by Kanchan

घर की कैद

May 12, 2020 in मुक्तक

इस घर की कैद ने भी क्या खूब काम किया
बिखरी तस्वीरों को करीने से सजा दिया
फिर से याद आए वह पुराने साथी
कुछ बिछड़े पलों को फिर से मिला दिया ।

by Kanchan

पहली मुलाकात

May 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब तुझसे मेरी पहली
मुलाकात होगी
बिना बोले ही आंखों से
सब बात होगी

बिताकर कुछ पल जिंदगी
के साथ तेरे
फिर से हमारे प्यार की
शुरुआत होगी

तेरे चेहरे की मुस्कुराहट
से दिल को सुकून आएगा
बयां किए बगैर ही
तू लफ्जों को समझ जाएगा

क्या खूब हमारे प्यार
का अफसाना होगा
जब तेरे शहर में मेरा
यूं आना होगा।

by Kanchan

खुशी की ट्रेन

May 12, 2020 in मुक्तक

चलो दर्द को भूल जाते हैं
हंसी की ट्रेन पकड़ कर
खुशी के संसार में जाते हैं
पुरानी यादों में से ‘कुछ’ को चुनकर
फिर से नई दुनिया बसाते हैं

by Kanchan

tera sath

May 12, 2020 in मुक्तक

जब हम साथ होते हैं
हाथों में हमारे हाथ होते हैं
दुनिया की उलझनों से दूर
सिर्फ हम और हमारे जज्बात होते हैं❣️❣️

by Kanchan

माता-पिता का एहसान

May 12, 2020 in मुक्तक

छोटा सा एहसान कर के
लोग ताउम्र जताते हैं
कितने मासूम है वह मां-बाप
जो सब कुछ करने के बाद
भूल जाते हैं….

by Kanchan

प्यारी नर्स

May 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुदा के फरिश्ते के रूप में तुम आती हो
होठों पर मीठी सी मुस्कान लाती हो
अपनी जिजीविषा और कर्मनिष्ठा से
टूटी आशा को जगा जाती हो
रोगियों में रोगों से लड़ने की
क्षमता बता जाती हो
हो भले ही अजनबी और अनजान चेहरा
बन जाता है पल भर में परिवार तुम्हारा
इस रिश्ते को बखूबी निभा जाती हो
खुदा के फरिश्ते के रूप में तुम आती हो।।

by Kanchan

बदलाव

May 12, 2020 in मुक्तक

बदले तो वो थे …..
इल्जाम हम पर लगा बैठे
हमने तो ख्वाब सजाए थे
वो तो उनको ही जला बैठे।

by Kanchan

मनोभाव

May 12, 2020 in मुक्तक

सब कुछ कहां कह पाते हैं
कुछ शब्द अधूरे रह जाते हैं
कुछ बातें मन में आती हैं
कुछ मन में ही रह जाती हैं
कहने को हम सब पूरे हैं
बिन लफ्जों के भाव अधूरे हैं।

by Kanchan

तेरी परछाई

May 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुनो ना मां!
मत घबरा मेरे आने से
मुकम्मल हो जाएंगे दोनों
एक नए बहाने से
तेरे पंख मेरी उड़ान होगी
जमाने में अपनी नई पहचान होगी
तेरी परछाई बन तेरे ख्वाबों
को चुन लूंगी
कह ना पाई जो तू किसी से
वह मैं सुन लूंगी
बेटी हूं तेरी , तेरा साथ निभाऊंगी
तेरे सम्मान के खातिर दुनिया
से मैं लड़ जाऊंगी
इस बेरंग जहान में आओ
रंग भरते हैं
चल ना मां एक नए सफर पर चलते हैं ।

by Kanchan

मां

May 10, 2020 in मुक्तक

क्या लिखूं तुझ पर ?
तू खुद शब्दों की माया है,
खुद ना आ सका विधाता
इसलिए तुझे भिजवाया है।
Happy mother’s day

by Kanchan

बदनाम

May 8, 2020 in मुक्तक

देखते देखते
हम बदनाम हो गए
देखते देखते हम सिरफिरे और नाकाम हो गए,
कल कहते थे हम जिंदगी है उनकी
आज उनके लिए हम दास्तां-ए शाम हो गए।

by Kanchan

जीने की कला

May 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो आकर हमें हमारी कमियां गिना रहे हैं
जो खुद उलझे है जिंदगी की उलझनों में
वह हमें जीना सिखा रहे हैं…….

by Kanchan

दूरी

May 8, 2020 in लघुकथा

मैं खिड़की पर खड़ा था और वह दरवाजे पर
खिड़की से दरवाजे कि ये दूरी तब भी थी
जब वह मेरे पास आ रही थी और अब
भी है जब वह मुझे छोड़ कर जा रही है।

by Kanchan

मनमर्जियां

May 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हां मशगूल हूं अपनी दुनिया में
मुझसे बेहतर मुझे कोई जानता नहीं
खामोश रहूं? या सवाल करू?
मेरे शब्दों को कोई पहचानता नहीं।

by Kanchan

आईना

May 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

आईना नहीं है आंखें मेरी
फिर भी हकीकत तो जानती हैं
ना तुम राही हो ,ना हमराही हो
फिर भी तुम्हें अपना मानती हैं ।

by Kanchan

किस्मत

May 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये खुदा है जनाब !
उसके ही ख्वाब दिखाता है
जिसको हमारी किस्मत में
नहीं लिखा जाता है।

by Kanchan

चलो फिर से गांव चलते हैं

May 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चलो साथी फिर से गांव चलते है
कुछ बचें होंगे पेड़ गर वहां छांव ढूंढते हैं
आम भी तो आए होंगे,जामुन भी इतराए होंगे
बचपन के फिर से वो पल ढूंढते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते हैं
पुरानी नीम के नीचे सब चौपाल लगाएंगे
बड़की काकी को फिर से अपने पीछे दौड़ायेंगे
बहुत रह लिया परदेस में ,अब अपने घर को चलते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते हैं
रखा होगा मां ने अचार , चटकारे लगाएंगे
कोयल की कुहू को हम भी दोहरायेंगे
गांव जाती सड़क पर फिर दौड़ लगाएंगे
उड़ गए हैं जो रंग जिंदगी के उन रंगों में रंगते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते है
गांव से निकले हैं तो खोई पहचान है
हम कल भी अजनबी थे और आज भी गुमनाम हैं
इस खाली कैनवास पर यादों को सजाते हैं
चलो साथी फिर से गांव चलते हैं।

by Kanchan

दास्तां -ए- सैनिक

May 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक सैनिक की यही दास्तां है
वैसे तो सदा वह गुमनाम होता है
हो जाए शहीद बस तभी नाम होता है
देश की रक्षा कर चिर ख़ामोशी में सो जाता है
फिर कौन याद करता है ? किसे याद आता है ?
है एक सवाल ! जो उसे भी याद आता होगा
शहादत के समय मन में कौंध जाता होगा ,
बुढ़ापे की लाठी बनने का धर्म भी तो निभाना था
रहेगा ताउम्र किसी की मांग में सिंदूर ये भरोसा भी दिलाना था
इसी उधेड़बुन में उसे फिर कुछ याद आता होगा
देश है सर्वोपरि यह सोच जाता होगा ।।
और फिर लड़ते-लड़ते चिर निद्रा में सो जाता होगा।
ऐ मेरे देश ! सैनिकों को कुछ तो मान दो
उनकी हिम्मत और जज्बे को थोड़ा सम्मान दो
माना कि रक्षक वह है पर थोड़ा कर्तव्य उठा लो तुम
उनके परिवार के खातिर थोड़ी वफादारी निभा लो तुम
आतंकवाद का सफाया कर उनकी भी जान बचाना है
है अनमोल उनकी भी जान ये विश्वास उन्हें दिलाना है
सैनिक केवल एक जान नहीं अपने परिवार की जान हैं
देश सहित ना जाने कितनी उम्मीदों का पैगाम है।
Kanchan dwivedi

by Kanchan

वफादारी

April 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी को प्यार किसी को
प्यार की निशानियां रुला गईं
हम मजबूर थे हमें
हमारी वफादारियां रुला गईं।

by Kanchan

कुछ अनकहा, कुछ अनसुना

April 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ अल्फाज बचा रखे थे
उनके लिए वह आए और
बिना बोले चले गए।

कुछ नजरें बचा रखी थी
उनके लिए वह आए और
बिना देखे चले गए।

कुछ गीत सजा रखे थे
उनके लिए वह आए और
अनसुना करके चले गए।

अपना प्यार छुपा रखा था
उनके लिए वह आए और
बेवफा बता कर चले गए।

by Kanchan

कोरोना से लड़ाई

April 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी इस लड़ाई से
चाहे खुद लड़ना पड़ जाए
अपनी ही परछाई से
जब बात प्रतिष्ठा की हो तो
हर व्यक्ति का अपना ओहदा है
यह बात है आत्म सम्मान की
ना हार जीत का सौदा है

by Kanchan

जीवन के इस मोड़ पर

April 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे बच्चे साथ निभाओगे
गर गुस्सा हो जाऊं किसी बात पर
आकर मुझे मनाओगे ?
इन सिकुड़न वाले हाथों को
क्या प्यार से तुम सहलाओगे?
बूढ़ा हूं कुछ , सुनने की शक्ति भी क्षीण हुई
कोई बात समझ गर ना आए
क्या बार-बार दोहराओगे ?
ताउम्र सभी के साथ रहा
इस बात को क्या भुला दोगे।
गर घर छोटा पड़ गया तेरा है
क्या वृद्धाआश्रम भिजवा दोगे?
तेरी चांद सी रोशन दुनिया में
माना कुछ बेरंग सा हूं
जीवन की ढलती बेला में
आखिर तेरे बच्चे जैसा हूं।।
-Kanchan dwivedi

by Kanchan

पलायन करते बेचारे लोग 😢😢😢

April 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेबस होकर वो लौटे हैं
श्रमवीर कहलाने वाले हैं
जिस घर में आराम से लेटे हो
उसकी नींव बनाने वाले हैं😢
घर मंदिर और कुआं पोखर
निज श्रम से उसने सींचे हैं
उसकी मेहनत का फल देखो
उपवन और बाग बगीचे हैं
अश्रु सहित नयन देखो 😢😢
उम्मीद से तुम्हें निहार रहे
मदद करो कुछ मदद करो 🙏
बेबस होकर पुकार रहे
भूखे पेटों के मंजर ने
शहर उसे भिजवाया था
आज वही मंजर देखो
वापस गांव ले आया है…

by Kanchan

पुनर्मिलन

March 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अहम तोड़ दो दिल फिर से मिले
धड़कनें तेज हुईं
आंखों से बरसात हुई
ऐसा लगा जैसे
फिर से पहली मुलाकात हुई

by Kanchan

कोरोना को हराना है

March 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक जुनून ही हमें आगे ले जाएगा
आगे की कहानी भी वही बताएगा
मायूसी जाएगी
नई सुबह फिर आएगी
सन्नाटा जाएगा
कल आज और
आज कल बन जाएगा
सन्नाटा चीर कर फिर से विश्व मुस्कुराएगा
कुछ सीख देखकर यह दौर गुजर जाएगा।।

by Kanchan

विपदा की घड़ी

March 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

विपदा की घड़ी जब आती है
हमें व्यवस्थित होना सिखाती है
एकता का महत्व समझाती है
अपने पराए में भेद बताती है
धैर्य परिश्रम सहयोग समन्वय
और अनुशासन का पाठ अवश्य पढ़ा जाती है
विपदा की घड़ी जब आती है….

by Kanchan

संदेश ख्वाबों का

March 23, 2020 in मुक्तक

रात की दीवार पर लिखा ख्वाबों का संदेश
ए चंदा पहुंचा देना ‘अपने’ रहते परदेस…..

by Kanchan

नक्सलियों से कैसी हमदर्दी

March 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माताओं ने लाल खो दिए
बहनों ने फिर भाई,
घर में छुपे दुश्मनों से
कैसे जीतोगे लड़ाई?
नक्सलियों के हमले से
धरती लाल हो जाती है,
फिर किसी घर मे कोई
ज्योति बुझ जाती है
नक्सलियों पर कार्रवाई हो
तो अधिकार हनन हो जाता है
शहीद जवान हो जाएं
तब बुद्धिजीवी समाज सो जाता है
ऐसे गद्दारों को मारो
क्यों प्रहार ना करना
जब उनकी निष्ठा खंडित है
तो क्यों बचाव करना …..

by Kanchan

जल खुद एक जीवन है

March 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जल खुद एक जीवन है
आओ इसे बचाते हैं
फिर से भर जाएंगी नदियां
आओ कदम उठाते हैं
आज ही जब सब खो दोगे
तो पीढ़ी को क्या सौंपोगे
अपनी जिम्मेदारी का बोझ
फिर किसके ऊपर थोपोगे
अभी समय है जागो मानव
थोड़े अच्छे काम करो
जल खुद एक जीवन है
इसको जीवन दान करो

by Kanchan

बीती शामें

March 22, 2020 in Other

दिल कोई तहखाना है
जिसमें दफन हजारों यादें हैं
कुछ खट्टी हैं कुछ मीठी हैं
बीती शामो की बातें हैं

by Kanchan

बिछड़ा जमाना

March 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

उनसे बिछड़े जमाना हो गया है
फिर से दिल बेगाना हो गया है
नहीं बाकी रही ख्वाहिश कोई
यही जिंदगी का अफसाना हो गया है।

by Kanchan

दो शब्द

March 22, 2020 in Other

एकता की खुशबू जब महकती तो सारी दुनिया चहकती है
आओ एक काम करें आज का दिन देश के नाम करें।

by Kanchan

गौरैया

March 20, 2020 in Other

20 मार्च यानी गौरैया दिवस ….
आज तुम्हारा दिवस है प्यारी गौरैया ,कहने को तुम घरेलू चिड़िया कहलाती हो लेकिन स्वार्थी मनुष्यों ने तुम्हें घर से बेघर कर के पेड़ों पर भी अपना स्वामित्व जता दिया है आज नि:शब्द सी तुम निराझार से तुम्हारे भाव हम संवेदनाहीन मनुष्यों से एक ही सवाल पूछते हैं कि
“कहां जाएं हम ?”😞

by Kanchan

जागरूकता ही बचाव है

March 20, 2020 in Other

यह दौर गुजर जाएगा इस वैश्विक आपदा के बावजूद हम इस पर विजय पाने में कामयाब अवश्य होंगे। भरोसा रखिए हमारे डॉक्टर कोविड -19 का इलाज और वैज्ञानिक निश्चय ही इसका मूल कारण खोज लेंगे तब तक एक जिम्मेदार व्यक्ति बनिए स्वयं और बाकियों की सुरक्षा सुनिश्चित करिए👍

स्वस्थ रहे सुरक्षित रहे 🙏

by Kanchan

चलते जाना

March 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ साथी साथ निभाएंगे
कुछ बीच रास्ते में छोड़ जाएंगे

कुछ विश्वास तुम पर दिखाएंगे
कुछ हर वक्त नीचा दिखाएंगे

ना रुकना ना घबराना
बस चलते जाना

मिल जाएगी एक दिन मंजिल
वहां खड़े होकर अपनी सफलता का परचम लहराना।

by Kanchan

गुलजार शामें

March 18, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सभी को मयस्सर नहीं जिंदगी की गुलजार शामें
किसी को जलते दिनों से भी काम चलाना पड़ता है….

by Kanchan

तेरी बातें

March 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरी बातें ही है जो एक उम्मीद से हमें तेरे पास ले आती हैं वरना सुकून -ए -जिंदगी तो हमें अकेले रहने में ही मिलता है……

by Kanchan

किताब -ए -जिंदगी

March 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

किताब-ए- जिंदगी अपनी लिखी है पेन से हमने
जिसे मिटाने की गुंजाइश कहां बख्शी है…

by Kanchan

सच्चाई

March 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मां देख! पहले गांव छोटे थे
अब शहर छोटे हो गए हैं
पहले कमरे छोटे थे,
अब घर छोटे हो गए हैं
सच कहूं ! तो पहले लोग सच्चे थे
अब अपने झूठे हो गए हैं……..

by Kanchan

अपने

March 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी

भरोसा अपना पर नहीं गैरों पर कर लीजिएगा जनाब
“अपने” अपने कहलाने के लायक नहीं है।
रूठना है तो खुद मान जाइएगा जनाब
यहां कोई मनाने के लिए नहीं है।

by Kanchan

खुशबू तेरी

March 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी

घुली है हवाओं में खुशबू तेरी
शायद तेरे आने का पैगाम लाती है
ना ठहरती है ना जाती है शायद
दिल तोड़ने का सामान लाती है।

by Kanchan

सच्चे भारतीय

March 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माना की नियत के कच्चे हो फिर भी कुछ तो मान करो
आते हैं जो मेहमान देश में उनका ना अपमान करो
सामान तो पार किया देश को भी बदनाम किया
अपनी हरकतों से भारत को शर्मिंदा सरेआम किया
आदतें बदलो महान बन जाओगे
सच्चे भारतीय बन देश को आगे बढ़ आओगे।

by Kanchan

खामोशी

March 12, 2020 in मुक्तक

खामोशी भी एक सिलसिला -ए-गुफ्तगू ही है
खैर छोड़ो तुम्हारे बस की बात नहीं…….

by Kanchan

नादानियां

March 12, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मेरी नादानियों
का सिला यह मिला हमको हम बदनाम हो गए और वह समझदार बने बैठे हैं……

by Kanchan

बचपन के कुछ दिन

March 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिर से बचपन में लौटना है आज मुझे
कुछ पल फुर्सत के जीना है आज मुझे
मां की गोद में रखकर सिर सोना है आज मुझे
बहन की चोटी खींच आज फिर दौड़ लगाना है
छिपकर पापा के पीछे से उसे चिड़ाना है।

by Kanchan

तेरी अदा

March 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तेरी अदा ने हमको दीवाना कर दिया
मुझे मेरी ही दुनिया से बेगाना कर दिया
आज सोचते हैं कि काश ना मिले होते तुझसे
काश कि ना फना होते तुझपे।

by Kanchan

स्त्री की पहचान ।

March 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ढो रही हूं एक बोझ सिर से लेकर पांव तक
खोज रही हूं एक दिशा धूप से मैं छांव तक
मीलों सा लंबा सफर जिंदगी का है मेरी
फिर भी रुकी है वहीं जहां शुरू हुई थी घड़ी
पहचान है क्या मेरी आज तक मैं ढूंढती,
अबला होकर क्या है पाया आज तक मैं सोंचती
“कौन हूं मैं ” आईने के सामने जाकर आज तक मैं पूछती
खड़े होकर चौराहे पर हर नजर को झेलती
हंसने वाली हर कली हर गली से पूछती
कब मिलेगी? राह मेरी कब मुझे पहचान मेरी
एक मील बाद भी क्यों अधूरी शान मेरी
मिल सकी क्यों नहीं अब तक पहचान मेरी ।
हर जिंदगी शुरु है मुझसे ,हर जिंदगी मुझ पर खत्म
फिर भी ढाए जा रहे हैं मुझ पर ही बरसों से सितम
ठान लिया है अब मैंने दूर तक जाऊंगी मैं
पहचान है क्या मेरी खुद ढूंढ लाऊंगी मैं
दे सकते अधिकार नहीं तो बस इतनी आजादी दो रोक सकूं खुद ही मैं खुद अपनी बर्बादी को।।
कंचन द्विवेदी

by Kanchan

एकता

March 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस मंत्रमुग्ध सी बेला को आओ हसीं बनाते हैं
जात धर्म को तज करके हम तिरंगा धारी बन जाते हैं
मन में जब कोई मैल न होगा कौन हमें लड़ायेगा
विश्व गुरु बन कर भारत फिर सर्वश्रेष्ठ बन जाएगा।

by Kanchan

खामोशी से निकले ही नहीं।

March 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खामोशी से निकले ही नहीं क्यों निराशशून्य है मन
क्या लाई थी जो खोकर के यूं उदासीन है तन
पलकों में जो सपने हैं वह शायद पूरे हो भी जाएं जब आज ही नहीं मेरा है तो कल के लिए क्यों घबराए।
इस आत्म हीन काया को क्यों छोड़े ही नहीं यह मन
क्या लाई थी जो खो करके यू उदासीन है तन
हां लाई थी, मैं लाई थी एक छोटा सा बचपन।

by Kanchan

त्योहार मिलन का

March 10, 2020 in मुक्तक

बैर भाव से ऊपर उठकर
आओ रंग लगाते हैं,
होली है त्यौहार मिलन का
मिलकर इसे मनाते हैं।

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