by Rakesh

अपनी पृथ्वी बचालो

April 19, 2021 in Poetry on Picture Contest

अपनी पृथ्वी बचालो – पृथ्वी दिवस पर मेरी नवीन रचना

हे भूमिपुत्र आज अपनी, पृथ्वी को बचालो तुम,
स्वार्थों से दूर रहकर हाथ अपने मिला लो तुम।
पृथ्वी खतरे में है यारों, पर्यावरण बचा लो तुम,
प्रदूषणमुक्त कर पृथ्वी को काल से बचालो तुम।।

मानव अपनी बुद्धि से चांद पर कब्जा कर रहा,
नित नये नये आविष्कार से प्रकृति को छेड़ रहा।
अणु परमाणु खोज कर शक्तिशाली भी हो रहा,
पर मानव अतितरक्की से मानवता भी खो रहा।।

अति महत्वाकांक्षा के कारण जंगल नष्ट हो गये,
कारखानों की गंदगी से नदी नहर दूषित हो गये।
ध्वनि और वायु प्रदूषण से शहर प्रदूषित हो गये,
महिलाओं के अपमान से ईश्वर भी कूपित हो गये।।

तभी कोरोना काल बन मानव जाति पर छाया है,
हमारी ही गलतियों से, मौत का तांडव मचाया है।
वृक्षों के कटने से पृथ्वी पर, घोर संकट आया है,
इम्युनिटीपाॅवर घटने से वायरस सक्रिय हो पाया है।।

अब भी समय है भूमिपुत्रों, अपनी पृथ्वी बचालो,
वृक्ष लगाकर जगह जगह, मानव जीवन बचालो।
प्रदूषण मुक्त कर पृथ्वी को, प्रकृति से सजालो,
हे भूमि पुत्र कोरोना से भी, अपनी पृथ्वी बचालो।।

by Rakesh

भेड़ चाल

April 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत चलो भीड़ में बंधु,
भेड़ झुंड कहलाओगे।
एक गिरा कुए में तो,
सभी को उसमें पाओगे।।

वो बिना मास्क के रहता,
मानव बम सा लगता है।
आतंकी श्रेणी में आता,
दुश्मन मानवता का लगता है।।

लापरवाही की सज़ा मिलेगी,
फिर एक दिन पछताएगा।
धन, दोलत, जान पहचान,
कोई काम नहीं आएगा।।

तुमको तुमसे प्यार नहीं,
गलतफहमी मत पालो तुम।
अपने साथ दूसरों का भी,
कीमती जीवन बचालो तुम।।

हाथ धोओ लगातार,
दूरी मीटर में दो या चार।
मास्क बिना घर से ना निकलो,
मत बनो मौत के समाचार।।

by Rakesh

अबके होली, हो ली रे

March 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैय्या मुझको हबीब गुलाल,
रंग भरी पिचकारी दिला दे।
होली के अवसर पर मैय्या,
मुझे मेरी राधे से मिला दे।।

सखाओं संग झुंड बनाकर,
होली खेलने जाऊंगा।
पहले सखाओं फिर राधे को,
रंगों से खूब निहलाऊंगा।।

नहीं लल्ला इस होली पे,
सरकारी फरमान आया है।
कोरोना सड़कों पर घूम रहा,
वो मौत का सामान लाया है।।

भीड़ से संक्रमण फैल रहा,
यही संदेशा आया है।
इस होली घर ही रह लल्ला,
यही पैगाम आया है।।

फिर मैय्या नन्दबाबा से कहकर,
अपने गांव में चुनाव करा दे।
या फिर दिल्ली बोर्डर जैसा,
किसानों सा आंदोलन करा दे।।

चुनाव, आंदोलन की भीड़ में मैय्या,
कोरोना फटक भी नहीं पा रहा।
चाहे तो मैय्या राधे संग मेरा,
पश्चिम बंगाल का टिकट करा दे।।

मैय्या मुझको हबीब गुलाल,
रंग भरी पिचकारी दिला दे।
होली के अवसर पर मैय्या,
मुझे मेरी राधे से मिला दे।।

by Rakesh

जल, ढूंढते रह जाऐंगे

March 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जल, ढूंढते रह जाऐंगे

प्यासा कौवा जुगाड़ से,
पानी ऊपर ला रहा।
जल की कीमत मूक पक्षी,
वास्तव में पहचान रहा।।

हम मनुष्य दिमाग वाले,
व्यर्थ जल बहा रहे।
लापरवाही की हद,
से भी ऊपर जा रहे।।

दो नल घर में हैं,
ट्यूबवेल गली में।
थोड़ी दूर ही कूआं है,
वहीं पास तालाब है।।

मत रहो भ्रम में बंधु,
ये सब सूख जाऐंगे।
आज ध्यान नहीं दिया,
तो कल बहुत पछताएंगे।।

अब भी बचालो पानी को,
तभी जीवन जी पाएंगे।
वरना एक दिन पृथ्वी पर,
जल ढूंढते रह जाऐंगे।।

राकेश सक्सेना, बून्दी
9938305806

by Rakesh

चादर जितने पांव पसारो

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभिलाषा और ईर्श्या में,
रात-दिन सा अंतर जानो तुम।
अभिलाषा मजबूत रखो,
ईर्श्या से दिल ना जलाओ तुम।।

चादर जितने पांव पसारो,
पांव अपने ना कटाओ तुम।।
अपनी मेहनत से चांद पकड़ो,
उसे नीचे ना गिराओ तुम।

“उनके घर में नई कार है,
मेरा स्कूटर बिल्कुल बेकार है”।
“एयर कंडीशंड घर है उनका,
अपना कूलर, पंखा भंगार है”।।

“उनका घर माॅर्डन स्टाईल का,
अपना पुराना खंडहर सा है”।
“वो पार्लर, किटीपार्टी जाती,
मेरा जीवन ही बेकार है”।।

ये बातें जिस घर में होती,
वहां अज्ञान अंधेरा है।
चादर जितने पांव पसारो,
वहीं शांति का डेरा है।।

by Rakesh

इंतज़ार

March 18, 2021 in Other

आज मन उदास था
बेसब्री से इंतजार था
बीस साल पहले
सबको पोस्टमैन का
मां को मामा की
चिट्ठी का होता था,
ठीक वैसे ही
आज कवि को
उसकी रचना पर
आप सबकी
समीक्षा का
बेसब्री से इंतजार था।।
😊😊🙏

by Rakesh

गुत्थियां

March 17, 2021 in Other

कुछ भ्रांतियां ऐसी जो, हास्यास्पदसी लगती हैं
कहावतें भी जीवन का, प्रतिनिधित्व करती हैं
ज़मीं पे गिरी मिठाई को, उठाकर नहीं खाना है
वो बोले मिट्टी की काया, मिट्टी में मिल जाना है

बंदे खाली हाथ आए थे खाली हाथ ही जाएंगे
फिर बेईमानी की कमाई, साथ कैसे ले जाएंगे
रात दिन दौलत, कमाने में ही जीवन बिताते हैं
वो मेहनत की कमाई झूठी मोह माया बताते हैं

पति-पत्नी का जोड़ा, जन्म-जन्मांतर बताते हैं
फिर क्यों आये दिन, तलाक़ के किस्से आते हैं
सुना है बुराई का घड़ा एक न एकदिन फूटता है
फिर बुरे कर्म वालों का, भ्रम क्यों नहीं टूटता है

ऊपर वाले के हाथों की कठपुतली मात्र हैं हम
फिर क्यों लोग, स्वयं-भू बनने का भरते हैं दम
उसने भू-मण्डल, मोहक कृतियों से सजाया है
फिर क्यों उसके अस्तित्व पर सवाल उठाया है

by Rakesh

सद्व्यवहार

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रिश्ते बेजान से
मित्र अंजान से
अपने पराये से
हो जाते हैं,
जब सितारे
गर्दिश में हों।।

दुश्मन दोस्त
पराए अपने
और अपने
सर पे बिठाते हैं
जब सितारे
बुलंदी पर हों।।

मुंह देखी प्रीत
दुनियां की रीत है
धन, क्षणिक खुशी
सद्व्यवहार
असल जीत है।।

by Rakesh

जी लो, जब तक जीवन है

March 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पापा प्लीज
फीस जमा करादो
छड़ी की मार
सहपाठियों में अपमान
अब सहन नहीं होता।।

मम्मी आज टिफिन में
ठंडी रोटी पे नमक-मिर्च
पानी लगा मत देना,
निरीक्षण है स्कूल में
गर्म पंरांठा रख देना।।

एक शर्ट नयी साड़ी
जुगाड़ कर लेते आना,
चिंदिया लगे कपड़ों में
अब छेद दिखने लगे हैं।।

भाग्यवान तुम भी ना
बच्चों सी बातें ना करो,
आज की महंगाई में बस
जी सको उतनी बात करो।।

by Rakesh

नारी तू ही शक्ति है (महिला दिवस पर विशेष)

March 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी तू कमजोर नहीं, तुझमें अलोकिक शक्ति है,
भूमण्डल पर तुमसे ही, जीवों की होती उत्पत्ति है।
प्रकृति की अनमोल मूरत, तू देवी जैसी लगती है,
परिवार तुझी से है नारी, तू दिलमें ममता रखती है।।

म से “ममता”, हि से “हिम्मत” ला से तू “लावा” है,
महिला का इतिहास भी, हिम्मत बढ़ाने वाला है।
ठान ले तो पर्वत हिला दे, विश्वास नहीं ये दावा है,
हिम्मत करे तो दरिंदों की, जान का भी लाला है।।

याद कर अहिल्याबाई, रानी दुर्गावती भी नारी थी,
दुश्मन को छकाने वाली, लक्ष्मी बाई भी नारी थी।
शीशकाट भिजवाने वाली, हाड़ीरानी भी नारी थी,
सरोजिनी नायडू, रानी रुद्रम्मा देवी भी नारी थी।।

वहशी हैवानों की नजरों में, रिश्ते ना कोई नाते है,
मां, बहन, बेटियों से भी, विश्वासघात कर जाते हैं।
मौका मिले तो वहशी गिद्ध नोच नोच खा जाते हैं,
सबूत के अभाव में दरिंदे, सज़ा से भी बच जाते हैं।।

तू ही काली, तू ही दुर्गा, तू ही मां जगदम्बा है,
खड़्ग उठाले उस पर तू, जो मानवता ही खोता है।
निर्बल समझे जो तुझको, पालता मन में धोखा है,
सबक सिखादे वहशियों को, समझते जो “मौक़ा” है।।

आम आदमी समीक्षा और चर्चा कर दूर हो जाते हैं,
पीड़ित नारी “अपनी नहीं”, इसी से संतुष्ट हो जाते हैं।
घटना घटने के बाद बहना, सब सहानुभूति जताते हैं,
जिम्मेदार, संभ्रांत व्यक्तियों के, वक्तव्य छप जाते हैं।

अब नारी तू ही हिम्मत करले, शक्तियों को जगाले तू,
अपने मुंह को ढकने वाले, पल्लू को कफ़न बनाले तू।
इज्ज़त पे जोभी हाथ डाले, उसीको सबक सिखादे तू,
आंखों से खूनी आंसू पोंछ, गुस्सेको हथियार बनाले तू।

by Rakesh

प्रार्थना

March 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रिय 2020 तेरी विदाई में अब क्या शब्द कहूं,
हंगामेदार मौजूदगी की बातें किस मुंह से कहूं।
कभी सुना और सोचा भी नहीं वो सब घट गया,
तेरे काल में कोरोना का भारी आतंक मच गया।।

लोकडाउन कर दुनिया में ताले तूने लगावा दिए,
मुंह बंद करवाए तूने, हाथ कई बार धुलवा दिए।
घरों में बंद करवाया हमको बाजार सूने करा दिए,
हर एक को डराया तूने मौत के दर्शन करवा दिए।।

दूध के जले छाछ को भी फूंक फूंक कर पीते हैं,
साल 2021 का स्वागत हम डर डर के करते हैं।
आओ हम सब मिलकर प्रार्थना प्रभू से करते हैं,
मिट जाए कोरोना जग से, यही आशा रखते हैं।।

राकेश सक्सेना बून्दी राजस्थान
9928305806

by Rakesh

मनु

March 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मनु

मनु तू दौड़ता रह निरंतर
गलत, सही का कर अंतर
ठोकरें मिलेंगी अनन्तर
गिर, उठ फिर चल निरंतर

मनु तू कौशिश कर निरंतर
हार जीत में ना कर अंतर
मौक़े और मिलेंगे अनन्तर
हिम्मत रख जीतेगा निरंतर

मनु तू विश्वास रख निरंतर
खुशी, दु:ख में ना कर अंतर
दुनियां का दायरा है अनन्तर
दु:ख के बाद खुशियां निरंतर

मनु तू मानव ही रह निरंतर
अमानवीयता में कर अंतर
सत्य, कर्म पथ है अनन्तर
उसी पर चलता रहा निरंतर

राकेश सक्सेना बून्दी राजस्थान
9928305806

by Rakesh

जीभ महान्

March 4, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिम्मत तो देखो ज़ुबान की, कैंची जैसी चलती है,
बत्तीस दांतों घिरी होकर भी निडर हो मचलती है।
बिना हड्डी की मांसल जीभ, कई कमाल करती है,
फंसा दांत में तिनका, निकाल के ही दम भरती है।।

दुनियां भर के स्वाद का, ठेका जुबां ने ही ले रखा,
मजबूत दांतों के झुंड को गुलाम जुबां ने बना रखा।
पहले चखती फिर कहती, ये खा और वो मत खा,
बीमारी हो या चिढ़ाना, पहली हरकत जीभ दिखा।।

द्रोपदी की जुबान ने ही, महाभारत करवाया था,
अंधे का बेटा अंधा कह, दुर्योधन को भड़काया था।
जुबां से निकला वचन, राजा दशरथ ने निभाया था,
केकई को दिए वचन ने राम को वन भिजवाया था।।

इस जीभ ने ही कईयों के सर और घर तुड़वा दिए,
जीभ सम्भाल कर बात कर कईयों को लड़वा दिए।
जीभ ने मानव से खतरनाक कारनामे करवा दिए,
जीभकला से अनभिज्ञ जानवर बेजुबां कहला दिए।।

हिम्मत तो देखो ज़ुबान की, कैंची जैसी चलती है,
नेता, कवि और वक्ता को जुबां ही फेमस करती है
याद करना होतो वाक्यों को कई कई बार रटती है,
सदा सच बोलना और एक चुप सौ को हराती है।।

राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
9928305806

by Rakesh

लापरवाही – व्यंग्य

March 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

लाख समझाने पर भी, गली-बाजार में भीड़ करें,
बिना मास्क खुल्लमखुल्ला सबसे वार्तालाप करें।
सेनेटाइजर का इस्तेमाल, हाथ धोना भी बंद करें,
आओ साथी हम भी मरें, औरों का इंतजाम करें।।

बार-बार हाथ धो कर, समय क्यों बर्बाद करें,
हैंड सेनेटाइजर से हाथ, क्यों अपने खराब करें।
मास्क पहनकर अपनी, सुन्दरता क्यों नष्ट करें,
आओ साथी हम भी मरें, औरों का इंतजाम करें।।

ज़ुखाम खांसी बुखार को, हम नज़रअंदाज़ करें,
अपनी बीमारी छुपाकर, स्वस्थता का भ्रम करें।
रिपोर्ट पोजेटिव हो तो, व्यवस्थाओं पे प्रहार करें,
आओ साथी हम भी मरें, औरों का इंतजाम करें।।

कोरोना कोई मजाक नहीं, हल्के में क्यों लेते हो,
बिना मास्क घूम कर, दूसरों की मुसीबत बनते हो।
नियम और निर्देशों का, भरपूर मज़ाक उड़ाते हो,
अपनी लापरवाही की सज़ा, अपनों को ही देते हो।।

मेरे इस व्यंग को बंधुवर, मज़ाक में मत उड़ा देना,
जैसे भी हो कौशिश कर, नियम सभी अपना लेना।।
मास्क पहन हाथ धो कर, सेनेटाइज भी कर लेना,
अपने साथ अपनों परभी अहसान मात्र कर देना।।

by Rakesh

राधे कृष्ण सा प्रेम धागा

March 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हवा में उड़ाओ पतंग,
खुद को जमीं पे खड़ा रखो।

दान धर्म करके बंधुवर,
अपना दिल भी बड़ा रखो।

घमण्ड रुपी पतंग कटवाकर,
सपनों को बुलंद रखो।

रंग-बिरंगी पतंगों जैसा ,
परचम अपना लहराए रखो।

धागे अनेक रंगों के,
पकड़ मजबूत बनाए रखो।

कच्चा हो या पक्का धागा,
उलझने से बचाए रखो।

प्रेम का धागा पक्का होता,
उसपे विश्वास बनाए रखो।

राधा-कृष्ण सा प्रेम धागा,
दिल में सदा संजोए रखो।

घर, परिवार, यार, दोस्त
सबको धागे से बांधे रखो।।

by Rakesh

बम लहरी, बम बम लहरी

March 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बम लहरी, बम बम लहरी

(शिव महोत्सव विशेष)

शिव शम्भू जटाधारी, इसमें रही क्या मर्जी थारी,
सर पे जटाएं, जटा में गंगा, हाथ रहे त्रिशूलधारी।
गले से लिपटे नाग प्रभू, लगते हैं भारी विषधारी,
असाधारण वेश बना रखा, क्या रही मर्जी थारी।।

भुत-प्रेत, चांडाल चौकड़ी, करते सदा पूजा थारी,
राक्षस गुलामी करते सारे, चमत्कारी शक्ति थारी।
शिवतांडव, नटराज नृत्यकला नहीं बराबरी थारी,
मस्तक त्रिनेत्र खुले तो प्रभू, हो जाए प्रलय भारी।।

ब्रह्मा विष्णु देवी देवता भी अर्चना करते हैं थारी,
पुत्र गणेश प्रथम देवता, पार्वती मां पत्नी थारी।
हे शिव शंकर बम लहरी प्रजा पीड़ित क्यों थारी,
बम लहरी बम बम लहरी, बड़ी कृपा होगी थारी।।

विनती सुनो हे कालजय तीनों लोक है जय थारी,
कोरोना बाढ़ भूकंप प्रलय से, रक्षा करो थे म्हारी।
भ्रष्टाचार, महंगाई से भी पीड़ित जन प्रजा थारी,
भू-मण्डल सुरक्षित कर दो प्रभू कृपा होगी थारी।।

शिव शम्भू, जय जटाधारी, कृपा होगी थारी भारी,
शिवरात्री तिलक भोग लगावें बलिहारी प्रजा सारी।
भक्त के वश में भगवन् सारे, फिर कैसी मर्जी थारी,
कृपा करो हे दीना नाथ, विनती करे सब नर नारी।।

राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

by Rakesh

चिंता से चिता तक

February 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मां बाप को बच्चों के भविष्य की चिन्ता,
महंगे से स्कूल में एडमिशन की चिन्ता।
स्कूल के साथ कोचिंग, ट्यूशन की चिन्ता,
शहर से बाहर हाॅस्टल में भर्ती की चिन्ता।।

जेईई, नीट, रीट कम्पीटीशन की चिन्ता,
सरकारी, विदेशी कं. में नौकरी की चिन्ता।
राजशाही स्तर का विवाह करने की चिंता,
विवाह पश्चात विदेश में बस जाने की चिंता।।

फर्ज निभाकर अब कर्ज चुकाने की चिंता,
बुढ़ापे तक कोल्हू में फंसे रहने की चिंता।
बच्चों के होते अकेले पड़ जाने की चिंता,
मरने तक बच्चों के वापिस आने की चिंता।।

बस यही चक्र, जीवन है, यही कड़वा सच है,
बीज पौधा पेड़ फल, फल ही पेड़ का कल है।
लीक के फकीर बन, कठपुतली से हो जाते हैं,
न जाने क्यों चमक के पीछे, दीवाने हो जाते हैं।।

by Rakesh

जाने तुम कहां गये

February 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अरमानों से सींच बगिया,
जाने तुम कहां गए।
अंगुली पकड़ चलना सीखाकर,
जाने तुम कहां गए।।

सच्चाई के पथ हमको चलाकर,
जाने तुम कहां गए।
हमारे दिलों में घर बनाकर,
जाने तुम कहां गए।।

तुम क्या जानो क्या क्या बीती,
तुम्हारे बनाए उसूलों पर।।

वृद्धाश्रम में मां को छोड़ा,
बेमेल विवाह मेरा कराया।
छोटे की पढ़ाई छुड़ाकर,
फैक्ट्री का मजदूर बनाया।।

पुश्तेनी अपना मकान बेच,
अपना बंगला बना लिया।
किस्मत हमारी फूटी निकली,
आपको काल ने ग्रास बना लिया।।

बंधी झाड़ू गई बिखर बिखर,
ना जाने तुम कहां गये।
यूं मझधार में छोड़ बाबूजी,
ना जाने तुम कहां गये।।

राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

by Rakesh

भ्रम

February 25, 2021 in मुक्तक

हम भ्रम पाल लेते हैं, “मैंने ही उसे बनाया है”,
कभी सोचा तूने, भू-मण्डल किसने बसाया है।
भाई ये सब कर्मानुसार ही, ब्रह्मा की माया है,
कोई सूरमा आज तक, अमर नहीं हो पाया है।।

by Rakesh

बेटी

February 23, 2021 in गीत

गांव गांव में मारी जाती, बेटी मां की कोख की,
बेटी मां की कोख की, बेटी मां की कोख की।।

जूही बेटी, चंपा बेटी, चन्द्रमा तक पहुंच गई,
मत मारो बेटी को, जो गोल्ड मेडलिस्ट हो गई,
बेटी ममता, बेटी सीता, देवी है वो प्यार की।
बेटी बिन घर सूना सूना, प्यारी है संसार की,
गांव गांव में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।

देवी लक्ष्मी, मां भगवती, बहन कस्तूरबा गांधी थी,
धूप छांव सी लगती बेटी, दुश्मन तूने जानी थी।
कल्पना चावला, मदरटेरेसा इंदिरागांधी भी नारी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वो तो, झांसी वाली रानी थी,
गांव गांव में मारी जाती, बेटी मां की कोख की।।

पछतावे क्यूं काकी कमली, किया धरा सब तेरा से,
बेटा कुंवारा रह गया तेरा, करमों का ही फोड़ा है।
गांव शहर, नर नारी सुनलो, बेटा बेटी एक समान,
मत मारो तुम बेटी को, बेटी तो है फूल बागान।।

(मेरे द्वारा लिखित नाटक “भ्रूण हत्या” का गीत)
राकेश सक्सेना

by Rakesh

‘‘फितरत’’

February 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हे मानव तेरी फितरत निराली, उलट पुलट सब करता है,
बंद कमरे में वीडियो बनाकर, जगजाहिर क्यों करता है?

शादी पार्टी में खाना खाकर, भरपेट झकास हो जाता है,
बाहर आकर उसी खाने की, कमियां सबको गिनाता है

जिस मां की छाती से दूध खींच, बालपन में तू पीता है
उसी मां को आश्रम में भेजकर, चैन से कैसे तू जीता है

बचपन में तू जिद्द करके अपनी, हर बात मनवाता है
बुढ़े माॅ-बाप की हर इच्छा को, दरकिनार कर जाता है

मां, बहन, बेटी और भाभी की, रक्षा का दम तू भरता है,
ये सब अगर दूसरे की हों तो, नीयत बुरी क्यों करता है?

दवा, दारु, बड़े शौ-रुम में, मुंहमांगा दाम चुकाता है
रिक्षा, सब्जी, ठेलेवालों से भाव-तौल क्यूं करता है

कमियां गिनाकर इलेक्शन में, सबको खूब भड़काता हैं
जीता तो सत्ता में आकर, तू सभी समस्या झुठलाता हैं

पक्ष-विपक्ष के मकड़जाल में, कार्यकर्ताओं को उलझाता हैं
शादी-पार्टी में विरोधियों संग, जमकर जाम उड़ाता हैं

दूर दराज के नामी मंदिरों में, जेवर और धन भिजवाता है
पड़ोस की गरीब बेटी की शादी में, रुपया भी नहीं चढ़ाता है

हे मानव दो-दो चेहरों से क्यूं, बहुरुपिया जीवन जीता है
सीधी सादी-सी जिन्दगी में, सब उलट पुलट क्युं करता है

by Rakesh

भटके हुए रंगों की होली

February 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज होली जल रही है मानवता के ढेर में।
जनमानस भी भड़क रहा नासमझी के फेर में,
हरे लाल पीले की अनजानी सी दौड़ है।
देश के प्यारे रंगों में न जाने कैसी होड़ है।।

रंगों में ही भंग मिली है नशा सभी को हो रहा।
हंसी खुशी की होली में अपना अपनों को खो रहा,
नशे नशे के नशे में रंगों का खून हो रहा।
इसी नशे के नशे में भाईपना भी खो रहा।।

रंग, रंग का ही दुश्मन ना जाने कब हो गया।
सबका मालिक ऊपरवाला देख नादानी रो गया,
कैसे बेरंग महफिल में रंगीन होली मनाएंगे।
कैसे सब मिलबांट कर बुराई की होली जलाऐंगे।।

देश के प्यारे रंगों से अपील विनम्र मैं करता हूँ।
धरती के प्यारे रंगों को प्रणाम झुक झुक करता हूँ
अफवाहों, बहकावों से रंगों को ना बदनाम करो,
जिसने बनाई दुनियां रंगों की उसका तुम सम्मान करो।।

हरा, लाल, पीला, केसरिया रंगों की अपनी पहचान है।
इन्द्रधनुषी रंगों सा भारत देश महान है,
मुबारक होली, हैप्पी होली, रंगों का त्यौहार है।
अपनी होली सबकी होली, अपनों का प्यार है।।

हैप्पी होली

by Rakesh

फुलझडियां

February 21, 2021 in मुक्तक

मनचले ने रुपसी पर, तंज कुछ ऐसा गढ़ा,
काश जुल्फ़ों की छांव में, पड़ा रहूं मैं सदा।
रुपसी ने विग उतार, उसे ही पकड़ा दिया,
ले रखले जुल्फ़ों को तू, पड़ा रह सदा सदा।।

फेसबुक की दोस्त को, बिन देखे ही दिल दे दिया,
जो भी मांगा प्रेयसी ने, आॅनलाईन ही भेज दिया।
एकदिन पत्नी के पास वही गिफ्ट देख चौंक गया,
उसकी पत्नी ही फ्रेंड थी, बेचारा मूर्छित हो गया।।

पत्नी से प्रताड़ित पति ने ईश्वर को ताना दिया,
क्या पाप किया मैंने जो इससे मुझे बांध दिया।
ईश्वर ने तपाक से भ्रमित पति को समझा दिया,
धैर्य रख अज्ञानी पुरुष, कई जन्मों का साथ है।।

कत्ल आंखों से करती हसीना, पर वो क़ातिल नहीं,
दिल हसीनाओं के चुराते हैं, पर चोर वो शातिर नहीं।
हर महिला में औरत है, कुछ पुरुषों में पुरुषार्थ नहीं,
मुकाम तक पहुंचाती सड़क, खुद कहीं जाती नहीं।।

राकेश सक्सेना, बून्दी (राजस्थान)

by Rakesh

बस एक दिन याद करो

February 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

26 जनवरी, 15 अगस्त,
देश भक्ति जगाओ, झण्डे फहराओ,
बलिदान पर “उनके”, तुम इतराओ,
फिर भूल जाओ भूल जाओ।।

नारी दिवस, बालिका दिवस,
कविता सुनाओ, मंच सजाओ,
मौका मिले तो दानव बन जाओ,
फिर भूल जाओ भूल जाओ।।

जन्माष्टमी हनुमान जयंती,
दुर्गा अष्टमी, गणेश चतुर्थी,
झांकी सजाओ त्योहार मनाओ,
गो माता का अपमान करो,
दर से भिखारी भूखा भगाओ।।

रामायण गीता जी पाठ कराओ,
दशहरा आया, रावण जलाओ,
अपने अंदर रावण पनपाओ,
जीवन भर भ्रष्टाचार करो,
पाप करो गंगा में बहाओ।।

मृत्यु पश्चात याद करो,
पंडित जिमाओ श्राद्ध करो,
जीते जी अपमान करो,
वृद्धाश्रम आबाद करो।।

पूरे साल में बस एक दिन,
दिवस मनाओ दिवस मनाओ,
उत्सव मनाओ फर्ज निभाओ,
फिर सब कुछ भूल जाओ,
भूल जाओ भूल जाओ।।

राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान
9928305806

by Rakesh

आंदोलन

February 11, 2021 in Poetry on Picture Contest

भूमिपुत्र किसान भाई, तुम जिद्द अपनी छोड़ दो
धरना प्रदर्शन की दिशा भी घर की तरफ मोड़ दो
देश पर मण्डरा रहे ख़तरे को गम्भीरता से भांप लो
तुम्हारी आड़ में मचा आतंक अब तुम पहचान लो

किसान भाई कोई शक नहीं, व्यथा तुम्हारी सच्ची है
आंदोलन तुम्हरा हाईजेक हुआ खबर ये भी पक्की है
तुम किसान भोले भाले, दुश्मन चंट और चालाक है
देश के अंदर और बाहर, हर तरफ गम्भीर हालात हैं

रंगे सियार जैसे दुश्मन अंधेरा हर ओर तलाश रहे
भटके हुए नौजवानों को, बहुरुपिया बन तराश रहे
तुम्हारे आंदोलन में अपनाबन, विश्वासघात कर रहे
आंदोलन की आड़ में द्रोही, घातक घात लगा रहे

ठहरो, सोचो, समझो ट्रेक्टर रैली का प्लान तुम्हरा था
गणतंत्र दिवस पर शक्ति प्रदर्शन का सिर्फ इरादा था
फिर लालकिले पर द्रोह, झण्डा किसने फहराया था
सुरक्षाकर्मियों को मार, तुम्हें बदनाम क्यों करवाया था

एक बात और समझो, किसान गांव, खेत में होता है
ज़मीन खोदना, बीज बोना, पानी भी चलाना होता है
कड़ी धूप, सर्द रातें उधारी, मफलूसी में घर चलाता है
फिर आंदोलन के नाम पर कौन इतना पैसा बहाता है

बंद करो अब आंदोलन खुद को मत बदनाम करो
कौन माचिस दिखा रहा, उसकी तुम पहचान करो
आज समझौता कर देश संविधान का सम्मान करो
आंदोलन से क्या खोया, क्या पाया गहनजांच करो

जय किसान, जय जवान, जय जय जय हिन्दुस्तान

राकेश सक्सेना
3 बी 14, विकास नगर, बून्दी (राजस्थान)
मोबाइल 9928305806

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