स्पंदन
मेरे हृदय में तेरे नाम से कुछ यूँ स्पंदन होता है मेरी आँखों से आँसू बहते हैं जब-जब तू रोता है। »
तेरे प्यार में झरनों से बहता जा रहा हूँ मैं। न जाने किस सागर की ओर जा रहा हूँ मैं। उपमा अलंकार »
बेशक तुम खूबसूरत हो पर इतना बुरा मैं भी नहीं हूँ जो तुम मुझे छोड़ कर चली गई बस तुम्हारी कसम ने जिन्दा रखा है मुझे वरना मैं यह नश्वर शरीर कब का छोड़ कर चला गया होता। »
मैने कोशिश बहुत की तुमको मनाने की पर तुम मुझे छोड़ कर चली गई। और बसा ली जाकर तुमने अपनी दुनिया मेरे रकीबों के साथ। मेरा दिल तोड़कर न जाने क्या मिल गया तुम्हें! पर याद तो जरूर करती होगी तुम मुझे जब-जब तुम्हारी आँखों में कोई आँसू लाता होगा। मैं पागल कल भी तुम्हारा इंतजार करता था। और आज भी तुम्हारा इंतजार करता हूँ। »
तुम्हें याद है वह उधार वाला वादा? याद है तुम्हें एक कप चाय का वादा जो तुमने किया था मुझसे कभी और आज तक पूरा नहीं किया मुझे भी याद है और तुम्हें भी याद है। पर पता नहीं कब तुम मेरे वादे को मुकम्मल करने आओगी और मेरा उधार वाला वादा पूरा करोगी। क्योंकि वह वादा आज भी उधार है। »
डूब जाने दे मुझे अपनी झरने- सी आँखों में इन्हीं में है मेरी ख्वाहिशें इन्हीं में है मेरी मोहब्बत डूब जाने दे मुझे अपनी झरने-सी आंखों में मुझे देखना है है क्या इनके पार एक और जन्नत मुझे झांकना है इन्हीं में और रहना है तुम्हारे दिल में। »
उनकी आहटों पर फिर फिसला मेरी तमन्नाओं का हार है खिसक रहे थे जो सपनें आज हाँथ में आया वही लम्हात है….. प्रेम-पिपासु हूँ जी भर के पिला दे साकी टपक रही जो तेरे होठों से शराब है… »
आज कुछ बदला- बदला मिज़ाज है दिल भी बेताब है सिसकियाँ भी खामोश हैं….. लफ्जों में मिठास है गूंजती जा रही है गलियों में शहनाई बींद के इन्तज़ार में….. बीती जा रही है स्वर्ण रात्रि गेसुओं की घनी छाँव के तले बैठी मेरी ख्वाइशों भरी एक शाम है…. »
यही अंजाम होना था मेरी मोहब्बत का जब पथ्थर से पसीजने की उम्मीद लगाये बैठे थे »
मुझे दोस्ती भी पसंद है और दुश्मनी भी। पर जो भी करना शिद्दत से करना, क्योंकि मुझे हर काम में वफादारी पसंद है। »
तुम मिटाती रहो मेरे प्यार के सबूत मैं सबूत जुटाता रहूंगा। तुम कितना भी मेरे ख्वाबों से बचना चाहो मैं हर रात ख्वाबों में आता रहूंगा। »
काश! कुछ देर तू मेरे पास बैठता मैं तेरी आँखों में डूब जाता। तेरा नशा यूँ चढ़ता मैं शराब तक भूल जाता। »
काश! कुछ देर तू मेरे पास बैठता मैं तेरी आंखों में डूब जाता। तेरा नशा यह चढ़ता मैं शराब तक भूल जाता। »
अधूरा रह गया मैं तेरे ख्वाबों को पूरा करते-करते कितना जी गया मैं तेरी आरजू करते-करते। »
धुन सुकून की और धमाके का धंधा… मयस्सर खुशियाँ उसे जो दौलत में अन्धा… »
तेरी यादों को सलाम करता हूँ और अब मैं रात्रि को विराम देता हूँ। नींदे है छत पर सोई हुई, मगर मैं अपनी आँखों को आराम देता हूँ। चलो ठीक है अब तुम्हारी यादों को अलविदा करता हूँ और रात्रि को विराम देता हूँ। ओझल हो चुकी हैं पलकें मगर नींदों का कुछ भी पता नहीं, तुम्हारी यादों को छोड़कर मैं पीछे ख्वाबों को सलाम करता हूँ। चलो ठीक है अब तुम्हारी यादों को अलविदा करता हूँ और रात्रि को विराम देता हूँ। »
इस काँच में कहाँ से आई दरारें? उस रात जब जोर से आँधी आई थी तब खिड़कियाँ आपस में गले थी। और चीख-चीख कर अपने मिलन की खुशी प्रकट कर रही थी और सावन के आगमन का उत्सव मना रही थी। शायद उसी रात, उसी बरसात में इन खिड़कियों के काँच में आ गई थीं दरारें। »
बताओ ना! तुमने यह नूर कहाँ से पाया है? फूलों से रंगत चुराई, या फिर कलियों से नूर पाया है। बताओ ना! तुमने यह नूर कहाँ से पाया है? तितलियों से ली शरारत या भंवरों से यह गुर पाया है। बताओ ना! तुमने यह नूर कहाँ से पाया है? शाखों से या पत्तियों से लचक पाई है बताओ ना! तुम्हारे अंदर यह अनुपम छटा कहाँ से आई है? जो मेरी जान पर बन आई है। बताओ ना! तुमने यह सौंदर्य कहाँ से पाया है? फूलों से ली रंगत, या कलियों ... »
तुम्हें याद है वह बूढ़ा बरगद? जिसके तले हम सपने सँजोते थे कल्पनाएं करते थे। अपने भविष्य की अनगिनत और एक दूसरे के कंधे पर सर रखकर रो लेते थे। तुम्हें याद है मेरे पास आना मुझे देख कर शर्माना? मेरे शरारत करने पर मुझसे दूर भाग जाना। तुम्हें याद है वह बूढ़ा बरगद? जिसके तले हम शामें बिताते थे। »
लोग कहते हैं बहुत बुरा हूँ मैं क्योंकि मैं गलतियों को अनदेखा नहीं करता। नजर रहती है मेरी चप्पे-चप्पे पर मैं अन्याय का पक्ष नहीं लेता। »
तुझे तन्हाइयों से फुरसत मिलेगी तो मैं बताऊंगा कि आईना में भी फर्क होता है। चेहरा वही रहता है बस उम्र ढल जाती है। »
सावन की एक-एक बूंद कैसा एहसास दिलाती है? कोपलें भी फूटते लगती हैं…. पत्तियां नाचती हैं सावन में और पुष्प आपस में सौंदर्य की बातें करते हैं सब मगन होते हैं सावन में…. जब बरसात होती है और सभी के घर, गलियां उपवन, बरसात में भीगते हैं…. मन मयूर-सा नाच उठता है और गुनगुनाता है कोई-साज…. मेरा मन भी याद करता है तुम्हारे साथ बिताए गए पलों को सावन में…. »
मैं खो गया हूँ कहीं, दुनिया की चमक में। रोता है ख्वाब मेरा, अध-खुली सी पलक में।। »
ज़िन्दगी की आरज़ू में मरते जा रहे हैं लोग, हाय! कैसे-कैसे गुनाह करते जा रहे हैं लोग। »
जीतना आसान नहीं है ज़िन्दगी की जंग यूँ ही, रोज़ जलना पड़ता है पतंगे की तरह। »
शीर्षक:- ‘हम स्कूल चलेंगे’ हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेँगे, सीखेंगे अच्छी बातें और पायेंगे ज्ञान, पढ़ लिखकर हम बनेंगे अच्छे और महान, हाँ, हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे। प्रार्थना सभा में मिल गाएंगे राष्ट्रीय गान, सबको बतायेंगे कि है मेरा भारत देश महान, हाँ, हम स्कूल चलेंगे जहाँ हम खूब पढ़ेंगे। पढ़ेंगे हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और विज्ञान, पायेंगे गुरूजन से गणित का सारा ज्ञान, हाँ,... »
शीर्षक:- “जीने का लें संकल्प, आत्महत्या नहीं है विकल्प” आत्महत्या यानी खुद ही खुद की हत्या कर लेना।अपने आप ही अपने प्राण ले लेना अर्थात् आत्महत्या कर लेना उचित नहीं है। आत्महत्या एक जघन्य अपराध है।ईश्वर के द्वारा दिये गये अनमोल जीवन की लीला समाप्त कर लेना, एक अनुचित कार्य है। सभी के जीवन में ऐसी परिस्थितियाँ कभी न कभी अवश्य उत्पन्न हो जाती हैं, जब व्यक्ति को उन समस्याओं से निकलने का को... »
खूब पढ़े खूब बढ़े शिक्षा ही जीवन का आधार है, इसके बिना जीवन निराधार है। शिक्षा ही जिन्दगी का सच्चा अर्थ बताती हैं, सत्य और अनंत उन्नति का मार्ग बताती है। शिक्षक नित नवीन सबक सिखाते हैं, सबको स्वाभिमान से जीना सिखाते हैं । बिना पढ़े-लिखे लोग पशु समान होते हैं, जो न पढ़ाये अपने बच्चे, वो माता-पिता दुश्मन के समान होते हैं। जिंदगी में शिक्षा के महत्व को समझना चाहिए। ‘खूब पढ़े खूब बढ़े” ये जीवन का मूलमंत्र ह... »
क्या लिखा करता था मैं ये भूल गया बहन ने हौसला बढ़ाया है। जब उदास हुआ हूँ मैं तेरे धोखे से बहन ने मुस्कुराना सिखाया है। »