by Mayank

तिनके का महत्व

September 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तिनके से सिया ने रावण को डराया,
तिनके में राम का स्वरूप दिखाया।
श्रद्धा हो तो तिनके में भगवान बसते ,
नहीं तो मूर्तियों में ही पाषाण दिखते।

तिनको से पक्षियों का घर बन जाता,
तिनका गजानन के मस्तक पर चढ जाता।
तिनका डूबते को सहारा दे देता है,
तिनका ब्रह्मशीर्षास्त्र का संधान कर देता है।

तिनका पतित को पावन बना देता,
तिनका सूतक के सारे दोष मिटा देता।
तिनके से पितरों का तर्पण होता,
तिनका बड़ा ही अनमोल होता।
✍️मयंक✍️

by Mayank

मनोभाव

September 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आरोपों के कठघरे में खड़े हो चाहे,
या प्रशस्ति पाने उठे हो पैर हमारे।
प्रशंसाओं में कभी हम फूले नहीं,
इल्जामों से चिंताओं में डूबे नहीं।
कभी कभी पीठ पर खंजर भी खाए,
पर कभी स्वार्थ के लिए रिश्ते ना बनाए।
चाहे कभी किसी के खातिर कुछ नहीं किया,
पर कभी किसी को भूलकर दुख नहीं दिया।
अपने अधिकारों को कभी मरने नही दिया ,
उम्मीदो का दीपक कभी बुझने नहीं दिया ।
कभी किसी गलत का साथ नही दिया,
मैने तो सदा अपने मन का किया।
सदा अपना कर्म करता रहा,
चाहे जो हो परिणाम आगे बढ़ता रहा।
जिसने साथ दिया उनका आभार व्यक्त किया,
साथ छोड़ने वालों से भी नहीं मुझको कोई गिला।
कभी किसी को नीचा दिखाया नहीं,
आचरण विरूद्ध कर्म कर कभी कुछ पाया नहीं।
सुखो और दुखो को समय का फेर जाना,
सौभाग्य और दुर्भाग्य को कर्म का खेल माना।
मृत्यु तो नियति मरने से नहीं डरता हूं,
उन्मुक्त उल्लासित करने वाले ही कार्य करता हूं।
चाहे आंखो का पानी हो या सुख दुख की कहानी को कभी व्यर्थ नहीं जाने दिया,
हमेशा अपने मन के भावों को कलम की स्याही में मिलाकर मैंने काव्य बना दिया।
✍️मयंक✍️

by Mayank

बरसात के आंनद और परेशानियां

August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन की कमी पूरी हो गई,
भादों में वर्षा की झड़ी हो गई।
बदरा गरज गरज कर बरस रहे ,
निर्मल झरने कल कल कर बह रहे।

बिजली चम चम कर चमक रही,
मयूरी छम छम कर नाच रही।
ठंडी ठंडी हवा सन सना रही,
प्रकृति में चारो और हरियाली छा रही।

एक तरफ मन में खुशियां आ रही,
दूसरी ओर नदियां तांडव दिखा रही।
मंदिर मकान सबकुछ डूब गए,
अपनों तक जाने वाले रास्ते टूट गए।

भ्रष्टाचारी पुल पहली बारिश सह ना सके,
नदियों की धारा संग मिलकर चल बसे।
चारो और जलजला आ रहा है,
फसलों को अपने में समा रहा है।

सैलाब में भी सेल्फी भा रही ,
जोखिम लेकर गाडियां भी जा रही,
सैनिक जिंदगी बचाने में जी जान लगा रहे,
मगर कुछ तो जान करके मरने जा रहे।

by Mayank

भक्त प्रहलाद

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक असुर के घर पर जनमा हरि का भक्त महान, उसने मां के गर्भ में ही ले लिया भक्ति का ज्ञान।

आयु में छोटा था,नाम प्रहलाद था,
किन्तु हरि पर उसको अटूट विश्वास था।
कोई ग़लत कर्म वे कभी ना करता था,
बस हर समय हरि का ही नाम जपता था।

उसका पिता उसे भी कपटी असुर बनाने पर तुला था,
मगर उसका मन तो केवल प्रभु की भक्ति में लगा था।
प्रहलाद, नारद के सानिध्य में नारायण नारायण सीखता था,
हर समय नारायण नारायण का भजन ही बस करता था।

प्रहलाद का पिता हिरण्यशिपु बड़ा अधर्मी था,
प्रहलाद को हरि भक्ति भुलाने करता नई नई युक्ति था।
कभी उसको खाई में फिखवाता था, तो कभी आग में जलवाता था,
मगर हरि कृपा के कारण वहां प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं कर पाता था।

प्रहलाद के मुख से हरि का नाम हिरण्यशिपु को सहन नहीं हो पाया,
एक दिन अंतिम निर्णय करने का मन बनाया।
बोला, प्रहलाद तेरा हरि बस एक पत्थर है,
तेरा पिता ही सबका सच्चा ईश्वर है।

इसलिए हरि की भक्ति से विरक्ति कर,
तू भी केवल मेरी ही भक्ति कर।
अन्यथा परिणाम उचित नहीं होगा,
तू संसार में जीवित नहीं होगा।

प्रहलाद बोले हरि का नाम तो नश्वर है,
हरि ही समस्त संसार के ईश्वर है।
हिरण्यशिपु बोला मेरा तुझसे बस एक सवाल,
ये बतला रहता कहां पर है तेरा भगवान?

प्रहलाद बोले कण कण में हरि निवास करते है,
तुम्हारे भीतर मेरे भीतर हर जगह पर हरि बसते है,
यहां वहां चारो और बस हरि नाम का ही वर्चस्व है,
धरती से लेकर अम्बर तक हरि तो सर्वस्व है।

क्रोधित हिरण्यकशिपु बोला मुझे तेरे विश्वास का प्रमाण बतला,
इस महल के खंबे के भीतर से तू हरि दिखला।
कुछ ही समय में महल में कंपन्न होने लगा,
महल का खंबा टूटकर नीचे गिरने लगा।

खंबे के भीतर से भगवान नृसिंह अवतार में प्रकट गए,
भगवान का स्वरूप देखकर सब राक्षस डर गए,
नृसिंह भगवान ने क्रोध की दृष्टि से जैसे ही हिरण्यशिपु को देखा ,
उसके मस्तक पर खिच गई चिंता की रेखा।

भगवान नृसिंह ने हिरण्यशिपु को दिया ब्रह्मा का वरदान निभाया,
वर के कारण अधिकमास का पावन मास बनाया,
हिरण्यशिपु को दहलीज पर ले जाकर गोद में लिटा दिया,
बिना कोई अस्त्र शस्त्र के अपने नखो से पापी का वध कर दिया।

प्रभु ने प्रहलाद को गोद में बिठाकर दुलार किया,
सदा महान भक्त बने रहने का वरदान दिया।
✍️✍️मयंक✍️✍️

by Mayank

हम हार नहीं मानेंगे।

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया पर आ पड़ी है विपदा भारी,
चारो ओर से घेरे हुए है भीषण महामारी।

चारो और संकटकाल का दौर है,
सुपरपावर भी बिल्कुल मजबूर है।

अर्थव्यवस्था का हाल बिल्कुल नीचे है,
जैसे कछुआ गाड़ी को खींचे है।

मजदूर मजबूर हो गया है,
मानो भाग्य ही रुष्ठ हो गया है।

प्रवासी पैदल ही अपनों के पास निकल गए,
भूखे प्यासे इस सफर में पैरो में छाले पड़ गए।

गाड़ी घोड़े, काम धंधे सब बंद से हो गए,
गद्दी पर बैठने वाले ठैला चलाने को मजबूर
हो गए।

मानो चारो और प्रलय छा रहा है,
जल भी भीषण तांडव मचा रहा है।

कुछ दुष्ट लोग स्थिति नहीं समझ पाते है,
बच्चो की रोटी छोड़,शराब की बॉटल घर ले आते है।

आमदनी गर्त में समा रही खर्च बड़ता जा रहा ,
सभी नर नारियों पर भयंकर संकट का दौर छा रहा।

मगर संकटों से सदा लड़ना प्रभु तुमने सिखलाया था,
घोर संकट में भी तुमने तो विशाल समुद्र पर सेतु बनाया था।

घनघोर अंधियारों में भी तुमने कर्म का सूर्य दिखाया ,
चिंतन में फंसे हुए अर्जुन को गीता का ज्ञान पड़ाया।

घनानंद के आगे क्या चाणक्य ने हार मानी ,
विकराल चुनौतियों से लड़कर चन्द्रगुप्त को अखंड
भारत की कमान संभाली।

बड़ी बड़ी सेनाओं के आगे डरकर हम रुके नहीं,
कटवा दिए भले ही मस्तक पर हम कभी झुके नहीं।

सदा से हम पीठ में खंजर खाते रहे,
मगर फिर भी हंसता हुआ चेहरा लेकर आगे जाते रहे।

अमेरिकी प्रतिबंधों को हमने आईना दिखलाया था,
हर मुश्किल से लड़कर भारत को परमाणु संपन्न   बनाया था।

भारत की बेटी ने असंभव को संभव करके दिखाया था,
ज्योति ने पिता को बारह सौ किलोमीटर साईकिल
से पहुंचाया था।

चाहे भूत कहूं या वर्तमान हमारा,
मुश्किलों से लड़ना ही है काम हमारा।

हम मां भारती के बेटे बेटी कभी परिस्थिति से
ना भागे ना कभी भागेंगे,
जब तक शरीर में अंतिम श्वास बाकी है हम हार
नहीं मानेगें ।।
                    ✍️✍️मयंक व्यास✍️✍️

by Mayank

मायापति की माया

August 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभिमन्यु वध से व्याकुल अर्जुन जयद्रथ की कायरता  सुनकर के क्रोध से जल उठा।
जल रही प्रतिशोध की आग को शांत करने चीखकर प्रतिज्ञा कर उठा ।
या तो सायंकाल तक जयद्रथ का मस्तक – धड़       से अलग कर दूंगा,नहीं तो जलती चिता पर अपने
प्राण त्याग दूंगा।।

सुनकर अर्जुन की प्रतिज्ञा कौरव खेमे में बेचैनी सी छा गई,
जयद्रथ को लगने लग गया अब तो मृत्यु आ गई।

चारों ओर विचारो का दौर सा शुरू हो गया ,
जयद्रथ सिंध भागने को आतुर हो गया।
किन्तु दुर्योधन ने उसे रोक लिया ,
उसके प्राणों की रक्षा का वचन दिया।

अब फैसले का दिन शुरू हो गया था ,
जयद्रथ तो मानो विलुप्त सा हो गया था।
जैसे – जैसे दिन बीतता जा रहा था,
पांडवो के हृदय में अंधेरा सा छा रहा था।

द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा को एक घेरा बना दिया,
घेरा जैसे मानो की जयद्रथ को युधस्थल से छुपा ही दिया।
युद्ध की स्थिति को चक्रधारी ने भाप लिया,
नज़रे तिरछी करके सूर्य को अस्त होने का
आदेश दिया।।

मायापति की माया से थे सब अनजान,
समझ बैठे सब मानो की अर्जुन का हो गया विनाश,
चतुर्दिश छा उठा घोर अंधियारा
सुर्य का था ना कोई नामोनिशान,
भूखे गिद्ध उड़ रहे चारों और
कुरूक्षेत्र मानो बन गया था शमशान।

कौरव जोर जोर से हर्षित हो चीख रहे थे,
पांडव खेमा शोक से बिल्कुल शान्त था।

तभी युद्ध समाप्त समझकर तोड़कर सब घेरा,
बाहर गया छुपा बैठा जयद्रथ अकेला।
कहने लगा है अर्जुन तुम अपनी प्रतिज्ञा निभाओ,
जलती हुई चिता में जाकर बैठ जाओ।

तभी चक्रधारी ने अपना खेल दिखलाया ,
अपनी तिरछी नजर को दिनकर की और घुमाया,
समझकर चक्रधारी का आदेश चतुर्दिश
अंधेरों को चीरता हुआ प्रकाश छा गया,
चिता पर बैठने को जाता हुआ अर्जुन
लौटकर वापस रथ पर आ गया।
फिर क्या था धनुर्धर ने तनिक भी समय ना लगाया,
खीचकार गांडीव की प्रत्यंचा जयद्रथ का मस्तक उसके ही पिता की गोद में गिराया।

हैरान सभी ने पूछा बस यही कि सूर्यास्त के जैसी वो कैसी छाया थी,
तभी हंसते हुए श्रीकृष्ण को देखकर सब समझ गए
वो कोई छाया न थी।
वो तो साक्षात् ” मायापति  की माया” थी।।

by Mayank

सैनिक की अंतिम चाहत

August 25, 2020 in मुक्तक

मैं सैनिक हूं,
मैं देश को संभालता हूं,
हर रोज मृत्यु को मारता हूं,
मैं मौत से नहीं डरता हूं,
मौत को तो मुठ्ठी में लेकर चलता हूं,
परिवार की चिंता नहीं करता हूं,
परिवार देश के हवाले करता हूं,
अंतिम समय में भी स्वार्थ नहीं चाहता हूं,
बस एक ही ख्वाहिश ही ईश्वर से फरमाता हूं,
है ईश्वर कुछ ऐसा चमत्कार कर दो ,
मुझमें फिर से प्राणों को भर दो,
बस भारती के शत्रुओं को मस्तक विहीन कर दूं,
हिन्दुस्तान को शत्रुविहीन कर दूं,
फिर खुशी खुशी प्राणों को न्योछावर कर दूंगा,
अपने प्राण वतन के हवाले कर दूंगा।2।

  बस मां तू दुखी मत होना,
  देश की सेवा करना तो मेरा भाग्य है,
  देश ही मेरे लिए सबसे बड़ा भगवान है,
  मृत्यु के मारे क्या में मर जाऊंगा,
  पुनर्जन्म पाकर फिर से तेरा बेटा बनकर आऊंगा,
  कालखंड ये जीवन मृत्यु का सदा चलाऊंगा,
  दोबारा से देश सेवा करने को जरूर जाऊंगा,
  देश की रक्षा को ही अपनी नियति बनाऊंगा,
  जरूरत पड़ी तो हर जनम में अपने प्राण वतन के हवाले  कर जाऊंगा।।
✍️✍️मयंक व्यास✍️✍️

by Mayank

देश दर्शन

August 24, 2020 in मुक्तक

शब्दों की सीमा लांघते शिशुपालो को,
कृष्ण का सुदर्शन दिखलाने आया हूं,
                                 मैं देश दिखाने आया हूं।।

नारी को अबला समझने वालों को,
मां काली का रणचंडी अवतार
याद दिलाने आया हूं,
                         मैं देश दिखाने आया हूं।।

वचन मर्यादा को शून्य कहने वालो को,
राम का वनवास याद दिलाने आया हूं,
                                 मैं देश दिखाने आया हूं।।

प्रेम विरह में मरने वालो को,
गोपियों का विरह बतलाने आया हूं,
                                    मैं देश दिखाने आया हूं।।

भक्त की भक्ति को मूर्ख समझने वाले को,
होलिका का अंजाम याद दिलाने आया हूं,
                                   मैं देश दिखाने आया हूं।।

भक्ति प्रेम को ज्ञान सिखलाने वालो को,
उद्धव का हाल बताने आया हूं,
                                    मैं देश दिखाने आया हूं।।

सत्ता को सबकुछ समझने वालो को,
भीष्म का त्याग का याद कराने आया हूं,
                                    मैं देश दिखाने आया हूं।।

भगवान का पता पहुंचने वालो को,
खंब से प्रगटे नृसिंह दिखलाने आया हूं,
                                     मैं देश दिखाने आया हूं।।

माता पिता को बोझ समझने वालो को,
श्रवण कुमार का सेवाभाव दिखलाने आया हूं,
                                   मैं देश दिखाने आया हूं।।
       
गंगा को मैली करने वालो को,
भागीरथ का तप याद कराने आया हूं,
                                    मैं देश दिखाने आया हूं।।

आजादी को शून्य समझने वालो को,
अनन्त बलिदानों का बोध कराने आया हूं,
                                    मैं देश दिखाने आया हूं।।

राह भटकते  युवाओं को,
राह बतलाने आया हूं,
                             मैं देश दिखाने आया हूं।।

कविता पड़ने वालो को ,
मयंक की ‘कलम का प्रणाम’ कराने आया हूं,
                                  मैं देश दिखाने आया हूं।।
       🙏🙏✍️✍️मयंक✍️✍️🙏🙏

by Mayank

श्री गणेश वंदना

August 22, 2020 in Other

है बुद्धिदाता,बुद्धि का सबको दान करो।

है चिंताहरण,संसार की सब चिंता हरो।

है विघ्नहर्ता ,सृष्टि के सब विघ्न हरो।

है पापहर्ता ,नर नारी के सब पाप हरो।

है वक्रतुंड,निर्विघ्न सब मेरे काज करो।

है सूर्यकोटि,दूर जगत का अंधकार करो।

है रिद्धि सिद्धि के स्वामी,हर घर में तुम वास करो।

है मुषकधारी,इस सेवक को सेवा में स्वीकार करो।

है कृपासागर,इस सेवक पर बस एक कृपा करो।

मन ना मेरा भटके कभी, हर पल बस तेरा ध्यान धरूं।

by Mayank

“मैं स्त्री हूं”

August 20, 2020 in Other

सृष्टि कल्याण को कालकूट पिया था शिव ने,
मैं भी जन्म से मृत्यु तक कालकूट ही पीती हूं।
                                                   मैं स्त्री हूं।
                                             (कालकूट – विष)

मचा था चारों ओर घोर त्राहिमाम जब,कोई ना था बचाने को,
तब तुम्हें बचाने वाली दुर्गा – महाकाली हूं।
                                                    मैं स्त्री हूं।

मैं जटाधीश की जटाओं से बहने वाली हूं,
मैं सगर के पुत्रों को मुक्त कराने वाली हूं,मैं गंगा हूं,
                                                        मैं स्त्री हूं।

है राम अगर मर्यादा पुरषो्तम तो,
मैं भी तो मर्यादा की देवी हूं,मैं सीता हूं,
                                               मैं स्त्री हूं।

मैं सदा अपना पतिव्रत धर्म बचाने वाली हूं,
मैं तप से त्रिदेवो को भी शिशु बनाने वाली हूं, मैं अनुसुइया हूं,
                मैं स्त्री हूं।

मैं राम कृष्ण को जनने वाली हूं,
मैं माता हूं, मैं बहन हूं, मैं वंश बढ़ाने वाली हूं,
                                                       मैं स्त्री हूं।

मैं हर दुख को सहने वाली हूं,में राधा हूं,
मैं सदा भक्ति प्रेम करने वाली हूं, मैं मीरा हूं,
                                                     मैं स्त्री हूं।

मैं काल से सत्यवान को बचाने वाली हूं, मैं सावित्री हूं,
मैं सदा शौर्य दिखलाने वाली हूं,में लक्ष्मीबाई हूं,
                                                         मैं स्त्री हूं।

मैं सम्मान की खातिर जीने मरने वाली हूं,
मैं चित्तौड़ का जौहर दिखलाने वाली हूं, मैं पद्मिनी हूं,
                                                        मैं स्त्री हूं।

में सर्वस्व त्याग समर्पण करने वाली हूं ,
में सदा सहनशीलता रखने वाली हूं,
                                             मै स्त्री हूं।

मैं कदम से कदम मिलाकर चलने वाली हूं,
मैं जरूरत पड़ने पर पिता का अंतिम संस्कार भी करने वाली हूं,
              मैं स्त्री हूं।

मैं दयावान हूं,में बुद्धिमान हूं, मैं किसी पुरुष से कम नहीं ,
फिर भी अपने अपने सपनों को कुचलने वाली हूं,
                                                        मैं स्त्री हूं।

सब कुछ अपना न्योछावर करके भी,
बस प्रेम चाहने वाली हूं, मैं संतोषी हूं,
                                            मैं स्त्री हूं।

मैं तेरी हर मुश्किल हर लेने वाली हूं,
मैं मयंक जनने वाली हूं ,
                               मैं स्त्री हूं।
                        ✍️✍️मयंक “उषा” व्यास✍️✍️

by Mayank

बचपन

August 19, 2020 in Other

वो मां का हाथ पकड़कर चलना,
वो दौड़कर भाई का पकड़ना।

वो दादी के किस्से कहानी सुनना,
वो धागे में हाथ पिरोना।

वो गर्मी में नानी के घर जाना,
वो मामा का गोद में उठाना ।

वो दोस्तो के साथ दिनभर खेलना,
वो चिंतामुक्त शरारती जीवन जीना।

वो सुबह उठकर स्कूल जाना,
वो बहाना बनाकर वापस आना।

वो स्कूल में तिरछी आंखों से उसे निहारते रहना,
वो शक्तिमान का नाटक देखते रहना।

वो रूठकर कोने में बैठ जाना,
वो मां का दुलार पाकर मान जाना।

कोई बतलाए क्या हम पानी में आग लगा सकते है?
क्या फिर से  बचपन पा सकते है-2?

मेरी बस यही गुजारिश है ,
अपनी उम्मीदों का बोझ तुम बच्चो पर मत डालो,
तुम बच्चो का बचपन मत मारो।

by Mayank

सच्ची आजादी दिला दो तुम

August 19, 2020 in गीत

हे दीनबंधु,परमपिता परमात्मा,
करते हम तुमसे बस यही प्रार्थना,
सच्ची आजादी दिला दो तुम ,
एक ऐसा देश बन दो तुम।

बेटियां जहां कोख में ही ना मारी जाती हो,
हर घर में हर नारी सुख सम्मान पाती हो।

माता पिता को जहां पुत्र से सम्मान मिले,
भाई भाई में राम लखन सा प्यार मिले।

देश का हर नेता जहां भ्रष्टाचार मुक्त हो ,
देश का हर घर निर्धनता विमुक्त हो।

शिक्षा जहां समान अधिकार से मिलती हो,
हर कृष्ण को अपनी राधा मिलती हो।

जहां अमीरी और गरीबी की गहरी खाई ना देखी जाती  हो,
पैसों की खातिर मर्यादाएं ना बेची जाती हो।

देश का युवा जुड़ जाए जहां संस्कृति संस्कारो से,
राम सी मर्यादा रखता हो जो अपने विचारो से।

मेरी कल्पनाओं में सत्य के पर लगा दो तुम,
सच्ची आजादी दिला दो तुम,
एक ऐसा देश बना दो तुम।

by Mayank

तू मेरी है जिंदगी

August 19, 2020 in Other

एक प्यारा सा सपना! है जिंदगी,
तेरी जुल्फों का लटकना !है जिंदगी,
तेरी आंखो का काजल! है जिंदगी,
मैने कहा तू मेरी! है जिंदगी।

तेरे पैरो कि पायल, हैं जिंदगी!
तेरे हांथो का कंगन, है जिंदगी!
तेरा मेरा बंधन ,है जिंदगी!
मैने कहा तू मेरी, है जिंदगी।

तेरा खिलखिलाना, है जिंदगी!
तेरा रूठकर बैंठ जाना,है जिंदगी!
मेरा तुझको मनाना,है जिंदगी!
मैने कहा तू मेरी ,है जिंदगी।

मेरा तुझको पुकारना, है जिंदगी!
तेरा इंतजार कराना,है जिंदगी!
तेरा दौड़कर आना ,है जिंदगी!
मैने कहा तू मेरी ,है जिंदगी।

by Mayank

सत्ता के निराले खेल

August 19, 2020 in Other

मध्य प्रदेश की राजनीति का खेल बड़ा निराला था,
पांच साल की सत्ता को दो वर्षो में ही मारा था।

महाराज के सारे सपने एक वर्ष में टूट गए,
महाराज कांग्रेस से बिल्कुल देखो रूठ गए।

रूठकर महाराज ने सालो पुराना रिश्ता तोड़ दिया,
महाराज ने कॉग्रेस से सारा नाता तोड़ दिया।

चलती सत्ता की गाड़ी को पटरी से उतार दिया,
मामा के संग मिलकर फिर से कमल खिला दिया।

देखने वाले देखते ही रह गए,
महाराज राज्यसभा का टिकट ले गए।

सालो पुराने सारे शिकवे दो पल में ही मिट गए,
सत्ता बनाने मामा – महाराज एक साथ मिल गए।

एक तरफ तो बारात में बारातियों का मेला है,
दूसरी तरफ खड़ा दूल्हा बिल्कुल अकेला है।

आने वाले उपचुनाव है या फिर शीत युद्ध की तैयारी है,
जनता का तो पता नहीं पर सत्ता सबको प्यारी है।
                             ✍️✍️मयंक व्यास✍️✍️

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