by Kanchan

रंगीन होली

March 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेरंग सी गोली को रंगीन बनाना है
रूठे हुए अपनों को दोबारा मनाना है
डेविड अकरम और गुरमीत
लेकर सबको साथ सुजीत
होगी पिचकारी से बौछार
आज मनाएंगे त्योहार।
गुजिया पापड़ और मठरी से स्वाद जमाना है
बेरंग सी होली को रंगीन बनाना बनाना है ।
लाल लगेगा रीता को ,
पीला बहन सुनीता को
काला छोड़ सभी रंगों में रंग जाना है
बेरंग सी होली को रंगीन बनाना है ।
रंगों में सब रंग जाएंगे
मन के मैल भी धुल जाएंगे ।
पत्थर बम बौछार ना होंगे
शब्दों से फिर वार ना होंगे
मिलकर फिर से सबको
गुलाल उड़ाना है
बेरंग सी होली को रंगीन बनाना है।

by Kanchan

मुद्दत

March 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुद्दतों बाद वह घर आए हैं
दिल तोड़ने के बाद पहली बार शहर आए हैं…….

by Kanchan

मोहब्बत का आशियाना

March 10, 2020 in मुक्तक

एक उनके खातिर हमने
मोहब्बत का आशियाना बनाया था
वो आए और ढहा कर चले गए….

by Kanchan

परख

March 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ स्त्री तू खुश मत हो!
यह सम्मान का वक्त गुजर जाएगा
कल से हर रोज तुझे परखा जाएगा……….

by Kanchan

नारी तू अवतारी है

March 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नारी तू अवतारी है देखने में तो एक है प्रतिक्षण रखती रूप अनेक है
हर सांचे में ढल जाती है पल मे मां पत्नी बहन बेटी बन जाती है।
तू त्याग की है मूर्ति समर्पण की प्रतिमूर्ति
हे सृजन शक्ति तू महान है
करते तुझको कोटि-कोटि प्रणाम है।

by Kanchan

नारी

March 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू मान है अभिमान है
इस जग का पृतिमान
बड़ी नेमतों से पृकृति ने संवारा है
एक तुझे रच विधाता ने खुद को धरती पर उतारा है।

by Kanchan

दौर

March 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अब तो दौर-ए -नफ़रत भी गुजर गया साहब
मोहब्बत का जमाना तो हमे याद भी नहीं………..

by Kanchan

शिद्दत

March 7, 2020 in मुक्तक

बड़ी शिद्ददत से लगे है वो हमे हराने मे
हमे भी अब अंजाम का इंतजार है……….

by Kanchan

साथी हाथ बढ़ाएं

March 7, 2020 in गीत

चल साथी हाथ बढ़ाएं ,मिलकर सबको पार लगाएं
क्या हुआ जो कोई छोटा क्या हुआ जो कोई रूठा
हम अपना कर्तव्य निभाएं मिलकर सबको पार लगाएं।
कर्म पथ पर चलने वाले मन में बैर न रखते हैं
अपनी जिम्मेदारी को ही अपना तप समझते हैं।
उम्मीदों का दामन थामे सपनों का संसार पड़ा है
छोटे छोटे सपने थामें खुशियों का अंबार खड़ा है
खुशियां बांटे खुशियां पाएं क्यों दोष को मन में लाएं।
चल साथी हाथ बढ़ाएं मिलकर सबको पार लगाएं।

by Kanchan

सहारा तिनके का

March 7, 2020 in मुक्तक

गहराई का आलम न पूछो दोस्त !
सहारा तिनके को है या तिनके का सहारा किसी को न मालूम………

by Kanchan

खंजर

March 7, 2020 in Other

देख लिया जमाने के तसव्वुर को
होठों पर मुस्कान और दिल में खंजर लिए घूमते हैं……..

by Kanchan

नजर को नजर

March 7, 2020 in मुक्तक

नजर को भी नजर लग जाएगी
उसकी नुमाइश इतना भी ना करो…….

by Kanchan

बेईमान बस्ती

March 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

क्या हुआ हम बेईमानों की बस्ती में है
हमने अपना ईमान कहां भेजा है अभी तक।

by Kanchan

होली

March 7, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

चलो होली मनाते हैं
सड़कों से पत्थर हटा कुछ गुलाल उड़ाते हैं
चलो होली मनाते हैं।
महरूम है बरसों से कोई बस्ती होली में
वहां जाकर गुझिया पापड़ बांट आते हैं
चलो होली मनाते हैं
डर से बंद हो गई है खिड़कियां जिनकी
प्रेम की थोड़ी बारिश से चलो उनको हंसाते हैं
भूल कर सब कुछ चलो एक रंग में रंग जाते हैं
चलो होली मनाते हैं चलो होली मनाते हैं ।

by Kanchan

गलतियां

March 7, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अपनी गलतियों का किस्सा ना
हर बार दोहराएंगे,
कह दिया अलविदा तुम्हें
अब शायद ही लौट कर आएंगे ।

by Kanchan

स्त्री हूं पतंग नहीं

March 6, 2020 in मुक्तक

ऐ पुरूष सुन!
स्त्री हूं पतंग नहीं कि जिसकी डोर सदैव तुम्हारे हाथ में रहेगी…….

by Kanchan

काबिलियत

March 5, 2020 in Other

जाकर कहदो उनसे अपनी काबिलियत के चर्चे
कहीं और सुनाए जाके
अभी हम थोड़े नाकाम से हैं ………

by Kanchan

जिंदगी में रंग

March 5, 2020 in Other

रंग भर लीजिए जिंदगी में
क्योंकि रंग उड़ाने के लिए लोग हैं
थोड़ा हंस लीजिए जिंदगी में
क्योंकि रुलाने के लिए लोग हैं
आजाद हो जाइए जिंदगी में
क्योंकि कैद करने के लिए लोग हैं ।।

by Kanchan

वजह

March 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वजह कुछ भी न थी
हमारे जुदा होने की
एक तो तू बेवफा थी,
और मेरा इरादा भी अब वफा करने का नहीं था ।

by Kanchan

दिलों का खेल।

March 5, 2020 in गीत

दिलों का खेल मत खेलो
न कोई इसमें जीता है।
सभी बदनाम होते हैं,
दर्द-ए-जाम पीते हैं
मुनासिब अब यही होगा कोई दिल को लगाए ना,
दिलों की दिल्लगी करके खुद को यूं सताए ना।

by Kanchan

सुना है

March 5, 2020 in मुक्तक

सुना है साथ छोड़कर जाने वाले
आज अकेले हैं,
कमबख्त मुझ में भी अब दोबारा
धोखा खाने की हिम्मत कहां है……..

by Kanchan

मरहम

March 5, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बेहिसाब दर्द देकर मेरी रूह को
वो मेरे ज़ख्मों पर मरहम लगाने आया है
उससे पूछो मरहम ही है
नमक छिड़कने तो नही आया है।

by Kanchan

बेघर मौसम

March 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सड़के फैली, नदियां सिमटी
क्या अच्छा संदेश गया
घट गई सर्दी ,बढ़ गई गर्मी
और भंवर में देश गया
अपने कर्तव्यों से हटकर अपना हित ही सोंचा है
चंद पैसों के खातिर भविष्य देश का बेचा है

by Kanchan

दर्द

March 4, 2020 in Other

दर्द को दवा समझ लिया जबसे पीड़ा थोड़ी बुझी बुझी सी है

by Kanchan

नई इबारत

March 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत याद कर अपनीअसफलता को चल नई इबारत लिखते हैं
बहुत मिल चुकीं सांत्वना अब कुछ मुबारकबाद इकट्ठी करते हैं।

by Kanchan

मत मुड़कर देख मुसाफ़िर

March 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उम्मीदों की मंज़िल है समझौतों का रास्ता है
नाराज़ हो रहे अपने हैं कुछ बुने कुछ टूटे सपने हैं
अंधेरे का वास्ता है, उजाले का रास्ता है
फिर भी,
हालात बदल जायेंगे जज़्बात संभल जायेंगे
मत मुड़कर देख मुसाफ़िर
वरना सारे खयालात बदल जायेंगे।

by Kanchan

बदनाम

March 3, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इससे अच्छा तो गुमनाम ही अच्छे थे नामवालों से मिलकर बदनाम हो गए…….

by Kanchan

तारीफ़

March 2, 2020 in Other

उनसे कहदो थोड़ी कम तारीफ़ करें हमारी
हम गुमनाम शहर से अभी अभी निकलकर आए हैं……..

by Kanchan

आंसू

March 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिले हैं विरासत में आंसू मुझे
पता न चला कि दोस्त कैसे बने
उनका सैलाब है आशियां मेरा
हंसी से नाता न मेरा रहा।
जब पहुंचे मंज़िल से आगे कभी
रहे याद दोस्ती सहारा बनी
संभाला है उन्होंने गिरने से मुझे
पता न चला कि दोस्त कैसे बने
शिकायत मुझको कहां कब रही
जैसी चली वैसी बढ़ती रही
पलकों के साए में छिपाती रही
सपनों को अपनों से बचाती रही
आंसू कभी आंसू न रहे
पता न चला कि दोस्त कैसे बने।।।

by Kanchan

मोहब्बत

March 1, 2020 in Other

अपनी मोहब्बत को अपने लिए भी बचा कर रखिए साहेब
शाम- ए- जिंदगी में बड़ी काम आयेगी।

by Kanchan

मयस्सर

March 1, 2020 in Other

वो मयस्सर नहीं हुए जिंदगी में तो हम मौत तक उनका इंतज़ार करते रहे।।।

by Kanchan

मयस्सर

March 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो मयस्सर नहीं हुए जिंदगी में तो हम मौत तक उनका इंतज़ार करते रहे।।।

by Kanchan

ख्वाबों की बिक्री

March 1, 2020 in Other

मेरे ख़्वाबों को बेचकर अच्छा किया जो तुमने अपनी दुकान सजा ली

by Kanchan

फितरत

February 18, 2020 in मुक्तक

हर रोज़ बदलता है वो अपनी फितरत को
कमबख्त सारे रंग एक जैसे ही हैं उसकी फितरत के……..

by Kanchan

जज़्बा

February 18, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब कर्मपथ की मंज़िल को
दो साथ चले दो साथ बढ़े
कोई जीत गया कोई हार गया
जो जीत गया उसने नाम बुलंद किया
हारा उसने भी तो खूब प्रबंध किया
त्याग समर्पण के बाद जो पा ना ही सका अपना मुकाम
जो हार गया उसके जज़्बे को सलाम……
दिन दिये और सौंपी रातें
दरकिनार कर स्वजनों की बातें
जो बढ़ा चला एक ओर सदा
एक परिणाम ने खूब प्रपंच रचा
टूटी सम्मान की आशा ने
बिखरी निज सफल पिपासा ने
दर्द उसका भी व्यक्त किया
हा ! रिक्त किया हा! मुक्त किया
चल पथिक तुझे तो चलना ही है
ढलकर उगना और बढ़ना ही है…..

by Kanchan

चिट्ठी

February 8, 2020 in लघुकथा

प्यारी गौरैया!
आज तुम्हें इतने दिनों बाद अपनी छत पर देख अपने बचपन के दिन याद आ गए ,तब तुम संख्या में हमसे बहुत ज्यादा थीं, आज हम हैं ज्यादा नहीं पर कुछ पेड़ हैं
लेकिन तुम सब अब पता नहीं कहां चली गईं।
शायद हमारे घरों ने तुम्हारे घर छीन लिए लेकिन सच कहूं गौरैया! जब हमारा नया घर बना था तो तुम्हारी याद ही नहीं आयी , आज जो आंसू आए वो शायद उस समय आते तो कुछ करती मैं तुम्हारे लिए क्योंकि,
मुझे याद है जब मैं भैया दीदी सब स्कूल चले जाते थे तो तुम होती थीं मां के साथ आंगन में चीं- चीं करती हुई। तुम और तुम्हारे साथी सुबह हमसे पहले हमारे आंगन में आ जाते थे, हमारे दिए गए या ऐसे ही छोड़ दिए गए अनाज के दानों से तुम अपना पेट भर लिया करतीं थीं और इधर- उधर पंखों की फड़फडाहट से सुबह से दोपहर का सन्नाटा, जब तक हम वापस ना आ जाते तोड़ा करतीं थीं
तुम हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गईं थीं।
घर के अंदर उपस्थिति का , तुमसे अपनेपन का एहसास आज होता है जब तुम इस घर में नहीं दिखती हो।
गाहे- बगाहे जब तुम आती हो तो पता नहीं क्यों रूठी हुई लगती हो।
लेकिन “प्यारी गौरैया” आज मां अकेली हो जाती हैं हमारे जाने के बाद और तुम भी नहीं होती हो उनके साथ ।
आज तुम्हारी चीं-चीं की आवाज़ सुनना है मुझे
‘एक बार आ जाओ ‘ तुम्हारे लिए मैं घोसला बनाऊंगी
ये मेरा वादा है तुमसे प्यारी गौरैया!
कंचन द्विवेदी

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वास्तविक गणतंत्र

January 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गणों को नाज़ है कि वो तंत्र का हिस्सा हैं
क्या पता उन्हें कि वो षड़यंत्र का हिस्सा हैं
ये जो श्वेत वस्त्र धारी हैं
कहलाते लोकतंत्र के पुजारी हैं
असल में चुनावी वक्त के अवतारी हैं
शाम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाते हैं
प्रतिक्षण मर्यादा भूल जाते हैं
देश के नाम पर जान न्योछावर की बात करते हैं
रोज़ संसद में संस्कृति सीमा पार करते हैं
कहने को सफेदपोश कहलाते हैं
हकीक़त है कि अपने कर्मों को छिपाते हैं
गण अधिकारों को खो रहे हैं
कर्तव्यों को ढो रहे हैं
निज निष्ठा विखंडित
देश भी तो खंडित है , फ़िर भी
गणों को नाज़ है कि वो तंत्र का हिस्सा हैं
क्या पता उन्हें कि वो षड़यंत्र का हिस्सा है
” कंचन द्विवेदी,”

by Kanchan

वास्तविक गणतंत्र

January 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गणों को नाज़ है कि वो तंत्र का हिस्सा हैं
क्या पता उन्हें कि वो षड़यंत्र का हिस्सा हैं
ये जो श्वेत वस्त्र धारी हैं
कहलाते लोकतंत्र के पुजारी हैं
असल में चुनावी वक्त के अवतारी हैं
शाम दाम दण्ड भेद की नीति अपनाते हैं
प्रतिक्षण मर्यादा भूल जाते हैं
देश के नाम पर जान न्योछावर की बात करते हैं
रोज़ संसद में संस्कृति सीमा पार करते हैं
कहने को सफेदपोश कहलाते हैं
हकीक़त है कि अपने कर्मों को छिपाते हैं
गण अधिकारों को खो रहे हैं
कर्तव्यों को ढो रहे हैं
निज निष्ठा विखंडित
देश भी तो खंडित है , फ़िर भी
गणों को नाज़ है कि वो तंत्र का हिस्सा हैं
क्या पता उन्हें कि वो षड़यंत्र का हिस्सा हैं

by Kanchan

नया साल

January 4, 2020 in Other

मेरे प्यारे नए साल क्या इस बार मै पाऊंगी अपने सपनों की दुकान
जहां हर ख्वाब रखा होगा सलीके से
जहां होगी जगह मेरे नए ख्वाबों की
जहां होगा सम्मान मेरे आधे अधूरे कम पूरे पुराने ख्वाबों का….
जिन्हें भी मैंने एक वक़्त पर उतना ही प्यार किया जितना कि नए ख्वाबों से आज है………..😍😍

by Kanchan

एहसास

December 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों झर-झर बहती आंखों में यूं आंसू बनकर आते हो,
और सूखी पत्ती जैसे दूर चले भी जाते हो
एहसास मेरा है नहीं तुम्हें क्या यही जताते रहते हो
और चलने वाली हवा में पानी सा बहते रहते हो
एक बूंद पड़ी दिल सिहर उठा जैसे की बारिश आती हो
पर नहीं पता वो पानी था या केवल एक छलावा था
महसूस किया जिसको मैंने, वो सपना सच था कभी नहीं
इस दुनिया में गम देने वालों की कमी रही है कभी नहीं
बढ़ती हूं मंजिल की तरफ़ फ़िर दिखती मंजिल कहीं नहीं
मिलने वाली हर चीज मिली जब सांस मेरी ही रही नहीं
याद सफ़र आया मुझको जब साथ मेरे तुम चलते थे
पर क़दम-क़दम चलते चलते तुम अपना रंग बदलते थे।

by Kanchan

बेटी की फ़रियाद

December 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

सारा घर दे देना पापा
कोना एक बचाए रखना।
हाथों को हाथ सौंपने देना
उंगली एक छिपाए रखना

यादों की बगिया में घर की
एक छोटा फूल नाम का मेरे
पानी देना- ना देना
थोड़ी धूप दिखाए रखना
सारा घर दे देना पापा कोना एक बचाए रखना

माना परिवर्तन होगा भईया
हो जाए तो होने देना
हां मेरे हिस्से का प्यार सदा
दराजों में बनाए रखना।

जाएंगे सब आगे बढ़कर
मुझको भी तो जाना होगा
बीते शामों की झालर में
दीपक एक सजाए रखना।

सारा घर दे देना पापा कोना एक बचाए रखना

by Kanchan

माना कि मौन हूं मैं

September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

माना कि हूं अकेली, सहारा न चाहिए
माना कि मौन हूं मै, इशारा न चाहिए।
मेरी ख़ामोशी को तुम क्या समझोगे
तुम तो शब्दों को जानते हो
तुम्हारा नाम ‘जमाना ‘…. है
तुम केवल कामयाबी पहचानते हो।

by Kanchan

तुम होते कौन हो उन पर रौब झाड़ने वाले

September 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

पत्नी के लिए मां बाप को डांटने वाले तुम होते कौन हो उन पर रौब झाड़ने वाले
उनके समर्पण को माना भुला दिया इतना अभिमान कि उनको रुला दिया
उनके एहसानो को नकारने वाले
तुम होते कौन हो उनपर रौब झाड़ने वाले
वक़्त बेवक्त तकल्लुफ से पाला है तुम्हें!
गीले में सोकर सूखे में सुलाया है तुम्हें
खुद भुखे रह हाथों से खिलाया है तुम्हें
उनके हर त्याग को झूठा मानने वाले।
तुम होते कौन हो उनपर रौब झाड़ने वाले
लंबे सफ़र पर चलने के बाद उनके प्यार को दिखावा मानने वाले
तुम होते कौन हो उन पर रौब झाड़ने वाले।।

by Kanchan

बेटा- बेटी

September 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

जन्मे थे दोनों साथ साथ फिर भेद आ गया
क्यों मन मे।
एक बेटा है एक बेटी है सुन शोक छा गया
क्यों घर में।
भईया की बलैया की खातिर सब आए थे
बारी बारी
पर मेरी सूनी आंखों में गम देख सका था न कोई
मां तुमको तो प्यार लुटाना था पर तुम भी
आख़िर बेबस थीं
तेरी आंखों में खुशी देखने की मेरी छोटी सी चाहत थी।
दादी -दादा से कह दो एक प्यार भरा हाथ फेरें तो सही
उनकी सेवा की खातिर दरवाज़े पर मिलूंगी सदा खड़ी।
पापा की गुड़िया बन करके सपने पूरे
करना है मुझे,
घर की बिटिया बन करके आसमान
छूना है मुझे ।।

by Kanchan

कुछ तो

August 31, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर रोज़ उम्मीदों का बोझ लेकर बाबा
खेतों तक जाते हैं।
चिंता की लकीरें, सूखी कुछ- कुछ गीली आंखे
लेकर लौट आते हैं।
पता है छिपाते हैं कुछ, चाह कर
भी ना बता पाते हैं कुछ।
‘सब ठीक होगा’ की आस में न पूछ पाते हैं कुछ।।
मालूम है कि दरारें बची हैं खेतों में
फिर भी उन्हें भरने चले जाते हैं,
कुछ आशा से कुछ निराशा से।।
आज हैं जल्दी में बाबा कुछ शायद
पैग़ाम आया है ” बड़े सरकार” का
कुछ इंतज़ाम कर रखा है तुम्हारी” पैदावार “का
सूरज तो लौट रहा है पर बाबा क्यों ना लौटे हैं?
शायद फिर आज विधाता ने अन्नदाता को तोड़ दिया है।
अन्न के अभाव में रिश्ता रस्सी और पेड़ से जोड़ दिया है।।

by Kanchan

मेरे गुरु जी

August 30, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी न भाये गुरु जी तुम,
वो मैथ की मिस्ट्री,वो बोरिंग केमिस्ट्री
वो छडी की मार वो डांट वो पुकार
खड़े कर देना बेंच पर
नज़रे रखने को कहना अपने लेंस पर
कितने ही बार ज़ीरो आए
गुरुजी तुम कभी ना भाए
। । । । । । । । । । । । । ।
ये तो बचपन की कहानी थी
आज हर बात आपको बतानी थी
वो लड़का जिसे आपने ही संवारा था
जो कभी बदतमीज और आवारा था
उसने एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पुरस्कार जीत लिया है
उस सम्मान को आपके हाथों से लेने को कह दिया है
। । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । । ।
आज दुनिया त्याग और समर्पण की दीवानी होगी
जब स्टेज पर मेरे गुरु की आगवानी होगी।

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