इजहार कीजिये

July 30, 2020 in मुक्तक

इतना न दूसरे से परेशान होइए
प्यार कीजिये, मनुहार कीजिये
रूठे हुए दिलों को मनाने के वास्ते
मनुहार कीजिये इजहार कीजिये

उन्हें सलाम करते हैं हम

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपना शीश चढ़ा देते हैं
जो भारत के कदमों पर
उन्हें वीर कहते हैं हम
उन्हें सलाम करते हैं हम.
सरहद पर सीना ताने
बन्दूक लिए हैं कन्धों पर
उन्हें वीर कहते हैं हम
उन्हें सलाम करते हैं हम।
कोई भी दुश्मन आँख उठाकर
देख न पाए भारत को
ऐसे जांबाज खड़े सीमा पर
उन्हें सलाम करते हैं हम।
जाड़ा, गर्मी, बारिश कुछ हो
अडिग खड़े हैं सीमा पर
उन्हें वीर कहते हैं हम
उन्हें सलाम करते हैं हम।
—— डॉ. सतीश पांडेय

अब तो चुनर भिगा लो

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाओ न इस तरह से
बरसात की ऋतु है,
रूठो न इस तरह से
बरसात की ऋतु है।
छोटी सी जिंदगी है
दूरी में मत बिताओ,
तन्हा रहो न ऐसे
बरसात की ऋतु है।
बाहर बरस रहे हैं,
सावन के मेघ रिमझिम
अपनी लगी बुझा लो
बरसात की ऋतु है।
कब तक रहोगे प्यासे
कब तक रहोगे सूखे
अब तो चुनर भिगा लो
बरसात की ऋतु है।
आओ ना पास आओ
ऐसे न दूर जाओ
श्रृंगार रस पिलाओ
बरसात की ऋतु है।
—— डॉ. सतीश पांडेय

बेकार आ गए

July 30, 2020 in मुक्तक

उनके शहर में, हम बेकार आ गए,
उनका खरीदा था शहर, हम बेकार आ गए।

आपकी चाहत रखी है

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम तो हो फ़ाजिल मनुज
हम कहे जाते पिशुन
हैं गिरे निर्वास गुल,
क्यों उठाकर सूँघते हो।
वह प्रभा जिससे तुम्हें
अनुरक्ति हमसे हो गई,
असलियत वो है नहीं
केवल दिखावा है हमारा,
वास्तविकता में हमारे
अन्तसों में है अंधेरा
बुद्धि के कंगाल हैं हम
खून में पानी भरा है।
रूढ़िवादी सोच के हैं
अक्ल के अंधे रहे हैं,
बस चली आई लकीरों
पर ही चलना जानते हैं।
इसलिए हमने हमेशा
आपसे दूरी रखी है,
दूर से चुपचाप से ही
आपकी चाहत रखी है।
——- डॉ0 सतीश पाण्डेय
कुछ टाइपिंग सुधार के साथ

सच्चाई लिखना सीखा है

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमसे ही लिखना सीखा है
तुमसे से ही कहना सीखा है,
जो बात उगी भीतर के मन में
उसको ही कहना सीखा है।
सच्चाई तो सच्चाई है
सच पर ही चलना सीखा है,
झूठ से लड़ना सीखा है
सच पर ही मरना सीखा है।
धार कुंद कर लेखन की
बस लिखते रहना सीखा है,
तुमसे ही लिखना सीखा है
सच्चाई लिखना सीखा है।

चाहत तुम में भी मुझ में भी

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं भी साधारण मानव हूँ,
तुम भी साधारण मानव हो
कमियां तुम में भी मुझ में भी
आंसू तुम में भी मुझ में भी।
गलती तुम से भी हो जाती है
गलती मुझ से भी हो जाती है,
गलती अपनी गलती का
अहसास हमें करवाती है।
आ अब गलती की खोज नहीं
कमियों की कोई ढूंढ नहीं,
आ प्यार करें इक-दूजे से
चाहत तुम में भी मुझ में भी ।
—- Dr. satish Pandey

पिता जी को विदाई

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विदा देने में रोता तो कैसे
उनके जाने में रोता तो कैसे
यात्रा का सफर का है जीवन
इन पड़ावों में रोता तो कैसे।
वो चले छोड़ जीवन की धारा
थम गई उनकी धड़कन सदा को
देखता रह गया मेरा अन्तस्
अन्त के वक्त रोता तो कैसे।
जिम्मेदारी अचानक से आकर
मुझसे कहने लगी थी न रो तू
दे दे अंतिम विदाई पिता को
इस समय अपना आपा न खो तू।
मान्यता कह रही थी खड़े हो
आत्मा जो चली स्वर्ग पथ पर
आंसुओं से उसे कष्ट होगा
कष्ट देने को रोता तो कैसे।
इसलिए सब तरफ से संभलकर
उनको दे दी थी अंतिम विदाई
स्वजन भाई बांधव पड़ोसी और
और मित्रों ने ढाढस बंधाया।
बारह दिन तक सभी ने पहुंच कर
शोक मन का भुला सा दिया था
अब चले अपनी मंजिल को सारे
आज उड़भाड़ सा लग रहा है।
आज रोने की चाहत है थोड़ी
पर नहीं रो सकेगा ये अन्तस्
ख्याल सबका रखूँ जिम्मेदारी
जिम्मेदारी में रोऊँ तो कैसे।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय

माँ

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ!!!
तूने जो संस्कार मुझमें
कूट कूट कर भरे
उसने ही ईंट-गारा बनकर
मुझे बनाया मनुष्य रूप।
तेरी दी हुई शिक्षा ने
हर जंग में मेरा साथ दिया,
कर्म पथ की ओर समर्पित रहा
भटकाव को मैंने हरा दिया।
जो सही गलत सोचने की
क्षमता तूने दी मां मुझको,
उसने मेरा पथ आलोकित कर
आगे बढ़ने का सबल दिया।
तूने इतना कुछ दिया मुझे
मजबूत किया हर तरह मुझे
हर मेरी बारी है
मैं ऊंचाई दूँगा तुझे।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय

जिसकी पहचान धड़क से हो

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की गाडी
चले निरंतर
पहियों की पकड़
सड़क से हो।
कोई फिसले नहीं कहीं पर ,
पहचान सुपथ पर
पकड़ से हो।
ह्रदय हो तो
हो प्रेम भरा
जिसकी पहचान
धड़क से हो।
आवाज उठानी हो
सच की तो
सच्ची में वह
कड़क सी हो।
कलम उठे यदि लिखने को
तो धार कलम की
खड़क सी हो।
जीवन की गाडी
चले निरंतर
पहियों की पकड़
सड़क से हो।
—– डॉ. सतीश पांडेय

आओ कवितायें करते हैं

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आओ कवितायें करते हैं
मीठी-मीठी, प्यारी प्यारी
श्रृंगार भरी, मनुहार भरी
दिल में उगते नव प्यार भरी
आओ कवितायें करते हैं,
रूठी – रूठी, टूटी- फूटी,
योग भरी , वियोग भरी,
चाहत में भी, दुत्कार भरी
आओ कवितायें करते हैं।
वो वफ़ा करे, बेवफा बने ,
हम चाह रखें, वो डाह रखे,
दिल में आने की, जाने की
आओ कवितायें करते हैं।
संबंधों की गर्मजोशी की
ठंडी लगती सी बिछुरन की
खूब बरसते सावन की
प्यार लुटाते साजन की
आओ कवितायें करते हैं.
—— डॉ. सतीश पांडेय

उज्जवल भविष्य हो

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोटे से भानिज को अपने साथ
ले आया था अपने शहर मैं,
क्योंकि उसके पापा गंभीर रोग से
पीड़ित होकर चल बसे थे संसार से,
उस दुर्गम पर्वतीय गाँव में
तीसरी- चौथी कक्षा में
प्राइमरी स्कूल जाते
छोटे से बालक की
प्रतिभा को धार देने की सोच रहा था मैं ।
शहर के स्कूल में दाखिला
देते हुए चुनौती भी थी उस बच्चे के सामने,
नए सिरे से सीखने की।
धीरे – धीरे ढाला उसने खुद को
आज कुछ वर्षों बाद
जब दसवीं का
परीक्षाफल आया उसका,
मन प्रसन्न हो गया,
कक्षा में प्रथम,
नब्बे तक प्रतिशत,
ईश्वर ने साथ दिया,
बच्चे की मेहनत ने
कविता लिखने को मजबूर किया ,
ऐसी ही लय और दिशा
भविष्य में बरकरार रहे,
उज्जवल भविष्य हो,
पथ से विपथ न हो,
यही सबका आशीष हो।

तू है तो हर खुशी है

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं कवि नहीं हूं कविता
सौ कोस दूर मुझसे
कैसे बखान हो अब
तेरा स्वरूप मुझसे।
तेरे गुण बहुत अधिक हैं,
मेरे पास शब्द कम हैं
लय में भी आजकल कुछ,
बिखरी हुई चुभन है।
लेकिन जरूर इतना
चाहूंगा तुझसे कहना
तेरे बिना सभी कुछ
लगता है मुझको सूना।
तू है तो जिंदगी है,
तू है तो हर खुशी है
होने से तेरे घर में
छाई हुई हंसी है।
—— डॉ0 सतीश पाण्डेय

विदाई

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर चले मेरी महफ़िल को सूना
क्या खता हो गई आज मुझसे,
इस तरह क्यों चले जा रहे हो
क्या खता हो गई आज मुझसे।
जिंदगी भी समझ से परे है
समझ से परे है विदाई,
साथ रहते हैं, जीते हैं लेकिन
एक दिन छीन लेती विदाई।
दूर होना सभी को है लेकिन
कौन रोकेगा ह्रदय के गम को,
थाम लूंगा कलेजा स्वयं का
थाम पाउँगा मुश्किल से मन को।
—- डॉ. सतीश पांडेय

बेटियां घटने लगी हैं

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

फ़िक्र कर इस बात की
कि बेटियां घटने लगी हैं,
ख़तरा है मानव जाति पर
यह घंटियाँ बजने लगी हैं।
छेड़ना प्रकृति को
महंगा पड़ा है ,
सभ्यता पर दाग
गंदला सा लगा है।
—– डॉ. सतीश पांडेय

सावन की यह सुबह सखी

July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख सखी, सावन की सुन्दर
गीली – गीली सुबह सुहानी
घिरे हुए हैं बादल नभ में
चारों ओर बरसता पानी।
सूरज की किरणों ने शायद
खुली छूट दे दी बादल को,
तभी घेरकर नभमंडल को
खूब बरसने की है ठानी।
अब रिमझिम की बात नहीं है
खुलकर बरस रहे हैं बादल,
लाया सावन वर्षा ऋतु की
युवावस्था और जवानी।
तड़-तड़, तड़-तड़, झम-झम झम-झम
चारों ओर बरसता पानी,
सावन की यह सुबह सखी
कितनी निर्मल, कितनी मस्तानी।
—– डॉ0 सतीश पाण्डेय

बेटियां

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खोल अपनी आँख को तू
देख ले ना गौर से,
अब समय है बेटियों का
देख ले तू गौर से।
पुत्र से आगे बढ़ी हैं,
हर तरह से बेटियां।
माँ -बाप को सुख दे रही हैं
आज केवल बेटियाँ।
फिर भी तू संकीर्णता में
जी रहा है बावरे,
चल बदल ले सोच
बेटी को पढ़ा ले बावरे।
——Dr.Satish Pandey

शब्द चित्र

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सांझ पड़ रही है
धीरे धीरे अँधेरा
रफ़्तार ले रहा है।
चिडियांएं
घौंसलों में लौट रही हैं।
पहाड़ों की चोटियों से
झुरमुट-झुरमुट
उजाला लौट रहा है
छिपे सूरज की ओर।
अँधेरा उतर रहा है
नीचे की ओर।
आओ लाइट जलाते हैं,
अपने भीतर
उजाला बनाते हैं।
— Dr. satish Pandey

बढ़ता है बढ़ जाने दो

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दूजे से चिढ़ना छोडो
जो बढ़ता है बढ़ जाने दो जी,
आप चलो अपनी राहों में
औरों को भी चलने दो जी,
अपनी मेहनत से तुम पाओ
औरों को भी पाने दो जी ,
टांग फंसाना उचित नहीं है
सबको जीवन जीने दो जी,
आप चढ़ो ऊँची चोटी में
जितना भी चढ़ सकते हो,
दूजे को गड्ढे में डालो
यह सब अब रहने दो जी।
—— Dr. Satish Pandey

किस्मत वाली अम्मा

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक गांव में किस्मतवाली
बूढ़ी अम्मा रहती है,
चार हैं बेटे चार बहू हैं,
फिर भी भूखी रहती है।
अलगौझे में नहीं बंटा जो
एक वही सामान थी
क्योंकि किसी चाह नहीं थी
बूढ़ी मां के छांव की।
चारों बेटों को चिन्ता थी
अपनी अपनी सुविधा की,
बुढ़िया की अच्छी सलाह भी
लगती थी कांव कांव सी।
कभी किसी के साथ रही
फिर कभी किसी साथ रही
चारों के घर खपी नहीं वह
लौटी उल्टे पांव थी।
अब उसका भी चूल्हा चौका
अलग कर दिया बेटों ने
कभी खा रही कभी रो रही
वह अम्मा है गांव की।
अब पूछो भी तो क्यों कहते हैं
उसको किस्मतवाली अम्मा,
क्योंकि चार बेटों की माँ है
चार बहू दस नाती हैं।

—– डॉ0 सतीश पाण्डेय
कुछ सुधार के साथ

बेटी कोई वस्तु नहीं

July 28, 2020 in मुक्तक

बेटी कोई वस्तु नहीं जो
जो उसका दान करोगे,
बेटी तो बेटी है, क्यों
बेटी का दान करोगे।
ब्याह करो पर दान नहीं
क्या यह उसका अपमान नहीं,
जो वस्तु समझ कर दान हो गई,
इंसान नहीं , सामान हो गई।
—- डॉ0 सतीश पाण्डेय

रोजगार कार्यालय

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नौकरी हाय, रोजगार कार्यालय
आवेदन पर आवेदन कर
ठेके पर आदमी रखने को,
इंटरव्यू की चिट्ठी आई,
एक सीट पर सौ अभ्यर्थी
कैसे हो पद की भरपाई,
ऊपर से तब फोन आते हैं,
अधिकारीगण दब जाते हैं,
फोन वाले ही लग पाते हैं,
बाकी के घर को आते हैं।
—– Dr. satish Pandey

वृद्धाश्रम

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पेट में आया था जिस दिन तू
फूले नहीं समाई थी मैं,
बार -बार छूं उदर त्वचा को
मन ही मन मुस्काई थी मैं।
नौ महीने तक पल पल तेरा
ख्याल सजाया था मन ही मन।
कितनी उत्साहित थी तब मैं
तू क्या जाने ममता का मन।
जन्म लिया था जिस दिन तूने
महादर्द में भी खुश थी मैं।
भूल गयी थी सारी पीड़ा
हासिल कर बैठी सब कुछ थी मैं।
धीरे-धीरे बड़ा हुआ तू
दूध अमृत रस तुझे पिलाया,
अपना आधा पेट रही मैं
खुद से पहले तुझे खिलाया।
पढ़ा- लिखा लिखाकर आंखें खोली
अपना फर्ज निभाया मैंने,
आज बड़ा होकर अपने मैं
मस्त राह अपनाई तूने।
तू अपने पत्नी -बच्चों के
साथ हवेली में खुश रहना
मुझे छोड़ इस वृद्ध आश्रम
जा बेटा , खुद में खुश रहना।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय

मीत मेरे

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी सूरत पर निर्भर रह कर
नहीं किया था प्यार तुझे
मैंने तेरी सीरत देखी
तभी किया था प्यार तुझे।
सूरत सदा नहीं रहती है
सीरत देती है अंतिम साथ,
तन आकर्षित संबंधों का
अधिक नहीं होता है साथ।
मन से जुड़े हुए रिश्ते ही
हर स्थिति में, होते हैं साथ,
इसीलिये मन जोड़ा तुझसे
अंतिम साँसों तक है साथ।
—— Dr. Satish Pandey

चीन के बहकावे में न आ

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नेपाल !! तू मेरा मित्र रहा है,
चीन के बहकावे में न आ,
वह तुझे शून्य करवा देगा,
तेरा अस्तित्व मिटा देगा।
अब तक इतिहास में यही दर्ज है
नहीं रहा तू गुलाम कभी,
अब ड्रैगन के चंगुल में आकर
गुलामी करता है उसकी।
भूख मिटाने का लालच
देकर तेरी संप्रभुता को
लूट रहा है धीरे- धीरे
तू
समझ न पाया ड्रैगन को।
सब कुछ तेरा ही बिगड़ेगा
भारत का कुछ नहीं बिगड़ेगा,
तेरे कंधे पर रख बंदूक
यदि ड्रैगन आँख दिखायेगा
भारत की ताकतवर सेना से
तू कैसे बच पायेगा।
इसलिए गुलामी छोड़ अभी
अपने कंधे को बचा मित्र
उस ड्रैगन के बहकावे में
अपने को मत मिटा मित्र।
—— Dr. Satish Pandey

क्यों फुदक रहा नेपाल तू

July 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चीन के चक्कर में पड़ कर
क्यों फुदक रहा नेपाल तू,
भूल गया क्या रिश्ते – नाते
संबंधों का हाल तू।
रोजी-रोटी चली आज तक
जिस भारत की भूमि से
आज उसे ही आँख दिखाता
आखिर क्यों नेपाल तू।
तुझे दूध की मक्खी जैसे
चूस के पटकेगा वो दूर
मदहोशी में कब समझेगा
उस ड्रैगन की चाल तू।
भड़काकर तेरी सत्ता को
भारत के विपरीत किया
हाँक रहा है तुझे चीन
जैसे तू पशु हो पालतू।
पिस जाएगा चक्की के
दो पाटों में मत फंस नेपाल,
हम चाइना को उत्तर देंगे
होगा बस बेहाल तू।
अभी संभल जा, आँख दिखा मत
भारत को तू फ़ालतू,
चीन के चक्कर में पड़ कर
क्यों फुदक रहा नेपाल तू।
————— Dr. Satish Pandey

जय हिन्द

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाते समय वे
कह गए थे,
उदास न होना प्रिये।
यह नौकरी है फ़ौज की
जाना पडेगा अब मुझे।
सीमा में कुछ गड़बड़ है,
उसको ठीक करना है हमें,
हिन्द के दुश्मन मिटाकर
चैन लेना है हमें।
चढ़ यदि शीश मेरा
जंग में, माँ भारती को,
तू दुखित होना नहीं
जय हिन्द कह देना प्रिये।
आज जब लिपटे तिरंगे में
पधारे शान से ,
जोर से जय हिन्द निकला
मेरी इस जुबान से।
————- Dr Satish Pandey

कहो ड्रैगन ! क्या समझे थे

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहो ड्रैगन ! क्या समझे थे
क्या अब भी बासठ का सन है ,
या ताकत में भारत तुझसे
किसी मामले में भी कम है।
तभी पीठ पर छुरा घौंपने
आया था गलवान में,
दिखा दिया भारत ने तुझको
कितना हूँ बलवान मैं।
धो डाला मुक्का – मुक्की में
तेरे कई जवानों को,
तूने संख्या नहीं बताई
छुपा रहा उन बातों को।
पाकिस्तान, नेपाल आदि के
कंधे पर बन्दुक न रख
नीति बदल ले, अपने में रह
हिन्द देश पर नजर न रख।
किसी बात में भारत तुझसे
आज नहीं है कम सुन ले
तेरी हर तिकड़मबाजी का
उत्तर देगा यह सुन ले।
———— Dr. सतीश पांडेय

असहायों की मदद को उठो

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

असहायों की मदद को
उठो, रुको मत, उठो
उठो ना,
जो असहाय हैं, जिनका कोई सहारा नहीं
उन्हें तुम सहारा दो।
जो डूब रहे हैं
उन्हें किनारा दो।
उठो, सोचो मत, उठो
तुम मदद कर सकते हो,
जगाओ अपने भीतर का मानव,
जगाओ, रुको मत, जगाओ
जगाओ ना,
अन्धकार में दीपक जगाओ ना।
तुम नहीं तो
कौन करेगा उजाला।
तुम्हारे पास तेल भी है
बाती भी है,
बचाकर क्या करोगे
जला दो ना।
आज वे असहाय हैं
उनके पास न तेल है न बाती है,
क्या पता कल उनका
सूरज भी उग जाए
आज तुम उजाला दिखा दो ना,
दो रोटी खिला दो ना,
खिला दो, रुको मत, खिला दो
खिला दो ना,
जो भूखे हैं उन्हें
दो रोटी खिला दो ना।
—— डॉ. सतीश पांडेय

उन वीरों को नमन करें हम

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उन वीरों को नमन करें हम
जो सीमा पर जूझ रहे हैं ,
भारत माँ की रक्षा खातिर
जो दुश्मन को कूट रहे हैं।
ऊँचे – ऊँचे, ठन्डे – ठन्डे
कठिन पर्वतों की चोटी पर,
अडिग खड़े हैं, निडर खड़े हैं
जोशीले भरपूर रहे हैं।
दुश्मन की घुसपैठ रोकने
को ताने बंदूक खड़े हैं,
भारतमाता के चरणों में
लहू चढाने कूद पड़े हैं।
भारतमाता की जय के नारे
लगा रहे हैं सीमा पर,
सारा मुल्क सलामी देता
स्नेह निछावर वीरों पर।
——- डॉ सतीश पांडेय

माँ

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम सभी का मूल माँ है
यदि नहीं होती जो माता
किस तरह इस सुरमयी
संसार को मैं देख पाता।
जनम जननी ने दिया
इससे अधिक कोई किसी को
दे नहीं सकता है कुछ भी
हो भले कैसा ही दाता।
माँ थी, तब हम आज हैं
माँ के बिना होते न हम भी,
फिर क्यों? तू प्यारे मनुज
दुत्कारता है आज माता।

दूसरे को रुलाना नहीं जिंदगी

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार सबसे करो,
छोड़ दो नफ़रतें,
नफरतों के लिए है नहीं जिंदगी।
जितनी भी हो सके
बाटों सबको खुशी
दूसरे को रुलाना नहीं जिंदगी।
जो भी मेहनत से पाओ
रहो उसमें खुश
हक हड़पना किसी का नहीं जिंदगी।
राह में कोई दुखिया
मिले गर कहीं
उससे नजरें चुराना नहीं जिंदगी।
प्यार सबसे करो,
छोड़ दो नफ़रतें,
नफरतों के लिए है नहीं जिंदगी।
— डॉ0 सतीश पाण्डेय

लालच में न धंस

July 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूँ तो मानव सोचता है
मैं सदा जीवित रहूँगा,
सब चले जायेंगे लेकिन
में यहां चिपका रहूँगा।
पर समय का चक्र कोई
रोक पाता है नहीं,
कब है आना कब है जाना
जान पाता है नहीं।
इसलिए तू मोह के
जंजाल में ज्यादा न फंस,
जिंदगी जी ले खुशी से
और लालच में न धंस।
— डॉ सतीश पाण्डेय

शहीदों की पावन कहानी

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गोरखा राइफल के जांबाज कैप्टन
एम० के ० पांडे ने दुश्मन को घेरा
वो बटालिक की दुर्गम पहाड़ी
उस पहाड़ी से दुश्मन खदेडा।
लग चुकी थी उन्हें गोलियाँ,
फिर भी दुश्मन का बंकर उड़ाया,
बन गए वे बटालिक के हीरो
देश के नाम जीवन चढ़ाया।
दूसरे थे परमवीर संजय
उनकी राइफल ने जलवा दिखाया,
कारगिल के फ्लैट टॉप में
मार कर दुश्मनों को भगाया ।
आज दोनों परमवीर को
हिन्द की और से है सलामी
याद करती रहेगी धारा यह
उन शहीदों की पावन कहानी।

आज कारगिल विजय दिवस है

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज कारगिल विजय दिवस है
नमन करें उन वीरों को,
जिनके अदम्य शौर्य साहस से
जीत मिली भारत माँ को.
छलनी कर दुश्मन का सीना
भारत मां का मान बढ़ाया,
देश के गौरव की रक्षा को
निज सीने का लहू चढ़ाया.
बलिदानी वीरों ने
हँसते-हँसते शीश चढ़ाये थे,
हम सब की रक्षा की खातिर
अपने शीश चढ़ाये थे.
उन वीरों को कवि की कविता
आज सलामी देती है,
नमन शहादत को करती है
आज सलामी देती है.
आज कारगिल विजय दिवस है
नमन करें उन वीरों को,
जिनके अदम्य शौर्य साहस से
जीत मिली भारत माँ को.
—– डॉ. सतीश पाण्डेय, चम्पावत

पुकार रही है भारतमाता

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पुकार रही है भारतमाता
आप सभी संतानों को,
कलम उठा लो, खड़क उठा लो
ख़त्म करो हैवानों को.
बाहर-भीतर देश के दुश्मन,
जो उन्नति के बाधक हैं,
सामाजिक ताने-बाने को
तोड़ रहे जो कारक हैं.
लिखो उजागर करो उन्हें
सच्चाई को आगे लाओ,
कलम तुम्हारी खड़क बनेगी
धार तीव्र करके आओ.
कलम उठालो, खड़क उठालो
तभी देश उन्नत होगा,
वरना यह घुन भीतर – भीतर
हम सबको धोखा देगा.
साफ़ करो भीतर के दुश्मन
ख़त्म करो हैवानों को,
पुकार रही है भारतमाता
आप सभी संतानों को.
—– डॉ. सतीश पाण्डेय, चम्पावत

बेकारी

July 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चपरासी पद की भर्ती में,
पीएचडी धारक आवेदक हैं,
एक अनार है सौ बीमार हैं,
जुगाड़ में बैठे पहरेदार हैं,
इस जुगाड़ के खेल ने सारी
प्रतिभाओं को निराश कर दिया,
बेकारी के रोग ने देखो,
युवाशक्ति को क्षीण कर दिया.
—– डा. सतीश पांडेय

दोहे

July 25, 2020 in मुक्तक

गरीब गरीब रह गया, सेठ सौ गुना सेठ।
खाई सा अंतर हुआ, भूख बराबर पेट।।1
गरीबों के उत्थान की, बनी योजना लाख।
कागज में पूरी हुई, उस तक पंहुची खाक।।2
—– सतीश पाण्डेय

बेरोजगारी

July 25, 2020 in मुक्तक

आत्मघात, मानसिक पीड़ाएँ,
छीना-झपटी, राह भटकना,
बेरोजगारी के दुष्प्रभाव हैं,
पहला काम हो इसे रोकना.

बारिश

July 25, 2020 in गीत

मन किसी सूखी नदी सा हो रहा
आप कहती हो कि बारिश आ गई,
जो ये छींटे पड़ रहे हैं उनसे बस
एक सूनापन सा मन में गड रहा,
कब तलक यूँ ही घिरेगा आसमाँ
बूंदाबांदी ही रहेगी प्यार की,
कब तलक बिछुड़े रहेंगे आप हम
कब तलक बरसेगा खुलकर आसमाँ,
—————- Dr. सतीश पांडेय

मत झिड़क बूढ़े मां-बाप को

July 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत झिड़क बूढ़े मां-बाप को
उनकी सेवा में खुद को लगा ले,
यह तो मौका मिला है तुझे
आज मौके का फायदा उठा ले।
एक दिन सबने माटी में घुल के
शून्यता में समाना है प्यारे
आज वे वृद्ध हैं कल तू होगा,
अपने कल के लिए ही कमा ले।
आज जैसा करेगा तुझे कल
तेरी संतान से वो मिलेगा
ब्याज भी मूल के साथ होगा,
जो भी अच्छा-बुरा तू करेगा।
बूढ़े मां-बाप घर की हैं पूँजी
घर अधूरा है उनके बिना,
पूज ले वृद्ध मां-बाप को
अपने कल के लिए तू कमा ले।
– – – डॉ0 सतीश पाण्डेय

आत्महत्या न कर

July 24, 2020 in गीत

आत्महत्या न कर
जिन्दगी को बचा,
कोई दुख तेरे जीवन ज्यादा नहीं।
देख चारों तरफ
जो घटित हो रहा
ढूंढ खुशियां उसी में, दुखों को नहीं।
दुःख तो आते रहेंगे
जाते रहेंगे।
तेरा आना न होगा दुबारा यहां।
रूठ जाये भले
तुझसे संसार यह,
पर स्वयं से कभी रूठ जाना नहीं।
भोग ले सारे संसार के
सुख व दुख
पर दुखों स्वयं को डराना नहीं।
आस मत रख किसी से
जी बिंदास बन
अपने जीवन ऐसे डुबाना नहीं।
और बुझदिल न बन
कर ले संघर्ष तू
आत्महत्या से खुद को गंवाना नहीं।
—– डॉ0 सतीश पाण्डेय,

बेटियां

July 23, 2020 in मुक्तक

बेटियां तो जिंदगी का मूल हैं
बेटियां शुभकामना स्फूर्ति हैं,
वंश चलने की न कर चिंता मनुज,
बेटियां निज वंश की ही पूर्ति हैं,

अन्यथा बेजान हैं

July 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस महामारी में
हजारों लोग
काल का ग्रास बन गए,
कई परिवारों के
कमाऊ लोग
चल बसे, विलीन हो गए,
झकझोर दिया है
आर्थिक स्थिति को,
बेरोजगार कर दिया है
हजारों लाखों युवाओं को,
सपने चकनाचूर
कर दिए हैं
मानवता के,
रोटी की जरूरत
पहली जरुरत है, इंसान की,
इसलिए आज की विकट परिस्थिति में,
रोटी बटोरने की नहीं
रोटी बांटने की जरुरत है,
असहाय की मदद को
खड़ा होने की जरुरत है,
तभी हम इंसान हैं,
अन्यथा पत्थर हैं
बेजान हैं,
—————–
डॉ. सतीश पांडेय

धुँआ

July 22, 2020 in मुक्तक

छाती चौड़ी की
सिगरेट जलाई,
सोचता है इसे पी रहा हूँ।
तू नहीं पी रहा
इसको प्यारे
यह धुंआ तो मजे से तुझे पी रहा।
—– डॉ0 सतीश पाण्डेय

लोकतंत्र में कवि

July 22, 2020 in मुक्तक

लोकतंत्र के वृहद भवन का
मुझको स्तम्भ मानो न मानो
मैं धरम जाति भेदों से ऊपर
आम जनता की बातें लिखूंगा।
जो घटित हो रहा है लिखूंगा
जो गलत हो रहा है कहूंगा,
सब चलें अपने कर्तव्य पथ पर
ऐसी कविताएं करता रहूंगा।
डॉ0 सतीश पाण्डेय

पढ़ो लिखो

July 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन में आगे बढ़ने को
शिक्षा लो, शिक्षा लो बच्चों,
पढ़ो लिखो जी- जान लगाकर
कुछ बनने की ठान लो बच्चों,
जिसने भी परिश्रम किया है
अच्छा सा फल उसे मिला है,
यह मन्त्र आगे बढ़ने का
इस मंत्र को जान लो बच्चों,
आज समय बर्बाद करोगे
तो जीवन भर कष्ट सहोगे,
आज अगर मेहनत कर लोगे
कल मन की मंजिल पा लोगे,
———————————–
—- डॉ. सतीश पांडेय

मुक्तक

July 13, 2020 in मुक्तक

स्वप्न में रोज लिखती हूँ
तुम्हारे नाम की कविता,
कहीं कोई देख ना ले
बस इसी चिंता में रहती हूँ,
इसलिए उन सबूतों को
मिटाकर ही मैं जगती हूँ।

स्वप्न में ही

July 13, 2020 in गीत

हमारी ओर से शुभरात्रि
कह देना उन्हें कविता,
साथ ही यह भी कह देना कि
सपने में चले आना।
कहीं पर बैठ करके
प्यार की दो बात कर लेंगे।
जागते में हमें संसार
मिलने ही नहीं देगा।
इसलिए स्वप्न में ही
प्यार की दो बात कर लेंगे।
—डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत।

आज गर्मी है

July 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहाड़ों में भी पंखे चल रहे हैं
आज गर्मी है,
सभी एक दूसरे से जल रहे हैं,
आज गर्मी है।
किसी के पास पैसा है तो उसको
आज गर्मी है,
किसी को पद मिला है तो उसे भी
आज गर्मी है।
छटा सावन की है पर आज
चारों ओर गर्मी है।
पहाड़ों में भी पंखे चल रहे हैं
आज गर्मी है।
– डॉ0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत।

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