बिगड़ना भी न इस कदर 

December 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिगड़ना भी न इस कदर
चाहिये,
खुद को परखने की बस
नजर चाहिये..
पन्ने अखबार के बेसब्री से
बदल डाले,
सनसनी सी कोई खबर –
चाहिये..
छोटे से घर में क्यो इश्क
पनपता नही,
बड़ा सा उसको भी क्या घर
चाहिये..
ऊँची सबसे उडान हो चाहते-
आसमॉ की,
परिंदो से भी बेहतर उसे पर
चाहिये..
रिश्ते भी पुख्ता होते वही है,
अदाबतो में भी थोड़ा सा ड़र
चाहिये..
लिखता बहुत पर वो कहता नही
है,
कहने के लिये बड़ा जिगर चाहिये
इश्क में आश्की का उसी का मजा
है,
साथ जिसका किसी को न उम्र भर
चाहिये..
है तपस सूरज में तो ठंडक चाँद में
है,
इन फिजाओ का किसमे बसर –
चाहिये..
तुम कहो तो ‘शजर’ युँ लिखना छोड़
दे,
कोई वादा तुम्हारा मगर चाहिये!!

-रमेश”शजर’

मजा आ गया होली में

March 23, 2016 in गीत

सभी मित्रोजनो को होली की अग्रिम शुभकामनाये। आप सबों को होली पर
एक भेट! ******

प्रेम-रस का रंग बरसाने
निकली भर के झोली में !
क्युँ मैं सखियों से बिछङी
क्या आया रास अकेली में
ताँक रहे थे पिया गली में।
धर ले गए खींच दहेली में।
हाथो को पकङा रंग गालो
पर रगङा
मूक रही कुछ न बोली मैं ।
हाथो को जोङा पैरो को पकङा
सुनी एक न मेरी हमजोली ने।
मनभावन मेल लता-तरु सा
आहा! मजा आ गया होली में!?
-रमेश
जय राधे- कृष्ण–

काबिज जामे-लवो पर जलवा-ए शबाब हो गए

March 19, 2016 in शेर-ओ-शायरी

काबिज जामे-लवो पर जलवा-ए शबाब हो गए
घटा-ए जुल्फ मैखाना वलवला-ए रंगे चश्म शराब हो गए!?
-रमेश

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