Abhishek Tripathi
कल फिर शाम आई
July 2, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
कल फिर शाम आई और चली गयी ,
कुछ दूर वो झिलमिलाई चली गयी .
नींद से अपना तो कोई वास्ता न था ,
बस आँखों में आई ,मुस्कुराई , चली गयी .
चाँद भी रुक के देखना चाहता था कल रत ,
उसकी माँ आई ,उसे बुलाई , चली गयी .
कल फिर शाम आई , और चली गयी .
फिर ख्वाब में कल रात वो आई , रुलाई चली गयी ,
कल फिर शाम आई ,और चली गयी ..
…atr
मुक्तक 5
July 1, 2015 in ग़ज़ल
तेरी चाहत
July 1, 2015 in ग़ज़ल
तेरी चाहत में इतना मैं पराया हो गया खुद से ,
कि दिल मेरा है फिर भी बात करता है सदा तेरी..
कभी वो चांदनी मेरी थी, अब पावस की है यह रात,
नहीं दिल में मेरे अब वो, नहीं हाथो में उसका हाथ..
न वो मेरी न मैं उसका तो फिर ये बीच का क्या है,
नहीं देखूंगा अब उसको जो चेहरा चाँद जैसा है…
…atr
मुक्तक 3
July 1, 2015 in शेर-ओ-शायरी
मुझे याद नहीं है मीर तू ही जाकर बता क्या है..
बड़ी मुश्किल है बेचारी किधर जाये ख़बर क्या है?
कभी वो पूछती है फिर इधर क्या है? उधर क्या है?
…atr
मुक्तक2
July 1, 2015 in शेर-ओ-शायरी
है मगर सच ये कभी तुमने बुलाया ही नहीं.
अब तो सांसो पर मेरे पहरा तुम्हारा ही रहे,
है राज़ कि बातें,तेरे बिन एक पल बिताया भी नहीं.
…atr
मुक्तक 1
July 1, 2015 in शेर-ओ-शायरी
मोहब्बत के सवालों से मैं अक्सर अब मुकर जाता ,
कहीं बातो ही बातों में मैं कुछ कहकर ठहर जाता..
कि तेरा नाम भूले से जबां तक आ गया ग़र तो,
तू बदनाम हो जाये न इससे मैं सिहर जाता …
मेरी हार …
July 1, 2015 in ग़ज़ल
मोहब्बत में हारे, क़यामत में हारे
की ये ज़िंदगी हम शराफत में हारे..
न कोई है अपना ,न कोई पराया,
अब जियें किसलिए और किसके सहारे..
न है यामिनी आज जीवन में मेरे ,
मिटे, मिट गए आज हम फिर किनारे..
कभी लए से सांसे जो चलती थी मेरी ,
मगर अब खड़े आज बेबस बेचारे..
मिला भी नहीं कुछ ,बचा भी नहीं कुछ,
जो था पास में सब तुम्हारे पे हारे…
मोहब्बत में हारे ,क़यामत में हारे,
की ये जिंदगी हम शराफत में हारे…
…atr
तुम्हारे लिए..
July 1, 2015 in शेर-ओ-शायरी
अगर तुम बन गयी दीपक तुम्हारी लौ बनूँगा मैं,
नदी के शोर में शायद तुम्हारी धुन सुनूंगा मैं.
तुम्हारी याद में अक्सर यहाँ आंसू टपक पड़ते,
ये मोती है मेरे प्रीतम मगर कब तक गिनूंगा मैं…
..atr
तुम्हे पाने की खातिर.
July 1, 2015 in ग़ज़ल
वो मंज़र याद है तुमको ,जुदा हम तुम हुए थे जब,
समंदर याद है तुमको जहाँ पत्थर चलाया था..
कभी जब याद आ जाये ,ज़रा हमको भी करना याद ,
किसी के साथ जो तुमने वहां कुछ पल बिताया था.
नहीं दिल से अभी वो शाम जाती है , नहीं होता सवेरा,
की जब से तुम गए हो मीर, मेरा जीवन अँधेरा.
ख़ुदा कैसी तमन्ना है,की मैं अब भी तरसता हूँ,
पता मुझको , यकीं मुझको, मगर फिर भी मचलता हूँ…
…atr
छुपा है चाँद बदली में…
July 1, 2015 in ग़ज़ल
छुपा है चाँद बदली में ,अमावस आ गयी है क्या?
नहीं देखा कभी जिसको वही शर्मा गयी है क्या?
मिलन की रात में ये घुप्प अँधेरा क्यों सताता है ?
वो मेरा और उसका छुप छुपाना याद आता है..
अभी तो थी फ़िज़ा महकी , क़यामत आ गयी है क्या?
कभी वो थी कभी मैं था, कभी चंचल चमकती रात,
न वो कहती ,न मैं कहता मगर आँखे थी करती बात..
जिन आँखों में हया भी थी,कज़ा अब आ गयी है क्या?
वो नदियों के किनारो पर जहाँ जाता था मिलने को,
वो नदियां है क्यों प्यासी सी, बुलाती है बुलाने को,
उन्ही नदियों की रहो में रुकावट आ गयी है क्या?
नहीं देखा कभी जिसको वही शर्मा गयी है क्या?
…atr
तेरे शहर में..
July 1, 2015 in ग़ज़ल
आज हम भी है मेहमान तेरे शहर में,
दिखता नहीं मकान तेरे शहर में.
ग़ुम हो गयी है शाम की मस्ती भी अब यहाँ,
ग़ुम हो गया करार तेरे शहर में..
आते राहों में मिल गया तेरा आशिक,
कहने लगा न जाओ तेरे शहर में.
जब से तुमने छोड़ा है दस्त ए गुलाब को,
वन हो गया वीरान ,तेरे शहर में.
बन्दों का हाल ऐसा मैं कह न सकता मीर,
पागल हुए जवान तेरे शहर में.
दिन भर उठी है धूल,पैरों में आ लगी,
मैंने कहा सलाम है,तेरे शहर में.
हर दिन यहाँ पर तेरी यादो का तमाशा,
बिकता है हर मकान तेरे शहर में.
जो गुल था ,गुलदान था,गुलशन ,ग़ुलाब था,
अब आंधी है ,और तूफ़ान तेरे शहर में..
…atr
वह दौर था .
July 1, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
मोहब्बत का वह दौर था ,
दिखता नहीं कुछ और था ..
बस हमारे प्यार का सारे जहां में शोर था,
उसने चुराया दिल मेरा ,मन भी मेरा चित चोर था ..
आश्ना हम भी थे, आशिकी उनको भी थी ,
अब जहाँ कुछ और है,पहले यहाँ कुछ और था ..
नाम होता था जुबान पर दूसरा वह दौर था,
एक ही आवाज थी ,हर शै में जो भर आई थी ,
आज जो घुट सा रहा है ,कल वही बेजोड़ था ..
.atr
कहीं हमको भी जाना है..
March 8, 2015 in शेर-ओ-शायरी
तू ही दौलत मेरे दिल कि तू ही मेरा खज़ाना है,
मेरे दिल में मेरे साक़ी तेरा ही गुनगुनाना है.
चलो अब देखते है फिर मुलाक़ातें कहाँ होंगी ,
कहीं तुमको भी जाना है कहीं हमको भी जाना है..
….atr
मुझको पिलाओ यारो…..
March 8, 2015 in शेर-ओ-शायरी
आज फिर जी भर के मुझको पिलाओ यारो,
मैं तो झूमा हूँ, मुझे और झुमाओ यारो..
आज इतनी पिलाओ कि फिर होश न रहे,
अब तो साकी से मुझे और दिलाओ यारो..
रात आधी है बंद है मयकदा,
मेरे जीने के लिए इसको खुलाओ यारो..
पी पी के मरने में वक़्त लगेगा मुझे;
आज ही बंद करके मय न जलाओ यारो.
फिर कभी याद में उसकी न धुआं दिल से उठे ,
इसलिए दिल में लगी आग बुझाओ यारो…
आज फिर जी भर के मुझको पिलाओ यारो..
…atr
जीवन की पुस्तक
March 8, 2015 in Other
मेरे जीवन की पुस्तक को है पढ़ पाना बड़ा मुश्किल ,
कि इसमें दुःख है पीड़ा है सुख पाना बड़ा मुश्किल .
ये पुस्तक आज भी यूँ मीर स्वर्णिम ही रही होती ,
तुझे पाना बड़ा मुश्किल तुझे खोना बड़ा मुश्किल…
…atr
घर याद आया .
March 8, 2015 in Other
फिर मुझको मेरा घर याद आया .
अकेला था मेरा मन जब ,
न था कोई भी जब साया .
फिर मुझको …..
मैं खाने जब भी जाता हूँ ,
तो माँ की याद आती है ,
अकेले सोचता हूँ जब,
मुझे पल पल रुलाती है .
कभी दुविधा में जब मैं था,
तो ईश्वर याद न आया .
कभी तबियत बिगड़ने पर ,
मैं माँ का नाम चिल्लाया .
फिर मुझको मेरा घर याद आया ……
…atr
दिल की बातें
March 8, 2015 in Other
दिल की बातें पु६कर पहुंची जहाँ दिलबर मेरा ,
राह में एक अजनबी ने सुन लिया वो रो पड़ा …
…atr
आज फिर याद में….
March 8, 2015 in Other
आज फिर याद में उनके आँशू बहे ,
वो सलामत रहे ,हम रहें न रहें .
अब तो दिन रात रहती है आँखे सज़ल ,
अब तो कटती है राते यूँ सुनकर ग़ज़ल .
है यही आरज़ू ये ग़ज़ल का सफर ,
यूँ ही चलता रहे, दिन गुजरता रहे.
आज फिर याद में उनके आँशू बहे ….
दर्द के गीत में प्यासे संगीत में,
तुमको गाते रहे , गुनगुनाते रहे
आज फिर याद में उनके आँशू बहे…
मैं कहीं भी गया तुम मेरे साथ थे,
जब अकेला था , तुम याद आते रहे..
आज फिर याद में……
….atr
सलाखें ग़ज़ल गाती हैं
February 28, 2015 in शेर-ओ-शायरी, हिन्दी-उर्दू कविता
अब तो उनके घर से सदायें आती हैं ,जो कभी मेरे न थे उनकी भी दुआएं आती हैं …
सुना है उन मकानों में हज़ारो कत्लखाने हैं , जहाँ दिल चूर होते हैं , सलाखें ग़ज़ल गाती हैं…
……
…atr
मैं आइना हूँ……
February 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
न मैं उसके जैसा हूँ ,न मैं तेरे जैसा हूँ ,
जो देखेगा मुझे जैसा ,यहाँ मैं उसके जैसा हूँ..
न मेरी जाति है कोई ,न मज़हब से है मेरा नाम,
न मंदिर की मुझे चिंता ,न मस्जिद से मुझे है काम.
मैंने देखा है उसे प्यार की रंगीन मुद्रा में,
मगर मैं फिर भी कहता हूँ , न कहता हूँ मैं गैरों से..
मैंने प्यार की अटखेलियां दोनों की देखीं है,
मगर अब चाह बस मेरी यही इतनी सी बाक़ी है,
मैं चाहता हूँ कि मैं बस प्यार देखूं ,न क्रोध ,न भय ,न चिंता,
क्यूंकि मैं मैं नहीं,मैं तुम हूँ,मैं वो हूँ ,मैं ये हूँ,
मैं सबकुछ नहीं …….मैं आइना हूँ……
…atr
आज फिर कोई रो रहा है….
February 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज फिर कोई रो रहा है…
फिर कहीं किसी किसी गली से आवाज़ आ रही है,
फिर आज कोई बैठा समंदर पिरो रहा है..
आज फिर कोई रो रहा है….
फिर कहीं कोई कसक नैनों में आ गयी,
फिर वादो की टूटी माला कोई पिरो रहा है,
आज फिर कोई रो रहा है..
आँखों से उमङा सागर दीदार प्रिया का पाकर ,
फिर कोई प्रणयनी का आँचल भिगो रहा है,
आज फिर कोई रो रहा है…..
प्रीति की लपट से फिर झुलस गया कोई ,
फिर तीर से हो लथपथ दिल को संजो रहा है ,
आज फिर कोई रो रहा है……
…atr
एक प्रश्न
February 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
आँखों से झरते आंसू ने थमकर पूछा
आखिर सजा क्यों मिली मुझे ख़ुदकुशी की?
दिल रो पड़ा पुराना जखम फिर हरा हुआ,
कहा, गुनाह उसी ने किया जिस छत से तू गिरा ..
..atr
मंज़िलें नज़दीक है…
February 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
सफर शुरू हुआ है मगर मंज़िलें नज़दीक है…
ज़िंदगी जब जंगलोके बीच से गुजरे,
कही किसी शेर की आहट सुनाई दे,
जब रात हो घुप्प ,चाँद छिप पड़े,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िलें नज़दीक है..
जब सावन की बदली तुम्हारी ज़िंदगी ढक ले,
पड़ने लगे बूंदे रात में हौले हौले,
हो मूसलाधार जब बरस पड़े ओले,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक है..
.
हो घना कुहरा के आँखे देख न पाये,
जब पड़े पाला ,रात में स्वान चिल्लाएं,
अचानक तीव्र तीखी जब हवा चलने लगे,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक हैं..
जब कड़कती धूप में चेतनता जाने लगे,
आश्मान से जब दिवाकर आग बरसाने लगे,
फ़ट पड़े धरती अचानक जब प्रलय के काल से,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक हैं..
यदि मुसाफिर इन दशाओं में तेरी शक्ति रहे,
तू सदा जगता रहे,चलता रहे,
आप पर विश्वास लेकर शंख की उन्नाद से,
तब समझ लेना मुसाफिर मंज़िले नज़दीक हैं..
…atr
बस प्यार चाहिए
February 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
हथियार न बन्दूक न तलवार चाहिए ,
इंसान से इंसान का बस प्यार चाहिए.
है बंद गुलिस्ता ये मुद्दतो से मीर,
इस में फकत गुल ओ बहार चाहिए.
नेकी की राह बड़ी बेरहम है ना,
नेकी के मुसाफिर को तलबगार चाहिए.
न भीड़ हो अन्धो की,गूंगो की,और बहरों की यहाँ,
जो हो शरीफ उनका मुश्कबार चाहिए.
ये इश्क की सजा है या तूणीर का कहर ,
ये तीर इस जिगर के आर पार चाहिए.
ग़मगीन जो समां हो मेरा नाम लेना मीर ,
चेहरे पे ख़ुशी और दिल में प्यार चाहिए.
….atr
- « Previous
- 1
- 2