मंजिल की ओर कदम

रोज रोज बढ़ते रहे मंजिल की ओर कदम निस दिन किया प्रयास फिर कैसे गिनते दिन कैसे गिनते दिन जब परीक्षा सिर पर थी प्रण…

वंशीधर श्री कृष्ण

राजनीति की बात कर राजनीति के लोग राजनीति ही कर रहे राजनीति के लोग राजनीति के गुरु रहे वंशीधर श्री कृष्ण जिन्होंने से खिला दिया…

अद्भुत है संसार

अद्भुत दुनिया की रीत है अद्भुत है संसार अद्भुत रिश्ते नाते हैं अद्भुत नदी की धार अद्भुत सुंदर पुष्प है अद्भुत पर्वत श्रृंखला अद्भुत धरती…

“मातृत्व सुख”

मातृत्व सुख जीवन का सबसे अनमोल उपहार है जब नवजात शिशु अपनी नन्हीं- नन्ही उंगलियों से मां को स्पर्श करता है ऐसा आभास होता है…

मानव का क्षरण

हे ईश्वर! कृपा कर अपने बनाये इंसानो की रक्षा कर मत फैला ऐसी जानलेवा बीमारी जिससे होता जा रहा प्रकृति का हनन मानव का क्षरण…

जीवन का आधार

मेरी हर कविता तुम्हारे ऊपर निशाना नहीं होती कभी किसी तथ्य पर होती है कभी किसी प्रश्न पर होती है कभी होती है कल्पना कभी…

साहित्य साधना

तुमसे नफरत हम नहीं करते तुमसे ईर्ष्या भी नहीं करते तुम्हारे कारण ही तो लिख पाते हैं अंदर से प्रेरित हो पाते हैं साहित्य साधना…

आँखों के समंदर

मेरे दर्द से तुम कभी वाकिफ ना होना मैं अश्रु बहाऊँ तुम कभी ना रोना तुम्हारी आँखों के समंदर मैं अपनी आंखों में ले लूंगी…

तू आबाद रहे

तू रहे आबाद कोई गम ना हो तेरी आंखें दर्द से कभी नम ना हो हमनें बहुत देखें हैं अपने जीवन में दुख ईश्वर से…

नहीं गाएंगे

तुम्हारे तानों से इस महफिल में आना हमने छोड़ा था पर किसी ने बार-बार विनती की तो हमें आना पड़ा हमने तो कह दिया था…

मेरे मरने से

मैं सोचती थी मेरे जीने से लोगों को खुशी मिलती है पर आज मालूम हुआ कि मेरे मरने से लोगों का एक हुजूम खुश होगा।।

मुझे मौत दे दे

तुम मुझे कभी नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते मेरे दिल को एक बार नहीं बार-बार हो तोड़ते हम सब कुछ भुला कर एक…

दर्पण में दाग

कैसी कशमकश भरी जिंदगी है अब तो कभी इससे कभी उससे उलझे रहते हैं अपने ऊपर तो कभी ध्यान ही नहीं जाता अपने को हम…

आसान नहीं होता

आसान नहीं होता किसी की गलतियों को माफ करना और उसे फिर से अपना लेना आसान नहीं होता अपना पहला प्यार भूल जाना किसी और…

शिकायत

तुम्हारी नाराजगी को मैं हरगिज समझती हूं अपनी गलतियों को भी खूब समझती हूं पर इंसान हूँ गलती तो हो ही जाती है अपनों से…

बस खुश रहो

मेरी दुआ है तुम आबाद रहो खुश रहो, चाहे जहाँ रहो। मेरी हर आरज़ू में तुम हो जहाँ रहो बस खुश रहो।

स्वयंभू

आज खुश तो बहुत होगे तुम आखिर बो ही दिया तुमने नफरत का बीच उगल दिया अपनी जुबान का विष स्वयं को स्वयंभू समझते हो…

रात के उजाले…!!!

नींदों की सरगोशी और रात के उजाले यही तो हैं मेरे जीवन के साथी मेरे एकाकीपन के सहारे जिनकी संगत में जिंदगी का एक-एक दिन…

पिता वह दरख्ता है

पिता वह दरख्ता है जिसकी छांव में रहकर नन्हे-मुन्ने पौधे भी जीवित रहते हैं और थके हारे राहगीर उसकी ठंडी छांव में आराम पाते हैं…

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