माँ

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब रूठ सकते हैं
लेकिन माँ नहीं रूठती है।
सब थक जाते हैं
लेकिन माँ
थक कर भी नहीं थकती है।
सब सो जाते हैं,
लेकिन माँ नहीं सोती है।
वो हमारे लिए
रात-रात भर जगती है।
याद नहीं रहता है ना
वह समय,
जब हम सुसू करते रहते थे रात भर
माँ पैजामे बदलते रहती थी रात भर,
वो माँ है
जो यह सब करती थी
करती रहती है,
इसलिए माँ माँ है
जो हमारे सुख के लिए
खुशी-खुशी
हर दर्द सहती रहती है।

अब अधिक नादान मत बन

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू बहुत ही खूबसूरत है कहूँ
तब भी परेशानी तुझे,
नहीं है खूबसूरत तू कहूँ
तब भी परेशानी तुझे,
कुछ न बोलूं चुप रहूं
तब भी परेशानी तुझे,
अब अधिक नादान मत बन
चैन लेने दे मुझे।

क्या पता कमजोर भी

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी बात पर
इतना कहेंगे आज हम,
काबिल हो तुम काबिल काबिल रहो
इससे नहीं नाराज हम।
लेकिन न समझो दूसरे को
भूल कर भी खुद से कम,
क्या पता कमजोर भी
सहसा दिखा दे अपना दम।

जिंदगी है बुलबुला

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी है बुलबुला
पानी मे उठता बुलबुला
फूट जाता है अचानक
सत्य को मन मत भुला।
सोचता है आदमी
मैं सौ बरस जीवित रहूँगा,
और कैसे भी रहें,
पर मैं सदा ऐसा रहूँगा।
इस तरह माया के वश में
सच को देता है भुला
एक दिन देता है चल
छोड़ जाता है रुला।

कुछ अलग ही दिख रहा हूँ

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ अलग ही दिख रहा हूँ
पानी मे उठता बुलबुला
फूट जाता है अचानक
सत्य को मन मत भुला।
सोचता है आदमी
मैं सौ बरस जीवित रहूँगा,
और कैसे भी रहें,
पर मैं सदा ऐसा रहूँगा।
इस तरह माया के वश में
सच को देता है भुला
एक दिन देता है चल
छोड़ जाता है रुला।

कुछ अलग ही दिख रहा हूँ

August 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता कहाँ मैं आजकल
बस उलझनें ही लिख रहा हूँ,
सामने हूँ आईने के
कुछ अलग ही दिख रहा हूँ।
भूल कर पहचान खुद की
मुग्ध हूँ अपने ही मन में,
उड़ रहा आकाश में
मुश्किल जमीं में टिक रहा हूँ।

घड़ी

August 19, 2020 in मुक्तक

वो घड़ी है कौन सी
जिस घड़ी
खुश रहते हो तुम,
अब घड़ी की जगह
मोबाइल ने ले ली
हर घड़ी उसी में
गुम रहते हो तुम।

फिसलन अधिक है आजकल

August 19, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तल घिसा जूता समझ
मुझको पहन मत बे-अकल
काई लगे हैं रास्ते
फिसलन अधिक है आजकल।

लेकिन जो सच है सच है

August 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच है कि सच हमेशा
कड़वा बताया जाता है
सच्ची में सच्चा आदमी
अक्सर सताया जाता है।
लेकिन जो सच है सच है
सच ही हमेशा सच है,
हर झूठ को हमेशा
सच से हराया जाता है।

नशा छोड़ आगे बढ़ना है।

August 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे भारत की युवाशक्ति
मत हो शिकार नशे की तू
यह नशा तुझे निगल जायेगा
मत हो शिकार नशे की तू ।
आगे बढ़ने की सोच निरन्तर
मत घबरा संघर्ष से तू,
अपना लक्ष्य ऊंचा कर ले
त्याग नशा सहर्ष ही तू ।
नशा तुझे भीतर ही भीतर
गला-गला कर खत्म करेगा,
तेरे भीतर की सभी उमंगें
जला-जला कर भस्म करेगा।
यह जीवन खुशियां पाने का
माता-पिता स्वजन सबकी
आशाएं हैं उम्मीदें हैं
उन पर खरा उतरने का।
तेरा जीवन केवल तेरा
नहीं , तेरे अपनों का भी है,
इसे नशे में खत्म न कर
अपनों की खातिर जीना भी है।
नशा छोड़ दे, नशा छोड़ दे
नशा नहीं जीवन जीना है
मेरे भारत की युवाशक्ति
नशा छोड़ आगे बढ़ना है।

गमों की बात ही न कर

August 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

गमों की बात ही न कर
तू मेरे आगे,
मुझे गम की नहीं
उत्साह की जरूरत है।
तेरी गलियों में आया
चाह लेकर,
मुझे बस
प्यार की जरूरत है।

आपकी इस कदर है चाह हमें

August 18, 2020 in मुक्तक

आपकी इस कदर है चाह हमें
हर समय चाहते हैं पास रहें,
खुशी हो, गम हो, या कयामत हो
हर घड़ी आप दिल के पास रहें।

जाग जा

August 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाग जा
नई रोशनी का
आभास कर,
प्रातः हो गई है,
पौधों में चमकती
ओस की बूंदें,
बता रही हैं,
किस तरह नींद में
रोया होगा
रात भर तू।
जमाना तेरे आंसू
पोछे न पोछे
लेकिन सूरज सुखा देगा
तेरी ओस की बूंदें ।
प्रातः हो गई है
जो भुला देगी
तेरी दर्द भरी नींदें।
जो आंखों में आकर भी
अपनी न हो सकी नींदें।
कभी सुख के पाले में
कभी दुख के पाले में
उछलती रही रात भर गेंदें।
अब प्रातः हो गई है
अंधेरा चला गया है,
अब जाग जा
नई रोशनी का
आभास कर।

याद कर लो सभी आज उनको

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

याद कर लो सभी आज उनको
जिनके यत्नों से आजादी पाई,
यह जन्मभूमि भारत हमारी
उस गुलामी से मुक्ति ले पाई।
हर तरफ था अंधेरा घना
कोई आशा न थी आम जन में,
उस निराशा में जिसने जगाया
याद कर लो सभी आज उनको।
बांटने की अनेकों थी कोशिश
फुट डालो करो राजनीति
जाति धर्मों में हमको लड़ाकर,
राज करते थे गोरे फिरंगी।
लूट कर देश की संपदा को
कोष ब्रिटेन का भर रहे थे,
दुर्दशा में था भारत का जीवन
लोग कष्टों में घिरते गए थे।
उन फिरंगी के मुंह में तमाचा
एकजुटता से जिसने लगाया,
जिसने छेड़ी वो जंगे आजादी
याद कर लो सभी आज उनको।
है नमन आज उनको नमन
जिनके यत्नों से आजादी आई,
जिसने अपना पसीना बहाया,
खून की बूंद जिसने चढ़ाई।
कतरे कतरे से सींचा वतन
सिर पे बांधे हुए थे कफन,
देख बलिदान दुश्मन भी काँपा
ऐसे वीरों को शत-शत नमन।
जुल्म सहते रहे, मुस्कुराते रहे
सिर कटा पर झुकाया नहीं,
गोलियां खाईं सीने पे जिसने
ऐसे वीरों को शत-शत नमन।
याद कर लो सभी आज उनको
जिनके यत्नों से आजादी पाई,
यह जन्मभूमि भारत हमारी
उस गुलामी से मुक्ति ले पाई।

—- सतीश चंद्र पाण्डेय

न खोजो मेरा इतिहास

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

न खोजो मेरा
इतिहास तुम,
तुम्हारे लिए तो
आज हूँ मैं।
न खंगालो मेरे
बीते हुए पल
बस तुम्हारा, तुम्हारे प्यार का
मोहताज हूँ मैं।
बीती हुई खोजोगे तो
कमियां मिलेंगी,
आज पर ही जियो
खुशियां मिलेंगी।
दूध से धूल चुके
तुम भी नहीं मैं भी नहीं,
इक-दूजे के बिना खुश
तुम भी नहीं मैं भी नहीं।

मैं बीता कल हूँ भले ही

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं बीता कल हूँ भले ही
तुम्हारे लिए ,
पर किस के लिए तो
आज हूँ मैं।
तुम्हारी नजर में
बेवफा हूँ।
पर किसी वफ़ा का नाज हूँ मैं।
स्वयं ठुकरा के
मेरी बाहों को,
तुम उछालो भले ही
कीच मुझ पर,
तब भी तुमसे नहीं
नाराज हूँ मैं।
उतार फेंका जिसे
वो गले का हार हूँ मैं,
तुम्हारा कुछ भी नहीं अब
किसी का ताज हूँ मैं।
मैं बीता कल हूँ भले ही
तुम्हारे लिए ,
पर किस के लिए तो
आज हूँ मैं।

भारतमाता के चरणों में

August 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जन मन ने उत्साह सजाकर
भारतमाता के चरणों में
आज पुष्प अर्पित करके
गुंजायमान नारों से कर
राष्ट्रप्रेम की लहर जगाई,
जन-मन मे उमंग भर आई।
राष्ट्रपर्व पर सारा भारत
दिखा एकजुट रहा एकजुट
जिसे देखकर देश के दुश्मन की
भीतर नस नस थर्राई।
आजादी के नायक थे जो
दी सबको श्रद्धांजलि आज
शहीदों के योगदान यादकर
जन-जन की आंखें भर आईं।
यही रहे उत्साह हमेशा
राष्ट्रप्रेम यह बना रहे,
बुलंद रहे भारत का झंडा
उन्नति का पथ बना रहे।

हे भारत!मातृभूमि!

August 15, 2020 in मुक्तक

हे भारत!मातृभूमि!
तेरे पर्वों को लाख नमन
उन संतानों को लाख नमन
जिन संतानों ने जान गंवा
हमको सौंपा है चैन -अमन।

घमंड में गुरुर में हम

August 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नींद में सपने में हम
जाने कहाँ खो जाते हैं
जो कभी देखा नहीं हो
उस जगह हो आते हैं।
घमंड में गुरुर में हम
इस कदर गिर जाते हैं
गरीब भी इंसान है
इस बात को भूल जाते हैं।

शत-शत नमन करें

August 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

राष्ट्र पर्व पर सभी
शत-शत नमन करें,
देश के शहीदों को
शत-शत नमन करें।
तोड़ने जंजीर दासता की
चल पड़े,
सर कटा दिया झुके नहीं,
नमन करें। राष्ट्र पर्व पर….
बिखरे हुए, टूटे हुए
भारत को एक कर
जिसने किया था एक
हम उनको नमन करें। राष्ट्र पर्व पर…
संघर्ष कर अंग्रेज से
हिंसा-अहिंसा शक्ति से
भारत किया आजाद
अब उनको नमन करें। राष्ट्र पर्व पर…

यौवन में है बरसात

August 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

समझा रही हूँ बात
तुम अब भी नहीं समझे,
यौवन में है बरसात
तुम अब भी नहीं समझे।
चाहत भरी आंखों को तुम
अब भी नहीं समझे,
नहीं सो पाई पूरी रात
तुम अब भी नहीं समझे।
देखती हूँ तुम्हारे ख्वाब
तुम अब भी नहीं समझे,
चाहती हूं तुम्हारा साथ
तुम अब भी नहीं समझे।
भीगा हुआ है गात
तुम अब भी नहीं समझे
यौवन में है बरसात
तुम अब भी नहीं समझे।
——- डॉ0 सतीश पाण्डेय
चम्पावत

ओ घिरे बादल

August 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इतना प्यार मत बरसा तू
मुझ पर ओ घिरे बादल,
मैं तो पूरी की पूरी भीग कर
तर हो चुकी हूँ अब।

आज देखा फिर से उनको

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज देखा फिर से उनको
अजनबी से लग रहे थे,
बात तो कुछ की नहीं
लेकिन मजे में लग रहे थे।
वे तो हमसे दूरियां रख
दूसरों के हो लिए हैं,
हम निरी तन्हाइयों
खूब सारा रो लिए हैं।
जब भी उनको देखते हैं
याद आ जाते हैं पल
जिन पलों को आज हम
अपनी वफ़ा से खो दिए हैं।

करें तैयारी राष्ट्र पर्व की

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मातृभूमि के चरणों में
जिन वीरों ने है लहू चढ़ाया
उन वीरों को नमन हेतु यह
पंद्रह अगस्त का शुभ दिन आया।
करें तैयारी राष्ट्र पर्व की
अति उत्साह सजाकर मन में,
चलो कलम से जागृत कर दें
देशभक्ति की भावना मन में।
जन-मन में उल्लास जगे
राष्ट्र प्रेम की आग जगे
युवा शक्ति जाग्रत होकर
उत्थान के पथ पर कदम रखे।

भारत मां की जय बोलो

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

राष्ट्रीय पर्व आने वाला है
भारत मां की जय बोलो
पंद्रह अगस्त आने वाला है
भारत माँ की जय बोलो।
यह हम सबकी जन्मभूमि है
मातृभूमि पावन भारत
वीरप्रसूता जननी है यह
भारत माँ की जय बोलो।
ऋषियों-मुनियों की धरती है यह
गंगा- यमुना की कल-कल
सब धर्मों का संगम है यह
भारत माँ की जय बोलो।
अलग- अलग बोली भाषाएँ
संस्कृति के सुन्दर रंग,
विविध रूप में एकरूप हैं
भारत माँ की जय बोलो।
राष्ट्रीय पर्व आने वाला है
भारत मां की जय बोलो
पंद्रह अगस्त आने वाला है
भारत माँ की जय बोलो।

धड़कनें

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सामने देखकर हमें
बढ़ जाती हैं धड़कनें जिनकी
जीवन को सही दिशा में ले जाने को
हमें जरुरत है उनकी।
सामने देखकर हमें
बढ़ जाती हैं धड़कनें जिनकी
उन्हें हम प्यार करते हैं
हमें जरूरत है उनकी।
प्रतिक्रिया प्यार की हो
या भले नफरत भरी हो
दूसरा दे तो रहा है
हमें जरूरत है जिनकी।

झूठ भीतर छुपाए हुए हैं

August 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

एक चेहरे से पहचान मत
हम मुखौटा लगाए हुए हैं,
सच नहीं है हमारा दिखावा
झूठ भीतर छुपाए हुए हैं।

एक – दूजे के सहारे

August 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हम तुम्हारे तुम हमारे
खुशियां हमारी गम हमारे
जिंदगी जी लेंगे तुम-हम
एक – दूजे के सहारे।
यात्रा इस जिंदगी की
है कठिन, मुश्किल भरी है,
लेकिन फतह कर लेंगे मंजिल
एक-दूजे के सहारे।

बिछुड़े दिलों में उनके

August 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात हो गई है
बात हो गई है
वर्षों से जिन में काफी
दूरी बनी हुयी थी
बिछुड़े दिलों में उनके
मुलाक़ात हो गई है।
दिन भर रही थी गर्मी
उमस भरी हुई थी
फिर शाम होते होते
बरसात हो गई है।
रस्साकशी चली थी
आरोप मढ़ रहे थे
छोटी बात पर वे
नफरत उगल रहे थे
पर प्यार भी था उनमें
नफरत से लड़ रहा था,
संघर्ष में, शाह-मात में
यह बात हो गयी है
शह प्यार की व
नफरत की मात हो गई है।
बिछुड़े दिलों में उनके
मुलाक़ात हो गई है।

पर्यावरण को है सजाना

August 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मानव जाति पर प्रहार करते
नित नए रोगों को देखो
किस तरह बर्बाद करने
पर तुले हैं जिंदगी को।
झकझोर करके रख दिये हैं
सैकड़ों परिवार देखो
ला खड़ा करके सड़क पर
रख दिया है जिंदगी को।
रोग जो यह आ रहे हैं
जिंदगी पर काल बनकर
प्रकृति से छेड़छाड़ ही है,
इन सभी का मूल कारण।
इसलिए पर्यावरण पर
ध्यान देना है जरुरी,
पर्यावरण में संतुलन हो
ध्यान देना है जरुरी।
पेड़ – पौधों को न काटो,
बल्कि खाली भूमि पर
विकसित करो तुम जंगलों को
हरियाली सजा दो भूमि पर।
जीव जो हैं जंगलों के
जिंदगी जीने दो उनको
मार कर खाओगे यदि
रोगों से मारोगे स्वयं को।
चीन चमगादड़ चबाकर
किस तरह संसार को
ले गया है मौत के मुंह तक
स्वयं ही देख लो।
इसलिए होकर सजग
पर्यावरण को है सजाना,
स्वच्छ रख प्रकृति को
इस जिंदगी को है बचाना।
——– डॉ. सतीश पांडेय

पूरा का पूरा भीग जाऊं

August 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिम झिम बर्षा
बरसे जा
भीतर का
सारा जल उड़ेल दे ,
ऐसे उड़ेल दे कि ऊपर की परत छिन्न-भिन्न न होने पाये
तेरा प्रवाह मेरी नाजुक परत को छिल कर
दूर बह न जाए,
बल्कि मेरे भीतर समा जाए गहरे,
पूरा का पूरा भीग जाऊं
बाहर से अंदर तक,
फिर नयी कोमल
कोपल उगे मेरे भीतर से
तेरे प्रेम की। …….

गल न जाये मन भरी बरसात में

August 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोज बारिश हो रही है प्यार की
तब भी क्यों नफरत उगी है सब तरफ,
चाहते हैं एक होना आप हम
तब भी क्यों दूरी बनी है हर तरफ।
दिल की निर्मल सी सड़क के इस तरफ
भांग उग आई है इस बरसात में
इसलिए हम यूँ उलझते रह गए
ढूंढ कर कोई कमी हर बात में।
रास्ते टूटे हुए हैं किस तरह
आप तक पहुंचेगा मन बरसात में
जब तलक बारिश रुकेगी तब तलक
गल न जाये मन भरी बरसात में।

आपकी नींद में हम

August 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी नींद में हम
स्वप्न बन के आ न जाएँ
इसलिए दिल किवाड़ों को
हमेशा बंद रखना।
गर कभी हम राह में
मिल जाएँ तुमसे यूँ अचानक
तब समझना अजनबी हैं
याद को ही बंद रखना।

जन्मदिन कन्हैया का है

August 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जन्मदिन कन्हैया का है
आज सबको बधाई बधाई
अष्टमी भाद्रपद की सुहानी
व्रत लेकर कन्हैया का आई।
कंस की कैद में जन्म लेकर
रात ही रात गोकुल पधारे,
माँ यशोदा की गोदी में खेले
नन्द बाबा के प्यारे दुलारे।
ब्रज में कर अनेकों लीलाएं
लौट मथुरा नगर में पधारे,
अपने करतब दिखा कर निराले
कंस पापी को पल में पछाड़े।

आज वे भी चले गए

August 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज वे भी चले गए
उस यात्रा में
जहाँ से फिर कोई
लौट कर नहीं आता है।
अक्सर बीमार ही रहते थे
जब से सेवानिवृत होकर
घर लौटे थे,
तब से बीमार ही तो देखे थे।
हाँ बचपन में हमने देखा था उन्हें
जवान से,
घर आते थे जब अपनी ग्रेफ
रेजिमेंट से,
कितने हट्टे-कट्ठे पहलवान से।
हम कहते थे
पड़ौस के फौजी चाचा आये हैं
मिठाइयां लाये हैं।
पापा के भी जिगरी सखा थे
हमें अच्छी राह दिखाने वाले
सच्चे सरल कका थे
बचपन में ही रोजगार की खातिर
घर छोड़ा,
हिमालय और पूर्वोत्तर की
ठंडी चोटियों में तैनात होकर देश सेवा की।
रोगग्रस्त होने के वावजूद भी
मन से आनंदित रहने वाले
सबको स्नेह देने वाले
ऐसे परमानंद चचा थे
उन सा शायद ही कोई व्यक्ति हो
जो मन की पीड़ा को मन में ही पचा दे।
अंतिम विदाई पर उन्हें
कलम से श्रद्धांजलि है
ईश्वर के चरणों पर जगह
मिले उस पावन आत्मा को
कविता से श्रद्धांजलि है।
——— डॉ. सतीश पांडेय, चम्पावत

मेरे भारत की युवा शक्ति

August 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे भारत की युवा शक्ति
तू जाग नया, उत्साह जगा ले,
मन में मत रख हीन भावना
प्रगति पथ पर कदम बढ़ा ले।
अपनी पुरातन संस्कृति का
नवयुग से तालमेल करा ले,
सच्ची में तू कदम उठा ले
भारत का उत्थान करा दे।
मेहनत का वक्त है, मेहनत कर ले,
शंखनाद कर संकल्पित हो,
दूर फेंक कर तुच्छ निराशा
मन की मंजिल फतह करा ले।
मेरे भारत की युवा शक्ति
तू जाग नया, उत्साह जगा ले,
मन में मत रख हीन भावना
प्रगति पथ पर कदम बढ़ा ले।

याद आते हैं वो पल

August 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

याद आते हैं वो पल
जो बिताये साथ तेरे
अब नहीं रौनक रही
तेरे बिना कुछ पास मेरे।
खोजता हूँ पल वही
बीते दिनों को ढूंढता हूँ ,
अवसर गंवाकर खो दिया तू
शून्य है अब हाथ मेरे।

प्यार में भीगते-भिगाते रहो

August 9, 2020 in गीत

आज जितना भी बरसता है
बरस जाने दो,
फिर तो सावन भी चला जायेगा,
सींच कर कोना-कोना धरती का
फिर तो सावन भी चला जायेगा।
आज जितना भी चाहो भीगो तुम
प्यार ही प्यार भरा मौसम है,
प्यार में भीगते-भिगाते रहो,
फिर तो सावन भी चला जायेगा।

रात भर दर्द था कल

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात भर दर्द था कल
मन के किसी कोने में,
आज भी गम कहाँ कम
डर रहे हैं सोने में।
आज दिल में
ज़रा सी राहत है ,
जब सुना आपके मन में
हमारी चाहत है।

एक तो तुम बड़ी मुश्किल से

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक तो तुम बड़ी मुश्किल से
मुस्कुराती हो,
दूसरा मन ही मन में
सारे गम छुपाती हो।
जब कभी चाँद को
बादल चुरा सा लेता है,
तब हमें रोशनी बन
रास्ता दिखाती हो।

यह संसार बदलाव का है

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह संसार बदलाव का है
और पल पल बदलता रहा है
कोई मिलता है कोई बिछुड़ता,
चक्र ऐसा ही चलता रहा है।
वश किसी का रहा है न इसमें
वश किसी न इसमें रहेगा,
जिंदगी के सफर में ये मिलना,
ये बिछुड़ना लगा ही रहेगा।

सच की ही सत्ता है

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो सोचते हैं
कि उन्होंने
सच को भागने पर मजबूर कर दिया
अब झूठ के सहारे फिर
बुलंदियों पर चढ़ जायेंगे
वो भूल जाते हैं कि
सच सच है
सच की ही सत्ता है,
एक सच्चा मजबूर हो जाता है,
तो
सच समाप्त नहीं हो जाता है।
सच दूसरे सच्चे को मुखर कर
झूठ का मुकाबला करने फिर लौट आता है,
झूठ की नकाब उतर ही जाती है…
उतरती रहेगी

भीड़ में जब कभी तुम

August 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भीड़ में जब कभी तुम
खुद को तन्हा पाओगे,
तब हमें याद करना,
दिल में हमें पाओगे।
प्यार हो , इस तरह से
छोड़ कर न जाओ तुम
प्यार हम से अधिक
दूजे से नहीं पाओगे ।
वो मुलाकात जो
पहली थी उसे याद करो,
वे हंसी पल थे उन्हें
कैसे भुला पाओगे।

लौट आ घर

August 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दूर चले गये राही
आ अब लौट आ,
कब तक रहेगा
रूठा-रूठा
तेरे बिना मैं भी तो
रहता हूँ टूटा-टूटा।
अपने दो बोल सुना जा
अब तो आ जा।
जिद न कर,
लौट आ घर।
तेरे बिना ये फिजायें
सूनी ही नहीं शून्य हैं,
जीते जी, जी रहा है मर
जिद न कर
लौट आ घर।
जीवंत कर दे महफ़िल को
अहसास दिला दे मुझ बुझदिल को,
कि प्रेम के अभाव में
नीरस है जीवन सफर
जिद न कर
लौट आ घर।

कविता आत्मा की आवाज है

August 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ ऐसा लिखो कि
लोग तुम्हें पढ़ें
पढ़कर मन के भीतर
नयी चेतना के बीज उगें।
कुछ ऐसा लिखो कि
सार्थक हो, शुद्ध हो
तभी कविता कहेगी
कि तुम प्रबुद्ध हो।
पहले साहित्य पढ़ो
तब लिखो,
लिखो तो ऐसा लिखो
कि सच्चे कवि दिखो।
कविता आत्मा की आवाज है
सीख कर नहीं होती,
लेकिन भाषा सीखनी होती है,
भाषा के बिना
कविता नहीं होती।
मन के भीतर की संवेदना
बाहर तभी निकलेगी
जब आपके पास
शब्दों का भण्डार होगा,
अन्यथा सब बेकार होगा।

गरिमा

August 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यदि हम कवि हैं
या स्वयं को कवि मानते हैं
तो हमें उस भाषा की गरिमा
रखनी ही होगी,
जिस भाषा का हम
स्वयं को कवि मानते हैं ,
यदि हम इंसान हैं
या स्वयं को इंसान मानते हैं
तो हमें इंसानियत
दिखानी ही होगी,
इंसानियत की गरिमा
रखनी ही होगी।
यदि हम शिक्षक हैं
या स्वयं को शिक्षक मानते हैं,
तो हमें सद् मार्ग की शिक्षा
देनी ही होगी,
शिक्षा की गरिमा रखनी ही होगी।
अन्यथा की बातें तो पाप हैं
बस अनर्गल प्रलाप हैं।

माखन चोरी करते गिरधर,

August 6, 2020 in Poetry on Picture Contest

ब्रज की एक सखी के घर
माखन चोरी करते गिरधर,
पकड़ लिए हैं रंगे हाथ
फिर भी करते हैं मधुर बात।
बोली ग्वालिन यूँ कान खींच
मन ही मन में रस प्रेम सींच,
बोलो क्यों करते हो चोरी,
किस कारण से मटकी फोरी।
सारा माखन गिरा दिया
मन-माखन मेरा चुरा लिया,
मात यशोदा है भोरी,
फिर तुझे सिखाई क्यों चोरी।
जाकर कहती हूँ अभी उन्हें
यह लल्ला करता है चोरी,
होगी खूब पिटाई तब
जायेगी दूर ढिठाई तब।
ना ना ऐसा मत कर गोरी
जो कहे करूँगा मैं गोरी
वैसे भी मैंने नहीं करी,
तेरे घर में माखन चोरी।
वो भाग रहे हैं ग्वाल-बाल
उन्होंने की माखन चोरी,
मैंने तो केवल स्वाद चखा
मीठा माखन तेरा गोरी।
तू मीठी, माखन मीठा है,
अब भी तेरा दिल रूठा है,
मैं तो बस चखने आया था,
यह माखन तेरा मीठा है।
जितना चाहे गाल खींच ले
कान खींच ले, नाच नचाले,
पर मैया से मत कहना
माखन चोरी की नन्दलाल ने ।
मन ही मन में हँसी खूब वह
मतवाली ग्वालिन गोरी ,
सुना रहे थे कृष्ण कन्हैया
मीठी सी बातें भोरी।
चोरी करते मिले कन्हैया
भीतर-भीतर हंसते हैं,
सबका मैं हूँ सब मेरे हैं
फिर चोरी क्यों कहते हैं।
—— डॉ0 सतीश पाण्डेय

फिर-फिर तुझको तोल रहा हूँ

August 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रियतमे तेरे स्वरूप का
कैसे वर्णन करूँ अब मैं,
सब उपमान सुंदरता के
आ गए पूर्व की कविता में।
काले बादल से सुन्दर बाल,
कमल की पंखुड़ियों से गाल,
झील सी आंख, शुक की सी नाक
हाथी सी मदमाती चाल ।
चाँद सा चेहरा, कोयल सी बोली
इन सब में अब तक तू तोली ,
फिर-फिर तुझको तोल रहा हूँ
तुला पुरानी है घटतोली।
अज्ञेय कह गए थे यह सब
उपमान हो गए मैले अब,
तब भी मैं इन उपमानों से
तुझे सजाता हूँ अब तक।
तेरी सुंदरता पर अब तक
मैं खोज न पाया नए शब्द
जिससे निस्तेज रही कविता
कलम रही मेरी निःशब्द।

दुनियां जो कहती, कहने दे

August 5, 2020 in मुक्तक

ओ कर्मनिष्ठ! तू दुःखी न हो
खुद की क्षमता की कर पहचान
दुनियां जो कहती, कहने दे
उसकी बातों को मत दे कान।

देश के उत्थान की तपस्या करें

August 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

महान तपस्वियों का देश रहा है
हमारा भारत वर्ष,
आओ फिर से तपस्या करें।
कैसी तपस्या, कुछ दूसरे तरह की,
तपस्या।
अन्याय के खिलाफ आवाज
उठाने की तपस्या।
भ्रष्टाचार के समूल नाश की तपस्या।
जरुरतमंद का साथ देने की तपस्या।
गलत को गलत कह सकने की तपस्या।
नारी के सम्मान की रक्षा को
तत्पर रहने की तपस्या।
आओ ऐसी तपस्या करें,
देश के उत्थान की तपस्या करें।

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