कलम से

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार के चक्कर में पड़
मेरी तरह प्यारे,
अरे तू भी वियोगी कवि
न बन जाना कहीं प्यारे।
जरूरत है नए उत्साह की
कविता लिखे कोई,
इस कमी को कलम से आज,
पूरी कर मेरे प्यारे।

— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत

विपरीत

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भरी दोपहरी की धूप में
जिस तरह सूखने की बजाय
गीला हो जाता है पसीने से
बदन,
ठीक उसी तरह
भरी बरसात में
हरा-भरा न होकर
सुख गया है मन।

लिखना रात भर कविता

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी भी हाल में तुझसे
नहीं पीछे रहूंगी मैं,
तू लिखना रात भर कविता,
सुबह जग कर पढूंगी मैं।
तेरी हर एक कविता पर
हंसूगी और और रोऊँगी,
लिखेगा जो भी बातें तू
मनन करती रहूँगी मैं।

प्यार के चक्कर मे

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार के चक्कर में
मत लिख सैकड़ों कविता,
ये सब तो पूर्व में
कह कर गए हैं सब वियोगी कवि।
तब भी पसीजा क्या कभी
दिल बेवफाओं का।
कलम मत घिस वियोगों पर
नए योगों की रचना कर।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत,

मन चंचल

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे अपना बनाने में
इस कदर देर मत तू,
न जाने मन मेरा चंचल
किसी से और जुड़ जाये।
मुझे बस लाभ दिखता है
इसलिए देर मत कर अब
न जाने कब पलट जाऊं
न जाने कब मुकर जाऊं।

मुक्तक

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लिखोगी प्यार का रोना
न जाने और कब तक तुम
मुझे फुरसत कहाँ है अब
बच्चों को पढ़ाना है।

याद

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाय की चुस्कियों पर ही
तुम्हारी याद आती है,
बाकी तो व्यस्तता है,
जो मुझे दिन भर सताती है।
जिस दिन अधिक शक्कर पड़ी हो
खास कर उस दिन,
तुम्हारी याद आती है,
दिन भर रुलाती है।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत

गम

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गम भी क्या चीज है
जो इतनी कविताएं लिखवाता है मुझसे
किसी की वेबफाई पर
मुझे कवि या
कवि सा बना देता है।
नित नया दर्द उभर कर,
मेरी पंक्तियों में शामिल हो जाता है।
भीतर का दर्द
बाहर उगलवाता है।

सूरज

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भोर हो रही है
धीरे-धीरे
सूरज की धमक बढ़ रही है,
थोड़ा किनारे हो जा
बादल के टुकड़े,
आज पूरी तरह चमकने दे उसे,
तू इक्कट्ठा कर आज
अपने सारे अंश
कल बरस लेना पूरी शिद्दत से,
आज उजाला होने दे।

कवि

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तलक मानव को
मानव मात्र से,
भेद की नजरों से देखूं तब तलक।
जब तलक समभाव मेरे में न हो,
तब तलक कविता कहूँ तो
झूठ है।
कर्म मेरा नीच है तो
कवि नहीं,
दृष्टि मेरी नीच है तो
कवि नहीं।
जो लिखूं कविता,
मुझे हक भी नहीं।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय

मिलने में है देरी

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू मुस्काया
मैं रो दी थी,
तू घर आया
मैं बाहर थी,
उस जाने ऐसा क्या था
राहों में मिले अचानक हम,
मैं शर्मायी
तेरी होकर,
तू मुस्काया मेरा होकर
तबसे तू मेरा
मैं तेरी,
फिर भी मिलने में
है देरी,

मुक्तक

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रो चुकी प्यार का रोना मैं
अब अपनी राह बदल लूँगी ,
बेवकूफी में तुझसे प्यार किया,
धोखे के बाद अकल लूँगी,
—— डॉ सतीश पांडेय

मुक्तक

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह धरा रोगमुक्त हो जाए,
पीड़ित मानव राहत पाए
जल्दी से जल्दी दवा मिले
कुछ नया उपाय निकल आये,

—— डॉ सतीश पांडेय

मीत मेरे

July 12, 2020 in गीत

सावन की बूंदें मन में हलचल कर रहीं
तुम कहाँ हो मीत मेरे आओ ना,
मत रहो यूँ दूर मुझसे आओ ना,
मैं मनोहर ऋतु में आखें भर रही,
बाढ़ मत आने दो मेरे नैन में
मत बहाओ आस मेरी, आओ ना,
इस भरी बरसात में बेचैन हूँ
तुम कहाँ हो मीत मेरे आओ ना,

अपराधै का बाटा: कुमाऊँनी कविता

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपराधै का बाटा
जिन हिट्या नंतिनौ,
अपराधै को बाटो
बर्बाद करि दे लो।
गरीबै का छोरा
गैंगों में जिन घुस्या,
गैंगों में फँसि बेर
वापसी नै हुनी।
जिन फंस्या, जिन फंस्या
जन फंस्या नंतिनौ,
अपराधै का जाल
जन फंस्या नंतिनौ।
कमि खाया गमि खाया
मिहनत करि लिया।
मिहनतै कमाई,
कमाई भै इज़ा।
मिहनतै की रोटी
कमाया नंतिनौ
अपराधै का बाटा
जिन हिट्या नंतिनौ।
पोरै की छ बात
उस ठुलो अपराधी
मारि बै गिराछ
कि रै छ बात।
जत्ती लै छ्या वीका
पछेट नंतीनौं,
सब्बौ का बिहाल
हैग्यान नंतिनौ।
आई ल गै यो बात
सुनि लिया नंतिनौ
अपराधै का बाटा,
जन हिट्या नंतिनौ।

—- डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड

दाग

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम कहती हो तो मान लेता हूँ
कि
दाग अच्छे हैं।
किन्तु सच यह है कि
दाग अच्छे होते नहीं हैं।
एक बार लग जाने के बाद
कहाँ धुल पाते हैं दाग
जब दाग लग ही गया
तब फिर
कौन मानता है बेदाग।

—- डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत

कविता

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर्फ तुकबंदी नहीं कविता कोई
यह तो ह्रदय से उपजता बोल है,
दर्द का साक्षात अनुभव है यही
प्रेम, करुणा, स्नेह मिश्रित घोल है,

डॉ सतीश पांडेय, चम्पावत
उत्तराखंड

प्रेम

July 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस भरी बरसात में सब धुल गई
बाहरी पर्तें मेरे व्यवहार की,
अब छुपाऊँ किस तरह से झुर्रियां
जो मेरी असली उमर दर्शा रही।

खोट है मेरी नियत में आज भी
आप करते हो भरोसा इस कदर
सच समझते हो मेरे हर झूठ को
प्रेम करते हो भला क्यों इस तरह।

— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत
उत्तराखंड

चित्र

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

साँझ हो रही है,
ऊंचे पहाड़ों के शिखर
बादलों से आलिंगन कर रहे हैं।
साफ साफ कुछ नहीं दिख रहा है,
परस्पर प्रेम है
या
बस दिखावा है।
जो भी है
कुछ तो घटित हो रहा है वास्तव में।
अंधेरा होगा तभी सुबह फिर उजाला होगा।
अब
रात भर चोटियों में
फुहारें बरसनी ही हैं।
फुहारें वहाँ बरसेंगी
मन हमारा रोमांचित है।
लेकिन चोटियों पर खड़े वे पेड़
शान्त क्यों हैं,
जिन्हें सबसे पहले बादलों का स्पर्श करना है।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

आवरण

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आवरण मेरा बहुत ही भव्य है,
आचरण में दाग धब्बे पड़ गए,
जम गई अंतः पटल में कालिमा
भाहरी दिखने की है यह लालिमा।
– डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत
उत्तराखंड।

कुमाऊँनी : पर्वतीय कविता

July 11, 2020 in कुमाऊँनी

झम झमा बरखा लागी
ऐ गौ छ चुंमास
डाना काना छाई रौ छ
हरिया प्रकाश।
त्वै बिना यो मेरो मन
नै लिनो सुपास,
घर ऐ जा मेरा सुवा
लागिगौ उदास।
पाणि का एक्केक ट्वॉप्पा

लय

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

फ्रिज में रखी शब्जी की तरह
धीरे धीरे खराब हो रही है
मेरी लय,
कल कहीं बेसुरा न हो जाऊं
पढ़ ले जल्दी से उन पंक्तियों को
जो मैंने
तेरे लिए लिखी हैं।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत
उत्तराखंड

बस मेरा अधिकार हो

July 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देह में अभिमान की गर्मी पड़ी
आसुंओं के स्रोत सूखे पड़ गये
नैन की झिलमिल सुहानी पुतलियां
आग के ओले गिराती रह गई।
बाजुओं की शक्ति से कमजोर की
कुछ मदद करने की चाहत खो गई
हर खुशी पर बस मेरा अधिकार हो
लूट लेने की सी आदत हो गई।

— डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत उत्तराखंड

मुक्तक

July 10, 2020 in मुक्तक

संवेदनाएं मर चुकी हैं आज सब
किस तरह कविता कहूं तुम ही कहो
सब दिखावा है मेरे व्यवहार में
किस तरह कविता कहूं तुम ही कहो.
डॉ. सतीश पांडेय, चम्पावत
उत्तराखंड

बेटी बचाओ

July 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भ्रूण हत्या पाप है
तू पाप का भागी न बन
बाप है बेटी बचा ले
बधिक अपराधी न बन

– डॉ0 सतीश पाण्डेय,
चम्पावत, उत्तराखंड।

घोड़ा दबा दे सिपाही

July 5, 2020 in Poetry on Picture Contest

कविता – घोड़ा दबा दे सिपाही

तीखी नजर से सिपाही
आज ऐसा निशाना लगा दे,
मार दे देश के दुश्मनों को
उनका नामोनिशां तू मिटा दे।
तूने सीमा में डटकर हमेशा
दुश्मनों के छुड़ाये हैं छक्के,
आज गलवान घाटी में तूने
दुश्मनों को लगाये हैं मुक्के।
तेरे मुक्के से दुश्मन पिटेगा
तेरी गोली से दुश्मन मरेगा,
हिन्द की जय हो जय हो हमेशा
तेरी बन्दूक का स्वर कहेगा।
तेरी नजर लक्ष्य पर है
सामने फौज दुश्मन खड़ी है,
अब तू घोड़ा दबा दे सिपाही
देश की आस तुझ पर टिकी है।
मार गोली उन्हें अब उड़ा दे
देश के दुश्मनों को उड़ा दे,
तू निडर वीर भारत का बेटा
अब सबक दुश्मनों को सिखा दे।
—- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय,
पीएचडी, राजकीय फार्मा0 चम्पावत
उत्तराखंड। मो0 9536370020

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