे
गुलशन लजा गया ।
पहले कभी खिलाफ नहीं,
ऐसा गुलाब था ।…..खुशियों की गंध मुबारक हो।

आपका….. जानकी प्रसाद विवश…..।

पत्थर को हीरा

August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपने पत्थर को
हीरा बना दिया,
दीवानगी ने जाने कब,
मीरा बना दिया।

निरंतर पढ़ते रहें …
जानकी प्रसाद विवश का रचना संसार……।।

हर पल हँसते रहना

August 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक्त की परीक्षा में पास
तुम्हें होना है
हर पल हँसते रहना
कभी नहीं रोना है।
कोशिश मे कोई कसर
कभी भी नहीं छोड़ो
आगे जो कुछ होना
वो सब तो होना है ।

निरंतर पढ़ते रहें …
जानकी प्रसाद विवश का रचना संसार……।।

निष्ठुर मेघ

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सभी प्यारे मित्रों को शुभ सांय…..
निष्ठुर मेघ…..
काजल से कजरारे बदरा.
थोड़े से बरसे ,
सब जड़ चेतन ,प्यासी धरती,
प्यासे मन तरसे ।
कितने ढोल नगाड़े पीटे ,
निज अगवानी के ।
मोर पपीहे गीत गा उठे थे,
मेहमानी के।
गला दबाती उमस, घुटन के ,
चला रही फरसे ।
घायल प्राणी करें प्रार्थना ,
धुँआ धार बरसो. ।
जलस्रोतों पूरित कर ,
सब हर्षें , तुम हर्षो ।
गाएँ जीवन गीत लुभाने ,
बहते निर्झर से ।

निरंतर पढ़ते रहें …
जानकी प्रसाद विवश का रचना संसार……।।

घनश्याम का दीदार

August 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत बहुत प्यारे मित्रो सुहानी शाम का आत्मीय अभिवादन।
घनश्याम का दीदार
सुहानी शाम को घनश्याम का, दीदार हो जाये,
ये प्यासा मन, कन्हैया के, गले का हार हो जाये ।
मधुर मुरली की रसबँती सुरीली
तान यदि सुन ले।
बने परछाई कृष्णा की,
परम सौभाग्य को चुन ले ।
मिटा हस्ती अहम् की, भक्ति यमुना धार हो जाये ।
जियूँ जब तक धरा पर मैं,
सुदामा मित्र के जैसा ।
प्यार की डोर में बँधकर,
प्यार के इत्र के जैसा ।
त्रिलोकों मैं महक भर, त्रिलोकी गुँजार हो जाये ।

निरंतर पढ़ते रहें….
जानकी प्रसाद विवश का रचना संसार………..

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