नारी तुम पर कविता लिखने को

September 3, 2020 in मुक्तक

नारी तुम पर कविता लिखने को
वर्णांका असफल है मेरी
तुम तो जीवन की जननी हो
सब कुछ तो तुम ही हो मेरी।
माँ बनकर जन्म दिया मुझको
यह सुन्दर सा संसार दिखाया,
अच्छी-अच्छी शिक्षा देकर
मानव बनने की ओर बढ़ाया।
दीदी बनकर स्नेह लुटाया
बहन बनी, खुशियों को सजाया
दादी बनकर लोरी गाई
नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाया।
भार्या का रूप मधुर धर कर
जीवन में नईं खुशी लाई,
सारा भार स्वयं पर लेकर
पीड़ा में भी मुस्काई।
बेटी बनकर घर आंगन में
रौनक की किलकारी भर दी
बेटों की बराबरी करके
सब ओर नींव नई रख दी।
तुम पर कविताएं लिखना
सूरज को दिया दिखाना है,
तुम सूरज हो इस जीवन की
तुम पर नतमस्तक होना है।

जाग उठ जा

September 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाग उठ जा, अब पथिक
पूरा सवेरा हो गया है,
देख ले खिड़की से बाहर
सब अंधेरा खो गया है।
क्या पता क्या थी कशमकश
नभ-धरा के बीच में
रात भर का प्रेम रण वह
ओस बूंदें बो गया है। ।

यह न समझो

September 2, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यह न समझो हम कभी रोये नहीं
आसुंओं से चेहरा धोए नहीं।
पी गए भीतर ही भीतर अश्रुजल
बस दिखावे के लिए रोये नहीं।

भरी बरसात है,

September 2, 2020 in मुक्तक

ओढ़ लो छतरी
भरी बरसात है,
आंसुओं से भीग जाओगे कहीं।
मेघ अब भी हैं घुमड़ते वक्ष पर
इसलिए छतरी बिना आओ नहीं।

कहीं न पा सकूं तो

September 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

न बैठो दिल में मेरे
इस तरह से आशा बन,
कहीं न पा सकूं तो,
दुःखी रहेगा मन।
तुम्हारे साथ बिना
रह नहीं सकता,
तुम्हीं हो सांस मेरी
तुम ही दिल की धड़कन।

अंधेरी रात में

September 1, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अंधेरी रात में
आशा एक चिराग हो तुम,
इस बियाबान में
संगीत का एक राग हो तुम।

खुशी खोजकर जीवन जी ले

September 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अवसाद और निराशा को
मत आने देना अपने पास,
खुशी खोजकर जीवन जी ले
मत होना तू कभी उदास।
छोटा सा यह जीवन का पथ
चलते रहना है बिंदास
खुद की मेहनत पर विश्वास
मत रखना दूजे से आस।
जीवन मे यदि यदा-कदा
राहों में आये घोर निशा
तब अपने पर हिम्मत रखकर
करना खुद का पथ प्रकाश।

जब से से देखा है उन्हें

September 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब से से देखा है उन्हें
देखते रह गए हम,
उनकी सूरत को नहीं
उनके व्यवहार हो हम।
वो सुलझी हुई बोली,
हँसी का फुहार न्यारा सा
शुद्धता आचरण की
मिजाज प्यारा सा।

केवल दो अक्षर का हूँ

August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब तक समझ नहीं पाया
खुद को कि
मैं प्यार का कवि हूँ
या नफरत का।
संयोग का कवि हूँ
या वियोग का,
उत्साह का हूँ
या निरुत्साह का।
लेकिन इतना समझ गया हूँ
कि केवल दो अक्षर का हूँ
ढाई अक्षर के प्यार शब्द
से अभी दूर हूँ,
इसलिए
तुम्हें अपना नहीं बना सकता
मजबूर हूँ।
क्योंकि
किसी और की ही आँखों का नूर हूँ,

तुम्हारी सादगी ही

August 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी सादगी ही
तुम्हारी खूबसूरती है,
उस पर
कुछ लिखना चाहता है मन
लेकिन जब तुम सामने होते हो
रुक जाती है कलम
तुम पर ही
टिक जाते हैं नयन।

प्यार कम होगा नहीं

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ये गिले -शिकवे कहूं तो
मित्रता में लाजमी हैं,
प्यार कम होगा नहीं,
जो कल दिखे थे आज भी हैं।

आपको सपने में देखा

August 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आपको सपने में देखा
क्या गलत देखा बताओ,
दूर हमसे से हो गए हो,
स्वप्न ही तो बन गए हो।

आँखों में घुमड़ते बादल

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँखों में घुमड़ते बादल
कुछ कुछ कम होने लगे हैं,
रास्तों में काई बिछाकर
विदाई के निशान छोड़ने लगे हैं।
फिसलन बहुत अधिक है,
चप्पल का तल अलग से घिसा है,
हाँ या ना के बीच
मेरी चाहत, मेरा प्यार पिसा है,
आँखों से फिर दो बूँद जल रिसा है,
यह मेरी मुहब्बत की निशा है,
अँधेरे में, फिसलन में ,
गिरता हूँ , उठता हूँ
उठ उठ कर गिरता हूँ ,
गिर-गिर कर उठता हूँ ,
सवेरा जल्दी हो जाए
इसी आशा में रहता हूँ।

मुझे पहचान लो

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता कहाँ, मैं झूठ लिखता हूँ
मुझे पहचान लो
दूसरों पर चोट करता हूँ
मुझे पहचान लो।
जब कभी कोई कराहे
दर्द से फुटपाथ पर,
नजरें चुरा लेता हूँ उससे ,
अब मुझे पहचान लो।
शांति से सब गा रहे हों
प्रेम का संगीत जब
मैं वहां नफरत जगाता हूँ
मुझे पहचान लो।
जिंदगी की फिल्म
चलती जा रही है प्यार की
मैं विलन का रोल करता हूँ
मुझे पहचान लो।

तोड़ दो पत्थर उठा कर

August 29, 2020 in मुक्तक

तोड़ दो पत्थर उठा कर
कांच का दिल तुम हमारा
ना रहेगा दिल न होगा
दिल्लगी का भी सहारा।

सिद्ध अब यह हो गया है

August 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिद्ध अब यह हो गया है
सब तरफ से हैं गलत हम,
ठोकरें देते रहे हैं,
दूसरों को हर बखत हम।
भावनाएं खुद हमारी
हैं गलत तुमसे कहें क्या
खुद के खुद दोषी बने हैं
और की बातें करें क्या।

जिन राहों पर चैन नहीं

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन राहों पर चैन नहीं
उन राहों पर चलना ही क्यों।
जो बातें ठेस लगाती हों
उन बातों को करना ही क्यों।
अपने पथ पर चलते जाना
सबसे स्नेह करते जाना,
पल पल मुस्काना, खुश रहना
दुःख की बातें करना ही क्यों।
अच्छा जीवन, अच्छी बातें
अच्छों से नेह, मुलाकातें,
जितना हो अच्छा कर देना
बाकी मतलब रखना ही क्यों।
अपना दायित्व निभा देना,
जो माने बात उसे थोड़ा
सच्ची बातें समझा देना
बाकी झंझट रखना ही क्यों।
जिन राहों पर चैन नहीं
उन राहों पर चलना ही क्यों।
जो बातें ठेस लगाती हों
उन बातों को करना ही क्यों।

फालतू की योजनाओं में

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

फालतू की योजनाओं में
पैसा मत बहाओ साहब,
ये गूल चार वर्ष पहले बन चुकी थी
कागजों में,
अब असली में मत बनाओ साहब।
पाइपलाइन नप चुकी है एक बार
रास्ता बन चुका है चार बार
पुलिया टूट चुकी है तीन बार
अब बेवकूफ मत बनाओ साहब।

धर्मपत्नी या सामान चुनो

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

या दहेज की मांग रखो
या मेरी चाह रखो,
दोनों में से एक चुनो
धर्मपत्नी या सामान चुनो।
सामान दहेज का कब तक
खाओगे या भोगोगे,
मैं तो जीवन भर साथ रहूँगी
मरते दम तक साथ रहूँगी।
दहेज चार दिन की शोभा
फिर केवल धोखा ही धोखा।

भेदभाव की बातें छोड़ो

August 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भेदभाव की बातें छोड़ो
भारत देश सजाओ ऐसे
जिसमें सभी समान रूप से
गुँथे हुए हों माला जैसे।
जाति-धर्म के भेद हमारी
एका को कमजोर कर रहे,
वो छोटा मैं बड़ा कह रहे
नफरत व्यापार कर रहे।
भेदभाव है भीतर का घुन
इस घुन को अब दूर भगाओ,
सभी मनुष्य एक जैसे हैं
बस एका का भाव जगाओ।

छीन लेंगे तेरी सारी फुर्ती

August 27, 2020 in मुक्तक

बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू व सुर्ती
छीन लेंगे तेरी सारी फुर्ती,
छोड़ दे तू सहारा नशे का,
इस नशे से बुरा भी न देखा।

मेरे प्रियतम

August 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसके थोड़े से दर्द को देखकर
बेचैन हो उठता है यह मन
वही तो हो तुम,
मेरे प्रियतम।
जिसके थोड़े से आँसू देखकर
पसीना पसीना हो जाता है तन
वही तो हो तुम
मेरे प्रियतम।
जिसकी खुशी ही है
मेरे लिए सबसे बड़ा धन,
वही तो हो तुम
मेरे प्रियतम।

चल दिये क्यों फेर कर मुँह

August 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चल दिये क्यों फेर कर मुँह
राह में हम भी खड़े थे,
आपसे मिल लेंगे दो पल
चाह में हम भी खड़े थे।
मुस्कुराकर आपने
गैरों में खुशियों को लुटाया,
हम रहे तन्हा, गमों में
अश्रुपथ भीतर बनाया।

मेरे भारत के युवक जाग

August 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे भारत के युवक जाग
आलस्य त्याग, उठ जाग जाग
तेरी मंजिल कुछ पाना है,
पाने तक चलते जाना है।
सोने को तो रात बहुत है
क्यों तू दिन में सोता है,
दिन में सब पाने को जुटते
सोकर क्यों तू खोता है।
मोबाइल से ज्ञान खोज ले
गलत राह क्यों खोज रहा
छोड़ इसे, कुछ मेहनत कर ले
इसमें आंखें क्यों फोड़ रहा।
समय पे सो जा जाग समय पर
दौड़ लगा, व्यायाम भी कर,
ठोस बना ले जिस्म स्वयं का,
सच्चाई की राह पकड़।
मेरे भारत के युवक जाग
आलस्य त्याग, उठ जाग जाग
तेरी मंजिल कुछ पाना है,
पाने तक चलते जाना है।

बीड़ी-सिगरेट जहर हैं

August 24, 2020 in मुक्तक

चार दिन की जिंदगी है
चैन से जीना है,
बीड़ी-सिगरेट जहर हैं
इन्हें नहीं पीना है।

ठीक तेरे जैसा ही हूँ

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये न समझ कि
रोड़ी फोड़ कर गुजारा करता हूँ तो
ऐसा-वैसा ही हूँ ,
मैं भी इंसान हूँ,
भीतर-बाहर
ठीक तेरे जैसा ही हूँ।

कदम बढ़ा, कदम बढ़ा

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिम्मत न हार, जीत पा
कदम बढ़ा, कदम बढ़ा
मंजिलें स्वयं तेरे
कदम पे लोट जायेंगी।
राह है कठिन मगर तू
हौसला भी कम न रख
हौसले को देखकर
राहें सिकुड़ सी जायेंगी।
अवरोध की फ़िकर न कर
कदम बढ़ा, कदम बढ़ा,
संकल्प तेरा देखकर
बाधाएँ भाग जायेंगी।

गौरा-महेश्वर पूजने

August 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बरस रहा है भाद्रपद
रिम-झिम बरसता जा रहा है
इस मनोरम मास में
गौरा-महेश्वर सज रहे हैं।
इन पहाड़ों के शिखर
शिवलिंग जैसे लग रहे हैं,
गौरा-महेश्वर पूजने
घर-घर विरुड़ भीगे हुए हैं।
नारियां बाहों में अपने
डोर धागा बांधकर
गा रहीं गौरा की स्तुति,
दूब भी बांधे हुए हैं।
घास से गौरा बनाकर
फूल माला से सजाकर
एक डलिया में बिठाकर
सर में रखकर पूजती हैं।
आज गौरा पूजती हैं।
आठ दिन आठों मनाकर
फिर विदा करती हैं उनको
इस तरह भादो में वे
गौरा-महेश्वर पूजती हैं।
रिम-झिम बरसते भाद्रपद में
गौरा- महेश्वर पूजती हैं।

खुदा मेहरबान हो जाये

August 23, 2020 in मुक्तक

निजी कामों के बीच
हमारे हाथ से भी
देश लिए
कुछ योगदान हो जाये,
मेरे भारत में
अमन -चैन रहे,
खुदा मेहरबान हो जाये।

एक ईश्वर की है सत्ता

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर्म अपने हाथ में है
और बाकी कुछ नहीं,
एक ईश्वर की है सत्ता
और बाकी सच नहीं।
जो मुझे यह दिख रहा है
अपने चारों ओर का,
एक सपना सा है यह सब
और बाकी कुछ नहीं।

बेर लग पाये नहीं

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोपलें फूटी अनेकों
पेड़ बन पाये नहीं,
झाड़ियां उग आई मन में
बेर लग पाये नहीं ।
स्वाद था मीठा सभी में
जीभ में परतें जमीं थी
इसलिए मीठी नजर
महसूस कर पाये नहीं।
इस तरह हम खुद ही खुद में
स्वाद ले पाये नहीं,
उलझनों में घिरते- घिरते
पेड़ बन पाए नहीं।

अब नई रोशनी आई है,

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीती रात अंधेरे की
अब नई रोशनी आई है,
मेरी कलम मेरे आगे इक
नया विधेयक लाई है।
कहती है अपनी वाणी से
ऐसी कविताएं लिखना
जिसने नव उत्साह जगे,
बस ठेस किसी को मत देना,
अपनी राहों में चलना
सदमार्ग निरंतर अपनाना,
जितना भी हो सके स्वयं से
सम्मानित सबको करना।
चार दिनों का चार रात का
जीवन है, जाता है बीत
चार दिनों के बीच प्रेम का
बीजारोपण कर जाना।
प्रेम सार है इस जीवन का
प्रेम को मत मिटने देना,
अपनी कविताओं से अब तू
प्रेम का परचम लहराना।

प्रातः की सुंदर बेला में

August 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रातः की सुंदर बेला में
सबसे पहले ईश्वर को
धन्यवाद करना है जिसने
नया सवेरा दिखलाया ।
फिर माता व पिता के चरणों
को छूकर प्रणाम करें,
जिन्होंने जीवन देकर के
यह संसार हमें दिखलाया ।
फिर गुरुजन को नमन करें
जिन्होंने ने अज्ञान तिमिर को
दूर किया है, आंखें खोली
उन्नति का पथ दिखलाया।
प्रातः की सुंदर बेला में
सबसे पहले ईश्वर को
धन्यवाद करना है जिसने
नया सवेरा दिखलाया ।

मानव जाति विकट विपदा में है

August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे नियंता! दैव! प्रकृति!
मानव जाति विकट विपदा में है,
चारों तरफ रोग फैला है,
इससे निजात दिला।
चीन के वुहान से निकल कर
पूरी दुनियां को चपेट में ले लिया,
जिंदगी ठप्प कर दी,
भारी संख्या में
बेरोजगार हो गए लोग।
काम-धंधा चौपट हो गया,
इस रोग से निजात दिला,
वैज्ञानिकों के हाथों में अब
सफलता दे दे,
आस लगाई हुई है दुनिया
सफलता दे दे।
हे नियंता! दैव! प्रकृति!
मानव जाति विकट विपदा में है,
चारों तरफ रोग फैला है,
इससे निजात दिला।

बाकी चिर निद्रा है

August 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ देर पहले तक
बातें कर रहे थे वे,
कुछ ही पल बाद,
उखड़ गई सांसें।
हल्की सी उल्टी,
का बहाना था,
गायब हो गई धड़कन।
शून्य शून्य शून्य
शून्य में विलीन हो गए।
यही है जीवन,
विलीन हो जाता है।
जब तक सांस है
तब तक ही सब है।
बाकी चिर निद्रा है।

मित्रों की जगह मेरे सर पर

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे गणपति देव!
चतुर्थी पर,
प्रणाम आपके चरणों में,
कृपा दृष्टि बनी रहे
प्रणाम आपके चरणों में,
मैं गिरा हुआ अज्ञानी हूँ,
सच्ची राह मुझे देना,
मेरी वाणी से कभी किसी को
ठेस न लगे यह वर देना।
मैं हट जाऊं उन राहों से
जिनसे मानवमात्र को
दुःख पहुँच रहा हो।
माफ़ी उन तक पहुंचा देना
यदि मुझसे कोई
दुःख पहुंचा हो।
जो भी कोई किसी तरह की
पीड़ा में हो,
उनकी पीड़ मिटा देना
उनको सारे सुख मिल जाएँ,
इस क्यारी में वे खिल जाएँ,
मित्रों की जगह मेरे सर पर
सम्मान सभी को दे पाऊं,
खुद मिट जाऊं, लेकिन
उनका सम्मान न मिठे यह कर पाऊं।
हे गणपति देव!
चतुर्थी पर,
प्रणाम आपके चरणों में,
कृपा दृष्टि बनी रहे
प्रणाम आपके चरणों में,

छह मास हो गए

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छह मास हो गए
पिताजी को गए,
छठा मासिक श्राद्ध भी
आज हो गया,
दिन बीतते से जा रहे हैं,
सब कुछ कहीं
खो गया।
जाने कहाँ
चले जाती है आत्मा,
कहाँ विलीन हो जाती है,
आत्मा,
क्या उसके बाद भी कुछ सच है
या वही अंतिम पथ है,
जो भी है
कुछ तो है।
जहां भी गई वो
पवित्र आत्मा
वहां सुखी रहे,
हमारे ऊपर
अपनी कृपा दृष्टि
रखी रहे।

दर्द भी समझते हैं

August 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

खाली कविता नहीं करते हैं
दर्द भी समझते हैं,
दूसरों को दिया हुआ भी,
दूसरों से लिया हुआ भी।

तुम्हारे दर्द पर

August 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अपने दिल का हाल
हमें न सुनाओ,
हम तो मजाक बना देंगे,
बेदर्द राही हैं हम
तुम्हारे दर्द पर
कविता बना देंगे।

हम तुम्हारी गली में कहां आ गए

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम तुम्हारी गली में कहां आ गए
हम तो गुस्ताख़ हैं जो यहां आ गए,
अब मुहोब्बत हुई है यहां से हमें
जाने का मन नहीं है यहां से हमें।
दिल दुखाकर भगा दो, तभी जायेंगे,
अन्यथा हम कहीं भी नहीं जायेंगे,
हाँ, अगर जायेंगे तो तुम्हें भी वहीं
ले चलेंगे जहां आज हम जायेंगे।
क्योंकि कितनी भी नफरत समेटे रहो,
बन चुके हम तुम्हारे, नहीं जायेंगे।
नफरतों से अधिक प्यार करते हैं हम
प्यार को यूँ हराकर नहीं जायेंगे।
तुम तो दुत्कारते ही रहो यूँ हमें,
फिर भी सम्मान देते रहेंगे तुम्हें
क्योंकि माना है अपना तुम्हें इस जगह,
अब तुम्हें छोड़कर हम नहीं जायेंगे।

खुद को उत्साह में रख

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद को उत्साह में रख
न हो मन दुखी,
तू बढ़े जा, बढ़े जा
न हो मन दुखी।
यह तो संसार है,
इसमें संघर्ष है,
जो बढ़ेगा
उसी का ही उत्कर्ष है।
तेरे कदमों की आहट
को सुनकर यहां
कोई खुश होगा
कोई रहेगा दुखी।
टांग खिंचती रहेगी
निरंतर तेरी,
पीठ पीछे करेंगे
बुराई तेरी।
जब तलक हाँ में हाँ
तू मिला कर चले,
तब तलक सब करेंगे
बड़ाई तेरी।
जब कभी तू
चुनौती लगेगा उन्हें,
शब्द वाणों से होगी
खिंचाई तेरी।
तू न परवाह कर
जा बढ़े जा बढ़े,
धर्म की राह ले
सत्य पर रह अड़े।
खुद को उत्साह में रख
न हो मन दुखी,
तू बढ़े जा, बढ़े जा
न हो मन दुखी।

भीगते जज्बात हैं

August 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रास्ते जलमग्न हैं
हर तरफ बरसात है,
दूसरे की छतरियों में
भीगते जज्बात हैं

हम दिल में झांकते हैं

August 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हम खूबसूरती को
अलग पैमाने से आंकते हैं,
वे चेहरा देखते हैं,
हम दिल में झांकते हैं। 1।

हजारों बार कान भरे
फिर भी हमें बदल नहीं पाये
वे ऐसा क्यों करते हैं
आशय नहीं समझ पाये।2।

मेहनत बेकार नहीं जाती है

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेहनत बेकार नहीं जाती है
आज नहीं तो कल वह उग कर,
नई कली बन
मुस्काती है।
आज सोचते हैं हम इतना
करने पर भी मिला नहीं कुछ,
लेकिन करने पर मिलता है,
यही शाश्वत जीवन का सच।
आज अगर हम पेड़ लगाएं
तब ही फल पा सकते हैं कल
छाया-पत्ती तो पायेंगे
अगर नहीं लग पायेंगे फल।
मेहनत है अपने हाथों में
फल देना दाता का काम,
मेहनत कर लो मेहनत कर लो
हासिल होगा तुम्हें मुकाम।

जरा सा दाम कम कर

August 21, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अपनी कुटिल मुस्कान से तू
मुस्कुरा मत आज हम पर
(भाजी बनाने को),
आलू जरूरी हैं
जरा सा दाम कम कर।

दण्ड पायेगा पथिक

August 21, 2020 in मुक्तक

मुस्कुरा मत इस तरह
अंजान राही पर अधिक
दर्ज होगा जब मुकदमा
दण्ड पायेगा पथिक।

बारिश ने लिया अवकाश है

August 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुनहरी धूप है,
चारों तरफ प्रकाश है,
आज लगता कि
बारिश ने लिया अवकाश है।
यूँ तो बारिश के बिना
इस जिन्दगी कल्पना
कर नहीं सकते हैं हम
सृजन की प्रमुख साज है।
फिर भी उसी के साथ
सूरज की किरण भी है जरूरी,
इस समन्वय के बिना
सृजन की गति रहती अधूरी।
धूप हो, बरसात हो
सबको सुखद अहसास हो,
जिंदगी सिंचित रहे,
पथ में नया प्रकाश हो।

मेरी छः महीने की गुड़िया

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी छः महीने की गुड़िया
आज लगी है स्वयं पलटने,
हूँ, हाँ, करती, हाथ उठाती
धीरे-धीरे लगी समझने।
अगर गोद मे नहीं उठाओ
तो लगती थोड़ा सा रोने,
प्यारी सी लोरी गाते ही
मीठी नींद में लगती सोने।
मम्मी का दुद्दू पीती है,
दादी की गोदी सोती है,
दीदी की चीजों को झट से
अपने हाथों में लेती है।
जिज्ञासा हर चीज में उसकी
सब कुछ मुँह में ले जाती है,
इधर घुमाओ, उधर घुमाओ
नहीं घुमाओ तो रोती है।

बादलों ने घेर ली

August 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रोशनी आई
अचानक बादलों ने घेर ली,
दे गए खुद ही दिलासा
आंख क्यों फिर फेर ली।

प्रेम पास रखो

August 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दूसरे को ठेस देने से पहले
यह याद रखो
चोट दिल पर लगेगी
अहसास रखो
चार दिन की जिंदगी में
नफरत नहीं
प्रेम पास रखो
ककड़ी सी शीतल तासीर रखो
जलेबी सी गर्म मिठास रखो ।

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