चाँद पर तिरंगा

August 24, 2023 in शेर-ओ-शायरी

हर भारतीय के लिए खुशियों का मौका आया है
चंदा मामा ने चंद्रयान को गले लगाया है
भारत ने आज दुनिया को ये कर दिखाया है
चाँद पर तिरंगा 🇮🇳 फहराया है

नेताजी का खिलौना

January 22, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक स्कूल कार्यक्रम में आए नेताजी से एक बच्चे ने ( बाल स्वभाव अनुरुप ) पूछा – ” नेताजी आप कहाँ खेलते हो तथा आपके पसन्द का खिलौना कौनसा है ? ”
नेताजी बोले – ” जहाँ हम खेलते हैं उसे संसद का परिवेश कहते हैं ,
और जिससे हम खेलते हैं उसे तुम्हारी भाषा में देश कहते हैं | “

आसमां भी तेरे आगे झुक जाएगा

September 26, 2022 in शेर-ओ-शायरी

दुनिया क्या कहेगी ये सोचेगा तो रुक जाएगा
सफलता के लिए तपना पडे़गा , जितना तपेगा उतना निखर जाएगा
मेहनत के बल पर ये जमाना क्या आसमां भी तेरे आगे झुक जाएगा

आओ कुछ ऐसी होली मनाएं

March 17, 2022 in Poetry on Picture Contest, हिन्दी-उर्दू कविता

आओ कुछ ऐसी होली मनाएं हर चेहरे पर मुस्कान ,हर घर खुशहाली आए छल कपट का इस होली में दहन हो जाए
प्रेम रूपी गुलाल हर जन उड़ाएं हर रंग में ऐसा रंग मिले, हर मन से मन मिल जाए प्रेम का ऐसा रंग लगाएं, दुश्मन भी गले मिल जाएं ऐसा कुछ चमत्कार हो जाए , कि कोई घरवाला बच्चों से लामणी न कराए बच्चों में भी पढ़ाई का चाव नजर आए पर , परीक्षा के समय कोरोना जरूर आए
आओ कुछ ऐसी होली मनाएं
📝( संदीप काला )

उस दिन नया साल है

January 1, 2021 in शेर-ओ-शायरी

हर वक्त बदलती जिन्दगी,
हर वक़्त बदलती ग्रहों की चाल है, अंकों के बदलने से कुछ नहीं होगा,
बदलेगें जिस दिन हम उस दिन नया साल है

कुछ ऐसा नया साल हो

December 29, 2020 in Poetry on Picture Contest

हे ईश्वर ! 2021 में ऐसा कुछ कमाल हो , गम सारे मिटे ,हर चेहरे पर मुस्कान हो , चारों तरफ से समृद्धि फैले , खुशहाल मेरा किसान हो कुछ ऐसा नया साल हो (1) कोरोना का कहीं न नाम और न निशान हो ,
विश्व में सबसे आगे मेरा हिंदुस्तान हो, शौर्य और वीरता का प्रतीक देश का जवान हो, कुछ ऐसा नया साल हो (2) देश में न कहीं बेरोजगारी हो, भ्रष्टाचार मुक्त हर अधिकारी हो, दाग रहित नेता और राजनीति संस्कारी हो, जनकल्याण का ही हर तरफ सवाल हो, कुछ ऐसा नया साल हो(3) मानव मन से स्वार्थ मिटे, आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़े, ” संदीप काला “की कलम में रचनात्मकता का रंग चढ़े , 2021 में बस धमाल ही धमाल हो, कुछ ऐसा नया साल हो (4)

देश की राजनीति बीमार है

December 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चारों तरफ से लोगों ने शोर मचाया हर अख़बार और टीवी चैनल पर आया देश का हर एक नागरिक चिल्लाया देश में चढ़ा कैसा ये खुमार है आज देश की राजनीति बीमार है इतना सुनते ही हर व्यक्ति सोचने लगा जाकर नेताजी से राजनीति का हाल पूछने लगा तब नेताजी बोले :-“राजनीति तब तक कैसे हो सकती है बीमार जब तक हमारा है उस पर अधिकार ” हाँ , लेकिन कुछ बीमार है ,डायबिटीज रूपी टी.बी.औरआतंकवाद रूपी बुखार है ,कैंसर जैसा भ्रष्टाचार है तब एक नागरिक बोला :-“नेताजी सबसे पहले समाज के बारे में सोचिए कि आज समाज हर तरफ़ दंगों से सटा हुआ है देखो ये कितनी जातियों में बंटा हुआ है ” इसलिए थोड़ा ध्यान समाज में लगाओ, इन जातियों में एकता की भावना बढ़ाओ नेताजी बोले -“अरे मूर्ख ,समाज तो जातियों में ही बंटते हैं और ये जातियां ही तो हैं जिनके कारण वोट बढ़ते हैं ” तभी दूसरा नागरिक बोला – नेताजी थोड़ा ध्यान देश की तरफ लगाओ सबसे पहले आतंकवाद मिटाओ, आखिर हम इसको क्यों नहीं मिटा सकते, क्या हम आतंकवाद से डरते हैं? नेताजी बोले – हमारे दिए गए आश्वासनो से ही तो शहिदों के घर चूल्हे जलते हैं फिर भी ,यदि मामला गंभीर नजर आता है तो ध्यान और लगा देंगे, अबकि बार शहिदों का अनुदान 5 हजार और बढ़ा देंगे तभी पीछे से एक पंडित बोला – “नेताजी रामायण और गीता का मान बढा़ओ सबसे पहले ‘हिंदू’ को राष्ट्रीय धर्म बनाओ ” नेताजी बोले :- ” पंडित जी, वैसे तो हम तन,मन,धन से आपके साथ हैं लेकिन हिंदू को राष्ट्रीय धर्म नहीं बना सकते,क्योंकि हमें जीतने में अन्य धर्मों का भी हाथ है” तभी अंत में एक आम आदमी बोला-” साहब हमारे लिए भी कुछ कीजिए ताकि हमारा जीवन भी आसानी से चल सके हमें ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस दोनों वक्त घर में चूल्हा जल सके ” नेताजी बोले – “हाँ-हाँ ,आपके बारे में सोचना भी हमारी मजबूरी है, क्योंकि 5 साल बाद आपकी फिर जरूरी है ” अंत में ,सबने मिलकर सोचा कि -आज जो राजनीति बीमार है, इसके केवल हम जिम्मेदार हैं, क्योंकि हम ही सरकार बनाते हैं और बुनते हैं, अरे राजनीति तो बीमार होगी ही जब हम बीमार नेताओं को चुनते हैं” इस बीमार राजनीति का हम तभी समाधान पाएँगें, जब देश के युवा राजनीति में आएँगें
(संदीप काला)

बात ही कुछ और है

December 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नदियों में गंगा की, ध्वज में तिरंगा की ,
बात ही कुछ और है फलों में आम की, देवताओं में श्याम की ,
बात ही कुछ और है शादी में कार्ट की, फेक्लटी में आर्ट की ,
बात ही कुछ और है जिन्दगी में नॉलेज की, पिलानी में राकेश कॉलेज की ,
बात ही कुछ और है अनाजों में बाजरे की, पहनावे में घाघरे की ,
बात ही कुछ और है पक्षियों में मोर की , रात के अंधेरे में चोर की,
बात ही कुछ और है पशुओं में गाय की, सरकारी नौकरी में ऊपरी आय की,
बात ही कुछ और है रत्नों में हीरे की, सलाद में खीरे की ,
बात ही कुछ और है जिन्दगी में सगाई की ,सर्दी में रजाई की ,
बात ही कुछ और है
“संदीप काला “

हास्य कविता :-” यदि होती हमारी अपनी नारी”

December 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यदि होती हमारी अपनी नारी
तो क्या दुर्दशा होती हमारी देखती ये दुनिया सारी
उसके कारण चढ जाती इतनी उधारी जिसे चुकाने में बिक जाती जमीन जायदाद सारी
फिर जब हम गलियों से निकलते तो बोलती ये दुनियादारी :- “देखो जा रहे हैं ये भिखारी ”
यदि होती हमारी अपनी नारी (1) बेलन और झाड़ू की मार भी सकते
बाहर कुछ भी बोलो उसके सामने कुछ नहीं कहते हर पीड़ा खुशी-खुशी सहते
अपने ही घर में नौकर बनकर रहते
हर वक्त दिखाती अपनी थानेदारी
यदि होती हमारी अपनी नारी (2)
दोनों वक्त का खाना भी बनाते
उसको टीवी के सामने ही खाना पकड़ते सुबह चाय भी बिस्तर पर ही पहुंचाते
फिर बच्चों को नहलाकर स्कूल छोड़ने जाते और भी न जाने क्या-क्या दुर्दशा होती हमारी
यदि होती हमारी अपनी नारी (3)
लेकिन हम तो नादान हैं
नारी के त्याग और बलिदान से अनजान हैं नारी कभी मां ,कभी बहन तो कभी पत्नी का रूप धरती है हर रूप में वह अपनों के जीवन में खुशियां भरती है
नारी त्याग और बलिदान की मूर्त है एक सफल पुरुष के लिए नारी की बहुत जरूरत है.
संवर ही जाती जिंदगी हमारी यदि होती हमारी अपनी नारी (4)
” संदीप काला”

वह था ईश्वर अवतार

December 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ज़िन्दगी भर सहा जिसने अत्याचार, नारी और दलित का किया जिसने उध्दार , कलम था, जिसका हथियार वास्तव में वह था , साक्षात् ईश्वर अवतार

बेटियाँ घर का चिराग होती हैं

November 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटियाँ घर का चिराग होती हैं, हर सुख रूपी गायन का राग होती हैं । माता -पिता के सुखी जीवन का भाग होती हैं, हो, जब बिछङन अपनों तो रोती हैं | बेटियाँ घर का चिराग होती हैं |

स्वर्ग से भी अच्छा है …

September 15, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हिन्दू से पूछो , मस्लमां से पूछो , पूछना है तो सारे जहां से पूछो , सबका यही होगा कहना स्वर्ग से भी अच्छ है इस हिन्दुस्तान में रहना (संदीप काला)

हिन्दी तो जीता जागता संसार है

September 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिन्दी में छंद हैं , अलंकार हैं | कवियों की कल्पना हैं, लेखकों के उद्गार हैं | दोहों की छटा है , रसों की भरमार है | कल्पना और यथार्थ है , नैतिकता भी अपार है | समाज का दर्पण है , भारत का श्र्रंगार है | कौन कहता है कि हिन्दी सिर्फ भाषा है , ये तो जीता जागता संसार है |

मैं भारतीय होने पर गर्व करता हूँ

September 7, 2020 in Other

ऋषि मुनियों की जिसकी धरती है स्वर्ग सी जो लगती है गंगा जहाँ पर बहती है दुनिया उसे भारत कहती है इस देश का होने की खुशी मैं मन में अपने भरता हूँ मैं भारतीय होने पर गर्व करता हूँ शौर्य और वीरता हमारे पर्वजों की निशानी है हर व्यक्ति यहाँ का वीर और बलिदानी हैं विश्वगुरु है भारत, ये बात जग ने मानी है ऐसे प्यारे देश के लिए मैं जीता और मरता हूँ मैं भारतीय होने पर गर्व करता हूँ किसान यहाँ के मेहनतवाले, उगाते स्वर्ण से दाने नारी यहाँ की त्याग की मूर्त, झलकती इनमें धरती माँ की सूरत इस देश की मिट्टी को मस्तक पर अपने धरता हूँ मैं भारतीय होने पर गर्व करता हूँ हम सब का भाईचारा बढ़े, भ्रष्टाचार और आतंकवाद मिटे, भारत प्रगति के शिखर चढ़े, ऐसे सपने आँखों में हमेशा रखता हूँ मैं भारतीय होने पर गर्व करता हूँ

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