by Swapnil

कैसे बताउ तुम्हे के क्या हो तुम

October 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

डिप्रेशन सी जिंदगी मे
चाय सा सुकून हो तुम

सुखे हुए खयालो की
संजीवनी बुटी हो तुम

तपते रेगीस्तान मे मिली
मधुर पानी की बुंद हो तुम

बांधे हुए दिल को मिली
जशन-ए-आजादी हो तुम

नजाने कितने सालो से
अनकही एक हसरत हो तुम

इत्तेफाक से बनी खास
एक एहसास हो तुम

गेहेरे जखमो पे लगाया
थंडा मरहम हो तुम

थके हुए मुसाफिर की
आखरी मंजिल हो तुम

खामोश हुइ जुबान मे
अनगीनत अल्फाज हो तुम

कैसे बताऊ अब के
क्या क्या हो तुम
एक तुटे हुए इंसान की
जरूरत हो तुम

उसके मोहब्बत की
असली हकदार हो तुम

प्यार हो तुम
इश्क हो तुम
परवर्दीगार हो तुम

by Swapnil

*एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर*

September 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

*एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर*

क्या नही तुमने किया
क्या नही हमने कीया

कंबरे मे रेहके बंद सबने
नजाने काटे कितने पेहेर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर

सेवको के लिये ताली बजाई
गरिबो के लिये बीछाई चटाई

सात बजे जब हुई अंधेर
जलाने मे दिये, हुइ नही देर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर

कपाट भव्य मंदिर के बंद है
गिरीजाघर भी सुन्न पडे है

काहेकी अयोध्या और काहेका अजमेर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर

समाचार ये आम है
नाकाम हर सरकार है

बच्चलन होगई समाजनीती
बढ रहा एक दुजेसे बैर
एक अनदेखे जंतू ने किया सबको ढेर

अछूत कर दिया इंसान को
मौत भी ना जोडे अब समाज को

बस्तीयो मे है अब अजिब सन्नाटा
अश्को मे है वृद्धी,हसी का पुरा घाटा

असमंजस मे हू ,कब खत्म होगी ये सेहेर
एक अनदेखे जंतू ने हैं किया सबको ढेर

ए मेरे मलिक ,ए मेरे आका
बेगैरत इस आपदा मे
भरोसे का कोई तो चिराग दिखा

मार कर मेरे अपनो को
तन के बैठा है ये बब्बर शेर
एक अनदेखे जंतू ने हैं किया सबको ढेर

अरे छुपे रुस्तम जरा सामने तो आ
मर्द बन के अपना सीना तो दिखा

मिल बैठेंगे जब जंग-ए- मैदान मे
नंगी होगी दो धारी समशेर
कर दुंगा नेस्तनाभूत तुझे, और
आकर रहेगी एक पावन सवेर

आकर रहेगी एक पावन सवेर

by Swapnil

एक तरफ़ा प्यार – एक सच्चा ,अजीज़ एहसास

September 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो भी क्या दौर था

जवानी का पहला पहला साल था

इनायत थी परवरदिगार की

अचानक वो रूबरू हुआ था ।

पेहेली नजर में दिल दे बैठा था में शायद

फ़तेह पाली थी उसने मेरी रूह पे शायद

मुद्दतो बाद आया नया एहसास था वो शायद

एक तरफ़ा प्यार का आगाज़ हुआ था शायद ।

याद है मुझे उस शाम का वो तूफ़ान

हरे रंग का चूड़ीदार था उसका पेहरान

हुई थी उससे पेहेली जान पहचान

आने वाली जुदाई से पूरी तरहसे अनजान

बिना वजह मुस्कुराना अब आम था

दिल की रियासत पर उसीका नाम था

जाहिर करदु सारे राज इब यही में चाहता था

बया करदु मोहब्बत का पैगाम यही में सोचता था

मगर उस रोज मेने उसे रोते हुए देखा है

किसी की याद में सिसकते हुए देखा है

हैरत में था के हक़ीक़त खौफनाक है

मेरे ईद के चाँद का आसमा ही कोई और है

कैसे कहता के तकलीफ है मुझे

तेरे रफ़ीक से रश्क़ है मुझे

कैसे कहता के मोहब्बत है मुझे

एक तरफ़ा ही सही प्यार है मुझे

दिल ही तो टुटा था , पर वो दगाबाज तो न था

दूर ही तो गया था , पर वो बेवफा तो न था

चाँद का आसमान बदला था , पर उसका तसव्वुर तो था

मोहब्बत के बदले मोहब्बत मिले

ऐसा कोई दस्तूर नहीं होता

एक तरफ़ा प्यार में नूर न सही

मगर वो मजबूर नहीं होता

शायद में तुझे भूल जाऊ

पर ये एहसास जिन्दा रहेगा

एक तरफ़ा मेरे प्यार का

मिजाज जिन्दा रहेगा

by Swapnil

काश मोहब्बत मे भी चुनाव होते

September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सोच रहा था की
काश मोहब्बत मे भी चुनाव होते
एकदम खुल्लमखुल्ला प्रचार होते

ऐसा गजब भाषण देते के
एक ही रॅली मे आपको अपना बना लेते

by Swapnil

तेरे प्यार मे

September 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे प्यार मे इतने
दिवाने थे मेरे सनम
के तेरे नाम को अपनी
हतेली पर जबरन
जोड चुके थे हम

अच्छी वाली जिंदगी का ख्वाब
तेरे संग ही बुना करते थे हम
एक पल भी तेरे बीना
गवरा नहीं था मुझे सनम

कितने हसीन वो पल थे
और कितने सुहाने वो मौसम
जीस दिशा तेरे नैन कहे
बस्ससस उसी और उड लिया करते थे हम

मगर क्यू………

मगर क्यू हुआ तेरा
ये दिल अचानक खट्टा

क्या अच्छा नही था अपना
वो मधूमख्खी का मिठा छत्ता

बीच मजधार मे छोडके
जो जख्म तुने दिया

बेदर्दी से तोडके सपनो की गठरी……
ऐसे चखनाचूर किया

क्या पाया?………
मेरा गुनाह क्या था?
क्या थी मेरी खताह ??????

के मैने तुझसे प्यार किया !!!!!!
या तेरा ऐतबार किया!!!!

अरे जाआआआ, नहीं आतीईईई

ऐ दगाबाज

अब नहींईईईई आती तेरी याद के
मेरा दर्द समजने वाला मुझे मिल गया

ऐसे मजबूत हातो से
मेरा हात मिला है
के मेरी कशती अब तुफानो से पार है

शुक्रिया……………….

शुक्रिया अदा करना चाहता हू
‘तेरी बेवफाई का

के अब मेरी कद्र करने वाला मेरे साथ है
और तेरी हसीन यादो से भी ज्यादा
मुझे ऊस दिवानी से प्यार है

और तेरी हसीन यादो से भी ज्यादा
मुझे ऊस दिवानी से प्यार है।

by Swapnil

का दूर राहतेस तू

September 16, 2020 in मराठी कविता

का दूर राहतेस तू , स्वप्नात पटकन येत जा डोळ्यांच्या पडद्यामागे , सुंदर आठवणी देत जा

तुझी आठवण आली कि
जीव कासावीस होतो
whatsapp facebook चे फोटो बघून तात्पुरता मी खुश होतो
का दूर राहतेस तू , स्वप्नात पटकन येत जा डोळ्यांच्या पडद्यामागे , सुंदर आठवणी देत जा

ऑफिस मध्ये काम करतानाही तुझा विसर पडत नाही

मित्रांनी मुद्दाम चिडवल्यावर हसल्याशिवाय राहवत नाही
डोळ्यांच्या पडद्यामागे,सुंदर आठवणी देत जा

उठल्यापासून झोपेपर्यंत माझाच विचार करतेस
उठलास कारे , जेवलास कारे काळजी करत राहतेस
का दूर राहतेस तू , स्वप्नात पटकन येत जा डोळ्यांच्या पडद्यामागे , सुंदर आठवणी देत जा

आकाशातल्या ताऱ्यांकडे एकटाच मी बघत बसतो
पिक्चर मधल्या हिरो सारखा चंद्रामध्ये तुला शोधतो
का दूर राहतेस तू , स्वप्नात पटकन येत जा डोळ्यांच्या पडद्यामागे , सुंदर आठवणी देत जा

झोप येत नसली कि
तुझा विचार येतो माझ्याशिवाय कशी असशील तू याचाच विचार मी करत बसतो
का दूर राहतेस तू , स्वप्नात पटकन येत जा डोळ्यांच्या पडद्यामागे , सुंदर आठवणी देत जा

काल रात्री स्वप्नात माझ्या तू आली होतीस
कधी सोडणार तर नाई नारे मला असं अचानक विचारू लागली होतीस

त्यावर तुला जवळ घेऊन सांत्वन तुझे केले होते सोडण्यासाठीच कि काय वेडे,प्रेम तुझ्यावर केले होते !!!!

उत्तर माझे ऐकून
चेहऱ्यावर तुझ्या हास्य उमलले अन घड्याळाच्या आवाजाने माझे डोळे उघडले

समोर तू नाई म्हणल्यावर काय सांगू कसे
वाटलेऎऎए

सांग न गा मला
का दूर राहतेस तू स्वप्नातच माझ्या राहत जा डोळ्यांच्या पडद्यामागे , सुंदर आठवणी देत जा

by Swapnil

एक जैसे मुसफिरोकी मुलाकात हुई थी

September 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक जैसे मुसफिरोकी मुलाकात हुई थी

अर्सो बाद जिंदगी आफरीन हुई थी
एक जैसे मुसफिरोकी मुलाकात हुई थी

शकसियत तो सबकी बेबाक थी
जमुरियत मे थोडी, मुरझा सी गयी थी
जब आन पडे आमने सामने
आगाज-ए-नये-दौर की मेहेक आगायी थी

एक जैसे मुसफिरोकी…. मुलाकात हुई थी

फलसफा उनका एक ही था
फिरदोउस भी उनका एक ही था
फकत जिस्म थे उनके अलग
पर कुरबत सबमे एक सी थी

एक जैसे मुसफिरोकी…. मुलाकात हुई थी

मयखानो की जरूरत अब फिझहूल थी
दोस्ती ही नशे सी चढ गई थी
मयस्सार थे एक दुजे के लिये वो
रंजीशे कही आसपास भी ना थी

एक जैसे मुसफिरोकी…. मुलाकात हुई थी

एक सुकून सा है साथ तुम्हारे यारो
हम रफीक् भी है ओर रिशतेदार भी
नायाब सा बन बैठा है रिशता हमारा
तस्किन-इ-परचम रहा है लेहरा

एक जैसे मुसफिरोका ,……चल रहा है कारवा

डर कल भी था…..
डर कल भी रहेगा…..……..
क्या ये कारवा युही चलता रहेगा !!!!!!….
या बस कही थम जायेगा !!!!!!…….

केहते है दोस्ती वो मिलकीयत है
जहाँ ना कोई हुक्म है ना कोई इलतजा
ये तो जसबातो की परस्तीश है
जो खुशनसीबोको मिली बक्षिसं है

ख्वाहिश् यही हैं के
इसका वजुद मेरे वजूद तक बरकरार रहे

एक जैसे मुसाफिरोकी, ….मुलाकात होती रहे

एक जैसे मुसाफिरोकी,…..मुलाकात होती रहे

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