विराट रूप

November 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब रण में अर्जुन घबराया।

जब उसने युद्ध न करने को अपने भय को दिखलाया।

तब परमेश्वर ने कृपा करके उसको विराट रूप दिखलाया ।

जितना दीप्ति अचानक था हरि रूप भयानक था ।

ज्वाल छोड़ते मुख थे उनके और सकल ब्रम्हांड समाया था।

तीन काल घूमते थे जिसमे क्षण क्षण को दिखलाया था।

पांडव विजय थे उसमे , कौरवों को मृत दिखाया था।

इतना तेज था उसमें की सुर्य लोक शरमाया था।

कर में धनुष टंकार लिए वज्र का घोर प्रहार लिए।

सब देव समाहित थे उसमे , सुगन्दीत पुष्पओं का हार लिए।

सब अस्त्रो से सजा हुआ सुदर्शन उंगली समाया था।

दिवाली

October 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

दीपों की माला को देखो कैसे सज्जित होती हैं।

चारों तरफ उजाला कारके बस यही प्रज्वलित होती हैं ।

खोकर राग द्वेष को ये चारों तरफ सुगंधित होती हैं।

दीपो की माला को देखो कैसे सज्जित होती हैं।

उद्धव गोपी सम्वाद

October 11, 2019 in लघुकथा

उद्धव जी कहते हैं गोपियों से ।

परमेश्वर को पहचानो , सत्य उसे ही जानो ।
क्यों रोती उसके लिए ,ये रोना छोड़ो और मेरी बात मानो।
जो आधार है जगत का वो आधार को पहचानो।

गोपी ने कहा उद्धव जी से कहा

तुम तो ज्ञानी हो हमारा दर्द क्या जानो ।

तुम ये ज्ञान छोड़ो भी हमारा प्रेम पहचानो।

बेदर्दी हो तुम विरह की पीर क्या जानो ।

मानो उस कान्ह को उसे ही प्रीतम मानो ।

उद्धव गोपी सम्वाद

October 11, 2019 in लघुकथा

उद्धव जी कहते हैं गोपियों से ।

परमेश्वर को पहचानो , सत्य उसे ही जानो ।
क्यों रोती उसके लिए ,ये रोना छोड़ो और मेरी बात मानो।
जो आधार है जगत का वो आधार को पहचानो।

गोपी ने कहा उद्धव जी से कहा

तुम तो ज्ञानी हो हमारा दर्द क्या जानो ।

तुम ये ज्ञान छोड़ो भी हमारा प्रेम पहचानो।

बेदर्दी हो तुम विरह की पीर क्या जानो ।

मानो उस कान्ह को उसे ही प्रीतम मानो ।

Veer shiva ji mharaj

October 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारत का एक शेर वो वीर शिवाजी था।

मुगलों के खिलाफ टेढ़ी लकीर शिवाजी था ।

जो चला ज्वाल की वेग से वह तीर शिवाजी था ।

जिससे हिलते थे सिंघआषन मुगलों के वह समीर शिवाजी था।

जीवन

October 8, 2019 in मुक्तक

जीवन हर पल एक खेल होता है।

यहाँ सभी के कर्मों का मेल होता है।

जिंदगी के खेल बड़े निराले होते हैं।

किश्मत का हर सिक्का हेड, टेल होता है।

इस खेल में तो कोई पास तो कोई फैल होता है।

मोर पखा

October 2, 2019 in मुक्तक

मोर पखा सिर धरने वाले ।
उंगली पर गिरी रखकने वाले ।
है कान्ह हे नंद दुलारे हे यशुमति के प्यारे।
कृष्णा, मोहन , श्याम सब हैं तेरे नाम
द्वारिका, मथुरा , वृंदावन हैं तेरे धाम ।
हे मेरे प्यारे ये जान, जिगर , दिल, है सब , दिलवर हे तेरे नाम।

Rana prtap

September 30, 2019 in मुक्तक

वह राणा अपना कहाँ गया ,
जो रण में हुंकारें भरता था।
वह महा प्रतापी कहाँ गया,
जिससे काल युद्ध में डरता था ।
जिसके चेतक को देख – देख ,
मृगराज दंडवत करता था।
वह वीर प्रतापी कहाँ गया ,
जिसके भाले को देख देख ,
खड्ग निज तेज खण्डवत करता था।
वह विकराल वज्र मय कहाँ गया ,
जिससे अकबर समरांगण में डरता था।

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