Piyush Nirwan
Kal rahe na rahe
October 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
Jalte hue abr ko zehar se bacha lo
Fiza ye meharban, kal rahe na rahe
Aab ko tezab ke kahar se bacha lo
Dariya ki fariyad, kal rahe na rahe…
Azadi ka saaz bulandi se saja lo
Inqalabi ye awaaz, kal rahe na rahe…
Girte ko kandhe ka sahara dila do
Insani jazbat, kal rahe na rahe…
Bhule kisi dil ko seene se laga lo
Sulagti koi yaad, kal rahe na rahe…
Dil ki koi baat zubaan pe utaaro
Woh itne dildaar, kal rahe na rahe…
Kya Kare Koi
August 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
…..………………….Just A Few Lines………………..
उसकी खुशबू से महकी हैं सारी फ़िज़ाये
गुलों के रंग भी यूँ फीके पड़ जाए
न मय न मय-खाना ये जादू कर पाए
उसका नशा यूँ, कोई क्या ही कर पाए….
जो बीते है हम पर कोई उनको बतलाये
दिल हैं संभालें पर धड़कन ना आये
आफत-ए-इश्क़ वो हमको समझाएं
पर होवे दोबारा, कोई क्या ही कर पाए….
– पीयूष निर्वाण
Zindagi
April 21, 2017 in शेर-ओ-शायरी
बेशक़ सहमा ज़रूर, पर कभी टूटा नही,
तेरे लाख डराने पे, कभी रूठा नही,
तेरा इतरांना भी अंदाज़-ए-हसीन ज़िंदगी,
पर मेरे हौंसलो का साथ अभी छूटा नही।
– पीयूष निर्वाण
हरिरूपम
August 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
हरिरूपम
उठ जाग अलौकिक ये प्रभात,
अम्बर में किरणों का प्रकाश,
जो भेद सके कोई इनकी जात,
तोह करे समुच्चय मानव की बात ।
विष-व्यंग टीस के सहा चला,
मलमार्ग में देह को गला-गला,
क्या अधिक थी ये भी मांग भला,
उदयाचल रूपी भाल सदा ?
हरिरूपम ना कर खेद प्रकट,
जनतंत्र निराला खेल विकट,
सह प्रमुदित निर्भय आन प्रथम,
स्वाधीन परम-तत्व, प्रमोद चरम,
पृथ्वी, जल और आकाश,
हर रूप स्वयम, हरी निवास,
जो भेद सके कोई इनकी जात,
तोह करे समुच्चय मानव की बात ।
– Piyush nirwan
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बदरंगा इश्क़
June 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
Note : इक प्रेमिका इश्क़ मैं धोका खाये जज़्बातों को व्यक्त करती हुई ।
बदरंगा इश्क़
रंगना था तेरे रंग में,
बदरंगा करके छोड़ गए,
सदियो के उस वादे को,
पल भर में खट्ट से तोड़ गए ,
जब आये थे अपना बनाने,
तब लफ़्ज़ों का पिटारा रहा,
उन चिकनी-चुपड़ी बातों ने,
मुझको अपना सितारा कहा ,
वोह डेढ़ चाल शतरंज की थी,
इतना तोह मैंने समझ लिया,
पर न जाने कब इस रानी को,
इक प्यादे ने यूं झपट लिया ,
वो कहती मेरी सखी-सहेली,
न पड फुसलाती चालों में,
वो तन्हाई को गोद चलेगा,
नोंच के तेरे गालों पे,
बेपरवाही ज़ेहन में भर के,
सलाहों से मुख मोड़ लिया,
रंगना था तेरे रंग में,
बदरंगा करके छोड़ दिया ,
वो रात फ़ोन पे बतलाना,
वो बाल मेरे यूं सहलाना,
वो नमी भरी इन आँखों को,
वो चूम-चूम के बहलाना,
अब पलक बसेरा आँसू का,
साँसों में सिसकी थमी रही,
सब न्यौछावर कर बैठी मै,
नाजाने कैसी कमी रही,
जो बात शुरू थी जज़्बातों से,
वो ठरक पे आके सिमट गयी,
सौ पन्नों की प्रेम कहानी,
चंद लफ़्ज़ों में ही निपट गयी ।
– पीयूष निर्वाण
Kahani
June 9, 2016 in शेर-ओ-शायरी
कहानी
जो रक्त न दे सको, तो यह जवानी दे दो…
और वह भी तुमको प्यारी हो, तो ज़ुबान ही दे दो…
दलदल मैं फसा यह देश,
है सहारे की ज़रुरत,
ज़रा हाथ लगा कर नवयुग को,
प्रेरित करती कहानी दे दो…।
– पीयूष निर्वाण
Barbarta
June 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
Note: एक छोटी सी कविता यह दर्शाते हुए की किस तरह एक भीड़ दंगो का रूप ले लेती है और कौन उसे इतना भड़काता है
बर्बरता
वोह बोले हमसे वार करो,
न चुप बैठो प्रहार करो,
जो औरत, बूड़े, बच्चे आये,
टूकड़े तुम हज़ार करो ।
आतंकी रथ सवार करो,
और मृत्यु का प्रचार करो,
यमलोक भी थर-थर कांप उठे,
ऐसा भीषण नरसंहार करो ।
असुरो को त्यार करो,
और मानवता की हार करो,
धरती का धड़ चीर-फाड़ के,
नर्क का तुम आविष्कार करो ।
विवेक का भहिष्कार करो
बर्बरता का विस्तार करो
सत्ता पर हम जड़े जमा लें,
सपना तुम साकार करो ।
-पियूष निर्वाण
Sone do
May 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
Aaj kehta woh naujawan,
Anek hai sapne khone ko,
Yeh desh kabhi na badlega,
Humko toh bus tum sone do !
Jo soye hum toh sapne bunenge,
Chaadar taane, bistar bhigone do,
Jis rakt ki hai taalash tumko,
Sarhado pe bahe woh khone ko !
Koi noche jo aabroo tumhari,
Toh kaano main kapaas pirone do,
Na sunenge woh tharraati cheekhein,
Bikhri bebas use rone do !
Chaahe jaat-path naasoor ban jaaye,
Sapne apne hume sanjhone do,
Kabhi toh khoon yeh khoulega,
Par abhi tum humko sone do