ख्वाहिश

May 12, 2016 in Other

समझदार हो गर, तो फिर खुद ही समझो।

बताने से समझे तो क्या फायदा है॥

जो हो ख़ैरियतमंद सच्चे हमारे, तो हालत हमारी ख़ुद ही देख जाओ।

जो ख़ुद जान पाए न हालत हमारी, दिखाने से समझे तो क्या फायदा है॥

मुहब्बत है क्या जो समझना हो तुमको, फ़ुर्सत से महफ़िल में आना हमारी।

दीवानों से समझो समझ जाओगे सब, ज़माने से समझे तो क्या फायदा है॥

चाहत अगर है तो चाहत से समझो,सताने से समझे तो कया फायदा है।

इस दर्द को दिल लगा कर के समझो, दिल दुखाने से समझे तो क्या फ़ायदा है..।

है कितनी मुहब्बत इन आँखों में देखो, बताने से समझे तो क्या फायदा है।

आशिक़ हैं हम इश्क़ हक़ है हमारा, बेशक़ ये हमने जताया नहीं है।

महबूब इस हक़ को खुद ही समझ ले, जताने से समझे तो क्या फ़ायदा है..।

आँखों में तेरा ही चेहरा बसा है,धड़कन तेरे नाम के गीत गाती।निगाहों की गर तुम सदाऐं न समझे,सुनाने से समझे तो क्या फायदा है।

ये अल्फाज़ मेरे, गवाह-ए-ग़जल हैं,

यकीनन ये पहुंचेंगे दिल तक तुम्हारे।

इन्हें पढ़कर, सुनकर, गुनगुनाकर समझ लो, बिन तराने के समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

चलो मैं भी ऐसी ग़जल छेड़ता हूँ, हर इक शेर में आपका नाम होगा।अगर पढ़के समझे सलामत रहूँगा, मिटाने से समझे तो क्या फायदा है।

जो रखना है दिल में तो धड़कन सा रखो, बसाओ हमें अपनी हर साँस में यूँ।

मुझे याद रख कर हर पल समझना, भुलाने से समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

मेरी ज़िंदगी में अहमियत तुम्हारी, है कितनी मैं तुमको ये कैसे बताऊँ।

मैं जिंदा हूँ उनकी ही चाहत के दम से, वो जान जाने से समझे तो क्या फायदा है।

अगर इश्क़ में दर्द पाया है तुमने, तो आँखों की शबनम न यूँ ही बहाना।

आशिक वो सच्चा जो आँसू समझले, मुस्कुराने से समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

ये आँखे तरस के बरसी हैं बरसों, मगर दिल में मेरे नमीं की कमी है।नमीं से हरी हैं ये यादें तुम्हारी, सुखाने से समझे तो क्या फायदा है।

हमने तुम्हारे लिए ख़त लिखे जो, वो हर एक ख़त बिन पढ़े मत जलाना।

क्या क्या लिखा है ये पढ़कर समझना, जलाने से समझे तो क्या फ़ायदा है..॥

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शिवकेश द्विवेदी

सह रचयिता : आशीष पाण्डेय ‘अकेला’

 

गुज़ारिश

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे मेरे दरमियाँ जो फ़ासला है कम कर दे।

मेरी आँखों के आँसुओं को तू शबनम कर दे।

तूने वादा किया था मुझसे साथ देने का।

तो साथ चल या फिर ये सिलसिला ख़तम कर दे॥

तमाम उम्र तेरा इंतज़ार कर लूँ मैं,

इंतेहा भी जो अगर हो तो कोई बात नहीं,

यूँ इशारा नहीं इज़हार मुझसे कर आके

इश्क़ तो वो है कि इक़रार खुद सनम कर दे।

 

यूँ तो महफ़िल है मेरे साथ, कई साथी हैं,

फिर भी इस दिल को तमन्ना है एक हमदम की,

ऐसा हमदम कि जो हमदर्द एक सच्चा हो,

छू ले ज़ख्मों को तो ज़ख्मो को भी मरहम कर दे।

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शिवकेश द्विवेदी

इश्क़

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्क़ यदि है हक़ीकत तो मैं सारी उम्र जागूँगा।

मगर यदि इश्क़ सपना है तो मुझको सोया रहने दो।

ज़माना इश्क़ को आशिक़ को अक्सर ग़लत कहता है।

ज़माने की किसे परवा, कहे जो उसको कहने दो।

घटाओं सा हवाओं सा इश्क़ उड़ता है बहता है।

इश्क़ फूलों की खुशबू सा फ़िज़ा में इसको बहने दो।

फ़साना आशिक़ी का है ये दिलवाले ही समझेंगे।

दीवानों को समझने दो दीवानों को ये कहने दो।

इश्क़ यदि है…!

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–शिवकेश द्विवेदी

शीशे सी पहचान

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये दिल दिमाग़ मेरा, है साफ़ आईने सा।

सचमुच में तुम हो जैसे, इसमें वही दिखेगा॥

 

फितरत में भी हमारी, शीशे सी ख़ासियत है।

तुम सामने तो आओ, नफरत या प्यार लेकर।

नफरत दिखाओ या फिर, दिखलाओ प्यार इसको।

जो भी दिखाओगे तुम, तुमको वही मिलेगा॥

 

इस बात को समझ लो, हम काँच से नाज़ुक है।

गर हाँथ से छूटे और, टूटे तो बिखरना है।

पर टूट के बिखरा तो, मुझसे संभल के चलना।

वर्ना ये टूटा शीशा, पैरों में भी चुभेगा॥

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–शिवकेश द्विवेदी

आरज़ू

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जहाँ से मेरी यादें भी न तेरे पास जा पाएँ,

बता ऐसे ठिकाने का हक़ीकत में पता क्या है।

तुम्हारी दी सजा कोई भी सर माथे हमारे पर,

समझना चाहते हैं तुमसे आखिर में ख़ता क्या है॥

 

हम बड़ी दूर जाएँगे, कहो तो दूर जाने को।

कि ऐसा रूठेंगे हम फिर न पाओगे मनाने को।

है अंदाजा मुझे फिर भी जानना चाहता हूँ मैं,

तमन्ना तेरे दिल की तेरी चाहत तो बता क्या है॥

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शिवकेश द्विवेदी

सत्य

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच स्वयंसिद्ध होता है, हाँ तुम झूँठ स्वयं रच सकते हो।

सच का छिपना नामुमकिन, बस कुछ दिन इससे बच सकते हो॥

झूँठ की दुनिया सब अपनी सुविधा अनुसार बनाते हैं।

निज मन से तर्क चयन करते किस्सा मनगढ़त बताते हैं॥

सच दोधारी तलवार सरिस मुश्किल इसको धारण करना।

निष्ठुर सच की कड़वाहट संग मीठे मिथ्या से रण करना॥

सूर्यरश्मि सम सत्य से बरबस झूँठ का तम छँट जाता है।

सत्य भले हो त्रस्त दीर्घ तक विजय अंततः पाता है॥

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शिवकेश द्विवेदी

अहसास

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख़ुदा बनके अब तक जो मिलते रहें हैं,

अब उन ख़ुदाओं से मन भर गया है।

दुश्मनों ने न बरती कोताही ज़रा सी,

हमेशा मुझे याद करते रहे।

इधर इन ख़ुदाओं ने ऐसा भुलाया,

दाँव दुश्मन का मुझ पर असर कर गया है।

ख़ुदा बनके अब तक जो मिलते रहें हैं,

अब उन ख़ुदाओं से मन भर गया है।…….

माँ

May 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहसास प्यार का माँ के, माँ की यादें, माँ का साथ।

गज़ब सुकूँ मिलता है, जब माँ सर पर फेरे हाथ॥

माँ के हाँथ की थपकी, माँ का प्यार, वो माँ की ममता।

बच्चे को भोजन देकर भूखे सोने की क्षमता॥

माँ ही सृष्टि रचयिता, शिशु की माँ ही रचनाकार है।

प्रेम, भक्ति और ज्ञान सभी से बढ़कर माँ का प्यार है॥

बिन माँ सृष्टि अकल्पित नामुमकिन इसका चल पाना है।

शब्दों में नामुमकिन माँ को अभिव्यक्ति दे पाना है।

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शिवकेश द्विवेदी

ज़ख्म

May 10, 2016 in ग़ज़ल

मुहब्बत में ग़ुलाबों की, ज़ख्म काँटों से खाए हैं।

जहाँ तुमसे मिले थे हम, वो बस्ती छोड़ आए हैं।।

 

जो सच्चे रिश्ते होते हैं, हर क़दम साथ चलते हैं।

बड़ी बातें नहीं करते, जो कहते हैं वो करते हैं।

वो हर रिश्ते जो झूँठे थे, जो अक्सर साथ दिखते थे।

हक़ीकत ये समझते ही, वो रिश्ते तोड़ आए हैं।।

 

मेरे शब्दों को बस कविता समझकर भूल मत जाना।

हक़ीकत है, ये सच है, ये नहीं है झूँठा अफ़साना।

सफ़र में ज़िन्दगी के वक़्त के संग चलना पड़ता है।

कहीं पीछे न रह जाएँ, इसलिये दौड़ आए हैं।।

 

ये बाजार-ए-जहाँ है, इसमें हर इक चीज़ बिकती है।

सभी शक्लें हैं व्यापारी, भले इंसाँ वो दिखती है।

नफा-नुकसान इंसानों के जज़्बातों पे भारी है।

मुहब्बत सब घटा करके, तिज़ारत जोड़ लाए हैं।।

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(शिवकेश द्विवेदी)

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