बिन आपके

March 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी

Bin Aapke

नंगी रूह

March 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Nangee Rooh

सचा मन मीत

March 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी

Manmeet Kehlaye

चुका देंगे

March 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी

Untitled

ज़िन्दगी ना थी

March 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Zindagee naa thee kuch hmaaree

इश्क – ख़ुदाई

March 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Ishq Khudayee

तूँ ना मेरा खुदा

March 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Too-Na-Mera-Khuda-1

Too-Na-Mera-Khuda-2

कल – आज – कल

March 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Kal Aaj Kal

स्वधर्म

March 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Swadharam

जो हूँ मैं – जो नहीं मैं

March 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Main Hoon Bhee

तेरे दिल से कोसों दूर् हम

March 2, 2016 in शेर-ओ-शायरी

Koso Door Hum

खुदाया इश्क़

March 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Khudaya Ishq

गुमनाम हम

March 1, 2016 in शेर-ओ-शायरी

Gumnaam Hum

प्यार का दीप जला डालो

March 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

Pyaar Kaa Deep Jlaa Daalo

तेरी कश्ती मेरी कश्ती

February 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी कश्ती मेरी कश्ती

 

बस इतनी सी तो रवानी है

हर ज़िन्दगी की कहानी है

सब कागज की कश्ती है

और ख़ुद को पार लगानी है

 

दिखती सब अलग सी हैं

असल में सब रब सी है

एक सी ही तो रवानी है

छोटी सी यह ज़िंदगानी है

 

एक सी सब बहतीं है

थपेड़े सब तो सहती हैं

अपनी अपनी बारी है

जाने की सब तैयारी है

 

सबकी अपनी चाले हैं

कौन किसी की माने है

किसके हिस्से कितना पानी

कोई ना यह कभी जाने है

 

है तो कश्ती को मालूम

किनारों पे ना ज़िंदगानी है

बीच गहराईयों में डूबना

उसके मन की परवानी है

 

नीचे छत के बस जाना

कश्ती ने ना जाना है

लड़ते हुए इन लहरों से

यूँ ही तो मिट जाना है

 

तेरी कश्ती मेरी कश्ती

यूई क्यों कर उलझे हो

नाचो कूदो हंस खेल लो

जितने भी पल मौजें हों

                                    ……. यूई

वैराग-चित्‌ संपदा

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वैराग-चित्‌ संपदा

 

कर पाए जब तूं दिल से

प्रति सुख और दुख के, एक समान उपेक्षा 

कर पाए जब अंतर मन से

विभिन भ्रांतियों पर, चिरकाल विजय 

कर पाए जब यह अनुभूति

ना इधर कोई राग, ना उधर कोई राग 

कर पाए जब अपने अन्दर

हो कर उसकी लौ में रोशन, मातृ सत्य का दर्शन

कर पाए निर्लेप-निर्मल चित्‌

जिसमे तूं नही, मैं नही, कोई विचलन नही 

जान ले,

पैदा कर पाया अब ख़ुद में

उसकी मन-भाती,

संपदा वोह वैराग की

यूई तेरे इस वैराग-चित्‌ को

देगा ख़ुद आकर वोह,

इक दिन अपनी स्वीकृति

                                                      …… यूई

गुरु – महिमा

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुरु – महिमा

 

यह रचना है ,

गुरु-देव की महिमा का गुनगान ,

वो ख़ुद के चित्‌ में है अन्तहीन ,

जिनकी परिभाषा है असीम ,

ऋषि की विशिष्टताओं का पैग़ाम 

जो देकर हमको शिक्षा ,

हमारा ज्ञान ही ना बड़ाए ,हमें ही बड़ा जाए 

पड़ा कर पाठ हमको,

जानकारी ही ना दे जाए ,अ‍सलीयत उनकी सिखा जाए 

सिखा शब्दों के मायने

मत्लब् ही ना समझा जाए ,उन मायनो से हमे बना जाए 

दिखा ज़िन्दगी की राहे ,

पथ-परिदर्शत ही ना कर जाए, जीवन रोशनी से भर जाए I

किताबी अर्थो को बता ,

सिर्फ़ विचार ही ना दे जाये, उन विचारों से हमे बदल जाये 

लूटा अपने ज्ञान का सागर ,

हमारा रुतबा ही ना बड़ा जाये, हमे सच की राह् में चला जाए 

दिखा धर्म की साँची रहें ,

यूई इस जन्म को ही नहीं, जन्मों की राह् मुखर कर जाए 

                                                                            …… यूई 

उठाना …. धीरे से

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

धीरे से उठाना 

 

सदियों से गह्न निद्रा में , है सोया यह समाज़ ,

धीरे से उठाना 

युगों का अंधकार समेटे , है सोया यह समाज़ ,

धीरे से उठाना 

 

इसको सुबह की नहीं कोई ख़बर ,

युगों से सोया है यह बेखबर  

भिन्नता में दबा इसका चित्‌  ,

समानता नहीं इसके मित 

 

सुलाया इसे इतिहास के थपेड़ों ने ,

कभी शासन की शमशीरों ने ,

कभी धर्मों की जंजीरों ने ,

तो कभी समाज के लुटेरों ने 

 

पीड़ी दर पीड़ी इसे मार पड़ी ,

युगों-युग इसकी कब्र गड़ी 

चाह के भी उठ ना पाएगा ,

जग कर भी जग ना पाएगा 

                     

सोना इसका मुकद्दर है ,

यही मुझे अब बदलना है 

यूई इस डगर मत गभराना ,

बस , इसे धीरे से उठाना 

 

तुझे राह दिखाने आया हूँ ,

राह दिखा कर जाऊँगा 

तुझे जगाने आया हूँ ,

जगा कर ही अब जाऊँगा 

 

कष्ट जगने में इसको तनिक होगा ,

खफा मुझ पे यह अधिक होगा 

युगों-युग जिसने भी इसे जगाया है ,

इसने उसे ही मौत का जाम पिलाया है 

 

दिखा इसको रोशनी का संसार ,

कर दे इसकी रातों को बेकरार 

जब होगा इसको सुबह का इंतज़ार ,

तब होगा उठने को यह ख़ुद बेकरार 

                                          …… यूई 

ज़िंन्दगी एक दिन की

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िंन्दगी एक दिन की

 

मेरा हर सुबह मौत के गर्भ से

ख़ुद को जन्म देना

हर रात ढले अपने ही कंधों पे

ख़ुद को मरघट ले जाना

उस मंदिर के आँगन में,

ख़ुद को खुद की ही आग में जला देना

 

मेरे से बेहतर इस जीवन को

ना कोई ज़ीया , ना जीयेगा

इस जीवन मेँ , ना जन्म की ख़ुशी

इस मौत मेँ , ना मरने का ड़र

ना रोज़ मरते-गिरते रिश्तों के बोझ

ना झूठे-खोख्ले वायदों की दुनीया

बस मौत मेरी मेहबूबा

और मैँ उसका हम-दम

 

ईधर दिन भऱ मेरे मन में

एक बेकरारी सी रहती है

अपनी शाम के इंतज़ार मेँ

उधर मरघट में मेरी मेहबूबा

ईत्मिनान  से रहती है

उसको मालूम है

यूई  अभी आयेगा

खुद को जला

मेरी आग़ोश में बस जायेगा

 

सबको मालूम है

यह बसती ही अस्ली बसती है

यहा बसने वाले

कभी उजड़ा नही करते

                               …… यूई 

अर्जुन की राह

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अर्जुन की राह 

 

मन मेरा शंकित हो कहता ,

अर्जुन मैं भी हो जाता , गर सारथी मेरा कृष्ण हो पाता ,

जीवन मेरा भी तर जाता , गर कृष्ण को मैं ढूंढ़ पता 

 

चित्‌ मेरा निस्संदेह कहता ,  

घोड़़ों की लगाम कृष्ण को थमाना , तो एक बहाना था ,

असल में अर्जुन को , ख़ुद के मन को उसे थमाना था ,

पा कृष्ण के मन का साथ,अर्जुन चला विजय की राह ,

मन मेरे भी कृष्ण की चाह, यूई चला अर्जुन की राह 

 

कहे कृष्ण मंद-मंद मुसकरा के, मन तेरा जब अर्जुन सा भटके ,

अंतर्मन से मुझे ध्याना , हर चाह तेरी मेरे मन सी होगी

स्दीवी तो मैं तुझमें बसता, तूने ख़ुद को बाहर भटकाया

तूने मेरी राह् है पकड़ी, अब तुझे कोई मोह ना जकड़े

ख़ुद को मेरे रंग में रंग कर, देख नाच उठा अंग अंग तेरा 

 

हर संशय संदेह त्याग कर, मैंनें उसकी राह पकड़ ली,

सन्देह रहित चित्‌ मेरे ने, उसको पाने की जिद ठान ली ,

अज्ञात में ख़ुद को डुबो, निकल गया मैं राह अनजानी ,

अंतर्ध्यान हो उसको धियाया, उतारा चित्‌ ध्यान में पूरा ,

उस पूरे में पाया प्रभु पूरा ,तब रोम रोम हुआ कृष्ण में नूरा 

                                                                         …… यूई

मृत्यु – एक पड़ाव

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मृत्यु – एक पड़ाव

 

अंधकार नही ,

जीवन का द्वार है मृत्यु 

भय नही ,

उससे मिलने की राह है मृत्यु 

 

होता तात्पर्य मृत्यु का मिटना ,

पर मिटता यहां कुछ भी नहीं ,

फिर कैसी मृत्यु और कैसा अंत ,

यथार्थ में मृत्यु कभी होती ही नहीं 

 

मृत्यु है ही नही मृत्यु ,

है तो सिर्फ़ मानव के अज्ञान में ,

मृत्यु नाम है बस एक पड़ाव का ,

रुक कर जहां, हो जाता मिलना उससे 

 

यूई गर उसे पाने का नाम है मृत्यु ,

तो जीते जी क्यों ना वोह राह् चलूँ ,

जीवन भर मृत्यु को निर्भय सिमर कर,

जीवन की हर साँस उसमें जी सकूँ 

                                                 …..….. यूई 

धर्म-पथ

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख़ुद को कर्मपथ पे जिवा, धर्मपथ भी निभाना है

धर्मपथ पर चलते हुए, भूलों को राह दिखानी है

अपने तन की पीर भुला, औरन की पीर घटानी है

जिनके अपने भूल चुके, अपना उन्हेँ बनाना है

हार चुके मनों को , जीत की राह दिखानी है

 

नाम, वैभव, वित की चाह भुला, परार्थ की राह अपनानी है

लोग जो तम में बस्ते है, दिल में उनके दीपक की लो जलानी है

नाउम्मीदी से भरे दिलों को, उम्मीद की किरणों से सजाना है

जिन्हें लोग तुछ मान चुके, सम्मान उनका लौटाना है

सबके दिलो में सम्मानता ला, भिन्नता को दफनाना है

 

यह जो मेरा जीवन है , यह कर्मधर्म का जीवन है

यूई कर्मधर्म की राहों को, अब सहर्ष निभाना है

तनमन से अपना इस राह को,

मानवधर्म को नयी ऊँचाई दिलाना है

                                                   …….. यूई

कर्म-पथ

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर्मपथ 

कर्मपथ पर चलना है, कोई दुरमति राह अपनानी नहीं

मिलेगी उलझी डगर यहां, इसमें कभी घभ्ह्रना नहीं

बड़ते हुए कठिन राहो पर, भूले से कभी उक्ताना नहीं

मंज़िल अपनी पाए बिना, मन से कभी सुस्ताना नहीं

लडते हुए घोरघटाऔ से, सर को कभी झुकाना नहीं

जीवन आगे बढ़ने का नाम सही, इस पल को कभी गँवाना नहीं

हो जाये घायल यह देह तो भी, इरादो को कभी डग्म्गाना नहीं

 

कर्मपथ पर चलते हुए, मुझे अपनी राह बनानी है

थकना मेरी नियती नहीं, आगे बढ़ना मेरी कहानी है

मुकाबला नहीं दूसरों से, ख़ुद को ख़ुद से आज़्माना है

नई मंज़िलों की चाह जगाते हुए, आगे बढ़ते ही जाना है

चाहे कोई साथ ना दे, ख़ुद पे भरोसा जताना है

लाखो आएँ बाधाएँ मगर, हटा उनको मंज़िलों को पाना है 

जीवन की माटी को अपना लहू पिला, फूलों को इसमे खिलाना है

 

                                                                         …….. यूई

अधूरे ख्वाब

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अधूरे ख्वाब

 

थे ख्वाब जो चुन-बुन सजाए हमनें

पा मुझको तन्हा , बहुत तड़पाते हैं .

 

कारवाँ तेरी यादों का लंबा है ,

या मेरे ग़मों की रात गहरी है ,

दशकों बीते, ना क्योँ यह मिटते हैं .

 

रातों के गहन – प्रगाढ़ अंधेरों में ,

गहरी क़ब्र खोद रोज़ दफ्नाता हूँ ,

ना-मुराद लौट ज़िंदा वापस आते हैं ,

कह्ते हैं,अकेले मिटना गँवारा नहीँ ,

यूई, हैं चाहे हम अधूरे ख्वाब तेरे ,

साथ रसमें-ए-वफ़ा पूरी निभाएँगे ,

संग – संग तेरे ही कब्र में जाएँगे .

                               …… यूई

 

 

ए ज़िन्दगी ……

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ए ज़िन्दगी 

 

कैसे शिकायत करूँ तुझसे

खुदा की बंदगी पाई तुझसे

बस तुझमें सिमटा रह्ता हूँ

हर पल तेरे ही संग रहता हूँ

 

कभी टेडी मेडी लकीरों में

कभी रंग भर उन्ही लकीरों में

कभी अल्फाज़ बन तकरीरो में

कभी जज़्बात बन फकीरों में

 

बस तुझमें सिमटा रह्ता हूँ

हर पल तेरे ही संग रहता हूँ

कभी अकेले में, कभी मेले में

मैं तुझसे मिलता रहता हूँ

 

 

तेरा हर रंग आंखों में बसाया मैंने

उनको आँखों से दिल में उतारा मैंने

उन रंगो में अपना खून मिलाया मैंने

ऐसे ख़ुदी को तेरे रंग में रंगाया मैंने

 

तेरी खूबसूरती में ख़ुद को भिगोया मैंने

तेरी मस्तियों में कूद ख़ुद को तेराया मैंने

तेरी गहराईयों में उतर इश्क़ रचाया मैंने

अ‍पनी रूह को तेरे इश्क़ में नहलाया मैंने

 

तेरे पलों को ज़ज़्बातो से सँजोया मैंने

उन ज़ज़्बातो को दिल से पिरोया मैंने

तेरी आग में तप ख़ुद को बनाया मैंने

बना ख़ुद को तुझे माथे पे सजाया मैंने

 

बड़ी शिद्दत से यह इश्क रचाया मैंने

सूख दुःख में एक सा साथ निभाया मैंने

जब अपने मन को समुंदर बनाया मैंने

तब तेरी कहानी को मुकमल बनाया मैंने

 

यूई तो कभसे तुझमें सिमटा बैठा है

वो तन मन तेरे रंग में रंगा बैठा है

अब तुम भी युई में सिमटी रहती हो

हर पल उसके ही रंग में रँगती हो

 

                                   …… यूई

मुझे याद रहा, तुम भूल गए ……

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे याद रहा,  तुम भूल गए 

कहने को दो दिल चार आँखे हम,

थी एक रूह में बस्ती जान हमारी

कहने को दिया और बाती हम,

थी बस लौ ही पहचान हमारी

 

मदमस्त हवाओं के झोंकों से,

थे लहराते गाते जज़्बात हमारे,

उतार सजाया आस्मानो में,

थे सपने जो जनमें पलकों तले हमारे

 

कुछ यूँ खाईं थी क़समें हमने,

हर हाल में प्यार निभाएँगे

मिल पाए तो ज़िन्दा हैं,

ना मिल पाए तो यादों में निभाएँगे

 

हुए गर तन से ज़ुदा तो क्या,

ज़ुदा ना मन से कभी हो पाएँगे

गर साँसें छोड़ जाएँ साथ तो क्या,

जन्मो का साथ निभाएँगे

 

बरसों से हम उसी मोड़ पे अटके,

राह जहां से तुम बदल गए

मोहब्बत को नए मायने दे कर,

उन मायनों को ही तुम बदल गए

 

उठा फर्श से अर्श पे बिठा हमको,

अपना अर्श ही तुम बदल गए

वफाएँ लेती थी तुमसे सबक वफ़ा का,

अपना सबक ही तुम बदल गए

 

जब मुझको सब यह याद रहा,

कैसे तुम सब भूल गए

मर के भी यूई भूल ना पाया,

तुम जिंदा रह के भूल गए                                                                                                                                                                                     …… यूई

इशक है – 5

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इशक है

तेरा ग़ुरबत के वक्त को ,

मेरी रज़ा मान हाथ जोड़ जाना

इशक है

तेरा अपनी हर सफलता को ,

मेरी दुआ कह जाना

इशक है

इशक है – 4

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इशक है

तेरा मेरे हर रुप की ,

बन्दगी में झुक जाना

इशक है                                   

तेरा मुझे पाने के इंतज़ार में ,

नाचते गाते मस्त रहना

इशक है

इशक है – 3

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा बिना ख्वाहिश के ,

आजन्म मुझसे मिलते रहना

इशक है

तेरा मेरी जूठन को भी ,

चूम कर अपना जाना

इशक है

इशक है – 2

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा बंद आँखों कर ,

मेरे मन में उतर जाना

इशक है

तेरा मेरे नूर में खो ,

मंद मंद मुस्कराना

इशक है

अहिंसक होना – 4

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसक होना

 

है जीवंत जीवन का दर्पण यह,

प्रतिबद्धता है आजन्म की यह ,

है ख़ुद की ख़ुद से लड़ाई यह ,

कर यूई , संपूर्ण अहिंसक हो 

अहिंसक होना – 3

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसक होना

 

है नही कोई मुखौटा यह ,

आत्मा का है पह्नावा यह  ,

है नही कोई दिखावा यह ,

चित्‌ का है आभूषण यह  ,

अहिंसक होना – 2

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसक होना

 

अहिंसक विचारों का

दहन जब कर पाएगा ,

तब संपूर्ण अहिंसा की राह्

तूं चल पाएगा 

अहिंसक होना – 1

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसक होना

ना होना हिंसा का,

नहीं अहिंसा का लक्षण ,

तलवार फेंक देने से,

अहिंसक ना हो पाएगा

इशक है – 1

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा साल दर साल ,

हर सुबेह मुझसे मिलने आना

इशक है 

तेरा कुछ ना बोल के भी , सब कह जाना

इशक है

इश्क-ए-खुदाई

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्क-ए-खुदाई भी

कैसा सौदाई है

सौदाई है

सौदाई है

इश्क-ए-खुदाई भी

कैसा सौदाई है

                                  …… यूई

अहिंसक हो – 4

February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अहिंसक हो

मेरे चित्‌ ,

अहिंसक हो 

अनैतिक भाव ,

क्भी नहीं 

निर्जीव पे वार ,

क्भी नहीं 

अहिंसक हो – 3

February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अहिंसक हो

मेरे चित्‌ ,

अहिंसक हो 

जीव हत्या ,

क्भी नहीं 

वनस्पति अपमान ,

क्भी नहीं 

अहिंसक हो – 2

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसक हो

मेरे चित्‌ ,

अहिंसक हो 

दुर्वचन अपशब्द ,

क्भी नहीं 

ज्ञान निरादर,

क्भी नहीं 

अहिंसक हो – 1

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहिंसक हो

मेरे चित्‌ ,

अहिंसक हो 

शस्त्र उपयोग

क्भी नहीं 

छल कपट

क्भी नहीं 

 

                                            ….. यूई 

अच्छा है – 9

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो 

आए सब जहाँ से हम ,

वहीं तो लौट जाना हैं ,

जिसके हैं असल में हम ,

उसमें ही तो स्माना है

अच्छा है – 8

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो 

जिस धन का ना कोई मोल वहाँ,

उस धन को क्यों कर पाना हैं ,

वोह धन जो अनमोल वहाँ,

बस वोही धन यहाँ कमाना हैं

अच्छा है – 7

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो

परम् – सत्य हैं स्दीवी आगे ,

फिर तूने क्यों मूंदी हैं आँखें ,

तब पछताए क्या पाएगा,

अब संभला तो सब संभल जाएगा

अच्छा है – 6

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो

काले कर्म जितने किये यहाँ हैं,

अकेले देना हिसाब वहाँ हैं,  

खातिर जिनकी किये कुकर्म यहाँ,

उनमें होगा ना कोई संग वहाँ

अच्छा है – 5

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो 

समान जो दिखता तेरा मेरा ,

है यह सब  ना तेरा – ना मेरा ,

यह सब उस मालिक की माया,

उसकी रज़ा से इस देह संग पाया

अच्छा है – 4

February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो 

सच में तो हैं सब अकेले ,

फिर भी करते मेले मेले

अच्छा है – 3

February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो

नही है कोई यहाँ किसी का,

ना ही हो तुम भी किसी के 

अच्छा है – 2

February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो 

ना कोई आने की राह का साथी,

ना जाने की राह का कोई नाती 

अच्छा है ……

February 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छा है ,

जितना जल्दी जान लो

आते हैं यहाँ सब अकेले,

जाते भी हैं सब अकेले ,

 

इश्क-ए-खुदाई – 7

February 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

इश्कखुदाई

भी कैसा सौदाई है

तेरे अंतर्मन

अपनी जगह बनायी है

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