किताबे

January 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किताबें
——–
किताबे गुमसुम रहती हैं
आवाज़ नहीं करती।
सुनाती सब कुछ है लेकिन
बड़ी खामोश होती है।
छुपा लेती है सब कुछ बस,
घुटन वो खुद ही सहती हैं।

दफन कर लेती बेचैनी,
दुख वो खुद ही सहती हैं।

लोग जो कह नहीं पाते,
किताबों में वो लिख जाते।

खुद तो निश्चिंत हो जाते,
किताबों को वो भर जाते।

अगर कोई झांकना चाहे
किताबें आईना बनती।

अगर कोई देखना चाहे
अक्स हर शख्स का बनती।

हृदय का बोझ ढोती है ,
बड़ी बेचारी होती है।

किसी दुखियारे प्रेमी सी,
किताबें बहुत रोती हैं।

निमिषा सिंघल

प्रेम

January 13, 2020 in मुक्तक

🌺”प्रेम एक पूर्ण शब्द है
अपूर्णता से पूर्णता की ओर ले जाने वाला।
जितना अधूरा उतना कामयाब
अखंड ज्योति सा
हृदय में उम्र भर सुलगने वाला।””
– निमिषा🌺

शायर

January 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शायर
🌺——🌺

शब्दों के तीरों से भरे तरकश सा
व्यवहार करते हैं…
शायर भी क्या खूब यार करते हैं।

एक एक तीर से घायल हजार करते हैं,
अपने टूटे दिल के टुकड़े समेटकर,
जख्मों की स्याही में डुबो कर,
रचनाएं तैयार करते हैं।

शायर भी क्या खूब प्यार करते हैं।

एक एक नग्म,एक एक गज़ल में
कहीं ना कहीं उन टुकड़ों को
खूबसूरती से छुपा,
अपने दिल को तार-तार करते हैं।

शायद भी क्या खूब यार करते हैं।

दूर चलते किसी दिये से
तेल और काजल चुरा,
स्याही तैयार करते हैं।

फिर अपने शब्दों की बेचैनी
कागज पर उतार
सुकून इख्तियार करते हैं।

शायर भी क्या खूब वार करते हैं।

पूरी जिंदगी का हिसाब किताब कर
उस बला को किसी ना किसी बहाने याद
बार-बार करते है,
अपने आक्रोश, उन्माद,प्रेम को
रचनाओं में दफना कर फरियाद करते हैं।

शायरी भी क्या खूब यार करते हैं।

दिल के टुकड़े हजार करते हैं,
राहत और बेचैनियों का व्यापार करते हैं
मील का पत्थर बन जाए
ऐसी रचनाओं को तैयार करते हैं।

शायर भी क्या खूब यार करते हैं।

मेरा प्रणाम ऐसे सभी शायरों को
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
निमिषा सिंघल

मुक्तक

January 10, 2020 in मुक्तक

ज्यादा मजबूत हृदय का दावा करने वाले
अक्सर बंद कमरे में रोया करते हैं।
निमिषा सिंघल

क्यू भूल गए

January 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविताएं गढ़ना जानते हो,
भावनाएं पढ़ना कैसे भूल गए?
कुछ शब्द उधार ही मांगे थे,
तुम उन्हे चूकाना भूल गए।
लिखनी बराबर चलती रही,
पर दोस्त बनाना भूल गए।
हमने तो हंसी बस मांगी थी,
तुम हंसना हंसाना भूल गए!
निमिषा सिंघल

नहीं पड़ता फर्क अब मुझको

January 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

पहले पढ़ता था फर्क
तूफान आते जाते थे
जबसे गहराइयों से नाता जोड़ा है
तेरे ध्यान में मग्न हो
भीड़ में भी संसार से नाता तोड़ा है।
निमिषा सिंघल

कलमकार

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक कलमकार
————-
जीता है हर किरदार
एक कलमकार!

जिंदगी की हर कसौटी पर
खुद को
खुद ही कसता है।

उसकी कलम उत्तम लिखे
इसीलिए लगातार
घिसता है।

उसकी लिखी हर कहानी
हर गीत
श्रोताओं को
उसका ही कोई
किस्सा लगता है।

सौ बार खुद को डुबाता है वो
तब कही जाकर
खुद की रचनाओं का हिस्सा लगता है।

हर किसी को एक कलमकार
दिल का मरीज़
एक टूटा हुआ
आशिक लगता है
किसी गहरे प्रेम से तालुकात
रखने वाला
बेमुरव्वत
पागल दीवाना लगता है।

और यही तो कलाकारी है

सही समझा आपने
ये एक कलमकार की
कलमकारी है।

हर कोई झांक लेना चाहता है
उन सुराखों में
जो कलम की तेज़ धार से
उन मुलायम कागज़ो में हो चुके थे।

पढ़ लेना चाहता है उन कागज़ो में
ढलक रही कुछ बूंदों को
अश्रु समझ कर

जो उमस से ढलक
चुके थे
चेहरे से
उनअक्षरों पर
मोती बनकर।

देख लेना चाहता है उस
अक्स को
जो दिखता है
नज़्म के आईने में
उस शख्स को।

समझ लेना चाहता है हर आड़ी तिरछी
रेखाओं को
लिखते लिखते सो जाने से
जिनका सृजन हुआ।

महसूस कर लेना चाहता है
उस दर्द को
जो किसी कलमकार की
रचनाओं में झलकता है।

तमाम तल्लखिया,तीखे संवाद
शरारती जुमले,
प्रेम
और उनसे उपजती
नई नई रचनाएं
हर किसी
साहित्य प्रेमी को
नव रस का सोपान
करवा कर ही दम लेती है।

कलमकार फिर डूब जाता है
अपने दिल के समुंदर में
नई रचनाओं के सृजन के लिए।

फिर हाज़िर होता है एक नई रचना
एक नए रूप के साथ
बहरूपिया कलमकार।

निमिषा सिंघल

अच्छे लगते हो तुम मुझको

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कमाल हो तुम!

कैसे जीते हो तुम?

इस जहरीले
नशीले अंदाज़ के साथ।

कभी आग कभी पानी
रोज़ ही लिखते हो एक नई कहानी ।

पल में तोला पल में माशा
मोहब्बत का अक्सर बना देते तमाशा।
तीखे तेवरों की पीछे छुपी मघुर मुस्कान,
ज्वालामुखी सा गुस्सा अंदर मुलायम सी जान।

कभी पकड़ते कभी छोड़ देते हो हाथ,
असमंजस सा दिल में
आज है
कल हो ना हो
ये साथ।

कितना विरोधाभास है व्यक्तित्व में तुम्हारे??🤔
लगता है
हो !
नदी के दो अलग – अलग किनारे।

कभी बहुत मीठे ….
कभी कड़वे लगते हो….
थोड़े -थोड़े झूठे,
थोड़े सच्चे लगते हो

जैसी भी हो बहुत अच्छे लगते हो।

निमिषा सिंघल

फिर एक शायर तैयार हो रहा था

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो हंस रही थी मुझ पर
मेरा कत्ल हो रहा था।
इश्क का जारी फतवा
सरेआम हो रहा था।

आगोश में जब अपने
भर लेना उसको चाहा।
वो हर जगह थी दाखिल
नज़दीक हो रही थी।

अजनबी थी कल जो
अज़ीज़ हो रही थी
बिना इजाजत दिल के
क़रीब हो रही थी।

कायल वो कर रही थी
घायल वो कर रही थी।
निस्बत नहीं कुछ मुझसे
फिर भी
मदहोश कर रही थी।

आजमाइश पे कसा जो
खरी उतर रही थी
जुस्तजू क्या कर ली!
खरीदार बन रही थी।

गुमान आ रहा था
अरमान छा रहा था।
मासूमियत पे उसकी
मुझे प्यार आ रहा था।

उरियां था दिल जो मेरा
गुलज़ार हो रहा था।
चाहत में इस दिल की
गिरफ्तार हो रहा था।

फिर एक शायर आज

तैयार हो रहा था।
दिल के हाथों
लाचार हो रहा था।
कलम चलाने को
बेकरार हो रहा था।

निमिषा सिंघल

बंद किताब

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुरेदने ना देना
इस दिल को मेरे।

राख तले दबे अरमान,
सुलग उठेंगे
शोलो की तरह।

झांकने ना देना
इन आंखों में मेरी।

इनमें तुम्हारा अक्स छपा है
पहचान लिए जाओगे
राधा की आंख में कृष्ण की तरह।

पढ़ने ना देना
चेहरा मेरा
आयते छपी है
तेरे मेरे प्यार की

चर्चा करेंगे ख्वामखा।

खुल जाएंगे
सारे राज़
ताजे छपे अखबार की तरह।

रहना हमेशा
आसपास मेरे
खुशबू बनकर

वरना झड़ जाएंगे
ये फूल
बरसो दबी किताब के
अचानक
खुलने की तरह।

सीने में दबे
दर्द को
महसूस
ना होने देना।

वरना
आंखों से बह उठेंगे
फिर अश्कों की तरह।

देखो!
दस्तावेज खुल पड़ेंगे
किसी मुकदमे की तरह।

हम हो जाएंगे रुसवा!
कभी ना हो सके
फैसले की तरह।

अच्छा हो
दबे रहें सब
किसी धूल में लिपटी
किताब की तरह।

निमिषा सिंघल

मै और तुम

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम भी ना
एक राग बन चुके हो
जो बजता रहता है ….
रेडियो सा
मेरे हृदय के सितार से।

आनंदित करता रहता है मेरी
सात तालों से बंद
हृदय कोठरी को।

कभी तुम सुगंधित पान
से लगते हो
जिसका स्वाद ,सुगंध
मन को तरोताजा
चिरयुवा सा रखता है।

और कभी तुम
किसी भंवरे के समान
महसूस होते हो।
जो दिन भर कान में गुनगुन –
गुनगुन करके
मुझसे अपने हृदय की हर एक बात कहना चाहता है।

और कभी तुम
सिरफिरे आशिक के सामान लगते हो
जो अपने दिल में मुझे कैद करके
चाबियां भी सब अपने पास ही रखता हो
जब मन चाहे
चले आते हो….चाबीयां लेकर ।
ना दिन देखते हो ना रात।

पता नहीं और क्या क्या हो तुम?
चलो छोड़ो
तुमसे दामन छुड़ा ही लेते हैं
पर कैसे?
रूह ही तुम हो
रूह को निकाले कैसे?
रूह को निकाल दे
तो जिएं कैसे?
मतलब
तुम पीछा नहीं छोड़ोगे!

निमिषा सिंघल

स्त्री एक शिकार

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चिरैया होगी!
तुम अपने मां बाबा की।
लाडली होगी!
तुम अपने भाई और बहन की ।

समाज के भूखे भेड़ियों के लिए
तुम बस एक शिकार हो।

इज़्ज़त पर तेरी फिर बन है आई,
फिर लड़नी होगी अस्तित्व की लड़ाई।
समाज में घूमते हैं हर जगह कसाई,

लड़कियां सुरक्षित नहीं
मेरे देश की जग हसाई।

दरिंदों की बस्ती है
इंसानों की तंगी है
वहशत बेढंगी है
तुझे बनना होगा रणचंडी है।

खुद को बना लो
तुम अपना हथियार
खुद ही को कर
हर युद्ध के लिए तैयार।

मिर्च झोंक आंखों में
जूते तैयार हो।

हर चौराहे पर इनकी
मरम्मत लगातार हो।

पुलिस को भी छूट हो
गोलियों की बौछार हो।

सरेआम लाठी-डंडों से
इन पर प्रहार हो।

तब कहीं जाकर……….

प्रियंका ,निर्भया जैसी
लाखों बेटियों को,
कुछ तो आराम हो।

निमिषा सिंघल

अच्छे लगते हो जानम तुम

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अच्छे लगते हो मुझको तुम।
जब झांकते हो इन आंखों में,
गिर पड़ते गहरे सागर में,
हम शोखी से भर जाते हैं ।

अच्छे लगते हो मुझको तुम।
जब हंसी ठिठोली करते हो,
मुझे देख के आहें भरते हो,
आंखों में शरारत भरते हो।

अच्छे लगते हो मुझको तुम।
जब यूहीं बुद्धू से बन जाते हो,
चलते फिरते टकराते हो,
नाटक करते घबराने का
आहे भर प्यार जताते हो।

अच्छे लगते हो मुझको तुम
जब पूछते हो मेरा हाथ पकड़,
मुझे प्यार करोगी जानेमन?

मेरे ना कहने पर बहते
तेरे नीर नैन,
मेरे हां कहने पर
रोते -हंसते
नैन कमल।
अच्छे लगते हैं
मुझको तेरे तीर नैन।

मैं हंस कर कहती
हां!
जानम
बस एक जन्म नहीं जन्म- जन्म ।
रोते- हंसते से गाते तुम,
वह नीर नैन छलकाते तुम,
वह मुझ पर प्यार लुटाते तुम,

अच्छे लगते हो जानम तुम।

निमिषा सिंघल

प्रभु शरण

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कृत्रिम सजावट जीने में,
आत्मिक सुख
तो नहीं ला पाती है।

आनंद नाद की प्राप्ति तो
प्रभु के चरणों में ही आती है।

जब पा जाते खुद में खुद को
तब एक कड़ी खुल जाती हैं।

सुनो!समझ लो
ये तय हैं,
प्रभु से मिलने की बारी है।

जब नैन तुम्हारे व्याकुल हो!
प्रभु मिलन का नीर समाया हो,।

तब समझो प्रभु ने बाहें फैला,
स्वागत को हाथ बढ़ाया हो।

हर चीज में जब मन व्याकुल हो,
प्रभु ने खाया कि चिंता हो।

तब समझो प्रभु ने जीम लिया,
जिस अन्न का भोग लगाया हो।

जब आंख खुले तो प्रभु दिखे,
मन में जब यही समाया हो।

तब समझो प्रभु ने हाथ पकड़,
चिर निद्रा से तुम्हे जगाया हो।

जब मन हर्षित,
जल नीर नयन
जहां देखो प्रभु समाये हो।

तब समझो
प्रभु ने साज बजा
संग अपने तुम्हे नचाया हो।

आनंद ही आनंद छाया हो,
आनंद ही आनंद छाया हो।
तब समझो प्रभु ने बाहों में तुम्हे
झूला आज झुलाया हो

निमिषा सिंघल

पूस की रात

January 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पूस की रात
————-
कड़कड़ाती सर्दी,सिसकती सी रात
ठिठुरन, सिहरन आरंपार।
पूस की रात जो हुई बरसात
कांप उठी सारी कायनात।
ना जाने कब
होगी ये प्रातः।

ठंड और कोहरे ने
गला दिए हाड़ मांस।
खून जम चुका है
प्रभु से लगी है आस।
कांप रहे जन
जिनका नहीं है बसेरा कही।
शीत से बचने को
चिथडो में
लिपटे कुछ प्राण है।

शीत का प्रकोप जारी
ठंड है या कोई महामारी
जान पे बनी है
कायनात पर पड़ी हैं भारी।

एक तरफ जश्न है
लोग सब मगन है
एक तरफ कफ़न है
इस ठंड में भी नग्न है।

दीनो को संभालो प्रभु
देवदूतों को उतारो प्रभु
सड़के बनी शमशान
अब तो देदो प्राण दान प्रभु।

चक्र को घुमाओ प्रभु
संकट मिटाओ प्रभु
द्रोपदी की साड़ी सा
कंबल बन जाओ प्रभु।

रक्षक तो थे ही
रक्षाकवच बन जाओ प्रभु।

निमिषा सिंघल

मित्रता

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम एक बुत!

मैं संभावनाओं से भरा ताबूत।

नहीं इरादा तोड़ने का तुमको
नहीं इरादा हंसी छीनने का तुम्हारी।

बात बस इतनी सी है समझानी
मित्र के साथ परम मित्रता है
हमें निभानी।

तुम समझते हमें ,
अभिमानी !
बिना हमें जाने
ऐसा मन बनाना
सरासर नाइंसाफी ।

आंखों में है नमी
ढलक रहा पानी है।
तनाव की रेखाएं??
यह तो बेईमानी है।

चेहरे पर हंसी लाने की
हमने तो ठानी है।

कृष्ण सुदामा सी गहरी मित्रता पाने
यमुना जी में डूबकिया जो लगानी है।

निमिषा सिंघल

एक स्त्री

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक स्त्री!
उड़ेल देती है सारा स्नेह
खाना बनाने में।
सभी की पसंद
नापसंद
का ध्यान रखते रखते,
खुद को क्या पसंद है
भूल ही जाती है।

एक स्त्री!
सबको स्नेह से खिलाने भर से ही
तृप्त हो जाती है।

एक स्त्री!
खाना बनाने में
उड़ेलती है प्रेम।

सुगंध, स्वाद से भरपूर
वह भोज परसने से पहले ही
स्नेह की सुगंध से सभी को कर देता है सरोबोर
और किसी ना किसी बहाने
कुछ खोजते
बारी बारी से
क्या बना होगा का अंदाज़ा लगाते प्रियजन
आ ही जाते रसोई में।

गंध को नथुनों में भरकर
आंखों को तृप्त कर
जब वो लौटते है
खाना परोसे जाने के इंतजार में।
तो
एक स्त्री !

होंठो पर मुस्कुराहट
दिल में सुकून भर कर
परस देती अपना दिल भी
सारी थकान भूल कर ।

निमिषा सिंघल

तुम्हारा इन्तज़ार है

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या हुआ?
मुड़ क्यू गए?
जब आए थे मुझसे मिलने!
तो मिले बिना
चल क्यों दिए?
कुछ खोज रही थी
तुम्हारी निगाहे मेरे चेहरे में!

बंद आंखों से भी जान लिया मैंने।
शायद बिना देखे पहचान लिया मैंने।

तुम्हारी रूह से वाकिफ थी मेरी रूह।
शायद इसलिए ही पकड़े गए।

धड़कनों ने धड़कनों की पहचान कर ली थी।
जिस्म जरूर दो थे मगर एक जान कर ली थी।

शायद इसीलिए
द्रुतगति से चल रही थी सांसे
और तुम्हें पता ही नहीं चला
कि तुम पकड़े गए हो।

तुम चल भी दिए
और मेरी रूह को
जो लिपटी थी तुमसे
साथ लेके चल दिए।

मैं सोती ही रह गई
प्राण विहीन निस्तेज।

अब इस बिना रूह के जिस्म को
ढोना है मुझे
हां तुम से बिछड़ कर अब
बहुत रोना है मुझे।

रोने के लिए जिन कंधों की जरूरत है मुझे
पर वह तो तुम्हारे पास है!
अब वापस मुड़ के लौट भी आओ प्रिय!

देखो !
इन पथराई आंखो
को आज भी इंतजार है तुम्हारा ।

निमिषा सिंघल

सरोगेट मदर

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सरोगेट मदर( उधार का मातृत्व)

जन्म तो दूंगी तुम्हें सहेजकर
लेकिन मजबूर हूं
देख नहीं पाऊंगी तुम्हें बेचकर।
विप्पनतावश हारी हूं
परिस्थितियों के आगे बेचारी हूं।
मैं अपनी कोख का
सौदा करने के लिए मजबूर
एक दुखियारी हूं।
आत्मग्लानि
मेरी आत्मा को
कचोटती रहेगी जीवन पर्यंत।
झेलूंगी इस दंश को मरने तलक।

कुछ मजबूर दंपतियों के लिए
मेरा ऐसा करना
परोपकार भी है
लेकिन परोपकार के लिए
अंगारों पर जलना
अब मेरी नियति है।

कोख बेचने के जुर्म में
कभी-कभी
मुझे त्याग भी दिया जाएगा।
तिरस्कृत और प्रताड़ित किया जाएगा।

पर पेट की खातिर
मै यह सब सह लूंगी चुपचाप।

कुछ आधुनिक महिलाओं की
तराशी हुई देह
खराब ना हो जाए

उनके लिए भी
इस्तेमाल किया जाएगा मुझे।
जन्म देकर भी
ममता नहीं लुटा पाऊंगी मै।

क्योंकि बेच दिया है मैंने पैसे लेकर
खरीद लिया है किसी ने पैसे देकर
एक अभागिन मां से तुम्हे।

निमिषा सिंघल

एक कलमकार

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक कलमकार
————-
जीता है हर किरदार
एक कलमकार!

जिंदगी की हर कसौटी पर
खुद को
खुद ही कसता है।

उसकी कलम उत्तम लिखे
इसीलिए लगातार
घिसता है।

उसकी लिखी हर कहानी
हर गीत
श्रोताओं को
उसका ही कोई
किस्सा लगता है।

सौ बार खुद को डुबाता है वो
तब कही जाकर
खुद की रचनाओं का हिस्सा लगता है।

हर किसी को एक कलमकार
दिल का मरीज़
एक टूटा हुआ
आशिक लगता है
किसी गहरे प्रेम से तालुकात
रखने वाला
बेमुरव्वत
पागल दीवाना लगता है।

और यही तो कलाकारी है

सही समझा आपने
ये एक कलमकार की
कलमकारी है।

हर कोई झांक लेना चाहता है
उन सुराखों में
जो कलम की तेज़ धार से
उन मुलायम कागज़ो में हो चुके थे।

पढ़ लेना चाहता है उन कागज़ो में
ढलक रही कुछ बूंदों को
अश्रु समझ कर

जो उमस से ढलक
चुके थे
चेहरे से
उनअक्षरों पर
मोती बनकर।

देख लेना चाहता है उस
अक्स को
जो दिखता है
नज़्म के आईने में
उस शख्स को।

समझ लेना चाहता है हर आड़ी तिरछी
रेखाओं को
लिखते लिखते सो जाने से
जिनका सृजन हुआ।

महसूस कर लेना चाहता है
उस दर्द को
जो किसी कलमकार की
रचनाओं में झलकता है।

तमाम तल्लखिया,तीखे संवाद
शरारती जुमले,
प्रेम
और उनसे उपजती
नई नई रचनाएं
हर किसी
साहित्य प्रेमी को
नव रस का सोपान
करवा कर ही दम लेती है।

कलमकार फिर डूब जाता है
अपने दिल के समुंदर में
नई रचनाओं के सृजन के लिए।

फिर हाज़िर होता है एक नई रचना
एक नए रूप के साथ
बहरूपिया कलमकार।

निमिषा सिंघल

हृदय नाद

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हृदय नाद
———–
आत्ममुग्ध हो कर
खुद से प्रेम करो।

हंसो!
अपने आप पर।
सुनो !
धड़कनों के संगीत को।

दिशा भ्रमित होकर
संगीत लहरिया
कहां बह चली?

उन्हे रोको ना
पीछा करो
बहने दो।

अपने ही रसिक
बनकर देखो।

मोहित हो जाओ
अपनी बचकानी हरकतों पर।

बांध लो!
अपने मोहपाश में
उन परछाइयों को

जो मंडराती रहती है
तुम्हारे आसपास ।

होंठो से स्पर्श करो!
उन शब्दों को
जो तैरते रहते हवाओं में
तुम्हारे बेहद पसंदीदा।

कान लगाओ!
उन धड़कनों पर

जो बजती रहती
तुम्हारे हृदय में
तुम्हारे मनपसंद गाने की तरह।

फिर देखो जिंदगी
कितनी सुंदर है

हर रंग जियो
हर हाल में
बस खुश रहो।

निमिषा सिंघल

मरहम बन जाओ तुम

January 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मरहम बन जाओ तुम
—————————
ज़ख्मों को जलाओ तो
कुछ उजाला हो।

ख़ाक हो जाए हम
किनारा हो।

घाव की आह में
सिसकियां बाकी,

मरहम बन जाओ तो
सहारा हो ।

ये दिल था ही नहीं
अपना शायद

डी.एन.ए जांच लो
शायद कहीं तुम्हारा हो।

जानें उल्फत ने
उलझाया इस कदर
गोया ये दिल, दिल ना हो
बेचारा हो।

यादों का सिलसिला
ना हो गर तो
कैसे इस उम्र का गुज़ारा हो।

लम्हा लम्हा सजीव लगता है
हम बिछड़ चुके
सोचना भी अजीब लगता है।

जैसे ये शब्द, शब्द ना हो
सटीक निशाना हो।
तेरा मेरा रिश्ता बड़ा पुराना हो।

प्यार है अब भी तुम्हे हमसे
उतना ही
इसी भ्रम में जिए तो
कुछ गुज़ारा हो।

तुम उड़ों अपने आसमानों में
जिस शाख पे रुको
पल दो पल के लिए

काश उसी शाख पे
अपना भी एक ठिकाना हो।

निमिषा सिंघल

आदि शक्ति

November 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोज हजारों अफसाने गढ़े जाते
तुम्हारे रोने पर… खिलखिलाने पर…
नगमे लिखे जाते,
तुम्हारे फूल से होंठों के ….मुस्कुराने पर।
तुम्हारे मिलन पर,
बिछोह पर,
प्रेम पर ,
बेचारगी पर….।

हर पल हर कदम
हजारों आंखें पड़ी हैं पीछे ,
तुम्हारी हर अगली उड़ान पर।
पूरी की पूरी सृष्टि को है तुमसे सरोकार।

तुम हो पूरी सृष्टि के लिए
एक चलता फिरता
मसालेदार अखबार।

हर पल हर घटना ….
लगता है तुम्ही से जुड़ी हैं।

तभी तो पूरी दुनिया
पंक्ति बंद होकर
तुम्हारे ही पीछे खड़ी है।

तुम्हें समझती
हर सच्ची झूठी घटना की कड़ी है।

तुम हो नाजुक से फूल की पंखुड़ी,
जिसे पाने को
भेड़ चाल बड़ी है।

तुम्हारी ही वजह से इतिहास में
हजारों तलवारी खिची है।

तुमने लड़ी भी लड़ाईया …
छोटी भी कुछ बड़ी है।

फूलों की तरह तुम भी ,
फफूंदो और कीड़ों से जा भिड़ी हो।

वर्चस्व की लड़ाई
अस्तित्व से अड़ी है।

धरती के कोने कोने में
विजय श्री ही मिली है।

आखिर क्या हो तुम?
आदि भवानी या कोमल कमलानी?

मैं बताऊं!
इस संसार के हर पुतले की माटी…

जिसकी बिना ..
अस्तित्व रहित है
यह पूरा भरा पूरा संसार …
ये सुंदर घाटी।

हां !
तुम स्त्री हो।
जननी हो।
सशक्त महिला हो।
तुम इस सृष्टि का आधार हो।

फिर तुम्हारा जन्म
कुछ बुद्धिहीन
निकृष्ट क्यों मानते हैं?

क्योंकि बल केआगे बुद्धि
भाग ही जाती है..

और फिर आदिशक्ति को निरर्थक समझकर
यह दुनिया यूं ही सताती है।

निमिषा सिंघल

मुझको बहुत नचाया

November 29, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

छलक- छलक आंखों ने
दिल का हाल जताया।

गीले-सूखे जज्बातों को
फिर आज जगाया।

दिल की धड़कन ने
मध्यम -मध्यम राग सुनाया।

मैं जिंदा हूं!
मुझको ऐसा एहसास कराया।

एक कप की प्याली ने… … ..
लम्हा याद दिलाया।

बुझाता बंद होता दिया….
जरा सा फिर चिरचिराया।

खट्टी -मीठी अमिया ने
फिर कुछ याद दिलाया।

उन्मुक्त हंसी का
फिर वह जमाना वापस आया ।

आंखों में बसी आंखों ने
इशारों पर जब नचाया।

दिल झूम उठा
फिर उसने मुझको बहुत नचाया।

निमिषा सिंघल

खुली किताब

November 29, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहा था तुमसे ,
किताब ना बनो !
पर नहीं माने तुम।

शायद!
अच्छा लगता होगा तुमको,
किसी के द्वारा पढ़ा जाना।

चौराहे पर इश्क लड़ाने का
शौक है तुम्हे।
जब देखो यहां वहां
कबूतर बाजी किया करते हो।

दिल नहीं घबराता तुम्हारा,
प्रेम का तमाशा बनाने में!

प्रेमी युगल तो छुप- छुपके मिलते हैं इधर उधर
पर शायद लोगों की निगाह में आ ही जाते हैं।

उड़ी उड़ी सी रंगत ,
खोई खोई सी शक्ल,
हैरान-परेशान सी हंसी,
चेहरे पर उमड़ता नेह,
आंखों की गहराइयों में से झांकते कुछ पल
सब कुछ बयां कर देते हैं।

शायद कुछ भी छुपा नहीं रह जाता,
बात बात में झलकती मुस्कुराहट,
भीड़ में भी अकेलापन ढूंढता मन।
किसी की पारखी नजरों से बच नहीं सकता।

भले ही वह जानकर अनजान बन जाए।
जानते हो!
लोग तो समुंदर की गहराइयों से भी मोती ढूंढ लाते हैं
और यह तो ठहरा
फकत तेरा मेरा इश्क।

निमिषा सिंघल

तेरे जाने के बाद

November 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यू है राब्ता मुझसे?
दूर चले जाने के बाद।

आशिकी का नशा करते हो क्या?
दिल जलाने के बाद।

क्यों आज भी नजरें चुराकर
चुपचाप देखते रहते मुझको !

क्या महसूस करना चाहते हो?
तुम सही थे या गलत
फैसला सुनाने के बाद।

जीना किसी के साथ,
मरना किसी के साथ।

फिर दिल में क्यों एक कसक का
दीया जलाये रखते हो
हमारे जाने के बाद।

क्यों भूलते नहीं
फिर याद ना करने के बाद।

क्या दिल के किसी कोने में
मैं अब भी जिंदा हूं
दफनाने के बाद।

चलो छोड़ो
हुआ जो भी हुआ
अच्छा ही हुआ।

मैं तुझ में अभी बाकी तो हूं
तुझे खो देने के बाद।

यही तेरे प्यार की राख तो
सुकून ए इश्क को रखे हुए है आबाद।

तुझे मेरी तलब है आज भी
बिछड़ जाने के बाद।

निमिषा सिंघल

प्रणय निवेदन

November 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये कैसा जहरीला इश्क है तुम्हारा?
लहू में गर्म शीशे सा फैल जाता है।
सीने में हलचल मचाकर कर भी भला,
खामोशी से कोई गीत गुनगुनाता है।

गहरी कत्थई आंखों से मुझ में
कुछ ढूंढते से नैन तुम्हारे।
धड़कनों की तीव्रता पढ़कर …
महसूस करते ….
वो कटीले नैन तुम्हारे।

मुझे एकटक बिना पलक झपकाए
नजरें गड़ा कर देखते,
वो अतुल्य नैन तुम्हारे।

वो कभी ना खत्म होने वाले
नशे के जाम से
नशीले
वो शराबी नैन तुम्हारे।

और वो तुम्हारा
एकटक देखते रहना।

और हमारा …
उस एक ही पल में ..
सदा के लिए
तुम्हारा हो जाना
याद है हमको।

याद है हमको
भीड़ में भी
आंखों का आंखों से प्रणय निवेदन।

वो पल वहीं बर्फ हो गया
समा गया सदा के लिए
इस दिल में हमारे।

निमिषा सिंघल

ठगिया

November 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ठगिया
———
कहा था ना मैंने !
दूर चले जाना मुझसे,
फिर नहीं माने तुम!
दिन के उजाले और रातों के अंधेरों में
विचरण करते रहते हो
खाली- पीली यूं ही दिल में मेरे।

ईश्वरप्रदत्त बुद्धि के स्वामी हो,
बुद्ध के समान शांत चित्त!
फिर दूर खड़े
तमाशा क्यों देखते हो मेरी बेचैनी का?

तुम्हारी सकारात्मकता बेहद निराली है,
तुम्हारे चेहरे पर बसी मधुर मुस्कान
मुझ में से कुछ चुरा कर ले जाती हैं।
क्या बला हो तुम??
बेहद अजीब हो तुम!

तुम्हें डर नहीं लगता,
निराशा नहीं घेरती कभी!!
अभयता का
वरदान प्राप्त है क्या तुम्हे??
सौम्यता का मुखौटा ओढ़े हो,
पर हो नहीं??
इतना तो यकीन है मुझे।
हां ठगिया हो तुम,
पुरुष जो ठहरे।

निमिषा सिंघल

मेरे कालिदास

November 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुंजन है धड़कनों में!

यह किसके पदचापों की आवाज है?
क्या यह तुम हो?
मेरे कालिदास!
जिन्हें बंद आंखें भी पहचानती हैं।
क्यों आए अचानक आज इतने चुपचाप?

मेरे मन की आंखें
और धड़कनों के कान
तुम्हारी हर आहट
पहचानते है।

मेरे कालिदास!
कहा था ना मैंने!
जा तो रहे हो,
शास्त्री जी बन वापस जरूर आओगे
विश्वास है मेरा।

और अब की बार जब आओ
कभी ना वापस जाने के लिए आना।

तुम्हारी आहट सुन रही हूं मैं,
विश्वास की जीत का नजारा
बंद आंखों से दिख रहा है मुझे।
इंतजार रहेगा तुम्हारा कालिदास!

तुम्हारी विद्योत्तमा

निमिषा सिंघल

वनिता

November 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे कांता! कौन सी मिट्टी से बनी हो तुम
अपनी इच्छाओं का दमन कर
कैसे रह पाती हो हंसती मुस्कराती तुम?
वाकई बेमिसाल हो तुम।
हे स्त्री!
कैसे हर परिस्थिति में खुद को ढाल कर
सामंजस्य बिठा पाती हो तुम?
सच में कमाल हो तुम।
हे कामिनी!
शारीरिक और मानसिक सौंदर्य से ओतप्रोत
रति!
अपने प्रियतम के प्राण हो तुम।
हे ललना!
वात्सल्य रस का झरना
चंदन के समान हो तुम।
हे रमनी!
झकझोरता हे तेरा सेवा भाव,
तेरा क्षमाशील व्यवहार।
आखिर क्या है तेरी मिट्टी में?
तपकर बन गई है तू
सिर्फ वनिता नहीं
देवात्मा!
निमिषा सिंघल

हम आंखों में बस देखेंगे

November 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो चांद पर चलकर बैठेंगे,
कुछ नैन मटक्का खेलेंगे।
क्या दिल में है अरमान तेरे!
क्या दिल में है अरमान मेरे!
तारों की छैयां बैठेंगे,
हम आंखों में बस देखेंगे।
तुम भी पढ़ना मैं भी देखूं
आखिर मेरी क्या चाहत है?
तुम खो जाना,
तब मैं ढूंढूं !
तुम्हें मेरी कितनी जरूरत है।
सिर्फ खेल नहीं,
यह जीवन है।
इप्पी- दुप्पी तुम समझो ना।
शतरंज नहीं ना चौपड़ है,
चालो पे चाले चलना ना।
दिल को मेरे जो जाती है,
वह सीधी सादी रस्ता है
बस हाथ पकड़ थामे रहना,
यदिएक दूजे का बनना है।
तेरे प्यार पर मेरा हक पूरा,
नहीं और किसी का हिस्सा है।
यदि है मंजूर
तो समझो तुम
इतिहास में अमर यह किस्सा है।
निमिषा सिंघल

वह सांवली सी लड़की

November 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गिट्टू सी लड़की
सांवली सी सूरत।
लिए घूमती थी
ढेर बच्चों की पंगत।
कुछ लिए ढपली,
कुछ गाते राग।
मुंह और हाथों से
बजाते थे वो साज।
भूखा पेट रोटी की तड़प
आवाज थी उनकी
दमदार कड़क।
गाते ना थकते
वह गुदड़ी के लाल।
सोचना था काम
कैसे होगा?
दो वक्त की रोटी का इंतजाम।
पटरी पर सोते ये बचपन ये इंसान
काश इनका भी जीवन कुछ होता आसान।
निमिषा सिंघल

शिकायतें

November 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आना मिलने बादलों के पार,
शिकायतों का पुलिंदा भरा है
दिल में मेरे।

पिछले और उससे भी पिछले
कई जन्मों में
जो तुमने कुछ दर्द दिए थे!
और मेरे आंसू निकल पड़े थे।
उन सब का हिसाब करना है
तुमसे।
मेरे साथ चलते चलते
पीछे मुड़ मुड़ कर
खूबसूरत बालाओं को
जो तुम
चोरी चोरी देखा करते थे
और मेरे दिल में एक कसक सी उठती थी।
उन सब का हिसाब भी तो करना है
तुमसे मुझे।

मेरे कुछ लम्हे कुछ खत
जो मैंने खर्च किए थे तुम पर!
वह लम्हे ब्याज समेत
तुम्हे वापस देने होंगे
मुझे
और अब इस जन्म में
तुम्हें सिर्फ मेरा ही बनकर रहना हो
समझे तुम!
निमिषा सिंघल

देवदास

November 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आधा चांद खिला होगा जिस दिन
उस दिन मिलने आऊंगा।
अपनी नीलकमल सी आंखों में
मेरा इंतजार रखना।
मैं चंद्रकांता का
वीरेंद्र बनकर आऊंगा।
महुआ के पेड़ से
पक कर झड़े फूल से तैयार
ताजी ताड़ी सी तुम।
और मैं पारो के देवदास सा
तुम्हारा दास!
तुम मेरे लिए
पारिजात के फूलों के समान
मानसिक सुकून देने वाली
औषधि हो।
चंपा के समान सुगंधित
तुम्हारी देह
मेरे मृतप्राय मन में नए प्राण फूकती है।
रातरानी के फूल के समान तुम्हारी गंध
बांधती है मुझे।
तुमसे बंधा
तुम्हारा बंधक
देवदास हूं मैं
हां तुम्हारा दास हूं मैं।
निमिषा सिंघल

अमोली

November 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कानों में ठूठे लगाए, बहर भट्ट सी!
ज्ञान के प्रभाव से आत्मचित्त,
मोहक सुवर्णा सी।
चेहरे पर कठोर भाव,
प्रेम में टूटी शहतीर सी।
तापसी!
बिन प्राणों के शवास सी।
स्वरागिनी!
खुद में डूबी
आत्ममुग्ध ,स्वप्नली सी।
नाकाम थी
सारी कोशिशें,
उसके आकर्षण से छूट जाने की।
शुष्क चेहरा, तीखी निगाहें
पता नहीं कहां सीखी थी?
ऐसी अदाएं दिल जलाने की।
उसकी सुंदरता में डूबते ही
उसका व्यक्तित्व उतर जाता था
दिल की गहराइयों में।
पर चेहरे की कठोर भाव से लगता था कि
सात जन्म भी कम पड़ जाएंगे उसे मनाने में।
कैवल्य की मूरत,
अभिधा!
तुम्हें पाने के लिए
चढ़नी होंगी मुझे भी
प्रेम में बैराग्य की सीढ़ियां

तब शायद!
मिल जाओ तुम मुझे
अमोली!
दिल से दिल की जोड़कर कड़ियां।

कैवल्य=स्वतंत्रता
अभिधा=निडर महिला
अमोली=अनमोल
शहतीर=लकड़ी का टूटा लट्ठा
तापसी=तपस्वी

निमिषा सिंघल

वो मै है थी

November 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक लम्हा गुजरा मेरे पास से,
गुजर गई
एक पल में
मैं तुम्हारे आसपास से।
और तुम जान भी न सके,
कि हवा
जो तुमको छू कर गई थी!
वह मैं ही थी।
सिहर उठे थे तुम,
और वह सिहरन में ही थी ।

निमिषा सिंघल

अद्भुत तुम

November 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तानाशाह से तुम!
क्रोध की तीव्रता में
कर देते….
सब कुछ हवन।
बचपन में झेली गई
मानसिक प्रताड़ना,
ने बना दिया तुम्हे शिला,
ज्यो थीअंदर से नरम।
प्यार भी आंखें दिखा- दिखा करते हो,
हंसी आती है तुम्हारी इस बनावटी शक्ल
और बच्चों सी अक्ल पर।
अद्भुत हो तुम अपने आप में,
तुम सा बिरला ही कोई होगा इस पूरे ब्रह्मांड में।

निमिषा सिंघल

बैचैन दिल

November 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह घड़ी बड़ी अजीब थी!
आजिज था मन
खुद अपने आप से।
क्या ना कहा !
क्या ना सुना!
अपने आप से।
बेचैन था दिल
दूर जा रही पदचाप से।
धुंधला रहा था वजूद …..
आंसुओं की भाप से।
निगाहें थी …
कि
हट ही नहीं रही थी।
भयभीत था दिल
एकाकीपन के श्राप से।
सीने में थी जलन,
आंखों में थे
हजारों सवाल,
जिन का हल पूछ रही थी
मैं अपने आप से।
निमिषा सिंघल

हमें तुम याद आते हैं।

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बसावट मेरे दिल में अजनबी
तुम क्यों बसाते हो?

चलो छोड़ो!
बहुत अब हो चुका मिलना,
मेरे दिल को अभी भी तुम
ठिकाना क्यों बनाते हो?

दूर बैठे हो तुम कितने!
कि मुझ से मिल नहीं सकते
वहीं बैठे
निगाहों को
निशाना क्यों बनाते हो?

समय जब है नहीं तुमको
कि आके मिल भी लो एक पल!
तो अपनी रूह का पिंजरा
नहीं तुम क्यों बनाते हो?

क्यों आ जाते
बिना मेरी इजाजत
रोज मिलने को????
कि दिन ढलता नहीं
और हिचकी बन
गले पड़ ही जाते हो!!

पल वो बीता
वक्त भी ना रुका
फिर भी ना जाने क्यों?

शब्द जो बोले थे
उनको कानों में
क्यों गुनगुनाते हो?

वो खट्टी मीठी सी मनुहार,
वो आंखों से बरसता प्यार।

सदी बीती
दोबारा क्यों हमे
बीती कहानी
फिर सुनाते हो।

तुम अब भी
हर घड़ी हर पल
हमें उतना ही सताते हो।

कि जितना भूलना चाहे
तुम उतना याद आते हो।

निमिषा सिंघल

हमें तुम याद आते हो।

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बसावट मेरे दिल में अजनबी
तुम क्यों बसाते हो?

चलो छोड़ो!
बहुत अब हो चुका मिलना,
मेरे दिल को अभी भी तुम
ठिकाना क्यों बनाते हो?

दूर बैठे हो तुम कितने!
कि मुझ से मिल नहीं सकते
वहीं बैठे
निगाहों को
निशाना क्यों बनाते हो?

समय जब है नहीं तुमको
कि आके मिल भी लो एक पल!
तो अपनी रूह का पिंजरा
नहीं तुम क्यों बनाते हो?

क्यों आ जाते
बिना मेरी इजाजत
रोज मिलने को????
कि दिन ढलता नहीं
और हिचकी बन
गले पड़ ही जाते हो!!

पल वो बीता
वक्त भी ना रुका
फिर भी ना जाने क्यों?

शब्द जो बोले थे
उनको कानों में
क्यों गुनगुनाते हो?

वो खट्टी मीठी सी मनुहार,
वो आंखों से बरसता प्यार।

सदी बीती
दोबारा क्यों हमे सब
याद दिलाते हो।

तुम अब भी
हर घड़ी हर पल
हमें उतना हीसताते हो।

कि जितना भूलना चाहे
तुम उतना याद आते हो।

निमिषा सिंघल

हमें तुम याद आते हो

November 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बसावट मेरे दिल में अजनबी
तुम क्यों बसाते हो?
चलो छोड़ो!
बहुत अब हो चुका मिलना,
मेरे दिल को अभी भी तुम
ठिकाना क्यों बनाते हो?
दूर बैठे हो तुम कितने!
कि मुझ से मिल नहीं सकते
वहीं बैठे
निगाहों को
निशाना क्यों बनाते हो?
समय जब है नहीं तुमको
कि आके मिल भी लो एक पल!
तो अपनी रूह का पिंजरा
नहीं तुम क्यों बनाते हो?
क्यों आ जाते
बिना मेरी इजाजत
रोज मिलने को????
कि दिन ढलता नहीं
और हिचकी बन
गले पड़ ही जाते हो!!
पल वो बीता
वक्त भी ना रुका
एक पल भी
फिर भी क्यों?
शब्द जो बोले थे
उनको कानों में
क्यों गुनगुनाते हो?
वो खट्टी मीठी सी मनुहार,
वो आंखों से बरसता प्यार।
सदी बीती
दोबारा क्यों हमे सब
याद दिलाते हो
तुम अब भी
हर घड़ी हर पल
हमें उतना ही सताते हो
कि जितना भूलना चाहे
तुम उतना याद आते हो।
निमिषा सिंघल

हसीना

November 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सूर्योदय सी केसरी सुनहरी,
रश्मिया तुम्हारी सखी सहेली।
मोतियों सी जगमग हंसी तुम्हारी,
सहस्त्र फूलों के इत्र सी महक तुम्हारी।
दिलकश निगाहें होंठ अंगारे,
घनघोर घटा सी जुल्फें तुम्हारे।
चाल बड़ी मदमस्त नशीली
सुंदरता की तुम पैमाइश,
मेरे दिल की तुम ही हो फरमाइश।
मुझ में तुम क्यों घुलती जा रही हो
रूह में मेरी समाती जा रही हो,
होश क्यों मेरे गुम हो रहे हैं
जेहन पर मेरे तुम छा रही हो।
डूबता जा रहा हूं मैं इश्क में तेरे,
तेरी हस्ती में मैं समाता जा रहा हूं।
खत्महो रहा हूं!!!
नहीं मुझ में कुछ बाकी।
मैं हूं या यह तुम हो???
या तुझमें मैं यूं गुम हूं।
निमिषा सिंघल

अजनबी

November 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिलकशी से तुम मिले!!!
निगाहों में अक्स तुम्हारा रोशन क्या हुआ!
हजारों चिराग इस दिल में जल उठे।
सर चढ़ रहे हो अजनबी
हालत क्या बयां करूं
हलचल सी मची दिल में
तूफान में घिरा हूं
खुशबू बिखर रही है
रू ह घुल रही है
तुम हो या कि मैं?
हस्ती पे छा रही हो।
निमिषा सिंघल

जीवन का सच

November 3, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन मृत्यु सच जीवन का
इनसे ना कोई बच पाया है।
सब जानते हैं जाना है वहां!
जहां परमात्मा का साया है।
फिर भी भटके भटके रहते,
लालच में हम अटके रहते।
नहीं जान सके कि सच क्या है!
बस झूठ में हम लटके रहते।
जान लो सच इस जीवन का,
पहचान लो क्या यह खेल रचा।
हम तो कठपुतली भर ही हैं,
प्रभु के हाथों में धागा लगा।
शतरंज बिछाए बैठे हैं,
प्रभु खेल जमाए बैठे हैं,
मोहरे है सभी प्राणी जग के,
प्रभु हमें नचाए बैठे हैं।
जब मन चाहा डोरी खींची
जब चाहा जीवनदान दिया।
जब चाहा चक्र में बांध दिया,
जब चाहा मोक्षधाम दिया।
निमिषा सिंघल

आंखों से बरसता नेह

November 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

काली कजरारी आंखों से जब मेघ बरसता है
आंसू में बह कर वह नेह निकलता है
खूबसूरत लगती हो तुम
जब पौछती जाती हो
दुपट्टे के कोने से
उन आंसुओं की धारा
बहता सा काजल उजला सा चेहरा
कुछ यूं चमकता है
जैसे काले बादलों से चांद निकल आया
तुम्हें देख कर लगता है मुझे
सावन की उजली खिली खिली धूप का तुम साया।
निमिषा सिंघल

फितरत

November 2, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

फितरत किसी इंसान की
बदलती नहीं जनाब।
चाहे जिंदगी में आ पड़े
कितने भी अजाब।
बचपन की आदतें समाई होती हैं
इस कदर,
बदला यदि खुद को
तो नया इंसान ले जन्म।
बचपन सुधारा जिसने
वही इंसान बन पाया,
वरना संसार में जीना तो
कीड़े मकोड़ों ने भी पाया।
निमिषा सिंघल

किताबें

November 2, 2019 in मुक्तक

किताबें दोस्त थी मेरी, दुख सुख की साथी,
अकेलेपन में किसी की कमी ना खलने देने वाली,
हंसती मुस्कुराती।
मुझे जहां भी कोई किताब मिल जाती
मेरे पुस्तकालय में सुशोभित हो जाती।
इंटरनेट ने तो कहीं का ना छोड़ा
लोगों ने किसानों से नाता ही तोड़ा।
सूनी पड़ी रहती पुस्तकालय
एक बटन दबाते ही फोन में सब कुछ आ जाता।
पर किताबें हमसे बहुत कुछ कहती हैं
जो यह फोन नहीं कह पाता।
निमिषा सिंघल

आत्मा का परमात्मा से मिलन

November 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पार्थिव शरीर विह्वल हुए लोग
शांत चेहरों में वेदना समाई है
हसती खेलती कोई पुण्यात्मा
परमात्मा से मिलने को आज अकुलाई है
चार दिन का साथ छोड़ आज ऐसे जा रही
मुसाफिर खाने से छूटकर मायके को जा रही
बिलखते हैं भाई बंधु रोते परिवार हैं
रोकने पर जोर नहीं दुख आर पार है
बात बात पर तुम्हें याद किया जाएगा
अच्छाइयों की बात हो तो तुम्हें पुकारा जाएगा
जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्ति को यही आस्था
मोक्ष की हो प्राप्ति सभी की यही प्रार्थना।
निमिषा सिंघल

सुरूर

November 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आंखों के सामने छा जाता है तुम्हारा सुरूर
मुझे खुद पर ही होने लगता है गुरूर
नींद भी अपना रास्ता भूल जाती है
जब याद मुझे तुम्हारी इस कदर आती है
कुछ यादें कुछ मीठी बाते
अठखेलियां करने निकल पड़ती हैं
जब ख्वाबों में तुम गलबईया डाले मुस्कुराते हो।
निमिषा सिंघल

अद्भुत एहसास

November 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा मन विचलित था विह्वल था,
कान्हा ने मुझे उबार लिया।
अपना अद्भुत सा साथ दिया,
भटकन को मेरी वही थाम लिया।
मेरे अंतःकरण की शुद्धि की,
मुझे बीच भंवर से निकाल लिया।
कैसा अद्भुत था कान्हा से मिलन,
मुझे खुद से ही हो उठी जलन
हो कृष्ण मगन मैं नाचू रे
जहां भी देखूं वहां कान्हा हैं
मैं तो पी की बतियां बाचू रे!
निमिषा सिंघल

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