बहुत अमीर है जिन्दगी

June 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत अमीर है जिन्दगी,
लफ़्जो को सलीके से,
बिठाने में वक्त बिताया करती,
गर्मी में सर्दी, सर्दी में गर्मी,
यूँ  विपरीत परिस्थतियों को,
मात देते हुए खेल आगे बढ़ाया करती,
बहुत अमीर  है  जिन्दगी,
न कोई गिला न शिकवा ,
लम्हों पर अपनी हूकूमत जताया करती,
फरमाईशो  से  जुदा,
वो तो फरमाईशो को निभाया करती,
बहुत  अमीर है  जिन्दगी,
चाँदनी रात में हो नौका विहार,
कहकशो से हो दिल की बात,
ऐसे विचारों से मन को बहलाया करती,
जब भी गुलशन में जाती,
पतझड़ हो या बहार,
सबसे यूँ हीं दिल लगाया करती,
बहुत  अमीर है जिन्दगी  ।।

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बरखा रानी

June 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखो धरा की आहें ,
मेघ बन नभ पर छायी है,
कब पीर नीर बन बरस जाए,
घनघोर घटा छायी है,
रिमझिम करती बरखा रानी,
धरा के हृदय में समायी है,
विस्मित हो गयी आहें,
वो तो नव जीवन पायी है,
उमड़-घुमड़ करते बादल,
बिजली भी चमचमायी है,
नव यौवना हो चली धरा,
वो तो नयी उम्मिदो के,
बीज खुद में समायी है,
झूम उठे पेड़-पौघे ,
हवा भी सनसनायी है,
मेर नाचते,मेढक टर्र-टर्र करते,
अब तो तपन की बिदाई है,
आओ -आओ बरखा रानी,
रिमझिम -रिमझिम, छम-छम बरसो,
देखो धरा नव जीवन पायी है ।।

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स्मृतियाँ

June 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन धारा

यूँ डूब जाता मन,
क्षितिज के उस पार,
ज्यूँ होता विवश दिनकर,
डूबने को बार-बार,
ज्यूँ पखारती चाँदनी,
तम के घनघोर केश,
ऐसे ही भेद जाती,
स्मृतियाँ हृदय पटल,
पर रश्मि कण बिखेर,
करते तारे परिहास,
धर जुगनूओं का वेश,
ऐसे करा जाता कोई,
भावनाओं को समय की,
अटखेलियों में प्रवेश ,
जैसे धूप-छाँव के अन्तराल,
आ जाती अकस्मात क्षण,
भर को बरखा बन बहार,
ऐसे ही समय की धार में,
कुछ लम्हे कर जाते निहाल,
उठती-गिरती लहरें नदिया में,
करती कल-कल मधुर गान,
ऐसे ही गहरे अन्तर्मन में,
स्मृतियाँ करतीं स्नान,
दे जाती शीतल रातें,
उपवन को शबनम का उपहार,
ऐसे हीं छोड़ जातीं स्मृतियाँ,
मन उपवन पर गहन छाप ।।

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तुम मिले

June 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलते-चलते हम साथ हो लिए,
तुम मिले एक साँस हो लिए,
ज़ज्बातों को पी लिए और,
रस्मो को साथ ले लिए,तुम मिले,
शर्म औ हया के दायरे में बँध,
हम पग-पग, साथ हो लिए,
साँसो की डोर का पकड़े हम छोर,
बस सरपट चल दिए,
टूटते-बिखरते, बनते-सँवरते,
तुम मिले, हम साथ हो लिए,
मैं नहीं कुछ, बस हम ही हम,
समर्पण के भाव में यूँ हीं बह लिए,
उठते-गिरते ताने-बाने बुन लिए,
एक रफतार से लम्हों को नाप लिए,
सो रहे थे या जाग,जो जीवन जी लिए,
तुम मिले, बस मुस्कराते हुए ,
हम साथ हो लिए  ।।

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तुम मिले

June 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलते-चलते हम साथ हो लिए,
तुम मिले एक साँस हो लिए,
ज़ज्बातों को पी लिए और,
रस्मो को साथ ले लिए,तुम मिले,
शर्म औ हया के दायरे में बँध,
हम पग-पग, साथ हो लिए,
साँसो की डोर का पकड़े हम छोर,
बस सरपट चल दिए,
टूटते-बिखरते, बनते-सँवरते,
तुम मिले, हम साथ हो लिए,
मैं नहीं कुछ, बस हम ही हम,
समर्पण के भाव में यूँ हीं बह लिए,
उठते-गिरते ताने-बाने बुन लिए,
एक रफतार से लम्हों को नाप लिए,
सो रहे थे या जाग,जो जीवन जी लिए,
तुम मिले, बस मुस्कराते हुए ,
हम साथ हो लिए  ।।

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तुम मिले

June 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलते-चलते हम साथ हो लिए,
तुम मिले एक साँस हो लिए,
ज़ज्बातों को पी लिए और,
रस्मो को साथ ले लिए,तुम मिले,
शर्म औ हया के दायरे में बँध,
हम पग-पग, साथ हो लिए,
साँसो की डोर का पकड़े हम छोर,
बस सरपट चल दिए,
टूटते-बिखरते, बनते-सँवरते,
तुम मिले, हम साथ हो लिए,
मैं नहीं कुछ, बस हम ही हम,
समर्पण के भाव में यूँ हीं बह लिए,
उठते-गिरते ताने-बाने बुन लिए,
एक रफतार से लम्हों को नाप लिए,
सो रहे थे या जाग,जो जीवन जी लिए,
तुम मिले, बस मुस्कराते हुए ,
हम साथ हो लिए  ।।

चलते-चलते हम साथ हो लिए,
तुम मिले एक साँस हो लिए,
ज़ज्बातों को पी लिए और,
रस्मो को साथ ले लिए,तुम मिले,
शर्म औ हया के दायरे में बँध,
हम पग-पग, साथ हो लिए,
साँसो की डोर का पकड़े हम छोर,
बस सरपट चल दिए,
टूटते-बिखरते, बनते-सँवरते,
तुम मिले, हम साथ हो लिए,
मैं नहीं कुछ, बस हम ही हम,
समर्पण के भाव में यूँ हीं बह लिए,
उठते-गिरते ताने-बाने बुन लिए,
एक रफतार से लम्हों को नाप लिए,
सो रहे थे या जाग,जो जीवन जी लिए,
तुम मिले, बस मुस्कराते हुए ,
हम साथ हो लिए  ।।

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गुम गया इंसान

June 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी की होड़ में कहीं,
गुम गया इंसान,
कभी जमीं को खोदता,
तो पाताल की सोचता,
फिर आसमाँ को रौंदता,
चाँद-तारे  नक्षत्रों में खुद को ढूँढता
थक हार गया इंसान,
जिंदगी की होड़ में कहीं,
गुम गया इंसान ।
मृग तृषित इंसान,
अपनी पहचान ढ़ूँढता,
मिसाईलो को दागता,
विस्फोटक बना कर चौंकता,
ताकत अपनी जताने को,
सत्ता अपनी जमाने को,
सारी ताकत झोंकता,
विक्षिप्त हुआ  इंसान,
जिंदगी की होड़ में,
कहीं गुम गया इंसान ।
अगर-मगर से झूझता,
डगर-डगर है घूमता,
लोक-परलोक से जोड़ता,
आपस में सिर फोड़ता,
खुद से हो अंजान,
अभिशिप्त हुआ इंसान,
जिंदगी की होड़ में कहीं,
गुम गया इंसान ।।

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तुम

June 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अरमानों के पंख लगा मैं,
नभ- तल में जो विचर रही,
क्या तुम उसका प्रतिफल हो,
प्रेम पाश में बाँध रहे क्या,
प्रणय का मूक आमंत्रण हो,
तुम आकुल मन की व्यथा को,
लयबद्ध कर जो स्वर दे दो,
मैं रागिनी बन मन्त्र-मुग्ध कर दूँ,
तुम बूँद-बूँद श्वॉसो में जीवन भर दो,
मैं घटा बन बरस पुलकित कर दूँ,
तुम पग-पग काँटे चुन दो,
मैं हरियाली बन पथ सिंचित कर दूँ,
तुम एक उम्मिद की किरण दे दो,
मैं ऊषा बन उजियारा कर दूँ,
तुम मौन यूँ हीं आमंत्रण दो,
मैं स्वीकृत कर समर्पण कर दूँ ।।

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एक टीस सी है

June 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक टीस सी है उठती,
जिगर में सुलगती,
न बुझती, न जलती,
जैसे कोई चिंगारी,
तिनके की आस में,
हो हवा की तलाश में ।
एक धुन्ध सी है,
जो छँटती नहीं, जैसे
हो अनसुलझी रहस्य,
जीवन सुलझती नहीं ।
एक भॉप सी हैं यादें,
जो रवाँ-रवाँ कर उठती,
मेघ बन छाँयी रहती,
यदा-कदा बरस जाती ।
एक साय सी हैं आशाएँ,
जीवन में रस घोलती,
कभी मदहोश करती,
तो कभी होश उड़ती ।
एक प्रश्न से हैं क्रिया-कलाप
जिनका नहीं कोई जवाब,
कठपुतली से बँधे हम,
डोर के सहारे निराधार ।
एक टीस सी है उठती,
जिगर में सुलगती,
न बुझती, न जलती ।।

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जीवन पथ

June 3, 2016 in Other

नीर बन जो बह रही धरा पर,
थी वह पर्वत की शिरमौर्य कभी,
आज तपन बाधाएँ निज पग में,
सह रही जो,था उसके जीवन में,
भी शीतलता का अंम्बार कभी,
पतझड़ में झड़ते पत्ते जो,
उनपे भी था मधुमास कभी,
सपने में धूमिल हुए जो पल,
उनमें भी था प्रकाश कभी,
जीवन गलियारे में,आशाओं के ,
पखवारे में कौन किस पर भार बना,
कौन निज जीवन का सुख त्याग कर,
भगवान बना,अँधियारे, उजियारे में,
पथभ्रमित कितने दीवार बने,
नयनो से ओझल होते,
कितने सपने परिहार बने,
रूत बदले, हम न बदले,
मौन उठे पुकार तुझे,
जीवन पथ पर चलते-चलते,
हम एक-दूजे के हार बने ।।

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ढ़ूँढ रही मैं

May 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ढ़ूँढ रही मैं बावरी,
अपने हिस्से का,
स्वर्णिम आकाश,
टिम-टिम करते तारे,
हाय! सुख-दुख के,
बन गए पर्याय ,
तम घनेरा ऐसे ,
छाय जैसे चन्द्र में
ग्रहण लग जाए,
मौसम आए मौसम जाए,
कभी न सरसो फूली हाय!
हरियाली की एक नज़र को,
तमन्नाएँ तरसती रह जाएँ,
झूम कर बारिश की आशाएँ,
बादल गरजें और बूँद-बूँद,
गिर कर रह जाए,
एक बूँद भी अगर,
मिल जाए,समझो,
जीवन तृप्त हो जाए,
ख्यालों के विस्तृत ,
दायरे में ढ़ूँढू अपना ,
परिचय मिल न पाए,
दशकों से मैं  बावरी,
ढूँढ रही अपने हिस्से,
का स्वर्णिम आकाश,
जब भी पाऊँ, धूमिल,
हीं पाऊँ, ढूँढू और,
ढूँढती हीं जाऊँ ।।

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मन ही मन पछताऊँ

May 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

पल-पल, छिन्न-भिन्न टूट  रहा भ्रम ,
अपनी छाया ढूँढ़ रहा मन,
अब तक निज पद- चापो में,
तेरी छाया देख रही थी,
स्व अरमानों की वो माला,
तेरे धागे में पिरो चली थी,
दिल के साज़ो को भी,
मैंने तेरे ही लय में ढाला,
माँग रहा मन मुझसे,
आज निज अरमानों की वह माला ,
मैंने तो अपनी हस्ती को भी,
तेरी कश्ती में दे डाला,
अपने जीवन का खाँका,
क्यूँ मैंने तेरे पैमाने में ढाला,
अनुचित किया मैंने क्या,
जो निज अंतस में तेरी दीप जलाई,
अँधियारा घनघोर मनस का,
कैसे अब मिटाऊँ,
अपने दिल के घावो को,
कैसे मैं सहलाऊँ,
अपनी हस्ती को गवाँ कर,
अब मैं बहुत पछताऊँ,
अरमानों के अनमोल पहर को,
ढूँढे  ढूँढ़  न  पाऊँ,
जीवन की चक्की में,
स्व अरमानों को पिसता पाऊँ,
मन ही मन पछताऊँ,
मन ही मन पछताऊँ ।।

मन ही मन पछताऊँ

May 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पल-पल, छिन्न-भिन्न टूट  रहा भ्रम ,
अपनी छाया ढूँढ़ रहा मन,
अब तक निज पद- चापो में,
तेरी छाया देख रही थी,
स्व अरमानों की वो माला,
तेरे धागे में पिरो चली थी,
दिल के साज़ो को भी,
मैंने तेरे ही लय में ढाला,
माँग रहा मन मुझसे,
आज निज अरमानों की वह माला ,
मैंने तो अपनी हस्ती को भी,
तेरी कश्ती में दे डाला,
अपने जीवन का खाँका,
क्यूँ मैंने तेरे पैमाने में ढाला,
अनुचित किया मैंने क्या,
जो निज अंतस में तेरी दीप जलाई,
अँधियारा घनघोर मनस का,
कैसे अब मिटाऊँ,
अपने दिल के घावो को,
कैसे मैं सहलाऊँ,
अपनी हस्ती को गवाँ कर,
अब मैं बहुत पछताऊँ,
अरमानों के अनमोल पहर को,
ढूँढे  ढूँढ़  न  पाऊँ,
जीवन की चक्की में,
स्व अरमानों को पिसता पाऊँ,
मन ही मन पछताऊँ,
मन ही मन पछताऊँ ।।

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