सभ्यता पर दाग है

May 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भेड़िए से सब तरफ
फैले हुए हैं आज भी
हैं लगाये टकटकी
इज्जत मिटाने दूसरे की।
वासना अपनी
जहर सी वे उगलते हैं,
राह चलती जिन्दगी को
वे निगलते हैं।
पापियों के पाप पर
अब लगानी आग है
पापियों का पाप
मानव सभ्यता पर दाग है।
कील ठोंको उन कुकर्मी
भेड़ियों के हाथ में
सौंप दो जनता के हाथों
सूली चढ़ा दो साथ में।
न्याय में देरी न हो
कर लो त्वरित अब कार्यवाही,
मत दबो दुष्टों के आगे
सब करेंगे वाहवाही।

मत हो निराश

May 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हो सकता है,
मेहनत से बहुत कुछ
हो सकता है।
संभावनाएं होती हैं,
हर किसी बात की
कुछ न कुछ संभावनाएं
होती ही हैं।
एक आशा की किरण
पासा पलट देती है,
मंजिल पर सच्ची नजर
किस्मत बदल देती है।
आज समस्या यदि है
कल सरलता भी होगी
ठोस बर्फ में कल
तरलता भी होगी।
आज बीज है
कल पौध भी उगेगी
परसों पेड़ भी उगेगा
एक दिन फल भी लगेगा।
बंजर को खोद ले
खाद-पानी डाल
कल खुद देखना
मेहनत का कमाल।
आज हीनता है
कल होगा मालामाल
बस घेर न पाए तुझे
निराशा का जाल।
हर चीज में
संभावनाएं तलाश,
युक्ति लगाकर चल
मत हो निराश।

रोड़ी-रेत-सीमेंट का अनुपात

April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो मिस्त्री के साथ
काम करने वाला मजदूर,
कहना मानने को है मजबूर,
ईंट लपका दे,
मसाला फेंट दे,
थोड़ा गीला बना,
थोड़ा सख्त बना,
चल टेक लेकर आ,
सरिया मोड़,
टूटी हुई बल्ली को जोड़,
इधर आ उधर छोड़
ये टेड़ा है इसे तोड़।
ईंट की हर मजबूती
जानता है वह
सीमेंट के सैट होने का
वक्त समझता वह,
कभी जुड़ता है
कभी बिखरता है वह।
रोड़ी-रेत-सीमेंट का अनुपात,
जानता है वह,
ठोस बनने से जुड़ी
हर बात जानता है वह,
लेकिन बन नहीं पता
पेट की खातिर हर बात
मानता है वह।
सीमेंट से सने हाथ
पसीने से भीगा तन
कर्मठ सा व्यक्तित्व
कोमल सा मन।
लंच के समय
पानी पी लेता है,
सुबह के आधे पेट नाश्ते से
दिनभर जी लेता है।
मिस्त्री का अस्त्र है वह
इमारत बनाने का शस्त्र है वह।
मेहनत की पहचान है वह
एक कर्मठ इंसान वह।

जीवन श्लेष युक्त कविता है

April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन श्लेष युक्त कविता है
इसको सुलझाते-सुलझाते
सारी उम्र बीत जाती है
लेकिन सुलझ नहीं पाती है।
अर्थ, रहस्य, लक्ष्य क्या इसका
है किस हेतु बना यह
या केवल है स्वप्न देखने
मिटने हेतु बना यह।
हँसना-गाना खुशी मनाना
कभी है रोना-धोना,
कभी काटना फसल स्वयं की
कभी है फिर से बोना।
चक्र चला दिन हुआ कभी तो
कभी रात फिर होना,
कभी पाप के मैल में रमना
कभी नदी में धोना।
आज नहीं तो कल सुख होगा
इसी आस में रहना,
सुख आने तक चला-चली में
बिन जाने चल देना
कल भोगूँगा सोच सोच कर
धन संचय कर लेना
लेकिन उसको भोग न पाना
बिन भोगे चल देना।
जीवन श्लेष युक्त कविता है
इसको सुलझाते-सुलझाते
सारी उम्र बीत जाती है
लेकिन सुलझ नहीं पाती है।
——- डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

नाटक के किरदार अनेकों

April 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नाटक के किरदार
अनेकों रूप-रंग के हैं
अलग अलग मुखौटे पहने
अलग ढंग के हैं।
जीवन में मिल जाते हैं
हम भी घुल मिल जाते हैं,
कभी पहचान कर लेते हैं
कभी धोखा खा जाते हैं।
कभी गिराने का
कभी मिटाने का
कभी हिलाने का भीतर तक
मौका पा जाते हैं।
आखों में लाकर नमी सी,
मन में आस जगाते हैं,
बाहर से ठंडाई सी ला
भीतर आगे लगाते हैं।
संपदा और धन के मद में
बौरा कर चलते हैं,
निर्धन की निर्जीव समझते
मद में ही रहते हैं।
खुद को मानवता का सेवक
कहते नहीं थकते हैं,
लेकिन मानवता को
पीड़ा देते रहते हैं।

अभ्यास कीजिये

April 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पानी है यदि सफलता
अभ्यास कीजिये,
अपने हुनर का तुम निरंतर
अभ्यास कीजिये।
व्यवहार में कमी हो कहीं
अहसास कीजिये
कमियां सुधारने का,
अभ्यास कीजिये।
आदत है बोलने की
तो सच बोलिये,
जिह्वा में सच समाये
अभ्यास कीजिये।
करनी है जिद तो आप
कुछ बनने की कीजिये
गिरने की जिद नहीं हो
अभ्यास कीजिये।
अपने में मुग्ध हो तो
होते ही जाईये
कमियां दिखें स्वयं की
अभ्यास कीजिये।
निंदा की बात करना
व्यवहार में अगर हो
तो छूट जाए वह सब
अभ्यास कीजिये।

प्रतिकार करना है

April 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोना नहीं है तुम्हें
प्रतिकार करना है,
बुरी नजर से देख पाये नहीं
कभी कोई ,
तुम्हें बन दुर्गा, महाकाली
दुष्ट दल को मसल कर रखना है।
तुम्हारी राह तब तक
है नहीं महफूज जब तक
खुद के भीतर
जगा चंडी जगा काली
नहीं मर्दन करोगी।
तुम्हारी निरीह बोली
नहीं कोई सुनेगा
जब तलक नहीं तुम गर्जन करोगी।
दया का, धरम का
लोप सा हो गया है,
निर्लज्जता की व्याप्ति है सब तरफ,
संवेदना में जम गई है धूल की परत।
वासना में विक्षिप्त कर रहे हैं
नजरों से प्रहार,
निकाल ले चंडी बन तलवार
रोना नहीं है करना है गलत का प्रतिकार।

जुटाना होगा साहस

April 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हवा की दिशा में
भले ही सब बहें
मगर तू फैसला
खुद की हिम्मत से करना।
हो अगर पंखों में ताकत,
और पाने का जज्बा,
तब तेरा निश्चित होगा,
मन की मंजिल में कब्जा।
हवा इस ओर होगी,
भले तूफान होगा,
मगर उस ओर कोई
गर परेशान होगा,
तुझे तूफान को
काट कर जाना होगा,
मदद करने उसे
तुझे भिड़ जाना होगा।
जुटाना होगा साहस
जुटाना होगा आत्मबल,
तू हिम्मत से हवा के विपरीत भी
जीत लेगा कल।

फूल बन जाना है

April 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ठकराये गर कोई
तो पत्थर बन जाना है,
ताकि नुकसान न कर पाये,
सम्मान दे कोई तो
फूल बन जाना है
जो प्रेम की सुगंध लुटाये।
प्रेम के बदले
प्रेम होना ही चाहिए
नफरत की राहों से
किनारा होना ही चाहिए।
प्रेम का बीज
बोना ही चाहिए।
भूख लगने पर बच्चे को
रोना ही चाहिए।
गलत का साथ
छोड़ना ही चाहिए।
अच्छे से रिश्ता
जोड़ना ही चाहिए।
टेबल फैन को
अपनी ओर मोड़ना ही चाहिए
खुद का पसीना खुद में
सोखना ही चाहिए,
कोई गलत दिशा में हो तो
उसे रोकना ही चाहिए।

हद को लाँघिये

April 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ नया इतिहास रचना है
तो हद को लाँघिये
अन्यथा रेखा के भीतर,
इंच में कद नापिये।
दूसरे की औऱ अपनी
कीजिये तुलना नहीं,
तुम गलत के सामने
गलती से भी झुकना नहीं।
लिंग से और जाति से
खींची गई रेखा मिटाकर
सब बढ़ें आगे सभी को
खूब अवसर दीजिये।
गर्व का पीकर हलाहल
क्यों दसानन सा बनें
दूसरों की तोड़ रेखा
मान भी मत कीजिये।
तोड़ कर सब रूढ़ियाँ जो
रोकती हैं उन्नयन को,
भेदभावों को मिटाकर,
कुछ नया सा कीजिये।

विदाई

April 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नाजों से पाली बिटिया
के विवाह का अवसर
विदाई का पल,
वह रोक नहीं सका
अपने आँसू।
दो आँसू क्या निकले,
भभक भभक कर रोने लगा,
याद आने लगे
बिटिया के बचपन के
पल,
कितना पापा पप्पा करती थी।
आज दुल्हन बन
चली अपने घर।
देखता रह गया वह राह।

खूब आनन्द लीजिये

April 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब भी खुशियों के पल आयें
खूब आनन्द लीजिये,
जिन्दगी की खूबसूरती का
खूब आनन्द लीजिये।
जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है,
जूझना अपना काम है,
लेकिन कर्म का भी
मिलता दाम है।
मगर कर्म के बाद भी
न मिल पाए फल
तब भी न होइये निराश,
छोटी छोटी बातों पर
कीजिये ख़ुशियों का अहसास,
जब खुशी आई
तब नहीं नाचे,
तो कब नाचोगे
दुख भुलाना होगा,
खुशी खोजनी होगी
बाकी दुःख सुख की बातें तो
अब तक भोगी हैं,
आगे भी भोगनी होंगी।

कड़वा भी पीजिये

April 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी-कभी
हमारी बात पर भी गौर कीजिए,
मीठे के साथ- साथ में
कड़वा भी पीजिये।
अंगूर, सेब, आम सब
आम बात है,
पंचरत्न नीम का भी
स्वाद लीजिये।
सूखा पड़े न वक्ष पर
अश्कों से सींचिये,
सही गलत के बीच में
रेखाएं खींचिये।
मीठे में व्याधियां हैं
कड़वे में है दवाई
कड़वे ने आज तक
कई व्याधियां मिटाई।
कड़वे से नफ़रतें हैं
मीठे से प्यार जग को
रक्षक है तन का कड़वा
यह भान है न जग को।
कड़वे वचन भले ही
लगते बुरे हमें हैं,
लेकिन सही दिशाएं
देते वही हमें हैं।
कभी-कभी
हमारी बात पर भी गौर कीजिए,
मीठे के साथ- साथ में
कड़वा भी पीजिये।

एक दिन सब ठीक होगा देखना

April 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कल परसों
कभी तो पायेंगे
कुछ नई आशा की
किरणें दोस्तों।
कब तलक भय
का रहेगा राज यह
कब तलक फैली रहेगी वेदना।
कब तलक होगा
रुदन चारों तरफ
कब तलक साँसों के
संकट से घिरी,
इस तरह बिखरी रहेगी वेदना।
एक दिन निकलेगा
सूरज वैद्य बन,
एक दिन हर देगा सारी वेदना,
तब तलक साँसें
बचाना यत्न कर,
एक दिन सब ठीक होगा देखना।

न घड़ी एक भी गँवानी है

April 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नींद पलकों में भरी
स्वप्न आंखों में सजे
आज आलस्य त्याग
और कल मिलेंगे मजे।
आज है काली निशा
तारे तक खो गए हैं
ठोस चट्टान भी
देख यह रो गए हैं।
ये हवा चल रही है,
मगर है दूषित सी
श्वास लेना है कठिन
आस है अपूरित सी।
आस पूरित हो
खूब मेहनत कर,
न घड़ी एक भी गँवानी है।
है कठिन यह समय
मगर तूने
राह मंजिल की
अपनी पानी है।

अर्थ का महत्व है

April 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अर्थ का महत्व है
शब्द तो शब्द है,
बिना अर्थ के शब्द
निरर्थक है।
अर्थ कुछ भी
लगाया जा सकता है,
निश्चित अर्थ
या निर्मित अर्थ।
चेहरे के भाव का अर्थ
मूँछों में ताव का अर्थ
मझधार में नाव का अर्थ
आ रहे चाव का अर्थ
बस शब्द के
सार्थक होने की शर्त,
शिखर हो या गर्त,
मगर बात का
कुछ न कुछ हो अर्थ,
पाप और पुण्य की
सच और झूठ की,
दान औऱ लूट की
शब्दावली का अर्थ
अपनी अपनी रुचि के
अनुसार लगता सा,
प्रस्फुटित होता रहता है।
अर्थ है तब शब्द है
या शब्द से अर्थ है,
शब्द अर्थ का समन्वय
जिन्दगी की शर्त है।

भविष्य को आवाज

April 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कूड़े के ढेर में
खोजने में लगे थे
नन्हें नन्हें हाथ,
तन्मयता के साथ,
जरूरत की चीजें,
दे रहे थे सामाजिक
जीवन को,
सच्ची सीखें।
पूछा तो बोले
उनके घरों से
निकला हुआ यह कूड़ा है
मगर हमारे लिए
कूड़ा नहीं
इस आशा से जुड़ा है
कि इसमें कुछ होगा,
जो मदद करेगा जीने में,
भूख है, इसलिये
खोजना है इंतज़ाम
क्या पता उनका फेंका हुआ
आ जाये हमारे काम।
प्लास्टिक की बोलतें
बेचकर
एक गुड़िया खरीदी है
पिछली बार,
एक थैली तो ऐसी थी
जिसमें परौठे थे चार।
एक चाबी वाला घोड़ा था
घोड़ा ठीक था लेकिन
चाबी टूटी थी,
मगर मेरी किस्मत रूठी थी
वो दूसरे बच्चे को मिल गया,
उसका चेहरा खिल गया।
मैं भी ढूंढ रहा हूँ
यह टूटी फूँकनी मिली है
उसे फूंक रहा हूँ,
सीटी बजाकर
भविष्य को आवाज दे रहा हूँ।
अपनी इच्छा की पूर्ति को
संघर्ष का आगाज कर रहा हूँ,
आज कीचड़ में सना हूँ
कल कमल बन खिलूँगा
एक दिन आपसे
इंसान बन मिलूँगा।

टूटन में भी टूट मत(छन्दबद्ध)

April 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना करना आज तू, उम्मीदें मत छोड़,
टूटन में भी टूट मत, ले आ नूतन मोड़,
ले आ नूतन मोड़, स्वयं के जीवन मे तू,
नहीं हताशा रखूं, ठान ले अब मन में तू,
कहे लेखनी लगे, आग अब घी हो जितना,
खूब हौसला रहे, ताप उग जाये इतना

रखना मन में हिम्मत

April 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्थिति कैसी भी आये
मगर तू रखना मन में हिम्मत।
हिम्मत से ही जीत मिलेगी,
हारेगी कठिनाई।
कभी घड़ी
कठिन आ जाये,
समझ परीक्षा आई।
भय मत करना
आये चाहे
कैसी भी कठिनाई।
तुझे लगेगा हार गया हूँ
मूर्छा मन में छाई,
तब देना छींटे उमंग के
भागेगी कठिनाई।
जिसने भी संघर्ष किया है,
जीत उसी ने पाई,
जो पहले ही हार गया हो
वो क्या जीते भाई।
हार नहीं हो
शब्दकोश में,
जीत मंत्र ले साध,
क्या होगा कैसा होगा
यह नहीं सोच तू बात।
अंतिम सांस बची हो जब तक
आस न छोड़ना भाई,
ईश्वर मदद करेगा तेरी,
होगी सब भरपाई।
आज रात है
कल दिन होगा,
भागेगी कठिनाई,
तेरी हिम्मत बढ़े रे मानव
तब यह कविता गाई,
सार्थक गीत बना दे मेरा
हिम्मत रख ले भाई।

मनुज अब सुमिरन करता है

April 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

श्रीराम हरो पीड़ा
मनुज अब सुमिरन करता है।
जहां तहाँ फैली महामारी,
दुखी हुई प्रजा यह सारी,
दूर करो रजनी अंधियारी,
सुमिरन करता है,
मनुज अब सुमिरन करता है।
संकट से घिर गए हैं सारे
तुम न उबारो तो
कौन उबारे,
मानव जाति पड़ी विपदा में,
सुमिरन करता है
मनुज अब सुमिरन करता है।
फैल गया सब ओर रोग है
एक में फैला कई में फैला
रोको अब इस संक्रमण को
सुमिरन करता है,
मनुज अब सुमिरन करता है।
श्वास को तरसा
वायु थम रही,
दम घुटता रह गया मनुज का,
ऐसे में एक आस बने हो,
सुमिरन करता है
मनुज अब सुमिरन करता है।
कवि की कलम शारदा बसती
लेकर आश्रय उनका,
माँ के चरणों में वंदन कर
सुमिरन करता है,
मनुज अब सुमिरन करता है।
कहना सुनना कठिन हुआ है
एक ही अस्त्र बची दुआ है,
आज बता दो
कौन दवा है,
सुमिरन करता है
मनुज अब सुमिरन करता है,
श्रीराम हरो पीड़ा
मनुज अब सुमिरन करता है।
—– डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय,चम्पावत, उत्तराखंड

हर सको दर्द दूजे का

April 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भीड़ के बीच में
ख्याल खुद का रखो,
हर सको दर्द दूजे का
नुस्खा रखो।
वेदना हो भले
दिल के भीतर भरी
मगर होंठ में आप
मुस्कां रखो।
यह न अहसास हो
दूसरे को कभी
आपका दिल
गमों से भरा है बहुत,
आपको देखकर
सबको ऊर्जा मिले,
आपको देखकर
नव प्रेरणा मिले।
दर्द आने न देना
नयन बूँद तक,
उसको भीतर सूखा दो
उड़ा दो कहीं,
जिन्दगी है गिने चार
दिन की यहाँ,
चार दिन को गँवाना
गमों में नहीं।
भीड़ के बीच में
ख्याल खुद का रखो,
हर सको दर्द दूजे का
नुस्खा रखो।

कुदरत की छवि

April 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

थोड़ा निहारने दो
कुदरत की छवि मुझे तुम
तुम भी निहार लो ना
इस वक्त भूलो सब गम।
सूरज निकल रहा है
सब ओर लालिमा है,
कलरव में उडगनों के
प्यारी सी मधुरिमा है।
चारों तरफ है शुचिता
सब साफ दिख रहा है,
ठंडी पवन का झौंका
नवगीत लिख रहा है।
मज्जन किये से पर्वत
उन रजकणों से ऐसे
चमके हुए हैं देखो,
मोती भरा हो जैसे।
फूलों ने रात भर में
भर कर शहद स्वयं में
भँवरे बुलाने जैसे
संदेश भेजा वन में।
भेजी सुंगध वन में
भेजी उमंग मन में
शोभा सुबह की ऐसे
उल्लास लाई मन में।

उन्हें हम शिक्षक कहते हैं

April 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंधेरी राह जीवन की
हमारी रोशन करते हैं,
हमें जो ज्ञान देते हैं
उन्हें हम शिक्षक कहते हैं।
दिशा देते हैं जीवन को
करा कर बोध अक्षर का
नयन में ज्योति देते हैं
उन्हें हम शिक्षक कहते हैं।
बिना शिक्षा के जीवन में
नहीं कोई सफलता है,
हमें शिक्षित बनाते हैं
उन्हें हम शिक्षक कहते हैं।
हमें सदमार्ग देने को
जिन्हें ईश्वर ने भेजा है,
फरिश्ते से हैं सच में वे
जिन्हें हम शिक्षक कहते हैं।
हमें मानसिक व सामाजिक
बुलन्दी की तरफ ले जा
हमारा कल सजाते हैं
उन्हें हम शिक्षक कहते हैं।
नहीं लेते कभी कुछ वे
वरन देते बहुत कुछ हैं
हमें आगे बढ़ाते हैं
उन्हें हम शिक्षक कहते हैं।
हमें करते प्रेरित हैं
हमारा कल बनाते हैं,
हमें आगे बढ़ाते हैं,
उन्हें हम शिक्षक कहते हैं।

चिपकाता है पोस्टर

April 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर बार चिपकाता है
वह पोस्टर।
बैनर टाँगता है हर
चुनाव में।
इस आशा में कि
कभी तो बैठूँगा
अपने विकास की नाव में।
कुछ खिला पिला दिया जाता है
तात्कालिक संतुष्टि को,
ठेके-पल्ले का भरोसा दिया जाता है
ताकि समर्थन की पुष्टि हो,
वह नारे लगाता है जोर से
लेकिन पाँच साल बीत जाते हैं बोर से।
उनकी गाड़ी बदल जाती है,
इसकी उजली दाड़ी निकल आती है,
फिर भी उसका विकास
अटका रह जाता है,
वह भटका रह जाता है।
वह जहाँ था वहीं रह जाता है,
फिर पोस्टर चिपकाने में लग जाता है।
कई पांच साल बीत जाते हैं,
वे जीत जाते हैं
वह हार जाता है,
उसका विकास पड़ा रह जाता है,
और लोग विकसित हो जाते हैं।

जिन्हें सब कहते हैं श्रीराम

April 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हैं वह मर्यादा का नाम
जिन्हें सब कहते हैं श्रीराम,
पुरुषोत्तम, आदर्श संस्थापक,
न्यायप्रिय श्रीराम।
जन्म हुआ दशरथ जी के घर
अयोध्या जैसा धाम,
अपमानित थी मात अहिल्या
उन्हें दिया सम्मान।
लांछन से पत्थर बन बैठी
उन्हें दी नव पहचान,
हैं वह मर्यादा का नाम
जिन्हें सब कहते हैं श्रीराम।
खर-दूषण, ताड़िका आदि के
धर्म विरोधी काम
फैले थे सब तरफ भूमि में
उन्हें रौंधते राम,
चारों तरफ हुई धर्मजय
जय जय जय श्रीराम।
है वह मर्यादा का नाम
जिन्हें कहते हैं श्रीराम।
रावण तानाशाह बना था
मनमानी थी उसकी
धर्म कार्य बाधक था वह
चलती थी बस उसकी।
मातृशक्ति और ऋषि मुनियों का
करता था अपमान।
खुद वन जाकर किया राम ने
रावण पर संधान,
मार के रावण विजय धर्म को
देते हैं श्रीराम।
हैं वह मर्यादा का नाम
जिन्हें सब कहते हैं श्रीराम,
पुरुषोत्तम, आदर्श संस्थापक,
न्यायप्रिय श्रीराम।

आत्मसम्मान जीवित रखो

April 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आत्मसम्मान जीवित रखो
वक्त काफी कठिन क्यों न हो,
बस रहो कर्मपथ पर अडिग
वक्त काफी कठिन क्यों न हो।
मन में घबराहटों के लिए
कोई स्थान ही मत रखो,
खोज कर खूब सारी उमंगें
जिन्दगी को सफल कर चलो।
आप डालो नजर एक उन पर
बोझ ढ़ोते हुए श्रमिकों पर
हैं कमाते बहाकर पसीना,
चल रहे आत्मसम्मान पर।
हो सके न्यून आधिक्य कुछ भी
काम कर के कमाओ व खाओ
छोड़ कर हाथ पैरों को पथ में
आप अपना समय मत लुटाओ।
आत्मसम्मान जीवित रखो
वक्त काफी कठिन क्यों न हो,
बस रहो कर्मपथ पर अडिग
वक्त काफी कठिन क्यों न हो।

धरा माँ है हमारी

April 20, 2021 in Poetry on Picture Contest

धरा माँ है हमारी
पालती है पोसती है,
इसी में जिंदगी
सारे सुखों को भोगती है।
अन्न रस पहली जरूरत
है हमारी जिंदगी की,
वायु-जल के बिन कहाँ है
कल्पना इस जिन्दगी की।
और सबसे मूल है
टिकना हमारा पृथ्वी पर
आश्रय लेना चलाना
जिन्दगी को पृथ्वी पर।
एक आकर्षक गुरुत्वी
खींचता है केंद्र को जो
इस तरह से है कि जैसे
माँ लगाती वक्ष से हो।
चारों तरफ है वायुमंडल
जिंदगी को सांस देता,
नीर है अन्तःपटल में
जिन्दगी की प्यास धोता।
भानु की किरणों से लेकर
ऊष्मा जल मेघ कर के
हर तरफ बरसात देती है
धरा माँ है हमारी।
हजारों जीव बसते हैं
वनस्पतियां हजारों हैं,
सभी को पालने के
पोसने के पथ हजारों हैं।
कहीं लघु कीट कीचड़ में
कहीं महलों में मानव है,
कहीं जलचर कहीं थलचर
कहीं उड़गन का है कलरव।
निभाती पृथ्वी दायित्व पूरे
एक माता का,
करें महसूस हम भी
पूत बनकर दर्द माता का।
है इसका आवरण पर्यावरण
उसको बचाना है,
हमें संतान के दायित्व को
अच्छा निभाना है।
न हो दोहन निरंकुश
पृथ्वी माता के अंगों का,
सरंक्षण करें सब लोग
मिलकर पेड़ पौधों का।
पर्वतों का खदानों का
नियंत्रित ही करें उपयोग,
समुंदर और नदियों का
नियंत्रित ही करें उपभोग।
पेड़ पौधे लगायें
जंगलों को बचाएं हम
अपनी पृथ्वी माँ को
सजायें हम।
पृथ्वी दिवस है
आज यह संकल्प लेना है
धरा है मां हमारी
इस धरा को पूज लेना है।
*******************
कविता पर प्रकाश – कविता भाव, विचार, नाद व प्रस्तुति योजना का समन्वय है। इस समन्वय को कविता में स्थापित करने का प्रयास किया गया है। नाद स्वरूप गति, प्रवाह व तुक का समावेश किया गया है। पाठक हृदय तक सहजता से प्रविष्ट करने हेतु आम जीवन मे प्रचलित भाषा का प्रयोग किया गया है।
पृथ्वी के साथ माता व संतान का पवित्र संबंध स्थापित कर काव्य सृष्टि का लघु प्रयास है। प्रस्तुत और अप्रस्तुत के साथ अनुभूति को उकेरने का एक प्रयास सादर प्रस्तुत है।

मानव है मजबूर

April 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे हो बेकारी दूर
मेहनतकश को काम नहीं है, बैठा है मजबूर।
कब तक ऐसा रोग रहेगा, सोच रहा मजदूर।
रोजी-रोजी की चिंता है, घर से आया दूर।
मन में चिंता है जीवन की, कठिनाई भरपूर।
मानव मानव में दूरी है, लोग रहे हैं घूर।
कहे सतीश कैसे दिन आये, मानव है मजबूर।

क्रोध स्वयं के लिए गरल है

April 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुन लेंगे भगवान
मगर तू सच का रखना ध्यान,
कि सच का मत करना अपमान।
झूठी झूठी माया जोड़ी,
हुआ बहुत धनवान।
अंत समय में सब मिट्टी है,
यह होता है भान।
निंदा, द्वेष बुराई का पथ
छोड़ सफल इंसान
पा सकता है अपनी मंजिल
प्रेम सुखों की खान।
निकले मुख से मंद बुराई
चाहे कितनी मंद,
मगर इधर से उधर से सच के
पड़ जाती है कान।
वाणी में संतुलन बना हो
नहीं रहे अभिमान,
क्रोध स्वयं के लिए गरल है
मत करना विषपान।
विष से अंग गलेंगे भीतर
बाहर फीकी शान,
तेरे भीतर क्रोध रोग है
सबको होगा भान।
वाचा में रख प्रेम मधुरिमा,
ब्राह्मी गाये गान,
सच्चे से हो संगति इस तन की
सच्चे का सम्मान।

कर ले अच्छा काम

April 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन संघर्षों का नाम
बिना किए कुछ भी न मिला है, करना होगा काम।
कर्मों का फल देता ही है, देने वाला राम।
जिसको पाने में कठिनाई, उसका ऊँचा दाम।
पूरब हो पश्चिम हो या फिर, दक्षिण हो या वाम।
राज कर्म का है धरती पर, कर ले अच्छा काम।

बोझ खींचे जा रहा था वह

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बोझ खींचे जा रहा था वह
हाथ ठेले से,
पेट भीतर तक खींच कर
जोर लगा रहा था।
आँतें एक दूसरे से चिपक कर
सपाट होती जा रही थी।
हड्डियां व पेशियाँ
खिंचती चली जा रही थीं,
वह जोर लगाते जा रहा था
क्योंकि उसने भी
अपने बच्चों के लिए
चाबी वाली गाड़ी
खरीदनी थी।
बच्चे तो पड़ौसी लाला जी के
बच्चे की जैसी
साइकिल मांग रहे थे,
लेकिन पूरा जोर लगा कर भी
संभव नहीं था
उसके लिए साइकिल लेना।
इसलिए वह बीच का
रास्ता निकाल कर
चाहता था छोटी चाबी वाली
कार देना,
इसलिए बोला
जितना लादना है
लाद देना साब,
लेकिन बच्चों के लिए खरीद सकूँ
एवज में इतना देना
बाकी कुछ नहीं।

कब रुकेगा

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

संतापों क्रम यह
कब बदलेगा,
मानव जाति पर आया
संकट कब निपटेगा।
हा हा कार, चीत्कार
विभत्स करुण क्रंदन
कब रुकेगा,
ओ प्रकृति !!
तेरा यह आक्रोश
कब थमेगा।
लाखों जीवन लील चुका
यह विनाश का मंजर
कब थमेगा।
मानव जाति पर यह
अदृश्य खंजर
कब तक चुभेगा।
अस्त-व्यस्त है जिन्दगी
असहाय सी है
संभल रही है
बिखर रही है,
फिर फिर बिखर रही है
यह बिखराव
कब चलेगा,
ओ प्रकृति !
तेरा यह रौद्र रूप
कब तक रहेगा।

मन की आशा मुरझाई है

April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाँधे कमर नई आशा से
फिर दिल्ली पंहुचा था वो
रोजी रोटी खोज रहा था,
बच्चों को भी भेज रहा था।
कई दिनों के बाद जिन्दगी
ढर्रे में आने वाली थी,
मगर वही फिर कोविड़ कोविड़,
होने चारों तरफ लगी,
रोजगार के पट हो डाउन,
होने को फिर है लॉकडाउन।
सुबह कमाते शाम हैं खाते
कभी कभी भूखे सोते हैं,
सुनकर बन्द लॉकडाउन को
भीतर ही भीतर रोते हैं।
भूख अलग से रोग अलग से
घूम घूम मुश्किल आई है,
लौट किस तरह जाऊँ फिर अब
मन की आशा मुरझाई है।

रहस्य ही रह जाता है

April 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी का पल पल
बीत जाता है,
हम देखते रह जाते हैं,
सुबह से शाम तक
शाम से सुबह तक
मिलन से विरह तक,
बीते पलों की जिरह तक
नहीं कर पाते हैं,
कल से आशा लगाये
रह जाते हैं।
मगर विश्वास नहीं
कर पाते हैं।
कल भी बीतेगा,
बीतता जायेगा,
बीतता रहा है।
कभी नादान थे
अंजान थे,
वो भी बीत गया।
आज भी बीतेगा
कल भी।
मकसद आखिर क्या है
बीतने का।
बीतना ही है तो
फिर मकसद क्या है
होने का।
यह रहस्य
रहस्य ही रह जाता है।
वक्त बीतता ही जाता है,
बीत जाता है।

पलायन

April 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गांव के खेत
बंजर होते गये
गांव के बुजुर्ग पेड़
रोते गये,
पुराने घर आँगन
टूटते रह गये।
जो गया लौट कर
आया नहीं।
शहर का हो गया
गांव फिर भाया नहीं।
वह चबूतरा टूटता
टूटता सा,
सोचता है स्वयं में
हुआ कैसा कि आखिर
जो गया भूल गया,
गांव का अपनापन
याद आया नहीं।

मन को भी सुनना होगा

April 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो कृत्य खुशी दे मन को
वह कृत्य तुझे करना होगा
नफरत विद्वेष भरी बातों से
दूर तुझे रहना होगा।
तन अलग कहे मन अलग कहे
उलझन का मूल यहीं पर है,
तन-मन दोनों की सुन तूने फिर
तालमेल करना होगा।
मन राजी हो तन राजी हो
उसमें ही खुशियाँ आती हैं,
जीने की चाहत बढ़ जाये
ऐसा तूने करना होगा।
तन गलत दिशा में बढ़े अगर
रोके मन उसको शिद्दत से,
तन की जिद को कर शांत तुझे
मन को भी सुनना होगा।
मन से मत कभी बगावत कर
मन में है अद्भुत शक्ति बसी
तेरी राहें रोशन करने
उस ताकत को जगना होगा।

समदृष्टि

April 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत कहना सूरज डूब रहा है
नहीं डूबता है सूरज
जलकर निरंतर रात औऱ दिन
ज्योति उगलता है सूरज।
धरती गतिशील घूमती है
स्थिर नहीं रहती है
इसलिए हर कोने में
क्रम क्रम से
उजाला बांटती रहती है।
अंधेरे और उजाले का
आना जाना चलता रहता है
न अंधेरे से डर
न उजाले से इतरा,
सब समदृष्टि रखने वाला ही
आगे बढ़ता रहता है।

गलत पर कर प्रहार

April 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

समाज में हो रहा गलत
तेरे भीतर की आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या
किसी निरीह की चीत्कार
किसी भूखे की भूख
प्यासे की प्यास
जीवन में व्याप्त दर्द
तेरे भीतर की आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या,
शोषित, उत्पीड़ित
उपेक्षित वर्ग के
तिरस्कार का दर्द,
भेदभाव की बात
भूख से बिलखते
बच्चों की रात
उर का दर्द
तेरे भीतर की आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या।
घूसखोरी व भ्रष्टाचार
युवाओं का
रह जाना बेरोजगार,
निरीहों पर अत्याचार,
तेरी आत्मा को
झकझोरता नहीं क्या।
झकझोरता है तो
उठा ले लेखनी
लेखनी में पैदा कर धार
गलत पर कर प्रहार,
आवाज उठाने को
तेरा मन झकझोरता नहीं क्या।

लगी है आग जंगल मे

April 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

लगी है आग जंगल में
न जाने कौन है ऐसा
रगड़ माचिस की तीली को
जला कर चल दिया घर को।
इधर घर जल रहे लाखों
विकल हैं भस्म हैं प्राणी
उधर है मौज में लेटा
धुँवा महसूस करता है।
नहीं भू पर था बरसा जल
हलक सूखे थे जीवों के
लगाये टकटकी थे वे
निरन्तर नभ के मेघों पर।
इधर जल की जगह बरसी
मुसीबत आग बन उन पर
सभी कुछ भस्म कर डाला
किसी दानव की तीली ने।
ओस की बूंद पीकर वे
बचाये थे स्वयं साँसें
लगाकर आग मानव ने
जला संसार डाला सब।
अधजले सोचते हैं कुछ
बिगाड़ा था क्या हमने जो
लिया इंसान ने बदला,
किया आखिर था हमने क्या।

पतंगे पार निकलना होगा

April 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्दगी की अंधेरी रातों में
काम जुगनू से न चल पायेगा,
कभी चमकता कभी बुझता सा
ये नहीं राह दिखा पायेगा।
दबा ले स्विच जगा ले बत्ती को
ये बत्ती हो मन की ऊर्जा की,
करे प्रकाश मन के भीतर में
पथ बाहर भी दिखा पायेगा।
बिना प्रकाश को जगाये मन
कहीं भटक न जाये राहों में
सत्य की भक्ति छोड़कर भोला
अटक न जाये अन्य चाहों में।
तोड़ने होंगे मोह तूलिका के
पतंगे पार निकलना होगा।

भले ही सो रहा हूँ मैं

April 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भले ही सो रहा हूँ मैं
थका-माँदा यहाँ
फुटपाथ में
मगर चलती सड़क है
रुकती है बमुश्किल
एकाध घंटा रात में।
उसी में नींद लेता हूँ
उसी में स्वप्न आते हैं,
कभी जब राहगीरों के
बदन पर पैर पड़ते हैं
अचानक स्वप्न थे
जो नींद में
वो टूट जाते हैं।
नया हूँ इस शहर में
भय से आँसू छूट जाते हैं,
यहां क्यों लेटता है कह
सिपाही रूठ जाते हैं।
अंधेरी जगह जाऊँ कहीं
तो श्वान होते हैं,
हमारी तरह उनके भी कुछ
गुमान होते हैं।
मुझे अनुभव नहीं है
इस तरह सड़कों में सोने का,
मगर असहाय हूँ
घर से निकाला हूँ
कमजोर हूँ मैं वृद्ध हूँ
अब तो दिवाला हूँ।
स्थान मुझको चाहिए
थोड़ा सा रोने का।
दो-तीन घंटे लेट कर
थोड़ा सा सोने का।
सुबह फिर काम खोजूंगा
उदर की पूर्ति करने को।
जगूं या जग न पाऊँ कल सुबह
सोचा नहीं मैंने,
मगर इस वक्त आधी रात है
सोया हूँ जगने को।

तैर ले बाढ़ है दुखों की अगर

April 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़ दे छोड़ दे उदासी को
कोई फायदा नहीं है चिंता से
गम में मत रह बढ़ा न दर्द ए दिल
कोई फायदा नहीं है चिंता से।
दुःख तो होता है कुछ भी खोने से
न कोई लौटता है रोने से
कुछ नया सोच दूर पीड़ा कर
ख्वाब ला मन में तू सलोने से।
जो भी चाहेगा कर्म ही देगा
तुझे भी फल मिलेगा बोने से
जाग जा हर घड़ी सवेरा है
कोई फायदा नहीं है सोने से।
कैसे पायेगा लक्ष्य तू ही बता
ऐसे मायूस पथ में होने से,
तैर ले बाढ़ है दुःखों की अगर
अपनी किस्मत को यूँ डुबोने से।

वहाँ भगवान है मेरा

April 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ईश्वर का पता कहाँ है
मन ढूंढता रहा है,
कोई कहे यहाँ है
कोई कहे वहाँ है।
मगर जब गौर से देखा
मुझे ईश्वर दिखा उसमें
कि था जब भूख से व्याकुल
खिलाई रोटियाँ जिसने।
गिर पडूँ तो सहारा दे
वही है देवता मेरा
जरूरत पर मदद कर दे
वही भगवान है मेरा।
दिखा दे नेकियों का पथ
प्रेरणा दे मुझे सत की
मुझे उत्साह दे दे जो
वही भगवान है मेरा।
जहाँ नफरत न हो बिल्कुल
मुहब्बत का रहे डेरा,
जहाँ ईमान रहता हो
वहाँ भगवान है मेरा।

नया स्वर फूँकना है

April 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोशनी कर दो ना
जला दो बल्ब सारे,
देखने हैं मुझे
दिवस में चाँद तारे।
अंधेरे से बहुत
उकता गया हूँ,
मन भरी पीड़ को
लिखता गया हूँ।
अब मुझे जूझना है,
नया स्वर फूँकना है,
बुलंदी है जगानी
नहीं अब टूटना है।
दर्द से आज कह दो
जरा दूरी बना ले,
मुझे अब वेदना को
दूर ही फेंकना हैं।
ठंड में ताप बनकर
स्वयं को सेंकना है।
तप्त मौसम अगर हो
शीत मन सींचना है।
मेरा अरमान हो अब
बुलंदी ही बुलंदी,
और संवेदना को
पास ही पास रखना है।
जिन्दगी की कहानी
सदा चलती रही है,
छोड़ कड़वाहटें सब
मधुर रस स्वाद चखना है।

हर अवसर भुनाना होगा

April 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर अवसर भुनाना होगा
मौका मिलेगा तुझे भी
एक दिन मुश्किल से
उसे बस कस कर लपकना होगा।
हो अगर कंटक युक्त झाड़ी तो
बीच में फूल बनकर
महक के साथ महकना होगा।
उदासी फेंक कर
कुछ दूर अपने से तुझे,
जिगर मजबूत कर हँसना होगा।
राह भटका रहे कारक
नजरअंदाज कर,
तुझे मंजिल की सीढ़ी में
युवक चढ़ना होगा।
मैं नहीं हार मानूँगा
न विचलन ही रखूँगा,
सफल होंगे कदम मेरे
तुझे कहना होगा।
हर अवसर भुनाना होगा
मौका मिलेगा तुझे भी
एक दिन मुश्किल से
उसे बस कस कर लपकना होगा।

पापा

April 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तब आप कितने
सुन्दर थे पापा
देख पुरानी फोटो,
देखता रह गया मैं।
फौजी वर्दी
चमकता चेहरा,
फौलादी बाजू,
सीधे लंबे से,
जाने कब की है
यह फ़ोटो,
मुझे याद है
आपकी कर्मठता की
ठंडी चोटियों में
देश सेवा करते करते
दो वर्ष तक घर
न आ पाने की
मगर मनी आर्डर के
ठीक समय पर आने की।
उससे राशन खरीदने
स्कूल की फीस देने की।
पारिवारिक जिम्मेदारियों को
निभाने के लिए
जान लगा देने की
आपकी कर्मठता की
पूरी याद है।
धीरे धीरे आप वृद्ध होते गए।
मुझे फिर याद है।
आपके माथे पर
पड़ी अनुभवों की
झुर्रियां की,
रक्तचाप से परेशान
बार-बार सिर पर हाथ लगाते,
हँसमुख इंसान की।
तमाम तरह की
जीवन की दुश्वारियां
झेल चुके वृद्ध शरीर की।
मुझे तो याद है हम
सभी से स्नेह रखने वाले
हम सभी की
इच्छा पूरी करने वाले
एक देवता की।
कुछ कुछ याद है
मुझे थपकी दे सुलाने वाली
आपकी लोरी की गेयता की।
फिर याद है
आपके द्वारा ली गई
अंतिम साँसों की।
रह गई यादों की
जो अब साथ हैं।

धन का राज है

April 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धन है धन्य
धन का राज है
सबके दिलों में।
बिना धन जिन्दगी का
पथ कठिन।
न हो धन पास जिसके
दूरियां रखते हैं उससे,
ठुंसा हो जेब में जिसके
खूब धन,
भले वह एक धेला भी न दे,
मगर उससे सभी
रखते हैं अपनापन।
सब कुछ भले संभव न हो
लेकिन बहुत कुछ
संभव है धन से,
मान-ईमान हैं
सब कुछ
खरीदे-बेचते धन से।
बहुत धन हो इकट्ठा गर
बड़ा मानव बनूँगा मैं
अगर संचित न कर पाऊँ
वही छोटा रहूँगा मैं।
यही धन है बनाता है
यहां आकार मानव का
यही धन है बढ़ाता है
मनुज के मन में दानवता।
तभी तो बोलते हैं
धन्य है धन
राज धन का है।
करूँ अर्जित इसे
इस बात पर ही ध्यान सबका है।

ख्वाब में वो ख्वाब क्यों (विषम छन्द का एक रूप)

April 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उपवन में फूल खिले, महक आई
सुबह सुबह की मारुत, उड़ा लाई।
याद आया वह मुझे, नलिनी फूल,
या नासिका से जुड़ी, यह है भूल।
देख अनदेखा किया, जाते रहे
ख्वाब में वो ख्वाब क्यों, आते रहे।
हम विदाई गीत यूँ, गाते रहे
चल दिये थे जो वही, भाते रहे।
एक निठुराई सी हम, पाते रहे
क्यों जुड़े उनसे मगर, नाते रहे।
आंसुओं को बस निगल, खाते रहे,
ठेस उनकी ओर से, खाते रहे।
*****
काव्यस्वरूप- विषम छन्द स्वरूप

कुछ नया भाव होगा

April 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँख में देखना
कुछ नया भाव होगा,
धड़कते दिल में
कोई घाव होगा।
वो पुराना हो
या नया हो
मगर रख हौसले से
भरना होगा,
मुकाबला
समस्याओं से
डटकर करना होगा।
कुछ नए परिवर्तन को
एक प्रयास तुझे
करना होगा।
उबलता भाव जो भी हो
न ठंडा हो पाये
बल्कि उस भाव को लेकर
बढ़ना होगा।
भीतर ही नहीं सोखना
उत्साह को,
बल्कि मन में बुलंदी रख
कदम चलना होगा।

रम तू जा माँ के चरणन में

April 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रम तू जा माँ के चरणन में
घर में माता भूखी सोये, फिरे क्यों मन्दिरन में।
छोड़ दिखावा मूरख प्राणी, गर्व न कर निज तन में।
बूढ़ा होगा जब तेरा तन, तब रोयेगा मन में।
अतः आज मौका है भुना ले, बिठा दे फूलन में।
कहे सतीश माँ ही ईश्वर है, यह बैठा ले मन में।

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