
ARJUN GUPTA (AARZOO)
है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ
May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
” है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ ”
जो शब्द था पहला बोला मैंने
वो शब्द था पहला बोला “माँ”
जो ऊँगली पहली थामी मैंने
वो ऊँगली थी पहली तेरी “माँ”
तेरे सीने लग कर बड़ा हुआ,
तूने अमृत से सींचा हैं माँ
है सबर सबूरी दिल में कितनी
कितनी ममता आँखों में,
तेरे कितने अरमाँ दिन में खोये
कितने सपने रातों में,
तेरी थपकी लेकर सो जाता था
और खो जाता था बातों में।
मैं कुछ भी बन जाऊँ दुनिया में
तेरे दूध का क़र्ज़ चुका नहीं सकता
हर रात सजा दूँ खुशियों से
पर उन रातों को ला नहीं सकता।
जो आँखों आँखों में गुज़रे थे
वो लम्हें लौटा नहीं सकता।
कर देना माफ़ गर खता हो जाए
तुम ममता की इक मूरत हो
उस जग जननी को देखा नहीं
तुम उस जननी की सूरत हो।
है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ,
तुम इस सृष्टि की पूरक हो
है कोटि कोटि प्रणाम तुझे माँ
तुम इस सृष्टि की पूरक हो।
( आरज़ू )
aarzoo-e-arjun
इंतज़ार
October 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
इंतज़ार
ये नन्हा सा पौधा,
जो फूट निकला है
धरती की गोद से,
कितना नाज़ुक है ये
कितना सौम्य,कितना पवित्र,
किसी नन्हे बच्चे की तरह
आंखें खोलता,बंद करता
अपने आस पड़ौस दूसरे
पेड़ पौधों को देखता,
फिर महसूस करता कि…
मेरे पत्ते इतने कम क्यों हैं?
मेरी टहनियां इतनी कम क्यों हैं?
मुझपे न फूल हैं न फल,
मैं इतना छोटा क्यों हूँ?
इतनी हसरतें, इतनी ख़्वाहिशें
आँख खुलते ही दिल में!
और मुझे लगता था कि
हम इंसान शायद ऐसे हैं,
बेसब्र, बेकैफ़, बेकरार
मगर, हमारी तरह इनको भी
करना होगा ताउम्र बस,
इंतज़ार, इंतज़ार इंतज़ार।
आरज़ू
पहचान क्यों अलग सी है..
August 15, 2020 in ग़ज़ल
जय हिन्द साथियो
पहचान क्यों अलग सी है सारे जहान में
सब सोचते ऐसा है क्या हिन्दोस्तान में
है सभ्यता की मूल ये हिन्दोस्तां मेरा
कितनी मिठास मिलती हमारी ज़ुबान में
हर रूप में हैं पूजते नारी को हम यहाँ
तुमको खुदा मिलेंगे हमारे ईमान में
ख़ुश्बू उड़े हवा में सुबह शाम पाक सी
गीता सुनाई देती यहाँ पर क़ुरान में
यूँ लाँघना कठिन है फ़सीलों को भी यहाँ
बारूद भर दिया है यहाँ हर जवान में
है केसरी सफेद हरे रंग से बना
ऊँचा रहे तिरंगा सदा आसमान में
बस खुशनसीब लिपटें तिरंगे में ‘आरज़ू’
कर जाते नाम भी अमर दोनों जहान में
जय हिंद
जय जवान,जय किसान,जय विज्ञान
Arjun Gupta (Aarzoo)
मेरी जान है भारत
August 15, 2020 in ग़ज़ल
आदाब
जहाँ के वास्ते बेशक कोई वरदान है भारत
फरिश्तों के लिए भी आरज़ू-अरमान है भारत
यहीं जन्मी है दुनियाँ की पुरानी सभ्यता यारो
सभी वेदों पुराणों का कोई सम्मान है भारत
क़सीदा हो, रुबाई हो, ग़ज़ल हो यां कोई नग़मा
सभी दानिशवरों का एक ही उन्वान है भारत
कभी है खीर की ख़ुश्बू कभी मीठी सेवइयां हैं
कभी दीपावली है ये कभी रमजान है भारत
मेरा मशरिक़ में हो घर याँ ठिकाना हो मेरा मग़रिब
रहूँ चाहे कहीं पे भी मेरी पहचान है भारत
हज़ारों बोलियों की खुशबुएँ घुलती फ़िज़ाओं में
सभी धर्मों से महका सा बड़ा गुलदान है भारत
करेगा ‘आरज़ू’ कुर्बान अपनी ज़िंदगी हसके
तू मेरी आन, मेरी शान, मेरी जान है भारत
अर्जुन गुप्ता (आरज़ू)
वतनपरस्ती के अशआर
August 15, 2020 in ग़ज़ल
आदाब
जहाँ के वास्ते बेशक कोई वरदान है भारत
फरिश्तों के लिए भी आरज़ू-अरमान है भारत
यहीं जन्मी है दुनियाँ की पुरानी सभ्यता यारो
सभी वेदों पुराणों का कोई सम्मान है भारत
क़सीदा हो, रुबाई हो, ग़ज़ल हो यां कोई नग़मा
सभी दानिशवरों का एक ही उन्वान है भारत
कभी है खीर की ख़ुश्बू कभी मीठी सेवइयां हैं
कभी दीपावली है ये कभी रमजान है भारत
मेरा मशरिक़ में हो घर याँ ठिकाना हो मेरा मग़रिब
रहूँ चाहे कहीं पे भी मेरी पहचान है भारत
हज़ारों बोलियों की खुशबुएँ घुलती फ़िज़ाओं में
सभी धर्मों से महका सा बड़ा गुलदान है भारत
करेगा ‘आरज़ू’ कुर्बान अपनी ज़िंदगी हसके
तू मेरी आन, मेरी शान, मेरी जान है भारत
अर्जुन गुप्ता (आरज़ू)
Ghazal
August 15, 2020 in ग़ज़ल
जय हिन्द साथियो
पहचान क्यों अलग सी है सारे जहान में
सब सोचते ऐसा है क्या हिन्दोस्तान में
है सभ्यता की मूल ये हिन्दोस्तां मेरा
कितनी मिठास मिलती हमारी ज़ुबान में
हर रूप में हैं पूजते नारी को हम यहाँ
तुमको खुदा मिलेंगे हमारे ईमान में
ख़ुश्बू उड़े हवा में सुबह शाम पाक सी
गीता सुनाई देती यहाँ पर क़ुरान में
यूँ लाँघना कठिन है फ़सीलों को भी यहाँ
बारूद भर दिया है यहाँ हर जवान में
है केसरी सफेद हरे रंग से बना
ऊँचा रहे तिरंगा सदा आसमान में
बस खुशनसीब लिपटें तिरंगे में ‘आरज़ू’
कर जाते नाम भी अमर दोनों जहान में
जय हिंद
जय जवान,जय किसान,जय विज्ञान
Arjun Gupta (Aarzoo)
मौजूदा हालात पे ग़ज़ल
April 22, 2020 in ग़ज़ल
आदाब
मुफ़लिसों को क्यों मिली है जिंदगी
बारहा ये सोचती है जिंदगी
ज़िंदगी जैसे मिली ख़ैरात में
ऐसे उनको देखती है जिंदगी
इस जहाँ में बुज़दिलों के वास्ते
बस क़ज़ा है, तीरगी है ज़िन्दगी
ख़ुदकुशी से क्या मिला है आज तक
सामना कर कीमती है जिंदगी
बंद आँखों से कभी सुन सरगमें
इक सुरीली बाँसुरी है जिंदगी
दिल में हो उम्मीद की कोई किरन
रौशनी ही रौशनी है जिंदगी
हर घड़ी तैयार रहना ‘आरज़ू’
इम्तिहानों से भरी है जिंदगी
आरज़ू
बेटियों पर एक ग़ज़ल
April 22, 2020 in ग़ज़ल
ग़ज़ल
दौलत नहीं, ये अपना संसार माँगती हैं
ये बेटियाँ तो हमसे, बस प्यार माँगती हैं
दरबार में ख़ुदा के जब भी की हैं दुआएँ,
माँ बाप की ही खुशियाँ हर बार माँगती हैं
माँ से दुलार, भाई से प्यार और रब से
अपने पिता की उजली दस्तार माँगती हैं
है दिल में कितने सागर,सीने पे कितने पर्बत
धरती के जैसा अपना, किरदार माँगती हैं
आज़ाद हम सभी हैं, हिन्दोस्ताँ में फिर भी,
क्यों ‘आरज़ू’ ये अपना अधिकार माँगती हैं?
आरज़ू
ग़ज़ल। सभी को मौत के डर ने ही..
April 1, 2020 in ग़ज़ल
आदाब
सभी को मौत के डर ने ही ज़िंदा रक्खा है
ख़ुदाया फिर भी ये इंसाँ इसी से डरता है
हमारी साँस भी चलती उसी की मर्ज़ी से ही
जहाँ में पत्ता भी उसकी रज़ा से हिलता है
हमेशा आस का दीपक जला के रखना तुम
अँधेरे रास्ते है, तू सफ़र पे निकला है
वो सारे चल पड़े थे, तिश्नगी लिये अपनी
किसी ने कह दिया सहरा में कोई दरिया है
ज़मी पे अजनबी भी अजनबी नहीं होता
बुलंदी पे जो है अक्सर अकेला होता है
ये ज़िंदगी है, इसे नासमझ सा बन के जी
जहाँ में कौन है जो ज़िंदगी को समझा है
रहे न एक भी शिकवा न ‘आरज़ू’ कोई
बता दे ज़िंदगी को ये कि ज़िंदगी क्या है
आरज़ू

(मैं तेरी पहचान हूँ)
August 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
(पहचान)
मैं कभी तेरे होटों की मुस्कान हूँ
तो कभी तेरी साँसों की पहचान हूँ
तेरे दिल में गूँजती घंटियों का शोर
तो कभी शाम को मस्जिद की आज़ान हूँ
मेरी खुशबू है तेरे हर अलफ़ाज़ में
मैं कभी गीता, बाइबल तो कभी कुरान हूँ
तू चाहता है जिस पिण्ड को पवित्र करने को
मैं वही कुम्भ और अमृत सरोवर का स्नान हूँ
मैं खेलता हूँ इन बाग़ बगीचो और जंगलों में
मैं ही तेरे सुनहरे खेत और खलियान हूँ
तू सराबोर है जिस आधुनिकता की रौशनी में
मैं वही परम्परा और आधुनिक जहान हूँ
मैं कभी तेरी धड़कनो का मधम शोर
तो कभी होंसलों का बुलंद तूफ़ान हूँ
कर कोशिश जितनी भी मुझे भूलने की
मैं कल भी तुझमे शामिल था ,
मैं आज भी तुझमें विद्धमान हूँ
कभी लहराता हूँ तेरे सर पे शान से
तो कभी गढ़ा हुआ जीत का निशान हूँ
रख हाथ दिल पे और सर उठा के देख मुझे
मैं वही तिरंगा और वही हिन्दोस्तान हूँ
मैं तेरी आन हूँ, बान हूँ, मैं तेरी शान हूँ
ए बंदे मैं ही तेरा भारत हिन्दोस्तान हूँ
( आरज़ू )