कैसे तेरी पहचान करूँ ?
कोई कहता तू ऐसा है कोई कहता तूं वैसा है मिल जाऊँ कभी तुमसे तो कैसे तेरी पहचान करूँ ? ….. यूई
कोई कहता तू ऐसा है कोई कहता तूं वैसा है मिल जाऊँ कभी तुमसे तो कैसे तेरी पहचान करूँ ? ….. यूई
मुझे ख़ुद की लगी रहती है तुझे सबकी पड़ी रहती है मैं ख़ुद के समेट ना पाता हूँ तू सबके दुःख हर जाता है …
मैं सोच ही ना पाता हूँ कैसे तू यह सब करता है सबके अन्दर बसता है सबको ख़ुद में रखता है ….. यूई
ख़ुद का करके सब देख् लिया ख़ुद का चाह के भी देख् लिया अंत में जब सबको जोड़ पाया पाया तुझसे आगे ना सोच पाया…
नास्तिक सब कह्ते हैं मुझको क्यों ना तेरे दर पे जाता हूँ अब कैसे समझाऊं मैं सबको तुझको हर दर पर तो पाता हूँ …
तूने सोच का जो बीज भरा कुछ तो सोच के होगा भ्ररा उस सोच की लाज रखता हूँ हर कदम सोच के बडता हूँ …
हर दिन इक जीवन जीता हूँ उसको हाँ पर पूरा जीता हूँ जो भी तूने आज कम दिए उनको पूरा करके मरता हूँ …..…
जब से यह एहसास हुआ मेरा है जो सब कुछ यहा वोह असल में तो तेरा है तबसे हलका हो गया हू उड़ने की अब…
कहते है जो कुछ होता है सब यहा होती सब में सिर्फ़ तेरी मर्ज़िया है होता था पहले कभी शक़ मुझको अब बची ना कोई…
जाने क्यों कोई शिकायत नही तुमसे मालूम नही के कैसा तुझ्से रिश्ता है हाथ उठ भी नही पाते दुआ में तेरी रह्मत तेरी पहले ही…
ए मालिक मेरी चाहतों का अंत ना हुआ तेरी रहमत और बरकतो का अंत ना हुआ शायद मेरी चाहतो में थी छुपी रज़ा तेरी या…
पृथ्वी, सूरज, तारे और ग्रह सब चलते ही तो रहते है में भी ब्रह्मांड का हिस्सा हू फिर क्यों में आराम करू ………
हम उसकी रज़ा में जीते है जिसमे सब चलता रहता है सदियों से यह ऐसा ही है जैसा यह अबके दिखता है ………
रुकना हमने सीखा ही नही झुकना ही ह्मारी नीयती है मुश्किलें हजारों चाहे आयी हो रुकना हमारी सोचो में नही …… यूई
ओ चलने वाले मुसाफिर गल्ती से रुक मत जाना उसके मिलन की चाह में इक पल भी ना गँवाना …… यूई
कितनी मंजिले पायी है उनकी गिनती याद नही जो सर करनी बाकी है उनकी शक्लें याद सभी …… यूई
जन्मो जन्मो की राह् है दिल में जलती तेरी चाह है सफर में है आराम नही तुझे पाए बिना थाह नही …… यूई
हम तो वोह परवाने है जो शमा का दम भरते है शमा ने महफिल दूर् स्जायी हम इसका कब गम करते है ………
फिर पीछे मुड़ कर देखना हमने कभी सीखा ही नही कदम जो आगे बड़ा लिए उनको कभी खींचा ही नही …… यूई
मुड़ के देखे यह वक्त कहां हम तो सफर के शौदायी है …… यूई
रास्तों की मुश्किलों की हमें परवाह नही जानते नही हम तो मंजिलों के दीवाने है …… यूई
कबसे हूँ मै सफर में मुझको भी अब याद नही रुकना मेरी नीयती नही चलना मेरी रवानी है …… यूई
बेवज़ह इतना कुछ हो गया क्या पागलपन की बीमारी है ख़ुद का तीर, ख़ुद का कमान ख़ुद के मरने की पूरी तैयारी है …
तुम मेरी बारी के प्यासे हो बच तो तुम भी ना पाओगे मेरी वजह तुम क्या बने हो तुम्हारी वजह की तैयारी है …
आज नही तो कल आएगी बस तेरी मेरी ही तो बारी है आज बच जाएँ भी तो क्या कल को बस मेरी ही बारी है…
करता क्रम सब है उसके सब उसके ही तो अधीन है वजह है हर शय में उसकी हर शय उसके अधीन है ………
बेवज़ह चाहे दिखता यहा पे बेवज़ह यहा कुछ भी तो नही …… यूई
ऐसे जाना या वैसे जाना यह तो सब बहांने है …… यूई
यह सब मन की उलझनें है के हम ही सब यहां करते है हम तो कुछ ना करते यहां पे वोही तो सब कुछ करता…
तीर चलाने से पहले सोचो ज़ुबान चलाने से पहले सोचो कमान से निल्का हुआ तीर ज़ुबान से निकला हुआ तीर दोनों वापस क्भी नही आते…
आज आनी है कल आनी है बारी तो सबकी आनी ही है …… यूई
कुछ भी ना होता बेवज़ह हर चीज में उसकी मर्ज़ी है …… यूई
झुका के मन को जीना सिखा जाता ख़ुद जीता और दूसरों को जीवा जाता अकड़ तेरी किस कम की निकली जिसने तेरी सारी हस्ती ही…
है यह नियम कुदरत का जो भी यहां अकड़ता है छोटे से झोंके सह ना पाता टूटता वोह सबसे पहले है …… यूई
झुकना है दरबार में जाके फिर क्यों इतनी हांके तू उसको जो पसंद है बंदिया उसको क्यों ना जाने तू …… यूई
तू तुच्छ सा जीव ओ बंदिया किस बात पे इतना अकड़ता तू पल भर की तेरी हस्ती नही है किस बात पे इतना इतरता तू…
झुकना है निशानी मन निमाने की निम्न मन ही तो सबको अपना पता निम्न मन ही तो सब सच जान पता निम्न मन ही तो…
प्यार जब दिल में भर जाएगा झुकना ख़ुद ही सीख जाएगा …… यूई
अकड़ तेरे मन की काली छाया इसको कर बड़ा क्या तू पाएगा ख़ुद अंधेरों से निकाल ना पाएगा किसी को क्या तू राह् दिखाएगा …
झुके हुए सर को मिलता गुरु का प्यार है अकड़े हुए सर को मिलता गुरु का दुत्कार है …… यूई
जिस ने पाया झुक के पाया अकड़ के कुछ ना मिलता है झुकना यह है जीवन की माया झुक के ही सब मिलता है …
मेरा मेरा बस रटता रह्ता सब तेरे मन के भ्रान्ति है वक्त रहते संभल जा बंदिया अभी भी कुछ ना खोया है …… यूई
अकड़ तेरी सब झूठी बंदिया है कुछ ना तेरे हाथ में बंदिया …… यूई
झुके हुए सरो ने ही सोच के शांत मन से झुकाया कितनी शमशीरों को बचाया है कितनी तक़दीरों को …… यूई
झुका के सर अपना तू दिलों को सर कर पाएगा झुका के मन अपना तू सबको अपना बना जाएगा …… यूई
झुके हुए सर निशानी है इंसानो की अकड़े हुए सर निशानी है हैवानो की …… यूई
अकड़ अकड़ में मिट जाएगा कुछ ना तुझको मिल पाएगा सबसे मिलना सीख ले बंदिया झुक के जीना सीख ले बंदिया …… यूई
अकड़ अकड़ करता है बन्दे जब तू पूरा अकड़ा जाएगा इक पल ना फिर बच पाएगा तपती आग में सेका जाएगा …… यूई
झुकना तेरी कमजोरी नही ना झुकना तेरी कमजोरी है …… यूई
झुक के सब मिल जाता है अकड़ के कुछ ना पाता है …… यूई
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