बस खुश रहो

मेरी दुआ है तुम आबाद रहो खुश रहो, चाहे जहाँ रहो। मेरी हर आरज़ू में तुम हो जहाँ रहो बस खुश रहो।

स्वयंभू

आज खुश तो बहुत होगे तुम आखिर बो ही दिया तुमने नफरत का बीच उगल दिया अपनी जुबान का विष स्वयं को स्वयंभू समझते हो…

रात के उजाले…!!!

नींदों की सरगोशी और रात के उजाले यही तो हैं मेरे जीवन के साथी मेरे एकाकीपन के सहारे जिनकी संगत में जिंदगी का एक-एक दिन…

पिता वह दरख्ता है

पिता वह दरख्ता है जिसकी छांव में रहकर नन्हे-मुन्ने पौधे भी जीवित रहते हैं और थके हारे राहगीर उसकी ठंडी छांव में आराम पाते हैं…

तुम्हारी सिसकियां

तुम्हारी खामोशी अब मेरे कानों को सुनाई देती है तुम्हारी सिसकियां मेरे हृदय को व्यथित करती हैं तुम्हारे निश्चल प्रेम को मैं समझ ना सकी…

“तुम्हारा समर्पण”

तुम्हारा समर्पण देखकर भर आई मेरी आंख कितना सुंदर ह्रदय है कितनी सुंदर बात कितनी सुंदर बात कही है तुमने मुझसे तेरे इस मनुहार पर…

है आभा बड़ी मनोरम”

सीमित शब्दों में मैंने रखी है अपनी बात सुंदर-सुंदर वृक्ष हैं चिकने इसके पात, चिकने इसके पात है आभा बड़ी मनोरम सुंदर-सुंदर पुष्पों से भरा…

सावन का आँगन

सावन में आज फिर बहे प्रेम की धार गा रहे कवि सभी मीठा मीठा राग मीठा मीठा राग गायें मिल सभी कविजन, ना मन हो…

वृक्षारोपण कवच है।।

वृक्षारोपण कवच है वृक्षारोपण ही वैक्सीन वृक्षारोपण से धरती सुंदर हो हो मन हरा रंग भरा रंगीन हो मन हरा भरा रंगीन सुगंधित पुष्प खिलेंगे…

अपने जन्मदिवस पर एक पौधा लगाओ

सुंदर-सुंदर वृक्ष हैं सुंदर-सुंदर पात वृक्षारोपण करके ही प्रदूषण से मिलेगी निजात प्रदूषण से मिलेगी निजात सैकड़ों वृक्ष लगाओ अपने जन्मदिवस पर एक-एक पौधा सभी…

नैनों के तटबंध

नैनों के तटबंध से बहे अश्रु की धार मुख तो पट बंद हैं भीतर घोर अन्धकार भीतर घोर अंधकार, कहां से दिया जलाएँ बैठे-बैठे लुट…

बादलों के पीछे…

आसमान में स्याह बादलों के पीछे, मैने तुम्हें देखा सफेद रंग की टोपी लगाए लाल रंग की शर्ट पहने तुम कोई चित्र बना रहे थे…

“सुख की प्राप्ति”

आज अर्ध-निद्रा में ही कुछ जागने की चेष्टा की जाने कितनी दूर चलकर मैं जाने कहाँ पहुँच गई ! अर्द्ध विक्षिप्त अवस्था में, देखा तो…

हिसाब नहीं••••

हृदय पर कितने पत्थर रखे हैं हिसाब नहीं हम तुम्हें याद कर कितना रोए हैं हिसाब नहीं। तुम देते रहे सितम अपनी मदहोशी में हमारे…

“भारतीय संस्कृति”

भारतीय संस्कृति, अमिट अडिग अति सुन्दर मनभावन, स्वीकृत भावों की भंगिमा है जिसे अपनाया सहेजा संवारा और ह्रदय तल से स्वीकृत किया जाता है जो…

एकाकीपन…

दिल के दर्मियां कुछ जख्म हरे हो रहे हैं वो हमारे और करीब हो रहे हैं वह अब यह नहीं जानते इन रिश्तों से मेरा…

गौ माता

रुदन कर रही देखो प्यारे गौ माता निज राहों में अपने बछड़े को मनुहार से बुलाती आजा प्यारे बाहों में अब यह दुनिया नहीं रही…

“प्रारब्ध की ऊँघ”

अदृश्य, अकल्पनीय, प्रारब्ध की ऊँघ, उच्छ्वास प्रकृति का है मां का प्यार प्रभाकर की रोशनी से भी तीव्र है ममता की लौ जिसमें पुलकित होते…

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