बेटी

October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुष्टों ने हिंद की बेटी को पलित किया,
हिन्द का दिल सहम उठा l

वर्षों पहले दुष्टों के विरोध में नारा उठा था,
हिन्द ने केंडल मार्च निकाला था l

हिन्द ने न्याय के लिए हूंकार भरा था,
पूरा देश जाग गया था।

तब जाके दुष्टों को पकड़ा था,
हिन्द ने फांसी की नारा लगाया था l

फिर क्या था फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया था,
महीनों में फांसी सुनाया था।

न्यूज में खूब डीवेट चला था,
कुछ ने खुद को बड़ा चमकाया था l

जिसे सुनकर आज भी दिल सहम उठता,
वो दुष्कर्म कहीं न्यूज में खो गया था।

दुष्ट वर्षों तक सरकारी निवाला तोड़ रहा था,
लोकतंत्र का हथकंडा अपना रहा था।

वकीलों ने पूरी सिद्दत से साथ निभाया था,
हर वार तारीख टलवाया  था।

ऎसे लोकतंत्र में इंसाफ कैसे मिल पाता,
जहाँ राष्ट्रहित के फैसले से शाहीन बाग बन जाता l

एक घाव भरा भी न था,
एक और…………….. l

धिक्कार एसी लोकतंत्र पर होता,
राष्ट्रहित छोड़ जहाँ दुष्टों का पोषण होता l

फ़िर भी हिन्द शांत है बैठा,
मानो चूडियां पहन है बैठा l

या और………देखने को तेरी आँखे तरस रही है ?
याद रखना, वो तेरे घर की कोई एक है l

तू बेफिक्र घर में दुबक के बैठा है,
पर दुष्टों ने तेरे घर भी आँख गड़ाए बैठा है l

कर ले आवाज बुलंद आज आपनी,
वरना वो समय दूर नहीं खुद को भी अकेला पाएगा l

तब तू हुंकार नहीं गिड़गिड़ाएगा,
पूरे हिन्द को किसी कोने में छिपा पाएगा l

जागो मेरे हिन्द के दिलेर,
इनको उनकी औकात दिखाओ l

हिन्द की बेटियों को उन्मुक्त पवन दिलाओ,
……………………. उन्मुक्त पवन दिलाओ ll

Rajiv Mahali

मैं हिन्दी

September 14, 2020 in Poetry on Picture Contest

हिन्द भाषाओं का सागर है l

मैं हिन्दी उसमें से एक हूँ , उद्भव मेरी संस्कृत से है l

हिन्द की सारी भाषाओं में भाईचारा था l

अंग्रेजी ने हमें स्वार्थ के लिए बांटा था l

मेरे संस्कार ने आजादी की चिंगारी डाला था l

फिर क्या था मैं इतिहास रचने निकल पड़ा था l

हिंद की कड़ी बनी, शंखनाद किया आजादी का l

मैंने जुल्मों सितम सहा, पर अडिग रहा l

आजादी का मंत्र हिंद के जनमानस में फूंका l

ऐसे मैंने आजादी का इतिहास रचा l

राष्ट्रभाषा का मुझे सम्मान मिला l

मैंने ही संविधान रचा,फिर भी कुछ ने मुझे ठुकराया l

अंग्रेजी ने अहंकार रूपी बीज जो बोया था l

मैंने हर भाषा को अपनाया, समानता का अधिकार दिया l

मैंने ही भेदभाव की जंजीरे तोड़ा, पर मुझे ही धर्म से तोला गया l

वर्षों से आस लगाए बैठा कभी तो मुझे अपनाओगे l

सारे बैर भुला राष्ट्रहित के लिए गले लगाओगे l

Rajiv Mahali

चेतावनी धरती की

September 1, 2020 in Poetry on Picture Contest

हे अज्ञानी मानव,  सुन ले मेरी पुकार,
तेरी हूँ मैं पालनहार,  फिर भी तू कड़े है वार l

तुमको  शुद्ध आहार दिया,  मुझको प्लास्टिक की पहाड़ दिया,
तुझको जीवनदायी पानी दिया, तुमने उसमें जहर मिलाया  l

ओजन जैसी प्रहरी दिया, उसको भी कर्म से छेद किया,
तुमको खुला आसमान दिया, उसको भी प्रदूषित किया l

तुमको मिट्टी की खुशबू दिया,  तुमने कचरे वाली बदबू  फैलाया ,
जीवन उपयोगी सारी चीजें दिया,तुमने विनाशकारी चीजें बनाया l

हे अज्ञानी मानव, अब समय है सुधर जाओ,
वरना तुमको औकात दिखाऊंगी l

मैंने ही कई सभ्यता  मिटाई है,
जरूरत पड़ी तो तुमको भी मिटाऊँगी l

याद रख मैं तुम्हारी जननी हूँ , सबकी सीमा बांटी  हूँ,
जहां न जाना था तुमको,  वहां भी बस्ती बसाए हो l

बाढ़ और भू – चाल जैसी कई चेतावनी दी है तुमको,
फिर भी समझ ना आई तुमको l

तूने ही धरती के सारे भेद खोले,
फिर भी न्यूटन के तीसरे नियम को भूले l

जो तुम दोगे मुझको, वापस करूंगी मैं तुझको,
जो मैंने दिया है तुझको , वापस करो तुम मुझको l

हे अज्ञानी मानव, मेरे जंगल वापस कर तू मुझको,
प्लास्टिक रहित धरती दे मुझको l

फूलों से सुगंधित खुशबू वापस कर तू मुझको,
शुद्ध वायु दे मुझको , वापस कर तू जीवन मुझको l

दम  तोड़ी जिसने तेरी लालसा के कारण,
अनंत काल से झेला तुझको, शायद तू संभल जाएगा l

अब संभलने में देर न कर,
वरना तू काल के खंडहर में लुप्त हो जाएगा l

अब समझने और समझाने के दिन गए तेरे,
अब कुछ करने की है बारी l

अब न स्नेह दूंगा तुझको न समझाउँगा,
अब प्रलय  दिखाऊंगी तुझको l

अब प्रलय  दिखाऊंगी तुझको ll

                             Rajiv Mahali

दम तोड़ती जिंदगी

August 16, 2020 in Poetry on Picture Contest

अचानक से कर्ण में एक ध्वनि गूंजी ,

देखा तो भीड़ में कोई दम तोड़ रही थी,

पालन हार अपनी जिंदगी की जंग लड़ रही थी,

कटती अंग – प्रत्यंग के साथ काली घटा छा रही थी,

मानों अपनी कातर नजरों से बहुत कुछ कह रही थी,

प्राण खोने का भय न था उसमें जरा भी,

मानों किसी की तिवान उसे कचोट रही थी,

कौन देगा जीवन इस संसार को ?

पखेरू कहाँ  ढूंढेगा अपना बसेरा ?

बटोही ढूंढेगा छाँव कहाँ ?

सुत करेंगे किलोल कहाँ ?

ओह !….. उसकी पीड़ा असहनीय थी ,

सवालों के साथ जिंदगी ने भी दम तोड़ दी,

नेक इरादा मानव स्वार्थ के बली चढ़ गयी ,

अकस्मात घनघोर बादल छा गयी ,

मानों प्रकृति भी मातम माना रही ,

पर मानव इसबार भी मूक दर्शक बनी रही l

     इसबार भी मूक दर्शक बनी रही l l

                              Rajiv Mahali

हे भारती आशीष दे मुझको

August 15, 2020 in Poetry on Picture Contest

आज आजादी की शुभ अवसर है ,

हे भारती नमन मेरा आपको है ,

आशीष दें आज आप मुझको ,

घर  के दुश्मनों को मिटा सकूँ ,

बाहरी दुश्मनों का संहार कर सकूँ ,

भले मेरा सीना छलनी हो जाए ,

फिर भी दुश्मनों के सर धड़ से अलग कर सकूँ ,

रक्त का हर कण तेरे चरणों में  बहा दूँ ,

दुश्मनों के नापाक इरादे को नाकाम कर दूँ ,

भले मेरा मस्तक तेरे चरणों का भेंट चढ़ जाए ,

फ़िर भी मेरा देह दुश्मनों के छक्के छुड़ाते रहे ,

भले ही आत्मा भी देह त्याग दे ,

फिर भी दुश्मनों को धूल  चटाता रहूँ ,

जब  दुश्मनों का खात्मा  कर दूँ  ,

अपनी गोद में सर रखने का जगह दे देना ,

आंसू मत बहाना लोरी सुना मेरे आत्मा को शांत कर देना ,

आपके रक्षा में जाने से पहले आशीष दे देना l

                                        Rajiv Mahali

प्रण

August 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज की दिवा बड़ी गर्व की है,

इस दिवा में भीष्म प्रण लेते हैं हम,

आजादी के लिए जो शहीद हुए,

उनका बलिदान ब्यर्थ न जाने देगें हम ,

सीमा पार  तो सेना निपट लेगा,

कुंडली मार जो देश में बैठा है,

उनसे निपट लेते हैं हम ,

‘आत्म निर्भर भारत’ को सफल बनाते हैं ,

इसे जिंदगी भर का मुहिम बनाते है  ,

‘मेक ईन चाइना’ को  भूत बनाते हैं ,

सिर्फ आज नहीं भविष्य में भी दिख न पाए ,

ऐसा भीष्म प्रण  लेते हैं हम l

अभिलाषा

August 13, 2020 in Poetry on Picture Contest

मैं कब कहता हूँ फूलों की सेज मिले,
मुझे तो कमल जैसी सुदृढ मन मिले l
जो खिलता तो कीचड़ में है,
पर दाग नहीं लगने देता दामन में l

कब कहता हूँ पीड़ा रहित जीवन मिले,
मुझे तो गुलाब जैसी जज़्बा मिले l
जो कांटों में भी मुस्कुराते रहें,
फिर भी प्यार का प्रतीक कहलाए ll

मैं कब कहता हूँ कि दूसरों की सेवा मिले,
मुझे तो रजनीगंधा जैसी सेवा भाव मिले l
जो डाली से टूटकर कहीं और सज जाए,
फिर भी खुशबू फैलाती जाए l

Rajiv Mahali

कुछ नया करते

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

चलो कुछ नया करते हैं,
लहरों के अनुकूल सभी तैरते,
चलो हम लहरों के प्रतिकूल तैरते हैं ,
लहरों में आशियाना बनाते हैं,
किसी की डूबती नैया पार लगाते हैं l

चलो कुछ नया करते हैं,
दुश्मनों की आँखों का सूरमा नहीं,
आँखे निकाल लाते हैं,
चलो दुश्मनों से  दुश्मनी निभाते,
दोस्तों पे कुर्बान हो जाते हैं l

चलो कुछ नया करते हैं,
दूसरों का श्रेय लेना बंद करते हैं,
पीठ – पीछे  तारीफ करते हैं,
चलो साजिश करना बंध करते,
प्रेमभाव बढ़ाते हैं l

चलो कुछ नया करते हैं,
असामाजिक तत्व को आंख दिखाते,
फ़न मारने से पहले फ़न कुचलते हैं,
चलो बुराई के खिलाफ लठ उठाते हैं,
पीड़ित का सहारा बन जाते हैं l

चलो कुछ नया करते हैं,
हार के बाद भी सबके  दिलों को छू जाते हैं,
एक  और कोशिश करते हैं,
चलो जीवन को लचीला बनाते हैं,
हर सुबह नई चुनौती का स्वागत  करते हैं,

चलो कुछ नया करते हैं ,
फ़िजा में नई उमंग घोलते है,
जीवन में उल्लास भरते हैं,
जो जीना भूल गए हैं,
हर पल को जीना सिखाते हैं l

चलो कुछ नया करते हैं ,
जिंदगी को यूंही नहीं खोते,
दो दिन की जिंदगी है,
कुछ खास करके जाते हैं,
चलो कुछ पल अपने लिए जीते हैं l

चलो कुछ नया करते हैं,
मुझे क्या पड़ी है….. अब बोलना छोड़ दो,
जुल्म ढाने वाले को, बलून की तरह फोड़ दो,
चलो कुछ नया करते हैं ……. l

                               Rajiv Mahali

गरीबी

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

गरीबी एक एहसास है,
इसमें एक मीठी सी दर्द है,
रोज़ की दर्द में भी संतोष छिपी है,
फकीरी में अमीरी का एहसास है,
शायद यही गरीबी है l

मुर्गे की बांग  से सुबह जग जाना,
नई उलझनों में फंस जाना,
उलझनों को सुलझाने की कोशिश करना,
पक्षी की चहक के साथ घर वापिस आना,
शायद यही गरीबी की पहचान है l

गरीबी में न टूटना,
जरूरतों मे भी न झुकना,
ज़रूरतों को कर्म से पूरी करना,
विफलताओं में ईश्वर को कोसना,
शायद यही गरीबी रेखा है l

कल की राशन को आज सोचना,
बच्चों को गले लगा नीत काम में निकल जाना,
नीर पी दिवा बिता लेना,
फिर बच्चों के लिए कुछ लाना,
उनकी हंसी से थकान दूर हो जाना,
शायद यही गरीबी की निशानी है l

अपनों की ज़रूरत का पूरी न कर पाना,
घर आकर झल्ला उठना,
दूसरे दिन फ़िर से कोशिश करना,
गरीबी की दर्द को भाग्य समझ लेना,
शायद यही गरीबी की लकीर है l

दर्द में थोड़ी खुशियाँ ढूंढ लेना,
आज की शौक को सालों में पूरा करना,
बच्चों का आदर्श बन जाना,
जीवन को धूप और छांव से श्रींगार करना,
शायद यही गरीबी में संतोष है l

मिट्टी को विस्तर, आसमान को चादर समझना,
अँधेरी रात में चाँद को निहारना,
बेफिक्र होकर खर्राटे लेना,
दिन में भाग्य बदलने का अथक प्रयास करना ,
शायद यही गरीबी से जुझना है l

हर रोज नई उड़ान भरना,
थक के चूर हो जाना,
गिर के फिर सम्भल जाना,
ग़रीबी में हर भाव का होना,
यही भाव फकीरी को अमीरी बनता l
फकीरी को अमीरी बनता ll

Rajiv Mahali

कश्मीरियों की कहानी धारा की जुबानी

August 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं संविधान की धारा हूँ, निकली पीछे के दरवाजे से थी l

रोक ना पाया मुझे कोई, मेरे से विका था कोई l

अहंकार से चूर घर आया,कश्मीरियों पर अपना धौंस जमाया l

इतने में ना हुआ संतोष, हिंद के दुश्मनों से हाथ मिलाया l

स्वयं को ताकतवर बनाया, कश्मीरियों पर हंटर चलाया l            
पंडितों पर जुल्मों सितम था ढाया , रातों-रात घर से भगाया  l

बहू बेटियों को उठाया था , अपना हक उस पर जताया l

हिंद के दुश्मनों को ला बसाया , तब जाकर हुर्रियत बनाया l

पड़ोसियों से आतंकवाद बढ़वाया, मैंने ही बमबारी करवाया  l

पत्थरबाज बनवाया कश्मीरियों के भविष्य को ताक में रखवाया l

जवानों का खून बहाया, जवानों का गर्दन तक कटवाया l

किसी की छांव छीना, तो किसी को विधवा बनाया l

कश्मीरी बच्चों को भड़काया,हाथों में बंदूक और पत्थर दिलाया l

मैंने ही कारगिल युद्ध करवाया, पी-ओके भी मैंने बनवाया l

जब आवाज उठाया, सत्ता लोभी लोकतंत्र का नारा लगाया l

मैंने भी खूब फायदा उठाया, जुल्मों सितम और बढ़ाया l

मैंने शीशे का महल बनाया, अपनों को विदेश भिजवाया l

जो भी कोष आया अपनों में बंटवाया, वर्षों तक मजा किया l

समय अपनी मुट्ठी में था, अकस्मात समय हाथ से निकल चला l

दरवाजे से फेंका गया, लोकतंत्र, मानवाधिकार का गुहार लगाया l

फिर भी कुछ हाथ न आया, क्योंकि बुराई का जो अंत था आया l

हिन्द ने कश्मीर में तिरंगा लहराया, चारों तरफ खुशहाली छाया   l

Rajiv Mahali

प्रेरणा रूपी जीवन

August 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो महाज्ञानी के जीवन से प्रेरणा लेते हैं,

जिनकी गाथा मन में नई प्रेरणा जगा दे,
जिनकी वाणी हतोत्साह में उत्साह जगा दे ,
जिनकी वाणी मुर्दों में जान डाल दे,
अज्ञानता से ज्ञान की मुश्किल राह में चलना सीखा दे,
अपनी हर पग से भूले – भटकों को राह दिखा दे,
उस महाज्ञानी के जीवन से कुछ सबक सिख लें l

तुलसी दास की गाथा भी बड़ी अनूठी ,
पत्नी रत्नावली से प्यार ऐसी वियोग नहीं सह पाते,
इससे क्रोधित पत्नी खरी- खोटी सुना बैठी,
समय राम की भक्ति में लगाओ ऐसी कह बैठी,
इस पीड़ा से वे राम नाम के सागर में ऎसे डूबे,
रामचरित मानस को अवधि में लिख बैठे,
हिन्द के हृदय में राम नाम का लकीर खींचे l

एक और एसी गाथा जिसने कालिदास को बनाया,
बैठे हुए डाली को काटने की मूर्खता ऐसी,
उसकी जिंदगी का इतिहास बदल डाला,
अपने संकल्प और कर्म से लकीरें बदल डाला,
अभिज्ञानशाकुंतलम, मेघदूत जैसी संस्कृत की रचनाएं,
उनको महाकवि बना दिया ,
हिन्द की भूमि को पावन बना दिया l

चलो महाज्ञानी के जीवन से प्रेरणा लेते हैं l
चलो महाज्ञानी के जीवन से प्रेरणा लेते हैं l l

Rajiv Mahali

ज्ञान का पहला मार्ग

August 5, 2020 in Poetry on Picture Contest

अज्ञानता ही ज्ञान का पहला मार्ग है l

अज्ञानता से हीन भाव रखना, अपने आप में मूर्खता है l

अल्प ज्ञान भी ज्ञान  है, जब तक अहम का वास नहीं है l

महाज्ञानी भी अज्ञानी है, जब शब्दों में अहम झलकता है l

ज्ञान में जब अहम का प्रभाव हो, तो वह अज्ञानी ही कहलाता है l

अज्ञानी अहम खोकर ज्ञानी बनता,अज्ञान तप कर ज्ञान बनता l

शब्दों में समाहित उद्देश्य, ज्ञानी को परिभाषित करता l

घिसी-पिटी ज्ञान भी ज्ञान होता है,ज्ञान का भाव अगर नेक होता l

शब्दों के भाव का आंकलन कैसा है, ज्ञानी के ज्ञान को बताता  l

त्रुटियां निकालना ज्ञानी नहीं,ज्ञानवर्धक भाव ढूंढ लेता वे ज्ञानी हैl

शब्द अगर पीड़ादायक है, भाव प्रेरणादायक तो वो ज्ञान है l

                  अज्ञानता ही ज्ञान का पहला मार्ग है l
                           
                                                               Rajiv Mahali

समय रूपी डोर

July 31, 2020 in Poetry on Picture Contest

समय पतंग की डोर जैसी l
मांजा बड़ी तेज है l
किसकी पतंग काट जाए विश्वास नहीं l
कभी राजा संग कभी रंक संग l
पल में तेरा पल में मेरा हो जाए l
कब खुशियों की पतंग कट जाए l
कभी दर्द उड़ा ले जाए l
छोटो की क्या औकात l
मांजा ऎसी बड़ो- बड़ो को मात दे जाए l
हरिशचंद्र को सड़क पे लाया l
वाल्मीकि के हाथों रामायण रचाया l
इस डोर का क्या कहना l
मुझे इसी डोर से है, अपनी पतंग उड़ना l
इसी डोर से है, अपनी पतंग उड़ना ll

Rajiv Mahali

   पहचान

July 28, 2020 in Poetry on Picture Contest

महानता व्यक्तित्व मे नहीं,
शब्दों में होती है l
पहचान लिवास से नहीं,
आत्मा से होती है l
बल शारीरिक शक्ति में नहीं,
आत्म बल में होती है l
वीरता प्रवंचना से जीती विजय में नहीं,
युद्ध नीति के पालन में होती है l
श्रेष्ठता किसी को झुकाने में नहीं है,
बल्कि झुके को अँकवार में होती है l
मर्दानगी नारी की बर्बरता में नहीं,
बल्कि नारी की सम्मान में होती है
वीरता असहायों को कुचलने में नहीं,
बल्कि साथ खड़े होकर सहायता में होती है l
उच्च शिक्षा से कोई ज्ञानी नहीं,
ज्ञानी उच्च विचार से होता है l
अपना कहने से कोई अपना नहीं होता,
जब तक स्वार्थ को ताक में रखा नहीं जाता l
डर कमजोरी की पहचान नहीं ,
बल्कि सतर्कता की पहली सीढ़ी होती l
मन के आभा में तराश ले खुदको,
कौन सा चेहरा तेरा नकाब के पीछे है?
कौन सा चेहरा तेरा नकाब के पीछे है?

                             
                               Rajiv Mahali

ग़लतफ़हमी

July 21, 2020 in Poetry on Picture Contest

चरखे से अगर आजादी मिलता,
हमें सेना की जरूरत न होता l
चरखे से हिंदुस्तान चलता,
हिन्द मे कोई विशेष ना होता l
न हिंदू मुसलमान होता,
सभी हिंदुस्तानी पूत कहलाता l
न करगिल, न चीन से युद्ध होता,
सही मायने मे भाई – भाई कहलाता l
विश्व क्रम में पहला स्थान होता,
चारो तरफ नमो: नमो:होता l
वीरों की शहादत न होता,
न जालियावाला कांड होता l
चरखे ने साजिस रचा,
हिन्द को बेवकूफ़ बनाया l
पर अब ना चल पाएगा,
निस्वार्थ शहीदों को दिल में बसाएंगे l
शहिदों के आगे श्रद्धा के सुमन बरसाएंगे ll
Rajiv Mahali

मेरा नमन

July 14, 2020 in Poetry on Picture Contest

हे वीर, नमन मेरा तुझको l
वीर पुत्र , सूरवीर हो l l
        आप ही प्रहरी , प्रलय भी आप हो l
        अश्व जैसी तेज, सिंह की दहाड़ हो ll
शांत प्रिय, रुद्र रूप  हो l
जल – थल ,नभ में भी आप हो ll
        आप रंग , बेरंग भी हो l
        सीमा रेखा ,शत्रु की जीवन रेखा आप हो ll
आप हो तो संभव , न हो तो असम्भव हो l
आप ही शहीद  , आप ही अमर हो ll
         जीवन रक्षक , शत्रु भक्षक भी आप हो l
         कठोर आप , प्रेम सागर आप हो ll
हिन्द को समर्पित हो , मोह के विमुख हो l
आप संगम , आप ही विरह हो ll
         आप ही मुस्कराहट , वेदना भी आप हो l
         दीपक की लौ , दीप – छांव भी आप हो ll
हे वीर, आप काव्य रस से परिपूर्ण हो l
शौर्य ऐसी, गाथा के लिए शब्द कम हो ll
           हे वीर, नमन मेरा तुझको l
           हे वीर, नमन मेरा तुझको ll
                                          RAJIV MAHALI

मैं (अहंकार)

July 12, 2020 in Poetry on Picture Contest

मैं मन की भाव हूँ, अहंकार से लिप्त हूँ l
मैं लोभ , मैं मोह माया का जाल हूँ l
मैं हिंसा का रूप, मैं विनाशकारी हूँ l
मैं यूं ही बदनाम हूँ, वरना मैं विश्वकर्मा हूँ ll
मैं अनंत हूँ , विष भी मैं हूँ l
मैं चक्रव्यूह, मैं महाभारत हूँ l
मैं कौरव नाशक, रावण, मैं ही कंश हूं l
मैं तो यूँ ही बदनाम हूँ, वरना श्रीकृष्ण, जटाधारी हूँ ll
मैं निराकार हूँ, काली, दुर्गा भी मैं हूँ l
मैं वहुरूप्या हूँ, किसी को भी हर लेता हूँ l
हर संगत में ढल जाता हूँ, संगत जैसी वैसा बन जाता हूँ l
मैं यूं ही बदनाम हूँ, वस यूं ही……….. ll

                                         Rajiv Mahali

नारी शक्ति

June 25, 2020 in Poetry on Picture Contest

मैं पुत्र उस नारी की जिनकी आंखों में पीड़ा देखी ,
उजागर करता हूं उन पीड़ा का……….।
जनमानस से भरा जिसने धरती को ,
घर के कोनों में मजबूर हुई जीने को।
दुर्गा, काली के रूप में पूजा जिनको  ,
शर्मसार किया उनको ।
सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारंभिक बीज है वो ,
फिर भी गोद में कुचला उनको।
नए – नए रिश्ते को बनाने वाली रीत है वो,
हमने हर रिश्तो में नीचा दिखाया उनको।
उसने हममें कोई फर्क नहीं किया ,
हमने सामाजिक जंजीर दिया।
उसने हमको नौ महीने गोद में रखा ,
हममें से कोई उनका चीरहरण किया।
कांटो में स्वयं चली, हमें फूलों की सेज दिया।
हमने उन पर षड्यंत्र रचा,
आखिर कैसी रीत है ये l
सच में क्या नारी अबला है?
ऐसी भूल ना कर, ये तो स्नेह है उनका ।
कहीं धैर्य खत्म ना हो जाए,
फिर से काली, दुर्गा ना बन जाए l
बदल लो अपनी नजरिये को l
बदल लो अपनी नजरिये को ll                    
                         
                                            राजीव महली

समर्पित

June 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिन्द जवान मात्र जवान नहीं,
ये संकट मोचक है,
दुश्मनों को धूल चटाने वाली सेना है,
मिटने ओर मिटाने वाली सेना है,
इन्हें घेरना लोमड़ी के वस का नहीं है,
निहत्थे में शेर, अस्त्र में बब्बर शेर है l
ऐसी सेना हमारी है ll
मुस्किल परिस्थिति में राह बनता,
अंधी को आँख दिखाता,
विषम परिस्थितियों में ढलना आता,
लहरों में आशियाना बनाता,
विषमताओं में चट्टान की तरह अडिग रहता,
पार्वत में गंगा जल की धार, समतल में मगर की चाल l
ऐसी सेना हमारी है ll
बिजली जैसी गर्जना इनकी,
शेर जैसी दहाड़ इनकी,
दुश्मनों के घर घूसके मारे,
देशहित में हंसकर शीश कटवाले,
जरूरत में दुश्मनों के शीश काट लाए,
यम से आँख मिलाए, यम से भी लाड़ जाए l
ऐसी सेना हमारी है ll

श्रद्धांजलि

June 5, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

चरखे से अगर आजादी मिलता,
हमे सेना की जरूरत न होता l
चरखे से हिंदुस्तान चलता,
हिन्द मे कोई विशेष ना होता l
न हिंदू मुसलमान होता,
सभी हिंदुस्तानी पूत कहलाता l
न करगिल, न चीन से युद्ध होता,
सही मायने मे भाई – भाई कहलाता l
विश्व क्रम में पहला स्थान होता,
चारो तरफ नमो नमो होता l
वीरों की शहादत न होता,
न जालियावाला कांड होता l
चरखे ने साजिस रचा,
हिन्द को बेवकूफ़ बनायाl
पर अब ना चल पाएगा,
निस्वार्थ शहीदों को दिल में बसाएंगे l
शहिदों के आगे श्रद्धा के सुमन बरसाएंगे ll

मानवता नि:शब्द

June 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कुदरत भी शर्माया होगा,
मानव रूपी दानव जो बनाया l
विनायकी नहीं, मानवता ने दम तोड़ा l
मानवता का रूह सिहर उठा,
मानव द्वारा मानवता का चीर हरण हुआ l
मासूमों पर क्रूरता प्रमाण हुआ,
मानवता नि:शब्द…..
दोबारा निर्भया जैसी क्रूरता रची गई,
बहरुपी मानव की नींव हिलाई l
खाने में भयंकर पीड़ा परोसी,
नन्हे जान की भी नहीं सोची l
इस बर्बरता ने मानव चरित्र दर्शायी,
कुदरत सहम उठी l
मानवता नि:शब्द…..

हिन्द की आभूषण

June 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नैतिकता हिन्द की आभूषण है,
परिचायक इसके प्रभु रामजी हैं l
सीतामैया अग्नि परीक्षा दी l
कैसी ये नैतिकता थी ?
स्वार्थरहित पीड़ा थी l
मैया में सभ्य समाज की लालसा थी l
यह लीला स्वच्छल धर्म की नींव थी l
ये तो नैतिकता की परीकाष्ठा थी ll
नैतिकता हिन्द की आभूषण है,
श्रीकृष्ण इसके परिचायक है l
युद्ध में अर्जुन का मार्ग दर्शन l
बहुतो के लिए अनैतिकता था l
पर ये नैतिकता का बर्जस्व था l
अधर्म पर विजय का मार्ग था l
धर्म का ओजसपूर्ण वाणी था l
अंधेरे पर रोशनी का प्रहार था ll
नैतिकता हिन्द की आभूषण है,
परिचायक कर्मवीर है l
नैतिकता हमें कर्मठ बनाता l
आलस्य की जगह नहीं होता l
इसमें स्वाभिमान है बसता l
कर्मवीर नैतिकता से जीता l
नैतिकता सभ्य समाज का आधार होता l
निजी पीड़ा का अस्तित्व नहीं होता ll
नैतिकता हिन्द की आभूषण है,
परिचायक कर्मवीर है l
नैतिकता हर युग में सर्वश्रेष्ठ है l
नैतिकता को हमने भूला है l
नैतिकता समाज की जरूरत है l
चलो नैतिकता को  प्रखर बनाते l
नैतिकता की शाक बनाएं l
नैतिकता से दुनिया को झुकाएं ll

चाँद

June 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाँद में दाग है सबने जाना,
उसकी खूबसूरती को सबने माना,
खूसूरती का रहस्य किसी ने न जाना?
                 बादलों का आना चमकने से रोकना,
                 दूसरे पल रोशनी को भू तक पहुंचाना,
                  सेवा भाव को किसी ने न जाना l
दिवा में कहीं खो जाना,
एकाग्रता से शाम का इन्तजार,
दृढ़ मन को किसने जाना l
                   अपनी राह में चलना,
                    गती को बरकरार रखना,
                    कार्य निष्ठा को किसी ने न जाना l
भास्कर की परिक्रमा,
राह से न भटकना,
भक्तिभाव को किसी ने न जाना l
                       कार्यभाव में लीन,
                       चाँद को खूबसूरत बनाता,
                       रहस्य को किसी ने न जाना l

हठधर्मी

June 2, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

बापू बड़े दुविधा  में पड़ गए,
लाडले ने सिंहासन का जो हट कर बैठे l
एक सिंहासन दोनों मे कैसे बांटे,
कलेजे के जो टुकड़े ठहरे l
जमीन को धर्म में बांटे ,
भारती के सीने में खंजर से लकीर काटे l
बापू यहां भी न रुके ,
महानता की लालसा मन मे थे पाले l
रोते विलकते हिन्द पर एक और एहसान कर डाले ,
विषैले, गद्दार सांप को हिन्द के कंधे डाले l
भविष्य के दंगे का एक विज बो गए  ,
हिन्द को नासूर जख्म दे गए l
गंगा, यमुना तहसीब सीखा गए ,
एक धर्म ने दिल मे बसा लिए l
दूसरे ने तोते जैसे रट डाले ,
निर्मम होने मे असानी हुआ l
सुभाष को संघ से निकाले,
उनके बढ़ते कद को देखकर घबराए l
खुदीराम को गलत राह कहकर,
बचाने से पलरा झाड़े l
जालियावाला कांड में हजारों आन्दोलनकारी वीरगति हुए,
मौन रहकर आन्दोलन वापस लिए  l
खुद को महान बनाने के चक्कर में,
गरम पंथी को गलत ठहराए l
उनके संघर्ष को झू‍ठला भी नहीं सकते,
हठधर्मी नीति को अपना भी नहीं सकते l
एक को इस्लामिक दूसरे को धर्मशाला,
सोचो इनको बापू किसने बना डाला ll

भारती

May 30, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

भारत माता
सुनो वीरों की कहानी,
अपनो  का जो हुए शिकार l
कालापानी सावरकर को मिला,
हृदय तोड़ने वाला दर्द मिला l
सहम उठा दिल मेरा,
अनूठा देश प्रेम जो देखा l
मन विभोर हो उठा,
इतिहास के बदले स्वरूप जो देखा l
सपूतों से इतिहास ने साजिश रचा,
मै कुछ ना कर पाया, कुछ न कर पाया ll
सुभाष का क्या बोलूँ ,
मेरे लिए दरदर भटकते रहा l
पराक्रम से दुश्मनों को धूल चटा‍या,
आजादी का पहला तिरंगा लहराया l
उसे भी अपनो का धोखा मिला,
इतिहास तो छोड़ो भारतीय मुद्रा ने भी साजिश रचा l
लक्ष्मीवाई, राणा प्रताप जैसे वीरांगना,
दुश्मनों के हलक से कलेजे निकाले l
आजाद, खुदीराम जैसी वीरों ने अंग्रेजो के  नींव हिलाए,
इन वीरों के नाम साजिश के काल मे समाए l
मै कुछ ना कर पाया, मै कुछ न कर पाया ll
एक लाल ने मुझे दोबारा खंडित होने से बचाया,
विडम्बना देखो मेरा लाल देशद्रोही कहलाया l
जो मेरे टुकड़े किए, वो राष्ट्रपिता कहलाया,
साजिशकर्ता देश का बागडोर संभाला l
पर मेरे लाल को तो मुझसे प्यार था,
न की इतिहास, न ही राजपाट से l
दिल में राष्ट्रभक्ति समाहित था l
दिल में राष्ट्रभक्ति समाहित था ll

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