by Anil

जलता जाए दीप हमारा।

October 21, 2022 in Poetry on Picture Contest

जलता जाए दीप हमारा।

मिट्टी के दीपों में भरकर
तेल – तरल और बाती,
तिमिर-तोम को दूर भगाने
को लौ हो लहराती।
मिट जाए भू का अँधियारा
जलता जाए दीप हमारा।

हो आँधी, तूफान मगर यह
दीप न बुझने पाये,
दीपक की लघु जल-जल बाती
युग – युग साथ निभाये।
धरती पर बिखरे उजियारा
जलता जाए दीप हमारा।

खुशियों के ये दीप जलें
हों पूर्ण सकल अरमान,
घटे विषमता, उर में ममता
निर्धन हो धनवान।
मिटे व्यथा, जर, क्रंदन सारा
जलता जाए दीप हमारा।

शान्ति, सफलता की फुलझड़ियाँ
घर – घर करें प्रकाश,
न्याय, धर्म की ज्योति बिखेरे
निर्बल में विश्वास।
चमके सबका भाग्य – सितारा
जलता जाए दीप हमारा।

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

तलवार।

October 21, 2022 in मुक्तक

वह कैसी तलवार कि जिसमें धार नहीं है
कौन कहेगा सिन्धु जहाँ मझधार नहीं है,
सिर्फ ताप के लिए जले वह ज्वाला कैसी
आँखों से न बरसे तो अंगार नहीं है ।
अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

प्राणों  में  मृदुरस  आज  घोल। 

January 24, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

वन्दे भारत। 
प्राणों  में  मृदुरस  आज  घोल। 

नित सजल,करुण तेरी चितवन 
तेरे  पद  –  पंकज   धोता   घन 
परिमल  भरता   स्मित   चंदन। 
      देता अमृत  पिक  मृदुल  बोल। 
       प्राणों में  मृदुरस  आज  घोल। 

अंचल  में  रंग   सुनहरा   भर
तारों के  अगणित  मोती   धर
दे    इंद्रधनुष  नीला -अम्बर। 
        विस्मित हो देखे फिर खगोल 
        प्राणों में  मृदुरस आज   घोल। 

दे-दे  हिमांशु  निज  शीतलता 
वो प्रभा-पुंज मुख पर तिरता
विस्तृत नभ की सब नीरवता। 
       भर अमिय अंक सुखकर,अमोल।
        प्राणों में  मृदुरस  आज  घोल। 

गाये खग –कुल होके विभोर
शीतल मलयानिल की झकोर
बहती सरिता भर कोर – कोर।
तरु-पल्लव नर्तन डोल- डोल
        प्राणों में मृदुरस  आज  घोल। 

जुगनू  उड़ता  हो  तिमिर  चीर
रौशन  जग  करने  को  अधीर
हरता निशि की वह व्यथा,पीर। 
           पंखों से तम को  रहा  तोल
           प्राणों में मृदुरस आज घोल। 

मन   रहे   नहीं    कोई    संशय 
बल, बुद्धि, शान्ति, साधन संचय
हर  दिशा  मातृ – भू  तेरी   जय। 
हो बन्धु – बन्धु में  मेलजोल 
  प्राणों में मृदुरस आज  घोल। 

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

भारत – माता की जय बोल।

May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारत – माता  की जय बोल। 

हरित  रंग  में  रंगी   धरित्री 
रंगों  की   बिखरी   बरसात, 
गेंदा, अड़हुल, मस्त- चमेली 
पवन  संग   झूमे पारिजात। 
       वल्लरियाँ  गातीं  नित   डोल
      भारत – माता की  जय  बोल। 
मेघ  सलिल  भर  लाते  गगरी
सावन    देशप्रेम    में    झूमा, 
पावन इस  धरती  को  विह्वल 
कोमल निज अधरों से   चूमा। 
        राग  रसिक  छेड़े   अनमोल 
       भारत -माता की जय  बोल। 

कुमकुम, चंदन, उड़ता  परिमल 
कलियों  की   मादक   अंगड़ाई, 
भ्रमर   करे    गुंजार  बीन – सी 
मधुर- मधुर स्वर – लहरी आई। 
     कोयल  कूक  रही  मुँह  खोल।  भारत – माता  की  जय   बोल। 
अनिल मिश्र प्रहरी। 

by Anil

माखनचोर ।

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

तू है माखनचोर।

कान्हा तुम आ जाते छुपके
खा जाते हो माखन चुपके,
तड़के आँगन सखियाँ करतीं शोर
तू है माखनचोर।

दही मगन खा मटकी तोड़ी
करते नहीं शरारत थोड़ी,
गाँव में अब चर्चा है हर ओर
तू है माखनचोर।

माखन नहीं अकेले खाते
बाल सखा सब लेकर आते,
शाम कभी तो आ जाते हो भोर
तू है माखनचोर।

माँ, माखन से मैं अनजाना
व्यर्थ गोपियाँ मारें ताना,
उनका तो बस मुझपर चलता जोर
मैं नहीं माखनचोर।

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

करोना का कहर।

March 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोग कोरोना से हुई मानवता बेचैन
जीवन लगता रुष्ट है, बैरी दिखता चैन,
बैरी दिखता चैन, मौत का नग्न – नृत्य है
मौन-विधाता बता,किया क्यों क्रूर कृत्य है?
रोग शमित होगा तभी, रहें भीड़ से दूर
तभी बचेंगी चूड़ियाँ, माथे का सिन्दूर।

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

मन।

March 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन।

क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन?

तुझे काया मिली
इतनी माया मिली,
तेरी राहों में बिखरा है मधुवन।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

इतना सुन्दर- सा घर
यानों का सफर,
तू भिखारी से राजा गया बन।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

तुझे सपने मिले
संग अपने मिले,
तेरी आभा से चमके हैं कण-कण।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

पदोन्नति मिली
लाल बत्ती मिली,
आज लाखों करें पुष्प अर्पण।
क्यों घुट – घुट के जीता है रे मन।

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

वीरों का दिल से अभिनन्दन।

January 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वीरों का दिल से अभिनन्दन।

सीमा  पर  डटकर  खड़े हुए,
दो-नयन  शत्रु  पर  गड़े  हुए,
हाथों  में अस्त्र  सुशोभित  है,
उर से भय आज तिरोहित है।
जन-गण-मन करते  हैं वन्दन,
वीरों का दिल से अभिनन्दन।

उत्साह  हृदय  में  भरा  हुआ,
पग  अंगारों  पर   धरा  हुआ,
अरि के हिम्मत को तोड़ चले,
तूफा की गति को मोड़  चले।
झुकता धरती पर आज गगन,
वीरों का दिल से अभिनन्दन।

करते   भारत   की   रखवाली,
हत, जिसने बुरी नजर  डाली,
बन जाते  पल  में  महाकाल,
तन-मन इनका भारत विशाल।
जिनकी   रक्षा  में    रघुनंदन,
वीरों का दिल से अभिनन्दन।

जग स्वप्न संजोये सोता है,
सीमा पर क्या – क्या होता है,
छलनी होती इनकी छाती,
धारा लहू की बहती जाती।
बढ़ते रिपु का करते भंजन,
वीरों का दिल से अभिनन्दन।

(देश के वीर सैनिकों को समर्पित।)

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

दर्द।

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दर्द।

टूटकर सपने नहीं कम हो सके
पास रहकर भी न उनमें खो सके,
अश्क से दामन मेरा है तरबतर
फूटकर हम आजतक न रो सके।

दूर भी हैं वो हमारे पास भी
मौत भी व जिन्दगी की आस भी,
ठोकरें जिनसे मिलीं इस राह पर
उन पत्थरों की आजतक तलाश भी।

दर्द से रिश्ता बहुत मेरा पुराना
धूप में तपता हुआ यह आशियाना,
खाक न हो जाए दिल का ये चमन
है पड़ा ही आँख को दरिया बनाना।

रात क्या, दिन भी अँधेरों में घिरा
आ सवेरा द्वार से मेरे फिरा,
विजलियाँ चमकीं दिखाने रास्ता
वज्र सीने पर कहर बन के गिरा।

टूटकर, टुकड़े बिखरकर रह गये
वक्त की रफ्तार में कुछ बह गये,
ढूँढता हूँ जब कभी अपना वजूद
तू कहाँ अब है अनेकों कह गये।

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

पूस की रात।

December 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पूस की रात।

थरथरा रहा बदन
जमा हुआ लगे सदन,
नींद भी उचट गयी
रात बैठ कट गयी।
ठंड का आघात
पूस की रात।

हवा भी सर्द है बही
लगे कि बर्फ की मही,
धुंध भी दिशा – दिशा
कि काँपने लगी निशा।
पीत हुए पात
पूस की रात।

वृद्ध सब जकड़ गये
पोर-पोर अड़ गये,
जिन्दगी उदास है
बची न उम्र पास है।
सुने भी कौन बात
पूस की रात।

रात अब कटे नहीं
ठंड भी घटे नहीं,
है सिकुड़ गयी शकल
कुंद हो गयी अकल।
न ठंड से निजात
पूस की रात।

गरम-गरम न वस्त्र है
सकल कुटुम्ब त्रस्त है,
आग की मिले तपन
सेक लूँ समग्र तन।
धुआँ – धुआँ है प्रात
पूस की रात।

अनिल मिश्र प्रहरी।

by Anil

सावन बीता जाये।

November 20, 2019 in गीत

सावन बीता जाये
प्रियतम तुम न आये।

मस्त पवन संग डोले किसलय
ताल – तलैया, सागर में लय,
बादल नभ पर छाये
प्रियतम तुम न आये।

कलियों पर है छायी लाली
झूमे बेसुध कोमल डाली,
मधुकर तान सुनाये
प्रियतम तुम न आये।

चूमें धरती चंचल – किरणें
महकी हवा लगी मन हरने,
रुत आये रुत जाये
प्रिमतम तुम न आये।

सावन की ये काली रातें
गरजे घटा घोर बरसातें,
विरह बहुत तड़पाये
प्रियतम तुम न आये।

सूना आँगन , सूने झूले
जा परदेश पिया तुम भूले,
कजरा बह- बह जाये
प्रियतम तुम न आये।

अनिल मिश्र प्रहरी।

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