UE Vijay Sharma
रिश्तों का जुड़ना
February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
रिश्तों का जुड़ना
कभी टूटी हड़ियों का , जुड़ना देखा है क्या ?
टूटे हुए दोनों हिस्सों को , साथ में रख,
श्वेत सीमेंट की लेप लगा , श्वेत कपड़े की खेप लगा ,
खयाल सिर्फ़ इतना कि , कोई ठोकर ना लगे I
कभी टूटे हुए रिश्तों का , दर्द सहा है कभी ?
समझ आता है अब , टूटे रिश्तों को जोड़ पाना ,
विश्वास के सीमेंट की लेप , प्यार के धागे की खेप ,
खयाल सिर्फ़ इतना कि , कोई ठोकर ना लगे I
समझ आता है अब , टूटे हुए रिश्तों का सच I
विश्वास का सीमेंट लग न पाया होगा ,
या प्यार की डोरी क्च्ची लग गई होगी ,
या शायद रिश्तों के पकने से पहले ,
कोई ठोकर लग गई होगी I
समझ आता है अब , हर पक्के रिश्ते का सच I
विश्वास , प्यार और पल–पल सजीव मन I
यूई अब कोई रिश्ता टूटने ना पाएगा I
और हर टूटा हुआ रिश्ता भी बंध जाएगा I
………. यूई
एक कोई राह
February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी
एक कोई राह अपना लो ,
वो राह यूई को दिखला दो
या तो मुझे अपना बना लो,
नहीं तो इस रिश्ते को दफना दो
……… यूई
धड़कन
February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी
अपनीयत को गर है जन्मना तो ,
शिकवे – शिकायतें सब दफ्ना दो
दिल से दिल की धड़कन मिला दो ,
अपनी रूह में मेरी रूह बसा दो
ज़ख्म
February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी
दर्द देना गर फितरत है तेरी ,
अपनीयत का तुम गला दबा दो
चाहें जितने भी फिर ज़ख्म दिला दो,
अपनीयत के दर्द से मुझे बचा दो
…… यूई
रिश्ता
February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी
दिल और रूह से जुड़ा ,
हमारा यह रिश्ता
दो नावो की सवारी ,
सह नहीं सकता
दर्द
February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी
दर्द अपनों को ,
भूले से भी दिया नहीं करते
गर देना ही है दर्द तो ,
अपना उन्हें कहा नहीं करते
…… यूई
स्वयम् सृजन
February 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
स्वयम् सृजन
पाने की चाहत मालिक को, कैसे पूरी कर पाएगा,
ख़ुद की अनुभूति कर ना पाया, उसको कैसे पाएगा ?
है नग्न इंसान उसके हिसाब में, छुपा उससे कुछ ना पाएगा,
अंत उतरने ही हैं मुखौटे, तो ख़ुद ही क्यों ना उतार जाएगा ?
स्वयम् सृजन का बीज बो , ख़ुद को ख़ुद से दे जन्म,
प्रतिभा अपनी को पहचान, ख़ुद का ख़ुद कर निर्माण,
अपने असली रंग को जान, ख़ुद के मन को पहचान,
जो सच है वह मन से मान, ख़ुद के चित् को जान I
नाम–प्रतिष्ठा का कर हरण, आदर्शों–मुखौटों को कर दफन,
द्वंध को अगन में कर भसम, अपने भय को कर जलन I
जो रंग दुनीया के लगाए चेहरे पे, इन रंगों को कर धुलन,
आईने में दिखती शकल भुला, मन में सच की ज्योत जला I
सजग मन को गर तूं कर पाएगा, यही तेरी चेतना जगाएगा,
सजग मन अपना कर, युई ग़लत कुछ ना तूं कर पाएगा,
बोध और होश की आग में, मन का कचरा जल जाएगा,
स्वर्ण–चित् तप इस आग में, तेरा जीवन पार लगाएगा I
…… युई
म्हा- शक्ति
February 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मौलिक–विचार है म्हा–शक्ति, जो उसने ख़ुद तेरे चित् जगाई है,
रहते ख़ास कारण उसके काम मैँ,क्यों उसने तुममे यह भरपाई है ?
निर–विचार जो जीवन जी जाएगा,कैसे मूड़–मन को बदल तूं पाएगा,
गर मौलिक–विचार ही ना कर पाएगा,फिर क्या यहां से तूं ले जाएगा ?
रह मौलिक–विचार मैँ मगन तूं ,यह अखंड संपदा को बड़ा तूं पाएगा ,
बड़ा कर ख़ुद की विचार–शक्ति ,उसकी राह् पर आगे तूं बड़ जाएगा I
उधार विचारों की जड़ताओ को छोड़,ख़ुद के विचारों को दिशा दे पाएगा,
दूसरों के मूड़ तर्क–विचार त्याग , युई तूं ख़ुद का चिंतन कर पाएगा I
मौलिक–चिंतन को अंतर्मन जगा, विवेक की दिव्य–ज्योत ख़ुद मैँ पाएगा,
ज्योत से निक्ली एक किरण, सदियों के अन्धेरे को दफन कर जाएगी I
…… युई
मुझसे नज़र मिला के कह
February 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
क्यों यह परदा दारी है, आ खुल के मेरे सामने आ
मुझसे नज़र मिला के कह, तू कभी ना ग़लत हुआ
सब नजरों में बन खुदा, भय का यह व्यापार चला
मुझसे ना कहना ओ खुदा, के युई है तेरी कोई बला
…… युई
फिर तू मुझे छल गया
February 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
गरूर–ए–नजर में तेरी, मेरा सर झुका रहा
तूने जब आवाज़ दी, दिल ने पलट कर कहा
शायद तूँ बदल गया, घर मेरा मुझे मिल गया
फिर तू मुझे छल गया, दिल से मेरा घर गया
…… युई
हर रिश्ता तार-तार हुआ
February 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
रूह मेरी तड़प तड़प गई, तूने ना पुकार सुनी
तुझसे ना–उम्मीदी में, बैरंग सी यह फिज़ा बुनी
ज़िन्दगी तो बसर गई, हर रिश्ता तार–तार हुआ
तेरे–मेरे इस खेल में, हर किरदार दागदार हुआ
…… युई
क्यों तूँ सोचता रहा
February 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
जाने क्यों तुम नाराज हुए, ख़ुद ही मुझको ज़ुदा किया
ना थे हम हमराज़ कभी, फिर क्यों यह शिकवा किया
ता–उमर चली तूने अपनी राह्, दिल मेरा लोच्ता रहा
चला जब मैं अपने दिल की राह्, क्यों तूँ सोचता रहा
…… युई
शायद था मैं कोई अंग तेरा
February 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
था मैं चला कहां से, इसकी ना कोई याद मुझे
हुआ मैं ग़लत कहां पे, इसका ना आभास मुझे
चेतना है धुंधली सी, शायद था मैं कोई अंग तेरा
क्या वोही है घर मेरा, जिस्मे था कभी संग तेरा
…… युई
पथरों के शहर
February 14, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
पथरों के शहर
बस्ती है यह पथरों की
शहर जिसे कहते लोग
बस्ती यह ऊँची मंजिलों की
जहां छोटे दिल के बस्ते लोग
बस्ती है यह मकानों की
यहां घर नहीं मिला करते
बस्ती यह उन महफलों की
जिनमें ठहाके नहीं लगा करते
यह सफेद खून की बस्ती है
रिश्तो के रंग नही मिला करते
यहां प्यार मोहब्बत पैसा है
ईमान नही मिला करते
यहां चमक हर शै की आला है
असल में सब काला है
यहां सूरत पे मत मिट जाना
सीरत सबकी मैली है
मोल चुका सकते हो तो
हर मुस्कान तुम्हारी है
इस बस्ती की फिज़ाओ में
वफा बिलकुल बेमानी है
भागम भाग में यह दुनीया
यूई किस चीज की जल्दी है ?
कहते है बसते जिंदा लोग यहां
मुझे दिखती ज़िन्दा लाशे है
….. यूई
स्वर्ण – चित्
February 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
स्वर्ण – चित्
एक तरंग , एक सुर , एक ल्य
है अब , सोच वचन और कर्म में मेरे
एक ल्य , एक सुर , एक तरंग
है अब , कर्म वचन और सोच में मेरे
इस तरंग सी ही है , वोह तरंग
इन सुरों से है मिलते , वोह सुर
इस ल्य से है जुड़ी , वोह ल्य
है जो बाहर का गीत, वोही अन्दर का संगीत ,
है जो बाहर का संगीत, वोही अन्दर का गीत
रोशन हुआ अंतर्मन जो तुझमें, मंज़िलें अपनी ख़ुद की छूटी ,
ल्य–म्य हो यूई रमा यूँ तुझमें, भव्सागर की चाह भी छूटी
…… यूई
ਬਚਪਨ ਦੇ ਪੈਂਡੇ …..
February 13, 2016 in ਕਵਿਤਾ ਪੰਜਾਬ
ਬਚਪਨ ਦੇ ਪੈਂਡੇ …..
ਭੁਲਾਯਾ ਨੇਹਿਓ ਭੂਲਦੇ
ਓਹ ਮੇਰੇ ਬਚਪਨ ਦੇ ਪੈਂਡੇ
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੇ ਚਲ ਕੇ ਕਦੀ ਪੈਰ ਨੇਹਿਓ ਸੀ ਥਕਦੇ
ਜੇਹੜੇ ਲੰਬੇ ਹੋ ਕੇ ਵੀ ਛੋਟੇ ਸਨ ਜਪਦੇ
ਭੁਲਾਯਾ ਨੇਹਿਓ ਭੂਲਦੇ
ਓਹ ਮੇਰੇ ਬਚਪਨ ਦੇ ਪੈਂਡੇ
ਪਕੀਆ ਤਸਵੀਰਾ ਬਣ
ਰੂਹ ਚ ਬਸ ਗਏ ਹਨ
ਓਹ ਮੇਰੇ ਬਚਪਨ ਦੇ ਪੈਂਡੇ
ਮੇਰੀ ਦਾਦੀ
ਜੇਨੂ ਸਬ ਪਿਆਰ ਨਾਲ ਮਾਤਾ ਜੀ ਸਨ ਕੇਹੰਦੇ
ਘਰ ਦੇ ਹੀ ਨੇਹਿਯੋ ਸਾਰੇ ਪਿੰਡ ਵਾਲੇ ਭੀ ਸਨ ਕੇਹੰਦੇ
ਮਾਤਾ ਜੀ ਦਾ ਮੇਰੀ ਉੰਗਲੀ ਫੜ ਕੇ ਸਕੂਲ ਲਜਾਨਾ
ਜਾਂਦੇ ਜਾਂਦੇ ਦੂਨੀ ਤਿਕਿ ਦੇ ਪਹਾੜੇ ਰਟਾਨਾ
ਵਾਪਸ ਆਦੇ ਓੂੜਾ ਐੜਾ ਸਿਖਾਨਾ
ਜਦੋਂ ਥਕ ਜਾਨਾ
ਤੇ ਕਿਕਰ ਛਾਵੇਂ ਥੋੜਾ ਸਾਹ ਭਰ ਲੈਣਾ
ਦਾਦੀ ਦਾ ਰਸਤੇ ਚ ਕਹਾਨੀਆ ਸੁਨਾਨਾ
ਮੇਰਾ ਭੁਤਾ ਦੀਆਂ ਕਹਾਨੀਆ ਸੁਨ ਕੇ ਸਹਮ ਜੇਹਾ ਜਾਣਾ
ਦਾਦੀ ਦਾ ਆੜ ਕੇ ਇਕ ਕੰਡੇ
ਤੇ ਮੈਨੂੰ ਦੂਜੇ ਕੰਡੇ ਚਲਾਨਾ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਕਚਿਆ ਆੜਾ ਦੇ ਕੰਡਿਆ ਤੇ ਝੂਮਦੇ ਜਾਣਾ
ਪੈਂਡੇ ਮੁਕਨੇ ਪਰ ਦਾਦੀ ਦੇ ਪਾਠ ਨਾ ਮੁਕਨੇ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਆੜਾ ਚ ਵਗਦਾ ਠੰਡਾ ਪਾਣੀ
ਬਲਦਾ ਦੇ ਪਸੀਨੇ ਨਲ ਕਢਿਆ ਖੂਹ ਦਾ ਪਾਣੀ
ਆੜ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਬੁਕ ਭਰ ਕੇ ਪੀਣਾ
ਅਧਾ ਥਲੇ ਤੇ ਅਧਾ ਮੂਹ ਵਿਚ ਜਾਣਾ
ਕਦੀ ਕਦੀ ਉਲਟੇ ਹੋ ਕੇ ਮੂਹ ਹੀ ਆੜ ਚ ਪਾਨਾ
ਤੇ ਪਾਣੀ ਨਲ ਤਾਰ ਬਤਰ ਹੋ ਜਾਣਾ
ਤਪਦੀ ਲੂ ਵਿਚ ਰੂਹ ਨੂੰ ਠੰਡ ਪਾਨਾ
ਖੇਤੋ ਗਰਮ ਟਮਾਟਰ ਤੋੜ ਆੜ ਚ ਧੋਨਾ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਓਦਾ ਈ ਕਚੇ ਖਾ ਜਾਣਾ
ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਪੈਂਡਿਆ ਤੋ ਜਾਣਾ
ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋ ਹੀ ਵਾਪਸ ਆਨਾ
ਬਸ ਨਚਦੇ ਟਪਦੇ ਘਰ ਪੋਹੰਚ ਜਾਣਾ
ਓਹ ਮੇਰੇ ਬਚਪਨ ਦੇ ਪੈਂਡੇ
ਲੰਬੇ ਪਰ ਛੋਟੇ
ਕਚੇ ਪਰ ਪੱਕੇ
ਯੂਈ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਪੱਕੀ ਬਨਾ ਗਏ
ਓਹ ਮੇਰੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਕਚੇ ਪੈਂਡੇ
………….. ਯੂਈ
घर और खँडहर
February 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
घर और खँडहर
ईटों और रिश्तों
मैँ गुंध कर
मकान पथरों का
हो जाता घर
ज्यों बालू , सीमेंट और पानी
जोड़ें ईट से ईट
त्यों भरोसा, जज़्बात और प्यार
जोड़ें रिश्तों में मीत
चूल्हे में भखती ईटें
माँ की याद दिलाती है
जो ख़ुद के तन पे आग जला
सबकी भूख मिटाती है
नींव में दफन ईटें
दादा-दादी की याद दिलाती है
ख़ुद पे सारा बोझ लदा
घर की मंजिलों को बनाती हैं
छत में लगी यह ईटें
बाप की याद दिलाती हैं
ख़ुद पे सारी गर्मी खा
घर को ठंडा रखती हैं
दीवारों में चिनी यह ईटें
भाभी की याद दिलाती हैं
जो नींव को छत से जोड़
घर की इज़्ज़त बचाती है
आँगन में बिछी यह ईटें
भाई-बहनो की याद दिलाती हैं
कदमों के थपेड़ों को सह्ती
गिरने पे चोट नहीँ लगाती है
खिड़कियों को सम्भालती यह ईटें
गुरूओं की याद दिलाती हैं
रोशनी की किरणें अन्दर ला
अंधेरों को दूर् भगाती हैं
सीड़ीयों में लगी यह ईटें
यारों की याद दिलाती हैं
एक एक कदम साथ निभाते
ऊँचाइयों पे ले जाते हैं
खँडहर बने हर घर को देख्
यूई को खयाल यहि आता है
यहाँ रिशते चरमराए होंगे
याँ भरोसे डगमगाए होंगे
नींव बोझ सह ना पाई होगी
याँ गर्मी में छत पिघलायी होगी
दीवारें कमजोर बन आयी होंगी
याँ खिड़कियाँ बंद रह गई होंगी
कुछ ईटों कुछ रिश्तों
के चरमराते ही
हर बसा बसाया घर
खँडहर हो जाता है
………. यूई
तेरा मेरा रिश्ता
February 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
तेरा मेरा रिश्ता
यूई की आंखों से
बहते आँसुओं को
रूह की नजर से देख
यह आँखें मेरी हैं
पर आँसू तेरे हैं
इन आंसुओं में जो बहता है
वोह पानी मेरा है
पर धारा तेरी है
यह धारा जिस दिल से निकली
वोह दिल मेरा है
पर उसकी धड़कन तेरी है
यह धड़कन
जिस जिस्म में धड़कती
वोह जिस्म मेरा है
पर उसकी रूह तेरी है
यह रूह जिस खुदा से निकली
वोह खुदा मेरा है
और वोही खुदा तो तेरा है
यही रिश्ता है
तेरा मेरा
जो तेरा है वोह मेरा है
जो मेरा है वोह तेरा है
…… यूई
दर्द-ए-गम
February 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
दर्द-ए-गम
इस दर्द-ए-गम का, अपना ही मंज़र है,
रात तो आती है, पर नींद नहीं आती
शून्य का एहसास है, पर समझ नहीं आती
जिंदगी तो चलती है, पर जान नहीं होती
एक घुटन सी होती है, पर नज़र नहीं आती
दिल पल-पल रोता है, पर आँख नहीं बह्ती
रूह तक तड़प जाती है, पर आहट नहीं होती
इस दर्द-ए-गम की, कोई दवा नहीं होती
इस नामुराद बीमारी में, दुआ भी काम नहीं आती
यूई को अब हर पल,
मौत का इंतज़ार रह्ता है,
कम्बख़्त वोह भी नहीं आती
…… यूई
आज नहीं तो कल
February 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज नहीं तो कल
तैरे नाम की बंदगी मैँ , झुका हुआ मेरा सर
तैरे इशक की इबादत में, बंधे हुए मेरे हाथ
तेरे नूरानी नूर मैँ, रौशन रह्ता मेरा मन
तेरी ख़ुशियों मैँ, नाच्ता गाता मेरा दिल
औरन के दर्द मैँ , बड़ते मेरे कदम
तेरे मन की चाहतों मैँ, रम चुके मेरे कर्म
आज नहीं तो कल,
मेरी दुआओं का, असर हो ही जाएगा
आज नहीं तो कल,
मेरी बन्दगी, तुझे भा ही जाएगी
आज नहीं तो कल,
यूई का अंदाज़-ए-इश्क, तुझे पा ही जाएगा
आज नहीं तो कल,
तेरा मन मुझमें, रम ही जाएगा
आज नहीं तो कल,
मैं तुझमें और तू मुझमें, मिल ही जाएँगे
..…. यूई
काली छाया
February 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
काली छाया
ख़ुद को पाने की राह में, ध्यान लगा जो ख़ुद में खोया,
अन्तर मन में उतरा मैं जब, अंधकार में ख़ुद को पाया ,
अन्दर काली छाया देख के, ख़ुद को गर्त में डूबा पाया ,
खुद को राख का ढेर सा पाकर, मन मेरा अति गभराया .
पूछा छाया से मैंने गभरा कर
बाहर की छाया तो तन सह्लाए, क्यों तू मुझको जला सी जाएँ ?
बोली छाया
अंधकार में ख़ुद तूने जीवन बिताया ,अज्ञानता में में सब ज्ञान गवाया,
अन्तर तेरे प्रकाश का अभाव हो पाया, तब मुझको तू जन्म दे पाया .
क्या पाएगा मुझसे लड़ कर , लड़ के कोई मुझसे जीत ना पाया ,
मैंने अस्तितिव्हीन चित् है पाया, ना मुझको आग जलाए, ना शस्र कटवाए,
आत्म ज्ञान का प्रकाश जो जगाए , तो ही मुझसे तूं मुक्त हो पाए .
जान के छाया की माया, यूई इस से संघरश्रथ हो पाया,
बोध ध्यान में यह पाया, सीधे सी इक राह चुन पाया .
गहरा जितना ख़ुद में जाऊँ, उतना ही इसे दूर कर पाऊँ,
रोशन अपना अन्तर कर पाऊँ, फिर ही इसको दूर भगाऊँ .
मेरे ध्यान के बड़ते चित् में , अन्धेरे दूर भाग रहे हैं
सुबेह की किरणें चहक रही हैं, रात के साए सिमट रहे है .
उसके मेरे बीच में अब , बस पौह फटने की दूरी है
अपने निर्मल मन को लेकर, उसमें सिमटने की तैयारी है .
…… यूई
शीश महल
February 10, 2016 in शेर-ओ-शायरी
जब से तुझको पाया है ,
जिव देखो तुझ्सा लगता है ,
दुनियाँ मानो शीश महल ,
हर चेहरा ख़ुद का लगता है I
…… यूई
रिश्तों की मौत
February 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
रिश्तों की मौत
रिश्तों के मरने का
है अपना ही अंदाज़
तासीर मरे रिश्तों की
है लम्बी बीमारी सी
पल पल मारती
पर मरने नही देती
मरा हुआ रिश्ता
मरा हुआ इनसान
जान दोनों में नही होती
फर्क सिर्फ़ इतना
मरे हुए इनसान को
विधि से मिट्टी में दफना देते
और मरे रिश्तों के बोझ में
हम ख़ुद को
ज़िन्दगी भर दफना देते
अब यूई
मज़्हबो की किताबों में
मरे रिश्तों को दफनाने का
कोई सलीका ढूँढता
ख़ुद को कब्र से
बाहर रखने का तरीका ढूँढता
…… यूई
चौराहा
February 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
चौराहा
बीच चार राहों के , वोह मुकाम ,
रुक कर जहां, एक राह चुनता इंसान .
ऐसे कितने चौराहों से, गुजरती जिंदगी़ ,
चुनते हुए राहें, लिखती दास्ता अपनी .
कितने चौराहों पे, ख़ुद छोड़ दी जो राहें ,
उन राहों संग, छूट गई कुछ निगाहें .
वो राहें और निगाहें, वापस नही मिलतीं ,
गुज़रा हुआ ज़माना, सच में गुज़र गया .
जिंदगी का सफ़र, शतरंज सा मुखर ,
चाल चली जो ख़ुद ही, वापस नही मिलतीं .
हर नए चौराहे पर, चुननी है अपनी राहें ,
जब तक खेल-ए-ज़िन्दगी में, शै-ओ-मात नही मिलती .
कुछ और चौराहों से, गुजरना है बाकी ,
कुछ और राहों को, अपनाना है बाकी ,
कुछ और निगाहों को, खोना है बाकी ,
यूई मात से पहले, ख़ुद को पाना है बाकी.
…… यूई
दिल-ए-ज़िगर ……
February 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
दिल-ए-ज़िगर ……
मेरी गुस्ताखिॅया अंदाज़–ए–इश्क थी मेरी
मेरी शोखियाँ दीदारे–ए–खुदा थी तेरी
मेरी वही दिल-ए-ज़िगर की शोखी पे
क्यों आज बिखर गये सब जज़्बात
कहीं ऐसा तो नहीं,
तू आज इंतज़ार में था
अपने दिल-ए-कायर की बेवफ़ाई को
झूठी नाराज़गी का जामा पहनाने को
शिकायत नहीं यारा के दिल तोड़ा
शिकायत सिर्फ़ इतनी सी ए-बेरहम
मेरा ग़रूर-ए-दिल तोड़ना ही था
तो सर उठा सच तो बोल जाता
प्यार निभाने का सलीका तो
तुझसे कभी हो पाया नही
दिल तोड़ने का सलीका भी
तुमसे बन पाया नही
ए बेवफा अच्छा ही हुआ
जो तू हमसे रुठ गया
यूई ने भी कभी कोई
कच्चा रिश्ता निभाया नहीं
…… यूई
तेरी बँदगी ने
February 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
तेरी बँदगी ने
ज़िन्दगी का फलसफा रोशन कर ,
जीने का रास्ता आसान कर दिया
हर शय में दिखा ख़ुद को ,
यूई का ख़ुद से खुदाई का सफर ,
इक पल में तमाम कर दिया
…… यूई
कुछ कमाल हो जाए
February 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ए मालिक क्यों ना कुछ कमाल हो जाए ,
ऐसा अपनी दुनिया में ध्माल हो जाए ,
हर शैतान इंसानीयत का कायल हो जाए
द्वैत की उलझन सलट, सब अद्वैत हो जाए ,
यह दुआ जो यूई की कबूल हो जाए ,
तो हर नर तुझ्सा नारायण हो जाए
…… यूई
ख़ता दर ख़ता
February 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी
सोच कर यह ,
ख़ता दर ख़ता किए जा रहे हम ,
प्यार में तो वोह मिलने से गए ,
सजा देने ही शायद आ जाएँ लौट कर
…… यूई
तेरी यादों के कागज को
February 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी
तेरी यादों के कागज को ,
छुपा रखा है ,
अपनी पलकों से थोड़ा पीछे ,
कहीँ सालों से बह्ते आँसू ,
इनको गीला कर ,
धुँधला ना कर दे I
…… यूई
गम-ए-इशक
February 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी
गम–ए–इशक में डूब कोई
मरीज–ए–मोहब्बत ना बच पाया
रफ्ता रफ्ता सरकती मौत देखी
यूई ना मर पाया ना जी पाया
…… यूई
माँ-बाप की लाडो
January 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
माँ–बाप की लाडो
ज्यौं जोगि छोड़े दुनिया को
त्यों अपनी दुनिया छोड़ आई हूँ
मैं तेरी जोगन हो आई हूँ
अपना व्याह रचा आई हूँ
बाबुल का आँगन सूना कर
तेरा स्वारन चल आई हूँ
वीरो की बाँहे छोड़
जीवन तेरे लड लगा आई हूँ
मै माँ–बाप की लाडो
तेरी परछाई बन चल आई हूँ
अपनी मंज़िलों को भूल
तेरी राहों को अपना आई हूँ
हाथो की मेहँदी में
तेरे इश्क का रंग चडा आई हूँ
इन सभी लकीरो में
एक तेरा ही नाम सजा आयी हूँ
अपने सच पर मुझे भरोसा हे
सांसो का साथ निभा जाना
सात जन्मो का कह्ते साथ होता
मैंने आठवां भी क्मा जाना
तेरे भरोसे सब छोड़ा यारा
तू रब बन दिखा सजना
जो सपने उतारे आंखों में
उन्हे पूरे कर दिखा सजना
सारी ज़िन्दगी तेते लुटा सजना
एह जीवन पार लगा जाना
दिल का प्यार लुटा सजना
तेरे मन का प्यार मैं पा जाना
यूई ए निकी जेहि
बाबुल की लाडो ने
तेरी साथन बन
तेरी ज़िन्दगी नू स्वर्ग बना जाना
…… यूई
मुलाकात
January 31, 2016 in शेर-ओ-शायरी
नींद की चाहत तो नही होती ,
बस इक आस सी रहती है ,
कम्बख्त आ जाए तो शायद ,
ख्वाब में ही मुलाकात हो जाए
…… यूई
कसम ख़ुदा की
January 31, 2016 in शेर-ओ-शायरी
गर जमाने ने किया होता ,
कसम ख़ुदा की, सब कर गुजरते हम I
अफसोस यह खंजर उन हाथों ने मारा
जिनको ता–उमर दुआओं में चूमते रहे हम I
…… यूई
तेरी एक आवाज़ ने
January 31, 2016 in शेर-ओ-शायरी
बवंडर तन्हाई और दर्द के भी
ना गिरा सके एक अश्क जिनमें
बरसों बाद तेरी एक आवाज़ ने
क्यों छलका दिए पैमाने उनमें
….. यूई
तेरा मिलना
January 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
अब मेरी दुआओं का असर, जम गया है I
अब मेरे लिए, वक्त थम गया है I
अब तुमसे मिलने का, कोई तय वक्त नहीँ I
तेरी बन्दगी करने का, कोई तय सलीका नहीँ I
मैं तुझमें कुछ, यूँ रूम गया हूँ
मैं तूँ , और तूँ , मैं हो गया हूँ I
जब-जब ख़ुद से मिलना हो जाता है,
तब-तब तुमसे मिलना हो जाता है I
वक्त कैसा भी हो, यूई का जीना हो जाता है I
…… यूई
ख़ुदा बंदे से
January 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
यह ज़िंदगी दी है तुझे, कुछ कर आने के लिए
मेरी इस दुनीया को, कुछ और सजाने के लिए
यह ज़िंदगी दी है तुझे, जीने के लिए
मेरी बनायी हर शय से, प्यार निभाने के लिये
मेरे मन की रज़ा को समझ, वोह सब कम कर आना
अपनी कर्मो से, प्यार पर दुनीया का विश्वास बड़ा आना
बेश्कीम्ती चीज़ है यह ज़िन्दगी, इसे यूँ ही ना गँवा आना
मुझे चाहे भूला देना, पर किसी का दिल ना दुखा आना
मैंने अपनी रूह फूँकी है तुझमें, इसे दागदार ना बना आना
रंगीनीयों में डूब कर, अपना ईमान ना गिरा आना
आना तो तुझे लौट कर मेरे पास है बंदे,
सर झुका कर कहीँ ना लौट आना,
नही पसन्द मुझे झुके हुए ईमान बंदे,
मुझसे नज़र मिला सकें वोह आँख वापस ले आना
ए यूई
ऐसे लौट कर आना मेरे पास
ख़ुद मुझ को भी अपने खुदा होने पर
इक नाज़ सा करा जाना …… यूई
कहने को तो बस
July 5, 2015 in शेर-ओ-शायरी
कहने को तो बस
मेरे दिल ने , तेरे दिल पे
कुछ भरोसे ही तो किए थे
शिकायत भी किस कचहरी करूँ
तेरे आस्मानी वादों की रसीदी टिकट पे
अरमानो के लहू से दस्तखत जो नही किए थे
…… यूई विजय शर्मा
कर्मयोगी
June 30, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
कर्मयोगी
अपने कामुक सुखों को कर दमन ,
अपने गुस्से को दया मेँ कर बदल ,
अपने लालच को दान की राह कर चलन ,
अपने स्वधर्म को अंतर्मन से कर मनन ,
अपने कार्यों को भक्ति भाव से कर भरन ,
ले विजय अब कर्म योग मेँ तूं जन्म I
अब उसकी राह पकड़ , निश्काम कर्म की राह तूँ जाएगा ,
हर कर्म कर उसे समर्पण , निष्फल अब तूँ रह पाएगा ,
अपना हर धर्म निभा , फल की चाह छोड़ तूँ पाएगा ,
अब निभा हर कर्म को भी , अकर्मी तूँ रह पाएगा ,
अब सब करके भी, मैं तुझको ना छू पाएगी I
कर्मों के बंधन को तोड़ , सब कर्मो को उससे जोड़ ,
ख़ुद मेँ उसका रुप जो पाएगा , फिर ख़ुद का कुछ ना भाएगा ,
उस चेतना को ख़ुद मेँ जगा, बस उसके ही कर्म निभायेगा ,
सब उसका खेल रचाया है , उसकी ही यह माया है ,
वोह निर्धारित कर्तव्यों को, ख़ुद तुझसे ही करवाएगा I
…… यूई विजय शर्मा
ए मालिक
June 28, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता
ए मालिक क्यों ना कुछ कमाल हो जाए ,
ऐसा अपनी दुनिया में ध्माल हो जाए ,
हर शैतान इंसानीयत का कायल हो जाए I
द्वैत की उलझन सलट, सब अद्वैत हो जाए ,
यह दुआ जो विजय की कबूल हो जाए ,
तो हर नर तुझ्सा नारायण हो जाए I
…… यूई विजय शर्मा