विरासत

September 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

विरासत
———-
दादा का बजता ग्रामोफोन ,कानों में गूंजा करता है ।
वह आज भी घूमा करता है आंखों के रोशन दानों में,
संगीत की धुन सुनते सुनते ,
कब समा गया. .. संगीत मधुर… इन कानों में ,
ना पता चला।

गीतों का मधुर कैसेट प्लेयर ,
जो रोज बजाया करते थे ,
पापा गुनगुनाया करते थे,

परेशानियों में कैसे हंसना है ,कब सीख गए?
ना पता चला।
कविता लेखन था मां का शौक,
उनकी कविताएं पड पड कर ,
लेखनी कब हाथों में चली ,
ना पता चला।

कलात्मकता व्यवहार में थी,
रोजाना के रोजगार में थी,
कब उतर गई व्यक्तित्व में ,
ना पता चला।
दादा दादी का मधुर लाड,
थोड़ा सा गुस्सा अधिक प्यार,
कब आत्मसात किया ,
ना पता चला ।
खूबसूरत सी विरासत ,
कब बन गई थी पहचान मेरी, ना पता चला।

निमिषा सिंघल

विरासत

September 15, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

दादा का बजता ग्रामोफोन ,कानों में गूंजा करता है ।
वह आज भी घूमा करता है आंखों के रोशन दानों में, संगीत की धुन सुनते सुनते ,
कब समा गया. .. संगीत मधुर… इन कानों में ,
ना पता चला।
गीतों का मधुर कैसेट प्लेयर ,
जो रोज बजाया करते थे ,
पापा गुनगुनाया करते थे,
परेशानियों में कैसे हंसना है ,कब सीख गए?
ना पता चला।
कलात्मकता व्यवहार में थी,
रोजाना के रोजगार में थी,
कब उतर गई व्यक्तित्व में ,
ना पता चला
दादा दादी का मधुर लाड,
थोड़ा सा गुस्सा अधिक प्यार,
कब आत्मसात किया ना पता चला ।
खूबसूरत सी विरासत ,
जो बन गई थी पहचान मेरी, ना पता चला।
निमिषा सिंघल

आधुनिक नारी

September 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सशक्त है कमजोर नहीं,
पत्थर है केवल मोम नहीं।
विद्वती है बुद्धि हीन नहीं ,
बेड़ियों में अब वो जकड़ी नहीं।
आधुनिक है ,संकीर्ण नहीं,
संस्कृति संस्कारों से हीन नहीं।

हक पाना लड़ना जानती हैं
दिल की आवाज़ पहचानती है।
गुमराह करना आसान नहीं,
वह स्त्री है सामान नहीं।

शक्ति स्वरूपा , वो तेजोंमयी,
ममता मयी मगर दुखियारी नहीं।

सृष्टि का भार उठाए खड़ी ,
आंखों में पहले सा पानी नहीं।
हर क्षेत्र में अब वो आगे हैं ,
बीती हुई कोई कहानी नहीं।

निमिषा सिंघल

Hindi divas

September 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

राष्ट्रभाषा हिंदी
—————–
है शान मेरी, पहचान मेरी ,
देवो के स्वर सी,
ज्ञानमयी।

हम जन्मे है इस भूमि पर ,
जहां देवनागरी बोली है।
कई भाषाओं की हमजोली है।

जग में देती है मान हमें ,
हिंदी भाषी सम्मान हमें ।
कहला देती इस दुनिया में,
भारत माता के लाल हमें।

अपनी भाषा पर गर्व हमें,
बसता जिसमें संगीत मधुर ,
साजो की बजती धुन सी है ।
घुंघरू की छनक सी मोहक है,
माथे पर शोभित बिंदी है।

हां !भाषा हमारी हिंदी है ।
राष्ट्रभाषा हमारी हिंदी है।

निमिषा सिंघल

जीवन चक्र

September 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या है जीवन !!
सोचो तो उलझ सी जाती हूं ।
जितना सुलझाना चाहती हूं ,
ओर -छोर नहीं पा पाती हूं।
बालक का जन्म,
घर में रौनक, घर किलकारियों से गूंज मान।
नटखट सी शरारते, क्या यही है जीने का सुख??
बालक हुआ किशोर,
मन जानने को बेताब,बेकल।
हर चीज में है उत्सुकता संसार जानने का मन ।
किशोर से युवा हुए उल्लास से भरा ये मन,
हर मुश्किल से मुश्किल को जीत ही लेने की लगन।
युवा से अधेड़ हुए जीवन है चुनौतियों भरा ,
कुछ गम भी यहां हैं अभी,
कुछ खुशियां भी बाकी अभी। बोझ के तले दबा,
थका हुआ इंसान यहां ।
पीछे जो जवानी बीत चली,
खोने का बड़ा सदमा है यहां ।
लो देखो बुढ़ापा भी आ ही गया, क्या खोया क्या पाया हमने।
तिनके तिनके जोड़ जोड़ कर जो आशियाना बनाया हमने उसकी बंटवारे भी देख लिए बच्चे बंजारे भी देख लिए ।अपने बेगाने भी देख लिए ,बस ऊब चला मन जीवन से,
फिर भी प्यारा है यह जीवन ,
दिल चाहता है अभी जी ले कुछ ।
शायद मिल जाए सच्चा सुख। मन उलझा ही रहता जग चक्र में,
डूब गया एक दिन मृत्यु भंवर में।
निमिषा सिंघल

यादें

September 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

साज़
……..
बुझती… बंद होती.. यादो की मोमबत्तीयाँ….
दे जाती हैं याद… आज भी मधुरिमा।
याद रह जाते हैं …कुछ शब्द…गूंज बनके…
कहकहे हवाओं में गूँजते हैं साज़ बनके।।
निमिषा
…….।

भटके राही

September 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

भटके राही

क्यू भटके हो??क्यू बिखरे हो??
क्यू बहके हो??क्यू खोये हो??
टुकङे जो देश के कर दोगे,
कत्ल उम्मीदो का कर दोगे।
बरबादी देश की करके तुम,
ममता की छाया क्या पाओगे??
दो जख़ की आग मे जल कर तुम,
जीते,जी हीे मर जाओगे।
गर हो ना सके,इस माँ के तुम,
तो लानत ऐसे जीवन पर।
आजा़दी!आजा़दी!आजा़दी!

मतलब भी क्या? तुम जानोगे,
तुमको जो मिली आजा़द हवा़,
मूल्य क्या तुम पहचानोगे??

इस प्रेम मयी धरती माँ पर,
क्यू जह़र खुरानी करते हो।
चन्द टुकङो की खातिर तुम क्यू??
गद्दार हैं ये क्यू सुनते हो??
दुश्मन जो चैन अमन के हैं,
मोहरे क्यू उनके बनते हो?

कुछ चैन ,अमन के दुश्मन को
शातीं,खुशियां ना भायी थी।
टुकङो मे देश को बांट गये,
बरबादी की कुछ स्याही है।
उन घावो को लहू देने,
कुछ मूर्ख युवा आये हैं।

जो बहके हैं,बहकायेहैं।
गद्दारो के भङकाये हैं।

जागो जागो इंसान बनो!
अच्छे और बुरे की पहचान करो।
वरना पछताना पाओगे,
फिर वापिस ना आ पाओगे
फिर वापिस ना…….

निमिषा सिघंल

मां

September 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मातृ दिवस
::::::::::::::::
माँ जैसा …कोई ना जग में,
तोल तराजू ..रख सब इसमें।
तब भी पलड़ा …पार ना आये,
ममता की ..कीमत ना पाये।
ममता का हैं ..मोल निराला,
एक हँसी.. जग वारा सारा.
सुंदर रिश्ता.. माँ बच्चो का,
हँसी, रूलाई ,भोलेपन का।

मीठी झिड़की ..आँखे दिखाना,
बात -बात मे फिर धमकाना।
पीछे से धीरे मुस्काना,
पापा का फिर डर दिखाना ..
खनखनाती ..खुशियों भरा ये,
मधुर तरंगो से है सजा ये।
आओ फिर से प्यार जताये,
मातृदिवस हम फिर से मनाये।
प्यारी माँ का मान बढ़ाये,
ममता को फिर लाढ़ जताये,
मातृ दिवस हम फिर से मनाये।

निमिषा सिंघल
:::::::::::::::::::::

शमा और लौ

September 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शमा और लौ
———-
नवयोवना शमा और चमकती लौ
एक साथ जीवन,लेकिन कहानी दो।
लौ अपनी तेजी बढ़ाती गई,
शमा को हर घड़ी दबाती गई।
साथ तो दिया!
पर हाय री धोखेबाज,
शमा को ,
तिल-तिल जलाती गई।
खुद नवयौवना सी च ह च हा ती रही
जिस्म उसका तमक कर गलाती गई।
आखरी सांस तक साथ तो दिया
लाश के ढेर पर मुस्कुराती रही
ये कैसा याराना!!
ये कैसा अज़ीब सा रिश्ता था!!
हंसते- हंसते कब वो शमा की गोद में समा गई
और सो गई हमेशा के लिए, जान भी ना सकी।

निमिषा सिंघल

शहीदों के घर होली

September 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली आई रे, आई रे ,होली आई रे।
यादों की धूल उड़ाती सी ,
खूनी मंजर दोहराती सी,
चहरों की फीकी रंगत पर रंगों का जामा चढ़ाती सी फिर देखो होली आई है।
मन मस्त नहीं उदासी है, अखियां दर्शन की प्यासी है ,
चंद सांसों की मोहताजी है ,
जख्मों की यादें ताजी हैं ।
गुजिया मठरी रंगीन हुई, आंखें भी सब रंगीन हुईं,
कड़वी यादें शमशीर हुई ,
खुशियां धरती में लीन हुई,
उन सूनी- सूनी अंखियों में,
बीती होली रंगीन हुई ।
कुछ हंसी ठिठोली हवाओं में,
कानों में रस सा घोल गई ।
हे भगवन ! सूनी सी अंखियों में,
कुछ होली के रंग भर देना,
दुख सारे तुम बस हर लेना,
मुस्कान मधुर तुम दे देना ,मुस्कान मधुर तुम दे देना ।
निमिषा सिंघल

शहीदों को नमन ( पुलवामा अटैक 14 फरवरी 2019)

September 13, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम लाल देश के गर्व हमें,
शौर्य गाथा हम गाएंगे।
तुमने जो लहू बहाया है ,
इस देश का मान बचाया है,
घर-घर में अलख जगाया है ।
खाली ना उसे जाने देंगे ,
साथी हम कदम बढ़ाएंगे ।

दुनिया के मानचित्र से हम ,
आतंक का नामोनिशान बनी,
भूमि को बंजर कर देंगे,
एक जवान के बदले में अंगारे बन कर बरसेंगे ।
बुजदिल आतंकी खेमों में बिजली बन कर हम दोडेंगे ।
बुजदिल कायर आतंकियों के,
लाशों के ढेर लगा देंगे।
जलते उफनते जज्बातों से पानी में आग लगा देंगे।
है कसम हमें उन वीरों की ,
उनके बिलखते परिवारों की,
हर संभव मदद करेंगे हम,
कर्तव्यों से ना डिगेंगे हम।
रक्षक थे जो अब मौन है वो,
उन की चुप्पी हम तोड़ेंगे ।
उनके अधूरे कार्यो को पूरा करके छोड़ेंगे ,
हत्या ही जिनका परम धर्म उन्हें उसी धर्म से मारेंगे,
अब शांति से तो ना बात बने उन्हें मौत के घाट
उतारेंगे उन्हें मौत के घाट उतारेंगे

निमिषा सिंघल

जिंदगी

September 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी की तेज रफ्तार गाड़ी ,
बिना रुके चलती चली जाती है।
दुख सुख के स्टेशनों पर ,
नहीं एक क्षण भी गवाती हैं।
जब देख खुशी थमना चाहा ,
दुख देख वहां से भागना चाहा ,
रफ्तार ना अपनी बदली तक,
यूं ही चलती रही आगे ब ढ़ चढ़ ।
सुनकर भी हाहाकारों को
सुनकर खुशी के नगाडों को
पलके गीली तो करती है
होंठो पे हंसी भी खिलती है।
आंखों कानों पे हाथ धरे
वो दौडी_ दोडी जाती है।
आवाज़ें दे थक जाते हम
पीछे दौड़ नहीं जा पाते हम।
जब रुक जाती सांसे अपनी,
तब ठहरती है ये जिन्दगी।
निमिषा सिंघल

मेरी मां

September 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

निस्वार्थ प्रेम की सूरत हो ,
भगवान की कोई मूरत हो ,
बरसे आंखों में जिसके दुआ ,आशीर्वादो से भरा कुंआ। सूखी धरती में वर्षा हो ,
तुम तेज धूप में छाया हो ।
तूफानों में डूबती नैया की माता तुम ही पतवार भी हो।
मां की गोदी में सिर रखकर चिंता छूमंतर हो जाती ,
बच्चों पर मुसीबत आने पर भगवान से भी मां टकराती।

बच्चों की भोली बातों पर जाती बलिहारी प्यारी मां ,
रास्ते में पड़े हुए कांटों को आंचल से झढ़ाती प्यारी मां ।जब भी परेशान हो घबराते ,
सपने में दिलासा देती मां।
हर दे जाती हर आफत का बाहों में हमें झूला ती मां।
जब चोट लगे मन घबराए और नींद हमारी उड़ जाए,
थपकी दे हमें सुलाती मां ,
खुद पूरी रात ना सोती मां ।
बच्चों को नजर ना लग जाए काला टीका लगा देती मां
बच्चे यदि गुस्सा हो जाए गुदगुदी से उन्हें हंसाती मां ।
क्या है जीवन? क्या है दर्शन? क्या अच्छा क्या बुरा यहां !सब ज्ञान हमें दे देती मां प्यारी सीखें दे देती मां ।
मां के इस अनमोल प्रेम का मोल नहीं दे पाऊंगी चाहे जितने भी जीवन पालू यह ऋण चुका ना पाऊंगी,। यह ऋण चुका ना पाऊंगी
निमिषा सिंघल

अस्तित्व की खोज

September 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेकल ,बेचैन, गुमनाम सा कोई है ,
जो मुझ में तुझ में और हम सभी में हैं।
चाहता है जो मिल जाए एक पहचान ,
जाने मुझे सभी लोग सिर्फ नाम से मेरे।
प्यासी फिरी पहचान की मदिरा की खातिर ,
ताउम्र
भटकी अस्तित्व की खोज में,
ज्ञान का जो तीसरा फिर नेत्र खुल गया ,
भगवान के जो ध्यान में तन मन यह हो गया ,
सारी पहचाने होने पाने का दुख तमाम खो गया।
निमिषा सिंघल

बाल कविता

September 9, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा बेटा
———–
गोलू मोलू गप्पा सा,
गुस्सा जैसे हलवा सा, अकड़ -मकड़ दिखलाता है ,
हंसाओ तो सब भूल जाता है।
लड़ने को हरदम तैयार ,
बहन को करता बहुत प्यार
लेकिन अकड़ दिखाता है,
रोब खूब जमाता है।
प्यार से सब कुछ देता है गुस्से में सब लेता है।
हंसता रहता हरदम ऐसे फूल हंसा हो खिलके जैसे ।ख बातें करता बड़ी-बड़ी परीक्षा लेता घड़ी-घड़ी ,
अच्छा मम्मी जरा बताओ क्या है मतलब यह समझाओ ।
सुना-सुना कर गपोड़ी बातें,
हसाता हरदम दिन हो या रातें।
ऐसा मेरा बेटा है कहो जरा यह कैसा है दोस्त बनाने में है न्यारा,
मम्मी पापा का का है दुलारा।
निमिषा सिंघल

बाल गीत

September 9, 2019 in गीत

तूफानों से लड़ना होगा ,
कांटों पर भी चलना होगा
फूलों सा महकना होगा,
सूरज का चमकना होगा,
दुनिया को बदलना होगा ,
जग से आगे चलना होगा ।

१.भ्रष्टाचार घोटालों ने हम सबको पीछे फेंक दिया,
अगवा और डकैती ने दुख चैन सभी का लूट लिया।
भ्रष्टाचार मिटाना होगा ,
शांति मंत्र सिखाना होगा ,
चोर,लुटेरे, डाकू सब का तांडव हमें मिटाना होगा।

२. आन तिरंगा मान तिरंगा समझो तो है जान तिरंगा ,
लहर -लहर लहराना होगा ,
परचम फिर फहराना होगा ।
“बीता काल बड़ा था मुश्किल ,
ना धरती अंबर पर हक”
भूल गए जो बलिदानों को ,
उनको याद दिलाना होगा ,
बलिदानों के अंगारों फिर से हमें सुलगाना होगा।

३. साक्षरता की बन मशाल,
जग को फिर आज सिखाना होगा,
स्वच्छ रहो आबाद रहो ,
यह ज्ञान का दीप जलाना होगा ।
देश प्रेम में जलना होगा,
हमको कुंदन बनना होगा ,
तूफानों से लड़ना होगा ,
कांटो पे भी चलना होगा।
फूलों सा महकना होगा, सूरज सा चमकना होगा ।
दुनिया को बदलना होगा, जग से आगे चलना होगा ।

निमिषा सिंघल

बाल गीत

September 9, 2019 in गीत

तूफानों से लड़ना होगा ,
कांटों पर भी चलना होगा
फूलों सा महकना होगा,
सूरज का चमकना होगा,
दुनिया को बदलना होगा ,
जब से आगे चलना होगा ।

१.भ्रष्टाचार घोटालों ने हम सबको पीछे फेंक दिया,
अगवा और डकैती ने दुख चैन सभी का लूट लिया।
भ्रष्टाचार मिटाना होगा ,
शांति मंत्र सिखाना होगा ,
चोर,लुटेरे, डाकू सब का तांडव हमें मिटाना होगा।

२. आन तिरंगा मान तिरंगा समझो तो है जान तिरंगा ,
लहर -लहर लहराना होगा ,
परचम फिर फहराना होगा ।
“बीता काल बड़ा था मुश्किल ,
ना धरती अंबर पर हक”
भूल गए जो बलिदानों को ,
उनको याद दिलाना होगा ,
बलिदानों की अंगारों को फिर से हमें सुलगाना होगा।

३. साक्षरता की बन मशाल,
जग को फिर आज सिखाना होगा,
स्वच्छ रहो आबाद रहो ,
यह ज्ञान का दीप जलाना होगा ।
देश प्रेम में जानना होगा हमको कुंदन बनना होगा ,
तूफानों से लड़ना होगा ,
कांटो पे भी चलना होगा।
फूलों सा महकना होगा, सूरज सा चमकना होगा ।
दुनिया को बदलना होगा, जब से आगे चलना होगा ।

निमिषा सिंघल

बाल गीत

September 9, 2019 in गीत

तूफानों से लड़ना होगा ,
कांटों पर भी चलना होगा
फूलों सा महकना होगा,
सूरज का चमकना होगा,
दुनिया को बदलना होगा ,
जब से आगे चलना होगा ।

१.भ्रष्टाचार घोटालों ने हम सबको पीछे फेंक दिया,
अगवा और डकैती ने दुख चैन सभी का लूट लिया।
भ्रष्टाचार मिटाना होगा ,
शांति मंत्र सिखाना होगा ,
चोर,लुटेरे, डाकू सब का तांडव हमें मिटाना होगा।

२. आन तिरंगा मान तिरंगा समझो तो है जान तिरंगा ,
लहर -लहर लहराना होगा ,
परचम फिर फहराना होगा ।
“बीता काल बड़ा था मुश्किल ,
ना धरती अंबर पर हक”
भूल गए जो बलिदानों को ,
उनको याद दिलाना होगा ,
बलिदानों की अंगारों को फिर से हमें लगाना होगा।

३. साक्षरता की बन मशाल,
जग को फिर आज सिखाना होगा,
स्वच्छ रहो आबाद रहो ,
यह ज्ञान का दीप जलाना होगा ।
देश प्रेम में जानना होगा हमको कुंदन बनना होगा ,
तूफानों से लड़ना होगा ,
कांटो पे भी चलना होगा।
फूलों सा महकना होगा, सूरज सा चमकना होगा ।
दुनिया को बदलना होगा, जब से आगे चलना होगा ।

निमिषा सिंघल

गरीबी

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कूड़े की किसी ढेर में खोया हुआ बचपन ।
भुट्टो को बेचने के लिए दौड़ता बचपन
कोयले की खदानों में डूबता हुआ बचपन
आटे की चक्की ओं में पिसता हुआ बचपन ।
बर्तन कहीं पर मांजता मेला हुआ बचपन। झाड़ू कहीं बुहारता मैला हुआ बचपन।
कालीन कहीं बुनता छी दता हुआ बचपन,
कपड़ों के ढेर में कहीं छिपता हुआ बचपन।
फसलों को काट – काट ढेरी बन चुका बचपन।
स्टेशनों पर चीज भेजता बिकता हुआ बचपन।
चाहा था उसने भी मिले उसको भी एक खुशी पर हाय निगलता गया हर खुशी को बचपन ।
निमिषा सिंघल

लाडो रानी

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

घर घर की रौनक लाडो रानी ,
जिद करके सुनती जो रोज कहानी।
चिपकती है मुझसे जैसे फेविकोल ,
आंखें घुमा ती है वहगोल -गोल ।
डांट लगाते पापा हंस जाते,
चाहते तब भी डांट ना पाते ।
सोनी ,मट्टो, हंसिनी ,मानो मन करता रोज नए नामों से पुकारो ।
भाई की लाडली लेकिन लड़ा की ,
हक की लड़ाई में दमखम दिखाती ।
छेड़ती भैया को हंसती वो जाती,
झगड़ा होने पर शिकायत लगाती ।
डांट पड़वाकर ही चै न पाती।
वरना टप टप आंसू टपकाती।
मम्मा पापा की है जो दुलारी ,
नाजुक भोली वह फूलकुमारी ।
इत्तु सी हंसी भोली सी मुस्कान ,
खिलखिला हट पर उसकी वारु यह जहान।
करती हूं प्रार्थना हे !भगवान खुशियों से रखना उसे सदा धनवान।
दुख का साया भी उसे छूकर ना जाए,
उसके पहले वह मुझसे टकराए।
बढ़ती ही रहे हंसी की खनखनाहट खुशियां दे हमेशा दरवाजे पर दस्तक ।
निमिषा सिंघल

कि जनता आती है

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

भोली जनता को बहुत ठगा ,
सब ठग विद्या बिसरा देंगे।
झूठे वादे भी किए बहुत,
सच का आइना दिखा देंगे।
जनता ही मिलकर न्याय करे,
काले कारनामों की सुनवाई करें।
अपनी करनी जाने वह सब,
तब ही तो मिलकर एक हुए।
दुश्मनी भूल सब हुए खडे ,
बेशर्मी से अब भी है अडे।
भाषा भी उल जलूल हुई ,
घबराहट का यह आलम है।
नेताजी माफ करो,
कचरा सब साफ करो कि जनता आती हैं।
निमिषा सिंघल

गुरु शिष्य

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नटखट नन्हेचुलबुल पांडे ,
भोली बातों से जो रिझाते ,अक ड दिखा के डर से भोले बन जाते।
डांटने वाले आंखें दिखाते मन ही मन मंद मंद मुस्कुराते,
और कभी हंसी रोकते रोकते फट पड़ती हंसी के ठहाके लगाते ।
बेहद प्यारे चटपटे करारे पटाखे। गाल है जैसे फूल ऐसे गुब्बारे
लाड़ लड़ाते अपना बनाते शहद में डुबोकर बातें बनाते नन्ही नन्ही छोटी मोटी लड़ाई बात-बात में जो अकड़ दिखाई ।
दिनभर फैसलों में बीत जाता समय जब गुरु के समक्ष अदालत लगाते ।
मीठी सी झीड़की जो बस डर ही जाते,
तुरंत आपस में हाथ मिलाते सॉरी मैम कहकर आंखे झुकाते।
बेहद ही प्यारी नहीं कोई जोड,
गुरु शिष्य की जोड़ी बड़ी
निमिषा सिंघल

दोस्ती

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह दोस्ती अनमोल है बेजोड़ है यारों सुनो,
तोहफा है भगवान का यारों सुनो,
दोस्ती हसीन है महजबीं है यारों सुनो।
बांधी हुई एक डोर है यारों सुनो।
गमो को पीछे छोड़ दें है वो दवा यारों सुनो।
दुख दर्द को जो दे भुला यारों सुनो
रोशन जहां उन सब का है एक दोस्त भी जो सच्चा है ,
यारों सुनो।

निमिषा सिंघल

मौन संवेदना

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे नैनों में मेरे नैनों से कल कुछ कहा था ,
तुम्हें याद है !!
कि भूल गए तुम !
वह गहरी बात जो शायद तुम जुबां से ना कह पाते ,
समुंद्र से गहरे मन को बिधतै, नाजाने कौन सा पथरीला रास्ता पार करके ,
कैसे पहुंच गए सात तालो से बंद उस मन मंदिर में !
और एक दीप भी जला आए, चुपचाप अचानक ,
नैनो ही नैनो में एक ग्रंथ की रचना हुई प्रकृति मौन थी धरा अचंभित ।
गगन चमत्कृत सा देख रहा था ,
पूरा ब्रह्मांड साक्षी था
पर जुबान पर ताला था ऐसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं था ।हलचल हलचल जो शांत होती गई ।मौन होहोई चुप्पी साधे
क्योंकि अब मन मंदिर में नहीं जुबां पर ताला था ।
निमिषा सिं घल

वहशी समाज

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोचा था क्या हम सब ने!
ऐसा रोगी समाज ।
हर दूसरा चेहरा जैसे घिनौना आज ,
लगता कि जैसे हो गए मानसिक रोगी,
दहशत की बोलती है अब हर जगह तूती।
हर कोई आज जग में ,
अस्मत का भूखा बैठा ।
गिद्ध सी निगाहें जैसे एक्स-रे करेगा ,
मां-बाप गुरु भाई सब हो गए कसाई,
इंटरनेट व मोबाइल नहीं असली प्रलय मचाई।
लगता है बाढ़ राज्यों में नहीं पूरे देश में है आई ।
राक्षसों की पूरी फौज को अपने साथ बहाकर लाई। निमिषा सिंह

आह्ववाहन

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

देश वासियों जागो, जागो जागो जागो,
इतने बलिदानों से आजादी जो पाई,
मूल्य उसका पहचानो,
जागो,जागो,जागो।
बीत गया जो काल कठिन था,।
मुश्किल था रहना जीना।
अपनी नहीं थी धरती हमारी,
अपना नहीं था ये आसमां।
बलिदानों के बल पर पाई,
आजादी की सांसे।
मूल्य उसका पहचानो,
जागो जागो जागो।
निमिषा सिंहल

विधाता

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शक्ति जो है विधाता ,
फिर खेल है रचाए ।
कल तक थी,नदियां सूखी ,
आज बाढ़ बन डराए।
कुछ गाव ,कस्बे डूबे , कुछ जूझ रहे अभी भी।
पसरा है उनकी आंखों में मौत का सन्नाटा।
कुछ लोग लेते आनंद कुछ बन गए तमाशा ,
कैसा प्रकृति तेरा यह खेल है निराला।
इंसान जब भी चाहा भगवान बन के देखें,
उत्पत्ति खुद ही कर ले,
वह बस में मौत कर ले।
तब तक प्रलय मची है,
भगवान ने जताया।
एक शक्ति है विधाता ,
जिसका नहीं कोई सानी

निमिषा सिघल

प्रेम

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम
——
एक उलझन एक तड़पन,
एक मीठी सी आग है ये।
दो दिलों के बीच सुलगती है,
चाहत का आगाज है ये।
हर शय में लगता है वो ही हैं,
हर पल उनकी आवाज सी है।
मेरे दिल में उनकी दस्तक है,
हर धड़कन पर एक छाप सी है।
लगता कि मिलने आओ तुम,
या फिर से हमें बुलाओ तुम ।
भर लो यु अपनी बाहों में ,
कि सारा जहां भुलाओ तुम,
फिर हमें छोड़ ना जाओ तुम ,
फिर हमें छोड़ ना जाओ तुम
निमिषा सिंघल

अनहोनी

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनहोनी
———–
अनहोनी यह कैसी है ,
काली छाया जैसी है ।
हंसते हुए फूल से चेहरे ,
मुरझा गए एक ही पल में ।
काल की कराल गति से विमुख हुए प्रिय जनों से ,
अपशकुनी यह कैसी है ,
मौत के तांडव जैसी है।
हरी भरी थी घाटी जो,
अटी पड़ी है लाशों से ,
रुदन मचा है चारों ओर ,
दहशत देखो कैसी है।
हर तरफ बेबसी ,लाचारी ,
हाय यह घटना कैसी है ।
अपने प्रिय जनों से मिलने को, कातर आंखें ये कैसी हैं।

निमिषा सिंघल

प्राकृतिक आपदा

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक व्यक्ति की व्यथा
————————–
बिखरे टूटे सपने लेकर ,
सब कुछ खोकर बिखरा सा था। अनमना,अजनबी, बेजान सा था, अंदर से शायद मृत सा था,
फिर से जीवन शायद सपना था। जो अपने थे जग छोड़ चले ,
कोई कहीं दबा को कोई बहता गया।
मन पर सौ मन का पत्थर था, बस अवाक मैं देखता रह गया। आंखों से झर झर झड़ी बहे ,
दिल में दुखों का सैलाब से था। एक तूफा मेरे अंदर था ,
एक तूफा बाहर नाच रहा।
जो जीवन भर की पूंजी थी ,वह सब तूफान मेंस्वाहा थी।
मेरे नन्हो,मुन्नों की तो बस,
इस भयावह में चीखे थी।
मेरी आत्मा को झकझोर गया, वह तूफ़ानों का रेला था। फिर कभी ना हो फिर कभी ना हो । वो ऐसा भयानक रेला था ,
वो ऐसा भयानक रेला था ।
निमिषा सिंघल

मायका

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मायका
कुछ अक्स उभरते यादों से ,
कुछ शब्द गूंजते कानों में ,
बचपन की चौखट को छूकर ,
कुछ नाम महकते इन हवाओं में।
निम्मी, नीमु,निमिया की धुन अक्सर बजती इन कानों में ।
बहुत दूर सुनाई सी देती जैसे मिश्री धुन इन कानों में ।
जब भी उन गलियारों से गुजरो,
बचपन वापस आ जाता है ।
मन मस्त मगन हो जाता है, बारिश की पहली बूंदों सा, मेरे मन को बहुत भिगोता है ।
मन मस्त मगन हो जाता है
निमिषा सिंघल

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
———————————
नन्ही -नन्ही कोमल कोपल,
जीवन जीने के मांगे पल ।
पर हाय! दुष्ट मनोविकारी मन,
समझे कुलदीप हीउत्तम।
निर्दयी दानव.. वह नर पिशाच,
जो लील गया उस जीवन को।
पर हाय! कलेजा कांपा ना ,
अपने ही हाथों बलि देकर!!
जो समझे ना वरदान उसे,
अरे हाय!अभागा बेचारा।
अपने ही हाथों फोड़ा हो,
जिसने नसीब का पिटारा ।
ओ बदनसीब! तू क्या जाने,
जिस सितारे को यूं तोड़ दिया,।
आकाश में उसे दमकना था ,
जिसे रात अंधेरेे तोड़ दिया ।
अपनी किस्मत की बलि देकर,
वह नादा इंसा हंसता है ।
दुनिया के कोने कोने में बज रहा उन्हीं का डंका है।
हर तरफ रोशनी फैली है ,
फिर भी आंखों से अंधा है।
अरे खोल कान, सुन ,
देख जरा बेटियों का ही तो डंका है ।

निमिषा सिंघल

मेरी बिटिया

September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी बिटिया
—————
नन्ही मुन्नी गुड़िया सी,
मीठी-मीठी पुड़िया सी ।
बातें करती गपर- गपर।
वो हंसे तो खिलती धूप मगर।
लड़ ती, भिड़ती, रोती ,हंसती जैसे धूप- छांव हंसती खिलती। लड़ने में रानी झांसी है,
हंसने में ना कोई सानी है ।
जब बोले तोजैसे फूल झड़े ,
जब रोए तो आंसू अनमोल लगे मेरे दिल की वह तो रानी है, मेरी बिटिया बड़ी सयानी है।
नन्हीं है लेकिन मददगार ,
करने को हर काम तैयार।
मेरे माथे पर जब पड़े शिकन, बेचैनी में आ जाती है,
वह चैन नहीं पा पाती है,
जब तक नाआती मुझे हंसी, रुआंसी सी हो जाती है ।

बैचैन बहुत हो जाती है।
वह मेरी दिल की रानी है,
मेरी बिटिया बड़ी सयानी है
निमिषा सिंघल

इतिहास बदलना ही होगा

September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतिहास बदलना ही होगा
——————————–
बस बहुत हुई झूठी गाथा ,
मियां मिट्ठू ज्ञान भी बहुत हुआ। स्वर्णिम इतिहास के गाथा का, झूठ लिखकर अपमान भी बहुत हुआ
असली सेनानी गायब हैं,
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों से। शाही ठाटों में लीन थे जो,
बन बैठे मसीहा सबके दिलों के। बिना खडग बिना ढाल के, आजादी हमको मिलती रही।
पर्दे के पीछे स्वतंत्रता सेनानियों की,
लाशें कट कट कर गिरती रही। बाहर से चाचा बन-बन बनकर, अंदर से गहरे खेल गए।
टुकड़ों में देश को बांट दिया, अपनी जेबें गर्म करते गए।
भोली भाली सी जनता को,
मीठी बातों से जीत लिया।
चाचा बापू भारत के बन,
हर एक से नाता जोड़ लिया।
बस बहुत हुआ बस बहुत हुआ, हम सब को कुछ करना होगा। झूठा इतिहास तो बहुत पढ़ा, इतिहास बदलना ही होगा। इतिहास बदलना ही होगा ।निमिषा सिंघल

कर मचाए शोर

September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

चोर मचाए शोर
——————-
चोर मचाए शोर -शोर जी ,
अजब देश का हाल,
गाल बजाकर गाना गाए,
चोर -चोर का शोर मचाए अंदर से बेहाल।
मुंह के यह वाचाल मति गई इनकी मारी ।
शिकंजे में फंसने को बुला रही तकदीर तुम्हारी ।
सत्तर साल कड़ी मेहनत से मटका बोया,
पाप की गगरी भर- भर कर उसे खूब संजोया।
कोड़ा पड़ा जो एक बार दिल कप -कप रोया।
छलक -छलक पापो ने अपना आपा खोया ।
जाल में फंस कर चिड़िया जैसे शोर मचाती ,
उसी हाल से गुजर रही भ्रष्टों की पार्टी ।
ज्यादा समय नहीं बाकी सुनो
काकी और चाची ।
जेल भरो आंदोलन की हो चुकी तैयारी ।
निमिषा सिंघल

मौन स्वीकृति

September 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी

आंखो ने आंखो में झांका,
ना जाने क्या-क्या कह डाला।
अदृश्य लिखावट पढ़ ली मैंने,
मौन स्वीकृति गढ़ ली मैंने।

निमिषा

मौन स्वीकृति

September 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी

आंखो ने आंखो में झांका,
ना जाने क्या-क्या कह डाला।
अदृश्य लिखावट पढ़ ली मैंने,
मौन स्वीकृति गढ़ ली मैंने।

निमिषा

बरगद

August 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बरगद
——
बरगद का एक पेड़ पुराना।
जैसे हो कोई बूढ़ा नाना।
लम्बी – लम्बी दाड़ी वाला,
बड़े तने के कुर्ते वाला।
दैर सारी भुजाओं वाला।

बंदर कूदे सब डाल- डाल,
खीचे डाली और पात-पात।
चीखे चिड़िया करे गीत गान,
कूदे गिलहरियां पिद्दी पहलवान।

लगता नाना के नाती हैं,
सब के सब यहां बाराती हैं

अपनी मस्ती में चूर हैं सब,
बालों को खीचे जाते हैं।
नन्हें बच्चों की तरह यहां,
गन्दा घर भी कर जाते हैं

बरगद तो बूढ़ा नाना है,
बच्चों ने ना कहना माना है।

लगता कि झूठा गुस्सा हो,
जोरो से ठठाकर हंसता हो।
सब थक जाते जब उधम मचा,
बाहों में समेटे जाता है,
पत्तों की चादर उड़ाता है।

बरगद तो बूढ़ा नाना है।
निमिषा सिंघल

बरगद

August 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बरगद
——
बरगद का एक पेड़ पुराना।
जैसे हो कोई बूढ़ा नाना।
लम्बी – लम्बी दाड़ी वाला,
बड़े तने के कुर्ते वाला।
दैर सारी भुजाओं वाला।

बंदर कुदे सब डाल- डाल,
खीचे डाली और पात-पात।
चीखे चिड़िया करे गीत गान,
खुदे गिलहरियां पिद्दी पहलवान।

लगता नाना के नाती हैं,
सब के सब यहां बाराती हैं

अपनी मस्ती में चूर हैं सब,
बालों को खीचे जाते हैं।
नन्हें बच्चों की तरह यहां,
गन्दा घर भी कर जाते हैं

बरगद तो बूढ़ा नाना है,
बच्चों ने ना कहना माना है।

लगता कि झूठा गुस्सा हो,
जोरो से ठठाकर हंसता हो।
सब थक जाते जब उधम मचा,
बाहों में समेटे जाता है,
पत्तों की चादर उड़ाता है।

बरगद तो बूढ़ा नाना है।
निमिषा सिंघल

मन की बात सुने फिर कौन!!

August 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन की बात सुने फिर कौन!
———————————-
काले धंधे राह अंधेरी मन दोहराए माने कौन!!!!
बात पते की स्वदेशी चीजें ,
देश का मान बढ़ाएं कौन!!
नारी सम्मान हमारा अभिमान, अत्याचार मिटाए कौन!!
देश गर्त में डूबा जाए,
उसको सम्मान दिलाए कौन !!
जो सम्मान दिलाने आए उसके लिए हाथ बढ़ाएं कौन!!
देश की रक्षा हम सबकी सुरक्षा, कंधों पर भार उठाएं कौन!! जिम्मेदारी हमारी भी है ,
आखिर उसे निभाए कौन !!निमिषा सिंघल

मैं की बात सुने फिर कौन!!

August 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन की बात सुने फिर कौन!
———————————-
काले धंधे राह अंधेरी मन दोहराए माने कौन!!!!
बात पते की स्वदेशी चीजें ,
देश का मान बढ़ाएं कौन!!
नारी सम्मान हमारा अभिमान, अत्याचार मिटाए कौन!!
देश गर्त में डूबा जाए,
उसको सम्मान दिलाए कौन !!
जो सम्मान दिलाने आए उसके लिए हाथ बढ़ाएं कौन!!
देश की रक्षा हम सबकी सुरक्षा, कंधों पर भार उठाएं कौन!! जिम्मेदारी हमारी भी है ,
आखिर उसे निभाए कौन !!निमिषा सिंघल

ऐसा मेरा देश हो जाए

August 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐसा मेरा देश हो जाए
—————————-
आओ भारत नया बनाए,
सपनों का संसार बसाये।
नए महल सा देश सजाएं,
उन्नति का परचम फहराए।
चारों तरफ हरी हो धरती,
स्वस्थ सड़क हर जगह हो दिखती ।
धुली साफ सी रहे यह धरती, सुलभ भली सी लगे जिंदगी। धुआं प्रदूषण कहीं ना फैले,
स्वच्छ हवा की न नैमत ले ले। स्वच्छ हवा और शुद्ध वातावरण, सुंदर हो हम सब का आचरण। वैज्ञानिक परचम लहराए, खिलाड़ी तिरंगे की शान बढ़ाएं। स्वर्णिम युग फिर वापस आए, ऐसा मेरा देश हो जाए।
निमिषा सिंघल

ऐसा मेरा देश हो जाए

August 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐसा मेरा देश हो जाए
—————————-
आओ भारत नया बनाए,
सपनों का संसार बसाये।
नए महल सा देश सजाएं,
उन्नति का परचम फ।
चारों तरफ हरी हो धरती,
स्वस्थ सड़क हर जगह हो दिखती ।
धुली साफ सी रहे यह धरती, सुलभ भली सी लगे जिंदगी। धुआं प्रदूषण कहीं ना फैले,
स्वच्छ हवा की न नैमत ले ले। स्वच्छ हवा और शुद्ध वातावरण, सुंदर हो हम सब का आचरण। वैज्ञानिक परचम लहराए, खिलाड़ी तिरंगे की शान बढ़ाएं। स्वर्णिम युग फिर वापस आए, ऐसा मेरा देश हो जाए।
निमिषा सिंघल

बचपन

August 29, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

नन्हा ,सलोना सा, प्यारा सा बचपन ।
मासूम भोला नटखट सा बचपन। वह चंदा का तारों का सूरज का मेला ।
वह जादुई परियों में नन्हाअकेला।
वह दादी के किस्से ,वह नानी की कहानी ।
वह भाई बहनों की मीठी छेड़खानी।
वह बारिश के आने पर झूम जाना
वह खूब नहाना और कश्ती तैराना।
वह मिट्टी के तेल से चलता स्ट्रीमर,
वह बुढ़िया की मीठे बालों के गोले ,वह मिट्टी के बर्तन बड़े ही अनोखे ,
वह मेला, वह रेला ,वह झूले झूलना ।
वह गुड़िया की शादी की दावत देना ।
दोस्तों का शाम को इंतजार करना।
वह गिट्ट लंगड़ी टांग गेंद ताड़ी। वह खट्टी मीठी चूरन चटनी।
वह स्कूल के कैंटीन की आलू की टिक्की।
वह गर्म, तिकोने, करारे पराठे ,
वह मम्मी के हाथों के अचारो का स्वाद,
वो गोलगप्पे खाना और आंसू टपका ।
वह आपस में लड़ना झगड़ना उलझना।
झूठी सच्ची शिकायतें लगाना। मम्मी पापा का फिर लाड पाना, वह मुडगेलियो पर दौड़ लगाना, वह कमरे की छत से नीचे कूद जाना ।वह पापा की पतंग को छत पर साधना ।वह गैस के गुब्बारे हवा में उड़ाना।
वह तोते से मिट्ठू बेटा का गाना वह शोर मचा कर जोर से गाना रॉक भंगड़ा कत्थक मिलाना बहाने से कत्थक के थप्पड़ बजाना।
वह पंछी की तरह हर समय चहचहाना ।
वह हंसी के फव्वारे के दौरे पड़ना।
वह एक जैसे कपड़े पहनना
वह चाचा साबू की कॉमिक्स पढ़ना ।
वह पापा के डर से छिप- छिप के पढ़ना
वो गिरना संभलना बस अगले मिनट में
वह प्याज दबाकर बुखार बनाना वह मम्मी से फिर अपनी सेवा करवाना। वह स्कूल की छुट्टी की दुआ मनाना।
मां के स्पर्श से ही आराम आना।
स्कूल से आकर खेलने भाग जाना।
वो खेल में चौके छक्के लगाना।
वह कछुए वह मछली वह चूहों का खेल।
वह तोते खरगोशों कबूतर का खेल
कहां खो गया इतना प्यारा सा बचपन ।
मुझे फिर से लौटा दो मेरा वह बचपन !
निमिषा सिंघल

शिक्षक

August 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिक्षक
साधारण व्यक्तित्व ..पर बेहद रोचक।
आदर्शों की मिसाल, अज्ञान का आलोचक ।
राष्ट्र का निर्माता ..प्रगति का द्योतक ।
ज्ञान का भंडार… जलता हुआ दीपक। उजाला फैलाए… कठिनाइयों का मुक्तक।
विद्यार्थी जीवन में हर पल सहायक।
मासूम दिलों का होता वह नायक।
संस्कृति, सभ्यता, न्याय का परिचायक।
समय से ताल मिला चलता अध्यापक। हर गलत कदम रोकता होता वह अनुशासक।
मीठी झिड़की ,हल्की थपकी, सम्मान के होता वह लायक।। खुद वही रहता राष्ट्र पौध का निर्माता,
सही गलत क्या है मार्गदर्शक बन बताता।
नमन मेरा अभिमान मेरा, है ज्ञान का यह भंडार मेरा। पूरी की पूरी पुस्तक है,
शिक्षक राष्ट्र का मस्तक है!
शिक्षक राष्ट्र का मस्तक है!
निमिषा सिंघल

सावन

August 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन
———-
बारिश की रिमझिम बूंदों ने,
कुछ इस तरह मन हर्षाया ।
जैसे सूखे प्यासे होठों ने ठंडा मीठा जल हो पाया ।
उल्लासित है . .हर वृक्ष लता, कलियां झुंढो में रही ठ ठा।
गुनगुन का है संगीत बजा,
धरती ओढ़े परिधान हरा । कितना सुंदर है दृश्य यहां पेड़ों पर छाई नहीं छटा।
केसरिया घन बन घूम रहे,
हवाओं के संग डोल रहे।
टप- टप का है संगीत बजा ।
पेड़ों पर छाई नई छटा।
आंखें चाहे पीले जहां ।
दिल चाहे फिर कुछ जी ले पल,भीगे फिर हो ना हो यह कल, मन खो सा गया ,
मन डूब गया ,आनंद में गोते लगाता गया ,लगाता गया…. ।

निमिषा सिंघल

माखन चु रई या

August 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

माखन चुरैया
__________

मीठी मुस्कान तेरी अजब तेरी लीला।
बांके बिहारी तू है छैल छबीला। तीखे नयन तेरे करे हैं इशारे, बांसुरी बुलाए मुझे सांवरे के द्वारे। आजा कन्हाई यशोदा दुलारा, तुझको पुकारे सखा, बृजबाला। भोली सी सूरत माखन चुरैया मुरली बजा के उड़ाई सबकी निंदिया।
लड्डू सा. .. लड्डू सा लगे वह लड्डू गोपाल ।
आजा कन्हैया हम सबका दुलारा। तुझको पुकारे अधीर बृजबाला,
आजा कन्हैया हम सबका दुलारा। दुष्टों का नाशक पाप विनाशक, मेरा कन्हैया मुरली बजैया,
मथुरा का राजा
कान्हा बन नाचा,
गोपियों के मन तो श्याम विराजा। नटखट ..नटखट शैतानी मिटाएं जो निराशा ,
तुझको पुकारे तेरे भक्तों का तांता,आजा कन्हैया हम सबका दुलारा,तुझको पुकारे तेरे भक्तों का तांता।
निमिषा सिंघल

शिक्षक

August 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

शिक्षक
साधारण व्यक्तित्व ..पर बेहद रोचक।
आदर्शों की मिसाल, अज्ञान का आलोचक ।
राष्ट्र का निर्माता ..प्रगति का द्योतक ।
ज्ञान का भंडार… जलता हुआ दीपक। उजाला फैलाए… कठिनाइयों का मुक्तक।
विद्यार्थी जीवन में हर पल सहायक।
मासूम दिलों का होता वह नायक।
संस्कृति, सभ्यता, न्याय का परिचायक।
समय से ताल मिला चलता अध्यापक। हर गलत कदम रोकता होता वह अनुशासन।
मीठी झिड़की ,हल्की थपकी, सम्मान के होता वह लायक।। खुद वही रहता राष्ट्र पौध का निर्माता,
सही गलत क्या है मार्गदर्शक बन बताता।
नमन मेरा अभिमान मेरा, है ज्ञान का यह भंडार मेरा। पूरी की पूरी पुस्तक है,
शिक्षक राष्ट्र का मस्तक है!
शिक्षक राष्ट्र का मस्तक है!
निमिषा सिंघल

Hindi Kavita

August 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बादल जीवन फिर लाए तो
——————————–
मधुर मंद -मंद बयार चली,
नजरों में भर कर प्यार चली। धरती के सूखे बालों को सहलाती, चिंतित सी नार चली ।
पीछे पीछे मस्ताना सा,
बादल आया दीवाना सा,
मुख देख धरा का ठिठका वो, चिंतित हो अश्रु भर लाया ।
बादल ने पूछा देवी तुम!
एकटक शून्य सी आंखों से,
यूं किसे निहारा करती हो?
जर्जर कपती सी काया से,
क्या मुझे पुकारा करती हो! धरती कुछ भी ना बोल सकी टकटकी लगाए बैठी रही।
दुख देख अजब आघात लगा बादल जार -जार रोता गया पश्चाताप के आंसू बहे सीप में गिर गिर मोती बने ।
धरती अश्रुओं से भीग उठी,
बादल को उसने माफ किया हृदय को अपने साफ किया ।सावन का फिर आगाज हुआ फिर हरी हुई नवयुवती सी,
वनदेवी ने आशीर्वाद दिया।
पेड़ों ने सामूहिक नृत्य किया, कोयल नेकुहू संगीत दिया ।
खेतों में फसलें झूम उठी, पक्षियों ने मधुर कलरव किया।
रे बादल !देर लगाई बड़ी टकटकी लगी थी हर एक घड़ी,
चलो देर सही पर आए तो जीवन फिर से तुम लाए तो,जीवन फिर से तुम लाए तो।

New Report

Close