मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ

May 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं यह शिद्दत से महसूस करता हूँ
लिख – लिख कर मैं कागज नहीं
अन्तर की रिक्तता को भरता हूँ

रिक्त स्थान कुछ ऐसे हैं
मन के अन्दर बैठे हैं
वें प्रश्न पूंछ्ते रहते हैं
मैं उत्तर देता रहता हूँ

दुनिया हिस्सों में बंटी हुई
कितने किश्तों में कटी हुई
एक दूसरे से कितनी सटी हुई
मन चाहे सबको एक करुँ
बेफिक्रो की भी थोड़ी फिक्र करुँ
दुनिया की ही केवल फिक्र नहीं
मैं अपनी फिक्रो में भी रहता हूँ

ज़िंदगी बुझता चराग हो गई
गुटखा और पान पराग हो गई
खा -खा कर लोग सूँघते हैं
नशे में लोग ऊँघते हैं
जिंदगी EMI में बँटी हुई
EMI भरता रहता हूँ

न राजा मिला न रंक मिला
सौगात में प्रजा तंत्र मिला
नारे बड़े निराले मिलें
नदी की जगह नाले मिलें
अन्धेरे मिलें ,न उजाले मिलें
अन्याय की ठोकर खा -खा कर
न्याय खोजता फिरता हूँ

लिख -लिख कर मैं, कागज नही
अन्तर की रिक्तता को भरता हूँ ! तेज़

मेरे मोहल्ले में स्कूल खुलने दो

May 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

 

मेरे मोहल्ले में
न मंदिर बनाओ
न मस्ज़िद बनाओ
यदि बनाना ही है
तो एक स्कूल बनाओ

मेरे मोहल्ले में न गीता का पाठ हो
न जुमे की नमाज़ हो
अगर पाठ कोई हो तो
वह इंसानियत का पाठ हो

मेरे मोहल्ले में
न पंडित को भेजो और न पूजा को भेजो
न क़ाज़ी को भेजो और न नमाज़ी को भेजो
अगर भेजना ही है
तो शिक्षा को भेजो और शिक्षक को भेजो

मेरे मोहल्ले में
न हिन्दू बनाओ
और न मुसलमान बनाओ
इंसान को इंसानियत से घेरो
और इंसान बनाओ

मेरे मोहल्लों को
इंसानो की बस्ती ही रहने दो
मेरे मोहल्ले में
एक स्कूल खुलने दो ।

तेज

रोशनियाँ उसका पीछा करती रहीं

April 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोशनियाँ उसका पीछा करती रहीं
और वह अंधेरों में छिपता रहा
तन्हाइयों में खोता गया
और सूरज से आँख मिलाने से डरता रहा

दिन दिन न थे उसके अब
रातों का उसको इंतज़ार रहने लगा
इतना पर्दा बढ़ा
कि ख़ुद से भी वह छुपने लगा

अँधेरे अच्छे लगने लगे धीरे धीरे
दूर जाते रहे उसके जीवन से सवेरे
वह अपने जीवन से दूर जाता रहा
सब कुछ खोता रहा

तभी किसी प्रेरणा से उसने कलम उठा ली
लिखने को अपने जीवन में जगह दी
अवसाद मन के वह कागज़ में उतारने लगा
मन में ज़मी मैलो से मुक्ति पाने लगा

फिर अपने को विस्तार दिया
औरों से खुद को जोड़ लिया
जीवन को गति मिलने लगी
अंधेरों की बदली छटने लगी
रोशनी पर्दों से छन छन कर आने लगी
सूरज की उसको ज़वानी मिली
वह बढ़ने लगा जीवन में
ऊर्जा का प्रवाह होने लगा उपवन में
जीवन के वृक्ष पर विश्वास का फूल खिलने लगा
आशा का फल लगने लगा
वह जीवन में आगे बढ़ने लगा
बढ़ता गया आगे की ओर
चढ़ता गया ऊपर की ओर
कइयों की ज़िंदगियाँ सवारी उसने
कितने ही जीवन में वह लाया भोर

सृजन की उंगली थामे थामे
जीवन का मैराथन जीत लिया उसने
जीवन को सही अर्थ दिया उसने ।

तेज

मोहब्बत की गवाही

April 27, 2016 in ग़ज़ल

मोहब्बत की गवाही देने लगती हैं धड़कने
सुलझाने से सुलझ जाती है सब उलझने

चाँद को पाने की हिम्मत आने लगती है
ज़िंदगी में आती हैं जितनी अड़चने !

शांति ओढ़ लेना

April 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शांति ओढ़ लेना
प्रतिरोध छोड़ देना
ज़रूरी नहीं कायरता ही हो
हो सकता है
आने वाले संघर्ष की तैयारी हो

बात बात में ताने देना
देखने पर आँखे मटकाना
बोलते वक़्त मुह बिचकाना
ज़रूरी नहीं कि यह नफरत का प्रदर्शन हो
हो सकता है कि यह मानसिक बीमारी हो

चीखों का तड़पते रहना
जवानी का मचलते रहना
शमा का जलने से पहले बुझ जाना
ज़रूरी नहीं कि कमज़ोरी हो
हो सकता है हवा का ज़ोर भारी हो

ऑफिस में काम न कर पाना
फाइलों का काम तमाम करना
लाल फीते की जकड़न से
साँसों का घुटते रहना
ज़रूरी नहीं कि हराम खोरी हो
हो सकता है
ये नौकरी सरकारी हो ।

तेज

जापान से बुलेट ट्रेन लाने की ज़रूरत नहीं है

April 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जापान से बुलेट ट्रेन लाने की ज़रूरत नहीं है
बुलेट ट्रेन हम भी बना सकते हैं
और चला सकते हैं

अगर जापान से कुछ लाना ही है
तो उनकी आदतें लाई जाएँ
उनकी सांस्कृतिक सौगातें दिखाई जाएँ
उनकी कार्यसंस्कृति अपनाई जाए
वैज्ञानिक प्रवृत्रियों का आयात हो
सिर्फ जुमलों में न बात हो
सामंती आदतों पर प्रतिघात हो

उस देश से कुछ सीखा जाए
जिस देश ने युद्ध की विभीषिका को सहा
जो देश परमाणु अस्त्रों की आग में जला
फिर उठ खड़ा हुआ
विकास को मिशन बनाया
इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा किया
मेहनत और अनुशासन से
ईमानदारी के शासन से

ये पता नहीं
विश्व गुरु कौन था
पर जापान के समतामूलक समाज से कुछ सीखकर
जाति और सम्प्रदाय को जीवन से खींचकर
सामूहिकता की परिधि के भीतर
व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियों को केंद्र में रखकर
टीम वर्क पर विश्वास करने से
पूरा भारत दौड़ेगा
आत्मविश्वास की बयार से
बुलेट ट्रेन की रफ़्तार से

जहाँ तक बात पैसों की हैं
वह भी आ जाएंगे
बस भ्रष्टाचार के गटर को बंद कर दिया जाए
व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं को तनिक छोड़ दिया जाए
जब पद व्यक्ति को नहीं खा जाएगा
जो जितना ऊँचे पहुचेगा
वह उतना झुकता जाएगा
तभी देश का सही मायने में विकास होगा

हवाई ज़हाज़ भी बनेगा
बुलेट ट्रेन भी चलेगी
और देश का हर हिस्सा
हर व्यक्ति
सही में फूलेगा फलेगा ।

तेज

टेक्नोलॉजी कैसे आएगी

April 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

टेक्नोलॉजी कैसे आएगी
——––—-/–/——-//

टेकनोलॉजी कैसे आएगी इस देश में
जब तर्क को आस्था के डिब्बे में बंद कर दिया गया हो
जब विज्ञान को धर्म के तले दबा दिया गया हो

जब देश के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति
घंटों गंगा की आरती करता हो

जब मिसाइल के प्रक्षेपण से लेकर
घर बनवाने तक में
हर छोटे बड़े कार्य में
मन्त्र पढ़े जाते हों
नारियल फोड़े जाते हों
चमत्कार की आशा में
शुभ लगन की प्रत्याशा में

वैज्ञानिक के घर के बाहर भी
काला धागा और लाल मिर्ची बाँधी जाती हो

जहां तुलसी जी
पिता शिव की शादी में भी
पुत्र गणेश की वंदना करवाते हों

जहां
जन्म से लेकर मृत्यु तक
मनुष्य
सिर्फ परलोक की ही बात करता हो
84 लाख योनियों से मोक्ष चाहता हो
जहां अतार्किक और हास्यास्पद बातें भी
धर्म और आस्था के कवच तले
विश्वसनीय हो जाती हों

वहां टेक्नोलॉजी कैसे आएगी
जहाँ एक दो साल के अनुभव वाला आई ए एस
30 वर्ष के अनुभव वाले डॉक्टर और इंजीनियर का बॉस हो

टेक्नोलॉजी कैसे आएगी
जहाँ टेक्निकल लोग दरोगा बनना चाहते हों
अपने हाथ में डंडा चाहते हो
क्यों कि बिना डंडे के आपका सम्मान सुरक्षित नहीं
जहां योजनाएं केवल इतिहास और भूगोल के विशेषज्ञ बनाते हैं
जहां बड़े पद कुछ जातियों के लिए आरक्षित हैं
जहां व्यक्तियों का दोगला पन कमज़ोरी नहीं
बल्कि स्मार्ट होने का पैमाना है
ज़हाँ हराम खोरों के पास ही खज़ाना है

टेक्नोलॉजी कैसे आयेगी इस देश में
जहाँ बुद्ध के तार्किक सिद्धांतों को खदेड़ दिया गया हो
और अन्धविश्वास,पाखंड और अमानवीयता को अपना लिया गया हो
जहां सिर्फ झूंठ के कितने ही किले गाड़ दिए गए हों
जब झूठ का साम्राज्य सत्यमेव जयते का नारा देता हो
जहां आपका काम नहीं
बल्कि आपकी जाति और धर्म ही आपको सहारा देता हो

वहां टेक्नोलॉजी कैसे आएगी
वहां तो सिर्फ चमत्कार होता है
भक्ति और आस्था ही सार होता है
और हमको महसूस होता है
कि हम तो विश्व गुरु हैं
आध्यातमिक शक्ति हैं

जब व्यक्ति इस जीवन के लिए नहीं
किसी और जीवन के लिए जीता है
तो फिर विकास कैसे होगा
टेकनोलॉजी और सारे ऐश्वर्य तो स्वर्ग में हैं
यहाँ तो सिर्फ भक्ति और भजन करो
भगवन को नमन करो
टेक्नोलोजी तो भौतिकता है
और हम तो आध्यातमिक लोग हैं
हम तो सात्विक लोग हैं
इसलिए टेक्नोलोजी कहाँ से आएगी ।

तेज

‎international‬ knowledge day

April 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो समाज में समता का समर्थक है
जो देश का विकास चाहता है
जो अंधकार की जगह प्रकाश चाहता है
जो अंध विश्वास ,पाखंड ,भेदभाव हटाना चाहता है
जो सामाजिक दीवारों को तोड़ना चाहता है
जो धर्म ,संप्रदाय और जाति से उठकर
इंसान को इंसान से जोड़ना चाहता है
वह अंबेडकर का समर्थक होगा
वह
किसी खांचे में बंटा नही होगा
न वह धर्म होगा
न वह वर्ग होगा
न जाति होगा
वह जोंक की तरह समाज से लिपटा हुआ
उसको चूसेगा नहीं
वह समाज को ऑक्सीजन देगा
जीने का साधन देगा
वह पिछड़ों को आगे लाएगा
वह सीढियां बन जाएगा
जिन पर चढ़ चढ़ कर लोग
उन्नति की राहों पर चलने लगेंगे
लोग बोधिसत्व बनने लगेंगे ।

तेज
‪#‎अंबेडकर‬ जयंती
‪#‎international‬ knowledge day
Straight from Tokyo ,Japan

यह जापान है

April 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह जापान है

——————-

यह हिंदुस्तान नहीं ,बाबू
जापान है
जहाँ गुरु ग्राम और
घंटा घड़ियाल नहीं
विज्ञान है

यहाँ आप आज़ाद है
अपने विकास के लिए
उन्नति के प्रयास के लिए

यहाँ नम्रता है
फालतू का दिखावा नहीं
जो है ,वह वास्तविक है
कोई छलावा नही

कोई छुआ छूत नहीं
लोग परजीवी की तरह समाज को चूसते नहीं
हर असफलता और नाकामी के लिए
भगवान को कोसते नहीं
मन्त्र उनका सरल है
बुद्ध को अपनाया है
तर्क को हथियार बनाया है
पूरे वर्ष भगवान को अवकाश रहता है
धरती पर केवल प्रयास रहता है

जब भारत
अंधविश्वास, पाखंड और भाग्यवाद नहीं
विज्ञान बन अपनाएगा
बनारस को क्योटो बनाने की ज़रूरत नहीं होगी
पूरा हिंदुस्तान ही जापान बन जाएगा ।

तेज

Poem written during My recent visit to Japan.

वर्चुअल दुनिया

April 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो कनेक्ट होना चाहता है
पूरी दुनिया से
वर्चुअली
लेकिंन अपनी रियल दुनिया
के लिए
उसको फुरसत नही

फेस बुक पर
5000 मित्र है
और 10000 फॉलोवर
ट्विटर में ट्रेंड करता है वह
और इंस्टाग्राम में हिट है
पर उसका दुनिया में
कोई रियल मित्र नही

वर्चुअल दुनिया के डिस्कशन का हीरो है
किसानो की समस्या हो
या नारी पर अत्याचार
आर्थिक नीति हो
या भ्रष्टाचार
पर रियलिटी से कोई सम्बन्ध नहीं

फेस बुक पर ही
इश्क़ करता है
किसी अनजाने प्रोफाइल की
सुन्दर फ़ोटो पर
अपनी जान छिड़कता है
घर पर इंतज़ार करती पत्नी से
कोई मतलब नहीं

वर्चुअल रियल हो गया
रियल अन रियल
दुनिया सीमित हो गयी
13 इंच के भीतर
चौकोर सी ।

तेज

अन्याय

April 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अन्याय
इस लिए नही हैं कि
वह बहुत शक्तिशाली है
और उसका पलड़ा भारी है
वह हर जगह छाया है
उसने अपना घर बसाया है

अन्याय इसलिए है
क्यों कि
हम अपनी आवाज़ उठा नही पाते
अपनी बात पहुंचा नही पाते
उसकी नीव हिला नही पाते

आँखे मूंदे रहते हैं
समाज को
बांटे रहते हैं
कभी जाति के नाम पर
कभी धर्म के नाम पर
कभी सम्बन्धों की सार्थकता के नाम पर
कभी व्यहार्यता के नाम पर

और अन्याय बढ़ता जाता है
सूरज को निगलता जाता है
अपने को फैलाते हुए
न्याय को हटाते हुए

ज़िंदगी

April 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िंदगी में ऐसे काज करो
कि ज़िंदगी पे थोड़ा नाज़ करो
ज़िंदगी को रिलैक्स करो
ज़िंदगी का हेड मसाज़ करो
फिर
ज़िंदगी से कुछ सवाल करो

ज़िंदगी पे यक़ीन करो
ज़िंदगी को न ग़मगीन करो
माँ की आँखों का तारा बन कर
अँधेरे में सितारा बनकर
ज़िंदगी को ज़रा रंगीन करो

ज़िंदगी के तनिक हमराज़ बनो
ज़िंदगी में एक साज़ बनो
मज़लूमो की आवाज़ बनो
मासूमियत ,अल्हड़पना और इंसानियत की
ज़िंदा यहाँ मिसाल बनो ।

तेज

जब कोई धर्म साज़िशों का पुलिंदा बन जाता है

April 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब कोई धर्म साज़िशों का पुलिंदा बन जाता है
तब धर्म केवल धंधा बन जाता है

शोषण और लूटपाट ही दलालों का एजेंडा होता है
इंसानियत मर जाती है और खोखला धर्म ही केवल ज़िंदा होता है

देवी पूजी जाती हैं और स्त्रियों का शोषण होता है
छुआ-छूत ,झूठ और पाखंड का दृश्य बड़ा भीषण होता है

ईश्वर के बहाने
आदमी को लतियाया जाता है
पशु पूजे जाते हैं
और इंसानो को मरवाया जाता है

पाप ,पुण्य बन जाता है
शरीफ़ होना संताप हो जाता है
आग लगी रहती है समाज में
विवेकहीन होना आशीर्वाद बन जाता है ।

तेज

poem

April 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक फूल के लिए कितना मुश्किल होता है
कि
वह अपनी पंखुड़ियों को
तूफानों से बचा ले
छिटकने न दें
पराग कणों को बिखरने न दे

एक पेंड के लिए बड़ा कठिन होता है
अपने अस्तित्व को बनाए रखना
अपनी जड़ों में समाए रहना
और अपनी शाखाओं को बचाए रखना
धूप से ,बारिश से,सूखा से और बाढ़ से

एक ट्रेन भी
संतुलन बना लेती है
दो पटरियों के बीच
पटरियों से टकराती हुई
चोट पर चोट खाती हुई
फिर भी चलती जाती है
अपने सफ़र पर
बिना रुके हुए
बिना थके हुए
बिना चिंता, विषाद के
चलती जाती है अपने मार्ग पर

मनुष्य कितनी ही
आकृतियों को
बनाता है
बिगाड़ता है
दिलों में सजाता है
फिर भूल जाता है

आकृतियों को एक साथ सहेजना हो जाता है मुश्किल
अलग अलग पटरियों पे चलने की कोशिश में
अक्सर पटरी से उतर जाते
जो कहना होता है
वह न कह पाते हैं
बंट जाते हैं सुख ,दुःख
और ज़िंदगियाँ

हर किसी की अपनी चाहते हैं
मंज़िले हैं
और रवायतें हैं
कुछ भी उभयनिष्ठ नहीं
कुछ भी संश्लिष्ट नहीं
हैं तो अलग अलग सी
अनजानी राहे
और कुछ जाने से
पर अब अनजान हो चुके चौराहे
जहां पहुँच जाते हैं
यदा -कदा
और हो जाते हैं
विदा
कह कर
अलविदा ।

तेज

मैं और तुम

April 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं और तुम साथ साथ बड़े हुए
दोनों साथ- साथ
अपने पैरों पर खड़े हुए
तुम्हारी शाखाएं बढ़ने लगीं
पत्तियां बनने लगीं
दोनों एक साथ
जीवन में आगे बढ़े
अपने -अपने कर्मों के साथ्
तुमने जीवन को हवा दी
साँसे दी जीने के लिए
छाया दी बैठने के लिए
कितनों को आश्रय दिया
रहने के लिए
मैंने भी घर बनाया रहने के लिए
नींव डलवाई
दीवाल खिंचवाई
खिड़कियां दरवाज़े लगवाये
फिर घर के फर्नीचर आये
सब तुम्हारे कारण ही
तुम्हारे अंग -अंग को
काट -काट कर
अपने लिए सुविधाएं इकठ्ठा करते रहे
यहाँ तक कि लिखने के लिए कागज़
तुम देते रहे
बिना कुछ कहे
तठस्थ भाव से
ये जानते हुए
कि तुम नष्ट हो रहे हो
तुम्हारी जडे सूख रही हैं
तुम तिल -तिल मरते रहे
कटते रहते
दर्द सहते रहे
आज तुम्हे खोजता हूँ
कहीं नहीं दिखते तुम
शुद्ध हवा की कमी हो गयी
बिना पेंड पौधों की ज़मी हो गयी ।

छटपटाहटों की ज़ुबान

April 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी छटपटाहटों को ही देता हूँ
मन के जज़्बातों को डायरी में उतार लेता हूँ

ये छटपटाहटें सिर्फ मेरी अपनी ही नहीं
औरों की छटपटाहटों को भी उधार लेता हूँ

अंदर और बाहर की लड़ाईयों के लिए
कलम को हथियार बना लेता हूँ ।

तेज

यह बात अफवाह सी लगती है !

April 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये बात अफवाह सी लगती है
कि ,सच्चा प्रेम कहीं मिला
भीड़ में कहीं इंसान दिखा

यह बात अफवाह सी लगती है
कहीं ज्ञान का दीपक जला
किसी के हिस्से का अँधेरा मिटा
कुछ ज़िन्दगियों को बसेरा मिला
किसी की ज़िन्दगी में सवेरा हुआ

यह बात अफवाह सी लगती है
कि,कहीं ईमानदार आगे बढ़ा
कोई शोषित दलित उन्नति के शिखर पर चढ़ा
कहीं जाति,धर्म ,रंग,लिंग के भेद पर भेदभाव नहीं हुआ
कहीं भ्रष्टाचार का प्रभाव कम हुआ

यह बात अफवाह सी लगती है
कि शहर में नारी सुरक्षित है
और कानून व्यवस्था रक्षित है
कि बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल हैं
इन्सानो का भी कुछ उसूल है

यह बात अफवाह सी लगती है
कि खेतों में हल बैल और किसान है
किसानों के पास कुछ सुविधा सामान है
ठिठुरती सर्द रातों में हर सर के ऊपर छत है
हर इंसान प्रकट कर सकता अपना मत है

यह बात अफवाह सी लगती है
टी वी चैनलो पर सही न्यूज़ है
विद्युत् सर्किट में लगा हुआ फ्यूज़ है
देश के नेता ईमानदार हैं
अच्छाई के पैरोकार है
यह बात अफवाह सी लगती है।

तेज

यात्रा जो पूरी न होती ।

April 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शाम का समय
सूरज विश्राम करने को तत्पर
दिन पर तपने के बाद
सारी दुनिया तकने के बाद
अपूर्ण ख्वहिशे दिन भर की
मन में रखे हुए
ये सोंच कर
कि चलों रात में
चन्द्रमा की शीतल छाया होगी
पर ये क्या
ये तो अँधेरी रात थी
केंवल घनघोर अँन्धेरा दिख रहा चारों ओर
असमय ही बादलों ने बरसात की
तन तो भीग गया
पर मन अतृप्त रहा
अपने अतृप्त मन के साथ सूरज
रात में यात्राएं करने लगा
इस छोर से उस छोर तक
बिन बात भटकने लगा
वो कुछ सोंच रहा था
कोई छोर खोज़ रहा था
जिसको पकड़ कर
वो पार कर जाए
वैतरणी को
थोड़ी मुक्ति मिल जाए
उसकी गर्मी को
दिन में वह तपा था
रात में भी तपता रहा
दिन में थका था
रात में भी थकता रहा
कुछ न कर सका
मात्र छोर बदलता रहा
कई रातें वह सो न पाता
सू रज है रो भी नहीं पाता
हर सुबह उठ कर
चल देता है
दुनिया को रोशनी देने
अपनी अनंत यात्रा पर
हर बार
बार बार । तेज

Two Liner

April 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

हरी जाली से देखने पर सूखे पेंड भी हरे लगते हैं
नज़र का फ़ेर हो जाए तो पिलपिले भी खरे लगते है ।
तेज

होते हैं

April 7, 2016 in ग़ज़ल

एक युद्ध में कितने युद्ध छिपे होते हैं
हर बात में कितने किंतु छिपे होते हैं

नींव का पत्थर दिखाई नहीं पड़ता अक्सर
रेल चलती है पर पटरियों के जैसे सिरे दबे होते हैं

जिसने क़त्ल किया उसका पता नहीं चलता
जब औरों के कंधों के सहारे बंदूक चले होते हैं

रक्षा कवच होता है धूर्त और मक्कारों के पास
फंसते वही हैं जो लोग भले होते हैं

यकीन उठता जाता है इंसान का इंसानों से
छांछ भी फूंक कर पीते हैं जो दूध के जले होते हैं

अक्सर शरीफों पर लोगों का यक़ीन नहीं होता
यक़ीन उन पर ही करते हैं जो थोड़ा मनचले होते हैं ।

तेज

मोहब्बत की नज़्मों को फिर से गाया जाए

April 6, 2016 in ग़ज़ल

मोहब्बत की नज़्मों को फिर से गाया जाए
अपनी आज़ादी को थोड़ा और बढ़ाया जाए

हक़ मिला नहीं बेआवाज़ों को आज तक
हक़ लेना है तो अब आवाज़ उठाया जाए

किसी इंसान को भगवान बनाने से पहले
हर इंसान को एक इंसान बनाया जाए

कैसे बनेंगे हर रोज़ नए नग़मे
क्यों न पुराने नग़मों को ही फिर से गाया जाए

गिरने वालों को उठाने की बात करते हैं
क्यों न लोगों को गिरने से बचाया जाए

बहुत हो चुकी मज़हबी बातें और सियासी बिसातें
अब सियासत से मज़हब को हटाया जाए ।

तेज

Poetry

April 6, 2016 in English Poetry

Poetry
————

Poetry is
Neither frustration
Nor speculation

Poetry creates a situation
where we get solution

Poetry is an inspiration
To live and let live

Poetry is like meditation
Where differences of caste,creed,race,colour ,religion and country dilute
As sugar dilutes in water

Poetry is an
Art of living
Art of giving
Art of letting
and
Art of loving .

Tej

पवित्र नारी ही क्यों हो

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पवित्र नारी ही क्यों हो
पुरुष की पवित्रता का क्या मोल नहीं ?
पतिव्रता नारी ही क्यों
पुरुष के पत्नी व्रत का क्या कोई तोल नहीं ?

सारी सीमाऐं
सारी गरिमाएं
मर्यादाएं
नारियों तक ही सीमित हैं
पुरुषों पर कोई जोर नहीं

नारी ही सती हो
अग्नि परीक्षा भी उसी की हो
तुलसी बाबा
ताड़न की अधिकारी कहें
कबीर जी महा ठगिनी कहें

उसी को नकाब लगाना है
अपना चेहरा छुपाना है
चरणों की दासी भी वही है
प्रेम की प्यासी भी वही है

उसी का निर्वासन होता है
क्या -क्या हैं नारी के धर्म
अपनी इच्छा का करे वही हमेशा त्याग
मिलता जीवन में सिर्फ बचा हुआ भाग

पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती
बेटे की सलामती के लिए
व्रत , पूजाएं करती
क्या
जरूरत नहीं है ?
उसके लिए प्राथना,व्रत और पूजा

शायद यही कारण है
कभी भ्रूण हत्या
कभी दहेज़ हत्या
क्यों कि
एक नहीं रहेगी
तो क्या फ़र्क़ पड़ेगा

नारी जीवन
एक भार है
बहुत वज़नदार है
जिसको हर कोई हल्का करना चाहता है !

कुछ न होगा

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर्फ संकेतो और प्रतीकों से कुछ न होगा
सिर्फ परंपरागत तरीक़ों से कुछ न होगा
सिर्फ नारे बाज़ी से भी कुछ न होगा
सिर्फ आज़ादी से भी कुछ न होगा
सिर्फ चेहरे नहीं
चरित्र बदलना होगा
सिर्फ शतरंज के मोहरो को बदलने से क्या होगा ।

तेज

थोड़ी दूरियां भी अच्छी

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुपर डेंस फेज में जब
कण होते हैं
तब बिस्फोट के कई कारण होते हैं
बिग बैंग भी तभी होता है
और अणु, परमाणु ,न्यूट्रॉन ,इलेक्ट्रान
और प्रोटोन सभी छितरा जाते हैं

अणुओं का स्वतंत्र अस्तित्व है
क्यों कि उनके बीच अधिक लगाव है
और थोडाअलगाव है
आकर्षण और
थोड़ा प्रतिकर्षण है
उनमे आपस में संतलुन है

जैसे दो कण आकर्षण के कारण
अधिकतम निकट आते हैं
तभी उनके बीच प्रतिकर्षण होने लगता है
अन्यथा
वें घर्षण के कारण
एक दूसरे को जला दें
एक दूसरे का अस्तित्व मिटा दें

यही प्राकृतिक नियम लागू होता है
मानवीय रिश्तों पर
अधिक घनिष्ठता
अधिक नज़दीकियां
और
फिर बढ़ने लगती हैं दूरियां

शायद इसलिए
रिश्तों में
संबंधों में
थोड़ी दूरियां भी अच्छी

चूँकि
आकर्षण बल
दूरी के इंवेर्सेली पर्पोशनल होता है
यदि दूरी शून्य हुई
तो खतरा बढ़ जाता है
और बिग बैंग बिस्फोट होता है
और छिटक कर दूर चली जाती हैं
भावनाएं
संवेदनाएं

समय बीतता रहता है
भावनाएं अलग अलग दिशाओं में यात्रा करती रहती हैं
दूरियां बढ़ती रहती
गैलक्सी ,स्टार,ग्रह और उपग्रह तो कम बनते हैं
डार्क एनर्जी का निर्माण ज़्यादा होता है
अनंत काल तक एक्सपेंशन होता है
मिलन नहीं ।

तेज

चलो थोड़ा जादू करते हैं

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो थोड़ा जादू करते हैं
जनता के दिल को छूती हुई एक कविता लिखते हैं

झोपड़ियों में पल रही भूख से टकराते हैं
छोटे छोटे मासूमों की चीख
और डूबती हुई ज़िंदगियों को
कविता का विषय बनाते हैं

लड़ते हैं
अफगानिस्तान की पहाड़ियों के बीच पल रहे आतंक से
अफ्रीका के अँधेरे से
अमेरकियों के पूजी वाद से
सीरिया में इस्लामिक स्टेट से टकराते हैं
ईराक़ और ईरान की कुछ बाते करते हैं
नक्सलियों के नक्सलवाद से मिलते है
आओ राजधानी से निकलकर
गांव और देहात में चलते हैं
थोड़ा कविता को धूप दिखाते हैं
चूल्हे का धुआं खिलाते हैं

जब कविता खेत में हल चलाएगी
तभी परिश्रम का अर्थ समझ पाएगी
केंवल मानसिक जुगाली न रहकर
समाज के कुछ काम आएगी

आओ कविता लिखते हैं
चरवाहों और किसानों की
सीमा पर मर रहे जवानों की
बिल्डिंग के नीव में लग रहे है
मज़दूर के खून की
आदमी और आदमियत के ज़मीन की

आओ कविता लिखते हैं
मानववाद की
इंसानी स्वाभाव की
विषमता के प्रभाव की
औरत के दर्द की
सूखा और सर्द की

आओ
कविता को तलवार बना दें
सारे भेदों को मिटा कर
अभेद उपजा दें
आओ कविता को सबकी आवाज़ बना दें

कविता को मोटी सी दीवार बना दें
सारी खाई मिटा दें
आओ सपनों का संसार बना लें
हर किसी को उसमे जगह दें
जीने की सबको वज़ह दें ।

तेज

ज़मी मैल को बहाया जाए

April 6, 2016 in ग़ज़ल

ज़्यादा दिमाग़ न आज लगाया जाए
सिर्फ मन में ज़मी मैल को बहाया जाए

धर्म और परंपरा की ऐसी भी न कट्टरता हो
कि होलिका की तरह औरत को जलाया जाए

सौहार्द और प्यार का रंग भरकर मन में
जो रूठे हैं आज उनको मनाया जाए

रंगो ,अबीरों और गुलालों की बारिश करके
दिल को पानी कर ,पानी को बचाया जाए

जिन बाज़ारों में बड़ी रौनक़ है

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन बाज़ारों में बड़ी रौनक़ है
कल सन्नाटा उनमे छाएगा

बंद होनी हैं दुकाने सब
ऐसा बाज़ार नहीं रह पाएगा

नफ़रत के अंधेरों में जो सौदेबाज़ी होती है
जिन जिन लोगों की भी उसमे हिस्से दारी होती है
अब ये सौदा न हो पाएगा
और न हिस्सा भी मिल पाएगा

न ऊपर से फ़रिश्ते आएंगे
और न दूर से परिंदे आएंगे
अपने अपने हक़ की खातिर
इस धरती से निकल सब आएंगे

धूप छन छन के अब आएगी
सारे परदे जल जाएंगे
छिपा रहा जो सदियों से
अब वह न छिप पायेगा

जिन बाज़ारों में बड़ी रौनक है
कल सन्नाटा उनमे छाएगा ।

बहुत ज़रूरी है

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छी कविताएँ लिखना उतना महत्वपूर्ण नही है
उन्हें अच्छे से प्रमोट होना बहुत ज़रूरी है

ऑफिस में काम भी उतना आवश्यक नहीं
आपका गुड बुक्स में नोट होना बहुत ज़रूरी है

सामाजिक प्रतिबद्धता उतनी महत्वपूर्ण नहीं है
दिखावे के लिए ही सही कुरीतियों पर चोट होना बहुत ज़रूरी है

लोकतंत्र में जनता का शासन होना अनिवार्य नहीं
जनता का चुनाव में सिर्फ वोट होना बहुत ज़रूरी है

जनता भूखी मरती है तो मरती रहे
सरकार के लिए उद्योगपतियों का उद्योग होना बहुत ज़रूरी है

ज़मीन पर काम हो चाहे न हो
सरकारी वादे रोज़ होना बहुत ज़रूरी है ।

तेज

poetry

April 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Poetry is
Neither frustration
Nor speculation

Poetry creates a situation
where we get solution

Poetry is an inspiration
To live and let live

Poetry is like meditation
Where differences of caste,creed,race,colour ,religion and country dilute
As sugar dilutes in water

Poetry is an
Art of living
Art of giving
Art of letting
and
Art of loving .

Tej

वह

April 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह आसमान में सीढियां लगाए चढ़ा जा रहा है
जो पीछे था आगे बढ़ा जा रहा है
देखता जा रहा है वह सपने पे सपने
यथार्थ के बल ने टेके हैं घुटने

वह हरी दूब है
कहीं भी उग सकता है
उखाड़ कर फेक देने के बाद
जहाँ भी फेका जाएगा
उग जाएगा
जिएगा खुद
औरों को ज़िलायेगा
हरापन ही फैलाएगा
बसंत ही लाएगा

वह जीत है
लेकिन
हार को भी गले लगाएगा

वह गीत है
दुःख में भी गाया जाएगा
और सुख में भी गाया जाएगा

वह प्रेम है
प्रेम ही फैलायेगा
नफ़रत के खर पतवारों को जलाएगा

वह फ़ैला हुआ है
आस पास भी
और दूर भी

वह संगीत है
वह तो बजेगा ही
कोई विकल्प नहीं है
उसका संकल्प यही है
उसका संकल्प सही है ।

तेज

गंध

April 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह अदृश्य गंध
अनाम सी
अपरिभाषित सी
मन में बसी हुई
जानी पहचानी सी
जिसकी खोज ज़ारी है

कल्पना के कितने ही क्षण जी उठते हैं
अनिरवचनीय आंनद के रस पी उठते हैं

हवा में कुछ घुल सा जाता है
जब आँचल तेरा लहराता है

अद्भुत सी अंगड़ाइयां तेरी
सूर्य को पराजित करती परछाइयाँ तेरी

रात में चंद्रमा भी टकटकी लगाए रहता है
थोड़ी सी गंध बस जाए उसके मन में भी वह कहता है
पर दूरियों का क्या करे वह
मज़बूरियों का क्या करे वह
सिर्फ दिन रात चक्कर काट काट कर
गंध को मन में बसा लेना चाहता है
अपनी रातों को सजा लेना चाहता है

पर वह गंध मिलती कहाँ
वह अपनी माटी की खुशबू दिखती कहाँ
अब तो मिलती है प्रदूषित हवा
नालियों की सड़ांध
और गंध को मन में बसाये लोग
भागते ईधर से उधर
दिन रात भर
मन में एक चाह है
उस गंध को फिर से महसूसने की
जिसमे बचपन बीता
अपने पैरों से चलना सीखा
वह मिटटी की गंध
सौंधी खुशबू ।

तेज

यदि जड़ें ऊपर हो

April 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

यदि जड़ें ऊपर हो
और तने नीचे
तो न जड़ें गहराई पा सकती हैं
और न तने का ही विकास होता है

यदि जहां खिड़की होनी चाहिए
वहां दरवाजे हों
जब शांत वातावरण की चाहत हो
तब बज रहे बाजे हों
ऐसे में न शुद्ध हवा होती है
और न ही पर्याप्त प्रकाश होता है

यदि जहां खेत खलिहान होने चाहिए
वहां कंक्रीट का जंगल हो
जहां कानून ,व्यवस्था का राज्य होना चाहिए
वहां अव्यवस्था का दंगल हो
ऐसे में न सब के लिए रोटी होती है
और न ही कोई मुल्क सच में आज़ाद होता है

जब सघनता की जगह विरलता हो
गंभीरता की जगह चपलता हो
जब नज़रे ही बुरी हो लोगों की
जब जेबें भरी हो चोरों की
तब क्या अंतर पड़ता है कपड़ों के साइज़ से
और तभी ईमानदार को गलत होने का आभास होता है ।

तेज

Titleless

April 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे बाहर के यूनिवर्स को
और मेरे अंदर के यूनिवर्स को
मेरे अंतर्द्वंद को
और बहिर्द्वंद को
कविताएँ
तराज़ू की तरह
दोनों पलड़ों पर बिठाए रखती हैं
कभी यह पलड़ा भारी हो जाता है
तो कभी वह

कविताएं नाव की तरह
ज़िंदगी को अपने कंधों पर बिठाए हुए
समस्त विषादों ,वेदनाओं ,चेतनाओं और संवेदनाओं को उठाए हुए
जीवन की धुरी बन जाती हैं
जीवन का नज़रिया और जीने का ज़रिया बन जाती हैं

गहन अनुभूतियों को शब्द देती हुई
शोर भरे वातावरण में मौन परोसती हुई
आती रहती है
अशेष शुभकामनाओं के साथ
अनंत सम्भावना के साथ
अपने ऊर्जा क्षेत्र को असीमित करती हुई
अवततित होती हैं
बार बार
हर क्षण हर पल ।

तेज

समीकरण

April 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ समीकरण
पारस्परिक खींचतान
झूंठी प्रतिस्पर्धा
ईर्ष्या ,द्वेष
अहंकार सृजन और विसर्जन
व्यक्तित्वों का टकराव
झूठी अफवाहें
सूनी निगाहें
आत्मिक वेदना
कम होती चेतना
शीत युद्ध
अलग- अलग ध्रुव
विलगित से निकाय
न भरने वाले घाव

चाँद का उगना
कोने कोने को प्रकाशित करना
रात अनमनी सोई सी
चीखती दीवार
कर्ण पट का फट जाना
आदमियों का ज़िंदा गोस्त हो जाना
श्वान ,बिलाव शिकारों की ताक में
पेट भरने के फ़िराक़ में

इंसानों का कोने में छिप जाना
अपने से ही दुबक जाना
चेहरों को छिपा कर
चेहरों को बदल देना
जो बताना था
वह छुपा लेना
कुछ अनर्गल ,अयाचित
अप्रत्याशित बोल देना

धीरे धीरे समीकरणों में
जंग लगना शुरू हो जाता है
समीकरण घिसते जाते हैं
रिश्ते खिंचते जाते हैं
इतना
कि चटाक की आवाज़ से
डोर टूट जाती है
और सब बिखर जाता है
इधर उधर
यहाँ वहां
और शुरू हो जाता है
सिलसिला
हर घटना को एक खास प्रिज्म से देखने का
प्रकाश की हर किरण को वर्ण विक्षेपण में बदलने का

कठोरता न्याय हो जाती है
किसी की हत्या होती है
किसी को आत्म हत्या करनी पड़ती है
और हत्या एक परंपरा बन जाती है
हत्या और हत्या
एक हत्या से निकलती है
दूसरी हत्या
और अंतहीन सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है
हत्याओं का
नाटकों का
करुण विलापों का
और अनर्गल प्रलापों का

सारी हत्याएं हत्याएं नहीं होती है
कुछ हत्याओं को शहादत का नाम दिया जाता है
कुछ हत्याओं को बदनाम किया जाता है
कुछ हत्याएं पा जाती हैं सरकारी सहानुभूति और आश्रय
क्रय विक्रय का खेल का शुरू हो जाता है
मज़हब और सियासत का मेल शुरू हो जाता है

समीकरण फिर से गढ़े जाने लगते हैं
तमगे फिर से जड़े जाने लगते हैं
चीज़े सांप्रदायिक रंगो में रंगी जाने लगती है
आदमी इंसान नहीं
ज़्यादा हिन्दू मुसलमान हो जाता है
कहीं अख़लाक़ मारा जाता है
कहीं नारंग काटा जाता है
और चीखें बढ़ती जाती है
आवाज़ें दब जाती हैं
हमेशा हमेशा के लिए ।

तेज

समीकरण

April 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ समीकरण
पारस्परिक खींचतान
झूंठी प्रतिस्पर्धा
ईर्ष्या ,द्वेष
अहंकार सृजन और विसर्जन
व्यक्तित्वों का टकराव
झूठी अफवाहें
सूनी निगाहें
आत्मिक वेदना
कम होती चेतना
शीत युद्ध
अलग- अलग ध्रुव
विलगित से निकाय
न भरने वाले घाव

चाँद का उगना
कोने कोने को प्रकाशित करना
रात अनमनी सोई सी
चीखती दीवार
कर्ण पट का फट जाना
आदमियों का ज़िंदा गोस्त हो जाना
श्वान ,बिलाव शिकारों की ताक में
पेट भरने के फ़िराक़ में

इंसानों का कोने में छिप जाना
अपने से ही दुबक जाना
चेहरों को छिपा कर
चेहरों को बदल देना
जो बताना था
वह छुपा लेना
कुछ अनर्गल ,अयाचित
अप्रत्याशित बोल देना

धीरे धीरे समीकरणों में
जंग लगना शुरू हो जाता है
समीकरण घिसते जाते हैं
रिश्ते खिंचते जाते हैं
इतना
कि चटाक की आवाज़ से
डोर टूट जाती है
और सब बिखर जाता है
इधर उधर
यहाँ वहां
और शुरू हो जाता है
सिलसिला
हर घटना को एक खास प्रिज्म से देखने का
प्रकाश की हर किरण को वर्ण विक्षेपण में बदलने का

कठोरता न्याय हो जाती है
किसी की हत्या होती है
किसी को आत्म हत्या करनी पड़ती है
और हत्या एक परंपरा बन जाती है
हत्या और हत्या
एक हत्या से निकलती है
दूसरी हत्या
और अंतहीन सिलसिला प्रारम्भ हो जाता है
हत्याओं का
नाटकों का
करुण विलापों का
और अनर्गल प्रलापों का

सारी हत्याएं हत्याएं नहीं होती है
कुछ हत्याओं को शहादत का नाम दिया जाता है
कुछ हत्याओं को बदनाम किया जाता है
कुछ हत्याएं पा जाती हैं सरकारी सहानुभूति और आश्रय
क्रय विक्रय का खेल का शुरू हो जाता है
मज़हब और सियासत का मेल शुरू हो जाता है

समीकरण फिर से गढ़े जाने लगते हैं
तमगे फिर से जड़े जाने लगते हैं
चीज़े सांप्रदायिक रंगो में रंगी जाने लगती है
आदमी इंसान नहीं
ज़्यादा हिन्दू मुसलमान हो जाता है
कहीं अख़लाक़ मारा जाता है
कहीं नारंग काटा जाता है
और चीखें बढ़ती जाती है
आवाज़ें दब जाती हैं

बेड़ियां

April 4, 2016 in Other

बेड़ियां जो पैरों में
उसे घुंघरू बना लें
आओ ज़िंदगी का मज़ा लें
नाच ,गा लें
औरों को नचा दें

ज़िंदगी को खुशियों से सज़ा लें
आओ बाधाओं को
अवसर बना लें
सूखती नदियों में
बादलों को बरसा दें ।

आसमान में खेती करके
धरती को लहलहा दे
सबकी भूख मिटा दे

आओ सब मिलकर
असंभव को
संभव बना दें ।

साध्य और साधन

April 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शोषक और शोषित
दो समांतर रेखाओं की तरह हैं
जिनका कभी मिलन नहीं होता
इसलिए शोषण का कभी अंत नहीं होता

शोषक चाहे अफ्रीका का हो
चाहे अमरीका का हो
हिंदुस्तान का
सीरिया या पाकिस्तान का
उनकी
भाषाएँ अलग हैं
मान्यताएं अलग हैं
चेहरे अलग हैं
पर मानसिकताएं एक जैसी हैं

उनके तने अलग अलग हैं
उनकी शाखाएं पतली मोटी हो सकती हैं
उनकी पत्तियां संकरी चौड़ी हो सकती हैं
उनके फूल विविध रंगों के हो सकते हैं
पर ज़मीन के अंदर जड़ें एक जैसी हैं

शोषण की नदी बहती है
उत्तर से दक्षिण तक
पूरब से पश्चिम तक
कहीं गहराई ज़्यादा है
कहीं छिछलापन है
पर शोषण की एक ही विचारधारा है

मुट्ठी भर लोग ही राज करना चाहते हैं
कभी धर्म के नाम पर
कभी पूंजी के नाम पर
कभी मनुवाद लाया जाएगा
कभी मार्क्सवाद अपनाया जाएगा
कभी ईश्वर के नाम पर डराया जाएगा
कभी राष्ट्रवाद भड़काया जाएगा

उनके
मन में सिर्फ एक बात गूंजती है
कि हम तुम से बेहतर है
और
शोषण ही होगा
जो माना जा रहा कमतर है

जैसे उत्तम नस्ल की ग़लतफ़हमी में
एक हिटलर बन गया
और संसार को युद्ध की आग में झोंक दिया
जैसे अतिराष्ट्रवादऔर नस्लवाद की कोख से
मुसोलिनी का जन्म हुआ
जैसे स्टालिन ने मार्क्स और लेनिन की गोद में बैठकर
जघन्य हत्याएं की
सद्दाम हुसैन,पोल पॉट,गद्दाफ़ी, माओ
और न जाने और कौन कौन से नाम

ऐसा प्रतीत होता है कि
इतिहास इंसानों का इतिहास नही
नेताओं का इतिहास नहीं
विकास का इतिहास नहीं
विचार का इतिहास नहीं
पूरा का पूरा इतिहास
शोषण का ही इतिहास है
आक्रांताओं का ही इतिहास है
जितने युद्ध लड़े गए
न्याय युद्ध तो एक भी नहीं
मानवता के लिए तो एक भी नहीं

भारत में आर्य आए
सुल्तान आए
मुग़ल आए
फ़्रांसिसी ,पुर्तगाली
फिर अंग्रेज़
सब के सब शोषण के लिए
सत्ता का रस पीने के लिए
सामान्य जन का खून पीने के लिए
आज भी रक्त पिपासु ही है
ये मुट्ठी भर लोग
जो किसी भी प्रकार से
छल से ,बल से ,विचार से ,भरमाकर
अपनी स्वार्थ सिद्धि ही करना चाहते हैं
कोई लेना देना नहीं
मानवता से
साध्य हैं उनके लिए सत्ता
और साधन है
आम जनता ।

तेज

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