ज़मीन तुम हो

May 8, 2018 in ग़ज़ल

मेरी हर इक ग़ज़ल की अब तक ज़मीन तुम हो …..
मेरा अलिफ़ बे पे से चे और शीन तुम हो ….

जज़्बात से बना मैं इक प्यार का नगर हूँ
रहते हो इस में तुम ही इस के मकीन तुम हो …..

इन क्रीम पाउडर का एहसान क्यूँ हो लेते
मैं जानता हूँ तुमको कितने हसीन तुम हो ….

तुमको कोई तो समझे संसार कोई साँसे
लेकिन किसी की ख़ातिर कोई मशीन तुम हो ….

टूटोगे तुम कभी तो बिखरूंगा मैं ज़मीं पर
कुछ और हो न हो पर मेरा यक़ीन तुम हो …

पंकजोम ” प्रेम “

किताब हो जाओ

April 24, 2018 in शेर-ओ-शायरी

नेट के इस ज़माने में ऐ ” प्रेम ”
ख़ुद ही तुम इक किताब हो जाओ ….

पंकजोम ” प्रेम “

पानी पानी की

January 11, 2018 in ग़ज़ल

एक ताज़ा ग़ज़ल ……..

गुलफिशानी – फूलों की बारिश ,
बदगुमानी – शक

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मैंने दुश्मन पे गुलफिशानी की …
आबरू.. उसकी पानी पानी की ….

मुझ पे जब ग़म ने मेहरबानी की …..
मैने फिर ग़म की मेज़बानी की ….

मैं जिन आँखों का ख़्वाब था पहला
क्यों ….. उन्होंने ही बदगुमानी की….

वार मैंने निहत्थों पे न किया
यूँ अदा रस्म ख़ानदानी की …….

होठ उनके न कह सके जब सच
फ़िर निग़ाहों से सच बयानी की ….

सोचा बेहद के क्या रखूँ ता – उम्र
फ़िर ग़ज़ल ” प्रेम ” की निशानी की …..

पंकजोम ” प्रेम ”

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” कोई निशानी भेज दो “

February 6, 2016 in ग़ज़ल

मन बहलाने को कोई निशानी भेज दो

नींद नहीं आती कोई कहानी भेज दो …..

संजीदा रहूँ हमेशा तेरी यादों में

 मेहरबान बन कोई मेहरबानी भेज दो….

भा गया कुछ यूँ दिल को तेरा अपनापन

दीदार करने तस्वीर कोई पुरानी भेज दो ..

तड़प रहा हूँ कब से मिलने को

  उम्मीद तुम कोई पहचानी भेज दो …

जो दिलोँ – जान से हो सिर्फ मेरी

ख़ुदा ऐसी कोई दानी भेज दो..

महसूस होती हैं अक्सर दिल को तेरी सिसकिया

ख़त में मेरी सुखनवरी कोई दीवानी भेज दो….

हाल – ए – दिल सिर्फ तुम से हो बयां

मंजूरी अपनी ना सही कोई बेगानी भेज दो …..

ख़ामोश हैं सागर – ए – दिल – ए – पंकजोम “प्रेम ”


तुम ख्वाईशें कोई तूफ़ानी भेज दो …

” ये तिरंगा “

January 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी

हर हिंदुस्तानी की इक ख़ास पहचान , ये तिरंगा ….

भारत माँ की करता बेनज़ीर शान , ये तिरंगा ….

सीमा पर तैनात हर जवान में डाल दे जान , ये तिरंगा …..

 

” पंकजोम प्रेम “

” बड़ी फ़ुरसत में मिला मुझ से ख़ुदा है…”

January 8, 2016 in ग़ज़ल

 

 

मेरी सांसो में तू महकता हैँ
क़ायनात – ए – ग़ैरों में तू ही अपना लगता हैँ 1 .

होंठों की ख़ामोशी समझा ना सके
नैनों में इश्क़ मेरा झलकता हैँ ( 2 )

भर चुकी हैं सुराही – ए – मोहब्त
इश्क़ मेरा अब बूंद – बूंद कर रिसता हैं…. ( 3 )

जितना जाना चाहूँ तुम से दूर
कारवाँ यादों का उतना ही तेरी और सरकता है…( 4 )

नैनों से दूर हो तो क्या हुआ
ये सुख़नवर तेरा हाल – ए – दिल समझता हैं ( 5 )

धड़कन बन कफ्स हूँ तेरे दिल में
ये बार – बार तू फ़लक की और क्या देखता है( 6 )

मेरी महफ़िल – ए – दिल में मुसलसल हैँ दौर – ए – खजालत
ऐ दीवाने दौड़कर आ कहाँ तू रुकता हैँ ( 7 )

कट रहे हैं दिन ग़रीबी संग
इस सुख़नवर का इक – इक अल्फ़ाज़ सस्ता है ( 8 )

दर्पण में हर रोज़ देख ना समझ सकी
अक्श मेरा बिलकुल तेरे जैसा है ( 9 )

इक अरसा बीत गया उन से गुफ़्तगू किये
आज बड़े दिन बाद नैनों से मिला इक इशारा है ( 10 )

साँसे कब तक महफूज़ रहे मालूम नहीं
अंतिम साँस तक साथ निभाने का क्या इरादा है ( 11)

दिल को अमीर बना भेजा हैँ ख़ुदा ने
तभी हर रुख़ – ए -रोशन पर इश्क़ लुटाता है ( 12 )

जब वो दिल से अपना कहते हैँ
कसम – ए – ख़ुदा क्या जीने का आनन्द आता है ( 13 )

फिज़ा की महक से महसूस की उनकी मायूसी
तभी आज इक – इक अल्फ़ाज़ हुआ रुवासा हैँ ( 14 )

मुझे इत्मीनान से जीने दो मेरा आज
क्योकि कल तो बस कल कहलाता है ( 15 )

तू कफ्स रह मेरे जिस्म में रूह बनकर
आज का इन्सां अंखियो से करता तुझे मैला है ( 16 )

इक किस्सा बन कर नहीं रहना
जिंदगी का सफ़र कटा अभी आधा है ( 17 )

सोया रहता हूँ मुर्दे की तरह
ख़्वाब हर इक मेरा अधूरा है ( 18 )

शाम ढ़लते ही घने जुल्मात के कहर में
इक शोला आज भी जलता हैँ ( 19 )

उस माहताब का दीदार किये बगैर
ये आफ़ताब कहा ढलता हैँ ( 20 )

दुनिया ने बता दिया इश्क़ को गुनाह
लेकिन दिल मेरा कफ़न बांध चलता है ( 21 )

तन्हाई में तन्हा कर दे यादें उनकी संजीदा
फिर नैनों से हर इक आब बारिश बन बरसता है ( 22 )

मत बिक जब तक ना मिले कोई सच्चा सौदागर
पगले बाजार – ए – मोहब्त में यूँ ही मोल- भाव चलता है ( 23 )

दिल की ज़मी पर रखे वो अपने लफ़्जो के कदम
तब कहि जाकर मुस्कराहट का गुलाब खिलता है ( 24 )

धड़कन आज भी मदहोश हैँ
सांसो से उनकी जो रिश्ता गहरा हैँ ( 25 )

इक मरतबा तुम जाओ मयख़ाने में
साक़ी के हाथो से जाम पीने का कुछ और मज़ा हैँ ( 26 )

जो ये कहे दिल से बहुत अमीर हूँ मैं
सही मायने में वही मोहब्त पर लूटा है ( 27 )

वो आज भी सोया हैँ बे-फ़िक्र
और सुलग उठी चिता है ( 28 )

ख़ामोश आज तक वो ख़ुदा है
शायद हुई कोई ना होने वाली खता हैँ ( 29 )

जब से छोड़ दी उसने नजरों से मय पिलानी
वीरान शहर का हर इक आहता है ( 30 )

दिल तोड़ने के बाद भी रह लो तुम
यहाँ खण्डरो में किसका रहना मना हैँ ( 31 )

कब्र में सोने के बाद जल उठी कंदीले
जरा ये सोचो मोहब्त में चिराग ये कितना जला है ( 32 )

कल जो नजारा देखते थे हम फ़लक – ए – उल्फ़त पर
आज वहीँ दिखाई दिया धुंधला है ( 33 )

तुम पढ़ना मेरी दिल की किताब ध्यान से
किसी इक ख़ास पन्ने पर अतीत मेरा छुपा है ( 34)

मुसलसल है उसे चाहने का सिलसिला
जब से दिल उनकी धड़कन से मिला है ( 35 )
और जीने का मन करता है
जब अल्फ़ाज़ उनका अपना कह बुलाता है ( 36 )

राह – ए – इश्क़ में बहुत ठोकरे लगी
पर हर मरतबा दिल सम्भल जाता है ( 37 )

मेरे मेहरबान मत बना मोहब्त को इतनी बेनज़ीर
इस जंग में इंसान इंसान से ही हारता है ( 38 )

तब से रो रही है तन्हाई में दीवारे
जब से उनके दिल का आशियाना छोड़ा है ( 39 )

ये मोहब्त सुला देती हैँ गहरी नींद में
वरना यहाँ मरना कौन चाहता हैँ ( 40 )

फूलों की चाह दिल में ले चल पड़े
पता ना था अंगारो पर से गुजरना हैँ ( 41 )

जख़्म इतने गहरे मिले उस अपने से
भरने कोई मरहम आज तक ना हुआ संजीदा है ( 42 )

ना पूंछे वो मेरा हाल – ए – दिल
हर इक राज़ दिल में दफ़न रहता है ( 43 )

अगर तेरे नसीब में है तो जरूर मिलेगी
ए – इंसान क्यों राह – ए – मोहब्त में ख़ुद को खोता है ( 44 )

काफिले और नसीब हो जायेगे चाहत के
मुस्कुराता रह क्यों रोता है ( 45 )

हाल – ए – दिल बताने ख़त उन्हें और कैसे लिखूँ
बचा मोहब्त की किताब पर इक ही पन्ना है ( 46 )

पसन्द हैं उन्हें पायल
बस मुझे घुँगरू बन खनकना है ( 47 )

रहना हैं अगर उस चाँद के हरदम करीब
तो और कुछ नहीं इक सितारा बनना है ( 48 )
दूर से पहचान ले उस गुलाब की खुशबु
उल्फ़त में बना ये सुख़नवर ऐसा भंवरा है ( 49 )

जैसे ही वो लगे गले महसूस हुआ ” पंकजोम प्रेम ”
बड़ी फ़ुरसत में मिला मुझ से ख़ुदा है…(50 )

” मौत करती है रोज़ “

January 6, 2016 in ग़ज़ल

मौत करती है नए रोज़ बहाने कितने

ए – अप्सरा ये देख यहाँ तेरे दीवाने कितने

 

मुलाक़ात का इक भी पल नसीब ना हुआ

कोई मुझ से पूछे बदले आशियाने कितने

 

तेरे इंतजार में हुई सुबह से शाम

ये देख बदले ज़माने कितने

 

उन्हें भूख थी मुझ से और उल्फ़त पाने की

लेकिन दिल में मेरे चाहत के दाने कितने

 

नशीली उन निग़ाहों को देख

नशा परोसना भूल गए मयख़ाने कितने

 

रंग जमा देती है मेरी सुखनवरी हर महफ़िल में

मगर उस रुख़ – ए – रोशन ने अल्फ़ाज़ मेरे पहचाने कितने

 

यादों में हुए तेरी  कुछ यूं संजीदा

दिल को तसल्ली देने गाये तराने कितने

 

उनकी तरकश में था इक तीर – ए – मोहब्त

मेरे ज़ख्मी दिल पर लगे निशाने कितने

 

इक मरतबा चले सफ़र – ए – मोहब्त पर

राह में मिले मुझे उलाहने कितने

 

वक़्त के साथ थोड़ा हम भी बदल गए

बेजुबां दिल से अब अल्फ़ाज़ सजाने कितने

 

तस्वीर कुछ यूं बसी उनकी नैनों में

दिखे दर्पण में उनके नज़राने कितने

 

कम से कम ख़्वाबो में तो कर दे इज़हार

नसीब हो  मुझे लम्हें ये सुहाने कितने

 

मैँ पूरी तरह लिपट चूका हूँ वसन – ए – मोहब्त में चाहत के रंग मुझे अब छुड़ाने कितने

 

मुसलसल है जो इश्क़ की आग दिल में

आये दीवाने इसे बुझाने कितने

 

इक दफ़ा  ना कर दीदार तो अंखियों में नींद कहा

वरना आये मुझे ख़्वाब सुलाने कितने

 

फ़ीके पड़ रहे है दिन – ब – दिन जिंदगी के रंग ” पंकजोम प्रेम ”

अपनी मोहब्त के रंग में आए रंगाने कितने

” नया साल आ रहा हैँ “

December 31, 2015 in ग़ज़ल

रह – रह कर ज़ेहन में बस यही ख्याल आ रहा हैं

मुझे तनिक बदलने दो , नया साल आ रहा हैं …..

 

बेचैन धड़कन हो गयी है

शायद संग अपने ख़ुशियां बे-मिसाल ला रहा हैं ….

 

जल उठी दिल में कंदीले – ए – इश्क़

ये बे-जुबां भी ग़ज़ले गा रहा हैँ..

 

सिर्फ साल बदला हैं , इंसान नहीं

कुछ तो ख़ामोश रहकर समझा रहा हैं….

 

वो तो कब का कह चुके हक़ीक़त में  अलविदा

फिर क्यों ख़्वाबो में उनका अक्श दिखा रहा हैं……

 

अस्त हो गया मेरी चाहत का आफ़ताब

ये फ़लक – ए – दिल कौन सा माहताब चमका रहा हैं….

 

जो रुसवा हैं मना ले उन्हें पंकजोम ” प्रेम ”

साँसों का कारवाँ जिस्म से दूर होता जा रहा हैं…..

” इस नववर्ष “

December 31, 2015 in शेर-ओ-शायरी

उन्नति को लगी रहे आप से मिलने की लगन ….

इस नववर्ष , आपके यहाँ हो खुशियों का आगमन ….

सिलसिलेवार रहे चेहरे पर  रौनक – ए – मुस्कराहट …..

रब की रहमत से  सदा महकता रहे आपका घर आँगन….

 

पंकजोम ” प्रेम “

” इक जिद्द अधूरी रह गयी “

December 24, 2015 in शेर-ओ-शायरी

थे क़रीब इक दूजे के ….

लेकिन फिर भी दरम्यां हमारे , दुरी रह गयी ….

इबादत करते हुए , इक भी दर ना छोड़ा ख़ुदा का …

फिर भी कोई मज़बूरी रह गयी..

कह देते थे , महफ़िल – ए – यारों में ….

” वो हैं मेरी ” …

 

.

बस यही इक जिद्द अधूरी रह गयी …..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” धुंधला नजारा “

December 23, 2015 in शेर-ओ-शायरी

मोहब्त का ले सहारा उन्हें पाने की सोची…..

ख़ुद ही बे – सहारा हो गए …..

 

जिनका अक्श कभी ओझल ना हुआ , नजरों से ….

वही आज इक धुंधला नजारा हो गए ….

 

जिन सागरों के किनारों पर रुक जाती थी ….

हमारी कश्ती – ए – चाहत ….

 

आज वहीँ सागर बे – किनारा हो गए …..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” कसक मुसलसल है “

December 23, 2015 in ग़ज़ल

चलो आज बात करे गुज़रे जमाने की

मैंने जरूरत समझी आप सबको बताने की …..

 

संग उसके मुस्कुराकर समझते थे

क्या बेनज़ीर रौनक है मेरे काशाने की ….

 

इक मरतबा भुला ही दिया ख़ुदा को

बड़ी ख़ुशनसीब जिंदगी थी इस दीवाने की …

 

बेसूद हुआ एक एक अल्फ़ाज़ मेरा

जब कोई राह ना दिखी उसे मुझे चाहने की…..

 

वो इस क़दर रुसवा हुए मुझ से

की इक बार भी ज़रूरत ना समझी लौट आने की …

 

वो दिल से एक दफ़ा अपना कह देते

तो आज ग़ैरों से जरूरत न होती कहलवाने की…..

 

कल मोहब्त भरी निग़ाहों से तराश लेते हमें

तो आज ज़रूरत ना होती नज़रे चुराने की….

 

 

  1. ये  दौर – ए – इखलास सदा क़ायम रहेगा ” पंकजोम ” प्रेम

बस कसक मुसलसल हैँ इंसान बदल जाने की……

 

पंकजोम ” प्रेम “

” अपनी क़ीमत “

December 23, 2015 in Other

अज़ीब समझ हैं अपनी ….

 

हम अपनी क़ीमत जानने से कही ज़्यादा ….

 

अपनी क़िस्मत जानना चाहते हैं….

 

पंकजोम ” प्रेम “

” चाँद ” आया हैं

December 22, 2015 in शेर-ओ-शायरी

क़ायनात ने क्या ख़ूब साज सजाया हैं ….

जिंदगी के बे- रंग रंगो ने क्या रंग दिखाया हैं….

ज़रा नज़रे उठा देख ए – फ़लक , मेरी और ….

मिलने मुझ से ” चाँद ” आया हैं….

 

पंकजोम ” प्रेम “

” मेरे अल्फाज़ “

December 21, 2015 in शेर-ओ-शायरी

महफ़िल – ए – यारोँ में , थोड़ा अलग दिखा देते हैँ …..

मुझे , मेरे अल्फ़ाज ……

फितरत बता देते हैं , मेरी ….

मेरे अल्फ़ाज …..

मैं इंसान हूँ तो जायज़ हैं , नफ़रत मैं भी कर लूँ …..

लेकिन हर मरतबा मोहब्त जता देते हैं …….

मेरे अल्फ़ाज …..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” तलबगार हो गए “

December 19, 2015 in शेर-ओ-शायरी

तलब ऐसी उठी दिल से…..

की उन्हीं के तलबगार हो गए….

जमाने की जुबां पर ….

किस्से हमारी मुलाकातों के बार – बार हो गए….

पता कर चुके थे , हैँ उनकी तरकश में इक तीर – ए – मोहब्त …..

और उसी तीर के हम शिकार हो गए….

 

तलब – चाह

तलबगार -चाहने वाला

” राह – ए – माबूद “

December 17, 2015 in ग़ज़ल

थोड़ा रंज में , थोड़ी ख़ुशी में , साल ये बीता ….

ख़ुद की मोहब्त को हारा , लेकिन फिर भी जीता ……

 

मुसलसल हैं आज भी यादों का कारवाँ ….

थोड़ा तन्हा , थोड़ा मुस्कुराकर हूँ लिखता …

 

मुसाफ़िर हूँ यारों  , मंज़िल का पता नहीं ..

इक टक लगायें राह – ए – माबूद हूँ देखता …

 

जाने वाले चले गए अपना बना कर ….

आख़िर कोई क्यों नहीं , जाने वालों को रोकता ….

 

कल मेरी मोहब्त किसी और की हो गयी ….

मैं समझा , ना जाने क्यों ये दिल नहीं समझता ….

 

और भी है रंग जमाने को अपने ” पंकजोम ” प्रेम ….

लेकिन उस रंग के बग़ैर , कोई और रंग नहीं जमता ….

 

 

मुसलसल – निरन्तर 

माबूद – ईश्वर

” किया गुनाह क्या “

December 15, 2015 in शेर-ओ-शायरी

साँसे चल रही हैँ , बिन उसके..

आने वाला ,  जीने में मज़ा क्या…

चाह लिया उसे , उसकी इजाज़त के बगैर …..

इसमें किया गुनाह क्या ….

मोहब्त हैं उनसे , तभी मांगती हैं  निगाहें दीदार ….

वो ही आकर बताएं …

इसमें क़ुसूर – ए – निग़ाह क्या ..

 

 

पंकजोम ” प्रेम “

” रंग जमा दो “

December 15, 2015 in शेर-ओ-शायरी

थोड़ा मायूस हूँ , थोड़ा तन्हा हूँ ..

कोई राह – ए – ख़ुशी बता दो….

ख़ुद की ख़ामोशी देख , ख़ामोश क़ायनात भी दिख रही हैँ …..

कोई मुस्कुराना सीखा दो ….

बे – रंग हो गयी हैं , चेहरे की रौनक ….

कोई ” वाह ” ” वाह ” करके थोड़ा और रंग जमा दो ….

 

पंकजोम ” प्रेम “

” लूटा जाता हूँ , ” मैं ” “

December 14, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कफ़स दिल में कुछ जज़्बात .. आबो संग बीता जाता हूँ ,  ” मैँ “…..

पुष्प हूँ , खिलनें के लिए बना हूँ ….

 

फ़िर भी ना जाने क्यों , मुरझा जाता हूँ , ” मैँ “….

 

ज़रा कर इक निग़ाह मेरी और , ए – मेहरबान …..

 

 

रंज में रहता हूँ , फिर भी अपनों पर ख़ुशियां लूटा जाता हूँ , ” मैं ” 

 

पंकजोम ” प्रेम “

” जरा इक निग़ाह डाल “# 2 liner ” 3 “

December 13, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ज़रा इक निग़ाह डाल देखों सावन पर ” पंकजोम ” प्रेम ” ” ….

ख़ामोश अल्फ़ाज़ मेरे ,सबसे बतियाते बतियाते दिखेंगे …..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” इक टका ” # 2 liner ( 2 )

December 13, 2015 in शेर-ओ-शायरी

उसने कहा बहुत अमीर हूँ  ” मैं ” ,

दिल से….

लेकिन चाहत का इक भी टका ,

वो मुझ पर खर्च ना कर सकी..

” दो घूंट में ” # 2 Liner

December 12, 2015 in शेर-ओ-शायरी

अपनी पूरी कमाई तूने मय पर लूटा दी…..

 

ए  – ग़ालिब….

जरा मुझे ये बता…

उस दो घूंट में , जिंदगी जीने का स्वाद कितना है….

 

  • पंकजोम ” प्रेम “

” कुछ ऐसा लिखूँ “

December 11, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कुछ ऐसा लिखूँ , की पढ़ने वाले को लगे …

मेरा एक – एक  अल्फ़ाज , गहरा हैँ …

खों जाये वो मेरे अल्फाज़ो की महफ़िल में ..

लगे उसे , मानो आज वक़्त , ठहरा हैं..

यादगार हों जाये उसके लिए , मेरी हर इक सुखनवरी ….

एहसास हो , जैसे…..

रौनक के पहरे से रोशन उसका , चेहरा हैं ..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” सुराही – ए – मोहब्त “

December 11, 2015 in शेर-ओ-शायरी

दिल बेचैन हुआ , तो उसके दीदार का दिया दिलासा हैं …..

जाने वाले कल चले गए ,

लेकिन आज भी उनके लौट आने की ….

छोटी सी आशा हैं …..

अब कोई तो बने सुराही – ए – मोहब्त ….

क्योंकि ये सुख़नवर बहुत , प्यासा हैं ….

 

पंकजोम ” प्रेम “

” वक़्त लगता हैँ यहाँ “

December 11, 2015 in शेर-ओ-शायरी

वक़्त लगता हैं यहाँ , इंसान को इंसान समझने में …….

वक़्त लगता हैं यहाँ , पत्थर को भगवान समझने में ……

आधी उम्र बीत जाती हैँ सोचने सोचने में ..

क्योंकि वक़्त लगता हैं यहाँ , जीने के अरमान समझने में …..

 

पंकजोम ” प्रेम “

समझों तो यहीँ मोहब्त हैं

December 10, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ये अल्फाज़ , अल्फ़ाज़ ही नहीं , दिल की ज़ुबानी हैं …..

इन्होंने ज़न्नत को , जो जमीं पर लाने की ठानी हैं …

साथ देने को कई मरतबा भीग जाती हैं पलकें …..

समझों तो यही मोहब्त हैँ , ना समझों तो पानी हैं…..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” चाँद का मायूस चेहरा”

December 8, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कल मैंने अपनी प्रेमिका के उतर दिल में ,

चाहत का ज़खीरा देखा …..

अपने जिल्ले – सुभानी के इंतजार में ,

उस चाँद का मायूस चेहरा देखा ..

स्वागत में उसने आब संग बिछा दी पलकें ,

मैंने हर इक आब पर नाम , मेरा देखा …

 

पंकजोम ” प्रेम ”

 

” सम्भाल ले ऐ – ख़ुदा “

December 7, 2015 in ग़ज़ल

सम्भाल ले ऐ – ख़ुदा , एक लम्हे के लिए मुझे….

अब  मैं हार रहा हूँ …..

तू ही बता मेरे साहिब , मैं क्यों ये जिंदगी तन्हा गुजार रहा हूँ …

 

तूने साज़ किया चेहरे पर , मुस्कराहट का ….

लेकिन मैं क्यों , मायूसी स्वीकार रहा हूँ …..

 

जिल्ले – सुभानी कहता हैँ ये जग मुझे , अल्फाज़ो का ….।

फिर मैं क्यों ख़ुद को ख़ामोशी में उतार रहा हूँ ….

 

 

इक रोज़ मालूम हुआ , मयख़ाने में मय बाँट लेती है रंज….

मैं , ये कड़वा सच भी नकार रहा हूँ …..

 

जब देखता हूँ माँ – बाप की नजरों में , तू दिखाई दे ….

लेकिन कुछ रोज़ से , बनता जा काफ़िर रहा हूँ …

 

अब तो कुछ और आब बढ़ा दे चेहरे की रौनक …

क्योंकि हर दफ़ा महफ़िल – ए – रंज में , मैं उजागर रहा हूँ …

 

अधूरी साँसे हैं , ख्वाईश एक रुख़ – ए – रोशन से बेइंतहा इश्क़ पाने की….

लेकिन मैं क्यों , मन ही मन , मन को मार रहा हूँ ….

 

उठ चूका हैं ,  नहीं उठना था , जो  सैलाब दिल में  ” पंकजोम प्रेम “….

क्योंकि लहर – ए – उल्फ़त पर एक मरतबा फिर मैँ लहर रहा हूँ…

sbbdo ki mehfil thi sjji……..

December 4, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

Shhbdo ki mehfil thi SJJI…
yaaro hum bi chl diye apni MOHHBAT k kisse ” sunaane ” ….
Jo dard tha dil m bya krte gye hum bi bhigi aankhiyo se…
Kyuki hum the kisi hasina k hasin Dewaane….
Khaa hum se nikklne wale unn sbbdo ne….
Jindagi k kuch raz , raaz hi rehne do…
Kyuki wo ache hote h..
Agr ho gye ho puraane….
Hum bi ye sochte rhe…
Wo smaa jiski hume chahat krte the…
Wo to kisi or ki ho gyi…
Abb hum kon si smaa k bnne parwaane……

 

Pankajom ” Prem “

” मेरे माधव ही नहीं आप सब “

December 4, 2015 in शेर-ओ-शायरी

मेरे माधव ही नहीं आप सब …

राह – ए – क़ामयाबी में , मेरी तरह एक मुसाफ़िर भी  हो ….

भरने फ़लक – ए – क़ामयाबी पर ऊंची उड़ान ……

मेरे संग उड़ने वाले तायर हो …

जिल्ले – सुभानी – ए – अल्फ़ाज़ हो …..

और सुखनवरी की दुनिया के क्या बेहतरीन सुख़नवर हो …. ….

 

पंकजोम ” प्रेम “….

 

तायर – पंछी

जिल्ले – सुभानी – सम्राट

सुख़नवर – शायर , कवि

सुखनवरी – शायरी , कविता

रशमें – ए – इश्क़

December 3, 2015 in ग़ज़ल

जब महफ़िल – ए – इश्क़ में , निग़ाह से निग़ाह टकराई …

दिल की बात चेहरे पर उभर आई ….

 

अँधेरे में डूबे मेरे एक एक लम्हे को रोशन करने ….

उसने क्या ख़ूब कंदीले – ए – मुस्कराहट जलाई ….

 

ख़ामोश थी उसकी जुबां , ख़ामोश एक एक अल्फ़ाज़ ….

मुझे अपने दिल की और ले जाने ,  स्वागत में उसने पलके बिछाई…

 

मैं तो वाकिफ़ था नशा – ए – उल्फ़त से …..

वो एक मरतबा फिर ज़ाम – ए – चाहत बना लाई …

 

बिखरें इस सुख़नवर को , क्या खूब मोहब्त से समेटा उसने …

एक अलग अंदाज़ में रशमें – ए – इश्क़ निभाई ….

 

इश्क़ के वसन में कुछ यूं लपेटा उसने  ख़ुद को ….

मेरे साथ रहने , बन गयी मेरी परछाई …

 

ख़ुशी हुई मिलकर उस से इस क़दर  , पंकजोम ” प्रेम ”

की दूर हो गयी बरसों पुरानी तन्हाई …..

” हाल – ए – दिल “

December 3, 2015 in शेर-ओ-शायरी

देखकर उसकी मुस्कान , ख़ुशी से भर जाता हूँ , मैं …..

उसकी एक झलक पाने ….

कुछ भी कर जाता हूँ , मैं…..

वो क्या जानें , मेरा हाल – ए – दिल ..

उसे मायूस देख …..

ग़ुलाब की पत्तियों की तरह बिखर जाता हूँ , मैं…..

 

पंकजोम ” प्रेम “

” कश्ती – ए – मोहब्त “

December 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी

दिल जब कश्ती – ए – मोहब्त पर सवार होता हैँ…..

तब उनसे मुलाकात करने को दिल बेक़रार होता है….

दीदार कर उस अप्सरा का , मैंने भी मान लिया …

” एक नज़र में भी प्यार होता हैं ”

 

पंकजोम ” प्रेम “

दर्द

November 27, 2015 in शेर-ओ-शायरी

जब दर्द हुआ मेरे सीने में ….

तो चुपके से दिल ने कहा …..

ए – सुख़नवर …

” आज थोड़ी तकलीफ़ हो रही हैँ , जीने में “….

पंकजोम ” प्रेम “

करामात – ए – मय देखिये..

November 22, 2015 in शेर-ओ-शायरी

जैसे ही शरीक हुए , महफ़िल – ए – मय में …..

जाम पर जाम होंठो  से टकराते गए…..

हर एक घूंट के साथ …..

हम उनके साथ बिताये हुए , संगीन लम्हें भुलाते गए …..

करामात – ए – मय देखिये , जितना भुलाया  था उन्हें…

नशा उतरने के बाद वो उतना ही याद आते रहे…..

 

पंकजोम ” प्रेम “

एक जंजीर ढूंढता हूँ ..

November 20, 2015 in शेर-ओ-शायरी

मुझे हमेशा तुम से बाँधें रखेँ ….

इस क़ायनात में , ऐसी एक जंजीर ढूंढता हूँ …..

 

दौलत से सब बन जाते है अमीर …

लेकिन तुझमे मैं , वो दिल वाला अमीर ढूंढता हूँ …..

 

बांवरा , मगर थोड़ा सयाना बन ….

पार हो जाये तेरे दिल के….

मैं तरकश में ,  वो मोहब्त का तीर ढूंढता हूँ ….

 

पंकजोम ” प्रेम “

मैं लिखता हूँ मोहब्त

November 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं लिखता हूँ मोहब्त को …

मोहब्त की कलम से….

मैं भरता हूँ अपने ज़ख्मो को ..

उसकी यादों की मरहम से…

कुछ ही महफूज़ बची हैं , सांसे मेरी ….

मैं ज़ी रहा हूँ आज …

तो बस उसकी दुआओं के रहम से…

 

पंकजोम प्रेम

सबकी कदर कर ले

November 18, 2015 in ग़ज़ल

बरस ना जाये फिर नैना , तू दिल मे कैद कही वो अब्र कर ले..

तो क्या हुआ , अगर कुछ ख्वाईसे पूरी ना हुई तेरी ….

तू अधूरी ख्वाईसों संग पूरा ये सफ़र कर ले…

 

रिश्तो की रस्में दिल से निभा .

शामिल उनकी हर ख़बर में , अपनी ख़बर कर ले…

 

जीते ज़ी का हैं सब झमेला …

तू क़दरदान बन , सबकी कदर कर ले…..

 

खामोश लफ्ज़ो में छिपी हैँ एक ख़ुशी …..

तू वो ख़ुशी महसूस करने , थोड़ा सब्र कर ले…

 

आगे का सफ़र थोड़ा तन्हा कटेगा…

इत्मीनान से कटे , तो थोड़ी फ़िक्र कर ले…..

 

पता हैं क़ायनात को तेरे साग़र – ए – इश्क़ का …..

तू इज़हार करने , बेताब दिल की  एक – एक लहर कर ले….

 

 

अकेलेपन की चिंगारी दे रही है दस्तक ” पंकजोम प्रेम “….

इसके आग बनने से पहले ,  महफूज़  उसके साथ का नगर कर ले .

मायूस है चेहरे को रौनक

November 15, 2015 in ग़ज़ल

कल खो दिया मैंने वो नायाब रत्न …
जिसे पाने को हर इंसान करता है , ना जाने कितने प्रयत्न …..
This Gajal Dedicate to my grandfather …..

रंज की बार – बार दरवाज़े – ए – दिल पर हुई दस्तक हैँ …..
नैना भीग गए , और मायूस चेहरे की रौनक है….

एक पल में तबाह हो गयी , ख़ुशी – ए – जिंदगी…..
अंखियों के पर्दो पर , सिलसिलेवार आपकी झलक है…….

आपका यूँ चुपचाप जग को अलविदा कह जाना …..
दिल में हमेशा के लिए रम चुकी , ये कसक है….

विश्वास नहीं हो रहा किसी के भी दिल को….
सबके गले नीचे नहीं उतरता , दाना – ए – कनक हैं…

आपके हाथों को नन्ही उंगलियों से थामा…..
काँधे पर बैठ सीखे दुनियादारी के सबक हैँ…

एक एक आब सुख गया , पंकजोम ” प्रेम “….
यहीँ थी मर्जी – ए – ख़ुदा , सबके होंठो को छू निकलने वाले शब्द ये दो टूक हैं…

दीदार – ए – रुख़ – ए – रोशन

November 13, 2015 in ग़ज़ल

उसकी यादों की बारिश से , एक एक पल है यूँ भीगा……
किया है जब से दीदार – ए – रुख़ – ए – रोशन हो गए संजीदा…..

क़दम रखा जैसे ही उसने दिल के आशियाने में….
एक – एक गम का लम्हा हो गया अलविदा ….

शुक्रिया अदा करते करते नहीं थकते मेरे अल्फ़ाज़ ….
मेरी क़िस्मत को क्या ख़ूब ख़ुदा ने हैं लिखा…..

वो मुस्कराहट की मल्लिका , जिंदगी में ले आई खुशियों की सौगात….
खुल कर मुस्कुराना भी मैंने उस अप्सरा से है सीखा….

जिंदगी के सफ़र में वो हमसफ़र ना बन सकी….
शायद किसी मज़बूरी ने उसे अपनी और था खींचा….

एक मुलाक़ात के लिए तड़प जाती थी रूह…..
ऐतबार है , नहीं हुआ ख़ुदा से कोई जफ़ा….

बहुत गहरे रंज दिए किसी अपने ने…..
लेकिन दिल उसे मान बैठा , हर रंज की दवा….

ख्वाईश थी , राह – ए – मोहब्त में उसका हाथ थाम चलने की..
लेकिन दर – ए – मोहब्त पर ” पंकज ” अकेला जा पहुँचा…

Pankaj ” prem “

क्यों तन्हा रहते हो..

November 13, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी एक बार दी है , ख़ुदा ने …

फिर क्यों तन्हा रहते हो…..

मैं हमराज़ हूँ , तेरे हर राज़ में ..

फिर राज़ की बातें , आबो से क्यों कहते हो……

 

तेरी मुस्कराहट  के दीदार का दीवाना है , ये सुख़न – वर ….

बेख़बर तुम हो , लेकिन मेरी रहती है , तेरी हर नज़र पर नज़र ……

अनजान बन नहीं समझते मेरे लफ़्जो को ….

लेकिन ग़ज़ले बड़ी ग़ौर से सुनते हो ….

 

जिंदगी एक बार दी है ख़ुदा ने..

 

जरा समझ दिल की भाषा …

बड़ा बेताब है , तुम्हें कुछ समझाने को…..

ख़ामोशी में ही सही , नज़रों का इशारा दो….

आरज़ू है इसकी , तेरी धड़कन में उतर जाने को….

अपना कहकर , ग़ैरों की तरह राह में चलते हो ..

 

जिंदगी एक बार दी है ख़ुदा ने , फिर क्यों तन्हा रहते हो….

 

मैं हर लम्हें  में , तेरा साथ मांगता हूँ , अपनी हर दुआ में ..

ख़ुदा के दर पर , कभी पैर ज़मीन पर , कभी हाथ आसमां में ….

बदलता है मौसम , लेकिन तुम क्यों बदलते हो…..

 

जिंदगी एक बार दी ख़ुदा ने , फिर क्यों तन्हा रहते हो…

 

Pankaj ” prem “

रौनक – ए – बाज़ार

November 11, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ए – ख़ुदा …..

जरा तू रौनक – ए – बाज़ार देख….

 

हर इंसान के चेहरे पर …..

मुस्कराहट का कारवाँ सिलसिलेवार देख …..

 

जरा एक निगाह , फ़लक पर डाल …..

नजारा –  ए – आतिशबाज़ी बार – बार देख …..

 

Happy Diwali ……

PANKAJ ” prem “

दीपावली

November 10, 2015 in शेर-ओ-शायरी

सुख़ , समृद्धि और ख़ुशहाली संग ,  माँ लक्ष्मी का पूजन हो …

 

अपनों की , अपनों से , अपनेपन की बढ़ती चले मिठास ….

और दूर सभी उलझन हो …

 

जब दिखे फ़लक पर , नजारा – ए – आतिशबाज़ी …..

तो हर जन – जन का , आनंदित मन हो….

 

” सोनी परिवार की और से …

आपको और आपके सभी स्नेहजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ……”

 

Pankaj Soni…..

मय में भी नशा हैं

November 10, 2015 in शेर-ओ-शायरी

मय में भी नशा है….

लेकिन उस रुख़ – ए – रोशन की ख़ूबसूरती से कम नहीं…

 

हूँ जब  आज , मुस्कुराहट के आगोश में ….

तो दिल कहे ,

अब कोई गम नहीं …

 

जिस दिन उंगलिया छोड़ दे , क़लम का साथ ….

तो समझ लेना , इस दुनिया में हम नहीं…..

ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता

November 10, 2015 in Other, हिन्दी-उर्दू कविता

 

ग़ैरों की बस्ती में , अपना भी एक घर होता..

अपने आप चल पड़ते कदम

य़ु तन्हा ना य़े सफर होता….

वक्त बिताने को आवाज देती दीवारे साथ छुटने का ना कोई  ड़र होता….

 

गैरों की बस्ती मे अपना भी एक घर होता…

 

अपना कहने वाला ख़ास अपना नही फिर भी अभिनंदन होता …

यहां अपने बना देते है पराया

वहां पराय़ो से अपना एक बंधन होता…

हर दर्द तबदील हो जाता ख़ुशी में स्वागत ही इस कदर होता…

 

काश गैंरो की बस्ती मे अपना भी एक घर होता….

 

पहन लिए अपनों ने लिबास गैरों के… अपनेपन को भुल

बन गए गुलाम पैसों के …

” अतिथि देवों भव  ” का भावार्थ कर मन से दुर …

वे भक्त हैं अपने जैसों के…

सीख़ाय़ा खुद को अपने पहचानने का हुनर होता ….

 

तब शायद गैरो की बस्ती मे अपना भी एक घर होता …..

 

जिसे अपना माना ज़िंदगी मे

उसी ने तिरस्कार किया …..

किस और राह तलाशती निगाहें

फिर ग़ैंर ने आकर हाथ थाम लिया…

अपनेपन की बैठा किश्ती मे उसने ख़ुशियों के सागर मे  उतार दिया ….

 

समझदारी की समझ से समझदार हुं लेकिन ना समझ होता …

 

” तब जाकर कहीं गैंरो की बस्ती मे अपना भी एक घर होता…”

पंकज सोनी

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