March 2, 2017 in Poetry on Picture Contest

IMG_20170302_160634_edit

.

February 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अकेला था तो मैं इस भीड़ में खोने से डरता था…

February 10, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अकेला था तो मैं इस भीड़ में खोने से डरता था…

वो हिन्द का सपूत है..

February 5, 2017 in Poetry on Picture Contest

लहू लुहान जिस्म रक्त आँख में चड़ा हुआ..
गिरा मगर झुका नहीं..पकड़ ध्वजा खड़ा हुआ..
वो सिंह सा दहाड़ता.. वो पर्वतें उखाड़ता..
जो बढ़ रहा है देख तू वो हिन्द का सपूत है..

वो दुश्मनों पे टूटता है देख काल की तरह..
ज्यों धरा पे फूटता घटा विशाल की तरह..
स्वन्त्रता के यज्ञ में वो आहुति चढ़ा हुआ..
जो जल रहा है देख तू वो हिन्द का सपूत है..

वो सोचता है कीमतों में चाहे उसकी जान हो..
मुकुटमणि स्वतंत्रता माँ भारती की शान को..
वो विषभरा घड़ा उठा सामान नीलकंठ के..
जो पी रहा है देख तू वो हिन्द का सपूत है..

-सोनित

शेर

February 4, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

” अब जाना क्यूँ दीवानों को दुनिया परवाना कहती है..
हमने सौ बार मोहब्बत की..हम सौ बार जले यारों..”
-सोनित

यादें

February 1, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

शांत समुद्र..
दूर क्षितिज..
साँझ की वेला..
डूबता सूरज..
पंछी की चहक..
फूलों की महक..
बहके से कदम..
तुझ ओर सनम..
उठता है यूँ ही..
हर शाम यहाँ..
यादों का नशा..
यादों का धुआँ..
कुछ और नहीं..
कुछ और नहीं..
यादों के सिवा..
अब और यहाँ..
यादों में बसे..
लम्हों में फसे..
रहता हूँ पड़ा..
खामोश खड़ा..
आंसू की नमी..
आँखों में लिए..
पत्तों की कमी..
साखों में लिए..
पतझड़ का झड़ा..
एक पेड़ खड़ा..
रहता हूँ वहीँ..
खामोश खड़ा..

हर शाम किनारों पर तेरी..
यादों में डूबने जाता हूँ..

– सोनित

more poems??.. click here…..

आज तन पर प्राण भारी

January 28, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

कचरेवाली

January 17, 2017 in Poetry on Picture Contest

इक कचरेवाली रोज दोपहर..
कचरे के ढेर पे आती है..
तहें टटोलती है उसकी..
जैसे गोताखोर कोई..
सागर की कोख टटोलता है..

उलटती है..पलटती है..
टूटे प्लास्टिक के टुकड़े को..
और रख लेती है थैली में..
जैसे कोई टूटे मन को..
इक संबल देकर कहता है..
ठुकराया जग ने दुःख मत कर..
ये हाथ थम ले..तर हो जा..
इक कचरेवाली रोज दोपहर..
कचरे के ढेर पे आती है..

जहाँ शहर गंदगी सूँघता..
वहाँ वही जिंदगी सूँघती..
कूड़े की संज्ञा में कितनी..
कमियाँ वह हर रोज ढूंढती..
हर कूड़े को नवजीवन का..
आशीष दिलाने आती है..
दूषित होती हुई धरा का..
दर्द सिलाने आती है..
इक कचरेवाली रोज दोपहर..
कचरे के ढेर पे आती है..

                                        -सोनित

चल अम्बर अम्बर हो लें..

January 7, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

चल अम्बर अम्बर हो लें..

धरती की छाती खोलें..

ख्वाबों के बीज निकालें..

इन उम्मीदों में बो लें..

सागर की सतही बोलो..

कब शांत रहा करती है..

हो नाव किनारे जब तक..

आक्रांत रहा करती है..

चल नाव उतारें इसमें..

इन लहरों के संग हो लें..

ख्वाबों के बीज निकालें..

इन उम्मीदों में बो लें..

पुरुषार्थ पराक्रम जैसा..

सरताज बना देता है..

पत्थर की पलटकर काया..

पुखराज बना देता है..

हो आज पराक्रम ऐसा..

तकदीर तराजू तौलें..

ख्वाबों के बीज निकालें..

इन उम्मीदों में बो लें..

धरती की तपती देही..

राहों में शूल सुशज्जित..

हो तेरी हठ के आगे..

सब लज्जित लज्जित लज्जित..

संचरित प्राण हो उसमें..

जो तेरी नब्ज टटोलें..

ख्वाबों के बीज निकालें..

इन उम्मीदों में बो लें..

 
                                        #sonit

click here to visit my blog

सौ सवाल करता हूँ..

October 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सौ सवाल करता हूँ..
रोता हूँ..बिलखता हूँ..
बवाल करता हूँ..
हाँ मैं……….
सौ सवाल करता हूँ..

फिर भी लाकर उसी रस्ते पे पटक देता है..
वो देकर के जिंदगी का हवाला मुझको..
और चलता हूँ उन्ही दहकते अंगारों पर..
जब तक..किसी अंगारे सा दहकने न लगूँ..
महकने न लगूँ इत्तर की खुशबू की तरह..
तपकर किसी हीरे सा चमकने न लगूँ..

फिर क्यों भला इतना मलाल करता हूँ..
रोता हूँ..बिलखता हूँ..
बवाल करता हूँ..
हाँ मैं……….
सौ सवाल करता हूँ..
– सोनित
www.sonitbopche.blogspot.com

क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

October 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..
छुपकर तुमसे और किसी से पहले बात तो मैंने की थी..
एक भरोसा था शीशे सा जो चटकाकर तोड़ दिया था..
संदेहों के बीच तुझे जब तन्हा मैंने छोड़ दिया था..
अपना सूरज आप डुबोकर पहले रात तो मैंने की थी..
इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

अब कर्मों की मार पड़ी है तो फिर तुमसे कैसा बैर..
अपनी बारी आन पड़ी है तो फिर तुमसे कैसा बैर..
कैसा बैर रखूं मैं बोलो कैसा अब विद्वेष रखूं..
हम दोनों में किसके दिल के टूटे अब अवशेष रखूं..
अपने ही उपवन में शोलों की बरसात तो मैंने की थी..
इस रिश्ते की बुनियाद हिलाने की शुरुआत तो मैंने की थी..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..
क्या दोष तुम्हें दूँ तुम ही कहो..

#सोनित

जश्न-ए-आजादी में “इन भारतीयों” को न भूलना…

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

यहाँ जिस्म ढकने की जद्दोजहद में…
मरते हैं लाखों..कफ़न सीते सीते…
जरा गौर से उनके चेहरों को देखो…
हँसते हैं कैसे जहर पीते पीते…

वो अपने हक से मुखातिब नहीं हैं…
नहीं बात ऐसी जरा भी नहीं है…
उन्हें ऐसे जीने की आदत पड़ी है…
यहाँ जिन्दगी सौ बरस जीते जीते…

कल देश में हर जगह जश्न होगा…
वादे तुम्हारे समां बांध देंगे…
मगर मुफलिसों की बड़ी भीड़ कल भी…
खड़ी ही रहेगी तपन सहते सहते…

-सोनित

वो हिन्द का सपूत है..

August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लहू लुहान जिस्म रक्त आँख में चड़ा हुआ..
गिरा मगर झुका नहीं..पकड़ ध्वजा खड़ा हुआ..
वो सिंह सा दहाड़ता.. वो पर्वतें उखाड़ता..
जो बढ़ रहा है देख तू वो हिन्द का सपूत है..

वो दुश्मनों पे टूटता है देख काल की तरह..
ज्यों धरा पे फूटता घटा विशाल की तरह..
स्वन्त्रता के यज्ञ में वो आहुति चढ़ा हुआ..
जो जल रहा है देख तू वो हिन्द का सपूत है..

वो सोचता है कीमतों में चाहे उसकी जान हो..
मुकुटमणि स्वतंत्रता माँ भारती की शान को..
वो विषभरा घड़ा उठा सामान नीलकंठ के..
जो पी रहा है देख तू वो हिन्द का सपूत है..

-सोनित

|| दहेजी दानव ||

July 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटा अपना अफसर है..
दफ्तर में बैठा करता है..
जी बंगला गाड़ी सबकुछ है..
पैसे भी ऐठा करता है..

पर क्या है दरअसल ऐसा है..
पैसे भी खूब लगाए हैं..
हाँ जी.. अच्छा कॉलेज सहित..
कोचिंग भी खूब कराए हैं..
प्लस थोड़ा एक्स्ट्रा खर्चा है..
हम पूरा बिल ले आए हैं..

टोटल करना तो भाग्यवान..
देखो तो कितना बनता है..
जी लगभग पच्चीस होता है..
बाकी तो माँ की ममता है..

जी एक अकेला लड़का है..
उसका कुछ एक्स्ट्रा जोड़ूँ क्या..
बोलो ना कितना और गिरूँ..
सब मर्यादाएँ तोड़ूँ क्या..

हाँ.. हाँ सबकुछ जोड़ो उसमें..
जितना कुछ वार दिया हमने..
उसका भी चार्ज लगाओ तुम..
जो प्यार दुलार दिया हमने..

संकोच जरा क्यों करती हो..
भई ठोस बनाओ बिल थोड़ा..
बेटा भी तो जाने उसपर..
कितना उपकार किया हमने..

तो लगभग तीस हुआ लीजै..
थोड़ा डिस्काउंट लगाते हैं..
बेटी भी आपकी अच्छी है..
उन्तीस में बात बनाते हैं..

वधुपक्ष व्यथित सोचने लगा..
सन्दूकें तक खोजने लगा..
जो-जो मिलता है सब दे दो..
लड़की का ब्याह रचाना है..
गर रिश्ता हाथ से जाता है..
कल फिर ऐसा ही आना है..

था दारुण दृश्य बड़ा साहब..
आँखों में न अश्रु समाते थे..
जेवर, लहंगा, लंगोट बेच..
पाई-पाई को जमाते थे..

यह देख वधु के अंदर की..
फिर बेटी जागृत होती है..
वह पास बुलाकर के माँ को..
कुछ बातें उस्से कहती है..

है गर समाज की रीत यही..
तो रत्ती भर न विचार करो..
अब मुझपर दांव लगाकर तुम..
यह पैसों का व्यापार करो..

फिर देखो कैसे मैं अपनी..
माया का जाल चलाती हूँ..
दो चार महीने फिर इनको..
मैं यही दृश्य दिखलाती हूँ..

बेटा न बाप को पूछेगा..
माँ कहने पर भी सोचेगा..
देदो जितना भी सोना है..
सबकुछ मेरा ही होना है..

बस दहेज़ का दानव यूँ ही..
अपना काम बनाता है..
रिश्तों की नींव नहीं पड़ती..
यह पहले आग लगाता है..

रिश्ते रुपयों की नीवों पर..
मत रखो खोखली होती है..
कुट जाती जिसमें मानवता..
यह वही ओखली होती है..

बेटे को शिक्षित करो मगर..
विद्वान बनाना मत भूलो..
भिक्षा, भिक्षा ही होती है..
कहकर दहेज़ तुम मत फूलो..

कि इस दहेज़ के दानव का..
अब जमकर तुम संहार करो..
उद्धार करो.. उद्धार करो..
मानवता का उद्धार करो..

-सोनित

चांद..

July 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल फिर गया था मैं घर की छत पर
उस चांद को देखने
इस उम्मीद में की शायद
तुम भी उस पल उसे ही निहार रही होंगी
देख रही होंगी उसपर बने दाग के उस भाग को
जिसे मैं देख रहा था..
आखिर..
प्यार भी अजीब हैना..
मिलने के कैसे-कैसे बहाने ढूंढ लेता है..

-सोनित

Share Button

तुम्हारी याद आती है..

July 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

हवाएँ मुस्कुराकर जब घटाओं को बुलाती है..

शजर मदहोश होते हैं..तुम्हारी याद आती है..

इन्ही आँखों का पानी फिर उतर आता है होठों तक..

भिगोकर होंठ कहता है..तुम्हारी याद आती है..

किताबें खोलने को जी नहीं करता मिरा बिल्कुल..

दबा एक फूल मिलता है..तुम्हारी याद आती है..

मैं सन्नाटों में खो जाता हूँ ये हालत है अब मेरी..

कोई पूछे तो कहता हूँ..तुम्हारी याद आती है..

कभी तू देखने तो आ तेरे मुफलिस के हुजरे में..

अमीरी छाई रहती है..तुम्हारी याद आती है..

तेरी यादों की स्याही से कलम दिल की भिगोकर के..

मैं लिखता हूँ मुझे जब-जब तुम्हारी याद आती है..

 

-सोनित

ये वो कली है जो अब मुरझाने लगी है..

July 7, 2016 in ग़ज़ल

कश्तियाँ समंदर को ठुकराने लगी है..
तुमसे भी बगावत की बू आने लगी है..

मत पूछिए क्या शहर में चर्चा है इन दिनों..
मुर्दों की शक्ल फिर से मुस्कुराने लगी है..

मैं सोचता हूँ इन चबूतरों पे बैठ कर..
गलियाँ बदल-बदल के क्यूँ वो जाने लगी है..

गुजरे हुए उस वक़्त की बेशर्मी मिली थी कल..
वो आज की हया से भी शर्माने लगी है..

किस चीज को कहूँ अब इंसान बताओ..
ये वो कली है जो अब मुरझाने लगी है..

-सोनित

मैं रोज नशा करता हूँ… गम रोज गलत होता है…

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इक हाथ सम्हलती बोतल…
दूजे में ख़त होता है…
मैं रोज नशा करता हूँ…
गम रोज गलत होता है…

तरकश पे तीर चड़ाकर…
बेचूक निशाना साधूँ…
उस वक्त गुजरना उनका…
हर तीर गलत होता है…

मिटटी के खिलौने रचकर…
फिर प्यार पलाने वाली…
गलती तो खुदा करता है…
इन्सान गलत होता है…

तुम जश्न कहो या मातम…
हर रोज मनाता हूँ मैं…
मैं रोज नशा करता हूँ…
गम रोज गलत होता है…
– सोनित

तुम भी तो इक माँ हो आखिर..

June 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जैसे गोरे गालों पर माँ काला टीका करती थी
तुमने काली रातों में इक उजला चांद सजाया है

तुम भी तो इक माँ हो आखिर..

– सोनित

www.sonitbopche.blogspot.com

किताब का फूल

June 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब घर कि हर एक चीज बदल दी मैने ..

सिक्कों को भी नोटों से बदल बैठा हूं..

पर उस फूल का क्या जो किसी ईक धूल पड़ी..

मैने किताब में बरसों से दबा रक्खा है..

जिसे दुनिया कि भीड़ से कभी तन्हा होकर..

मैं , किताब खोल देख लिया करता हूं..

वो उस फूल के मानिंन्द तो नहीं जिसको..

यूं ही कलियों को झटक तोड़ दिया करता हूं..

जो खुद ओंस की बूंदों से अनभिगा है पर..

जिसको देखे से ये पलकें भी भीग जाती है..

जिसकी खुसबू सिमट के रह गई  है पन्नों में..

फ़िर भी, लांघ के सागर के पार जाती है..

युं हि चौंका न करो बैठ के तन्हाई में..

जो अचानक से तुम्हें मेरी याद आती  है..

तुम्हि बतओ भला कैसे बदल दूं उसको..

वो जो ,मेरी खुशियों को इक सहारा है..

तेरे गुलशन में फ़ूल उस्से कई उम्दा हैं..

मेरि गर्दिश का मगर वो हि इक सितारा है..

माफ़ करना वो फूल मैं नही बदल सकता..

माफ़ करना..कि मैं नही बदल सकता…

– सोनित

http://www.sonitbopche.blogspot.com

तुम्हारी याद भी चलकर मिटा लेता अगर थोड़ी…

June 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बुरा क्या था अगर इस दर्द के मै साथ में दिलबर…
तुम्हारी याद भी चलकर मिटा लेता अगर थोड़ी…
दवाखाने में क्यूँ छोड़ा जरा चलते तो मैखाने…
दवा के साथ में दारू चडा लेता बशर थोड़ी…”
-सोनित

सिलवटें जाती नहीं..

June 19, 2016 in ग़ज़ल

नींद भी आती नहीं.. रात भी जाती नही..

कोशिशें इन करवटों की.. रंग कुछ लाती नहीं..

 

चादरों की सिलवटों सी हो गई है जिंदगी..

लोग आते.. लोग जाते.. सिलवटें जाती नहीं..

 

जुगनुओं के साथ काटी आज सारी रात मैंने..

राह तेरी भी तकी.. पर तुम कभी आती नहीं..

 

कुछ शब्द छोड़े आज मैंने रात की खामोशियों में..

मैं जो कह पाता नहीं.. तुम जो सुन पाती नहीं..

– सोनित

New Report

Close