नारी तुम ही नवदुर्गा हो

April 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम ही दुर्गा
नव दुर्गा तुम
नारी तुम ही नवदुर्गा हो।
जननी हो तुम जन्म की दाता।
सब कुछ तुम ही हो माता।
तुम से ही संसार बना है,
दया, प्रेम, चाहत, स्नेह,
करुणा और दुलार बना है।
तुम से ही संसार बना है।
ममता की उत्पत्ति तुम ही से
प्राण रस उत्पन्न तुम ही से,
बचपन, प्रौढ़, युवावस्था में
जीवन आधार टिका तुम ही से।
आज पवित्र नवरात्र पर्व में
पूजा पाने की अधिकारी हो
माँ नव दुर्गा के रूप स्वरूप में
नारी तुम स्थापित हो।

सुना दे मन मीत एक कविता (पद छन्द)

April 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुना दे मन मीत एक कविता
जिससे हो झंकार हृदय में, और बहे सुख सरिता।
दूरी रख ले उलझन मुझसे, ऐसी कह दे कविता।
भर दे थोड़ा सा आकर्षण, मुझे बना दे ललिता।
बन जायें खुशियाँ साजन सी, मैं बन जाऊँ वनिता।
कानों में हो मधुर मधुर धुन, ऐसी सुना दे कविता।
*******
काव्यस्वरूप – पद रूप में।

क्या बात करती हो

April 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह सुबह में
इतना चहचहाती हो,
क्या बात करती हो
बताओ ना,
कहीं इंसान की बातों
की कोई बात करती हो,
या मिलने-बिछुड़ने का कोई
जज्बात रखती हो।
बताओ ना।
भूख की प्यास की
आवास की
रोजगार पाने की
बताओ ना कि
क्या क्या बात करती हो।
मुहब्बत की मिलन की
या वफ़ा-बेवफा की
हानि की या नफा की
खुशी की या खफा की,
बताओ ना।
क्या बात करती हो।

कभी जिन्दगी हर्षपूर्ण है

April 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक गुलाब
एक सी पत्ती, काँटे, डंठल एक समान
फिर कौन रंग भरता है इनमें,
कहाँ है रंगों की खान।
लाल-सफेद, पीले, गुलाबी
कितने सारे हैं गुलाब,
इतने सारे रंग व खुशबू
मन विस्मित सा है जनाब।
जीवन इस गुलाब जैसा है
तरह तरह के रंग
कभी जिन्दगी हर्षपूर्ण है
कभी खूब बेढंग।
कभी सद्कर्मों की खुशबू
कभी गलत कार्य के काँटे
ईश्वर ने मानव को फल सब
कर्मों के अनुसार ही बांटे।
जितना हो सके मुझे अपने
कदमों को सद पर रखना है
क्योंकि मुझे ही कर्मो का फल
अपनी रसना में चखना है।

वे बेजुबान

April 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नवजात बच्चे
दूध पी रहे थे,
भूख उसे भी लगी थी,
दूध पिलाने में
भूख भी बहुत लगती है
दूध पिलाने में।
उर जल रहा था
आमाशय के तेजाब से,
बच्चों को छोटी सी
झाड़ीनुमा गुफा में छिपाकर
चल पड़ी वह घास चरने,
पलकें झपका कर
मासूमों से कह गई
जल्द आऊँगी।
शिकारी को पता था,
कब जानवर चरने निकलते हैं,
ऐसा ही हुआ,
थोड़ी देर में लगा
शिकारी का निशाना,
गोली लगी, गिर पड़ी वह हिरणी।
दो बच्चे झाड़ियों में
उसका इंतजार करते रह गए
धीरे धीरे सूख गए।
जाते जाते
इंसानियत को वे बेजुबान
पता नहीं क्या कह गए।

सुबह सुबह सूरज की किरणें

April 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह सुबह सूरज की किरणें
लगती हैं कितनी मनभावन,
नई लालिमा युक्त चमक है,
लगती हैं निखरी सी पावन।
खुश होकर चिड़िया बोली है
उठो सखी सुबह हो ली है,
एक झाँकती है बाहर को
दूजी ने आँखें खोली हैं।
छोटे-छोटे पौधों भी तो
देख रहे गर्दन ऊँची कर
आओ पास आ जाओ किरणों
बोल रहे हैं उचक उचक कर।
सूरजमुखी उस ओर मुड़ रही
बन्द कली इस वक्त खिल रही,
ओस बून्द को आत्मसात कर
किरणें धरती के गले मिल रहीं।

खूबसूरत है हिमालय पर्वत

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ है बात निराली सी
मेरे भारत की बात अद्भुत है।
खूबसूरत है हिमालय पर्वत,
जहाँ से मीठी हवा आती है,
ऐसी लगती है जैसे हो शर्बत।
गंगा जमुना व नर्मदा जैसी
बह रही हैं पवित्र नदियां यहां
ये मेरा देश इतना पावन है,
देवताओं का वास भी है यहाँ।
एक छोर में खड़े पर्वत
दूसरे छोर में समुंदर हैं,
एक से एक पुरातन हैं भवन
साथ में गांव बड़े सुन्दर हैं।
सबमें है प्रेमभावना सी भरी
एकजुटता निराली ताकत है,
मेरे भारत की शान अद्भुत है,
मेरे भारत में खूब ताकत है।

ममता

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ममता किसने भर दी मन में
गाय को बछड़े से ममता है
माँ को बेटे से।
ये ममता किसने भर दी मन में।
ममता जिसने पैदा की वह
ईश्वर सबसे ऊपर है,
ममता का गुण सारे गुण से
ऊपर है बस ऊपर है।
पैदा होता है जब बच्चा
होता है असहाय,
निर्भर पूरी तौर वो माँ पर
ममता रखे ख्याल
ये ममता किसने भरी मन में।
थोड़ा सा भी बालक रोये
विचलित हो जाती है,
कब है भूख प्यास कब है
सब कुछ समझ जाती है।
ये ममता किसने भरी मन में।
ममता काफी कुछ जीवन में
प्यार मुहब्बत देती है,
ममता ही जीवन को देखो
नई दिशाएं देती है।
ममता किसने भर दी मन में।

नाच रहा मन मोर क्यों

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नाच रहा मन मोर क्यों,
आज बिना बरसात,
है यह आहट प्रेम की,
या है कोई बात।
या है कोई बात,
उमड़ क्यों नेह रहा है,
साजन पर है गीत
तभी यह गेय रहा है।
कहे सतीश कभी न
आये कोई आंच
प्रेमी करता रहे
मन ही मन प्यारा नाच।

हरियाली और खुशहाली रहे

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा भारत मेरा देश
उन्नति को बढ़े,
हर तरफ हरियाली
और खुशहाली रहे।
दूध की नदियां बहें
खेत सोना उगल दें,
मेघ जल वर्षा करें,
वृद्धजन हर्षा करें,
युवा मंजिल को पायें
हर घड़ी मुस्कुराएं,
धर्म पथ पर चलें सब
कर्म पथ पर चलें सब।
न भूखा कोई सोये
सभी के तन वसन हों
न टूटें दिल किसी के
सभी के सब मगन हों।
पेड़ फल से लदे हों
स्रोत जल से भरें हों
नैन हों झील जैसे
नील जल से भरे हों।
मेरा भारत मेरा देश
उन्नति को बढ़े,
हर तरफ हरियाली
और खुशहाली रहे।

अच्छा ही होने लगता है

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पवन मनोहर झौंका लाई
साथ में उसके खुशबू आई,
सद्कर्मों का अच्छा ही तो
फल मिलता है मेरे भाई।
अच्छी सोच रखो मन में तो
अच्छा ही होने लगता है,
बिना स्वार्थ के रब की सेवा
होती है निश्चित फलदाई।
मन में स्वार्थ रहे तो कुछ भी
करने का फायदा ही क्या है
अपना पेट सभी भरते हैं,
पशुता का कायदा ही क्या है।

बालपन मोबाईल में

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खो गए खेल
आज बचपन के,
रम गया बालपन मोबाइल में,
आँख का सूख रहा पानी है
टकटकी आज है मोबाइल में।
वक्त है ही नहीं बचा जिससे
संस्कारों को सीख लें बच्चे,
कुछ रहा बोझ गृहकार्यों का
बाकी सब खो गया मोबाईल में।
न रहा सीखना बड़ों से कुछ
न रही चाह सीखने की अब
न रहा शिष्य गुरु का नाता अब
गुरु तो अब भर गया मोबाईल में।
खेल क्रिकेट के कब्बडी के
हो रहे खेल सब मोबाईल में,
तनाव बढ़ रहा मोबाईल में
शरीर घट रहा मोबाईल में।
छीन बचपन के खेलकूद सभी
खा रहा है दिमाग मोबाईल
जानते हैं कि एक घुन है यह
फिर भी हैं डूबते मोबाईल में।

प्रेम भावना बढ़े

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐसी बातें क्यों करें, जो देती हों पीड़,
सबसे अच्छा बोल दें, अपनों की हो भीड़।
अपनों की हो भीड़, सभी अपने हो जायें,
बेगानापन छोड़, सभी अपने हो जायें।
कहे लेखनी छोड़, चलो सब ऐसी वैसी,
प्रेम भावना बढ़े, बात कर लो अब ऐसी।

सब ओर खुशी छा जाये

April 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब ओर खुशी छा जाये
दुख की छाया पड़े न किसी में।
मन मानव का होता है कोमल
आशा होती है मन में,
आशा टूटे कभी न किसी की,
दिल टूटे न कभी भी,
इच्छा आधी रहे न किसी की।
इच्छा ऐसी रहे न किसी में
जिससे चैन हो छिनता,
पूरा हो प्रयत्न पाने का
भीतर रहे न भीतर चिंता।
भीतर चिन्ता खा देती है
बाहर है संघर्ष कड़ा
अतः मनोबल रख कर मन में
हो जा मानव आज खड़ा।

नाश, वासना छोड़ तुझे

April 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओ नवोदित पीढ़ी
मेरे भारत की,
उठ जा तू धूम मचा दे
हर क्षेत्र में हर विधा में
भारत को मान दिला दे,
तू है वह पौध जिसमें
कल के फल लगने हैं,
तूने ही राष्ट्र सजाना है
तूने ही नाम बनाना है।
पुरखों ने जो मार्ग दिया
या उन्नति की जो दिशा बनाई,
तूने उसको आत्मसात कर
थोड़ा सा कुछ नया रूप दे
आगे बढ़ते जाना है।
भारत का मान बढ़ाना है।
नशा, वासना छोड़ तुझे
ज्ञानी-विज्ञानी बनना है,
अच्छे लोगों की संगति अपना।
अच्छा तुझको बनना है।

अपने अपने कर्मक्षेत्र में

April 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नफरत केवल खून सुखाता
प्यार उजाला देता है।
मेहनत का परिणाम अंततः
हमें निवाला देता है।
दूजे से ईर्ष्या रखने से
नहीं किसी का भला हुआ,
अपने ही संघर्ष से साथी
सबका अपना भला हुआ।
आमंत्रण देता कीटों को
मधु भर पुष्प खिला हुआ
ले जाओ मकरंद मधुर रस
अपनी किस्मत लिखा हुआ।
लेकिन उड़ने का प्रयास तो
उनको ही करना होगा
पाने को मकरंद मधुर
मधुमक्खी को उड़ना होगा।
प्यार मुहब्बत दया भाव से
हम सबको रहना होगा,
अपने अपने कर्मक्षेत्र में
तत्पर रहना ही होगा।

कोमल आभा बिखर रही है ( चौपाई छन्द)

April 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चमक रही है नयी सुबह
सूरज की किरणें फैली हैं,
बन्द रात भर थी जो आंखें,
उनमें नई उमंग खिली है।
गमलों के पौधों में देखो,
नई ताजगी निखर रही है,
फूलों में कलियों में प्यारी
कोमल आभा बिखर रही है।
आँखें मलते गुड़िया आयी,
सुप्रभात कहने को सब से,
शुभाशीष लेकर वह सबका
प्रार्थना करती है रब से।
बिजली के तारों में बैठी
चिड़ियाओं की बातचीत सुन,
ऐसा लगता है दिन भर के
रोजगार की है उधेड़बुन।
राही थे आराम कर रहे
अपनी-अपनी शालाओं में
वे सब फिर से निकल चुके हैं
सुबह सुबह की वेलाओं में।
काव्यगत सौंदर्य – चौपाई छन्द में प्रकृति वर्णन का छोटा सा प्रयास।

कोरोना को दूर भगा लो

April 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

*कोरोना को दूर भगा लो*
*********************
मन का भय सब दूर करो
वैक्सीन लगा लो आप सभी
कोरोना को दूर भगा लो
वैक्सीन लगा लो आप सभी।
डरो नहीं कुछ दर्द नहीं है,
नहीं कोई डरने की बात,
रोग प्रतिरोधकता बढ़कर
होगी सब अच्छी ही बात।
आसपास में सबसे कह दो
पैंतालीस से ऊपर हैं जो
लगवा लो जी टीका खुद को
कोरोना को दूर भगा दो।
सभी व्यवस्थाएं पक्की हैं
स्वास्थ्य सेवा जुटी हुई है,
आओ आप लगा लो टीका
कोरोना को दूर भगा लो।
रचयिता—
—— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, जेआरएफ-नेट, पीएचडी,

एक बूँद भी टपक न पाई

April 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्टैंड पोस्ट का नल बेचारा
खड़ा रहा बस खड़ा रहा,
एक बूंद भी टपक न पाई,
ऐसा सूखा पड़ा रहा।
प्यासों के खाली बर्तन जब
देखे उसने रोना चाहा,
मगर कहाँ से आते आँसू,
ऐसा सूखा पड़ा रहा।
पिछली बारिश के मौसम में
ठेकेदार ने खड़ा किया था,
तब पानी था स्रोतों में भी,
इस कारण से खड़ा किया था,
जैसे ही बीती बरसातें
क्या करता बस खड़ा रहा,
एक बूंद भी टपक न पाई
आशा में बस खड़ा रहा।
परेशान है टोंटी उसकी
आते-जाते घुमा रहे हैं,
यह भी तो बेकार लगा है
ऐसी बातें सुना रहे हैं।
कुछ करना बस नहीं है उसके
बस उलझन में खड़ा रहा है,
कभी तो टपकेगा जल मुझसे
ऐसी आशा लगा रहा है।

मानव की पहचान

April 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँख का जल एक है, मानव की पहचान,
अगर न हो संवेदना, फिर कैसा इंसान।
फिर कैसा इंसान, जानवर भी रोते हैं,
मानव में तो दया भाव के गुण होते हैं।
कहे कलम विचरते, हैं भू में प्राणी लाख,
दया की मूरत है, प्यारी मानव की आंख।

मत खोना विश्वास

April 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खो जाये सब कुछ मगर, मत खोना विश्वास,
गया भरोसा बात का, होता है परिहास।
होता है परिहास, सभी हल्का कहते हैं,
बिना पूर्ण विश्वास सभी दूरी रखते हैं।
कहे लेखनी बीज, भरोसे का तू अब बो,
उगा भरोसा आज, भरोसा अपना मत खो।

पानी बरसा ही नहीं (कुंडलिया)

April 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पानी बरसा ही नहीं, सूख चुके हैं मूल,
अब कैसे जीवन चले, हिय में उठते शूल।
हिय में उठते शूल, जंग पानी को लेकर,
जनता में छिड़ रही, पड़े बर्तन को लेकर।
कहे सतीश अब है, हमको प्रकृति बचानी।
पेड़ लगाओ ताकि, मेघ बरसाये पानी।

वृक्ष

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दो पत्ती के रूप में,
उगता है नन्हा बीज,
धीरे-धीरे एक दिन,
विशाल वृक्ष बनता है।
जो सैकड़ों प्राणियों का
बसेरा बनता है।
छांव देता है,
प्राणवायु देता है।
फल देता है,
फूल देता है,
बरसात बुलाता है,
सावन में
झूले झुलाता है।
जोड़े मिलाता है।
वृक्ष लेता कुछ नहीं
बस देता है देता है।

दो रूप न दिख पाऊँ

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथी की तरह
दो दांत मत देना मुझे प्रभो
कि बाहर अलग, भीतर अलग।
दो रूप न दिख पाऊँ।
दो राह न चल पाऊँ।
जैसा भी दिखूँ
एक दिखूँ,
नेक रहूँ।
न किसी से ठेस लूँ,
न किसी को ठेस दूँ।
बिंदास गति में बहती
नदी सा
चलता रहूँ।
हों अच्छे काम मुझसे,
उल्टा न चलूँ
सुल्टा रहूँ,
धूप हो या बरसात हो,
उगता रहूँ,
फूल बनकर
बगीचे में खिलता रहूँ।
महक बिखेरता रहूँ,
प्रेम सहेजता रहूँ।

चले चल मस्त राही मन

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चले चल मस्त राही मन
नहीं काम है घबराना।
जहाँ मिलती चुनौती हो
उसी पथ में चले जाना।
जहाँ हो प्रेम का डेरा
वहाँ थोड़ा सा सुस्ताना
जहाँ हरि भक्ति पाये तू
जरा उस ओर रम जाना।
न करना तू गलत कुछ भी
न कहना तू गलत कुछ भी
जहां संतोष सच्चा हो,
वहां डेरा जमा लेना।
न कोई डर न कोई भय
न दबना है न पिसना है,
अगर डरना है मेरे मन
तुझे ईश्वर से डरना चाहिए।

उसका बनना चाहिए

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जितना खुद से हो सके
सेवा करनी चाहिए,
कष्ट झेलते मानव की
सेवा करनी चाहिए।
इसी बात के लिए हमें
मानव बोला जाता है,
मानव हैं, मानवता का
परिचय देना चाहिए।
स्याह पड़े असहाय की
आशा बनना चाहिए,
जिसका कोई हो नहीं
उसका बनना चाहिए।
बन जाएं कितने बड़े
उड़ें हवा के संग,
लेकिन हमको मूल से
मतलब रखना चाहिए।
दुःखी आंख के आंसुओं को
सोखे जो साथ,
वैसा ही कमजोर का
साथ निभाना चाहिए।

स्नेह बढ़कर दीजिये

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्नेह कोई दे अगर तो
स्नेह बढ़कर दीजिये
जंग को ललकार दे तो
जंग पथ पर कूदिये।
सीधा सरल रहना है तब तक
जब तलक समझे कोई
अन्यथा चालाकियों में
मन कड़ा सा कीजिये।
गर कोई सम्मान दे तो
आप दुगुना दीजिये,
गर कोई अपमान दे तो
याद रब को कीजिये।
गर कोई सहयोग दे तो
आप भी कुछ कीजिये,
हो उपेक्षा भाव जिस पथ
त्याग वह पथ दीजिये।
देखिए उस ओर मत
मुड़कर जहाँ हो दर्द भारी,
ना भले की ना बुरे की
चाह ही तज दीजिये।

कोरोना बढ़ने लगा

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोरोना बढ़ने लगा,
रह सचेत इंसान,
मास्क लगाकर रखना है
कहना मेरा मान।
कहना मेरा मान,
बचा खुद के जीवन को,
जागरूकता से ही,
रक्षित कर जीवन को।
आज वक्त की यही जरूरत
सजग रहो,
बचाव करो ना,
रोको यह संक्रमण
तुम रोको कोरोना।

गुस्सा तो कमजोर का गुण(कुंडलिया छन्द)

April 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुस्सा तो कमजोर का, गुण होता है मान,
गुस्से से इंसान का, कम होता सम्मान।
कम होता सम्मान, कभी गुस्सा मत करना,
बढ़ते जाना और, स्वयं मन स्थिर रखना।
कहे लेखनी कहा, बुजुर्गों ने यह किस्सा,
वही सफल है आज, छोड़ दे जो मन गुस्सा।
———- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय,

यश-अपयश में एक समान

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सबसे गहरी यह बात है मन
तूने स्थिर रहना होगा,
कभी कहीं, कभी कहीं,
ऐसे न तुझे बहना होगा।
एक लीक एक धारा,
एक मार्ग हो साधन एक
एक नजर रख मंजिल पर
ऐसे तुझको बढ़ना होगा।
न क्रोध, न दर्द, न उलझन हो,
उत्साह सजा सा हरदम हो,
रह तू एक समान सदा मन,
लाभ अधिक हो या कम हो।
यश-अपयश में एक समान
गाली हो या हो गुणगान,
कभी न विचलित हो तू मन,
पथ रोशन हो या फिर तम हो।

प्रेम को बाँट लूँगा मैं

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नख नुकीले काट लूँगा मैं
प्रेम को बाँट लूँगा मैं
दूर कर के बुराई सब
भलाई छाँट लूँगा मैं।
मगर जो सत्य पथ है वह
जकड़ रखना पड़ेगा ना,
हाथ में लठ साफ सा
रखना पड़ेगा ना,
कि कोई जानवर बनकर
न नोचे सत कदम मेरे,
मुझे अपना सहारा एक तो
रखना पड़ेगा ना।
किसी से बोल दिल का एक तो
कहना पड़ेगा ना,
मुझे अपनों का अपना भी
कभी रहना पड़ेगा ना।
जरा सा मुस्कुरा दे
ओ मेरे हम दम प्रीतम तू
मुझे है नेह तुझसे यह मुझे
कहना पड़ेगा ना।

सदा मस्तक रहे ऊँचा

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उठो जागो उठो जागो
करो इस मुल्क को रोशन
जगा लो देश का यौवन,
लगा दो आज निज तन मन।
सदा मस्तक रहे ऊंचा,
नहीं हो देखना नीचा,
हमारा देश यह भारत,
रहे ऊंचा सदा ऊंचा।
अहित कुछ भी न कर पायें
हमारा देश के दुश्मन
उठा लें अब खड़क को हम
मसल दें दुश्मनों को हम।
करें प्रयास सारे मिल,
बुराई दूर कर दें सब,
हर तरफ हो सुहाना कल,
सुहाना कल सुहाने पल।

आस नवरूप में बुलानी है

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमें तो रोशनी की बात ही उठानी है,
जहाँ हो दर्द वहां पर दवा लगानी है।
छोड़ भीतर की गुनगुनाहट को,
बात अब जोश से सुनानी है।
छोड़ मन की समस्त टूटन को
आस नवरूप में बुलानी है।
लेखनी प्रतिबद्ध रखनी है,
फर्ज की बात अब निभानी है।
धूल कर हर तरह की दुविधा को
दे हवा दूर को उड़ानी है।
हो गये जो निराश जीवन में
उनमें आशा नई जगानी है।
घड़ी-पलों में बीतता है समय
घड़ी न एक भी गँवानी है।

भूख तक अन्न पहुंचाना होगा

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भूखे तक अन्न पहुंचाना होगा
गरीब, असहाय, अनाथों को
खोज खोज कर अपनाना होगा,
भेदभाव की बातों को दफनाना होगा,
मनुष्य हैं हम मनुष्यता को
अपनाना होगा।
यदि अंधेरे का भीषण जंगल हो,
न कोई रोशनी का साधन हो,
तब वहीं पर उठा के सूखी घास
पत्थरों को रगड़ना होगा।
निरीह की मदद को मन
मचलना होगा।
कर्मपथ निकलना होगा।
गिर गिर के संभलना होगा।
झूठ से रोज उलझना होगा,
भूख तक अन्न पहुंचाना होगा,
कमजोर को अपनाना होगा।

हिरण सा मन बना लूँ

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जुबान से मेरी
किसी का दिल न दुखे
न कभी लेखनी यह,
ठेस के भाव लिखे।
न निशाना हो मेरा
कहीं पर व्यक्तिगत सा
न कोई बात बोलूं
दिखूँ जो व्यक्तिगत सा।
चाह इतनी रखूं कि
दिखे जो अनगिनत सी,
भूल जाऊँ वो टूटन
जो उपज थी विगत की।
हिरण सा मन बना लूँ
दिखे चंचल सा बाहर
मगर भीतर कलेजा
शेर का अब लगा लूँ।
धीर-गंभीर बैठूँ
नहीं विचलित कहीं पर,
कदम रौखड़ जमीं
आँख होंगी नमी पर।
भटक जाऊँ अगर तो
वहां पहुँचूं भटकर
जहाँ मन ईश मन्दिर
खड़ा बिंदास डटकर।
लिखूं वो सब मुझे जो
ले चले प्रेम पथ पर,
मिटा दूँ सब गलत वह
उगे जो द्वेष पथ पर।

सद न छोड़ कहती है

April 7, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विचार ही तो हैं जो
व्यक्तित्व लिखते हैं मेरा,
सदविचार उत्साहित कर
बाग सींचते हैं मेरा।
सकारात्मकता मुझे
आशान्वित कर,
चाह को मेरी
पुष्पित कर पल्वित कर,
एक लय देती है,
प्रेममय करती है।
मगर कभी कभी
नकारात्मकता
तपन दे कर
मुरझा सी देती है,
राही की राह
अवरुद्ध करती है।
ऐसे समय में
हिम्मत से काम लेकर
छोड़ कर वो तम की राह
सद की तरफ बढ़ना
जरूरी हो जाता है,
नीति यही कहती है,
सद न छोड़ कहती है।

जीवन की मधुर बातों में

April 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुनगुनाते गीत मेरे
जीवन से जुड़े लफ़्ज़ों में
बुजुर्गों की दुआओं में,
प्रेम की निगाहों में ।
ममता के अश्कों में,
उमड़ते भावों में
भर रहे घावों में
टूटती चाहों में
दर्द में आहों में।
निकलते बोल मेरे
जीवन की मधुर बातों में
नेह भरे नातों में
मीठी मुलाकातों में
बीत गई यादों में,
गुनगुनाते रहे
गीत मेरे होंठो में
बिक रहे नोटों
बड़ों में छोटों में
दिल में लगी चोटों में,
निकलते बोल मेरे
ईश तुम सुन लेना
और सत पथ देना।

खुद पर रख विश्वास

April 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मगन हुआ मन आज है, उछल रहा उत्साह,
जीवन जी लूँ खुश रहूँ, खुद पर रख विश्वास।
खुद पर रख विश्वास, बढ़ूँ, प्रसन्न रहूँ मन,
जो दे ईश उसी में हो संतोष मेरा धन।
कहे लेखनी सत्य, भरा विस्तार गगन,
इसीलिए तो हुआ, आज मन खूब मगन।

सच की ही नकल होती है

April 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धन की बातों से बड़ी
मन की बात होती है,
तन की बातों से बड़ी
मन की बात होती है।
गरीब आंख में
कुछ और बात हो या न हो
उनकी आंखों में मगर
ईश्वर की चमक होती है।
बो दिये बीज के जैसी ही
फसल होती है,
बिम्ब जैसा भी रहे
चीज असल होती है।
हमारी बात पर
करना नहीं यकीन साथी
क्योंकि हर बात बस
सच की ही नकल होती है।
जब कभी चाहते हैं
जग जाएं
तब निरी आँख क्यों
जगते हुए भी सोती है।

धन्य है किसान तू

April 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धन्य है किसान तू
जो उगाता अन्न है,
भाव है जो दान का
उसमें तू ही सम्पन्न है।
खोद कर माटी
डाल कर के बीज उसमें
तूने उगाया, खिलाया
तू तो सचमुच धन्य है।
रात दिन जी-तोड़ मेहनत
खाद, पानी, धूप, बारिश
इन सभी में रम गया तू,
कर्तव्य पथ पर जम गया तू,
तूने उगाया हमने खाया,
भूख को अपनी मिटाया,
जी गए मेहनत से तेरी
जी का सहारा है दिलाया।
धन्य है किसान तू
जो उगाता अन्न है,
भाव है जो दान का
उसमें तू ही सम्पन्न है।

प्रेम भावों को लूटा दूँ

April 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जी जला दूँ गीत गाकर
फूंक डालूँ स्वर जलाकर
भेदभावों को मिटा दूँ,
प्रेम भावों को लुटा दूँ।
आँसुओं को सब सुखा दूँ,
सत्य पर नजरें झुका दूँ,
भावनाओं में न बह कर,
लेखनी अपनी उठा लूँ।
ठेस पाऊँ सौ जगह से,
धर्म पथ की ही वजह से,
पर अडिग चलता रहूँ,
भाव निज लिखता रहूँ।
शांति हो कोलाहलों में
लेखनी हो सांकलों में
हो मुखर कहता रहूँ मैं
बात सच लिखता रहूँ मैं।

यदि हो अमावस चाँद दो( मधुमालती छंद)

April 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ चलो बिंदास बन
निज राह को नवगीत दो,
हो उलझनें जिस राह में
उस राह को भी गीत दो।
कर बांध मुट्ठी बांध लो
यदि हो अमावस चाँद दो,
रात कर दो दोपहर तुम
सबको उजाला बाँट दो।
असहाय की कर लो मदद
तुम शेर को भी माँद दो।
यदि हों कदम गंदी जगह
खुद को स्वयं से डांट दो।

उठ तू जगा विवेक (कुंडलिया)

April 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

माफी तो मजबूत का, गुण होता है नेक,
कमजोरों की मदद को, उठ तू जगा विवेक।
उठ तू जगा विवेक, दिखा मत नाड़ी का बल,
यह बल हो कमजोर, तुझे फिर रौंद न दे कल।
कहे लेखनी समय, समय की बातें साथी,
किसी को दो माफी, किसी से मांगो माफी।

मेहनत-मंजिल

April 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मनुष्य सोचता है
मंजिल दिखे तो ,
तब मैं मेहनत करूँ।
मंजिल सोचती है
मेहनत करे तो
उसे झलक दे सकूँ।
ऐसे में जिसने
कर्मपथ को अपना
कदम है बढ़ाया,
उसी ने हमेशा
मंजिल को पाया।
जिसने दिखाया
आलस्य खुद में
उसने स्वयं का
पथ भटका पाया।
जिसने निगाहों को
शिखर पर टिकाया
उसने स्वयं को
मंजिल में पाया।
जिसने भी मन अपना
भटका दिया,
उसने स्वयं को
अटका दिया।
कल के लिए काम
लटका दिया
उसने स्वयं को
झटका दिया।

कमी बता देना

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बुरी आदत मेरी
नजरअंदाज मत करना
मुझे बता देना।
सच में गर मित्र हो,
सुधार करने को
मुझे बता देना।
गीत कोई तुम्हें
लगें कर्कश मेरे,
भाव मेरे कहीं पर
दुखाएँ दिल तेरा गर,
मुझे बता देना।
बिना बताये
भान हो पाना,
नहीं सम्भव स्वयं
स्वयं को जाना
नहीं मुमकिन स्वयं।
तुम मुझे देखकर
कमी बता देना,
सुधार करने को
कमी बता देना।

वो शक्ति दे

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दूर कर देना
बुरी आदत मेरी मेरे मौला,
किसी को दर्द न दूँ
बल्कि उत्साह दूँ मेरे मौला।
बह रहा हो
हताशा की
नदी में गर कोई,
उसे उबार लूँ
वो शक्ति दे मेरे मौला।
डूबते को नजरअंदाज
कर पाऊँ नहीं,
मदद कर लूँ
बिना उसके मैं रह पाऊँ नहीं,
वेदना दूर करने में
रहूँ रत रात दिन,
इस तरह सार्थक सी
भक्ति दे मेरे मौला।
दूर कर देना
बुरी आदत मेरी मेरे मौला,
किसी को दर्द न दूँ
बल्कि उत्साह दूँ मेरे मौला।

नेकी के वस्त्रों से

April 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऊपर वाला
बिना वस्त्रों के भेजता है,
जन्म के वक्त निःवस्त्र
भेजता है।
ताकि आप ढक सको
नेकी के वस्त्रों से
अपना तन,
प्रेम से आच्छादित कर सको
अपना मन।
नेकी जरूरी है,
नेकी से ही
सार्थक होता है जीवन।
नेकी करने को
आपके सामने है
विस्तृत भूमि
और खुला आसमान,
मानो खुद को
धरती पर
केवल एक मेहमान
नेकी करो
और अपना बना लो
धरती और आसमान।

सच्ची दिशाओं में मोड़ो

April 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहना सरल होता है
निभाना कठिन,
अगर ठान लो तो
नहीं कुछ कठिन।
केवल कहो मत
कर्म करते रहो
रुको मत कहीं पर
चलते रहो।
किसी का बुरा मत
सोचो कभी भी,
इज्जत बराबर
करो तुम सभी की।
टूटे को जोड़ो,
किसी को न तोड़ो,
जिन्दगी को सच्ची
दिशाओं में मोड़ो।
निगाहों में पानी
भावों में नरमी,
रख लो, रहो खुश
निराशा को छोड़ो।

आशा जगाते रहूँ

April 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गीत लिखते रहूँ
मैं सुनाते रहूँ,
सो गए को जगाते रहूँ।
गर उठें भाव टूटन के मन में
बन रबर मैं मिटाते रहूँ।
निराशा हटाते रहूँ,
आशा जगाते रहूँ,
प्यार भावना को जगा
मैं मुहब्बत लुटाते रहूँ।
झकझोर कर आदमी को
आदमियत बताते रहूँ,
हो रही हो गलत बात तो
अंगुली उठाते रहूँ।
गीत लिखते रहूँ
मैं सुनाते रहूँ,
सो गए को जगाते रहूँ।
गर उठें भाव टूटन के मन में
बन रबर मैं मिटाते रहूँ।

मित्र साथ रखिये

April 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुगंध के लिए
इत्र पास रखिये
कठिन समय के लिए
मित्र पास रखिये।
विपत्ति में हौसला रखिये,
हँसी-मजाक का भी
शौक सा रखिये।
दुखों को आप हल्के में रखिये
अन्यथा रोज सकते में रहिए।
ईश दरबार में
झुकते रहिए,
छोड़ चिंताएं सभी
काम करते रहिए।

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