Sridhar
माटी मेरी प्रीत की
December 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी
माटी मेरी प्रीत की पल पल पक्की होती जाये
देख जीत मेरी प्रीत की, तेरा रंग क्यों फीका पड़ता जाये
इक लौ जलाकर आया हूं अंधेरों में कहीं
May 26, 2018 in शेर-ओ-शायरी
इक लौ जलाकर आया हूं अंधेरों में कहीं
ख्वाहिश है के वो कल तक सूरज बन जाये
श्रीधर सनकी
April 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी
मैं हूं मनमौजी, बात कहूं मैं मन की
सीधी सपाट कहता है, श्रीधर सनकी
माँ का आंचल
March 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
अपने आंचल की छाओं में,
छिपा लेती है हर दुःख से वोह
एक दुआ दे दे तो
काम सारे पूरे हों…
गुजर गये
March 24, 2017 in शेर-ओ-शायरी
दिन कुछ लम्हों आड़ में गुजर गये
हम आपके इश्क की आड़ में गुजर गये
मुठ्ठी में तकदीर
January 23, 2017 in Poetry on Picture Contest
मुठ्ठी में तकदीर है मेरी, मेरे वतन की
कर ले कोई कितनी भी कोशिश
मिटा नहीं सकता|
क्या करेगा वो इन्सान आखिर
जो देश का राष्टगान भी
गा नहीं सक्ता||
लंबी इमारतों से भी बढकर, कचरे की चोटी हो जाती है
January 18, 2017 in ग़ज़ल
जिंदगी की सुंदर प्लास्टिक, कचरें में बदल जाती है
अगर यूज न हो ढंग से, ऐसे ही जल जाती है
कभी कभी जिंदगी से बढी मौत हो जाती है
जिंदगी कभी कभी पानी में भी जल जाती है|
कुछ को तो कचरे फैलाने से फ़ुरसत नहीं
कुछ की तो जिंदगी कचरें में गुजर जाती है|
फैलती हुई दुनिया में, जिंदगी कहीं सिमटी सी है
लंबी इमारतों से भी बढकर, कचरे की चोटी हो जाती है|
आया खत मेरे इश्क का आज
October 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी
आया खत मेरे इश्क का आज
सिर्फ़ पता था मेरा, और कुछ नहीं|
मुन्तजिर हूं मैं मोहब्बत का
October 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी
मुन्तजिर हूं मैं मोहब्बत का
मयखानों की मुझे तलाश नहीं
इक दरिया है जिसे मैं ढ़ूढ़ता हूं
पैमानों के जामों की मुझे प्यास नहीं
आज कोई भी ले जाये मुझे मै चला जाऊंगा
October 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज कोई भी ले जाये मुझे मै चला जाऊंगा
इस दुनिया से लेना देना नही अब से कुछ
ज़हर इस तरह घुला जिंदगी में
September 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ज़हर इस तरह घुला जिंदगी में
हर गूंठ में मुहं कढवा होता गया|
बारिशों का तो आना जाना नहीं अरसे से
सूखे से रिश्ता हमारा होता गया||
दीवाना
September 10, 2016 in शेर-ओ-शायरी
उनकी गली से जो गुजरे वो दीवाना हो जाता है
भटक जाता है वो, मजनू हो जाता है
हम भी गुजरे थे इक दफ़ा उनकी गली से
आज तक भटक रहे है, न उनकी खबर है
और न खुद की|
इक जमाना था, जब हम सब के हुआ करते थे
August 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी
इक जमाना था, जब हम सब के हुआ करते थे
आज हर कोई हमें अपना कहने से कतराता है|
कैसी है ये आजादी
August 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
थप थप की आवाज से अचानक मैं चोंक गया
इक मासूम सा बच्चा खड़ा था,
मेरी कार के बाहर
अपने कुछ तिरंगो के साथ
बेचना चाहता था शायद
कमाना चाहता था
कुछ पैसे अपनी मां के लिए
या फिर अपनी बहिन को राखी पर कुछ देने के लिए
आजादी के मायने मैं जान नहीं पाता हूं
किसको है यहां आजादी?
कैसी है ये आजादी?
किसी की आजादी छीनने की आजादी?
या फिर किसी का शोषण करने की आजादी?
वो बच्चा, जिसे किसी स्कूल की परेड में भाग लेना था,
वही रोटी की खातिर
सड़क पर झंडे बेच रहा है
आजादी के लिए जान गवानें वालों का सपना
आज सरे आम रो रहा है
भारत का भविष्य बीच सड़क पर
सस्ती कीमतों में बिक रहा है
आस उनके आने की
May 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी
आस उनके आने की कभी खत्म नहीं होती
जिद उनके आने की कभी खत्म नहीं होती