mansi
मुलाक़ात
May 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
बड़ी चाह है ख़ुद को फ़िर बर्बाद करें,
तुम आओ कि हम फिर मुलाक़ात करें !!
नफ़्ज़
May 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
पकड़ी जब नफ़्ज़ मेरी.,
हकीम लुकमान यू बोला…!
वो ज़िंदा है तुझ में..’
तू मर चूका है जिस में..!?✍?
नजर-अंदाज
May 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
उदासी जब तुम ?? ♀️पर बीतेगी ? तो तुम भी ?जान जाओगे,
कोई ? नजर-अंदाज ? करता है तो ? कितना दर्द ? होता है..
रंग
May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
मकड़ी जैसे मत उलझो तुम गम के ताने बाने में,
तितली जैसे रंग बिखेरो हँस कर इस ज़माने में..
दिल
May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
कितना खुश है वो मुझे भुलाकर
ए खुदा
मुझे भी उसके जैसा दिल दे दे….।
परवाह
May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
दौलत नहीं शोहरत नहीं न वाह वाह चाहिए
कैसे हो कहां हो बस दो लफ्जों की परवाह चाहिए।।
? ? यूं ही ? ?
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
यूं ही तुम ना आते सीने में
ना चोरी मेरा दिल हो पाता
ना कृष्ण मीठी रासलीला रचता
ना इश्क का नाम यूं ही कोई जान पाता
यूं ही ये दिल दीवाना ना होता
काश यूं ही ये मेरे पास रह जाता
प्यार किया नहीं जाता जनाब हो जाता है
काश ये बात हर कोई यूं ही समझ पाता
यूं ही ना करता ये सजदे तेरे
ना इस कदर प्यार की रचना रच पाता
हम तेरे प्यार में किस कद्र ङूबे हैं
काश यूं ही तू ये बात समझ जाता
फिर क्या जरूरत थी दुनिया को दर्द बताने की
जो तू यूं ही आकर मुझे सीने से लगाता
By:-
मानसी राठौङ
तुम कब आओगी
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
शाम हो गई तुम्हे खोजते माँ तुम कब आओगी
जब आओगी घर तुम खाना तब ही तो मुझे खिलाओगी,
रात भर न सो पाई करती रही तुम्हारा इंतजार
सुबह होते ही बैठ द्वार निगाहें ढूंढ रही तुम्हे लगातार,
पापा बोले बेटा आजा अब माँ न वापिस आएगी
अब कभी भी वह तुम्हे खाना नहीं खिलाएगी,
रूठ गई हम सब से मम्मी ऐसी क्या गलती थी हमारी
छोड़ गई हम सबको मम्मी ऐसी क्या खता थी हमारी,
ढूंढ रही हर पल निगाहे न जाने कब मिल जाओगी
इक आस लिए दिल में कि वापिस जरूर आओगी,
रो रहा है दिल क्या चुप नहीं कराओगी
सोने को तत्पर हूं माँ मैं क्या गोद में नहीं सुलाओगी,
बतादो ना प्लीज मम्मी तुम कब वापिस आओगी।
By-
मानसी राठौड़d/oरविंद्र सिंह राठौड़
बेवजह
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
कम्बख्त वो हमारे सामने बेवजह ही मुस्कुरा गऐ
बेवजह ही हम उनकी बाहोँ में आ गऐ
खबर न थी जमाने को इस नए चमन से रिश्ते की
हम भी बेखबर जमाने से नैना लड़ाते चले गए
दिन ब दिन मोहब्बत में मरते चले गए
उनके ख्वाबें में कम्बख्त कहाँ कहाँ नहीं गए
खौफ न था किसीका दिल ए पनाह में उनकी
लिपटकर सीने से उनके कहाँ थे खो गए
आहिस्ता आहिस्ता जालिम जमाना जुर्म बढाने लग गया
हम भी रफ्ता रफ्ता कम्बखत इश्क बढाने लग गए
बेवक्त तवल्लुन भरी आँखे खोज में खोई उनकी
बोझिल इन नयनों के हम तगव्वुर में लग गए
तलबगार है कई
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
तलबगार है कई पर
मतलब से मिलते हैं
ये वो फूल हैं जो सिर्फ
मतलबी मौसम में खिलते हैं
रोक लगाती है दुनिया
तमाम इन पर पर
देखो मान ये इश्कबाज पक्के
जो पाबंदियों में भी मिलते हैं
मोहब्बत के रोगी को दुनिया
बेहद बदनाम ये करती है
जनाब क्यों फिर भी आधी दुनिया
हाए इसी पे मरती है
कहते हैं कई धोखेबाज भी
लेन-देन दिल का करते हैं ।।
तभी तो हम इस प्यारी दरिया में
कूदने से डरते हैं
शक-ए-निगाह दुनिया अपनी
हम पर भी टेढी रखती है
हम भी आहिस्ता कम्बख्त
हाल-ए-दिल बयां कर देते हैं
काश!
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
काश भ्रष्टाचार न होता ,फिर भलों का दिल न रोता
कानून ढंग से काम करता, काश भ्रष्टाचार न होता।
लोकतंत्र भ्रष्ट न होता, रिश्वत का तो नाम न होता
संसद ढंग से काम करता, काश भ्रष्टाचार न होता।
होता चहुँ और निष्पक्ष विकास ,फैलता स्वतंत्र विकास
होता हर चेहरे पर उल्लास, भ्रष्टाचार न होता काश।
फैली होती हर जगह समानता, शिक्षक ढंग से भविष्य तराशता
कोई जॉब के बदले घूस न लेता, काश भ्रष्टाचार न होता।
भारत विजयपताका लहराता, हर दिन विजयदिवस मनाता
दो जून की रोटी निष्पक्ष कमाता, काश भ्रष्टाचार न होता।
By-
सुश्री मानसी राठौड़ d/o
रविन्द्र सिंह राठौड़
कवि
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
जो और कोई कह ना पाए कर ना पाए और कोई
ऐसा जज्बा लिए संग में चलता है अकेला कोई।
उसके पास अनूठी क्षमता और अनोखा ज्ञान है
सदा ही कागज पर अपने रचता अलग जहाँ है।
अनोखा अंदाज उसका लिखता जागृत देश बनाने
लिखी हुई उसकी पंक्ति को बड़े बड़े गुरुवर है माने।
उसकी तो दो ही ताकत इक कागज दूजी कलम
पर इसके लिखे हुए का यारों करते हैं भई सभी मनन।
क से तुम कभी न डरना वि से न विचलित होना
देता है हमको संदेशा ताकि पथ पर बढते रहना।
वाक्चातुर्य तर्कक्षमता और सोच टेढी हम इसमें पाएँ
इस लिए हम सबके लिए यह है यारों कवि कहलाए।
By-
मानसी राठौड़ D/O रविन्द्र सिंह
राठौड
कन्या भ्रूण की आवाज
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
माँ तुम दिल में ठान लो कि मुझको दुनिया में लाओगी
इस बार दुनिया कि मान कर मुझको नहीं मिटाओगी।
क्या हक नहीं है मेरा माँ इस दुनिया में आने का
क्या अरमान नहीं है मेरा माँ प्यार तुम्हारा पाने का।
मेरे प्यारे पापा मम्मी मुझको भी अपनालो ना
मुझे दुनिया दिखाने के लिए दादा दादी को समझालो ना।
माँ तू भी तो इक लड़की है तू तो मेरा दर्द समझ
जो नर नारी में भेद करे वो सब मैय्या ना समझ।
बोझ नहीं हूं माँ मैं लीक पुरानी तोड़ दो तुम
लड़की को न कभी समझना किसी भी लड़के से तुम कम।
जीवन की अनमोल कड़ी बिन बिटिया न चले घड़ी
बिटिया से होता घर समृद्ध बिन नारी के जीवन व्यर्थ।
मनु से भी थी भूल हुई बच ना पाया था जीवित कोई
तब भी माँ मानवी से ही तो मनुष्य की थी खोज हुई।
तब भी जहान संभाला था अब भी घर लूंगी संभाल
अब तो जन्म मुझको दे दो माँ तुम हरा कर के यह काल।
जो माँ मैं आ जाऊं यहाँ नाम रोशन तेरा करूंगी by-
जीत लूंगी सबका भरोसा सदा ध्यान सबका रखूंगी। मानसी राठौड़d/oरविन्द्र सिंह
why god
May 6, 2018 in English Poetry
I TOLD UH GOD ONLY QUESTION ONE
PLEASE TELL ME GOD WHAT IS THAT DAY HAPPEN
WHY MY FATHER COME OUR HOME
WHY HE LEFT MUMMA THAT DAY ALONE
WHY THAT DAY I DON’T CRY
WHY NO TEARS IN MY EYES
WHY NEXT DAY AMBULENCE COME MY HOME
THEY NEWSED ME MY MUMMA LEAVE ME ALONE
THAT DAY I AM VERY CRY
WHY YOU DO THIS TELL ME WHY
PLEASE GIVE ME ANSWER FAST
THIS IS MINE CHANCE LAST
WHY MY MUMMA SAY BYE-BYE
WHY YOU DO THIS PRACTICAL ON MINE
REALY-REALY HATE YOU GOD
BUT I STILL BELIVE YOU GOD
WHY NOW I BELIVE YOU GOD
I REALY-REALY HATE YOU GOD.
जब मैं तुम्हे लिखने चली
May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
जमाने में रहे पर जमाने को खबर न थी
ढिंढोरे की तुम्हारी आदत न थी
अच्छे कामों का लेखा तुम्हारा व्यर्थ ही रह गया
हमसे साथ तुम्हारा अनकहा सा कह गया
जीतना ही सिखाया हारने की मन में न लाने दी
तो क्यों एक पल भी जीने की मन में न आने दी
हिम्मत बांधी सबको और खुद ही खो दी
दूर कर ली खुदा ने हमसे माँ कि गोदी
दिल था तुम्हारा या फूलों का गहना
अब जुदाई को तुमसे सदा ही सहना
रोता रहा दिल आँखों ने साथ न दिया
फैसले के खुदा ने घर सूना कर दिया
बड़ा अनमोल है यह रिश्ता तुम संग गहराया यह रिश्ता
जब पलकें पलकों से मिली दिल ने तेरी तस्वीर दिखाई
आँखे खोली जब हर जगह माँ तू ही नजर आई
किस्मत की लकिरों ने इक पल मुझे मिटा दिया
पर इसने जीवन में संभलना सिखा दिया
नयन नीर की अविरल धारा बह निकली
आज जब माँ मैं तुम्हे लिखने चली।।
सर से जो तेरा साया उठा माँ रोने से न बच पाई
साथ छोड़ दिया हम सबका तूने दे कर के तन्हाई
जब याद आई तेरी माँ दिल मेरा रोने लगा
शरीर मेरा आत्मा से साथ खोने लगा
याद में तेरी माँ जीना जीना ही क्या
बिन माँ के जो पला वो बचपना ही क्या
ढाँढस बाँधी सबने सहायता के हाथ बढादिए
बिन माँ के बचपने में हम बदनसीब ही जिये
एक रोज तुने कहा था के साथ कभी न छोड़ेगी
पर पता ना था के तू इतना जल्दी वादा तोड़ेगी
आँखो से मोतीयों की माला बह निकली
आज जब माँ मैं तुम्हे लिखने चली।।
सोचा न था इस कद्र जीवन बदलेगा
हमारे साथ खुदा इस कदर खेल खेलेगा
आशा की किरण हमारी न जाने कहाँ खो गई
दिया जलाकर तू न जाने कहाँ चली गई
तेरी तस्वीर देखूं जब भी मैं इक पल तू सामने आ जाती है
तेरी मुझसे कही एक एक बात फिर याद आती है
तेरी पायल की आवाज कानों में गूंजने लग जाती
जब मैं तेरे गहनों को हूं हाथ लगाती
हॉस्पिटल से माँ को है कब लाना
मुश्किल था माँ ये किटु को समझाना
कोशिश रहती कि किटू को तेरी याद न आए
पर बेटी के दिल से माँ को कोई कैसे निकाल पाए
कुलदीपक की चाह में चिराग ही बुझ गया
सपना साथ रहने का तुम्हारे अधूरा ही रह गया
अश्कों की धारा फिर बह निकली
आज जब माँ मैं तुम्हे लिखने चली।।
BY-
मानसी राठौड़ D/O रविन्द्र सिंह