Ajeet Singh Avdan
“आरती माँ भारती की”
August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
माँ भारती तेरी आरती ।
तेरी आरती माँ भारती ।।
माँ भारती तेरे निगहबान सीमा प्रहरी हम
पाकर अजेय वरदान डटे हैं सीमाओं पर
इस कर्म-भूमि की माटी है मस्तक का टीका
है कसम मिटा देंगे सब कुछ तेरी आहों पर
माँ भारती तेरी आरती ।
तेरी आरती माँ भारती ।।
देकर अपना लहू सरहदों पर जो सबक बना है
देख तिरंगा गौरव-गाथा का सम्मान तना है
चरण-धूलि जननी तेरी है मलहम इन घावों पर
है कसम मिटा देंगे सब कुछ तेरी आहों पर
माँ भारती तेरी आरती ।
तेरी आरती माँ भारती ।।
रहें तेरी फुलवारी के हर फूल सदा मुस्काते
तेरी इस ममता भरी चाहत को हम शीश झुकाते
बस अमन-चैन ही गुज़रेंगे तेरी राहों पर
है कसम मिटा देंगे सब कुछ तेरी आहों पर
माँ भारती तेरी आरती ।
तेरी आरती माँ भारती ।।
हिन्द-धरा की रक्षा का संकल्प हो दृढ़ वर देना
जनम-जनम सीमा के सेवक हम हों हिन्द की सेना
मिले शुभम्-आशीष सफल हों आशाओं पर
है कसम मिटा देंगे सब कुछ तेरी आहों पर
माँ भारती तेरी आरती ।
तेरी आरती माँ भारती ।।
…अवदान शिवगढ़ी
१५/०८/२०१४
०४:०५ बजे, साँझ
मोहनलालगंज,लखनऊ ।
“सुझाव”
August 6, 2016 in ग़ज़ल
????????
ग़ज़ल
———
डगमगाती सी नाव है भाई ।
भाइयों में तनाव है भाई ।।
याद कैसे रहे लगी दिल की ।
आज झूठा लगाव है भाई ।।
दिल बड़ा पाक-साफ होता था ।
अब वहाँ भेद भाव है भाई ।।
आखिरी बार पास थे कब हम ।
साथ बस मन मुटाव है भाई ।।
दिल के रिश्ते संभालने होंगे ।
जो शुरू यूँ रिसाव है भाई ।।
दरकने पर कगार आई तो ।
बीच अब क्या बचाव है भाई ।।
आदमी की वज़ूददारी ही ।
पेश करती सुझाव है भाई ।।
बात अपनी सदा मनाते हो ।
मानना भी पड़ाव है भाई ।।
शेष अवदान सब कुशल ही है ।
पूँछना क्युँ दुराव है भाई ।।
…अवदान शिवगढ़ी
१७/०६/२०१६
०९:२७ बजे, साँझ ।
शिवगढ़ जलालपुर,अमेठी ।
“भीगी रातें”
August 6, 2016 in गीत
????????
————————-
भीगी रातें
—————
सावन को जरा खुल के इस बार बरसने दो ।
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।
दो तीन बरस बीते कुछ प्यार भरी बातें,
अक्सर ही सताती हैं कटती ही नहीं रातें ।
मौसम बदला बदले हालात बदलने दो,
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।
पाए तन्हाई में आसार खयालों के,
ऐसे भीगी रातें किस तरह बिता लोगे ।
छेंड़ेंगे तुम्हे भी तो पुरजोर तड़पने को,
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।
इक बार जरा फिर से आँचल लहराने दो,
कुछ देर जवाँ तन से पुरवा टकराने दो ।
बेचैन हुईं कलियाँ आलम में महकने को,
राजी ही नही यारा दिल और तरसने को ।।
…अवदान शिवगढ़ी
१४/०७/२०१६
०९:३६ बजे, रात्रि ।
नवगिरवा,अमेठी ।
“प्रतिभाओं का धनी”
August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
????????
————————-
प्रतिभाओं का धनी
—————————
सत्य-बोध के मूल-बीज को
प्रकृति ने स्वयं निखारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है
श्वर-व्यञ्जन को गढ़कर हमने
शब्द, वाक्य मे ढ़ाल दिया
मन की अभिव्यक्ति ने
पहली-भाषा रूपी ‘भाल’ लिया
“पाणिनि” की कल्पना ने ध्वनि का
सूत्रवत रूप संवारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
काल-गति जब मापी हमने
नाड़ी-पल गति-मान मिला
सूक्ष्म चाल पर चिन्तन करते
कल्प-ज्ञान का फूल खिला
कल्पतरू तरुवर की लट से
बही कल्पना-धारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
सून्य अंक देकर हमने ही
अंको को विस्तार दिया
विन्दु दशमलव से अनन्त
दूरी का साक्षातकार किया
बंधा समय और गति की लय से
हर ब्रम्हाण्ड नजारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
अभिमन्यु ने गर्भ मे भेदन
व्यूह को जितना जान लिया
उस क्षमता को मानव भूल ने
आगे का न ज्ञान दिया
समय कषौटी ने निर्दोष का
आधा ज्ञान नकारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
परहित से सद्भाव के आगे
हमने शीश झुकाए हैं
पर-पीड़ा प्रतिकार की खातिर
अपने प्राण गवांए हैं
सच्चाई मे अच्छाई का
वाश है हमने विचारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
लक्ष्य-विजय तेरी भारत-माता
मंगलमय द्वारे पे खड़ी
माँ तेरे पावन आँचल में
हर प्रतिभा परवान चढ़ी
सेवा में अवदान ने तेरी
अपना कर्म उतारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
सत्य-बोध के…
प्रतिभाओं का…
…अवदान शिवगढ़ी
०७/१०/२०१४ टी.पी. नगर, इन्दौर ०९:१८ प्रातः
“मानव”
August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मानव
^^^^^^
अहंकार का पुतला बन जा
तज दे भली-भला,
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला |
तू मानव रहकर क्या पाएगा
दानव बन जा,
दुष्कर है नम रहना
सहज है मुफ्त मे तन जा ||
हो जाए जब पुष्टि वहम की
श्रेष्ठ है सबसे तू ही
उस दिन ही तेरी काया
रह जाएगी न यूँ ही
हर प्राणी मन मैला होगा
तू ही दूध-धुला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
दुर्लभ तन मे वाश मिला
ये दुनिया देखी भाली
बिन मतलब की बात है कोरी
कर इसकी रखवाली
तू तो बस इसके विनाश की
चाल पे चाल चला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
बाल्य काल से तरुनाई तक
जितना प्यार मिला
पूर्ण युवा तन बल पौरुष
मद में अब इसे भुला
अति-आचार प्रदर्षित कर अब
बन जा काल-बला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
देव कहाना उचित नही था
असुर ही था अति-उत्तम
उस पद से इन्सान बना
शैतान है अब सर्वोत्तम
यूँ ही उजड़ना जग दुर्भाग्य है
अटल जो नही टला
अरे क्या करता है मानव होकर
सत्य की राह चला
तू मानव रहकर…
दुष्कर है नम…
…अवदान शिवगढ़ी
२१/०८/२००१५
०७:०२ बजे, साँझ
लुधियाना |
सम्पर्क सूत्र..
1) +91 9450401601
“शब्दों के सद्भाव”
August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
” माँ ”
——-
शब्दों के सद्भाव
^^^^^^^^^^^^^^^^^^
मानवता भी धर्म है जैसे
इन्सानियत मज़हबी नाम,
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
सच्चाई के पाठ को पढ़ कर
एक किनारे दबा दिया
अपनी पनपती नश्लों से ही
खुद हमने ये दगा किया
इन्हे बताना बताना त्याग दिया क्युँ
एक ही हैं अल्लाह और राम
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
मालिक ने तो एक जात
इन्सान की सिर्फ बनाई है
हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईशाई
कहते हैं सब भाई हैं
रख लो अदब बुज़ुर्गों की
वाणी का कर भी लो सम्मान
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
नश्ल वाद का जहर उगलना
मज़हब के ऐ रखवालों
हर बस्ती के निगहबान
इसे रोक सको तो रुकवा लो
वरना दिखेंगे धरती पे बस
मरघट कहीं कहीं समसान
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
कैसे ज़ुदा करोगे दिल से
दिल में रची बसी ये शान
मुमकिन नही ज़ुदाई इनकी
इक दूजे की हैं पहचान
दिल के लहू को रक्त हृहय का
कह देना कितना आसान
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
रात मे दिन का राज है कायम
दिल से ये एहसास न रूठे
सच्चाई मे अच्छाई की
डोर बँधी है आश न टूटे
काया मे जब प्राण रहेंगे
तभी मिलेंगें जिस्मो-जान
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
मस्ज़िद से मन्दिर की दूरी
इतनी बड़ी नही मज़बूरी
‘दर’ और ‘द्वार’ पे आश प्रयास की
ही तो होती दुआ है पूरी
मक़सद नेकी लक्ष्य भलाई
हैं अवदान तेरे पैगाम
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
मानवता भी धर्म है जैसे
इन्सानियत मज़हबी नाम,
शब्दों के सद्भाव भुलाकर
जीवन बना लिया संग्राम |
…अवदान शिवगढ़ी
०९/०८/२०१०,
हुसैनपुरा लुधि.
०९:०४ बजे,प्रात: |
” देश की आश “
August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
देश की आश
^^^^^^^^^^^^^^^^
आशा है अब आज़ादी के
मैं सपने देख सकूंगा,
आशा है मै फिर से
प्यारा भारत देश बनूंगा|
आशा मेरे आँगन मे
राहत के सुमन महकेगें,
आशा है आने वाले कल
को”राम-राज्य” मै दूँगा||
आज़ाद हूँ मै यह सुन-सुन के
बस घुट-घुट के रोता हूँ
इस आज़ादी को कैसे कहूँ
किस हालत मे ढ़ोता हूँ
कलि-काल चक्र यूँ घूमा है
चहुँ ओर शोर आतंक का है
यूँ उग्र हुआ है उग्रवाद
दामन मे फंसा जो डंक सा है
सोने की चिड़िया था मै कभी
पर मेरे पर हैं काटे गए
ओढ़ा के कफन खुदगर्जी का
थोड़ा-थोड़ा दफनाते गए
मेरे ही हृदय के टुकड़ों ने
सुख चैन से मेरा विछोह किया
अपने ही उपवन मे भ्रमरों ने
है कलियों से विद्रोह किया
बनके दामन मे दाग लगे
ये भूख गरीबी बेकारी
ज़ागीर नही थी ये मेरी
पर अब है मेरी लाचारी
भाई-चारे के आँड़े में
अश्मत बहनो की लुटती है
भोली ममता के साए में
किस्मत माँओं की घुटती है
मेरे ही तन के कुछ हिस्से
मेरे ही लहू के प्यासे हैं
मेरी सन्तानो ने खुद ही
अपने घर लाशों से पाटे हैं
मैं “राम-रहीम-नानक-गौतम
के सपनो का प्रेम-सरोवर हूँ
तुम भूल गए हो फिर कैसे
कि मै तो एक धरोहर हूँ
हैं धन्य वो मेरे लाल जो
इस माटी का कर्ज चुकाते हैं
बनके मेरे दामन के प्रहरी
मेरी आन पे बलि-बलि जाते हैं
उनके ही बल पर है मेरा सिर
गर्व से अब तक तना हुआ
उनके ही चौड़े सीनो पर
अस्तित्व है मेरा बना हुआ
ज़श्न-ए-आज़ादी मनाने को
अब जब भी तिरंगा लहराना
खा लेना कसम उस आलम मे
गौरव है मेरा वापस लाना
उद्गार मेरे सब मानष जन
दिल के आँगन से मेटेंगे
प्रति-पल हो मुखागर ख्वाब मेरे
गलियों में हिन्द की गूँजेंगे
आशा है अब आज़ादी के
मैं सपने देख सकूंगा,
आशा है मै फिर से
प्यारा भारत देश बनूंगा|
आशा मेरे आँगन मे
राहत के सुमन महकेगें,
आशा है अवदान मै कल को
” राम-राज्य” ही दूँगा||
…अवदान शिवगढ़ी
२०/०८/२००१/लुधि.
——————————–
कूटनीति
August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कूटनीति…
राजनीति वट वृक्छ दबा है
घात क़ुरीति की झाड़ी मे
धूप-पुनीति को अम्बु-सुनीति को
तरसे आँगन-बाड़ी ये
कूटनीति सा कोई चोचला
मध्य हमारे क्युं आया
ये चिन्तन भी त्यागा हमने
ह्रदय से इसको अपनाया
दूर हुए भाई से भाई
नीति-ज्ञान की कमी तले
“सत्यमेव-जयते” भी भूले
सिर्फ अनैतिक पंथ चले
निजी स्वार्थ समयानुकूल
निज राष्ट्र-धर्म से बड़े हुए
परहित,त्याग से आदि-मूल
सद्भाव अचेत हैं पड़े हुए
सच्चे-अच्छे यदि कुसुम कहीं
कुसुमित अभिलाषित दीख पड़े
हर शूल ह्रदय शंका उपजी
छिप जाएंगे आैर खीझ पड़े
ये भी भूले इन्हे ढ़कने मे
इक चुभन को सहना पड़ता है
इनके अस्तित्व को छाया दे
इक पुष्प ही बस कर सकता है
जंग ये व्यर्थ की नेकी से
नासमझी मे बदी ने ठानी है
मिलजुल कर रह लो कायनात
आए तो पाए जानी है
सच्चों से द्वन्द ये झूठों का
तो आदि काल से आया है
पर झूठ से पहले अटल विन्दु
सच ने अनादि से पाया है
त्रेता युग से इक अमिट-प्रसंग
है आज भी अपने मध्य सबक
इस आर्यावर्त की धरा पे थी
रिषि विश्वश्रुवा की ख्याति महक
मालि,सुमालि और माल़्यवान की
एक कुचेष्टा पूर्ण हुई
थी सुता केकसी इनकी
गृहणी बन रिषि राज को वरण हुई
मुनि श्रेष्ठ के जैसा ओजस्वी
सुत कूटनीति की छाया मे
अपना ही लहू विरोधी था
रावण अन्जानी माया मे
उस अमिट काल की परछाहीं
कलिकाल मे फिर घहराई है
इसमे न सिमटने की इच्छा
में हिन्द-धरा थर्राई है
हर आम-खाश अवदान-आश
इक ‘देवदूत’ के संग जुड़ी
देवों की इस धरती की प्रथा
फिर “राम-राज्य” की ओर मुड़ी |
…कवि अवदान शिवगढ़ी
कूटनीति…
राजनीति वट वृक्छ दबा है
घात क़ुरीति की झाड़ी मे
धूप-पुनीति को अम्बु-सुनीति को
तरसे आँगन-बाड़ी ये
कूटनीति सा कोई चोचला
मध्य हमारे क्युं आया
ये चिन्तन भी त्यागा हमने
ह्रदय से इसको अपनाया
दूर हुए भाई से भाई
नीति-ज्ञान की कमी तले
“सत्यमेव-जयते” भी भूले
सिर्फ अनैतिक पंथ चले
निजी स्वार्थ समयानुकूल
निज राष्ट्र-धर्म से बड़े हुए
परहित,त्याग से आदि-मूल
सद्भाव अचेत हैं पड़े हुए
सच्चे-अच्छे यदि कुसुम कहीं
कुसुमित अभिलाषित दीख पड़े
हर शूल ह्रदय शंका उपजी
छिप जाएंगे आैर खीझ पड़े
ये भी भूले इन्हे ढ़कने मे
इक चुभन को सहना पड़ता है
इनके अस्तित्व को छाया दे
इक पुष्प ही बस कर सकता है
जंग ये व्यर्थ की नेकी से
नासमझी मे बदी ने ठानी है
मिलजुल कर रह लो कायनात
आए तो पाए जानी है
सच्चों से द्वन्द ये झूठों का
तो आदि काल से आया है
पर झूठ से पहले अटल विन्दु
सच ने अनादि से पाया है
त्रेता युग से इक अमिट-प्रसंग
है आज भी अपने मध्य सबक
इस आर्यावर्त की धरा पे थी
रिषि विश्वश्रुवा की ख्याति महक
मालि,सुमालि और माल़्यवान की
एक कुचेष्टा पूर्ण हुई
थी सुता केकसी इनकी
गृहणी बन रिषि राज को वरण हुई
मुनि श्रेष्ठ के जैसा ओजस्वी
सुत कूटनीति की छाया मे
अपना ही लहू विरोधी था
रावण अन्जानी माया मे
उस अमिट काल की परछाहीं
कलिकाल मे फिर घहराई है
इसमे न सिमटने की इच्छा
में हिन्द-धरा थर्राई है
हर आम-खाश अवदान-आश
इक ‘देवदूत’ के संग जुड़ी
देवों की इस धरती की प्रथा
फिर “राम-राज्य” की ओर मुड़ी |
…कवि अवदान शिवगढ़ी
प्रतिभाओं का धनी
August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
????????
————————-
प्रतिभाओं का धनी
—————————
सत्य-बोध के मूल-बीज को
प्रकृति ने स्वयं निखारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है
श्वर-व्यञ्जन को गढ़कर हमने
शब्द, वाक्य मे ढ़ाल दिया
मन की अभिव्यक्ति ने
पहली-भाषा रूपी ‘भाल’ लिया
“पाणिनि” की कल्पना ने ध्वनि का
सूत्रवत रूप संवारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
काल-गति जब मापी हमने
नाड़ी-पल गति-मान मिला
सूक्ष्म चाल पर चिन्तन करते
कल्प-ज्ञान का फूल खिला
कल्पतरू तरुवर की लट से
बही कल्पना-धारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
सून्य अंक देकर हमने ही
अंको को विस्तार दिया
विन्दु दशमलव से अनन्त
दूरी का साक्षातकार किया
बंधा समय और गति की लय से
हर ब्रम्हाण्ड नजारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
अभिमन्यु ने गर्भ मे भेदन
व्यूह को जितना जान लिया
उस क्षमता को मानव भूल ने
आगे का न ज्ञान दिया
समय कषौटी ने निर्दोष का
आधा ज्ञान नकारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
परहित से सद्भाव के आगे
हमने शीश झुकाए हैं
पर-पीड़ा प्रतिकार की खातिर
अपने प्राण गवांए हैं
सच्चाई मे अच्छाई का
वाश है हमने विचारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
लक्ष्य-विजय तेरी भारत-माता
मंगलमय द्वारे पे खड़ी
माँ तेरे पावन आँचल में
हर प्रतिभा परवान चढ़ी
सेवा में अवदान ने तेरी
अपना कर्म उतारा है
प्रतिभाओं का धनी आदि से
भारत-वर्ष हमारा है |
सत्य-बोध के…
प्रतिभाओं का…
…अवदान शिवगढ़ी
०७/१०/२०१४ टी.पी. नगर, इन्दौर ०९:१८ प्रातः