विदाई गीत

August 1, 2016 in गीत

*एक विदाई गीत*

हरे हरे कांच की चूड़ी पहन के,
दुल्हन पी के संग चली है ।
पलकों में भर कर के आंसू,
बेटी पिता से गले मिली है ।

फूट – फूट के बिलख रही वो,
फूट – फूट के बिलख रही वो,
बाबुल क्यों ये सजा मिली है,
छोड़ चली क्यों घर आंगन कू,
बचपन की जहाँ याद बसी है,

बाबुल रोय समझाय रह्यो है
बेटी ! जग की रीत यही है,
राखियो ख्याल तू लाडो मेरी,
माँ – बाबुल तेरे सबहि वही है

नजर घुमा भइया को देखा
भइया काहे यह गाज गिरी है,
में तो तेरी हूँ प्यारी बहना,
यह अब कितनी बात सही है,

भइया सुनकर बोल बहन के,
अंसुअन की बरसात करी है,
रोतो रोतो यह भइया बोलो-2
देख विधि का विधान यही है,

बीत रही जो तेरे दिल पे बहना
“मेरा” भी अब हाल वही है ।।

© नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”
+91 84 4008-4006

सरस्वती वंदना

June 17, 2016 in Other

 

सुनो शारदे ज्ञानदायनी,

विनती मेरी बारम्बार ।
भँवर बीच में नैया मेरी,
आकर मात लगाओ पार ।।
तम का साया मुझ पर छाया,
अंधकार से मात उबार ।
मुझे सद्बुध्दि स्मरण शक्ति दो,
मिट जाए अज्ञानी विकार ।

कण-कण जोत जलाओ देवी,
बहे ज्ञान की गंगा धार ।
तुमने सबको राह दिखाई,
मेरा भी पथ करो तैयार ।।

धरा आसमां महिमा गाते,
सब जन करते जय जैकार ।
कृपा करो,हे ! माँ जगदम्बे,
हो जाए मेरा उद्धार ।।

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष

+91 84 4008-4006

परी

June 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

विधा : तांटक छंद

यह परियों की एक कहानी,परिस्तान से मैं लाया ।
देख रहा था यह सब छुपकर,तभी अचानक वो आया ।।

चन्द्र वदन कंचन सी काया, सब कुछ परियों सा पाया ।
ऐसा वैसा रूप नही था,जो मेरे दिल पर छाया ।।

नैन कटीले,अधर गुलाबी,रूप कहाँ से ये पाया ।
घोल दिया मृदु ज्यों कानों में,गीत प्रेम का हो गाया ।।

स्वप्न सलोना था कोई या,थी कोई जादू माया ।
परिस्तान की शहजादी को,देख देख मन हर्षाया ।।

✍?नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष”©
+91 84 4008-4006

मजदूर

May 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गरीबी में पला बड़ा,धूप छाँव रहा खड़ा,

मजबूरी में पनपा,किस्मत का मारा है ।

मेहनत पर जीता रहा,हर गम पीता रहा,
देख कभी लेता नही,किसी का सहारा है ।

दो समय के खाने को,लेता नही बहाने वो,
अपने तन की पीड़ा,खुद ही नाकारा है ।

दर्द उसे भी होता है,मन ही मन रोता है,
मजदूरी के अलावा, पर नही चारा है ।।

नवीन श्रोत्रिय”उत्कर्ष”

मेरी माँ

May 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

????मेरी माँ????

मेरे दिल की बैचेनी को,खुद जान लेती है माँ,
मेरे गम को मिटाकर,मुझे ख़ुशी दे देती है माँ,
जिंदगी की धूप में,छाया बन साथ देती है माँ
निकलता हूँ रोज़ सुबह,घर से जब ऑफिस,
रोज़ की तरह,आँखों में इंतज़ार भर लेती है माँ,
आता हूँ जब में लौटकर, सुनसान सड़क पर,
चिंता की लकीरे लिए मेरी राह देखती है माँ

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष

+9184 4008-4006

नन्ही कली की पुकार

March 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं हूँ एक नन्ही कली जरा मुझको तू खिलने देना,
होगा तेरा उपकार बड़ा मुझे इस दुनिया से मिलने देना,
मैं हूँ एक नन्ही कली जरा मुझको तू खिलने देना,
मान बढ़ाउंगी हरपल तेरा इतना विश्वास तू कर लेना,
मैं हूँ एक नन्ही कली जरा मुझको तू खिलने देना,
अपनी खुशबू से इस जग को मरते दम तक महकाउंगी,
अपनी सुंदरता से तेरे बाग़ का सौंदर्य बढ़ाउंगी
मैं हूँ एक नन्ही कली जरा मुझको तू खिलने देना,
हरपल दूंगी नयी बहारे मुझे अपनों में तू समझ लेना,
चाहू इतना बस मुझे लाड प्यार से तू सदा तकते रहना
मैं हूँ एक नन्ही कली जरा मुझको तू खिलने देना,
एक अरदास नवीन शर्मा की कलियों को खिलने देना,
महक उठेगा आँगन तेरा थोडा प्यार छिड़क देना

✍नवीन श्रोत्रिय”आज़ाद परिन्दा”
श्रोत्रिय निवास,भगवती कॉलोनी
बयाना(भरतपुर)राजस्थान 321401
+91 84 4008-4006​

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