हिम तरंगिणी

November 28, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहाड़ों के अंचल से
निकली है हिम तरंगिणी
काव्य की सरिता बहाने
निकली है हिम तरंगिणी।
—- 32 प्रबुद्ध कवियों के साझा काव्य संकलन हिम तरंगिणी में इसी सावन पटल पर मुलाकात हुई विद्वान कवियित्री गीता कुमारी जी और अन्य के साथ प्रकाशित हुआ हमारा साझा काव्य संकलन।

यादों में थोड़ा मिल लें

April 27, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूबसूरत सांझ
शांत होता हुआ
शहर का कोलाहल
कम होता हुआ
वायु में घुल रहा हलाहल,
चलो थोड़ी देर,
छत पर घूम लें।
आप वहां हम यहाँ,
रूहों की टेलीफोनिक तरंगों से
थोड़ा मिल लें,
अस्त-व्यस्त फटी प्रेम की शिराओं को
नेह के धागों से सिल दें।
तुम वहाँ हम यहाँ
भले ही हों,
लेकिन आओ ना
यादों में थोड़ा मिल लें।

कुमाउँनी कविता

April 27, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

किलै खिलना हौला
साल भरि में एक्कै बैर गुलाब
वन भरि कुइयाँ फुलि रौ
घर-घर गुलाब।
दिखै बेर चार दिनैकि
रंग-बिरंगी चमक,
फिर पैंली को झौ
कांडा वालो है जाँ गुलाब।
नै खिलनो त कि हुनो
खिलिगौ त की भौ
मन लगूनै में छ हिसाब।
खिली गौ छ्यो त
क्वे दिनौ रै जानो
आपना मनै कि कै जानो।
— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, (पीएचडी), चम्पावत।

मित्र मेरे

January 22, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

मित्र मेरे! जिंदगी की,
हर ख़ुशी तुझको मिले,
तेरी खुशियों से निकल
कुछ तार मुझ तक भी
जुड़े हैं, ठण्ड से सिकुड़े हुए से,
बेरहम यादें संजोये,
गाँठ बांधी हो किसी ने
संवेदनाओं के गले में,
सिर्फ सांसें ले रहा कुछ
बोल पाता हो नहीं,
बोलने की भी जहाँ
कुछ आवश्यकता हो नहीं,
बिन कहे बस सांस से
सन्देश कहता जा रहा हो ,
मित्र मेरे! जिंदगी की,
हर ख़ुशी तुझको मिले।
……………… डा. सतीश चन्द्र पाण्डेय, चम्पावत,

बूंद न डालो ठंडी

January 21, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

बूंदें न डालो ठंडी
ओ बादल!!!
ठिठुर गया तन मेरा।
नील गगन ही,
छत था मेरा,
आज उसे है तुमने घेरा,
कुहरा-कुहरा, दिन में अंधेरा,
रात हुई, संशय ने घेरा,
मिल पायेगा या न सवेरा,
संशय ने है घेरा।
ठिठुर गया तन मेरा।
बूंद न डालो ठंडी
ओ बादल,
मांगे रहम पगडंडी।

शत शत नमन

December 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्तब्ध देश नम आंखें हैं
लाल खो दिया भारत ने
इतने वीर सपूतों को
आज खो दिया भारत ने।
सबका हृदय द्रवित हो कर
देता है श्रद्धांजलि उनको
भारतमाता का बच्चा बच्चा
देता है उनको श्रद्धांजलि।
देश के सपूत उत्तराखंड के लाल CDS बिपिन रावत जी, उनकी धर्मपत्नी और समस्त शहीद सैन्य अधिकारियों को शत-शत नमन।

नेह से देख ले जो

December 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

न जाने क्या यह
सपना हकीकत है,
या हकीकत नहीं
सपना ही सपना है।
न रोक पाती हैं
अन्य कोई सीमाएं,
नेह से देख ले जो
बस वही अपना है।
दूर से दूर के भी
लोग लगे अपने से
नेह रखें मन तो
संसार सकल अपना है।

धन

November 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धन का होना
बहुत जरूरी है,
धन से ही जिंदगी की
भौतिक जरूरतें
पूरी होती हैं।
वर्तमान दौर में
धन पर सम्मान टिका है,
धनवान का सम्मान दिखा है।
जिंदगी की दौड़ है,
धन कमाने की होड़ है,
धन का क्या तोड़ है,
धन आते ही जिंदगी का
बदल जाता मोड़ है।
धन पर आज
बहुत कुछ टिका है,

गुड़

October 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुड़ पिघल गया था
मीठा सा जल हुआ,
तुमने हमारे हेतु जब
की थी जरा दुआ।
गुड़ थे हम पिघल गए थे
उस प्यार की नमी से,
कोपल बने उगे थे
पत्थर भरी जमीं से।
गुड़ की मिठास देखी
वाणी में आपके
हम तो झुलस गए थे
चाहत की आग से।

आ रही है दिवाली

October 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आ रही है दीवाली
अंधेरा दूर कर लूँ,
तन में वो हो या मन में
अंधेरा दूर कर लूँ।
जहां तम भरा हो
वहां पर
एक दीपक रख दूँ,
छोटी छोटी कमियाँ
न ढक दूँ,
वरन उन्हें दूर कर लूँ।
हृदय की गगरिया में
प्रेम भाव भर लूँ।
नफरत के अंधेरे को
दूर कर लूँ।

खूब बरसात

October 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूब बरसात हो रही है
आहट है सर्दियों की
पानी है सब तरफ
तर हो गई धरा है।
जाने कहाँ से उड़कर
आकाश में समुंदर,
पहुँचा हुआ है देखो
मन सोच यह रहा है।
कोई नहीं
बरसात हो या धूप
न उस बात की अभिलाषा
न उस बात की भूख,
कल सूरज उगेगा
निखर आयेगा
धरती का रूप।

मौन की भाषा में

October 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मौन की भाषा में लिखकर
आपको जो पंक्ति भेजी,
वो समझ पाये नहीं क्या
या रहा कुछ और कारण।
राह में जो फूल हमने
आपके स्वागत में डाले,
आपने समझे वो कंटक
या रहा कुछ औऱ कारण।
क्यों नहीं समझे बताओ
वो इशारे आप उस दिन,
या समझ कर चुप रहे थे
या रहा कुछ और कारण।

गाकर कविता कर दो सवेरा

October 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों न कही कोई कविता
बताओ, क्यों चुप हो ओ! कवि तुम।
चारों तरफ है घोर अंधेरा,
गाकर कविता कर दो सवेरा।
फैल उजाला भीतर पहुँचे
नहीं है निराशा यह मन कह दे।
सोए हुए को आज जगा दे,
आलस-निद्रा दूर भगा दे,
गाकर कविता कर दो सवेरा,
आज मिटा दो गहन अंधेरा।

कविता की रौनक लो

October 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ कविता की रौनक लो
दर्द भुला दो, प्यार बढ़ा दो,
जीवन के रंग छक लो।
भीतर भीतर जो पीड़ा हो,
पीड़ा को ढक लो।
आओ, कविता की रौनक लो।

सदा रहेगी सच की जीत

October 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सदा रहेगी
सच की जीत
हारेगा वह रावण,
जिसमें हो अन्याय भरा
छल छन्द और घमंड।
राम हमेशा लेंगे
अवतार करेंगे लीलाएं
सच को खूब सहारा देंगे,
दुष्टजनों को दण्ड।

पल में

October 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पल में काफी ताकत है
उलट-पुलट कर देता है पल,
अर्श से फर्श बता देता है,
पल में प्रलय करता है पल
पल में काफी ताकत है।
अभी ठीक सब कुछ लेकिन
पल में बिगड़ गई तस्वीर
पल में मानव की
बदल जाती है तकदीर।

युवा अब राह पा जायें

October 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

करो प्रयास कुछ ऐसा
युवा अब राह पा जायें
खड़ा सकंट है रोजी का
रोजगार पा जायें।
पढ़ाई इस तरह की हो,
पड़े मत बैठना खाली,
पढ़ाई से बढ़ें आगे
रहें ना एक भी खाली।

तसव्वुर में भी हमने

October 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तसव्वुर में भी हमने
आज तक ऐसा नहीं सोचा
नकबब्त इस कदर होगी
नजर से दूर जाओगे।
मगर जाओ भले ही दूर
लेकिन हम निराली सी
निगाहों से परस्तिश आपकी करके
बुला लेंगे स्वयं के पास
कैसे दूर जाओगे।

चुप न रहो कुछ बोलो

October 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुप न रहो कुछ बोलो
अधर के खोलो पट कुछ बोलो,
मौसम तो यह अब भी गरम है,
थोड़ा सी बस हवा ही नरम है,
मंहगाई का आज चरम है।
बोलो ना कुछ बोलो,
अधर के पट खोलो कुछ बोलो।
क्यों तुम इसे मौन पड़े हो,
बोलो ना कुछ बोलो।

प्रेम ही जीवन

October 9, 2021 in मुक्तक

मत करना वो बात कि जिससे
ठेस लगे सचमुच में,
प्रेम ही जीवन, प्रेम ही सब कुछ,
प्रेम-बोल हो मुख में।
वो होते हैं सच्चे साथी
साथ रहें जो दुख में,
जो हों दुःख में साथ उन्हें ही
साथ रखें हम सुख में।

खेल में

October 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खेल में धूल से लतपथ
हुआ तन हूँ मैं
जो हुआ गीला पसीने से
वही वसन हूँ मैं।
रम रहा छोटी खुशी में
इस तरह का मन हूँ मैं।
कम नहीं होती मुहब्बत
खुशमिजाजी मन हूँ मैं।

धूम-फिर कर वहीं आ रहा हूँ

October 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धूम-फिर कर वहीं आ रहा हूँ
आईना जिस जगह पर लगा है
मासूमियत बहुत दूर है,
पर्त क्या है वो जिसने ढका है।
स्याह नयनों के नीचे पड़ी है,
है जरूरत नहीं लाऊं काजल,
ठीक वैसा हूँ जैसा दिखा हूं,
और भीतर लगाया हूँ साँकल।

इल्म था तब उन्हें मुहब्बत का

October 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुप्तगू कर चुके हैं गुमसुम से
फिर अदा से बनाया गुलदस्ता
बड़े ही प्यार भरे जाहिल हैं,
आ गए मन में ऐसे आहिस्ता।
इल्म था तब उन्हें मुहब्बत का
जब कहीं नेह की इबादत थी,
वो बुरे थे भले थे जैसे थे,
हमें तो बस उन्हीं की आदत थी।
हो गई थी हमें खजालत तब
जब हमें घूरती निगाहें थी,
कह न पाए थे चाहते थे जो
वो सुलगती सी मन की आहें थी।

फूल सी खिल जाये मुस्कान

October 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फूल सी खिल जाये
मुस्कान
चेहरे में तनिक दिखे न थकान।
हरे-हरे पौधे, सुमन खिले हैं,
तेरे बिना सब
नीरस से हैं,
छोड़ उदासी, मन की निराशा
ला थोड़ा मुस्कान
जरा सा फूलों सी मुस्कान।
जीवन थोड़ा,
धड़कन थोड़ी,
तूने दिशा किस ओर है मोड़ी,
लौट चले आ इंसान
ला दे फिर वो ही मुस्कान।

सवेरा हुआ है

October 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाग मन
सवेरा हुआ है
गायब वो सारा
अंधेरा हुआ है,
अब भी क्यों
आलस ने
घेरा हुआ है।
जाग मन सवेरा हुआ है।
अधिक क्या कहना
सूरज की किरण
बता ही रही हैं,
सवेरा हुआ है,
जाग मन
सवेरा हुआ है।

खुशबू बिखर रही है

October 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुशबू बिखर रही है
चारों तरफ सुमन के,
वह पवन बड़ी है चंचल
आती उसे हिला के,
भंवरा भी गुनगुनाये
ऐसे समीप जाके,
जैसे बंधे हों उससे
सुन्दर स्नेह धागे।

प्यार रहे जीवन मे

October 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार रहे जीवन में
नफरत तनिक रहे नहीं मन में।
प्यार ही साँसें, प्यार ही धड़कन
प्यार बढ़े जन-जन में।
खुशियों से सब उल्लासित हों,
उमंग भरी हो तन में।
प्यार रहे जीवन में।

तुम्हें है लाख नमन प्यारे गांधी

October 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जन्म भये जब गांधी
चली थी सत्य , अहिंसा की आंधी।
जगत में नवचेतना सी ला दी।
तुम्हें है लाख नमन प्यारे गांधी।
तकली-चरखा, वदन में धोती,
खादी की धूम मचा दी।
तुन्हें है लाख नमन प्यारे गाँधी।
चली थी सत्य अहिंसा की आंधी,
जनम भये जब बापू प्यारे गाँधी।
शोषित-पीड़ित थी जब जनता,
गोरों के हाथ में देश का धन था,
तब गाँधी ने संभाला,
तुन्हें है लाख नमन प्यारे गाँधी।

कुछ कह दो ना बात

October 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ कह दो ना बात
जिससे सुबह सी लग जाये रात,
उजाला बाहर भी
भीतर भी।
रात लगे नहीं रात।
कहो ना
कुछ तो कह दो बात।
गमों को दे दो ना अब मात
हरितमय हो जाये
मन-गात,
मिलेंगी खुशियां हाथों हाथ।
कहो ना
कुछ तो कह दो बात।

कविता

September 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता सजी
चारों तरफ,
श्रृंगार करके
हर तरह का।
दर्द भी है
प्रेम भी है,
चाह भी है
आह भी।
जिंदगी कविता है
कविता ही
जिंदगी है।

देख पथिक

September 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख पथिक जिसके
विषाद से
मन गीला हो जाता हो
जिस पर माया ममता हो
जो अपनों जैसा
लगता हो,
उसे कभी भी दुख न मिले
बस उन्नति ही करता जाये
बस वह खिलता ही जाये।

आंखों ने जो देखा

September 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आंखों ने जो देखा
उस पर विश्वास करूँ या
जो तुम कहते हो उस पर
ऑंखें बन्द कर
विश्वास करूँ।
अब ऐसे ही भुला कर
बैठूँ या फिर
कुछ पाने की आस करूँ।
सच पर मैं विश्वास करूँ या
खुद पर अविश्वास करूँ।
अपने को दलदल में डालूं
या उबर नया उत्साह भरूँ
कुछ कर लूं पाने की या
ऐसे ही बस आह भरूँ।

खियांबा में खुशबू है

September 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस्बात क्या है
कि इश्राक हो गया है
खियांबा में खुशबू है
अहसास हो गया है।
गुमसुम मुहब्बत है
गिर्दाब चल रहा है
ग़मग़ुस्सार है नहीं
बस जूनून चल रहा है।
जाबित बहुत है मन
फिर भी पिघलता है
जर्ब दे वो कितना
फिर भी तो भरता है।
ताक में तसल्ली है
कभी मन हंसेगा
नक्बत विदा होगी
कभी मन खिलेगा।

गुनगुना दो कान में

September 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हो सके तो गीत मेरे
तुम वहां जाओ जहां
दर्द में हो मित्र मेरा
गुनगुना दो कान में।
बोल देना तुम ज़रा
साहस रखो, हिम्मत रखो
अब भुला दो वो भी बातें
जो असंभव हो भुलाना।

ऐसे नहीं है टूटना

September 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दर्द तो है मगर
ऐसे नहीं है टूटना
और को भी देखना है
अब नहीं है टूटना।
यदि हमारे हाथ में
बात होती, शक्ति होती
तब अलग ही बात होती।
सांस है ईश्वर के हाथों
जितनी मिली उतनी मिली
हम व्यथित होते रहे
भावना छिलती रही।
इसलिए खुद ही संभलना है
मन कड़ा अपना बना कर
ठोस भावों को बना कर
रख कदम आगे निकलना है।

श्राद्ध

September 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

श्रद्धा का श्राद्ध
करते हैं पितरों को याद
जिन्होंने जन्म दिया,
पालन पोषण किया,
जो जीवन भर हमारे लिए जूझे
उन्हें करते हैं याद,
इसीलिए कहते हैं,
श्रद्धा ही है श्राद्ध।
बना अन्न जल
उन तक पहुँचे,
यही धारणा रही है,
मगर नहीं भी पहुँचे तो
हम याद तो करेंगे
उन्हें जिन्होंने जन्म दिया
उन्हें हम याद तो करेंगे।

उनकी किरण हूँ

September 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आ गई खिड़की से
जगाने सुबह वह,
जरा सी तपिश सी
शीतल भी है वह।
बोली कि मैंने
सारे जगत में
जाना सबको
जगाना है मैंने,
दिवाकर ने भेजी
उनकी किरण हूँ,
अंधेरा हराने
निकली हूँ जग में।
ऊर्जा का संचार
करूँगी सभी में,
पत्तों में जाकर
भोजन बनूँगी।

खो से गये हैं

September 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्हें चाहता हूँ
करूँ याद हर पल
वही क्यों न जाने
नहीं याद रहते।
जिन्हें चाहता हूं
रहें पास मेरे
वही क्यों न जाते
खो से गये हैं।
मगर अपनी यादों के
बीजों को मेरे
मन में हमेशा को
बो से गये हैं।
याद करके वे पल
रो से गये हैं।

ठंडक सी है

September 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब शाम में थोड़ा
ठंडक सी है,
शीतल मधुर यह
चंदन सी है।
वसन ओढ़ने की
जरूरत बनी है,
मगर चांदनी से
मुहब्बत बनी है।
सितारों से मन की
आज ही ठनी है,
नजर झुक रही है
भौंहें तनी हैं।

बिना रोशन किये भीतर

September 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाहर सूरज है
चाँद है, सितारे हैं,
मगर भीतर स्वयं के देखने को
हमें दीपक जलाना पड़ेगा।
पवित्रता की बाती
स्नेह का दिया,
किया तो अच्छा कर किया
अन्यथा रहने दिया।
बिना रोशन किये भीतर
चमक कितनी रहे बाहर,
मगर वह कालिमा की लय
छलक आती है कुछ बाहर।

फिर फिर लुभाता है

September 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विभासव मत जलाना मन
जरा सा ठंड में रहना
मेरे मन को लुभाता है।
नजर जब लालिमा खोजे
उसे तब कालिमा रोके,
अजब का यत्न कलुषित सा
मुझे जी भर डराता है।
तपन में चैन पाना भी
नहीं सीखा पतंगे ने
मगर जलता गरम दीपक
उसे फिर फिर लुभाता है।

इंसान कहते हैं

September 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पड़े को अफ़्त अदा कर दे जो,
निराश के मन आस के भाव भर जो,
विषाद के वक्त पर हौसला दे जो,
उसे अलीम कहते हैं,
उसे इंसान कहते हैं।
आदमियत की आराईश
उसे कहते हैं,
जब वो किसी गरीब की
मदद में रहते हैं।
आसिम से आहिस्ता सभी
दूर जाते हैं,
नहीं तो इत्लाफ होकर
बिखर जाते हैं।

तरु भी नींद में हैं रजनी में

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तरु भी नींद में हैं रजनी में
पत्ता पत्ता सोया है
सुनसान हुआ संसार,
बन्द हुआ कोलाहल सारा,
सोए सब थक हार।
तारे पहरेदारी करते
टिम-टिम टार्च टिकाते,
ऐसा लगता है धरती की
रक्षा का है भार,
चैन से सो रहा संसार।

यामिनी

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

यामिनी बीत ही जाती है
चाहे कितनी ही गहरी हो
चाहे कितनी स्याह भरी हो
मगर बीत ही जाती है।
सच्चाई को दबा दे कोई
लाख यत्न कर ले
सच्चाई सच्चाई ही है
निखर ही जाती है।
कोई कितना यत्न करे
नफरत की पोटल बांधे
प्यार के आगे रेत नफरत की
बिखर ही जाती है।

कुसुम तुम खिलते हो कैसे

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुसुम खिलते हो तुम कैसे
तुम्हारी पंखुड़ियों में रंग
बताओ! भरते हैं कैसे।
कौन है ऐसा चित्रकार
या कारीगर रंगों का,
कौन है इतना भाव समझता
विलग-विलग रंगों का।
कुछ पंखुड़ियां अलग रंग की
कुछ पराग हैं अलग तरह के
उनमें उड़ते भंवर-पतंगे
अलग-अलग ढंगों के।
खुशबू अलग-अलग भरता है
कारीगर रंगों का,
करता है श्रृंगार तुम्हारे
चेहरे के भावों का।

राख मली तन में

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमने राख मली तन में
वैरागी जीवन अपनाया
ईश रखा मन में।
धरम ध्वजा लहराई गाया
खूब फिरे जग में।
माया-मोह किनारे फेंका
राख मली तन में।
कुछ भी कहे जमाना तुमसे
त्याग किया तुमने।
एक बार मिला था जीवन
त्याग किया तुमने।
कमी नहीं खोजे अवलेखा
भजन किया तुमने।

मत बहना पवमान

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच का हो जायेगा भान
अब तुम मत बहना पवमान।
जहाँ-तहाँ खुशबू बिखराई
पाया फिर अपमान।
थोड़ा लाभ हुआ व्यापारी
आया है अभिमान।
कहाँ फँसाये, कहाँ रुलाये
नहीं भरोसा मान।
थाली खाली, पेट अधूरा
बिलख रहे हैं प्राण।
अब तुम मत बहना पवमान
सच का हो जायेगा भान।

कुंडी खोलो ना

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुंडी खोलो ना दिल की
नई सुबह है खिली सुहानी
चिड़िया भी कहती,
भजन करो ईश्वर का मन से
क्यों जिह्वा सिल दी।
दिनकर की किरणों ने आकर
शक्ति नई भर दी।
कुंडी खोलो ना दिल की

पत्थर को दे जान

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उठ जा कविता लिख इंसान
कुछ तो सृजन कर धरती पर,
पत्थर को दे जान,
जितना अर्जित करता है तू
उसमें से दे दान।
और की सत्ता से मत डर तू
रब की सत्ता मान।
विष के कड़वे बोल सुना मत
बांट ले मीठा पान।

अवनि तुम माता हो सबकी

September 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अवनि तुम माता हो सबकी
तुम जीवन टिक पाया है,
तुम पर जीवन हो पाया है,
लाखों-अरबों प्राणी तुम पर
करते हैं माँ बसेरा।
जीवन के नयनों का उनके
होता यहीं सवेरा।
भोजन, आश्रय सब कुछ देती
करती खूब व्यवस्था,
सूक्ष्म कीटों से हाथी तक
सबकी खूब व्यवस्था,
अवनि तुम माता हो सबकी।

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