Savitri Rana
कैशलेस
December 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कैशलेस होने में हर्ज क्या है?
फिर सोचा ये मर्ज क्या है?
गौर किया तो कुछ तस्वीर यूँ उभरी।
मेरे घर आने वाली वो अनजान वृद्धा ,
बाला जी से तानपूरा लेआने वालेभक्त।
वो कभी कभी अँधे का हाथ पकड चलने वाली औरत।
वो जबान ना होने से आव आव का शोर मचा ,
अपनी व्यथा कहने वाला मूक युवक।
पीर बाबा की चद्दर चढाने अजमेर शरीफ जाने वाले।
वो नाच गा पेट पालने वाले किन्नर।
आती ही रहती है कोई ना कोई व्यथित चिंतित आत्मा,
मै कैसलेस होकर कैसे करूँगी उनका सामना,
आशा की इक चमक जो दिखती है उनकी आँखों में,
मै कैसे कहूँगी उन्हें पेटीएम कर दूँ,या
स्विप मशीन है ला कार्ड स्वीप कर दूँ।
और कहीं ना दे पाऊँ उन्हें कुछ संतोष,
फिर कभी कहीं कोई कर ले अकाउँट हैक ,
चला जाए गलत खाते में सारा कैश,
फिर सोचूँ कहीं उनकी हाय तो नहीं लगी।
जिनको दे नहीं पाई थी उनका देय।
क्योंकि हो गयी थी मै कैशलेस।
क्या है प्रयाप्त सुदृढ तंत्र हमारे पास,
या नोट बंदी सा होगा इसका भी.हाल।
क्योंकि साईबर क्राइम के खतरे बढे हैं।
खडे खडे ही लोगों के अकाउँट हो जाते हैक,
सोच समझ कर इस मुहिम में कदम बढाना,
छोटी छोटी छूट के लालच में मत सब गँवाना,
पता चले धर्म कर्म से तो गये ही जनाब,
खाते का पैसा भी गलती से चला गया कहीं ओर।
खून पसीने की कमाई एक पल में गायब हो जाएगी।
अब कोर्ट.कचहरी के चक्कर में जिन्दगी जाएगी।
कमाई मिलेगी वापिस या नहीं कोई गारंटी नहीं ,
क्योंकी कोर्ट से न्याय कम,तारीख ज्यादा मिलती हैं।
कैशलेस सच में बडी मुसीबत ही लगती है।
सरकार की तैयारी आधी अधूरी दिखती है।
सावित्री राणा।
तकदीर का क्या, वो कब किसकी सगी हुई है।
December 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
तकदीर का क्या, वो कब किसकी सगी हुई है।
दुनिया अपने हौसले से ,जमीं हुई है।
खुशफहमी ना पाल कि नसीब से सब मिलेगा।
कर्म करने से ही ये आसमाँ झूकेगा।
लाख लगाओ फेरे ,मन्दिर, मस्जिद, चर्च ,गुरूद्वारे।
कर्म के आगे, इन्साँ इन्हें भी बिसारे।
समय के चक्र पर निशाना साध ले प्यारे ,
काश के फेर में पड,मत हाँफ दुलारे।
हाय री किस्मत कह फिर रोएगा ,पछताएगा।
एक बार ये समय जो हाथ से निकल जाएगा।
जहाँ साहा इतने दिन,कुछ और धैर्य बना ले।
नोट बन्दी के हवन में कुछ समिधा चढा ले।
फिर आएगी नीत नयी भोर मन में बसा ले।
काले धन वालों से अब पीछा छुडा ले ,
पर आऐंगे कैसे अच्छे दिन ,ये तो बुझा ले।
फिर कैसे ना रिश्वत चलेगी?भ्रष्टाचार ना होगा?
कोई तो सामने आ शपथ दिला दे।
सावित्री राणा
काव्य कुँज।
आज हर शख्स गुमशुदा है ,बैंक के बाहर।
November 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
कल कुछ अलग से अनुभव हुए बैंक के बाहर।
कविता के माध्यम से करते हैं शेयर आपके साथ।
आज हर शख्स गुमशुदा है ,बैंक के बाहर।
छोड सब काम छूट्टे के जुगाड में लगा था।
बैक का माहौल गमगीन नहीं, उत्सव सा हसीन था।
हर शख्स हैसियत से मुक्त, छुट्टे की ताक में तल्लीन,
लाइन में सब बराबर,ना अमीर ना गरीब।
हिन्दू ना मुस्लिम,ब्राहमण ना अछूत।
सब बस एक ही सूत्र में ,एक ही जनून।
भेदभाव लेसमात्र नहीं,समसता उतरी जमीं ,
ऐसे लाइन मे तल्लीन ,कि अहसास ही नहीं ,
कि कोई परिचित,जो कभी जाने जिगर थी।
मुद्दतों बाद वो बैंक में लाइन म़े लगी मिली,
होता कोई और दिन हम आगे पीछे दौडते।
अब आज मौहब्बत तकै, कि नोट बदलें।
दिल को कर मजबूत हम नोट की उलझन मे डूबे,
कि हुई घोषणा बैंक में नोट खत्म हुए।
सुबह से हो गयी दोपहर,भूखे प्यासे स्वस्थ, बीमार,
घोषणा से सभी हुए मायूस।
हमने सोचा चलो ,
अब आँखों को ही सैेकने का काम कर लेते हैं,
चलो आज का दिन यूँ ही सार्थक कर लेते हैं।
दिखी अरसे बाद जो मोहतरमा ,
उनसे ही आँखे चार कर लेते हैं।
दे गया गच्चा यहाँ भी नसीब।
बेवफा कह जा चूकी थी नाजनीन।
वाह री किस्मत ,वाह मोदी जी,
जय मेरे भारत महान ।
सावित्री राणा
काव्य कुँज।
सदियों से रहा है सोने की चिडिया ये मेरा देश
November 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
सदियों से रहा है सोने की चिडिया ये मेरा देश ,
मुफलिस में फँसा जीवन कैसे सम्भाला जाएगा।
भूख से बैचन हैं यहाँ इन्सान की आत्मा।
जाने कब पेट में इक निवाला जाएगा।
इक तरफ है रौशनी रंगिनियाँ महफिलें।
कब तलक अभावग्रस्त जन यूँ सम्भाला जाएगा।
नहीं पूछते गरीब कभी गरीबनवाज का वो दर,
जहाँ मिटे तकलीफ वो उस दर पै जाएगा।
होती नहीं कोई पहचान कभी किसी गरीब की ,
गरीब अपनी गरीबी से ही पहचाना जाएगा।
आती नहीं बहार क्यूँ अब अपने भी चमन में,
कब तलक खिलने से पहले कलियों को नौचा जाएगा।
निकलते नहीं सरे शाम अब घर से हम।
कब तलक अँधेरा हमें यूँ डराएगा।
पूर जोर की हैं कोशिशें पर जब है खाली।
घर पर उम्मीदों को फिर बहलाया जाएगा।
कोई खा खा के है परेशान जनाबे आली।
कोई आज फिर खाली पेट, मार मूस खाएगा।
इतना बडा भेदभाव क्यों मेरे मौला।
कब धरा पर सुख चैन का सवेरा आएगा।
सावित्री राणा
काव्य कुँज।
दोस्ती आपकी इक तौफा थी हमारे लिए
November 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
दोस्ती आपकी इक तौफा थी हमारे लिए।
कद्र हमसे ना हुई,जो जुदा इस तरह हुए।
हमने भी तो कुछ ,ज्यादा नहीं माँगा था आपसे।
इतना सा त्याग कर सके ना आप हमारे वास्ते।
महफिल म़े कद्र हुई ना हमारे ज्जबात की।
आँखों में आँसू जम गये जब बिछुडने की बात की।
दिल में हुआ अँधेरा ,ना कोई रोशन चिराग था,
तुम अपनी रहा चल दिये, हम राह देखते रहे।
जब हँस रहे थे चाँद तारे खुले आकाश म़े,
तब रो रही थी आँखे हमारी तुम्हारी याद में।
हम समझा रहे थे दिल को दे रहे थे तस्सली।
आँखे निगैढी बार बार कर रही थी चुगली.
हिया हूलक रहा था मेरा सोच कर ये बार बार,
अब ना खुलेंगे कभी ,दिल के किसी के द्वार।
आएँगी अब ना लौट कर अधरों पर हँसी कभी।
ले गये समेट तुम जीवन की हर खुशी।
दुश्मन को भी कभी ना रब ऐसी मुश्किल में डालना।
खुशियों के मेले से उठा,गमें दरिया म़े ना डालना।
“जश्ने आजादी”
August 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
जश्ने आजादी का पल है,आओ खुशी मनाएँ।
आसमान फहरे तिरंगा, जन गण मन हम गाएँ।
कालिमा की बीती रातें ,आया नया सवेरा।
प्रगति -पथ परआगे ,बढ रहा देश अब मेरा।
अरूणदेव की नूतन किरणें ,नया सवेरा लाई।
नयी रोशनी पाकर देखो ,कलियाँ भी मुस्काई।
नहीं खैरात में मिली आजादी,खून बहाकर पाई है।
खूली हवा में साँसें ले हम,लाखों ने जान गँवाई हैं।
याद करो वो कहर की बातें ,दुश्मन ने जो ढहाया था।
मित्रता का हाथ बडा,गुलाम हमें बनाया था।
लावारिस का वारिस बन,पूरा देश हथियाया था।
वीर शिवाजी,तात्या टोपे, नाना साहब को याद करो,
लक्ष्मी बाई,मंगल पांडे की कुर्बानी याद करो।
याद करो वो जोरे-जुल्म ,दुश्मन ने जो ढहाया था,
साम,दाम,दण्ड भेद से,कितना हमे दबाया था।
जलियाँवाला बाग न भूलो, निहत्थों पर वार किया,
ठीक बैसाखी के दिन,कैसा नर संहार किया।
अंग्रेजों की कुटिल चाल का ,दिया जवाब शहिदों ने।
इंकलाब का देकर नारा जान फूँक दी वीरों में।
भगत् सिंह,सुखदेव ,राजगुरू,बिस्मिल की कुर्बानी याद करो।
हँसते हँसते चढ गये फाँसी, उनकी कहानी याद करो।
याद करो नेहरू,पटेल,गाँधी बाबा को याद करो।
सत्य,अहिंसा और प्रेम के मूल मंत्र को याद करो।
इनकी कुर्बानी व्यर्थ ना जाए, कसम हमें यह खानी है।
जाति, धर्म ,भाषा,प्रदेश की दूरी सभी मिटानी है।
बनी रहे ये आजादी, कसमें हम सबको खानी है।
विश्व पटल पर भारत माँ की नयी पहचान बनानी है।
हाँ नयी पहचान बनानी है ,अब नयी पहचान बनानी है।
जय हिन्द, जय भारती।
सावित्री प्रकाश