हिंदी….

September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कश्मीर की घाटियों से
ब्रम्पुत्र की नदियों में बहती है हिंदी
महाराष्ट्र के रंग और
राजस्थानी मिट्टी की खुश्बू में है हिंदी
भाषाओं की शान इस देश की पहचान बनकर
हर प्यार का इजहार करती है हिंदी

कभी लहू तो कभी उनका कफ़न बन जाऊ

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

कभी लहू तो कभी उनका कफ़न बन जाऊ
स्वतंत्र दीप से जगमगाता हुआ चमन बन जाऊ
ए आजादी तू घटा बनके बरसना
और में तेरा भीगता हुआ गगन बन जाऊ

क्यों याद दिला रहा हूँ, जो है बात पुरानी
इक अल्फाज नहीं, ये है पूरी एक कहानी
इस मिट्टी में खूं से लिपटी न जाने कई जवानी
वो पटेल आजाद लाल और सुभास तो याद नहीं तुम्हे
लेकिन ये लहराता तिरंगा है इनकी निशानी
जाओ तुम भी क्या याद करोगे
वो अमर वीर क़ुरबानी

आजादी के नाम पर
धर्म अधर्म का खेल खेलते
जिस्मो का रोज नया बाजार खोलते
वो सत्य नेता की तिजोरी में
और अहिंशा चोरो की चोरी में
फिर क्यू खुदको भारतीय बोलते

वो वीर तीर थे
कभी आग तो कभी प्यार का नीर थे
परछाई भी जिनकी लड़ा करती थी
वही तो भारत बनाने वाले पीर थे
इन्ही से हुआ ये एक देश महान
जिनको कहते हम हिंदुस्तान

लेकिन
भ्रष्ट कपट और अपराध पर करते लोग आज गुमान
आप ही बताओ कैसे कहुँ मैं
मेरा भारत महान
मेरा भारत महान

तुम

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह का पहला ख़्वाब हो तुम
जैसे कोई मेहकता गुलाब हो तुम
भरी दोपहरी का यौवन, और
शाम का ढलता शबाब हो तुम
कभी मेहक तो कभी मेहखाना हो
जैसे रात में घूंट घूंट चढ़ता शराब हो तुम
अल्फाज़ो की सुंदरता दिखनेवाली
मानो एक प्यार भरी किताब हो तुम
हुस्न की परिभाषा का दीदार
जैसे बरसात में निकलता आफ़ताब हो तुम
सामने होकर भी एक कल्पना सी हो
जो भी हो मगर लाजवाब हो तुम

तुम

March 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम जीत हो
संगीत हो
मेरा मीत हो
मेरी ही प्रीत हो
सदियों से किया जिससे इकरार
तुम वही महोब्बत की रीत हो

दिन की शुरुआत से रात की एहसास हो
दोपहर की धुप और शाम की प्यास हो
इंतजार की गेहराई और चाहत की परछाई
हर वक्त की सबसे पहली आस हो

मोहोब्बतें कैसे करू

March 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अकेली रातो से बाते कैसे करू
बिन मिले उनसे मुलाकातें कैसे करू
लोग कहते है दिन तो गुजर जाता है, राते नहीं निकलती
कौन कहे इनको, अपने अकेलेपन से मोहोब्बतें कैसे करू
वो हवा बनकर गुजरती है मेरे करीब से
अब इतने में उनसे इबादतें कैसे करू
पल भर में करवटे लेलेती है, ए हुस्न-ए-मलिका
अब तू ही बतादें तुझसे इनायतें कैसे करू

बाजार

December 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिस्म के बाजारों में
इंसानियत बिका करती है
मौजकी के आड़ में हैवानियत
की मेहफ़िले सजा करती है
दाम यहाँ शरीर का नहीं
स्वाभिमान का लगाया जाता है
इसी बाजार में न जाने कितने
रिश्तो की आग जला करती है

तू खरीद सकता है
जीत नहीं सकता
तू इज्जत बैच सकता है
फिर कमा नहीं सकता
यह बाजार ही मानवता का है जनाब
तू रिश्ते बना सकता है
पर निभा नहीं सकता

जुल्फ़े

December 2, 2019 in शेर-ओ-शायरी

इन खुली जुल्फों में न जाने
कितने राज छुपे होते है
कभी चाँद कभी रातें तो
कभी तारे फूल बनके सजे होते है
वो लट आँखों से होठो तक गुजर
जाए तो संमा बदल देती है
न जाने कितने लोगों के उस
काली रात में ख्वाब जगे होते है

इन खुली जुल्फों ने ज़माने को
प्यार का कायल बना दिया
लिखना मेरी फितरत में नही था लेकिन
आपने मौसम को कातिल और
मुझको शायर बना दिया

जुल्फ़े

December 2, 2019 in शेर-ओ-शायरी

खुली जुल्फों में न जाने
कितने राज छुपे होते है
कभी चाँद कभी रातें तो
कभी तारे फूल बनके सजे होते है
वो लट आँखों से होठो तक गुजर
जाए तो संमा बदल देती है
न जाने कितने लोगों के उस
काली रात में ख्वाब जगे होते है

प्यार

September 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम उनसे प्यार और वो बेक़रार करते रहे
कहना था कुछ और, और ही कुछ कहते रहे
वो दौर-ए-जवानी मुझे सारा मेहखना दे रही थी
लेकिन हम तो बस अपनी आँखों से ही पीते रहे

निगाहों से कभी पीला कर तो देखो
जुल्फों की रातो में किसी को सुला कर तो देखो
ज़हर, नशा और काँटे, गुलाब लगने लगेंगे
कभी मोहब्बत की राहों में आकर तो देखो

ख्याल

May 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

फूलों का रंग चुरा के उसने तुझे सजा दिया
पानी को आग लगानेवाला अंगार बना दिया
अपनी निगाहों से हवा का रुख जो मोड़ दे
उस ऊपरवाले ने ना जाने कैस तुझे बना दिया

भिखारी कौन है…

March 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह टूटे हुए घरों की कहानी है
फुटपात पर बीती जिसकी जवानी है
भीख मे बस वह इंसानियत मांगते रहते
न जाने क्यों,आँखों में उनके आशाओं का पानी है

मांग कर जिंदगी जीना किसी की लाचारी है
लूटकर खाते वह आदरणीय भ्रष्टाचारी है
कभी ऊपरवाले से कभी खुद से तो कभी जहां से मांगते
आप ही बताओ कौन नहीं यहाँ भिखारी है

यह टूटे हुए घरों की कहानी है
फुटपात पर बीती जिसकी जवानी है……….

बुझते चराग

March 22, 2019 in शेर-ओ-शायरी

बुझते चराग है हम, हवा न दो
सारा शहर जला देंगे
खुद को शेर समझने वाले, कभी
लड़कर देखो तुम्हे गीदड़ बना देंगे
है शक्ति इतनी मुझमें की, तुम कहो
तो कांटो के शहर में फूल सजा देंगे
बुझते चराग है…………

सन्नाटा

March 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात के सन्नाटा मुझसे कुछ कह रहा था
आज वो आंसू बनकर मेरी आँखों से बह रहा था
सौ तो गए थे मेरे सब चाहने वाले
बस वो ही अकेला मेरे साथ रो रहा था……..

भूल गयी

February 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी

जख़्म तो बहुत दिए तुमने, मगर मलहम लगाना भूल गयी
याद तो रोज आती थी आपको मेरी, लेकिन आँसु बहाना भूल गयी
जब दुनिया में आपके पास कोई न हो तब मुझे बुला लेना
लेकिन तब ये न कहना की तेरा नम्बर सेव करना भूल गयी

प्यार

February 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी

आँखों की खाई को तुमने बेहता समंदर बना दिया
इस प्यार को ठुकराके, मुझे आवारा भवंडर बना दिया

तेरा साथ

February 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी

साथ तो तू मेरे हर वक्त रहा करती है
हाँ …. वो बात अलग है की
पहले तुम मेरी आँखों के सामने रहा करती थी
और अब मेरी यादों के सामने रहा करती हो

याद

February 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी

आँखों के झरनो में तेरी याद बाहा करती है
पलके मूँद बस ये फ़रियाद कहा करती है
एक दिन बस मेरी जिंदगी से मिला दे
तेरे लिए ये साड़ी जवानी बयां करती है

रुके कदम….

February 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी

एक बार रुके कदम फिर चलने लगे
उनकी रूह की आग में हम पिघलने लगे
हाथ अगर होता उनका मेरे हाथ में
तो जहान सारा बदल देता
लेकिन अकेले ही गिरके हम समलने लगे
एक बार रुके कदम फिर चलने लगे ……..!!!

दिल की बातें …

February 19, 2019 in शेर-ओ-शायरी

कभी दिल से दिल मिलाकर तो देखो
उस के लिए अपने अरमान जगाकर तो देखो
जालिम आंखों से तो हर कोइ मुमुस्कुरा लेता है
लेकिन कभी मोहब्बत की राहो मे आकर तो देखो

जो बात खामोसी मे है वो बात लब्ज़ों में कहा
दिल के अरमान की खबर सबके आंखों में कहा
केह कर प्यार नहीं करते जनाब हम
हमारी यह बाते आपके दिल की किताबों में कहा

ना जाने क्यूँ हवाएँ आज मुझसे कुछ कह रही है
तुम्हारे पास होने का एक हसीं लम्हा मुझे दे रही है
वो आंखे वो होठ और वो जुल्फें बस यही कहती है
जेसे तेरे प्यार की कहानी इन वादियों में बेह रही है……

आप

February 19, 2019 in शेर-ओ-शायरी

ये झुकी हई आंखों से मानो सुनहरी शाम सी लगती हो
ये हसीन चेहरा एक खिलता गुलाब सी लगती हो
किसी की जान न ले लेना आपकी मुसकान की तलवार से
हर मेहखाना का कभी न उतरने वाला शराब सी लगती हो

वो कौन है……

February 19, 2019 in गीत

ये प्यारी मुस्कान आपकी पहचान बन जाए
खिलता चेहरा लोगो के लिए ये शराब बन जाए
ये होठ ये पलकें और ये गाल मानो मुझसे यह कह रहे हैं
की खोजा इन सब में और तू मेरा गुलाम बन जाए

ये झरने ये परिंदे और हवा के झोंके,
सब तेरे साथ चलने लगेंगे
तुझसे मेरी दोस्ती देख ये जमाने वाले
मुझसे जलने लगेंगे
बस तू कभी खफ़ा होने की बात न
करना मेरी दिल-ए-धड़कन
वरना तेरे साथ बिताए वो हसीं पल,
मेरे दिल को चीरने लगेंगे

दिल देने की हद हो तो ये दिल खोल के रख दूं
रूह रूह प्यासी है मेरी कहो तो जहां मे बयां कर दूं
मेरी दोस्ती का प्यार कबूल कर ए हुस्न-ए-मलिका
हस कर कह दो तो ये दुनिया तेरे नाम लिख दूं

मेरे गीत की वो मेहक कौन है
मुसकान से कत्ल की चहक कौन है
मेरी कलम की न जाने वह मोहब्बत है
फिर क्यूँ वह सवाल है ,कि वो कौन है ……..

भारत का कश्मीर

February 15, 2019 in शेर-ओ-शायरी

इक पूरा इंसान था ये सारा जहान
एक हाथ काट गया बंगाल
और दूसरे हाथ पाकिस्तान
बिच में रह गया मेरा भारत महान

कश्मीर पर हमला करके क्या करता है तू खुद पे गुमान
दूध के बदले जो खीर देता वही है मेरा हिंदुस्थान

Marta kishan

February 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मरता किसान

जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है
पसीने की हर एक बूँद से अनाज उगाते है
सबके मोहताज होने के बाद भी
यह किसान हम सब की भूख मिटा जाते है

सूखापन जमीं के साथ-साथ
इनके जीवन में भी आ जाता
मेघ के इंतजार में यह जवान
कभी बुढ़ा भी हो जाता
अपना स्वार्थ कभी न देखकर यह
हमारी भूख मिटाकर खुद
भूखा ही मर जाता
पानी की याद में यह अपनी नैना मूंदते है
जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है

धरती का सीना चीर यह
जीवन उगाते है
दो बैलों के बीच हमारे लिए
अपनी जिंदगी लुटाते है
हमारे में तो बस ईर्ष्या क्रोध
घृणा ही समाई है
असली इंसानियत का
रिश्ता यही निभाते है
तिनकों की तरह अपने आप को मिटाते हैं
जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है

इनकी आखों का सागर
सूखी जमीं के लिए काफी नहीं
इनकी मौत हमारी इंसानियत है
कोई रस्सी की फांसी नहीं
गृहस्थी और जीवन के कर्ज का किसान
हमारे इस जुर्म की कोई माफी नहीं
हर सुबह के सपने रात मे फिर टूटते हैं
जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है

अंतिम में बस यही लिखूंगा,
किसान को अपनी भावना की डोर बंधाओ
मरते जवान की जवानी बस आप बचाओ
किसान को मिटते देखकर भी क्यूँ करते है गुमान
अब आप ही बताओ कैसे कहूँ मैं,
मेरा भारत महान
मेरा भारत महान………..!!

कुछ बीते पलों की बात थी

February 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ बीते पलों की बात थी
उनसे हुई पहली मुलाकात थी
रुक तो गया था वह शमां
क्योंकि
झुकी हुई पलकों की वो पहली शुरुआत थी
कुछ बीते पलों की बात थी….

दीदार का वह एक हसीं आलम था
पहली बार उनके लिए दिल मेरा गुलाम था
आया तो था वहाँ पढ़ने लिखने
लेकिन….
मेरी किताबों में तो बस उसका ही नाम था
क्या बताऊं अब
यहीं तो एक प्यार कि शुरुआत थी
कुछ बीते पलों की बात थी ….

पहले तो कॉलेज जाने पर ही चीड़ सा जाया करता था
उनके मिलने के बाद तो रविवार भी जाया करता था
सोचता कि उन राहों पर कहीं न कहीं तो मिलेगी
तभी उन हवाओं के साथ किया इंतजार करता था
वो तो मेरी निगाहों की इंतजार थी
कुछ बीते पलों की बात थी…….

उन झुकतीं नजरों ने मुझे पागल बना दिया
रोज आकर मेरे सामने मुझे इक आशिक बना दिया
नादान तो था मैं मगर वो दिवानगी का दौर भी
जिसने मुझे अपनी जुल्फों का कायल बना दिया
वह दोस्ती भरी अदा भी क्या बेमिसाल थी
कुछ बीते पलों की बात थी …..

एक बार घटा फिर बरस रही थी
वही कॉलेज में खड़ी वो भीग रही थी
अपने छाते का परमान देकर उसे
दोनों भी एक छाते में कुछ सिमट से गए थे
और वह बाहर अपना हाथ भीगा रही थी
मत पूछो
वह तो हमारे प्यार से भीगी बरसात थी
कुछ बीते पलों की बात थी……

उन होठों कि मुस्कान मानो हम अपनी समझते थे
न जाने क्यो उनकी हर बातों से हम निखरते थे
दोस्ती या प्यार का रिश्ता अंजान था मगर
उनकी हर एक शरारतों से हम मचलते थे
यही तो उस जमाने की सौगात थी
कुछ बीते पलों की बात थी…….

अब कॉलेज पुरी होने का पैगाम आ गया था
जुदाई का अचानक बादल छा गया था
वह हसीं बेसुमार पल इतने जल्दी बीत गए थे
लेकिन दुर जाने का मौसम पास आ गया था
उनके साथ दिल मेरा बसंत मेलो में खेला
सावन के उन यौवन से भीगा
ना जाने कहां से पतझड़ आ गया था
दोनो की राहें यूँ अलग हो गयी
मानो इक और प्यार जुदा हो गया था

यूँ तो जिंदा है वो मेरे दिल मे कही
तभी वहीं शरारत, इबादत याद आ गयीं
इन आखों में छुपा रखा है मेने उसे
इसीलिए तो हर पल मे वो फिर याद आ गयीं
अब तो यहां
बस रोते हुए दिल कि आवाज थी
कुछ बीते पलों की बात थी……..
कुछ बीते पलों की बात थी……..

मरता किसान

February 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है
पसीने की हर एक बूँद से अनाज उगाते है
सबके मोहताज होने के बाद भी
यह किसान हम सब की भूख मिटा जाते है

सूखापन जमीं के साथ-साथ
इनके जीवन में भी आ जाता
मेघ के इंतजार में यह जवान
कभी बुढ़ा भी हो जाता
अपना स्वार्थ कभी न देखकर यह
हमारी भूख मिटाकर खुद
भूखा ही मर जाता
पानी की याद में यह अपनी नैना मूंदते है
जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है

धरती का सीना चीर यह
जीवन उगाते है
दो बैलों के बीच हमारे लिए
अपनी जिंदगी लुटाते है
हमारे में तो बस ईर्ष्या क्रोध
घृणा ही समाई है
असली इंसानियत का
रिश्ता यही निभाते है
तिनकों की तरह अपने आप को मिटाते हैं
जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है

इनकी आखों का सागर
सूखी जमीं के लिए काफी नहीं
इनकी मौत हमारी इंसानियत है
कोई रस्सी की फांसी नहीं
गृहस्थी और जीवन के कर्ज का किसान
हमारे इस जुर्म की कोई माफी नहीं
हर सुबह के सपने रात मे फिर टूटते हैं
जमीं को खोदकर अपना आसमान ढूंढते है

अंतिम में बस यही लिखूंगा,
किसान को अपनी भावना की डोर बंधाओ
मरते जवान की जवानी बस आप बचाओ
किसान को मिटते देखकर भी क्यूँ करते है गुमान
अब आप ही बताओ कैसे कहूँ मैं,
मेरा भारत महान
मेरा भारत महान………..!!

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