जब से देखा चेहरा तेरा

July 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब से तेरा चेहरा क्या देख लिया इन आँखों ने
किसी और को पलकें उठा के देखना ही नही चाहतीं ।।

तेरा चेहरा

July 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

एक तेरा ही तो चेहरा है
जिसको देख लूँ तो तो
मेरा पूरा दिन बन जाता है।।

यकीन रख बन्दे

July 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज रात है तो कल सवेरा भी होगा
यकीन रख बन्दे जो होगा सब सही होगा।।

वक़्त

July 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी कभी वक़्त ऐसा आता है कि हम उसको जाने नही देना चाहते
और कभी ऐसा वक़्त भी आता है जिसको हम आने नही देना चाहते
लेकिन वक़्त तो वक़्त है समय के साथ ही चलता चला जाता है
चाहे वो सुख का हो या दुःख का सबके सामने आता ही आता है।।

काश मैं होती तितली रानी

July 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश मैं होती तितली रानी
सबके मन को भाया करती
रंग बिरंगे पंखों से मैं
बच्चों को भी खूब लुभाती
दुनिया भर में घूमा करती
न कोई बंधन में मैं बंधती
खुले गगन की सैर हो जाती
फूल फूल का रस पी जाती
कोई भी सीमा लाँघ मैं जाती
अपने प्यारे पंखों का रंग
तुम्हारे हाथ भी छोड़ मै जाती।।

मौका

July 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मौका तो दो एक बार खुद को सही साबित करने का
क्यों दूसरों से सुनी बातों पर विश्वास कर बैठते हो।।

काश सपने हकीकत हो जाएँ

July 9, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश मेरे सपनों को हकीकत की शक्ल मिल जाये
बिन पंखों के आसमान छूने का हौसला मिल जाये
यूँ तो खोये रहते हैं दिन भर खवाबों में ही
शायद फिर कुछ हकीकत में जीना सीख जाएँ।।

अंक सात का ईश्वरीय खेल

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ईश्वर ने भी अंक सात को
बड़ा ही शुभ बनाया है
सात दिनों में इस जगत का
सुन्दर निर्माण कराया है
संग सात फेरों के लेकर
रिश्ते वचन निभाते हैं
सात दिनों के एक सप्ताह का
सुन्दर मेल बनाया है
इंद्रधनुष में सात रंग का
अद्भुद खेल रचाया है
वही सात सुरों से मिलाकर
मधुर संगीत बनाया है
सात ही हैं अच्छाई जगत में
और सात ही हैं बुराई
सात ही हैं पूजनीय हमारे
सात ही हैं इंसानी बुराई।।

आइना

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये मेरे आइने को भी आजकल
न जाने क्या हो गया है
मेरी छवि को छोड़ कर
आपकी छवि दिखाने लगा है।।

क्यों

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों जन्म लेने से पहले ही, मार देते हो मुझको
क्या मुझको हक़ नही, इस दुनिया में जीने का
भूल गए हो तुम, ज़रा अपनी आँखों को खोलो
गौर से देखो तुम्हें भी किसी औरत ने ही जन्मा होगा
न होते तुम भी इस धरती पर, गर तुम्हारी माँ के साथ भी किया होता ऐसा।।

काश

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश हम खुशियों के पल को यूँ ही रोक पाते
गमों की एक भी परछाईं को आप को न छूने दे पाते।।

अच्छे कपड़ों की जरूरत नही

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा बनने के लिए जरूरी नही कि मै अच्छे कपडे पहनूँ
मै जानती हूँ कि मेरा दिल सच्चा है मुझे दिखावे की कोई जरूरत नही
तुमको अगर जानना है मुझको तो
मेरी अच्छाइयों से जान सकते हो
गलती भी गर करती हूँ तो भी उसको स्वीकारती हूँ।।

कठपुतली

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बनाकर कठपुतलियों को अपने इशारों पर नचाते हैं
धागों से चारों तरफ फिर उनको बाँधते हैं
बेजान सी होकर भी सबके मन को लुभाती है
अपने मनभावन नृत्य से वो पैसे कमाती है।।

मकान और घर

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस दुनिया में मकान बनाना तो बहुत आसान है
लेकिन मकान को घर बनाना उतना ही मुश्किल ।।

ईश्वर का शुक्रिया

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब भी कुछ माँगता हूँ तो
हर बार तू मुझको देता है
कभी न करता उदास तू मुझको
झोली तू मेरी हर वक़्त भरता है
कैसे करूँ मैं शुक्रिया अदा तेरा
ये दिल हर वक़्त तेरा नाम जपता है।।

हर किसी को

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर किसी को एक ही तराजू में न तोल तू बन्दे
ईश्वर ने हर एक को कुछ न कुछ अलग दिया है।।

ये जो दुनिया

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये जो दुनिया छोड़ के चले जाते हैं
पहले से कुछ भी न बताते हैं
जाने कहाँ और कैसे रहते हैं
कुछ भी खबर न हमको बताते हैं
कैसा है नया आशियाना उनका
सब के सब सवाल हमारे जहन में ही छोड़ जाते हैं।।

ए हर वक़्त

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ए हर वक़्त व्यस्त रहने वाले दोस्त
कुछ वक़्त हमारे लिए भी निकाल
फिर न कहना कि तुम क्यों रुसवा हो गए
अभी हमने कुछ भी न कर पाई बात।।

बिन पंखों के

July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिन पंखों के उड़ान भर सकती है
गर साथ हो तुम्हारा तो
दुनिया भी जीत सकती है।।

नन्हे कदम

July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपने नन्हें कदमों से दिन भर
छन छन करती फिरती है
कभी इधर तो कभी उधर वो
उछलती कूदती रहती है

बंधन मुक्त वो पंछी की भाँति
सीमाओं को न जानती है
अपने घर से दूसरे के घर
दिन भर दौड़ लगाती है

अपने पराये की भी समझ न
उसको अभी न बिलकुल है
अपनी चीज़े उसकी चीज़ें
सबको मिलाये रहती है।।

भाई

July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी अनुजा का अंगरक्षक होता है
ईश्वर का दिया अनमोल उपहार होता है
अपनी जीत को भी न्योछावर करता है
हर इच्छा को वो पूरी करता है
सर आँखों पर अपनी बैठाकर रखता है
अगर आ जाये कोई तकलीफ तो
उसका तुरंत उपाय खोजता है
कलाई पर बंधे रक्षासूत्र को
सीने से लगाये रहता है
मुँह से निकली हर बात को पूरा करता है
जिन्दगी को जो खुशियों से भर देता है
ऐसा ही एक बड़ा भाई होता है।।

ज़िन्दगी

July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये जिंदगी थोडा अपनी रफ़्तार को धीमा तो कर
हम जब तक कुछ समझे तू और आगे निकल जाती है।।

एक तेरा ही प्यार

July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक तेरा ही प्यार निःस्वार्थ है माँ
बाकी तो हर जगह स्वार्थ ही निहित है माँ।।

मुखौटा

July 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जहाँ भी जाओ वही हर एक शख्स के
अलग ही मुखौटा लगा होता है
बाहर से कुछ दिखलाई पड़ता है
अंदर से कुछ और ही होता है।।

अजन्मी बेटी की पुकार

June 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ मुझे भी इस दुनिया में ले आओ न
इस जग की लीला मुझे भी दिखलाओ न
खुले आसमान के नीचे मुझको घुमाओ न
अपनी ममतामई गोद में खिलाओ न
पढ़ा लिखा कर मुझे भी अफसर बनाओ न
गर्व से करूंगी नाम रोशन आप सबका माँ
मान और सम्मान सब दिलवाऊँगी माँ
पापा का भी हाथ मैं बटाऊँगी माँ
न मारो मुझको यूं तोड़ कर माँ
मौका तो दो कुछ कर गुजरने का माँ।।

मिट्टी के ढेर

June 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिट्टी के ढेर हैं हम सब यहाँ
वक़्त का खेल है न जाने कब बिखर जाये।।

मिट्टी के ढेर

June 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिट्टी के ढेर हैं हम सब यहाँ
वक़्त का खेल है न जाने कब बिखर जाये।।

कुछ बनना है तो

June 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ बनना है तो फूलों की तरह बनों
अपनी महक से दुनिया महका दो
कुछ बनना है तो तितली की तरह बनों
अपने रंग दूसरों में बिखरा दो
कुछ बनना है तो जुगनू की तरह बनों
अपनी रोशनी से दुनिया जगमगा दो
कुछ बनना है तो दुग्ध की तरह बनो
अपने अंदर दुनिया समां लो।।

पापा

June 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

गर देती है जन्म माँ तो
जिंदगी संवारते हैं पापा
जितना भी हो सकता है
सब कुछ कर गुजरते हैं पापा
जेब गर खाली भी हो तो
कर्ज ले आते हैं पापा
अपने बच्चों के सपने को
हकीकत में बदल देते हैं पापा
जिस भी चीज़ को मांगो
तुरंत दिला देते है पापा
अपने बच्चों के लिए
कुछ भी कर गुजरते हैं पापा
उँगली पकड़ के चलना सिखाकर
खुद के पैरों पर खड़ा करते हैं पापा
जिंदगी की हर जमा पूँजी को
बच्चों पर न्योछावर करते हैं पापा।।

बहुत से ख़्वाब

June 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत से ख़्वाब है आँखों में मेरे
सारे नहीं तो कुछ तो हकीक़त में आएँ
माना के करनी है बहुत मेहनत हमको भी
ज़रा आप भी तो उसमे अपना हाथ मेरे सर पर लाएँ।।

कामना

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हमारे दिल की धड़कन है तू
हमारे जिगर का टुकड़ा है तू
छुए तू इतनी ऊंचाइयों के कि
दुनियां जहाँ में मशहूर हो तू।।

माँ

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया की भीड़ में जब कभी अकेली होती हूँ
तो बहुत याद आती है मुझे मेरी माँ
खुशियाँ हो या गम हो हर सुख दुःख में
बहुत याद आती है मुझे मेरी माँ
जब भी किसी तकलीफ़ में होती हूँ
तो बहुत याद आती है मुझे मेरी माँ
जब कभी नींद न आती है मुझे
तो बहुत याद आती है मुझे मेरी माँ
जब होती हूँ बेचैन तो बस
तेरी सुकून की गोद याद आती है मुझे मेरी माँ
जब दिल याद में तेरी भीगा होता है
तो सिर्फ तेरा ही आँचल याद आता है मुझे मेरी माँ।।

बदलती जिंदगी

May 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल तक जिस आँगन में पली और बड़ी हुई
आज उसी के लिए पराया हो गया है
कल तक जिस चीज़ को मन करता उठाया
आज अपने वो हाथों को बाँधे बैठी है
कल तक जो करती थी अतिथि सत्कार वो
अब खुद उसी जगह पर आ बैठी है
कल तक जो सारी बातें साझा करती थी
आज वो कई बातों को छिपाये बैठी है
कल तक तो थी हर जिम्मेदारी से दूर
आज वही जिम्मेदारियों को संभाले खड़ी है
कभी रहती न थी चुपचाप और गुमसुम
आज वही एकांत किसी कोने में खड़ी है
कल तक तो थी सभी बंधनों से मुक्त
आज वो हज़ारों बंधनों से बंधी है।।

बेटी

May 29, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँखों ही आँखों में जाने कब बड़ी हो जाती है
बिन कुछ कहे सब कुछ समझ जाती है
जो करती थी कल तक चीज़ों के लिए ज़िद
आज वो अपनी इच्छाओं को दबा जाती है
अब कुछ भी न कहना पड़ता है उससे
सब कुछ वो झट से कर जाती है
एक गिलास पानी का भी न उठाने वाली
आज पूरे घर को भोजन पकाती है
कभी भी कहीं भी बैग उठा कर चल देने वाली
आज वो अपना हर कदम सोंच समझ कर बाहर निकालती है।।

जोकर

May 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहने सर पर नीली टोपी
उछलता -कूदता आता है
कभी इधर तो कभी उधर
नाचता और नचाता है।

भर अपने थैले में टॉफी
बिस्कुट सबको लाता है
हाथ मिलाकर बच्चों से एक
जादू की झप्पी लेता है।

रोते बच्चे को झट से अपनी
बातों में वो लेता है
मुँह फुला कर तोंद दिखाकर
खुशियाँ उसको देता है।

बच्चों के संग मिलजुल कर वो
खेलता और खिलाता है
चंद पैसो के खातिर वो ये
सब कुछ हँस कर करता है

हज़ारों गमों के समुन्दर को वो
ज़ाहिर कभी न करता है
कहलाता अपने आप को जोकर
खुशियाँ हर- क्षण बिखेरता है।।

मत कैद करो

May 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत कैद करो इन मासूम परिंदों को यूँ पिंजरे में
इनको भी हक़ है खुले आसमां में विचरण का।।

मत कैद करो

May 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत कैद करो इन मासूम परिंदों को यूँ पिंजरे में
इनको भी हक़ है खुले आसमां में विचरण का।।

शतरंज की बिसात

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब तो कदम -कदम पर लोग शतरंज की बिसात बिछाये बैठे रहते हैं
एक मामूली सी चूक पर तत्काल मात दे डालते हैं।।

खिलौने वाला

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथ में लेकर सीटी आता
साइकिल पर होकर सवार
एक डंडे पर ढेर से खिलौने
जिसमे रहते उसके पास

गली गली और सड़क सड़क
बच्चों की खुशियाँ लाता है
देख के बच्चे शोर मचाते
खिलौने वाला आया है

देख कर चिंटू मिंटू से कहता
धनुष बाण तो अब मैं लूँगा
तब मिंटू चिंटू से कहता
हनुमन गदा को मै ही लूँगा

इतने में आती है भोली
देख के बर्तन करती ठिठोली
कहती बर्तन मैं भी लूंगी
लूँगी साथ में गुड़िया चूड़ी

सोहन मोहन दौड़े आते
कहते हम भी लेंगे कुछ
एक है कहता वंशी लूँगा
दूजा कहता मैं लूँगा फूल

देकर खुशियाँ सबको जाता
सबके मन को भाता है
गली गली और सड़क सड़क
सबको खुशियाँ बिखरता है।।

खिलौने वाला

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथ में लेकर सीटी आता
साइकिल पर होकर सवार
एक डंडे पर ढेर से खिलौने
जिसमे रहते उसके पास

गली- गली और सड़क- सड़क
बच्चों की खुशियाँ लाता है
देख के बच्चे खुश शोर मचाते
खिलौने वाला आया है।

देख कर चिंटू ,मिंटू से कहता
धनुष बाण तो अब मैं लूँगा
तब मिंटू ,चिंटू से कहता
हनुमन गदा को मै ही लूँगा।

इतने में आती है भोली
देख के बर्तन करती ठिठोली
कहती बर्तन मैं भी लूंगी
लूँगी साथ में गुड़िया चूड़ी।

सोहन – मोहन दौड़े आते
कहते हम भी लेंगे कुछ
एक है कहता वंशी लूँगा
दूजा कहता मैं लूँगा फूल।

देकर खुशियाँ सबको जाता
सबके मन को भाता है
गली- गली और सड़क -सड़क
सबको खुशियाँ बिखरता है।।

अश्रु

May 23, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

नयनों से निकले अश्रु भी बड़े अज़ीब है
ख़ुशी हो या गम हो हर बात पर निकल पड़ते हैं।।

कवि

May 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कवि ही हैं जो बिखरे हुए शब्दों को,
खूबसूरत माला में पिरोकर रख देते हैं।।

आज़ादी

May 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों कैद करते हो पंछियों को
आज़ाद कर दो इनको सब आज
इनको भी हक़ मिला हुआ है
खुले आसमाँ में विचरण का जनाब
गुलामी में जीना किसको पसंद है
दे दो आज़ादी इनको भी आज।।

किसान

May 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितनी भी धूप हो, कितनी भी ठण्ड हो
काम पर अपने लगे ही रहते
दिन हो या रात हो,सुबह हो शाम हो
खेत पर हल को, चलाते ही रहते
हर एक बीज को प्यार से सींचते
हर पल उनकी देखरेख करते
बारिश न हो तो बूँद को तरसते
ईश्वर से फिर प्रार्थना करते
अपने बच्चों के पेट को ही न सिर्फ
दुनिया जहान के पेट को भरते
कभी न रुकते कभी न भटकते
कठिन परिश्रम वो हर पल करते।।

गर्मियों की छुट्टियाँ

May 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हुई हैं
बच्चों में नई लहर दौड़ उठी है
खेलेंगे -कूदेंगे अब दिन भर जमकर
मस्ती और मस्ती खुलकर करेंगे
दीदी भैया साथ गृह कार्य करेंगे
विद्यालय से मिला कार्यकलाप करेंगे
नई -नई जगह पर घूमेंगे फिरेंगे
वहाँ से जुडी बाते जानेंगे
ज्ञान को अपने और विस्तृत करेंगे
कुछ गायन -वादन सीखेंगे
कुछ कंप्यूटर चलाना सीखेंगे
अलग -अलग शिविरों से जुड़ेंगे
अपनी प्रतिभा को वो निखारेंगे
फिर तरोताजा महसूस करेंगे
आगे की पढ़ाई फिर जमकर करेंगे।।

गुब्बारे

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख गुब्बारे वाले को जब
बच्चे ने आवाज़ लगाई
दिला दो एक गुब्बारा मुझको
माँ से अपनी इच्छा जताई।

देखो न माँ कितने प्यारे
धूप में लगते चमकते सितारे
लाल, गुलाबी, नीले ,पीले
मन को मेरे भाते गुब्बारे।

देख उत्सुक्ता माँ तब बोली
बच्चे माँ मन रखने को
भैया दे दो इसको गुब्बारा
पैसे ले लो मुझसे तुम।

दुनिया

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसी ये दुनिया बनाई प्रभु ने
सब वक़्त के साथ जिए जा रहे हैं
ऊँगली पकड़ के चलना सीख कर
कन्धों के सहारे चले जा रहे हैं।।

ख्वाइश

May 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाइश तो है कि आसमां को छुऊँ
लेकिन जमी से मुझे ज्यादा लगाव है।

कामकाजी महिला

May 12, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह के चार जैसे ही बजते हैं
आँखें उसकी खुल जाती हैं
इधर से उधर,उधर से इधर
साफ़ सफाई से शुरुआत है करती
खाना बना के सबको रखती
बच्चों को विद्यालय छोड़ती
नौकरी को तैयार हो जाती
दस से पाँच के कर्तव्य निभाती
घर आ कर फिर काम में लगती
बच्चों को गृहकार्य करवाती
फिर शाम का भोजन बनाती
परिजन के साथ मिल कर खाती
बच्चों को मीठी नींद सुलाती
थक हार कर फिर खुद सो जाती
अगले दिन फिर जल्दी उठ जाती।।

अक्षर

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अक्षर से शब्द बना
शब्दों से बने वाक्य
वाक्यों से फिर कविताएँ बनी
जिनको पढ़ रहे आप।

New Report

Close