Er Anand Sagar Pandey
देशभक्ति का भाषण तब तक देशभक्ति को गाली है
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक शहीद सैनिक दिल्ली से क्या कहना चाहता होगा इसी विषय पर मेरी एक कल्पना देखें-
सुलग उठी है फ़िर से झेलम हर कतरा अंगारा है,
हिमगिरी के दामन में फ़िर से मेरे खून की धारा है,
चीख रही है फ़िर से घाटी गोद में मेरा सिर रखकर,
पूछ रही है सबसे आखिर कौन मेरा हत्यारा है,
मेरे घर में कैसे दुश्मन सीमा लांघ के आया था,
छोटी सी झोली में बाईस मौतें टांग के लाया था,
क्या मेरा सीना उसके दुस्साहस का आभूषण था,
या मेरे ही घर में रहने वाला कोई विभीषण था,
मैं जब ये प्रश्न उठाता हूं तो उत्तर से डर जाता हूं,
ये दिल्ली चुप रह जाती है मैं चीख-चीख मर जाता हूं ll
मेरी मौतों पर अक्सर ये ढोंग रचाया जाता है,
कि मक्कारी वाली आंखों से शोक मनाया जाता है,
दिल्ली की नामर्दी मुझको शर्मिंदा कर देती है,
मेरी मौतों पर सरकारें बस निंदा कर देती हैं,
मैं इस जिल्लत का बोझ उठाये ध्रुवतारा हो जाता हूं,
ये दिल्ली चुप रह जाती है मैं चीख-चीख मर जाता हूं l
दुश्मन से गर लड़ना है तो पहले घर स्वच्छंद करो,
आस्तीन में बैठे हैं जो उन सांपों से द्वंद करो,
सैनिक को भी शत्रु-मित्र का शंका होने लगता है,
जहां विभीषण होते हैं घर लंका होने लगता है,
मतलब कुछ पाना है गर इन लहु अभिसिंचित द्वंदों का,
तो ऐ दिल्ली हथियार उठाओ, वध कर दो जयचंदों का,
मैं दुश्मन की बारूद नहीं छल वारों से भर जाता हूं,
दिल्ली तू चुप ही रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
मेरी मां की ममता मेरे साथ दफ़न हो जाती है,
बूढे बाप की धुंधली आंखें श्वेत कफन हो जाती हैं,
जल जाती हैं भाई-बहनों, बेटी की सारी खुशियां,
मेरी विधवा जीते जी ही मृतक बदन हो जाती है,
मेरा घर मर जाता है जब कंधों पर घर जाता हूं,
दिल्ली तू चुप ही रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
दिल्ली वालों आंखें खोलो सेना का सम्मान करो,
चार गीदड़ों के हमले में बाईस सिंहों को मत कुर्बान करो,
मेरी गज़ल दिशा देती है, बहर बताती है तुमको,
कि विरह वेदना बंद करो अब युद्ध गीत का गान करो,
जब भारत माता की खातिर मरता हूं तो तर जाता हूं,
पर ऐ दिल्ली तू चुप रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
ये क्यूं हर हमले पर तुमने बातचीत की ठानी है,
अरे लातों के भूतों ने आखिर कब बातों की मानी है,
लेकिन तुम भी कुत्ते की ही दुम हो, आदत छोड़ नहीं सकते,
यही वजह है की सीमा पर दुश्मन की मनमानी है,
मैं हाथों में हथियार लिये भी लाश बिछाकर जाता हूं,
दिल्ली तू चुप ही रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
दिल्ली गर देना है तुझको मरहम मेरे दर्दों को,
तो सेना से कह दो कि मारे चुन-चुन दहशतगर्दों को,
प्रेमशास्त्र को पीछे रखकर सीमा लांघ चले जाओ,
और अभी औकात बता दो इन हिजड़े नामर्दों को ll
मेरी कलम नहीं उलझी है माशूका के बालों में
October 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी कलम नहीं उलझी है माशूका के बालों में,
मेरे लफ्ज नहीं अटके हैं राजनीति के जालों में,
मैने अपने अंदर सौ-सौ जलते सूरज पाले हैं,
और सभी अंगारे अपने लफ्जों में भर डाले हैं,
मैने कांटे चुन डाले फूलों का रास्ता छोड़ दिया,
जकड़ रहा था जो मुझको उस नागपाश को तोड़ दिया,
अब मैं जख्मी भारत के अंगों को गले लगाता हूं,
कवि हूं लेकिन मैं शोलों की भाषा में चिल्लाता हूं l
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
मैं तुझे अपनी वफाओं की दुहाई नहीं दूंगा
October 1, 2016 in ग़ज़ल
तेरी कलम को कभी अपनी रुबाई नहीं दूंगा,
मैं तुझको चश्म-ए-नम की कमाई नहीं दूंगा l
तेरी आंखों में वहम के कई पर्दे टंगे हुए हैं,
मैं तुझे सामने रहकर भी दिखाई नहीं दूंगा l
अभी गुरूर तेरे सर पे चढ के बोल रहा है,
ऐसे हाल में मैं तुझको सुनाई नहीं दूंगा l
तू बेफिक्र होकर अपनी फितरतों से वफ़ा कर,
मैं तुझे अपनी वफाओं की दुहाई नहीं दूंगा l
तेरा जो फ़ैसला है बेझिझक मुझको बताती जा,
मैं बेकसूर हूं मैं कोई सफ़ाई नहीं दूंगा l
तू मुझे अपनी जिन्दगी से रिहा कर भी दे मगर,
मैं तुझे अपनी जिन्दगी से रिहाई नहीं दूंगा ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
तेरा होके और शर्मिन्दा नहीं होना
October 1, 2016 in ग़ज़ल
ज़रा सा गौर से सुन अब ये आईंदा नहीं होना,
कि मुझको तेरा होके और शर्मिन्दा नहीं होना|
जहां मतलबपरस्ती आशनाई नोच खाती है,
मुझे ऐसी तेरी बस्ती का बाशिन्दा नहीं होना|
बहोत ही बेरहम होकर किया था कत्ल खुद तूने,
मेरे दिल में तेरी ख्वाहिश को फ़िर ज़िंदा नहीं होना|
जहां खुदगर्ज़ियों में रास्ते मंज़िल बदलते हैं,
मुझे ऐसी तेरी राहों का कारिन्दा नहीं होना|
All rights reserved.
-अनन्य
मेरी मौतों पर सरकारें
September 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी कलम नहीं उलझी है माशूका के बालों में,
मेरे लफ्ज नहीं अटके हैं राजनीति की जालों में,
मैने अपने अंदर सौ-सौ जलते सूरज पाले हैं,
और सभी अंगारे अपने लफ्जों में भर डाले हैं,
मैने कांटे चुन डाले फूलों का रास्ता छोड़ दिया,
जकड़ रहा था जो मुझको उस नागपाश को तोड़ दिया,
अब मैं जख्मी भारत के अंगों को गले लगाता हूं,
कवि हूं लेकिन मैं शोलों की भाषा में चिल्लाता हूं l
एक शहीद सैनिक दिल्ली से क्या कहना चाहता होगा इसी विषय पर मेरी एक कल्पना देखें-
सुलग उठी है फ़िर से झेलम हर कतरा अंगारा है,
हिमगिरी के दामन में फ़िर से मेरे खून की धारा है,
चीख रही है फ़िर से घाटी गोद में मेरा सिर रखकर,
पूछ रही है सबसे आखिर कौन मेरा हत्यारा है,
मेरे घर में कैसे दुश्मन सीमा लांघ के आया था,
छोटी सी झोली में बाईस मौतें टांग के लाया था,
क्या मेरा सीना उसके दुस्साहस का आभूषण था,
या मेरे ही घर में रहने वाला कोई विभीषण था,
मैं जब ये प्रश्न उठाता हूं तो उत्तर से डर जाता हूं,
ये दिल्ली चुप रह जाती है मैं चीख-चीख मर जाता हूं ll
मेरी मौतों पर अक्सर ये ढोंग रचाया जाता है,
कि मक्कारी वाली आंखों से शोक मनाया जाता है,
दिल्ली की नामर्दी मुझको शर्मिंदा कर देती है,
मेरी मौतों पर सरकारें बस निंदा कर देती हैं,
मैं इस जिल्लत का बोझ उठाये ध्रुवतारा हो जाता हूं,
ये दिल्ली चुप रह जाती है मैं चीख-चीख मर जाता हूं l
दुश्मन से गर लड़ना है तो पहले घर स्वच्छंद करो,
आस्तीन में बैठे हैं जो उन सांपों से द्वंद करो,
सैनिक को भी शत्रु-मित्र का शंका होने लगता है,
जहां विभीषण होते हैं घर लंका होने लगता है,
मतलब कुछ पाना है गर इन लहु अभिसिंचित द्वंदों का,
तो ऐ दिल्ली हथियार उठाओ, वध कर दो जयचंदों का,
मैं दुश्मन की बारूद नहीं छल वारों से भर जाता हूं,
दिल्ली तू चुप ही रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
मेरी मां की ममता मेरे साथ दफ़न हो जाती है,
बूढे बाप की धुंधली आंखें श्वेत कफन हो जाती हैं,
जल जाती हैं भाई-बहनों, बेटी की सारी खुशियां,
मेरी विधवा जीते जी ही मृतक बदन हो जाती है,
मेरा घर मर जाता है जब कंधों पर घर जाता हूं,
दिल्ली तू चुप ही रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
दिल्ली वालों आंखें खोलो सेना का सम्मान करो,
चार गीदड़ों के हमले में बाईस सिंहों को मत कुर्बान करो,
मेरी गज़ल दिशा देती है, बहर बताती है तुमको,
कि विरह वेदना बंद करो अब युद्ध गीत का गान करो,
जब भारत माता की खातिर मरता हूं तो तर जाता हूं,
पर ऐ दिल्ली तू चुप रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
ये क्यूं हर हमले पर तुमने बस बातचीत की ठानी है,
अरे लातों के भूतों ने आखिर कब बातों की मानी है,
लेकिन तुम भी कुत्ते की ही दुम हो, आदत छोड़ नहीं सकते,
यही वजह है की सीमा पर दुश्मन की मनमानी है,
मैं हाथों में हथियार लिये भी लाश बिछाकर जाता हूं,
दिल्ली तू चुप ही रहती है इसिलिये मर जाता हूं l
दिल्ली गर देना है तुझको मरहम मेरे दर्दों को,
तो सेना से कह दो कि मारो चुन-चुन दहशतगर्दों को,
प्रेमशास्त्र को पीछे रखकर सीमा लांघ चले जाओ,
और अभी औकात बता दो इन हिजड़े नामर्दों को ll
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-Er Anand Sagar Pandey
तुम होते तो शायद
September 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
- **तुम होते तो शायद और बात होती**
- सहर तो अब भी होती है, सूरज अब भी निकलता है फलक़ पर,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती,
- दिन तो अब भी कट जाता है रोजमर्रा की चीजें जुटाने में,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती ll
- शामें अब भी आती हैं मेरी दहलीज को छूने,
- अब भी ढलता हुआ सूरज मुझसे मिलकर जाता है,
- जुगनू अब भी भटकतें हैं मेरे बागीचे में,
- तारे अब भी रात भर यूं ही पहरे पे होते हैं,
- चांद अब भी इक रास्ता ढूढता है गुज़र जाने के लिये,
- ये मंज़र बेनज़ीर है, सब कहते हैं, मैं मानता हूं,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती l
- खिड़कियों से छन-छन कर अभी भी रोशनी आती है,
- मेरे कमरे में रखा आईना चमक सा उठता है,
- इक मुश्क सी अब भी बिखर जाती है फिज़ाओं में,
- मेरा घर अब भी सजा रहता है किसी की खातिर,
- हवायें अब भी मुझे छूती हैं तो तुम महसूस होते हो,
- ये सब कहते हैं कि मैं ज़िंदा हूं मगर ना जाने क्यों,
- मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती l
- तुम्हारे खतों की तहरीर मुझे अब भी सताती है,
- वो दीवाने जज़्बात मुझ से अब भी छुप-छुप कर मिला करते हैं,
- गज़लें अब भी मेरी डायरी से निकलकर मेरे कमरे में टहलती रहती हैं,
- मेरा घर अब भी किसी की यादों में डूबा रहता है,
- मुझे अब भी मुलाक़ात के वो लम्हें बुलाते हैं,
- वो गुज़रा हुआ कल काफ़ी लगता है मेरे जीने के लिये,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती l
- ज़िन्दगी अब भी किसी मोड़ पर बैठी है शायद,
- उम्र रेत की मानिन्द फिसलती जा रही है,
- सांस अब भी आती है, दिल अब भी धड़कता है,
- अब भी जीने का वहम बाकी है कहीं मुझमें,
- और क्या चाहिये आखिर ज़िन्दगी से मुझे,
- यूं ही गुज़र रही है, एक दिन गुज़र ही जायेगी,
- मगर मैं सोचता हूं कि तुम होते तो शायद और बात होती ll
- All rights reserved.
- -Er Anand Sagar Pandey
स्मृति::इंजी. आनंद सागर
August 19, 2016 in गीत
**के जब तुम लौट कर आओ::स्मृति**
हौसला टूट चुका है, अब उम्मीद कहीं जख्मी बेजान मिले शायद,
जब तुम लौट कर आओ तो सब वीरान मिले शायदll
वो बरगद का पेड़ जहां दोनों छुपकर मिला करते थे,
वो बाग जहां सब फूल तेरी हंसी से खिला करते थे,
वो खिड़की जहां से छुपकर तुम मुझे अक्सर देखा करती थी,
वो गलियां जो हम दोनों की ऐसी शोख दिली पर मरती थीं,
वो बरगद,वो गलियां, वो बाग बियाबान मिले शायद,
के जब तुम लौट कर आओ……………l
खेत-खलिहान तक तुमको बंजर मिले,
मेरी दुनिया का बर्बाद मंजर मिले,
ख्वाबों के लहू और लाशें मिलें,,
और तुम्हारी जफाओं का खंजर मिले,
तबाहियों का ऐसा पुख्ता निशान मिले शायद,
के जब तुम लौट कर आओ…………ll
यहां जो हंसता मुस्कुराता मेरा आशियाना था,
जिसके हर ज़र्रे में बस तुम्हारा ठिकाना था,
ये शहर जो मेरे साथ मुस्कुराया करता था,
मेरे साथ तुम्हारे बाजुओं में बिखर जाया करता था,
वहां उजड़ा हुआ शहर, खंडहर सा इक मकान मिले शायद,
के जब तुम लौट कर आओ…… I
तुम आओ तो शायद ना मिलें ये बाग बहारें,
ये शहर मिले ना मिलें मेरे घर की दीवारें,
तुम बहार थी मैं फूल था मैं अब नहीं खिलूं,
के जब तुम लौट कर आओ तो शायद मैं नहीं मिलूं,
मगर कंधे पर अपनी लाश ढोता एक इंसान मिले शायद,
के जब तुम लौट कर आओ…………ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
उड़ान भरने दो::आनंद सागर
August 15, 2016 in ग़ज़ल
इस मंच से जुड़े सभी काबिल रचनाकारों के नाम-
****उड़ान भरने दो****
अपनी आगोश में ये आसमान भरने दो,
ये नये परिन्दे हैं,इन्हें उड़ान भरने दो l
ये जिन्दगी जीने का हुनर सीख जायेंगे,
ज़रा सब्र रखो,इन्हें ख्वाबों में जान भरने दो l
इनका हर हर्फ क़यामत तलक आबाद रहेगा,
शर्त है कि इनके मुंह में इनकी ज़ुबान भरने दो l
अभी तो चंद गज़ का फासला ही तय हुआ है,
अपने कदमों में इन्हें सारा जहान भरने दो l
मैं थक गया तो तेरे ही पहलू में गिरूंगा,
अभी पुरजोश हूं थोड़ी थकान भरने दो l
मैं छोड़ दूंगा शायरी,गज़लों से जूझना,
बस जो चोट है उसका निशान भरने दो ll
जुबान=भाषा/आवाज
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
मेरी गज़लों में तुझे
August 13, 2016 in ग़ज़ल
**मेरी गज़लों में तुझे ढूढ रहे हैं ज़माने वाले**
मेरी गज़लों में तुझे ढूढ रहे हैं ज़माने वाले,
अब कहां तुझको छुपाऊं छोड़ के जाने वाले l
कोई तो है जो इस खामोश उदासी का सबब है कहकर,
सौ क़यास लगा लेते हैं लगाने वाले l
कल तुझे भूलने की कोशिश में यूं याद किया था मैने,
कि रो पड़े थे तेरे खत वो पुराने वाले l
स्याह रातों में तेरी गज़लों की तड़पती आह सुनी है हमने,
मुझको ऐसा भी बताते हैं बताने वाले l
इक बात बताता हूं तुझे आसान से लफ्जों में,
तेरी याद बहुत आती है भुलाने वाले l
बड़ी मुश्किल से सम्भल पाया हूं बिछड़कर तुझसे,
फ़िर कभी लौट ना आना तू ऐ जाने वाले l
रोज ढलता हुआ दिन मुझसे जताता है कि,
तेरी यादों में बचे हैं दिन वो सुहाने वाले l
तू यूं छुप-छुप के मेरी गज़लें ना पढा कर वरना,
मेरा हर राज़ समझ जायेंगे ज़माने वाले ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
****जकड़ी है****
August 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
****जकड़ी है****
कुर्बानी से उपजी थी अब तस्वीरों में जकड़ी है,
ऐ हिंद! तेरी आज़ादी सौ-सौ जंजीरों में जकड़ी है l
हर मुफलिस की भूख ने इसको अपनी कैद में रख्खा है,
और यही पैसे वालों की जागीरों में जकड़ी है l
मां-बहनों पर दिन ढलते ही खौफ़ का साया रहता है,
और हवस के भूखों की ये तासीरों में जकड़ी है l
भ्रष्टाचार का दानव इसको बरसों-बरस सताता है,
ये संसद की उल्टी-सीधी तदबीरों में जकड़ी है l
मजहब के साये में दंगे रोज पनपते जाते हैं,
ये जन्नत की ख्वाहिश वाले ताबीरों में जकड़ी है l
कलमगार की बिकी कलम ने वक्त से नाता तोड़ लिया,
ये गद्दारों के हाथों अब गालिब-मीरों में जकड़ी है ll
Word-meanings-
मुफलिस=गरीब
तासीर=चरित्र
तदबीर=सलाह/राय
ताबीर=सपनों की हक़ीक़त
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
मेरा ये हुक्म है सांसों
August 10, 2016 in ग़ज़ल
ताज़ा गज़ल-
मेरा ये हुक्म है सांसों::Er Anand Sagar Pandey
मेरा ये हुक्म है सांसों कि एहतियात रहे,
वो रहे ना रहे ता-उम्र उसकी बात रहे l
वो क़मर हो के मेरी ज़िन्दगी में रौशन हो,
तो इल्तज़ा है कि मुकद्दर में मेरे रात रहे l
वो अपने क़ल्ब में गर मेरे लिये नफ़रत पाले,
तो मेरे क़ल्ब में बस उसका इल्तिफ़ात रहे l
ज़ुस्तज़ू ये तो नहीं है कि मौत आये ना,
आरज़ू है कि पहलू में मगर हयात रहे l
वो जिस लम्हे में सिमट जाये मेरी बाहों में,
उसी लम्हे में मेरी बाहों में क़ायनात रहे l
मैं फलक़ की बुलन्दी का तलबगार नहीं “सागर”,
मैं क़ातिब हूं फक़त इतनी ही मेरी औकात रहे ll
Word meanings-
एहतियात=सावधानी
हुक्म=आदेश
क़मर=चांद
इल्तज़ा=आग्रह
मुक़द्दर=भाग्य
क़ल्ब=दिल/आत्मा/मन
इल्तिफ़ात=मित्रता/प्रेम
हयात=जीवन
क़ातिब=लेखक
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
ख्वाबों की फस्लें
August 9, 2016 in ग़ज़ल
एक पुरानी गज़ल-
**ख्वाबों की फसलें आज भी मैं बोया करता हूं::गज़ल**
हक़ीक़त जान ले कि रात भर मैं रोया करता हूं,
बहुत हैं दाग दामन में जिन्हें मैं धोया करता हूं l
यक़ीनन बांझ हैं दिल की जमीं मैं मान लेता हूं,
मगर ख्वाबों की फसलें आज भी मैं बोया करता हूं l
मेरा अरसा गुज़र गया तेरी यादों की चौखट पर,
ना जाने क्यूं तेरी यादों में ऐसे खोया करता हूं l
उगा करती है तेरी याद इन पलकों के गोशों में,
जिसे मैं आंसुओं से सींचता,संजोया करता हूं l
एक मुद्दत से कई ख्वाब मेरी चौखट पे बैठे हैं,
मेरी आंखें बता देंगी मैं कितना सोया करता हूं l
ये बात सच है कि मैं लोगों से तेरा ज़िक्र नहीं करता,
मगर छुप-छुप के तुझे गज़लों में पिरोया करता हूं ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
**ख्वाहिश रखता हूं**
August 6, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
****ख्वाहिश रखता हूं****
ना साथ की ख्वाहिश रखता हूं, ना प्यार की ख्वाहिश रखता हूं,
मैं सिर्फ तुम्हारे चेहरे के दीदार की ख्वाहिश रखता हूं l
हां मुझको तुम्हारी आंखों के ये खार कंटीले लगते हैं,
मैं ताउम्र तुम्हारे होठों के गुलज़ार ख्वाहिश रखता हूं l
कुछ टूटे हुए से तुम भी हो, कुछ हारा हुआ सा मैं भी हूं,
मैं मान चुका हूं, तुमसे भी इकरार की ख्वाहिश रखता हूं l
है दूर तलक़ चलना भी मुझको उम्र की टेढी राहों में,
मैं इस फेहरिश्त में तुम जैसे इक यार की ख्वाहिश रखता हूं ll
खार=आंसू
गुलज़ार=यहां आशय हंसी या मुस्कुराहट से है
इकरार=मान लेना
फेहरिश्त=सिलसिला
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
समझदार लोग धूल फांकते हैं
August 5, 2016 in ग़ज़ल
**समझदार लोग धूल फांकते हैं::आनन्द सागर**
जो अपने आगे दूसरों को कम में आंकते हैं,
ऐसे ही समझदार लोग धूल फांकते हैं l
जिनसे अपने घर का हाल सम्भाला नहीं जाता,
ऐसे ही जाहिल दूसरों के घर में झांकते हैं l
फितरत नहीं हमारी औरों में ऐब ढूंढना,
तहज़ीब है हमारी हम खुद में ताकतें हैं l
सकूत समन्दर की गहराईयां कहता है,
ये लोग कतरा भी नहीं और डींग हांकते हैं ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
अभी भी मेरी आंखों में
August 1, 2016 in ग़ज़ल
कदम हैं अब भी हरकत में कहीं ठहरा नहीं हूं मैं,
यक़ीनन टूट चुका हूं मगर बिखरा नहीं हूं मैं l
अभी भी आईने में खुद को अक्सर ढूढ लेता हूं,
सुनो ऐ गर्दिश-ए-हालात बस चेहरा नहीं हूं मैं l
अभी भी मेरे दम से ही मेरी परवाज़ होती है,
कभी रहम-ओ-करम पर आज तक फहरा नहीं हूं मैं l
अभी भी मेरी आंखों में मुहब्बत डूब सकती है,
तुझे ऐसा क्यूं लगता है कि अब गहरा नहीं हूं मैं l
मेरी गर मौज निकली तो तेरा सब डूब जायेगा,
मैं “सागर” अब भी “सागर” हूं कोई सहरा नहीं हूं मैं ll
// सहरा=रेत का मैदान/रेगिस्तान //
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
मैं तुमको भूल जाऊंगा
July 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
पुरानी डायरियों से-
**मैं तुमको भूल जाऊंगा**
मेरी आंखों को ढलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा,
मेरी सांसें निकलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा l
जमीं है एक मुद्दत से ज़ेहन में बर्फ यादों की,
ज़रा इसको पिघलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा l
अभी भी रौशनी आती है रह-रह कर मेरे घर से,
इसे पूरा तो जलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा l
बियाबां हो गया है दिल तुम्हारे छोड़ जाने से,
कोई ख्वाहिश तो पलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा l
लगी थी इक दफ़ा ठोकर मैं अब तक उठ ना पाया हूं,
ज़रा मुझको सम्भलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा l
बदलकर ही कभी खुद को मुझे तुमने भुलाया था,
ज़रा मुझको बदलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा l
मैं “सागर” हूं मेरे अन्दर कई तूफ़ान उठते हैं,
मुझे यूं ही उबलने दो मैं तुमको भूल जाऊंगा ll
12/08/2012
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
अब बात मेरी जान पे है
July 29, 2016 in ग़ज़ल
पुरानी डायरियों से-
**अब बात मेरी जान पे है::गज़ल**
जेहन में दर्द जो उठता है आसमान पे है,
बात ये है कि अब बात मेरी जान पे है l
खौफ़ लगता है कि सांसें ना अब दगा कर दें,
खैर! ये बात ज़िन्दगी तेरे ईमान पे है l
आस जिस्म की चौखट पे थक के बैठी है,
क़रार बन के परिंदा कहीं उड़ान पे है l
तमाम उम्र इक आहट का मुन्तज़िर रहा हूं मैं,
चले आओ कि मेरी उम्र अब ढलान पे है l
तू मेरे सिवा और किसी का नहीं हो सकता,
ज़िन्दगी है अगर तो बस इसी गुमान पे है l
आज मत छेड़ मेरे दिल के तराने “सागर”,
मेरी आंखों का समन्दर आज उफान पे है ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
तेरे दर से उठे कदमों को
July 24, 2016 in ग़ज़ल
**तेरे दर से उठे कदमों को::गज़ल**
तेरे दर से उठे कदमों को किस मंज़िल का पता दूंगा मैं,
भटक जाऊंगा तेरी राह में और उम्र बिता दूंगा मैं l
हां मगर अपने होठों पे तेरा ज़िक्र ना आने दूंगा,
इस फसाने को अज़ल के लिये दिल में दबा दूंगा मैं l
मैं वफ़ा के समन्दर का इक नायाब सा मोती हूं,
तुझपे गर सज न सका तो अपनी हस्ती को मिटा दूंगा मैं l
तेरे पहलू में कभी था तो ज़िन्दगी का गुमां था मुझको,
अब तेरी यादों के शरारे में खुद को जला दूंगा मैं l
हां मगर तुझको जमाने में मेरे नाम से जानेंगे सभी,
अपनी गज़लों में तुझे कुछ ऐसे बसा दूंगा मैं l
मैं जानता हूं कि इक दिन तुझे अफ़सोस भी होगा,
हां मगर तब तलक़ खुद को तेरी राहों से हटा दूंगा मैं l
मैं जानता हूं के मैं सागर हूं और मेरी कश्ती भी मुझी में है,
और एक दिन खुद ही इस कश्ती को खुद में डुबा दूंगा मैं ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
आजाद तेरी आजादी
July 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
भारत मां के अमर पुत्र “चन्द्रशेखर आजाद” की पुण्य तिथि पर मेरी एक तुच्छ सी रचना l
रचना का भाव समझने के लिये पूरी रचना पढेl”
**आजाद तेरी आज़ादी की अस्मत चौराहों पर लूटी जाती है**
शत बार नमन ऐ हिंद पुत्र!
शत बार तुम्हें अभिराम रहे,
आज़ाद रहे ये हिंद तुम्हारा,
आज़ाद तुम्हारा नाम रहे l
याद बखूबी है मुझको कि तुमने क्या कुर्बान किया,
आजाद थे तुम और अन्तिम क्षण तक आज़ादी का गान किया,
बचपन, यौवन, संगी-साथी, सब तुमने वतन को दे डाला,
अपनी हर इक सांस को तुमने हिंद पे ही बलिदान किया,
मगर सुनो ऐ हिंद पुत्र-
अब तो उस आजादी की बस गरिमा टूटी जाती है,
और भरे चौराहों पर उसकी इज्जत लूटी जाती है l
जिसकी खातिर लाखों वीरों ने अपना सर्वस्व मिटा डाला,
निष्प्राण किया खुद को फ़िर उसके अभिनन्दन को बिछा डाला,
आजाद हिंद का आसमान अब उसपर कौंधा जाता है,
और उसी आजादी को अब पैरों से रौंदा जाता है,
उस आजादी को लिखने पर आंख से नदियां फूटी जाती हैं,
आजाद तेरी आजादी की इज्जत चौराहों पर लूटी जाती है ll
तुमने शीश चढाया था कि हिंद ये जिन्दाबाद रहे,
तुम ना भी रहो फ़िर भी ये रहे, आजाद रहे आबाद रहे,
तुम्हारा इंकलाब अब देशद्रोह के पलडो में तोला जाता है,
और हिंद की मुर्दाबादी का नारा खुलकर बोला जाता है,
अब हिंद के जिन्दाबाद पे तेरी जनता रूठी जाती है,
आजाद तेरी आजादी की इज्जत चौराहों पर लूटी जाती है l
जिस आजादी के सपनों में तुमने सुबह-ओ-शाम किया,
राजदुलारों ने उसको चौराहों पर नीलाम किया,
संसद के दुस्साशन उसका चीरहरण कर लेते है,
और हवस की ज्वाला अपनी आंखों में भर लेते हैं ,
सर्वेश्वर श्री कृष्ण की गाथा अब बस झूठी जाती है,
आजाद तेरी आजादी की इज्जत चौराहों पर लूटी जाती है ll
आज तुम्हारी पुण्य तिथि पर ये सब सोच के आंखें रोयी थीं,
इसी हिंद की मिट्टी में तुमने अपनी शहादत बोयी थी,
आज तुम्हारी कुर्बानी पर ये लोग तो ताने कसते हैं,
ये आस्तीन के सांप हैं अपने रखवालों को डंसते हैं,
और भला क्या लिखूं?
कलम हाथ से छूटी जाती है,
आजाद तेरी आजादी की इज्जत चौराहों पर लूटी जाती है ll
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-Er Anand Sagar Pandey
कहानी ले जाना
July 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरे ख्वाबों के घर से हर एक रवानी ले जाना,
बिछड़ रहे हो मुझसे तो मेरी ये निशानी ले जाना l
ले जाना सब ख्वाब- खिलौने, ले जाना तुम बचपन मेरा,
और सुनो तुम जाते-जाते मेरी जवानी ले जाना l
कह देना कि पागल था वो जान लुटाता था मुझपर,
मतलब की इस दुनिया में तुम मेरी कहानी ले जाना l
यादों की इक चादर में कुछ बातें मेरी रख लेना,
सब तुमसे मुहब्बत कर लेंगे, थोड़ी नादानी ले जाना l
है हिज़रत की तक़लीफ़ तुम्हें भी लोगों से ये कह देना,
तुम अपनी झूठी आंखों में कुछ झूठा पानी ले जाना l
हर कतरे को “सागर” करना आदत है इन आंखों की,
सुनो मेरी आंखों से तुम ये मौज-ए-उफानी ले जाना ll
हिज़रत=जुदाई
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-Er Anand Sagar Pandey
मैंने तय किया है
July 7, 2016 in ग़ज़ल
कतरा-कतरा करके समन्दर निकाल दूंगा मैं,
मैने तय किया है अपनी आंखें खंगाल दूंगा मैं ll
मेरे सदमों का सबब तुम हो ये राज राज रहेगा,
कोई गर पूछ भी लेगा तो टाल दूंगा मैं ll
मुहब्बत, रूसवाई, तन्हाई फ़िर नफ़रत और नाले,
ना जाने इस दिल को और कितने मलाल दूंगा मैं ll
सुना है तुझमें डूबकर भी मौत आती है ऐ “सागर”!
तो इस दिल को एक दिन तुझमें उछाल दूंगा मैं ll
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-Er Anand Sagar Pandey
**बगावत कर लेंगे**
July 6, 2016 in ग़ज़ल
****बगावत कर लेंगे::गज़ल****
छुप के बैठे हैं कई अल्फाज़ मेरे होठों की तहों में,
तुम कोई बात करोगे तो ये बेबात बगावत कर लेंगे l
बड़ी मुश्किल से मेरे हालात मेरे काबू
में हुए हैं,
तुम मेरा हाल ना पूछो वरना हालात बगावत कर लेंगे l
तुम्हें खयाल नहीं शायद कि तुम्हारे खयाल में अक्सर,
ऐसा लगता है कि जैसे खयालात बगावत कर लेंगे l
मेरी आंखों का लहू पीकर जो मेरी रग-रग में रवां रहते हैं,
देखना एक दिन वो सब-के-सब लम्हात बगावत कर लेंगे l
छोड़ जाना ही था तुमको तो पास आये क्यूं थे,
कभी मिलोगे तो ऐसे ही कई सवालात बगावत कर लेंगे l
तुम अगर दूर हुए हो तो अब दूर ही रहना मुझसे,
पास आओगे तो फ़िर से मेरे जज़्बात बगावत कर लेंगे ll
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-Er Anand Sagar Pandey
जिन्दगी ठहरी रही
June 17, 2016 in ग़ज़ल
**ज़िन्दगी ठहरी रही और उम्र आगे चल पड़ी::गज़ल**
(मध्यम बहर पर)
उस ख्वाब की ताबीर जब शम्म-ए-फुगन में जल पड़ी,
तब ज़िन्दगी ठहरी रही और उम्र आगे चल पड़ी l
फ़िर कैफियत का ज़िक्र भी मुझको अजाबी हो गया,
हर कैफियत की बात पर सोज-ए-निहां पिघल पड़ी l
तू जब तलक पहलू में था ख्वाबों के दिल पर तख्त थे,
हिज़रत हुई तुझसे तो यादें सांस-सांस ढल पड़ी l
हर शय को मैंने मात दी दौर-ए-खुमारी के तहत,
फ़िर उम्र ठंडी हो गयी और दास्तां उबल पड़ी l
ऐ जिन्दगी ! तेरी रक़ाबी टूटकर गिरने लगी,
कश्कोल जब हिम्मत की टूटी आके औंधे बल पड़ी l
उम्रभर का ये बशर खामोशियों में था मगर,
जब सीढ़ियां खतम हुईं, इक नज़्म सी मचल पड़ी l
मैं अब भी तेरा ज़िक्र हंसकर टाल देता हूं मगर,
तेरी कहानी क्या छुपे!, जब तक मेरी गज़ल पड़ी ll
word-meanings-
ख्वाब की ताबीर=सपने की सच्चाई
शम्म-ए-फुगन=आंसूओं की आग
कैफियत=समाचार/हाल-चाल
सोज़-ए-निहां=मन में छुपी तकलीफ़
हिज़रत=जुदाई
दौर-ए-खुमारी=जवानी के दिन
रक़ाबी=तश्तरी
कश्कोल=कटोरी
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-Er Anand Sagar Pandey
रहने लगा है
June 17, 2016 in ग़ज़ल
हिफाजत कर ले मेरी आजकल कहने लगा है,
ना जाने क्यूं मेरा दिल खौफ़ में रहने लगा है l
उम्र भर ख्वाब चुन-चुन कर जिसे तैयार किया था मैने,
मेरे ख्वाबों का वो नन्हा सा घर ढहने लगा है l
ज़रा से दर्द पर भी चीखकर इज़हार करता था,
मगर दिल आजकल सारे सितम सहने लगा है l
जिसको तमाम उम्र छुपा रखा था सीने में,
वो दरिया अब मेरी आंखों में आ बहने लगा है ll
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-Er Anand Sagar Pandey
कैराना मुद्दा
June 15, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज्वलंत “कैराना” मुद्दे पर मेरी चंद पंक्तियां-
कहीं से आ बसी हैं दहशतें, ये घर मेरे ख्वाबों का वीराना ना हो जाये,
खुदाया इल्तज़ा है तू हिफाज़त कर मेरे दिल की,
कहीं बाखौफ़ ये नादान कैराना ना हो जाये l
सियासत कर रही हैं धड़कनें हर, सांस सहमी है,
मेरा ये जिस्म कहीं साजिश का ठिकाना ना हो जाये l
मेरी अरवाह मुझको सुन अभी भी दहशतों को रोक ले,
कहीं कश्मीर सा तेरा भी अफसाना ना हो जाये l
रुखसत हो चलीं हैं धीरे-धीरे मेरी सारी हसरतें,
मेरा ये दिल कहीं मुझसे ही बेगाना ना हो जाये l
हक़ीक़त बेलिबास बैठी है मगर दिखती नहीं इसको,
मेरी नज़र कहीं अखबारों सी फ़रेबाना ना हो जाये l
मेरा झगड़ा किसी मजहब से नहीं, मुझे सबसे मुहब्बत है,
बस ज़रा सी फ़िक्र है ये मुल्क दोज़खाना ना हो जाये ll
अरवाह= आत्मा
दोज़खाना= नर्क
-Er Anand Sagar Pandey
मैं मर जाऊं तुम्हारे बिन
June 13, 2016 in ग़ज़ल
**** तुम्हारे बिन****
कोई धड़कन ना कोई सांस तक पाऊं तुम्हारे बिन,
तुम्ही कह दो कि आखिर अब कहां जाऊं तुम्हारे बिन l
खुदा से आज सजदे में यही फ़रियाद करता हूं,
तुम्हारा आईंना हूं मैं बिखर जाऊं तुम्हारे बिन l
तुम्हारे साथ के एहसास ने थामे रखा है मुझको,
अगर तुम छोड़ दोगे तो किधर जाऊं तुम्हारे बिन l
तुमसे इक कदम का फासला भी मुझसे कहता है,
मैं बाकी क़्यूं रहूं, जां से गुजर जाऊं तुम्हारे बिन l
मैं जब भी जिन्दगी पाऊं तुम्हारा साथ हो मुझको,
इस फेहरिश्त से वरना उबर जाऊं तुम्हारे बिन l
तुम्हारे बिन मेरा जीना तो मुमकिन है नहीं लेकिन,
इजाजत दो तो चुपके से मैं मर जाऊं तुम्हारे बिन ll
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-Er Anand Sagar Pandey
तुम्हारे नाम कर रहा हूं
June 13, 2016 in ग़ज़ल
खयाल-ए-दिल, सभी जज़्बात फ़िर से आम कर रहा हूं,
मैं इक ताज़ा गज़ल फ़िर से तुम्हारे नाम कर रहा हूं l
तुम्हारे ही तसोव्वुर में गुज़रता है मेरा हर दिन,
तुम्हारे ही तसोव्वुर में मैं हर इक शाम कर रहा हूं l
तुम्हारे नाम से आये सुबह तुम्हारे नाम से ढलती है शाम,
तुम्हारे नाम पर मैं ज़िन्दगी तमाम कर रहा हूं I
तुम से शुरू तुम पर खतम आगाज़ से अंजाम तक,
रफाक़त में तुम्हारी उम्र को गुल्फाम कर रहा हूं l
मुशाफत हो चुकी है ज़िन्दगी से,तुम्हारे नाम में खोया हुआ हूं,
बहुत मशरूफ हूं मैं आजकल ये काम कर रहा हूं l
तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें सभी महफ़िल सजाती हैं,
तुम्हारी आस में अश्कों को फ़िर से जाम कर रहा हूं l
ज़िन्दगी ना जाने कब गुनाहों का हिसाब ले ले,
फलसफा मैं आजकल “श्री राम” कर रहा हूं ll
मैं इक ताज़ा गज़ल फ़िर से तुम्हारे नाम कर रहा हूं ll
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-Er Anand Sagar Pandey
मेरी आंखों से रिस-रिस कर
June 12, 2016 in ग़ज़ल
मेरी आंखों से रिस-रिस कर कोई तूफ़ान कहता है,
सताओ यूं ना तुम मुझको ऐ मेरी जान कहता है l
तुम्हें मैं याद करने की तलब में इस कदर खोया,
कि अक्सर अब मुझे चेहरा मेरा अंजान कहता है l
तुम्हारे ख्वाब में अक्सर मैं इतना डूब जाता हूं,
कि बच्चों सा मेरा दिल भी मुझे नादान कहता है l
अपने उजड़े घर की ओर जब भी देखता हूं मैं,
मेरा घर मुझपे हंसता है मुझे वीरान कहता है l
ये मेरा आखिरी खत है मैं खत अब लिख ना पाऊंगा,
मेरा दम टूटने को है मेरा फरमान कहता है l
तुम्हारा मुझसे क्या ताल्लुक है जब भी सोचता हूं मैं,
कोई चुपके से आकर के इसे बेनाम कहता है l
“सागर” मुझसे कहता है यहीं पर डूब जाओ तुम,
उबरना मेरी मौंजों से नहीं आसान कहता है ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
पांव भर चुके हैं छालों से
June 12, 2016 in ग़ज़ल
पांव भर चुके हैं छालों से,
है दिल जख्मी पड़ा मलालों से l
भरी आंखों में बक़रारी है,
जेहन बेचैन है सवालों से l
दिल में अफसुर्दगी का आलम है,
अश्क चीखते हैं नालों से l
एक बिजली सी जबसे कौंधी है,
मुझको नफ़रत है इन उजालों से l
बस इतने ही हम बाकी बचे है,
जैसे घर भर गया हो जालों से l
कैसे उस भूख को मिटाएं अब,
जो भूख पैदा हुई निवालों से l
ऐ दिल! इतना ही बस एहसान कर,
मुझको आज़ाद कर खयालों से l
तू आज उस आह को रिहाई दे,
जो लब पे बैठी हुई है सालों से ll
-Er Anand Sagar Pandey
फिर से मुहब्बत हो गयी
June 10, 2016 in ग़ज़ल
ना चाहते हुए भी फ़िर से हिमाक़त हो गई,
कल फ़िर उसे देखा,फ़िर से मुहब्बत हो गई l
वही वो झील सी आंखें,वही बादल से वो गेसू,
बलखाती कमर उसकी फ़िर से क़यामत हो गई l
कुछ इस अदा से वो मेरे आगे से गुजरी कि,
मेरी सांसों को उसकी ज़रूरत हो गई l
इरादा कर लिया था कि मैं उसको भूल जाऊंगा,
मगर वो सामने आई तो खुद से बगावत हो गई l
मैं क्या ज़रा सा उसकी याद में खो गया,
सारे शहर में चर्चा है मुझे पीने की आदत हो गई l
कल सुबह सोचा था कि अब मर जाऊं मैं “सागर”,
कल शाम उसे देखा तो फ़िर जीने की चाहत हो गई ll
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-Er.Anand Sagar Pandey
**रहने दे**
June 10, 2016 in ग़ज़ल
**रहने दे::गज़ल**
यही चाहत का है दस्तूर तो दस्तूर रहने दे,
मुझे बेबस ही रहने दे मुझे मजबूर रहने दे l
तुझे जब याद करता हूं तो दुनिया भूल जाता हूं,
तेरी नश्तर सी यादों को तू मुझसे दूर रहने दे l
तू मेरा हो नहीं पाया मुझे ये ग़म नहीं होता,
मै अब भी हूं तेरा तलबी, मुझे गुरूर रहने दे l
ये जब भी साथ होते हैं तो दिल बेचैन होता है,
मेरे ख्वाबों को यूं टूटा औ चकनाचूर रहने दे l
मेरे ग़म छीन मत मुझसे ,मेरे आंसू मुझे दे दे,
रहम कर मेरी गज़लों में ज़रा सा नूर रहने दे l
मुझे ये जब भी चुभते हैं गज़ल होती है “सागर” झूमकर,
मेरे दिल में तेरे वादों का ये नासूर रहने दे ll
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey
**बदला नहीं है वो**
June 10, 2016 in ग़ज़ल
वही तल्खियत लहज़े में, वही कशिश अदाओं में,
आज फ़िर यही लगा कि बदला नहीं है वो l
उसको भी मयस्सर हैं मेरे हिज़्र के खसारे,
मेरे उन्स से भी अबतक निकला नहीं है वो l
चश्म-ओ-चिराग बुझ गये, मेरी चश्म है अब आबसार,
उसका आब-ए-तल्ख इज़्तिरार, ढला नहीं है वो l
कुर्बत है शरारों की उसे मेरी ही मानिन्द लेकिन,
ये बात यूं निहां है कि पिघला नहीं है वो l
वो आग है कुछ मुख्तलिफ़ जिस आग में जलता है वो,
मैं हूं जला जिस आग में, जला नहीं है वो ll
Word-meanings-
उन्स-प्यार
तल्खियत=कड़वाहट
मयस्सर=उपलब्ध
खसारे=नुकसान
चश्म-ओ-चिराग=आंख का प्रकाश
चश्म=आंख
आबसार=झरना(Waterfall)
आब-ए-तल्ख=आंसू
इज़्तिरार=बेचैन/बेचैनी
कुर्बत=नजदीकी/करीब होना
निहां=छुपा हुआ/छुपी हुई
मुख्तलिफ़=अलग(Different)
हिज़्र=जुदाई
मानिन्द=जैसे
All rights reserved.
-Er Anand Sagar Pandey