जज्बात

July 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिक्र ए जहन
किससे करें हम
लफ़्ज हैं दबे दिल में कहीं
शायद डर रहें हैं
बाहर निकलने से
कोई समझेगा या नहीं
क्या कहेगा कोई
इसी उधेड़बुन में
खोई रहती हूं अपने ख्यालों में
करती हूं इंतजार
उस पल का
जब जज्बात तोड़ कर निकलेंगे
जहन की दीवारों को

ख्वाहिशों के बाजार

June 29, 2020 in मुक्तक

ख्वाहिशों के बाजार में आयी हूं
कुछ खरीदने की खातिर
मगर दाम ही इतने है हर ख्वाहिश के
कि खाली हाथ ही वापस चली, बन मुसाफ़िर

हुसना – Husna

September 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लाहौर के उस
पहले जिले के
दो परगना में पहुंचे
रेशम गली के
दूजे कूचे के
चौथे मकां में पहुंचे
और कहते हैं जिसको
दूजा मुल्क उस
पाकिस्तां में पहुंचे
लिखता हूँ ख़त में
हिन्दोस्तां से
पहलू-ए हुसना पहुंचे
ओ हुसना

मैं तो हूँ बैठा
ओ हुसना मेरी
यादों पुरानी में खोया
पल-पल को गिनता
पल-पल को चुनता
बीती कहानी में खोया
पत्ते जब झड़ते
हिन्दोस्तां में
यादें तुम्हारी ये बोलें
होता उजाला हिन्दोस्तां में
बातें तुम्हारी ये बोलें
ओ हुसना मेरी
ये तो बता दो
होता है, ऐसा क्या
उस गुलिस्तां में
रहती हो नन्हीं कबूतर सी
गुमसुम जहाँ
ओ हुसना

पत्ते क्या झड़ते हैं
पाकिस्तां में वैसे ही
जैसे झड़ते यहाँ
ओ हुसना
होता उजाला क्या
वैसा ही है
जैसा होता हिन्दोस्तां यहाँ
ओ हुसना

वो हीरों के रांझे के नगमें
मुझको अब तक, आ आके सताएं
वो बुल्ले शाह की तकरीरों के
झीने झीने साये
वो ईद की ईदी
लम्बी नमाजें
सेंवैय्यों की झालर
वो दिवाली के दीये संग में
बैसाखी के बादल
होली की वो लकड़ी जिनमें
संग-संग आंच लगाई
लोहड़ी का वो धुआं जिसमें
धड़कन है सुलगाई
ओ हुसना मेरी
ये तो बता दो
लोहड़ी का धुंआ क्या
अब भी निकलता है
जैसा निकलता था
उस दौर में हाँ वहाँ
ओ हुसना

क्यों एक गुलसितां ये
बर्बाद हो रहा है
एक रंग स्याह काला
इजाद हो रहा है

ये हीरों के, रांझों के नगमे
क्या अब भी, सुने जाते है हाँ वहाँ
ओ हुसना
और
रोता है रातों में
पाकिस्तां क्या वैसे ही
जैसे हिन्दोस्तां
ओ हुसना

– पियूष मिश्रा

This Life on Earth

September 9, 2016 in English Poetry

Easter means that this life on earth
is not all there is.
Jesus went “to prepare a place for us”
in His Father’s heavenly mansions
for all eternity.
Jesus died for our sins,
paying our penalty,
so that we could be forgiven
He was resurrected, to prove
that death has no hold
on those who repent
and accept Him as Savior.
This life on earth is a prelude
to eternal joy with our Lord.
Easter is a celebration
of our eternal destiny.

– Ritika

जादूगर सर

September 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सर को कैसे याद पहाड़े ?
सर को कैसे याद गणित ?
यह सोचती है दीपाली
यही सोचता है सुमित
सर को याद पूरी भूगोल
कैसे पता कि पृथ्वी गोल ?
मोटी किताबें वे पढ़ जाते ?
हम तो थोड़े में थक जाते
तभी बोला यह गोपाल
जिसके बड़े-बड़े थे बाल
सर भी कभी तो कच्चे थे
हम जैसे ही बच्चे थे
पढ़-लिखकर सब हुआ कमाल
यूँ ही सीखे सभी सवाल
सचमुच के जादूगर हैं
इसीलिए तो वो सर हैं ।

– Ritika

शब्द

June 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ खो के लि खा…

कुछ पा के लि खा

हमने इस कलम को…

अक्सर आँसुओं में डुबो के लि खा

कभी मि ली नसीहत…

कभी वाह-वाही मि ली

हमने अपने ग़मों को…

अक्सर शब्दों में संजो के लि खा

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