पहचान

April 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेकद्रों की महफ़िल मे कद्रदान ढूंढ रहा हूँ
अनजान लोगो मे अपनी पहचान ढूंढ रहा हूँ
अंधेरा करने वालों से रौशनी की मांग कर रहा हूँ
काली हुई रात मे रोशन जहान ढूढ रहा हूँ
मशगूल है सब अपने मे किसको किसकी फ़िक्र है
बेफिक्र ज़माने मे अपना फ़िक़्रदान ढूंढ रहा हूँ
करूँ किस पर कितना एतबार अब इस जहाँ मे
एतबार करने वाले ऐसे इंसान ढूंढ रहा हूँ
कदम कदम मिला कर चलने वाले कहाँ गये
बारिश मे उनके क़दमों के निशान ढूंढ रहा हूँ
ख़्वाहिशें जो दबी रहे गई दिल की तन्हाइयों मे
डूब कर दिल की गहराइयों मे अरमान ढूंढ रहा हूँ
पंकज प्रिंस

सम्बन्ध

April 21, 2020 in गीत

रिश्तों की डोर मे मजबूरियों का यह क्या सिला है,
अपनों के बीच यह कैसा नफ़रत का फूल खिला है

गुलिस्तां महकता था कभी जिनकी किलकारियों से,
खुश्बू बिखरती थी कभी बागीचे की फुलवारियों से
सींचता था जो प्यार से उसे बिखरा चमन मिला है,
रिश्तों की डोर मे मजबूरियों का यह क्या सिला है

सच्ची चाहतों के भंवर मे फंसी यह कैसी जिंदगी है,
इन पत्थर दिलो के लिए यह कैसी बंदिगी है
मुझको भी क्यों ना बनाया उनसे यह गिला है,
रिश्तों की डोर मे मजबूरियों का यह क्या सिला है

बढ़ते फासले दरमियान के कहाँ तक जायेंगे
दूर होकर भी एक दूजे को बहुत याद आयेंगे
देख कर दुनिया के दावों को ऊपर वाला भी हिला है,
रिश्तों की डोर मे मजबूरियों का यह क्या सिला है

अनसुलझे सवालों के साथ पहेली यह जीवन रेखा,
जवाबो को ढूंढ़ती मैंने अपनी ज़िन्दगी को देखा
दांव पर लगी ज़िंदगियों का यह क्या सिलसिला है,
रिश्तों की डोर मे मजबूरियों का यह क्या सिला है
अपनों के बीच यह कैसा नफ़रत का फूल खिला है

पंकज प्रिंस

कल किसने देखा कल आये या ना आये

March 29, 2020 in गीत

जीवन संदेश
कल किसने देखा कल आये या ना आये
आज की तू परवाह कर ले कही यह भी चला न जाये

देख दुनिया की हालत अब तो तू संभल जा
कहे रही तुझसे जो सरकार वह तू मान जा
कल के लिए तू आज घर पर ही रहे जाये
कल किसने देखा कल आये या ना आये

साफ सफाई हाथ की धुलाई है जीवन आधार
कर लो यह सब जो खुद के जीवन से है प्यार
निकल कर बाहर तू कोरोना क्यों फैलाये
कल किसने देखा कल आये या ना आये

वक़्त है देश के लिए कुछ कर गुजरने को
बना के रखो दूरी अपनों से आगे जीने को
ऐसा न हो कोरोना तुझे या अपनों को खा जाये
कल किसने देखा कल आये या ना आये

आओ करें यह वायदा खुद से आगे बढ़ कर
हराएंगे हम सब कोरोना को इस पर चढ़ कर
दुआ है ईश्वर से अब किसी की जान न जाये
कल किसने देखा कल आये या ना आये
पंकज प्रिंस

मेरे वीराने जहाँ को भी कोई बसाएगा

March 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरे वीराने जहाँ को भी कोई बसाएगा
क्या यह ऐसे ही उजड़ा रहे जाएगा
दो चार दिन को तो आते है सब
पर जिसका इंतजार वह कब आयेगा

इंतजार करते हुए थक सी गई है आंखियां
उनके इंतजार मे सूनी पड़ी है गलियां
बरसो हो गए पथ निहारते हुए
क्या इस पथ अब कोई नहीं आयेगा
मेरे वीराने जहाँ को भी कोई बसाएगा

थक सी गई आँखे आसमान की तपिश से
ठहर गई ज़िन्दगी उनके प्यार की बंदिश से
अब तो प्यास बुझा दे ऐ मेरी ज़िन्दगी
ना जाने वह कब प्यार बरसाएगा
मेरे वीराने जहाँ को भी कोई बसाएगा

मेरे वीराने जहाँ को भी कोई बसाएगा
क्या यह ऐसे ही उजड़ा रहे जाएगा
दो चार दिन को तो आते है सब
पर जिसका इंतजार वह कब आयेगा
पंकज प्रिंस

अपमान

March 13, 2020 in गीत

अपमान करें कोई तेरा सम्मान उसे ही तुम देना
जो कोई बुराई तेरी करें बदला ना बुराई से लेना

गीता मैं यही और रामायण मैं और धर्म सभी यह कहते है
जो त्यागी है वह त्याग करें हंस हंस कर सौ दुख सहते है
त्याग का दीप जले मन मैं पल एक नहीं बुझने देना
जो कोई बुराई तेरी करें बदला ना बुराई से लेना

जो प्रभु ने दिया ने दिया संतोष लेकर
कुछ और मिले यह लोभ ना कर
लोभ का दीप जले मन मे पल एक नहीं जलने देना
जो कोई बुराई तेरी करें बदला ना बुराई से लेना

अपमान करें कोई तेरा सम्मान उसे ही तुम देना
जो कोई बुराई तेरी करें बदला ना बुराई से लेना

पंकज प्रिंस

कल किसने देखा कल आये या ना आये

March 13, 2020 in गीत

कल किसने देखा कल आये या ना आये
आज की तू परवाह कर ले कही यह भी चला ना जाये
देख परायी चुपड़ी तेरा मन क्यों ललचा जाय
पास तेरे जो है तू उससे मन को समजाये
रुखा सूखा जो कुछ है कही वह भी छूट ना जाए
कल किसने देखा कल आये या ना आये

आज तेरा है जो वह कल था और किसी का
आने वाले कल मैं वह होगा और किसी का
फिर उस जगह पर अपना हक़ क्यों जताये
कल किसने देखा कल आये या ना आये

करम किये जो तूने उसका फल भी यही मिलेगा
आज नहीं तो कल सब कुछ यही मिलेगा
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहा से खाये
कल किसने देखा कल आये या ना आये

जैसी करनी वैसी भरनी रीति तो है यह पुरानी
अंत समय सब याद करते अपनी भूली कहानी
गुजर गया जो वक़्त अब लौट कभी ना आये

कल किसने देखा कल आये या ना आये
आज की तू परवाह कर ले कही वह भी चला जाए

पंकज प्रिंस

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March 13, 2020 in Other

HINDI MAIN POST KAISE HOGA, PLEASE JISE MALOON HO BTA DE

Holi

March 5, 2020 in काव्य प्रतियोगिता, हिन्दी-उर्दू कविता

HOLI

rango ki fuhar hai ya aapas ka yeh pyar hai
holi to yaarow hum sab ke prem ka tyohaar hai

rang birange chere sab ke par chadta na koi rang
kar door gile shikwe rahe sab ek dooje ke sang
durriyan mitata paas bulata saal ka yeh tyohar hai
holi to yaarow hum sab ke prem ka tyohaar hai

bikhri khushiyan ghar aangan main jo rang chale holi ka
jeeja sali ka khel yeh saath jaise daman choli ka
masti bhari holi yeh devar bhabhi ki bhi takrar hai
holi to yaarow hum sab ke prem ka tyohaar hai

gujhiya papad ki mahak hai nasha hai isme bhang ka
bachche bude kya jawan maja lete sab huddang ka
naach gaan dhol bhangda khusiyon ka yeh izhaar hai
holi to yaarow hum sab ke prem ka tyohaar hai

kheli humne bhi jo holi woh bhi kya holi thi
choote saathi jo aaj, kal unke saath toli thi
dil main base sab aise aaj bhi, janmo ka yeh pyar hai
holi to yaarow hum sab ke prem ka tyohaar hai

rango ki fuhar hai ya aapas ka yeh pyar hai
holi to yaarow hum sab ke prem ka tyohaar hai

PANKAJ “PRINCE”

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