खामोशियां

October 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाहर कितनी खामोशी है
अंतर्मन द्वंद सा मचा कहां?
चेहरा हंसता सा दिखता है
आंखों में नमी, दुख छुपा कहां?
जीव्हा कुछ ना कुछ बोल रही
शब्दों में फिर वो रवानी कहां?
तुम भी जी रहे हम भी जी रहे हैं
अरमानों का कत्ल फिर हुआ कहां ?

निमिषा सिंघल

अनबूझ पहेली

October 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बचपन जिस आंगन में बीता,
वह बस एक पड़ाव था मंजिल का।
उन रास्तों से आगे बढ़कर,
मंजिल तक जाना बाकी था।
जिस घर में उस ने जन्म लिया
क्या पता था!!
यह घर उसका नहीं
ससुराल चली तो सोच मिली,
चलो अपने घर में आज चली।
लेकिन सपना फिर झूठा था!!!!
ससुराल लुभावना धोखा था!!!!
अपना घर किसको कहते हैं???
यह अब भी समझना मुश्किल था!!
जिस शहर में जन्मी थी बहू उस घर की,
वह शहर था बस पहचान उसकी।
घर ना तो मायके वाला रहा,
ना ससुराल ने दी पहचान कोई।
कैसी विडंबना एक स्त्री की है,
अपना घर किसको कहते हैं!!
अनबूझ पहेली तब भी थी,
अनबूझ पहेली अब भी है।

निमिषा सिंघल

इश्क एक बुखार

October 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्क का बुखार बड़ा ही लज्जतदार।
आत्मा पर हो जाता एक जुनून सा सवार।
कर देता अच्छे खासे इंसान को बेकार।
हंसता खेलता इंसान लगने लगता बीमार
मीठा जहर यह बड़ा ही असरदार।
पीना हर कोई चाहे,
चाहे जमाने की पड़े मार।

तजुर्बा ए जिंदगी

October 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तजुर्बों का नाम जिंदगी है।
कभी दुख कभी दिल्लगी है।
किताबों से मिलता ज्ञान अधूरा है।
पूरी जिंदगी ही तजुर्बों का चिठ्ठा है।
यादों में ना जाने किस-किस का किस्सा है।
सुखो के साथ दुखों का भी हिस्सा है।

निमिषा सिंघल

तजुर्बा ए जिंदगी

October 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तजुर्बा का नाम जिंदगी है।
कभी दुख कभी दिल्लगी है।
किताबों से मिलता ज्ञान अधूरा है।
पूरी जिंदगी ही तजुर्बों का चिठ्ठा है।
यादों में ना जाने किस-किस का किस्सा है।
सुखो के साथ दुखों का भी हिस्सा है।

निमिषा सिंघल

मेरे कातिल

October 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी

मेरे कातिल गर वापस आए
तो आंखों में शिकायतें पढ़ लेना
होठों का फड़कना देख लेना
धड़कनों की आवाजाही सुन लेना
मेरी रूह की तड़पन महसूस तो करना
यदि तुम्हें इश्क है मुझसे
निमिषा सिंघल

उन्वान

October 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक चाहत भरी नजर दिल में रोशनी सी भर गई
तुम्हें याद करना इंतहा इबादत बन गई
हर अक्स में तुम्हे खोजना
जुनून बन गया
चेहरा तुम्हारा मेरे लिए
आईना बन गया
तुम्हें दूर जाते देखना
नासूर बन गया
हस्ती पर मेरी इस कदर छा गए हो तुम
बस याद तुम्हें करना उन्वान गया

– निमिषा सिंघल

स्त्री

October 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रहस्यवाद का जामा पहने स्त्री!
एक अनसुलझा रहस्य!
उलझे हुए धागों की एक गुत्थी।
शायद! पुरुष के लिए एक मकड़जाल।
पर हर स्त्री अपने आप में हैं बेमिसाल।
कभी वह खुली किताब बन जाती ,
जब अपने मनमीत से मिल जाती।
वरना नदिया की धारा सी
चुपचाप बहती जाती।
अश्कों में छुपाए अनकही कहानियो का चिट्ठा,
मुस्कुराहटों में छुपाए थोड़ा दर्द खट्टा मीठा।
एक ग्रंथ के बराबर स्त्री में कई परतें।
पूरा का पूरा ग्रंथ
तो कोई बिरला ही पढ़ पाता।
निमिषा सिंघल

स्वच्छ भारत अभियान

October 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर शख्स से हर अक्स से
विनती मेरी हर सांस से
हर जात से हर पात से
हर शहर ग्राम और प्रांत से।
धरती हमारी मां है यह
भारत हमारा है वतन।
सोचो मगर क्यों आज ये
उजड़े बिखरे लगते चमन।

शायद हमारी भूल हो!!
लापरवाही सबको कुबूल हो।
क्यों गंदगी चहुं ओर क्यों?
कचरा बनी यह जमीन क्यो?
क्योंघर आपके साफ हैं!
रास्ते, गली क्या कूड़ेदान हैं!!
नालियां भरी पॉलीथिन से
रास्ते में देखो जाम है।
दुर्गंध उठती धरा से यू
जैसे सड़ चुकी कोई लाश हो।
घर को बना सकते हो यू,
आवाम का जो यह हाल है।
दीवारें पीक से सजी
जैसे खून सें नदियां सनी।
हर जगह ढेर ही ढेर है
दुर्गंध चारों ओर है
घर झाड़ पहुंचकर जो तुम।
फेंक देते कचरा रास्ते पर
एक दिन उसे घर में फेको,
फैला दो चारों ओर फिर
रह पाओगे एक दिन भी ना
ऐसे बुरे माहौल में।
देश को समझो अपना
प्रतिज्ञा मन में ठान लो
स्वच्छ भारत अभियान में साथ दो।

निमिषा सिंघल

आओ नदिया स्वच्छ बनाएं

October 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नदियां हैं जीवनदायिनी,
उज्जवल है मोक्ष प्रदायिनी।
कचरा ना इन में डालो तुम,
बर्बादियों ना पालो तुम।
शीशे सी साफ हो
जब झांको तुम ।
सुंदर धरा यह हरी भरी
लगती है तुमको भी भली।
तो आओ मिलकर शपथ उठाएं
नदी नालों को साफ बनाएं।
शुद्ध जल के स्रोत बढ़ाएं
स्वच्छ भारत अभियान चलाए।
निमिषा सिंघल

मेरी मां

October 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोज सुबह बच्चों को उठाती,
कभी-कभी पानी छिड़काती।
एक-एक करके काम निबटाती,
बीच-बीच में लेती जाती ,
हम सब के झगड़ों में रस।
बीच में कहती हो गया बस,
पढ़ो लिखो ना लडों भिडो।
पड़ जाएगा थप्पड़ अब,
काम में दिनभर डूबी रहती,
चकरी सी वो घूमा करती,
पूरे घर की चिंता करती,
रात में थक सो जाती बस।
नींद भरी आंखों से कहती
रख ली किताबें या आऊ अब।
गुस्से में भी प्यार झलकता,
मेंरी मां का लाड़ झलकता।
मीठी झिडकी सुने बिना मां
तेरा चेहरा देखे बिना मां,
ना आए जीवन में रस।
कैसे मैं सो जाऊं अब।

निमिषा सिंघल

मुझे मूरत बना गई

October 5, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बोलियां बतिया तेरी ,
काजल भरी
गहरी काली अखियां तेरी।
दिल को चकमक सा कर गई,
भीनी मुस्कुराहटें भर गई,
मनमोहिनी ,चितचोरनी
जादू भरी तेरी हंसी,
मुझमें से मुझको खींच ले गई
मैं अवाक सा संवेदनहीन
शून्य की तरह तुम्हें ताकता रह गया।
तुमने जाते-जाते पलट कर
जो आंखों से वार किया
एक खंजर दिल के आर -पार किया।
मैं मूरत बना
तेरी सूरत निहारता रह गया।
तुम चली गई
मैं पत्थर सा खड़ा रह गया।

निमिषा सिंघल

हां . . मैं देना चाहती हूं!

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

देना चाहती हूं सूखे होंठो पर हंसी,
निराश डूबती सी आंखों में रोशनी,
सूखे उलझे बालों में नमी,
हारी सी जिंदगी को जीत की खुशी,
छोटी- छोटी सी वस्तूए मिल जाने पर
चेहरे पर छाई खुशी।
हां…… मैं देना चाहती हूं,!!
सम्मान, प्यार का उपहार
उन मासूम नन्हे चेहरों को।
निमिषा सिंघल

खूबसूरत अरमान

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गहरी काली आंखों में डूब जाना चाहता हूं।
तुमको बस तुमको यूं ही देखना मैं चाहता हूं।

तेरे बस तेरे ख्यालों में खो जाना चाहता हूं।
तेरी बस तेरी हंसी की खनक सुनना चाहता हूं।

बोलियां बतिया तेरी बस दोहराना चाहता हूं।
धड़कनों में तेरी धड़कन बन धड़कना चाहता हूं।

सुनो ना यारा मेरे यारा
तुमको बस तुमको पाना चाहता हूं।

निमिषा सिंघल

गणपति विसर्जन

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

गणपति विसर्जन
———————
श्रद्धा व सम्मान दिया,
गणपति को घर में विराजमान किया।
रोज ..मोदक, मेवा खिलाते रहे, गणपति जी को… जी भर मनाते रहे।
वस्त्र, आभूषण उन्हें हम चढ़ाते रहें ,
लाड सारे उन्हें हम लड़ाते रहे। सुगंधित पुष्पों की माला अर्पण की…
गाजे-बाजे बजाते ले विसर्जन को को चले।
मानसिक बेड़ियों से जकड़े रहे, बुद्धिहीनो के जैसे उन्हें पकड़े रहे।
गंदले पानी में ही डूबा आए हम शीश, धड़ से अलग…. ना बचा पाए हम।
अंग सारे हुए भंग….
पर देखो भक्ति का रंग…. अपमान करके सम्मान समझ बैठे हम।
सोच सब की है भिन्न पर देवता को खिन्न….. एक महीने मना कर भी कर आए हम।
और पीछे से पुकारते हैं क्या!!!! “गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ”
गणपति बप्पा कहते हैं. …
अगले बरस तू मुझे ना बुला …मुझे ना बुला
निमिषा सिंघल

आंखें आईना

October 4, 2019 in शेर-ओ-शायरी

बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे हो
हमसे तुम कुछ छुपा रहे हैं
आंखें हैं आईना धड़कनों का
उनमें हाल-ए-दिल पढ़ा रहे हो।
निमिषा सिंघल

प्यारी बहना

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नन्ही मुन्नी गुड़िया सी
मीठी-मीठी गुड़िया सी।
बातें करती गपर – गपर
वो हंसी तो खिलती धूप मगर ।
लड़ती ,भिडती, हंसती खिलती
जैसे धूप छांव हंसती खि लती।
लड़ने में झांसी रानी है
हंसने में ना कोई सानी है
जब बोले तो जैसे फूल झढ़े
रोए तो आंसू अनमोल लगे
नन्ही है लेकिन मदद गार
करने को हर काम तैयार।
मेरे दिल की हो तो रानी है
मेरी बहना बहुत सयानी हैं

निमिषा सिंघल

अंधा कानून

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोचा था क्या हम सब ने!
ऐसा घ्रणित समाज,
हर दूसरा चेहरा
वहशी घिनौना आज।
लगता कि जैसे हो गए
सब मानसिक रोगी

दहशत की बोलती है
अब हर जगह ही तूती
सब धर्मों के पुजारी सबसे बड़े अधर्मी
न्याय कहां घिसटता उम्र बीत जाती
दुष्टों को लेके जाने से तो मौत भी कतराती।
निठारी कांड के अपराधी जिंदा अभी तक क्यों हैं?
ना जाने कितनी निर्भया तो फाइलों में बंद है
अंधा यहां पर इतना कानून आखिर क्यों है ?
बेखौफ है अपराधी मासूम डरता क्यों है?
लगता की दहशत गर्द को दू देश से निकाला
फिर से अमन का भारत यह देश हो हमारा।
निमिषा सिंघल

नारी शक्ति

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी है अबला
नारी है शक्ति ।
नारी है ममता
नारी है पूजा ।
नारी का एक रूप है बेटी
जो तपती दोपहर में ठंडी हवा है
रेगिस्तान में आशा का पानी ।
नारी सदा से ही से पिघली झुकी है।
सदा से यही भावना ले पली है ।
झुकना है सहना है करना है काम ,
बहते हो आंसू पर खुले ना जुबान।
दिल में घुटन हो ना चेहरे पर आए ।
दिल रो रहा हो फिर भी चेहरा मुस्कुराए!!
ऐसा क्या भगवान मिट्टी में डाला!!
ऐसा अनोखा भेद कर डाला ,
जहां हर अधिकार बराबरी का है
उस पर भी है पुरुषों का ही अधिकार।
अधिकार शब्द का मतलब पुरुष है
नारी का मतलब है सहना ना कहना।
कई बार मन ने खुद में ही झांका ,
कई बार खुद को गहरा कुरेदा।
क्या नारी का मतलब सिर्फ एक कठपुतली ??
बरछी यो से तीखे तानी के बीच
तूफानों के झोटों के बीच
सूख मुरझाई जड़े डगमगाई
मगर फिर भी ना जाने क्यों
फिर से खुद को बार-बार रोपा,
अपने आंसुओं से खुद को सीचा।
एक आशा का दीपक जलाया ,।फिर से हिलाकर उमंग को जगाया
फिर सोचा वो सुबह कभी तो आएगी
फिर चल पड़ी अपने जगमगाते इरादे मजबूत करके
आंसू पहुंचकर शक्ति बनके ।

निमिषा सिंघल

मीठी यादें

October 4, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तन्हा बैठे ना जाने कुछ सोच कर
आ जाती हंसी
कुछ बातें कुछ यादें कुछ गुज़रे लम्हे
अकेलेपन का फायदा उठाकर घेर लेते चुपचाप अचानक
जैसे कोई आंखों पर हाथ रखकर
सामने आकर मुस्कुराया हो
फिर कोई लम्हा
सितारों सा जगमगाया हो।
निमिषा सिंघल

सावन की पहली बारिश

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन की पहली बारिश जब
तपती सूखी सी धरती को,
पहली बूंदों से छू लेती ,
तब लगता जैसे हंसती हो
कमसिन सी नार अकेले में ।
साड़ी में लिपटी सोई हुई ,
जैसे चटक- मटक नखरैली नार ,
बूंदे पढ़ते ही मुस्काई ,
उन्मुक्त हंसी यू बिखराई।
सब हरा हुआ तन और ये मन ।
धरती ने ओढ़ी धानी चुनर

निमिषा सिंघल

वोटों की राजनीति

October 1, 2019 in Other

आरक्षण बनाम वोटों की राजनीति
__________________________
आरक्षण उन लोगो के लिये था जो पढना चाहते हैँ पर पैसे से लाचार है।
लेकिन अपने निजी स्वार्थ व वोटो के राजनीति के चलते नेताओ ने इसे जातिवाद का जामा पहनाकर, समान नागरिकता रखने वाले वर्ग को आरक्षण रूपी चादर पहनाकर उन्हे अनुसूचित जाति और जनजाति में तब्दील कर दिया और उन्हे एक तुच्छ वर्ग घोषित कर दिया।
भारतीय संविधान के अनुसार प्रतेक नागरिक को समान अधिकार प्राप्त है तो ये भेदभाव क्यु??
आरक्षण एक जाति विशेष को क्यों??प्रत्येक वर्ग के जरूरतमंदों को क्यो नही??
आरक्षण के नाम पर ऐसे वर्गो को तुच्छ,हींन भावना से ग्रसित क्यों बना दिया गया??

जिस विज्ञान,तकनीकी पर पूरे राष्ट्र के उन्नति छिपी है,उसी का बेड़ आ गर्क कयूं??
क्या ये राजनेता ऐसे चिकित्सको से इलाज़ कराना या बिल्डिंग बनवाना पसंद करेंगे??
कदापि नही,उनके लिए तो गोल्ड मेडलिस्ट,टॉपर्स ही बुलाये जाएंगे।
तो फिर हमारे भारत वर्ष ने क्या बिगाड़ा है!उसका बेड़ागर्क करने मैं क्यो जुटे हो???
काश की एक नियम होता की आरक्षित वर्ग को और आगे लाने के लिए राजनेताओं के सारे कामो का जिम्मा उन्ही का होता।तो अब तक हमारे देश के नेताओ की जनसंख्या भी काफी कम हो
चुकी होती।
प्रतिभाओं को आगे आने से ना रोके,
सूरज के समांन राष्ट्र को ग्रहण ना लगने दे।
आरक्षण उसी को दे जो वाकई में जरूरतमंद है

अगर आरक्षण नही चाहिए तो इस पोस्ट को आगे बढाये

….निमिषा सिंघल……

जागो

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक-एक मोती से एक,
फिर माला बन जाएगी
धीरे धीरे करो पहल तो क्रांति देश में आएगी।
याद करोगे बलिदानों को ,
देशभक्ति जागेगी।
आग हृदय में बुझ गई जो
फिर अंगारे बना दो।
देशवासियों जागो, जागो ,जागो ,जागो।
निमिषा सिंहल

बाढ़

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनहोनी यह कैसी है !
काली छाया जैसी है।

हंसते हुए फूल से चेहरे ,
मुरझा गए एक ही पल में ।
काल की कराल गति से,
विमुख हुए प्रिय जनों से।
अपशगुनी ये कैसी है ,
मौत के तांडव जैसी है।
हरी भरी थी घाटी जो ,
अटी पड़ी है लाशों से।
रुदन मजा है चारों ओर
दहशत देखो कैसी है।
हर तरफ बेबसी लाचारी,
हाय यह घटना कैसी है।
अपने प्रिय जनों से मिलने को,
कातर आंखें यह कैसी हैं।
अनहोनी यह कैसी है
काली छाया जैसी है
निमिषा सिंघल

आत्म साक्षात्कार

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आठों प्रहर के बाद ,सूर्य देव देखो उग रहे।
प्रहरो के चक्र में फंसे हुए से दिख रहे।
ऐसे ही मनुष्य को लगाने पड़ते फेरे हैं,
जन्म- मृत्यु चक्र से निकाले प्रभु के डेरे हैं।
कष्टों से मुक्ति पाना चाहो गर तो मार्ग हैं,
बिना शर्त प्रेम प्रभु से चाहो तो कुछ बात है,
पूर्णता से जुड़कर तुम भी पूर्ण बनते जाओगे।
प्रभु के अंश का कुछ हिस्सा बन जाओगे ,
वरना जीवन चक्र में फंसे ही खुद को पाओगे।
घूमती धारा यह देखो बोझ से भरी हुई,
फिर भी घूमती यहां पर रूई के फाए की तरह।
शक्ति छीपी है आसमा धरा में तुम यह जान लो,
साथ है हमारे हर पल गर जो तुम पहचान लो।
मार्ग से गुजरते समय अगर जो तुम यह ध्यान दो,
सूर्य चंद्र साथ चलते हर घड़ी यह मान लो।
ईश्वर है सदैव गर जो तुम पहचान लो,
आवाज दो पुकार लो, शक्ति को पहचान लो।
निमिषा सिंघल

मुझे उड़ने दो

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पाषाण से दरिया बनने दो ,
मुझे अपने हक में लड़ने दो।
मैं छुईमुई सी गुड़िया नहीं ,
मुझे लक्ष्मीबाई बनने दो ।
आजाद परिंदा बनने दो,
ना काटो पंख मुझे उड़ने दो।

निमिषा सिंघल

रंग महोत्सव भांग महोत्सव

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रंग के बहाने पी को आज छुआ जाए
सखी!
चलो भंग के बहाने कुछ बहक – बहक जाएं
सखी ! बहकने -महकने का आज लुफ्त उठाएं
सखी !
रंग के बहाने थोड़ा आज जिया जाए
सखी !
निमिषा सिंघल

आनंद नाद

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुश रहना हंसना तुम सीखो।
दुखों से भी लड़ना तुम सीखो ।
तूफानों को झेलना सीखो।
चट्टानों सा बनकर देखो ।
आकाश में उड़ते पंछी देखो।
कैसे नदिया बहती देखो।
काम करें सब अपना सीखो।
राहों से मंजिल पाना सीखो
हक के लिए लड़ना तुम सीखो।
आगे बढ़ते जाना सीखो।
हंसना और हंसाना सीखो ।
काम किसी के आकर देखो।
मुस्कुराहट आंखों में देखो।
गिर गिर कर संभालना सीखो।
नहीं किसी पर हंसना सीखो।
फिर देखो रंगीन है कितनी।
जिंदगानी हसीन है कितनी।
बातूनी नमकीन है कितनी।
निमिषा सिंघल

पूर्णता की खोज

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पूर्णता की खोज

संपूर्ण होने के लिए ,
पूर्ण होने के लिए।
नये मार्ग ढूंढता रहा
आगे ही मै बढ़ता रहा।

पर बाद में समझा ये शब्द।

मोक्ष प्राप्ति ही पूर्णता है,
जग में फैली बस तृष्णा है।

भटकाती है जो राहों से,
खींच लेती मोहक इशारों से,

कभी ममता के बंधन में बांधती हैं,
कभी समाज का डर दिखा साधती है।
छटपटाती ही रह जाती ,
आत्मा अनमनी।
पंछी कि जैसे पिंजरे में फंसी।

जिस दिन मुक्ति का बोध हुआ, पंछी बन फिर उड़ जाती है,
वो हाथ नहीं फिर आती है।

बंधनों से समाधि,
समाधि से मुक्ति की ओर मुड़ जाती है।

तब कहीं जाकर शायद पूर्णता को पाती है।

निमिषा सिंघल

भगवन तेरा खेल निराला

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

संगीत दिलों में बजता हैं जब,

धड़कने सुरीली हो जाती।

हर आहट एक मीठी दस्तक,

चेहरे पर हंसी खिला जाती।

खुद से बातें करते रहना,

खोए खोए से यूं रहना,

बात करें यदि तुमसे कोई,

क्या कहा??? पूछना पड़े दुबारा।

कैसा ये आत्मीय बंधन है!!

कैसा भगवन का खेल निराला।

उंगलियों पर नचा कर सबको,
खुद बैठ मजे से देखें तमाशा।

वाह रे भगवन!!

निमिषा सिंघल

जन्म जन्मांतर के रिश्ते

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन में मिले थे लोग बहुत,

कुछ छूट गए कुछ साथ चले।

कुछ से अद्भुत सा रिश्ता मिला,

कुछ ने अनसुलझे एहसास दिये।

कैसा आत्मीयता का बंधन था,

शायद पिछले जन्म का चंदन था।

जो महकता रहा महकाता रहा,

जिंदगी गुले- गुलजार बनाता रहा।

निमिषा सिंघल

रिश्ते

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी के सुरों में यदि तासीर चाहिए,

तो वफा ईमानदारी और बस प्यार चाहिए।

वरना सारे सुर ,
बेसुरे नजर आएंगे।

प्रेम को वो सौंदर्य पूर्ण …
समुंद्र सी गहराईया ना दे पाएंगे।

इंद्रधनुषी रंग भी… बदरंगे से लगेंगे।

रिश्तों के सभी रंग फीके से लगेंगे।

जिस लाल मूंगे की तलाश में हम गहराइयों में जाना चाहते हैं!!

वहां सुनसान रेगिस्तान ही पायेंगे।
जिंदगी फटे बांस की बांसुरी सी बज उठेगी,

जब रिश्ते अपनी -अपनी ढपली
अपना- अपना राग गुनगुनाएंगे।

निमिषा सिंघल

मेरी बूढ़ी नानी

October 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी बूढ़ी नानी

आंखों पर चश्मा ,
सन से सफेद बाल ,
सुंदरता की आज भी मिसाल।
कांपती सी आवाज,
थोड़ा कम सुनते से कान
लेकिन आज भी उनका व्यक्तित्व,
है बेमिसाल
प्यार और दुआएं बरसाती ,
हम सब पर साल दर साल।

गजब की हिम्मती,
आज भी नहीं रुकती,
चल पड़ती है हाल ।
उनकी कभी-कभी उखडती सांस देखकर
हम सब हो जाते बेहाल।
जीवन भर सेवा कार्य किया,
मरीजों को नया जीवन दिया, हृदय हैं उनका बड़ा ही विशाल। जीवन है उनका सबके लिए मिसाल ,
नानी मेरी बड़ी बेमिसाल ।

निमिषा सिंघल

महात्मा गांधी

September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

महात्मा गांधी
——————
🙈🙉🙊

बाहर से गंभीर धीर,👴
जज्बों से थे तूफानी।🌋

अंग्रेजों के पैर उखाड़ गए,
वो नाम था गांधी।🤓

अल्पाहारी, शाकाहारी, 🌿🌾
सत्य निष्ठ, अवतारी,👼

बैरिस्टर से साधु बन गए,
मानवता के पुजारी ।👤

आजादी के आंदोलन में थी,
उनकी भागीदारी ।👥👥👥👥

सत्य अहिंसा पथ पर चलना,
👣👣 माना जिम्मेदारी।

चंपारण ,खेड़ा, के नायक,
गांधी थेआंदोलनकारी ।👀

जेल भरो आंदोलन की ,
कर डाली थी तैयारी ।
👩‍👧‍👦👩‍👧‍👧👨‍👨‍👧‍👧👭👬👫👨‍👨‍👦‍👦👨‍👧‍👦👨‍👧‍👧👨‍👩‍👧

अपनी जान की परवाह ना की,
देश की ली जिम्मेदारी।🏋️

दांडी मार्च के महानायक ने,
दी थी गिरफ्तारी🥨

स्वदेशी वस्तुएं सभी थी ,
उन्हें बहुत ही प्यारी ।🏝️

असहयोग आंदोलन की भी,
आ गई थी अब बारी।
🔥🔥
दया दिलों में भरना,
इसमें भी थी हिस्सेदारी।
👧👦👩‍🎓👩

आजादी की अलख जगा कर ,
चेताये नर- नारी ।
🌋
चरखा चलाते ज्ञान बांटते,
देश पे थे बलिहारी ।,🇮🇳

सादा जीवन उच्च विचार,
गांधीजी धर्माचारी।👳

राष्ट्रपिता वो बापू थे,
धोती और सोटा धारी ।👣

अंग्रेजों को उडा गए ,
गांधी जी थे वो आंधी।🌪️🌀

निमिषा सिंघल🌞

बेचैनियां

September 25, 2019 in शेर-ओ-शायरी

बेचैनियां ,मदहोशियां आती रही,जाती रही ।
आवारगी सी इस दिल पर
छाती रही, गुनगुनाती रही,
हम नशे के पैमाने में….. डूबते- उभरते रहे,
यादें….. इस कदर दिल को कभी जख्म कभी मलहम लगाती रही।
निमिषा सिंघल

चलो शांति की ओर

September 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शांति की ओर ..
प्रकृति में खो जाओ,
मंत्रमुग्ध से हो जाओ ।
कुछ पल डूबे रहो जल में ,
बैरागी से बन जाओ।
तृष्णा त्यागो ,
चलो प्रेम की ओर ।
मन के कानों से,
बांसुरी सुनो।
चलो शांति की ओर…
निमिषा सिंघल

बेटियां

September 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटियां

रोशन हर घर जहां जन्म लेती हैं बेटियां 👩‍🎓

🧑होती हैं दो कुलों की रक्षक यह बेटियां 👩‍🔬

घर-भर की रौनक ये खिलखिलाती बेटियां👩‍🚒

भाई पर लुटाती जान भी ये बेटियां🧒👧

दो परिवारों के बीच सेतुबंध यह बेटियां🙆

कर देती अपना जीवन हवन ये बेटियां,🤦

धैर्य और सहनशक्ति की जीवित मूर्ति ये बेटियां 🤱

बनती है देश काल में मिसाल यह बेटियां
👩‍✈️👩‍🎨👩‍🔬👩‍🚀👩‍🚒👮🕵️👩‍🔧👩‍🍳👩‍🌾👩‍⚖️

देवी सा तेज लिए लक्ष्मी यह बेटियां 👩‍🚒

पापा की होती हैं परियां यह बेटियां 🧚

प्रेम और सम्मान की अधिकारिणी ये बेटिया 🤱

हर घर की रौनक यह प्रेममयी बेटियां👵👧👩‍🎓👩

नटखट शैतान बेहद प्यारी ये बेटियां
🙅💆🧞💃💃💃

निमिषा सिंघल👭👭👭👭

मां

September 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मां क्या-क्या दुख सहती है,
हर फरमाइश पूरी करती है ।

हर हुकुम बजाती रहती है,
खुद से बेपरवाह रहती।

बच्चों की चिंता करती है ,
अलार्म क्लॉक सी जगती है

अपने सपनों को छोड़ ती है
दिल को खुद-ब-खुद तोड़ती है।

आकाश निहारा करती है
पंछी बन उड़ जाना चाहती है।

अपने पंख खुद ही नौचती है।
दिल का रुख खुद ही मोड़ती है,

बच्चों की चिंता करती है
रातों को जागती रहती है।

हम सबको सुख देने के लिए,
वो चैन से ना सो पाती है।

मां ही आखिर वो शक्ति है,
भगवान से पहले आती है,
भगवान से पहले आती है।

निमिषा सिंघल

पाषाण युग

September 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पाषाण युग

दिखावे की संस्कृति ,
दिखावे का प्यार।
प्रचार पाने को ,
हर कोई तैयार।
कैसा यह संसार !
बदलता बातें पल पल
सच बन जाता झुठ
यहां हर कदम कदम पर
पत्थर से इंसान यहां,
हर घड़ी बनावट।

दुख में हों सब तल्लीन जहां
वहांनौटंकी की आहट ।

निमिषा सिंघल

इश्क़

September 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्क आंखों में डूबा रहता है,
रोम- रोम में रहता है।

लबों को छूकर जाता है ,
जग में तन्हा कर जाता है।

सरगोशी सी कर जाता है,
गुपचुप सी हंसी दिलाता है।

जाने क्या क्या कह जाता है
जग सतरंगी कर जाता है

निमिषा

कर्मयोग

September 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कर्म ही पूजा और न दूजा ,
किस्मत का दरवाजा।

किया कर्म तो सोई किस्मत का खुल जाए ताला।

भाग्य बदल कर रख दो अपना ,
कर्म करो और साथ लो अपना।

रेखाओं पर गर खुद को छोड़ा तो,
भाग्य.. फिर सो जाएगा,
कितना भी उसे मनाओगे
तुमसे रूठ वो
जाएगा।
करो भरोसा रब पर केवल,
भवसागर तर जाएगा।
कैसी भी विषम परिस्थितियों में,
संबल फिर मिल जाएगा।
कर्मयोगी हरि नाम का जादू ,
पार उतार ले जाएगा।

निमिषा सिंघल

दंगे

September 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात के छम सन्नाटे में,
एक भय की आहट है।
घबराहट की दस्तक है
कोई है का एहसास है
कल क्या होगा की सोच है ।

बीते कल जो जिंदगानिया शां त थी,
आज उनमें एक जलजला सा समाया है।
ऐसा क्यों है ????
हजारों जिंदगियां एक ही झटके में तबाह हो जाएंगी ।हजारों हंसते खेलते परिवारों के दीपक ,
दंगे की आग में झोंक दिए जाएंगे!!!
क्या यही है हमारी नई पीढ़ी बुद्धि हीन चेतना शून्य????
जिसके कंधों पर अनेकता में एकता वाले भारत देश का बोझ समाया है।
शर्म सार है यह धरती मां!!!
जिसने ऐसे बुद्धिहीनों को जन्म देकर ,
अपना बोझ ही बढ़ाया है

निमिषा सिंघल

कविता

September 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुझ में पाया था प्रेम बहुत ,
सार्थक लगता था जीवन कुछ,
आंखों में प्रेम की बारिश थी,
कुछ कही- अनकही गुजारिश थी ।
मन भीग गया तन भीग गया,
ऐसी वो सुहानी बारिश थी।
निमिषा सिंघल

गुजारिश

September 19, 2019 in शेर-ओ-शायरी

बीते लम्हों की बारिश है ,
इन आंखों से गुजारिश है ,
यह खुली किताब ना बन जाए ,
मुझको रुसवा ना कर जाए
निमिषा सिंघल

तुम नदिया सी

September 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम नदिया सी. . ..
मैं वृक्ष हरा..
तुम जलधारा,
मैं तरस रहा।
तू मस्त मगन लहराती सी,
बहती जाती इठलाती सी।
गहरी कत्थई सी,
आंखों में
अपना ही अक्स ढूंढता हूं ।
खुद को ना पाकर ,
आंखों में
विचलित सा
मन को पाता हूं
इक खलिश सी दिल में दौड़ती है,
जब पत्थर सा तुम्हें पाता हूं ।

निमिषा सिंघल

आवाज़ सुनो

September 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिर कांप उठी धरती माता ,
अब और नहीं बस और नहीं ।
कितना कुछ मुझ पर लादोगे,
हूं दबी घुटी पर और नहीं।
सांसे लेना दुश्वार हुआ,
कोने कोने पर वार हुआ,
हर जगह तुम्हारी मनमानी, मेरा वजूद बाकी ना रहा ।
सोई थी बस अब जागी हूं ,
लो देख तमाशा और नया,
कभी बाढ़ बनके डर आऊंगी ,
कभी धरती को दहलाऊंगी ।
जब गुस्सा मेरा फूटेगा,
जवालामुखी आग उगलेगा।
ऐ इंसा मुझको भी समझो,
ऐसे ही यूं मनमानी ना करो।
वरना एक दिन पछताओगे फिर भूल सुधार न पाओगे निमिषा सिंघल

आवाज़ सुनो

September 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिर कांप उठी धरती माता ,
अब और नहीं बस और नहीं ।
कितना कुछ मुझ पर लादोगे,
हूं दबी घुटी पर और नहीं।
सांसे लेना दुश्वार हुआ,
कोने कोने पर वार हुआ,
हर जगह तुम्हारी मनमानी, मेरा वजूद बाकी ना रहा ।
सोई थी बस अब जागी हूं ,
लो देख तमाशा और नया,
कभी बाढ़ बनके डर आऊंगी ,
कभी धरती को दहलाऊंगी ।
जब गुस्सा मेरा फूटेगा,
जवालामुखी आग उगलेगा।
ऐ इंसा मुझको भी समझो,
ऐसे ही यूं मनमानी ना करो।
वरना एक दिन पछताओगे फिर भूल सुधार न पाओगे निमिषा सिंघल

रिश्ते

September 18, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्तो की क्या है परिभाषा ?
क्या मान है? क्या है मर्यादा ?
बीती बातें युग बीत चले,
रिश्ते मानों को भी खो चले।
रिश्तो में ना अब वह सच्चाई है ।
ना पहले जैसी गहराई है।
जीवन ही पूरा बनावट है ।
रिश्ते तो खाली सजावट है ।
महज दिखावा रिश्तो का ,
लो देख तमाशा रिश्तों का।
निमिषा सिंघल

प्रधानमंत्री जी नरेंद्र मोदी जी की 69 वे जन्मदिवस पर कविता

September 17, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

आसमान में उगता सूरज दिखता है ,
स्वर्णिम भारत का सपना,
फिर सच्चा होता दिखता है।
हुकुमत शाही अफसरों ने त्यागी,
कर्म योग की अब है बारी,
सरकारी तंत्र सुधरता दिखता है ।
स्वर्णिम भारत का सपना फिर सच्चा होता दिखता है ।
स्वच्छता की अलख जगाई ,
योग की महिमा समझाई,
स्वच्छ, स्वस्थ यह देश मेरा अब दिखता है,
स्वर्णिम भारत का सपना ,
फिर सच्चा होता दिखता है ।
भारत जग में आगे बढ़ता दिखता है,
सच में अब तो देश बदलता दिखता है।
स्वर्णिम भारत का सपना फिर सच्चा होता दिखता है ।

निमिषा सिंघल

कुछ पल अपने लिए

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब कभी ,अकेले बैठकर ,
किसी पुरानी बात पर मुस्कुराएंगे।
तब आप ,अपनी उन्मुक्त हंसी पर,
खुद ही चौक जाएंगे।
दिले किताब से धूल झाड़ कर तो देखिए ,
बस एक पन्ना
जरा पढ़ कर तो देख लीजिए ।
बचपन से जवानी की कहानी निकल पड़ेगी ,
फिर एक याद ,
ताजी हवा सी महकने लगेगी।
चलचित्र सारे आंखों में तैर जाएंगे।
जब आप कुछ पल
सिर्फ अपने लिए बिताएंगे।
निमिषा सिंघल

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