कुछ उम्मीदों के सिक्के…
कुछ उम्मीदों के सिक्के यूं ही खनकते रहते हैं हम आगे बढ़े, तुम आगे बढ़ो ये ही कहते रहते हैं पर क्या करें पैरों में…
कुछ उम्मीदों के सिक्के यूं ही खनकते रहते हैं हम आगे बढ़े, तुम आगे बढ़ो ये ही कहते रहते हैं पर क्या करें पैरों में…
चांद आया है जमीं पर आज मिलने को गले रमजान पूरे हो गए और ईद मिलने हम चले रोंकती राहें हमें है मिलने जा तू…
ना सोचा था हमने कभी भी ऐसे दिन में आएंगे घर में बैठकर तोडेंगे रोटी कमाने कहीं ना जाएंगे होंगे इतने आराम पसंद दरवाजे पर…
मोहब्बत का पैगाम लेकर आया है यह चांद अम्मी, अब्बू, खाला और आओ भाई जान बड़े तसव्वुर से गुजरे रोजे-रमजान ईद मुबारक हो सबको हिंदू…
मानवता निष्प्राण पड़ी है कब से देखो तड़प रही है कोई सहारा देने ना आया कितने लोगों की भीड़ लगी है कोई खींचता फोन से…
जाने कितनी रातें रो कर बता देती हूं तेरी याद में खुद को भी भुला देती हूं
कोरोना से सिमटते परिवारों की व्यथा:- कैसा जीवन हाय ! हमारा लगता ना कोई भी प्यारा मम्मी, पापा, दादी, बाबा भाई जो कल ही था…
असमंजस में जीवन गुजरा विपरीत दिशा जाती सांसें कोहराम मचा चहुँ ओर रोती बिलखती दिखती आंखें पीर उठे दिल में ‘प्रज्ञा चीख उठे पत्थर दिल…
मेरी मोहब्बत पर तुम सवाल उठाते रहे ऐसा तुम यार बार-बार करते रहे
तुम आओगे मुझे मिलने खबर ये जब से सुन ली है अपने अरमानों की डोली हमने फिर से बुन ली है….
है नामुमकिन मिटा पाना मेरे दिल से मोहब्बत को तेरी नजरों की शोखी को होंठों के हस्ताक्षर को जो तन से लेकर मन तक छपे…
मेरी कलम और मेरी स्याही लिखते लिखते बोल रही ओ सखि ! तू किन ख्वाबों को पन्नों पर उकेरती रहती है ? रातों को जगकर…
तू किसी रेल-सी गुजरती है मैं पटरी-सा थरथराता हूँ दूर तुझसे नहीं रहता तेरा स्पर्श पाता हूँ जवाबों की सवालों की कहाँ बातें रहीं अब…
जो गज़लों में मोहब्बत हो तो कैसा हो ? तो कैसा हो ? जो आँखों में शरारत हो तो कैसा हो ? तो कैसा हो…
हमसे करो वफा कि अब वो वक्त आया है चांद की ओढ़नी ढक कर मेरा महबूब आया है है दिन बीत ना कुछ खाया रहा…
तुमने भी मोहब्बत की हमने भी मोहब्बत की फर्क बस फकत इतना था हम तो तुमसे करते थे तुमने किसी और से ही की…
हर पन्ने पर तुम मोहब्बत को लिखते हो किसी की मोहब्बत में खोए से लगते हो आज पढ़ी तुम्हारे दिल की डायरी उलटकर मोहब्बत की…
जो मनुज होते हैं धरातल पर ही रहते हैं जो दनुज होते हैं पवन में उड़ते रहते हैं रावण का अहंकार जब हद से बढ़ता…
मदर्स डे स्पेशल:- माँ तेरे आँचल में छुप जाने को जी चाहता है थक कर चूर हूँ मैं आज जिंदगी से तेरी गोद में सर…
जरा- सा वक्त लगेगा तुमको समझने में, जान पाने में पर जब तक दिलों के बीच दूरियां हैं तब तक नजदीक ना आना… जब तुम्हारी…
वो हमसे कहते हैं कुछ ढंग का लिखा करो प्रज्ञा, जिन्हें खुद कलम पकड़ना नहीं आता. आज वो हमको बेशर्म कह रहे हैं जिन्हें खुद…
रद्दी है सरकार बदल डालो तुम इसको सिस्टम है लंगड़ा पकड़ा लाठी दो उसको विकलांग हो गई सोंच सोंच को बदलो अपनी वोट की खातिर…
कोरोना का कहर है हर गली हर शहर है फिर भी लोकतंत्र का पर्व है सोशल डिस्टेंसिग किधर है ? वोट पड़ रहे हैं धड़ाधड़…
इस जीवन की कुछ कविताएं तुमको आज सुनाती हूँ बैठी-बैठी सोती हूँ और सोती-जगती रह जाती हूँ सहमी-सहमी हुई हवाएं मेरे इस जीवन पथ की…
कुछ कल्पनाएं कविता का रूप लेती हैं कुछ विस्मृत हो जाती हैं कुछ सपनों में मिलती हैं तो कुछ मद में बह जाती हैं लेकिन…
कुछ लिखने का मन ना करता शब्द न जाने छीने किसने बिखरी-बिखरी मेरी कल्पनाएं रूढ़ हुए जाते सपने प्यारी लगती अब तो तन्हाई मीठी मीठी…
पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) स्पेशल ——————————– इन दो हाथों के बीच में पृथ्वी निश्चित ही मुसकाती है पर यथार्थ में वसुंधरा यह सिसक-सिसक रह जाती…
यह जीवन है अजर-अमर तो क्यों द्वेष-भाव तुम रखते हो वाचन से तो अच्छे हो पर मन में विष क्यों रखते हो, मन में विष…
क्यों हो जाते ख्वाब हैं झूठे मिट जाते सब उजियारे चहुँ ओर फैल जाता है अंधियारा उजड़े-उजड़े गलियारे पुष्पों की सुगंध खो जाती निर्मल पावन…
मां की ममता दिखी धरा पर पिता का अविरल प्रेम मिला भाई का स्नेह मिला और
ख्वाबों में जो देखा उसको सच करने की बारी है धोखाधड़ी अब बहुत हुई सच्चाई की बारी है नेताओं के भाषण से अब ना हमको…
जीना हमने सीख लिया बरसों बाद… गिरे पड़े थे उठ कर बैठे सपने मेरे जग कर बैठे जगती आंखों देखे सपने उनको पूरा करना सीख…
सीखा तो हमने भी बहुत कुछ है तुम्हारी लेखनी से कैसे अविरल, निर्भीक चलती है शब्दों की सुंदर कारीगरी तो रहती ही है साथ में…
मुक्तक:- किसी दिल में उदासी है कहीं उदासी में ही दिल है तेरी आंखों का दरिया मेरे दिल के काबिल है यकीन करना बड़ा मुश्किल…
मोमबत्तियों-सा है जीवन अब तो पिघलना है प्रकाश फैलाना है काव्य लिखने का मन है अब तो तेल डाल दे कोई मेरे जीवनरूपी दीपक में,…
आज जब भूल बैठी थी सदियों बाद छत पर बैठी थी ठंडी-ठंडी हवाएं तन को छू रही थी तुम्हारी यादें मन को छू रही थीं…
चिठ्ठियों की वेदना कभी सुनी है तुमने? कितना सिसक-सिसककर रोती हैं एक पते को ढूढ़ने में जमाने लगते थे अब बात क्षण भर में पहुँचती…
अद्भुत है यह लेखनी भी स्वयं को ब्रह्मा बना देती है कभी करुण रस का पान करती है कभी प्रेम की सरिता बन जाती है…
यह देश ब्रह्मा-चरक- पतंजलि का है क्या?? तो बेटियों को पेट में ही क्यों मार देते हैं विज्ञान अभिशाप है या वरदान पेट में बेटा…
कहाँ गई वो दानवीर कर्ण की संतानें ??? ***************************** ____________________________ मत बाँधो मेरी नाव को तैरने दो इसे पीर के विशाल सागर में भर गया…
बेटियों का दर्द तो सब जानते हैं पर बेटों के दर्द को कहां किसी ने देखा है बेटियाँ चली जाती हैं घर छोड़ कर फिर…
वफा तो वही करेगा वफा करना जिसका काम हैं, अक्सर वफादार है बेवफाई करते हैं बेवफा तो यूं ही बदनाम हैं।।
कई साल गुजर गए पर आज भी महसूस होता है जब भी तू इन गलियों से गुजरता है तेरा आना जाना लगा रहता है दिल…
संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को है शत शत नमन जिन्होंने बढ़ाई देश की शान हम करते हैं उनका वंदन संविधान निर्माण किया और पालन…
गोरी-चिट्टी, काली चमड़ी को रगड़ रगड़ क्यों धोता है। यह सब कुछ है नश्वर है जग में कर्मों का लेखा-जोखा होता है। कौन है गोरा…
आया है नव वर्ष सभी को खूब बधाई हो गए हम तो कृतार्थ घर नवदुर्गा आई घर नवदुर्गा आईं , लेकर छोटा रूप धूप, दीप,…
हिंदू पंचांग के अनुसार आया नव वर्ष हमारा दुख बीते और सुख आये है यही संदेश हमारा है यही विनती हमारी मिट जाए सबके क्लेश…
नया वर्ष आया है मित्रों मनाओ इसको तन मन धन से मां दुर्गा का वंदन करके नतमस्तक कर दो सिर को चैत्र मास आरंभ हुआ…
इतना छोटा था उसे सेवा करके बड़ा किया था सोंचा और फले-फूले, चारों दिशाओं में फैले इसी नीयत से, उसे बड़े गमले में लगाया खूब…
किसी ने कहा लिखा करो किसी ने कहा पढ़ा करो यूं वक्त ना जाया करो कविता तो बाद में भी लिखी जा सकतीं हैं वक्त…
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