परिन्दा कैद से छूटा नही है

May 21, 2018 in ग़ज़ल

परिन्दा कैद से छूटा नही है
छुडाने कोई भी आता नही है

बहुत खामोश है दरिया के जैसे
बहुत बेचैन है कहता नही है

दिवाना बन गया है प्यार में वो
वो लड़ता है मगर वैसा नही है

बनाया है उसे पागल जिन्होनें
वही अब कह रहे अच्छा नही है

सभी लड़ रहा है ठीक है पर
कोई कहदे कि वो ऐसा नही है

नसीहत वक्त ने क्या खूब दी है
करो वो काम जो दिखता नही है

Ghazal

May 5, 2018 in ग़ज़ल

मुहँ लटकाए आख़िर तू क्यो बैठा है
इस दुनिया में जो कुछ भी है पैसा है

दुख देता है घर में बेटी का होना
चोर -उचक्का हो लड़का पर अच्छा है

कुछ भी हो औरत की दुश्मन है औरत
सच तो सच है बेशक थोड़ा कड़वा है

सबकी हसरत अच्छे घर जाए बेटी
लड़का कितना महगां हो पर चलता है

शादी क्या है सौदा है जी चीज़ो का
खर्च करेगा ज्यादा वो ही बिकता है

लुटने वालो को लूटे तो क्या शिकवा
आज लकी मै भी लूटूँ तो कैसा है

Ghazal

May 5, 2018 in ग़ज़ल

मुहँ लटकाए आख़िर तू क्यो बैठा है
इस दुनिया में जो कुछ भी है पैसा है

दुख देता है घर में बेटी का होना
चोर -उचक्का हो लड़का पर अच्छा है

कुछ भी हो औरत की दुश्मन है औरत
सच तो सच है बेशक थोड़ा कड़वा है

सबकी हसरत अच्छे घर जाए बेटी
लड़का कितना महगां हो पर चलता है

शादी क्या है सौदा है जी चीज़ो का
खर्च करेगा ज्यादा वो ही बिकता है

लुटने वालो को लूटे तो क्या शिकवा
आज लकी मै भी लूटूँ तो कैसा है

माँ की दुआ

April 29, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ हो साथ मेरे तो दुआ भी साथ देती है
जब तक हाथ सर पे है खता भी साथ देती है

जाने क्या असर है माँ के हाथो में खुदा जाने
ममता से खिला दे तो दवा भी साथ देती है

कुछ भी हो नही सकता भले तूफान हर सू हो
माँ जब सामने हो तो हवा भी साथ देती है

फैलेगीं हवाओं में बहारें इस कदर तेरे
माँ के साथ होने से फ़िजा भी साथ देती है

रहमत जान ले तू भी ‘लकी’ माँ की दुआओं की
सर पे हाथ रखते ही कजा भी साथ देती है

मुखौटा

January 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब मुखौटा है लगाए फिर रहे
और सच को सब छिपाए फिर रहे

एक वो है कुछ बताता ही नही
एक हम है सब बताए फिर रहे

लोग पैसो के लिये है बावले
और रिश्तो को भुलाए फिर रहे

कामयाबी से मेरी हैरान सब
दांतो में उगंली दबाए फिर रहे

मर मिटेगें एक दिन दिल में लिये
दर्द जो दिल में दबाए फिर रहे

हाल वो ही पूँछते है अब लकी
देख लो जिनके सताए फिर रहे

वतन

January 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी ग़ज़ल ” वतन” को पढे मेरी प्रोफाईल पर ।और कमेन्ट जरूर करे आपका लकी

वतन

वतन

January 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वतन पे है नजर जिसकी बुरी उसको मिटा देगें,,,
सबक ऐसा सिखा देगें कि धड से सर उडा देगें।।

जहाँ पानी बहाना है वहां पर खून देगें हम,,,
वतन से प्यार कितना है जहाँ को हम दिखा देगें।।

हजारो साल काटे हैं गुलामों की तरह हमने,,,
नहीं अब और सहना हैं ये दुनिया को बता देगें।।

कसम है उन शहीदों की लुटा दी जान सरहद पे,,,
उसी रस्ते चलेंगे और अपना सर कटा देगें।।

हमारे गाँव का बच्चा नहीं है कम किसी से भी,,,
जहाँ भी पावं रख देगें वहां धरती हिला देगें।।

समन्दर कांप जाएगा ये दरिया सूख जाएगा,,,
कि ऐसी आग भर देगें सभी मुर्दे जगा देगें।।

मेरा हर शब्द अगांरा मेरा हर लफ्ज़ है बिजली,,,
जहाँ दुश्मन दिखा हमको ‘लकी’ उसको जला देगें।।

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